त्रिकोणमिति Trigonometry

त्रिकोणमिति   Trigonometry

 

‘त्रिकोणमिति’ दो शब्दों ‘त्रिकोण’ (तीन कोण) तथा ‘मिति’ (मापना) से मिलकर बना एक शब्द है। इस प्रकार त्रिकोणमिति का शाब्दिक अर्थ है – तीन कोणों की माप । इस अध्याय में त्रिभुज की भुजाओं तथा कोणों के बीच के सम्बन्ध को भिन्न-भिन्न रूपों में व्यक्त किया जाता है। प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से यह अध्याय बहुत महत्त्वपूर्ण है।
त्रिकोणमितीय अनुपात (Trigonometric Ratio)-इस समस्या का हल एक समकोण त्रिभुज के न्यूनकोणों के सापेक्ष, त्रिभुज की भुजाओं के अनुपात का प्रयोग करके किया जा सकता है। इन भुजाओं के अनुपात को त्रिकोणमितीय अनुपात कहते हैं।
त्रिकोणमितीय अनुपात 6 प्रकार के होते हैं। जिन्हें निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है
♦ sineθ =लम्ब/कर्ण BC/ AC=1/ cosecθ
♦ cosecθ =कर्ण/लम्ब = AC/BC=1/sinθ
♦ cosθ = आधार/कर्ण = AB/AC=1/secθ
♦ secθ = कर्ण/आधार = AC/AB= 1/cosθ
♦ tanθ = लम्ब/आधार = BC/AB= 1/cotθ
♦ cotθ = आधार/लम्ब = AB/BC=1/tanθ
त्रिकोणमितीय सर्वसमिकाएँ
(Trigonometric Identities)
नीचे दिए गए सम्बन्ध के सभी मानों के लिए सत्य होते हैं इन्हें ही त्रिकोणमितीय सर्वसमिका कहा जाता है।
♦ sin²θ+ cos²θ = 1  ♦ 1 + tan²θ = sec²θ
♦ 1 + cot²θ = cosec²θ
0° से 180° के कोणों के त्रिकोणमितीय अनुपात
नीचे एक तालिका रूप में, 0°, 30°, 45°, 60°, 90°, 120°, 135°, 150° और 180° के त्रिकोणमितीय अनुपातों को इकट्ठा कर दिया गया है। इस तालिका में प.न. का अर्थ है कि यह मान परिभाषित नहीं है ।
कोण के पूरक व सम्पूरक कोणों के त्रिकोणमितीय अनुपात कोण θ के पूरक कोण (Complementary angle), सम्पूरक कोण (Suplementary angle) आदि कोणों को त्रिकोणमितीय अनुपात कोणों के संगत अनुपातों में व्यक्त करने वाले सूत्र निम्नलिखित हैं
♦ sin (90°– θ)= cosθ                 sin (90°+ θ)=cosθ
cos(90°– θ)=sinθ                      cos (90°+θ)= -sinθ
tan (90°– θ)=cotθ                     tan (90°+ θ)= -cotθ
cot (90°– θ)=tanθ                     cot(90°+ θ)= -tanθ
sec (90°– θ)=cisecθ                   sec(90°+ θ)= -cosecθ
cosec (90°– θ)=secθ                  cosec(90°+ θ)=secθ
♦ sin (180°– θ)=sinθ                  sin(180°+θ)= -sinθ
cos (180°– θ)= -cosθ                 cos(180°+ θ)= -cosθ
tan (180°– θ)= -tanθ                 tan(180°+θ )= tanθ
cot (180°– θ)= -cotθ                 cot(180°+ θ)= cotθ
sec (180°– θ)= – secθ                sec(180°+ θ)= -secθ
cosec (180°– θ)= cosecθ          cosec(180°+θ)= cosecθ
दो कोणों के योग/अन्तर के लिए त्रिकोणमितीय अनुपात
♦ sin (A+B)=sinA cos B + cos A sin B
♦ cos (A+B)=cosA cos B – sin A sin B
♦ tan (A+B)=tanA +tan B/ 1–tan A tan B
♦ sin (A–B)=sinA cos B–cos A sin B
♦ cos (A–B)=cosA cosB + sinA sinB
♦ tan (A–B)= tanA –tanB/1+tanA tanB
♦ sinC + sinD=2sin—C+D/2 ·cos C–D/2
♦ sinC – sinD=2cos—C+D/2 ·sin C–D/2
♦ cosC + cosD=2cos –C+D/2 ·cos C–D/2
♦ cosC – cosD= 2sin —C+D/2 ·sin D–C/2
♦ sin (A+B)+(A–B)=2sinA · cosB
♦ sin (A+B)–sin(A–B)=2cosA · sinB
♦ cos (A+B)+cos(A–B)=2cosA · cosB
♦ cos (A–B)–cos(A+B)= 2sinA · sinB
त्रिकोणमितीय फलनों के मानों की सीमाएँ
♦ – 1 ≤ sinθ ≤ 1 अर्थात् sinθ का संख्यात्मक मान – 1 से लेकर 1 तक विचरण करता है।
♦ -1 ≤ cosθ ≤ 1 अर्थात् cosθ का मान – 1 से लेकर 1 तक विचरण करता है।
♦ cosecθ≤ – 1 या cosecθ ≥1 अर्थात् cosec 0 का मान – 1 से छोटा अथवा 1 से बड़ा होता है।
♦ secθ ≥ 1 अथवा secθ ≤ -1 अर्थात् sec 0का मान 1 से बड़ा एवं -1 से छोटा होता है।
♦ – tanθ< θअर्थ है कि tanθ का मान – से + तक विचरण करता है।
♦ – < cotθ <  का अर्थ है कि cotθ का मान – से + तक विचरण करता है।
त्रिकोणमितीय फलन का महत्तम तथा न्यूनतम मान
asinx + b cos x = r cosθ · sinx + r sin0 · cosx = r[cosθ · sinx + sinθ cosx]
=r[sinθ · cosx + cosθ · sinx ] = rsin (θ + x )
           {जहाँ, a = r cosθ, b = rsinθ, r = √a2 + b2]
= – 1 ≤ sin (θ + x) ≤1 →– r ≤ r sin (θ+x) ≤ r
=–√ a2 + b2 ≤(a sinx + b cos x)≤√a2+b2
      ∴    | a sinx +b cos x |=√a2+b2
ऊँचाई व दूरी (Height and Distance)-दृष्टि रेखा वह रेखा जो हमारी आँख से उस वस्तु को जिसे हम देख रहे हैं, से जोड़ती है, दृष्टि रेखा कहलाती है। क्षैतिज रेखा वह रेखा जो हमारी आँख से सीधे भूमि के समानान्तर जाती है, क्षैतिज रेखा कहलाती है।
उन्नयन कोण (Angle of Elevation)-यदि वस्तु आँख की क्षैतिज रेखा से ऊपर हो अर्थात् यदि वस्तु आँख से ऊँचे स्तर पर हो, तो हमें वस्तु को देखने के लिए अपने सिर को उठाना पड़ेगा। इस प्रक्रम में हमारी दृष्टि रेखा एक कोण में से मुड़ जाती है, इस कोण को वस्तु का उन्नयन कोण या उन्नत कोण (angle of elevation) कहते हैं।
अवनमन कोण (Angle of Depression)-यदि वस्तु आँख की क्षैतिज रेखा से नीचे हो अर्थात् यदि वस्तु आँख से नीचे स्तर पर हो, तो हमें उस वस्तु को देखने के लिए अपना सिर नीचे की ओर झुकाना पड़ता है। इस प्रक्रम में हमारी दृष्टि रेखा एक कोण में से मुड़ जाती है, इस कोण को उस वस्तु का अवनमन कोण या अवनत कोण ( angle of depression) कहते हैं।
                                                        साधित उदाहरण
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