दक्षिण कोरिया के स्कूलों में हो रही AI टेक्स्टबुक से पढ़ाई, 30% विद्यालयों ने अपनाया नया मॉडल; दुनियाभर में छिड़ी बहस
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दक्षिण कोरिया स्कूलों में एआई का उपयोग कर रहा है और लिंक्डइन के सह-संस्थापक का कहना है कि कॉलेजों को भी सीखने और परीक्षाओं में सुधार के लिए एआई का उपयोग शुरू करना चाहिए.

साउथ कोरिया के 30 फीसदी स्कूल में एआई
हाइलाइट्स
- दक्षिण कोरिया के 30% स्कूलों में AI टेक्स्टबुक का उपयोग.
- अंग्रेजी और गणित की पढ़ाई में AI टेक्स्टबुक का रोलआउट.
- LinkedIn के सह-संस्थापक ने कॉलेजों में AI अपनाने की वकालत की.
नई दिल्ली. इसमें कोई दो राय नहीं है कि आने वाले समय में हर व्यक्ति AI का इस्तेमाल करने लगेगा. AI को लेकर भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए साउथ कोरिया में आज से ही स्कूलों में AI बुक्स जोड़ दी हैं. जी हां, ऐसा करने वाला साउथ कोरिया संभवत: पहला देश है, जहां के बहुत से स्कूलों में AI से चलने वाली किताबें पढी जा रही हैं. इससे पारंपरिक शिक्षा में बड़ा बदलाव आ रहा है. निक्केई एशिया की रिपोर्ट की मानें तो मार्च से अब तक दक्षिण कोरिया के लगभग 30 प्रतिशत स्कूलों में, प्राइमरी से लेकर हाई स्कूल तक, AI से चलने वाली डिजिटल किताबों को अपनाया जा चुका है. ये छात्रों के सीखने के तरीके में एक बड़ा बदलाव है.
आपको बता दें कि साउथ कोरिया में नौ साल बाद APEC शिक्षा मंत्रियों का शिखर सम्मेलन हुआ और ये उपलब्धी उसी में बताई गई. दक्षित कोरिया के स्कूल खासतौर से अंग्रेजी और मैथ्स की टेक्स्टबुक के लिए AI को रोलआउट कर रहे हैं. हालांकि ये बात भी सच है कि AI को प्राइमरी स्कूल लेवल पर लाने के लिए साउथ कोरिया को अपने शिक्षकों को ट्रेन करने की चुनौती भी है.
कॉलेज में AI को अपनाने की बात
जहां एक ओर साउथ कोरिया शुरुआती शिक्षा में ही AI को ले आया है, वहीं वैश्विक स्तर पर ये बहस छिड गई है, एआई को हायर एजुकेशन में भी लाया जाना चाहिए. LinkedIn के को-फाउंडर रीड हॉफमैन ने कहा कि बहुत से शिक्षक इससे बच रहे हैं. लेकिन AI को टाला नहीं जा सकता है. ये कहीं नहीं जा रहा है. यूनिवर्सिटीज को इसे अपनाने की जरूरत है.
अपने पॉडकास्ट “पॉसिबल” पर बोलते हुए हॉफमैन ने कहा कि कॉलेज टेस्टिंग का पारंपरिक तरीका अब विश्वसनीय नहीं रह गया है. खासतौर से छात्रों को असाइनमेंट में मिला निबंध, अब उनके दिमाग से नहीं, बल्कि AI की मदद से लिखा जा रहा है. छात्र असाइनमेंट पूरा करने के लिए जनरेटिव एआई टूल का इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे में एआई का विरोध करने के बजाय, उनका मानना है कि कॉलेजों को इस बात पर दोबारा सोचने की जरूरत है कि वो छात्रों को सिखाने की प्रक्रिया में या मूल्यांकन प्रक्रिया में एआई का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं.
हॉफमैन ने ये भी सुझाव दिया कि भविष्य की परीक्षाओं में एआई को सह-परीक्षक यानी को-एग्जामिनर के तौर पर शामिल किया जा सकता है. ओरल टेस्ट की ओर भी अधिक बदलाव किया जा सकता है, जिसके लिए गहन समझ की आवश्यकता होती है. उन्होंने कहा कि एआई जो निबंध लिखकर देता है, वो अक्सर बहुत ही सामान्य होते हैं और शिक्षक उन्हें इस बात के उदाहरण के रूप में उपयोग कर सकते हैं कि क्या नहीं करना चाहिए, जिससे छात्रों को उनके लक्ष्य पाने के लिए प्रेरित किया जा सके.