ध्वनि Sound

ध्वनि Sound

• ध्वनि विभिन्न वस्तुओं के कम्पन करने के कारण उत्पन्न होती है।
ध्वनि का संचरण
• द्रव्य या पदार्थ जिससे होकर ध्वनि संचरित होती है, माध्यम कहलाता है। यह ठोस, द्रव या गैस हो सकते हैं।
• स्रोत से उत्पन्न होकर ध्वनि सुनने वाले तक किसी माध्यम से होकर पहुँचती है।
• जब कोई वस्तु कम्पन करती है तो यह अपने चारों ओर विद्यमान माध्यम के कणों को कम्पन कर देती है। ये कण कम्पन वस्तु से हमारें कानों तक स्वयं गति कर नहीं पहुँचते। सबसे पहले कम्पन वस्तु के सम्पर्क में रहने वाले माध्यम के कण अपनी सन्तुलित अवस्था से विस्थापित होते हैं। ये अपने समीप के कणों पर एक बल लगाते हैं। जिसके फलस्वरूप निकटवर्ती कण अपनी विरामावस्था से विस्थापित हो जाते हैं। निकटवर्ती कणों को विस्थापित करने के पश्चात् प्रारम्भिक कण अपनी मूल अवस्थाओं में वापस लौट आते हैं। माध्यम में यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि ध्वनि हमारे कानों तक नहीं पहुँच जाती है।
• माध्यम में ध्वनि द्वारा उत्पन्न विक्षोभ ( माध्यम के कण नहीं ) माध्यम से होता हुआ संचरित होता है।
• तरंग एक विक्षोभ है, जो किसी माध्यम से होकर गति करता है और माध्यम के कण निकटवर्ती कणों में गति उत्पन्न कर देते हैं। ये कण इसी प्रकार की गति अन्य कणों में उत्पन्न करते हैं। माध्यम के कण स्वयं आगे नहीं बढ़ते, लेकिन विक्षोभ आगे बढ़ जाता है। किसी माध्यम में ध्वनि के संचरण के समय ठीक ऐसा ही होता है। इसलिए ध्वनि को तरंग के रूप में जाना जा सकता है।
• ध्वनि तरंगें माध्यम के कणों की गति द्वारा अभिलक्षित की जाती है और यान्त्रिक तरंगें कहलाती हैं ।
• ध्वनि के संचरण के लिए वायु सबसे अधिक सामान्य माध्यम है।
• जब कोई कम्पन वस्तु आगे की ओर कम्पन करती है तो अपने सामने की वायु को धक्का देकर सम्पीडित करती है और इस प्रकार एक उच्च दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है। इस क्षेत्र को सम्पीडन कहते हैं। यह सम्पीडन कम्पन वस्तु से दूर आगे की ओर गति करता है।
• जब कम्पन वस्तु पीछे की ओर कम्पन करती है तो एक निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है जिस विरलन कहते हैं।
• जब वस्तु कम्पन करती है अर्थात् आगे और पीछे तेजी से गति करती है तो वायु में सम्पीडन और विरलन की एक श्रेणी बन जाती है। यही सम्पीडन और विरलन ध्वनि तरंग बनाते हैं जो माध्यम से होकर संचरित होती है।
• सम्पीडन उच्च दाब का क्षेत्र है और विरलन निम्न दाब का क्षेत्र है।
• दाब किसी माध्यम के दिए हुए आयतन में कणों की संख्या से सम्बन्धित है।
• किसी माध्यम में कणों का अधिक घनत्व अधिक दाब को और कम घनत्व कम दाब को दर्शाता है। इस प्रकार ध्वनि का संचरण घनत्व परिवर्तन के संचरण के रूप में भी देखा जा सकता है।
• ध्वनि एक यान्त्रिक तरंग है और इसके संचरण के लिए किसी माध्यम; जैसे— वायु, जल, स्टील आदि की आवश्यकता होती है।
• ध्वनि निर्वात में होकर नहीं चल सकती।
                                                             ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य तरंगें हैं
• जिस तरंग में कण तरंग की संचरण की दिशा के लम्बवत् अपनी विरामावस्था के ऊपर-नीचे कम्पन करते हैं, उन्हें अनुप्रस्थ तरंगें कहते हैं। प्रकाश अनुप्रस्थ तरंग होता है।
• ध्वनि तरंगों में इसके कण तरंग की संचरण की दिशा के लम्बवत् कम्पन नहीं करते, बल्कि ये अपनी विरामावस्था से आगे-पीछे दोलन करते हैं, अर्थात् इनके माध्यम के कणों का विस्थापन विक्षोभ के संचरण की दिशा में समान्तर होता है, ऐसे तरंगों को अनुदैर्ध्य तरंगें कहा जाता है। इस तरह ध्वनि भी अनुदैर्ध्य तरंगें हैं।
ध्वनि तरंग के अभिलक्षण
• किसी ध्वनि तरंग के अभिलक्षण होते हैं – तारत्व, प्रबलता तथा गुणता आदि। ये इन तरंगों के गुणों जैसे आवृत्ति, आयाम, वेग आदि द्वारा निर्धारित होते हैं।
• किसी ध्वनि तरंग में जहाँ कण आस-पास आ जाते हैं, उन्हें सम्पीडन क्षेत्र कहा जाता है। इनमें घनत्व तथा दाब दोनों ही अधिक होते हैं।
• किसी ध्वनि तरंग के चित्र में शिखर अधिकतम सम्पीडन के क्षेत्र को प्रदर्शित करता है।
• विरलन निम्न दाब के क्षेत्र है जहाँ कण दूर-दूर हो जाते हैं और उन्हें चित्र में घाटी से प्रदर्शित करते हैं।
• शिखर को तरंग का श्रृंग तथा घाटी को गर्त कहा जाता है।
• दो क्रमागत सम्पीडनों अथवा दो क्रमागत विरलनों के बीच की दूरी तरंगदैर्ध्य कहलाती है।
• तरंगदैर्ध्य को साधारणत: λ (ग्रीक अक्षर लैम्डा) से निरूपित किया जाता है।
• तरंगदैर्ध्य का SI मात्रक मीटर (m) है।
• जब ध्वनि किसी माध्यम में संचरित होती है तो माध्यम का घनत्व किसी अधिकतम तथा न्यूनतम मान के बीच बदलता है। घनत्व के अधिकतम मान से न्यूनतम मान तक परिवर्तन में और पुन: अधिकतम मान तक आने पर एक दोलन पूरा होता है। एकांक समय में इन दोलनों की कुल संख्या ध्वनि तरंग की आवृत्ति कहलाती है।
• आवृत्ति को सामान्यतया ν (ग्रीक अक्षर न्यू) से प्रदर्शित किया जाता है। इसका SI मात्रक हर्ट्ज (hertz), प्रतीक (Hz) है।
• दो क्रमागत सम्पीडनों या दो क्रमागत विरलनों को किसी निश्चित बन्दु से गुजरने में लगे समय को तरंग का आवर्त काल कहते हैं अर्थात् माध्यम में घनत्व के एक सम्पूर्ण दोलन में लिया गया समय ध्वनि तरंग का आवर्त काल कहलाता है। इसे T अक्षर से निरूपित करते हैं। इसका SI मात्रक सेकण्ड (s) है। आवृत्ति तथा आवर्त काल के बीच सम्बन्ध को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है U= 1/T
• किसी आर्केस्ट्रा में वायलिन तथा बाँसुरी एक ही समय बजाई जा सकती हैं। दोनों ध्वनियाँ एक ही माध्यम (वायु) में चलती है और हमारे कानों तक एक ही समय पर पहुँचती हैं। दोनों ही स्रोतों की ध्वनियाँ एक ही चाल से चलती हैं। लेकिन जो ध्वनियाँ हम ग्रहण करते हैं वे भिन्न-भिन्न हैं। ऐसा ध्वनि से जुड़े विभिन्न अभिलक्षणों के कारण है। तारत्व इनमें से एक अभिलक्षण है।
• किसी उत्सर्जित ध्वनि की आवृत्ति को मस्तिष्क किस प्रकार अनुभव करता है, उसे तारत्व कहते हैं।
• किसी स्रोत का कम्पन जितनी शीघ्रता से होता है, आवृत्ति उतनी ही अधिक होती है और उसका तारत्व भी अधिक होता है। इसी प्रकार जिस ध्वनि का तारत्व कम होता है उसकी आवृत्ति भी कम होती है।
• विभिन्न आकार तथा आकृति की वस्तुएँ विभिन्न आवृत्तियों के साथ कम्पन करती हैं और विभिन्न तारत्व की ध्वनियाँ उत्पन्न करती हैं।
• किसी माध्यम में मूल स्थिति के दोनों ओर अधिकतम विक्षोभ को तरंग का आयाम कहते हैं। इसे साधारणतः अक्षर A से निरूपित किया जाता है। ध्वनि के लिए इसका मात्रक दाब या घनत्व का मात्रक होगा।
• ध्वनि की प्रबलता अथवा मृदुता मूलत: इसके आयाम से ज्ञात की जाती है।
• यदि हम किसी मेज पर धीरे से चोट मारें, तो हमें एक मृदु ध्वनि सुनाई देगी क्योंकि हम कम ऊर्जा की ध्वनि तरंग उत्पन्न करते हैं। यदि हम मेज पर जोर से चोट मारें तो हमें प्रबल ध्वनि सुनाई देगी। इसका कारण यह है कि प्रबल ध्वनि अधिक दूरी तक चल सकती है क्योंकि यह अधिक ऊर्जा से सम्बद्ध है।
• उत्पादक स्रोत से निकलने के पश्चात् ध्वनि तरंग फैल जाती है। स्रोत से जाने पर इसका आयाम तथा प्रबलता दोनों ही कम होते जाते हैं। ध्वनि की यह गुणता (timbre) यह अभिलक्षण है जो हमें समान तारत्व तथा प्रबलता की दो ध्वनियों में अन्तर करने में सहायता करता है।
• एकल आवृत्ति की ध्वनि को टोन कहते हैं।
• अनेक आवृत्तियों के मिश्रण से उत्पन्न ध्वनि को स्वर (note ) कहते हैं और यह सुनने से सुखद होती है।
• शोर (noise) कर्णप्रिय नहीं होता जबकि संगीत सुनने में सुखद होता है।
• तरंग के किसी बिन्दु जैसे एक सम्पीडन या एक विरलन द्वारा एकांक समय में तय की गई दूरी तरंग वेग कहलाती है। हम जानते हैं वेग= दूरी \ समय
• किसी एकांक क्षेत्रफल से एक सेकण्ड में गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा को ध्वनि की तीव्रता कहते हैं। यद्यपि हम कभी-कभी ‘प्रबलता’ तथा ‘तीव्रता’ शब्दों का पर्याय के रूप में उपयोग करते हैं लेकिन इनका अर्थ एक ही नहीं है। प्रबलता ध्वनि के लिए कानों की संवेदनशीलता की माप है। यद्यपि दो ध्वनियाँ समान तीव्रता की हो सकती हैं फिर भी हम एक को दूसरे की अपेक्षा अधिक प्रबल ध्वनि के रूप में सुन सकते हैं क्योंकि हमारे कान इसके लिए अधिक संवदेनशील हैं।
विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल
• किसी माध्यम में ध्वनि एक निश्चित चाल से संचरित होती है। ध्वनि की चाल उस माध्यम के गुणों पर निर्भर करती है जिसमें ये संचरित होती है।
• किसी माध्यम में ध्वनि की चाल माध्यम के ताप तथा दाब पर भी निर्भर करती है। जब हम ठोसों से गैसीय अवस्था की ओर जाते हैं तो ध्वनि की चाल कम होती जाती है।
• किसी भी माध्यम में ताप बढ़ाने पर ध्वनि की चाल भी बढ़ती है। उदाहरण के लिए वायु में ध्वनि की चाल O°C पर 331 मी / से ‾¹ तथा 22°C पर 344 मी/से ‾¹ है।
• ध्वनि बूम जब कोई पिण्ड ध्वनि की चाल से अधिक तेजी से गति करता है तब उसे पराध्वनिक चाल से चलता हुआ कहा जाता है। गोलियाँ, जेट- वायुयान आदि प्रायः पराध्वनिक चाल से चलते हैं। जब ध्वनि उत्पादक स्रोत ध्वनि की चाल से अधिक तेजी से गति करते हैं तो ये वायु में प्रघाती तरंगें उत्पन्न करते हैं। इन प्रघाती तरंगों में बहुत अधिक ऊर्जा होती है। इस प्रकार की प्रघाती तरंगों से सम्बद्ध वायुदाब में परिवर्तन से एक बहुत तेज और प्रबल ध्वनि उत्पन्न होती है जिसे ध्वनि बूम कहते हैं। पराध्वनिक वायुयान से उत्पन्न इस ध्वनि बूम में इतनी मात्रा में ऊर्जा होती है कि यह खिड़कियों के शीशों को तोड़ सकती है और यहाँ तक कि भवनों को भी क्षति पहुँचा सकती है।
ध्वनि का परावर्तन
• किसी ठोस या द्रव से टकराकर ध्वनि उसी प्रकार वापस लौटती है जैसे कोई रबड़ की गेंद किसी दीवार से टकराकर वापस आती है।
• प्रकाश की भाँति ध्वनि भी किसी ठोस या द्रव की सतह से परावर्तित होती है तथा परावर्तन के उन्हीं नियमों का पालन करती है जिनका पालन प्रकाश की किरणें करती हैं।
• परावर्तक सतह पर खींचे गए अभिलम्ब तथा ध्वनि के आपतन होने की दिशा तथा परावर्तन होने की दिशा के बीच बने कोण आपस में बराबर होते हैं और ये तीनों दिशाएँ एक ही तल में होती हैं।
• ध्वनि तरंगों के परावर्तन के लिए बड़े आकार के अवरोधक कीआवश्यकता होती है जो चाहे पॉलिश किए हुए हों या खुरदरे।
प्रतिध्वनि
• किसी उचित परावर्तक वस्तु जैसे किसी इमारत अथवा पहाड़ से टकराने के बाद पुन: सुनाई पड़ने वाली ध्वनि को प्रतिध्वनि कहते हैं।
• हमारे मस्तिष्क में ध्वनि की संवेदना लगभग 0.1 सेकण्ड तक बनी रहती है। स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए मूल ध्वनि तथा परावर्तित ध्वनि के बीच कम से कम 0.1 सेकण्ड का समय अन्तराल अवश्य होना चाहिए।
• स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए अवरोधक की ध्वनि स्रोत से न्यूनतम दूरी 17.2 मी अवश्य होनी चाहिए। यह दूरी वायु के ताप के साथ बदल जाती है क्योंकि ताप के साथ ध्वनि के वेग में भी परिवर्तन हो जाता है।
अनुरणन
• किसी बड़े हॉल में उत्पन्न होने वाली ध्वनि दीवारों से बारम्बार परावर्तन के कारण काफी समय तक बनी रहती है जब तक कि यह इतनी कम न हो जाए कि यह सुनाई ही न पड़े। यह बारम्बार परावर्तन जिसके कारण ध्वनि का स्थायित्व होता है, अनुरणन कहलाता है।
• किसी सभा भवन या बड़े हॉल में अत्यधिक अनुरणन अत्यन्त अवांछनीय है।
• अनुरणन को कम करने के लिए सभा भवन की छतों तथा दीवारों पर ध्वनि अवशोषक पदार्थों जैसे- सम्पीडित फाइबर बोर्ड, खुरदरे प्लास्टर अथवा पर्दे लगे होते हैं। सीटों के पदार्थों का चुनाव इनके ध्वनि अवशोषक गुणों के आधार पर भी किया जाता है।
                                                     ध्वनि के बहुल परावर्तन के उपयोग
•  मेगाफोन या लाउडस्पीकर, हॉर्न, तूर्य तथा शहनाई जैसे-वाद्य यन्त्र, सभी इस प्रकार बनाए जाते है’ कि ध्वनि सभी दिशाओं में फैले बिना केवल एक विशेष दिशा में ही जाती है। इन यन्त्रों में एक नली का आगे का खुला भाग शंक्वाकार होता है। यह स्रोत से उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगों को बार-बार परावर्तित करके श्रोताओं की ओर आगे की दिशा में भेज देता है।
•  स्टेथोस्कोप एक चिकित्सा यन्त्र है जो शरीर के अन्दर, मुख्यतः हृदय तथा फेफड़ों में, उत्पन्न होने वाली ध्वनि को सुनने में काम आता है। स्टेथोस्कोप में रोगी के हृदय की धड़कन की ध्वनि, बार-बार परावर्तन के कारण डॉक्टर के कानों तक पहुँचती है।
• कन्सर्ट हॉल, सम्मेलन कक्षों तथा सिनेमा हॉल की छतें वक्राकार बनाई जाती हैं जिससे कि परावर्तन के पश्चात् ध्वनि हॉल के सभी भागों में पहुँच जाए। कभी-कभी वक्राकार ध्वनि-पट्टों को मंच के पीछे रख दिया जाता है जिससे कि ध्वनि, ध्वनि-पट्ट से परावर्तन के पश्चात समान रूप से पूरे हॉल में फैल जाए।
श्रव्यता का परिसर
• मनुष्यों में ध्वनि की श्रव्यता का परिसर लगभग 20 हर्ट्ज से 220000 हर्ट्ज (1 हर्ट्ज =1 चक्र / सेकण्ड) तक होता है।
• पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चे तथा कुछ जन्तु जैसे कुत्ते 25 किलो हर्ट्ज तक की ध्वनि सुन सकते हैं।
• ज्यों-ज्यों व्यक्तियों की आयु बढ़ती जाती है उनके कान उच्च आवृत्तियों के लिए कम सुग्राही होते जाते हैं। –
• 20 हर्ट्ज से कम आवृत्ति की ध्वनियों को अवश्रव्य ध्वनि कहते हैं। राइनोसिरस (गैंण्डा) 5 हर्ट्ज तक की आवृत्ति की अवश्रव्य ध्वनि का उपयोग करके सम्पर्क स्थापित करता है।
• ह्वेल तथा हाथी अवश्रव्य ध्वनि परिसर की ध्वनियाँ उत्पन्न करते हैं।
• 20 किलो हर्ट्ज से अधिक आवृत्ति की ध्वनियों को पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि कहते हैं। डॉलफिन, चमगादड़ और पॉरपॉइज पराध्वनि उत्पन्न करते हैं।
• कुछ प्रजाति के शलभों (moths) के श्रवण यन्त्र अत्यन्त सुग्राही होते हैं। ये शलभ चमगादड़ों द्वारा उत्पन्न उच्च आवृत्ति की चींचीं की ध्वनि को सुन सकते हैं। उन्हें अपने आस-पास उड़ते हुए चमगादड़ के बारे में जानकारी मिल जाती है और इस प्रकार स्वयं को पकड़े जाने से बचा पाते हैं।
• चूहे भी पराध्वनि उत्पन्न करके कुछ खेल खेलते हैं।
पराध्वनि के अनुप्रयोग
• पराध्वनियाँ उच्च आवृत्ति की तरंगें हैं।
• पराध्वनियाँ अवरोधों की उपस्थिति में भी एक निश्चित पथ पर गमन कर सकती हैं।
• उद्योगों तथा चिकित्सा के क्षेत्र में पराध्वनियों का विस्तृत रूप से उपयोग किया जाता है।
■ पराध्वनि प्राय: उन भागों को साफ करने में उपयोग की जाती है जिन तक पहुँचना कठिन होता है जैसे— सर्पिलाकार नली, विषम आकार के पुर्जे, इलेक्ट्रॉनिक अवयव आदि। जिन वस्तुओं को साफ करना होता है उन्हें साफ करने वाले मार्जन विलयन में रखते हैं और इस विलयन में पराध्वनि तरंगें भेजी जाती हैं। उच्च आवृत्ति के कारण, धूल, चिकनाई तथा गन्दगी के कण अलग होकर नीचे गिर जाते हैं। इस प्रकार वस्तु पूर्णतया साफ हो जाती है।
■ पराध्वनि का उपयोग धातु के ब्लॉकों में दरारों तथा अन्य दोषों का पता लगाने के लिए किया जाता है। धात्विक घटकों को प्राय: बड़े-बड़े भवनों, पुलों, मशीनों तथा वैज्ञानिक उपकरणों को बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। धातु के ब्लॉकों में विद्यमान दरार या छिद्र जो बाहर से दिखाई नहीं देते, भवन या पुल की संरचना की मजबूती को कम कर देते हैं। पराध्वनि तरंगें धातु के ब्लॉक से गुजारी जाती हैं और प्रेषित तरंगों का पता लगाने के लिए संसूचकों का उपयोग किया जाता है। यदि थोडा-सा भी दोष होता है, तो पराध्वनि तरंगें परावर्तित हो जाती हैं जो दोष की उपस्थिति को दर्शाती हैं।
■ पराध्वनि तरंगों को हृदय के विभिन्न भागों में परावर्तित करा कर हृदय का प्रतिबिम्ब बनाया जाता है। इस तकनीक को ‘इको कार्डियोग्राफी’ (ECG) कहा जाता है।
■ पराध्वनि संसूचक एक ऐसा यन्त्र है जो पराध्वनि तरंगों का उपयोग करके मानव शरीर के आन्तरिक अंगों का प्रतिबिम्ब प्राप्त करने के लिए काम में लाया जाता है। इस संसूचक से रोगी के अंगों जैसे— यकृत, पित्ताशय, गर्भाशय, गुर्दे आदि का प्रतिबिम्ब प्राप्त किया जा सकता है। यह संसूचक को शरीर की असमान्यताएँ, जैसे – पित्ताशय तथा गुर्दे में पथरी तथा विभिन्न अंगों में अर्बुद (ट्यूमर) का पता लगाने में सहायता करता है। इस तकनीक में पराध्वनि तरंगें शरीर के ऊतकों में गमन करती हैं तथा उस स्थान से परावर्तित हो जाती हैं जहाँ ऊतक के घनत्व में परिवर्तन होता है। इसके पश्चात् इन तरंगों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित किया जाता है जिससे कि उस अंग का प्रतिबिम्ब बना लिया जाए। इन प्रतिबिम्बों को मॉनीटर पर प्रदर्शित किया जाता है या फिल्म पर मुद्रित कर लिया जाता है। इस तकनीक को अल्ट्रासोनोग्राफी कहते हैं। अल्ट्रासोनोग्राफी का उपयोग गर्भ काल में भ्रूण की जाँच तथा उसके जन्मजात दोषों तथा उसकी वृद्धि की अनियमितताओं का पता लगाने में किया जाता है।
■ पराध्वनि का उपयोग गुर्दे की छोटी पथरी को बारीक कणों में तोड़ने के लिए भी किया जा सकता है। ये कण बाद में मूत्र के साथ बाहर निकल जाते हैं।
सोनार
• सोनार (SONAR) शब्द Sound Navigation And Ranging से बना है।
• सोनार एक ऐसी युक्ति है जिसमें जल में स्थित पिण्डों की दूरी, दिशा तथा चाल मापने के लिए पराध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है।
• सोनार में एक प्रेषित तथा एक संसूचक होता है और इसे किसी नाव या जहाज में लगाया जाता है। प्रेषित पराध्वनि तरंगें उत्पन्न तथा प्रेषित करता है। ये तरंगें जल में चलती हैं तथा समुद्र तल में पिण्ड से टकराने के पश्चात परावर्तित होकर संसूचक द्वारा ग्रहण कर ली जाती हैं। संसूचक पराध्वनि तरंगों को विद्युत संकेतों में बदल देता है उनकी उचित रूप से व्याख्या कर ली जाती है। जल में ध्वनि को चाल तथा पराध्वनि के प्रेषण तथा अभिग्रहण के समय अन्तराल को ज्ञात करके उस पिण्ड की दूरी की गणना को जा सकती है जिससे ध्वनि तरंग परावर्तित हुड़ं है।
• मान लीजिए पराध्वनि संकेत के प्रेषण तथा अभिग्रहण का समय अन्तरा ‘t’ है तथा समुद्री जल में ध्वनि की चाल ‘ए’ है। तब सतह से पिण्ड की दूरी 2d होगी 2d = v × t इस विधि को प्रतिध्वनिक-परास कहते हैं।
• सोनार की तकनीक का उपोग समुद्र की गहराई ज्ञात करने तथा जल के अन्दर स्थित चट्टानों, घाटियों, पनडुब्बियों, हिम शैल, डूबे हुए जहाज आदि की जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
मानव कर्ण की संरचना
• हम एक अतिसंवेदी युक्ति जिसे कान (कर्ण) कहते हैं, कि सहायता से सुन पाते हैं। यह श्रवणीय आवृत्तियों द्वारा वायु में होने वाले दाब परिवर्तनों को विद्युत संकेतों में बदलता है जो श्रवण तन्त्रिका से होते हुए मस्तिष्क तक पहुँचते हैं।
• बाहरी कान ‘कर्ण पल्लव’ कहलाता है। यह परिवेश से ध्वनि को एकत्रित करता है। एकत्रित ध्वनि श्रवण नलिका से गुजरती है। श्रवण नलिका के सिरे पर एक पतली झिल्लो होती है जिसे कर्ण पटह या कर्ण पटह झिल्ली कहते हैं। जब माध्यम के सम्पीडन कर्ण पटह तक पहुँचते हैं तो झिल्ली के बाहर की ओर लगने वाला दाब बढ़ जाता है और यह क पटह को अन्दर की ओर दबाता है। इसी प्रकार, विश्लन के पहुँचने पर कर्ण पटह बाहर की ओर गति करता है। इस प्रकार कर्ण पटह कम्पन करता है। मध्य कर्ण में विद्यमान तीन हड्डियाँ [(मुग्दरक, निहाई तथा वलयक ( स्टिरप)] इन कम्पनों को कई गुना बढ़ा देती हैं मध्य कर्ण ध्वनि तरंगों से मिलने वाले इन दाब परिवर्तनों को आन्तरिक कर्ण तक संचरित कर देता है। आन्तरिक कर्ण में कर्णावर्त (Cochlea} द्वारा दाब परिवर्तनों को विद्युत संकतों में परिवर्तित कर दिया जाता है। इन विद्युत संकेतों को श्रवण तन्त्रिका द्वारा मस्तिष्क तक भेज दिया जाता है और मस्तिष्क इनकी ध्वनि के रूप में व्याख्या करता है।
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