नयी पीढ़ी संभाल रही संगीत की समृद्ध विरासत, बिहार की लोकधारा को नया आयाम दे रहे युवा म्यूजिशियंस और सिंगर्स

हिमांशु देव/ World Music Day: पटना. हर साल 21 जून को मनाया जाने वाला ‘विश्व संगीत दिवस’, जिसे ‘फेटे डी ला म्यूजिक’ के नाम से भी जाना जाता है, संगीत के प्रति हमारी संजीदगी और सम्मान को दर्शाता है. इस दिन का उद्देश्य न केवल संगीत को उत्सव के रूप में मनाना है, बल्कि संगीत के माध्यम से सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देना है. बिहार की मिट्टी में सदियों से रची-बसी लोकगीतों की अनमोल धारा आज नयी पीढ़ी के सुरों में सांस ले रही है. भोजपुरी, मैथिली, मगही जैसी भाषाओं में गाये जाने वाले सोहर, कजरी, चैता, प्रभाती और विदाई गीत अब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नये रंग और आवाजों में ढलकर दुनिया भर में गूंज रहे हैं. यहां के कलाकार न केवल इन गीतों को सहेज रहे हैं, बल्कि इन्हें अपनी सामाजिक जिम्मेदारी और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बनाते हुए लोक संगीत की एक नयी राह दिखा रहे हैं.

लोकगीत गाइए, अपनी मिट्टी से जुड़िए: हृदय नारायण झा

छठ गीत ‘पहिले-पहिले हम कईनी’ लिखने वाले हृदय नारायण झा मानते हैं कि लोकगीत सिर्फ संगीत नहीं, बल्कि हमारी लोकचेतना का दस्तावेज होते हैं. मिथिला में प्रभाती, मगही में प्रांती और भोजपुरी में सूरज निकलने से पहले गाई जाने वाली पारंपरिक धुनें, जीवन की लय और संस्कृति की गहराई को दर्शाती हैं. उनका मानना है कि आधुनिक संगीत में विषय नहीं होता, लेकिन लोकगीतों में ‘दिशा’ होती है. ये गीत मनुष्य के संस्कार, समाज और संबंधों को मजबूती देते हैं. आज की युवा पीढ़ी यदि अपनी जड़ों से जुड़ी रहे, तो संगीत केवल करियर नहीं, संस्कृति का सेतु बन सकता है. उनके अनुसार, लोकगीतों में वो शक्ति है जो व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होती है. विश्व संगीत दिवस पर उनका संदेश साफ है-लोकगीत गाइए, अपनी मिट्टी से जुड़िए, तभी पहचान टिकेगी.

संगीत को अखाड़ा न बनने दें… दीपक ठाकुर

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ से लोकप्रियता पाने वाले दीपक ठाकुर अब अनुराग कश्यप की नयी फिल्म ‘निशानची’ में बतौर सिंगर, लिरिसिस्ट और कंपोजर काम कर रहे हैं. साथ ही वे मीका सिंह के साथ एक बड़ा फोक प्रोजेक्ट ला रहे हैं. दीपक कहते हैं, आजकल संगीत के नाम पर शोर ज्यादा और सुर कम हो गया है. असली संगीत वो है जो आत्मा को छू ले. उन्होंने बताया कि ‘भैया जी’ फिल्म के लिए उन्होंने एक पारंपरिक चंक गीत गाया है, जिसमें बारातियों को हंसी-मजाक में छेड़ने का पुट है. उनकी अपील है, हमारे लोकगीतों की जड़ें बहुत गहरी हैं. इन्हें पहचानना और अगली पीढ़ी तक पहुंचाना हम कलाकारों की जिम्मेदारी है. संगीत को बाजारू न बनाएं, यह हमारी आत्मा की आवाज है.

संगीत ऐसा हो, जो संवेदना व बदलाव लाये: चंदन तिवारी

टीवी रियलिटी शोज से अपनी यात्रा शुरू करने वाली लोकगायिका चंदन तिवारी आज बिहार की लोक संगीत परंपरा का एक मजबूत चेहरा हैं. ‘पुरबिया तान’ नामक प्रोजेक्ट से उन्होंने महेंद्र मिसिर और भिखारी ठाकुर जैसे दिग्गजों के गीतों को नये रंग में पेश किया. उनका कहना है, मुझे ऐसे गीत पसंद नहीं जो सिर्फ शोर करें. मैं ऐसा संगीत चाहती हूं जिसे हम परिवार के साथ बैठकर सुन सकें, जो संवेदना जगाये और समाज में बदलाव लाए. उन्होंने यूट्यूब चैनल के माध्यम से ‘सोहर’, ‘बेटी बिदाई गीत’, ‘कजरी’, ‘गंगा गीत’ जैसे कई पारंपरिक गीतों को डिजिटल रूप में प्रस्तुत किया है. उनकी सोच है कि लोकगीत सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि एक सामाजिक विमर्श भी हैं. इसी सोच ने उन्हें बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार और विंध्यवासिनी सम्मान दिलाया.

विश्व संगीत दिवस पर देखेगी फ्यूजन म्यूजिक की झलक

भारतीय नृत्य कला मंदिर, पटना में 21 जून को होने वाले विश्व संगीत दिवस कार्यक्रम में फ्यूजन म्यूजिक की झलक दिखेगी. यहां पटना के मशहूर रागा फ्यूजन बैंड में दो युवा कलाकारों-हर्षित शंकर और अमृतांशु दत्ता की प्रस्तुति देखने लायक होगी.

हर्षित शंकर बांसुरी से बनाते हैं सुरों की दुनिया

हर्षित डीएवी खगौल के पूर्व छात्र हैं और उनके पिता भी बांसुरी वादक रहे हैं. उन्होंने हरिप्रसाद चौरसिया और राकेश चौरसिया से प्रशिक्षण लिया है. हर्षित अब उदित नारायण और पीयूष मिश्रा जैसे कलाकारों के साथ प्रस्तुति दे चुके हैं. उनका कहना है, बांसुरी मेरी आत्मा की आवाज है. मैं चाहता हूं कि लोग इसे सिर्फ क्लासिकल वाद्य नहीं, एक भावनात्मक अनुभव की तरह सुनें.

अमृतांशु दत्ता ने गिटार में खोजा भारतीय राग

इंजीनियरिंग छोड़कर संगीत को अपनाने वाले अमृतांशु 22 तारों वाले स्लाइड गिटार के विशेषज्ञ हैं. वे पं समरजीत मुखर्जी से पिछले 15 वर्षों से रियाज़ कर रहे हैं. गिटार को भारतीय रागों में ढालना चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन यह मेरी पहचान बन गयी है. उन्होंने एआर रहमान, म्यूजिक मोजो और जैमिन जैसे मंचों पर प्रस्तुति दी है.

खास है ‘खामोश बैंड’: देशभर में बनायी अपनी पहचान

विश्व संगीत दिवस के मौके पर जब राजधानी की गलियों और मोहल्लों में संगीत गूंजता है, तो एक नाम बार-बार सामने आता है- ‘खामोश बैंड’ का. इसकी शुरुआत साल 2015 में कुछ स्कूली छात्रों ने सिर्फ अपने संगीत प्रेम को जीने के लिए की थी. तब किसी ने नहीं सोचा था कि ये बैंड एक दिन देशभर के प्रतिष्ठित मंचों तक पहुंचेगा. बैंड के सदस्य अभिषेक बताते हैं, हमने 10 साल पहले बस शौक के लिए शुरुआत की थी. तब ये कभी नहीं सोचा था कि दिल्ली, नोएडा, कोलकाता, मुंबई जैसे बड़े शहरों के आइआइटी, निफ्ट और बिजनेस कॉलेजों में हम अपनी परफॉर्मेंस देंगे. खामोश बैंड की खास बात है कि ये सिर्फ गानों को नहीं, बल्कि भावनाओं और खामोशियों को सुर देते हैं. यही वजह है कि आज यह बैंड एक पहचान बन चुका है- न केवल पटना में, बल्कि देश के कई कोनों में भी.

हर सदस्य की है एक अलग पहचान व भूमिका

  • डैनियल और गौतम – वोकलिस्ट के तौर पर भावनात्मक और ऊर्जावान गायन के लिए पहचाने जाते हैं.
  • अभिषेक और सुदर्शन – रिदम और लीड गिटार की जिम्मेदारी निभाते हैं.
  • राहुल – ड्रम की बीट्स से संगीत में जान डालते हैं.
  • सन्नी – कीबोर्ड की मधुर धुनों से बैंड को गहराई देते हैं.
  • अर्शिल जमाल- बैंड मैनेजर के रूप में मंच के पीछे की पूरी रूपरेखा को संभालते हैं.

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