तत्त्वों का आवर्त वर्गीकरण Periodic Classification of Elements

तत्त्वों का आवर्त वर्गीकरण  Periodic Classification of Elements

 

♦ आज तक हमें 114 तत्त्वों की जानकारी है।
♦ सन् 1800 तक केवल 30 तत्त्वों का पता चला था। इन सभी तत्त्वों की सम्भवतः भिन्न-भिन्न विशेषताएँ थीं। जैसे-जैसे विभिन्न तत्वों की खोज हो रही थी, वैज्ञानिक इन तत्त्वों के गुणधर्मों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करने लगे। उन्हें तत्त्वों की इन जानकारियों को व्यवस्थित करना बड़ा ही कठिन लगा। उन्होंने इन गुणधर्म में एक ऐसा प्रतिरूप ढूँढना आरम्भ किया जिसके आधार पर इतने सारे तत्त्वों का आसानी से अध्ययन किया जा सके।
तत्त्वों के वर्गीकरण के प्रारम्भिक प्रयास
♦ वैज्ञानिकों ने तत्त्वों को उनके गुणधर्मों के आधार पर वर्गीकृत करने के कई प्रयास किए ताकि अव्यवस्थित को व्यवस्थित किया जा सके।
♦ सबसे पहले, ज्ञात तत्त्वों को धातु एवं अधातु में वर्गीकृत किया गया। जैसे-जैसे तत्त्वों एवं उनके गुणधर्मों के बारे में हमारा ज्ञान बढ़ता गया, वैसे-वैसे उन्हें वर्गीकृत करने के प्रयास किए गए।
♦ डॉबेराइनर के त्रिक सन् 1817 में जर्मन रसायनज्ञ, वुल्फगांग डॉबेराइनर ने समान गुणधर्मों वाले तत्त्वों को समूहों में व्यवस्थित करने का प्रयास किया। उन्होंने तीन-तीन तत्त्व वाले कुछ समूहों को चुना एवं उन समूहों को त्रिक कहा।
♦ डॉबेराइनर ने बताया कि त्रिक के तीनों तत्त्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में रखने पर बीच वाले तत्त्व का परमाणु द्रव्यमान, अन्य दो तत्त्वों के परमाणु द्रव्यमान का लगभग औसत होता है। डॉबेराइनर उस समय तक ज्ञात तत्त्वों में केवल तीन त्रिक ही ज्ञात कर सके थे। इसलिए त्रिक में वर्गीकृत करने की यह पद्धति सफल नहीं रही, किन्तु इससे तत्त्वों की आवर्त सारणी के विकास की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई।
♦ न्यूलैण्ड्स का अष्टक सिद्धान्त डॉबेराइनर के प्रयासों ने दूसरे रसायनज्ञों को तत्त्वों के गुण धर्मों का उनके परमाणु द्रव्यमान के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया। सन् 1866 में अग्रेज वैज्ञानिक जॉन न्यूलैण्ड्स ने ज्ञात तत्त्वों को परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में व्यवस्थित किया। उन्होंने सबसे कम परमाणु द्रव्यमान वाले तत्त्व हाइड्रोजन से आरम्भ किया तथा 56वें तत्त्व थोरियम पर इसे समाप्त किया। उन्होंने पाया कि प्रत्येक आठवें तत्त्व का गुणधर्म पहले तत्त्व के गुणधर्म के समान है। उन्होंने इसकी तुलना संगीत के अष्टक से की और इसलिए उन्होंने इसे अष्टक का सिद्धान्त कहा। इसे ‘न्यूलैण्ड्स का अष्टक सिद्धान्त’ के नाम से जाना जाता है। न्यूलैण्ड्स के अष्टक में लीथियम एवं सोडियम के गुणधर्म समान थे। सोडियम, लीथियम के बाद आठवाँ तत्त्व है। इसी तरह बेरिलियम एवं मैग्नीशियम में अधिक समानता है।
मेन्डलीफ की आवर्त सारणी
♦ न्यूलैण्ड्स के अष्टक सिद्धान्त के अस्वीकार होने के बाद भी कई वैज्ञानिकों ने ऐसे प्रतिरूपों की खोज जारी रखी जिससे तत्त्वों के गुणधर्मों का उनके परमाणु द्रव्यमान के साथ सम्बन्ध स्थापित हो सके।
♦ तत्त्वों के वर्गीकरण का मुख्य श्रेय रूसी रसायनज्ञ डमित्री इवानोविच मेन्डलीफ को जाता है। तत्त्वों की आवर्त सारणी को प्रारम्भिक विकास में उनका प्रमुख योगदान रहा। उन्होंने अपनी सारणी में तत्त्वों को उनके मूल गुणधर्म, परमाणु द्रव्यमान तथा रासायनिक गुणधर्मों में समानता के आधार पर व्यवस्थित किया।
♦ जब मेन्डलीफ ने अपना कार्य आरम्भ किया तब तक 63 तत्त्व ज्ञात थे। उन्हें तत्त्वों के परमाणु द्रव्यमान एवं उनके भौतिक तथा रासायनिक गुणधर्मों के बीच सम्बन्धों का अध्ययन किया और एक आवर्त सारणी का निर्माण किया ।
♦ मेन्डलीफ की आवर्त सारणी का सिद्धान्त है— तत्त्वों के गुणधर्म उनके परमाणु द्रव्यमान का आवर्त फलन होते हैं।
♦ मेन्डलीफ की आवर्त सारणी में उर्ध्व स्तम्भ को ‘ग्रुप’ (समूह) तथा क्षैतिज पंक्तियों को ‘पीरियड’ (आवर्त) कहते हैं।
मेन्डलीफ की आवर्त सारणी की उपलब्धियाँ
♦ आवर्त सारणी व्यवस्थित करते समय मेन्डलीफ को सारणी में अधिक द्रव्यमान वाले तत्त्व को कभी-कभी कम द्रव्यमान वाले तत्त्व से पहले रखना पड़ा। क्रम इसलिए उलटना पड़ा ताकि समान गुणधर्म वाले तत्त्वों को एक साथ रखा जा सके।
♦ मेन्डलीफ ने अपनी आवर्त सारणी में कुछ रिक्त स्थानों को छोड़ दिया। इन रिक्त स्थानों को दोष के रूप में देखने के बजाय मेन्डलीफ ने दृढ़तापूर्वक कुछ ऐसे तत्त्वों के अस्तित्व का अनुमान किया जो उस समय तक ज्ञात नहीं थे। इनका नामकरण उन्होंने उसी समूह में इससे पहले आने वाले तत्त्व के नाम में एका उपसर्ग लगाकर किया। मेन्डलीफ के अनुमान की असाधारण सफलता के कारण रसायनज्ञों ने उनकी आवर्त सारणी को न केवल स्वीकार किया अपितु उनको इस सिद्धान्त की अवधारणा का सृजक भी माना।
♦ मेन्डलीफ की आवर्त सारणी की एक विशेषता यह भी थी कि जब अक्रिय गैसों का पता चला तब पिछली व्यवस्था को छेड़े बिना ही इन्हें नये समूह में रखा जा सका।
मेन्डलीफ के वर्गीकरण की सीमाएँ
इस आवर्त सारणी में हाइड्रोजन को नियत स्थान नहीं दिया गया है। हाइड्रोजन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास क्षार धातुओं से मिलता है। क्षार धातुओं की भाँति हाइड्रोजन भी हैलोजन | मेन्डलीफ के तत्त्वों के आवर्त वर्गीकरण तैयार होने के पर्याप्त समय बाद समस्थानिकों का पता चला। किसी तत्त्व के समस्थानिकों के रासायनिक गुणधर्म समान होते हैं लेकिन उनके परमाणु द्रव्यमान भिन्न भिन्न होते हैं। इस प्रकार सभी तत्त्वों के समस्थानिक मेन्डलीफ के आवर्त नियम के लिए एक चुनौती थी। दूसरी समस्या यह थी कि एक तत्त्व से दूसरे तत्त्व की ओर आगे बढ़ने पर परमाणु द्रव्यमान नियमित रूप से नही बढ़ते। इसलिए यह अनुमान लगाना कठिन हो गया कि दो तत्त्वों के बीच कितने तत्त्व खोजे जा सकते हैं, विशेषकर जब हम भारी तत्त्वों पर विचार करते हैं तो कठिनाई आती है।
आधुनिक आवर्त सारणी
♦ सन् 1913 में हेनरी मोज्ले ने बताया कि तत्त्व के परमाणु द्रव्यमान की तुलना में उसकी परमाणु संख्या अधिक आधारभूत गुणधर्म है। तदनुसार, मेन्डलीफ की आवर्त सारणी में परिवर्तन किया गया तथा परमाणु संख्या को आधुनिक आवर्त सारणी के आधार के रूप में स्वीकार किया गया। इस आधुनिक आवर्त नियम को इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है। ‘तत्त्वों के गुणधर्म उनकी परमाणु-संख्या का आवर्त फलन होते हैं।’
♦ परमाणु संख्या से हमें परमाणु के नाभिक में स्थित प्रोटॉनों की संख्या का पता चलता है तथा एक तत्त्व से दूसरे तक बढ़ने पर इस संख्या में एक की बढ़ोतरी होती है। तत्त्वों को उनकी परमाणु संख्या (Z) के आरोही क्रम में व्यवस्थित करने पर जो वर्गीकरण प्राप्त होता है उसे आधुनिक आवर्त सारणी कहा जाता है।
♦ तत्त्वों को परमाणु संख्या के आरोही क्रम में व्यवस्थित करने पर तत्त्वों के गुणधर्मों का अधिक परिशुद्धता से अनुमान लगाया जा सकता है।
♦ आधुनिक आवर्त सारणी में तत्त्वों की स्थिति आधुनिक आवर्त सारणी में 18 ऊर्ध्व स्तम्भ हैं जिन्हें ‘समूह’ कहा जाता है तथा 7 क्षैतिज पंक्तियाँ हैं जिन्हें ‘आवर्त’ कहा जाता है।
♦ एक ही समूह के तत्त्वों की संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है।
♦ आवर्त में बाईं ओर से दाईं ओर जाने पर यदि परमाणु संख्या में इकाई की वृद्धि होती है तो संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या में भी इकाई वृद्धि होती है।
♦ आवर्त सारणी में तत्त्वों की स्थिति से उनकी रासायनिक अभिक्रियाशीलता का पता चलता है।
♦ आधुनिक आवर्त सारणी में तत्त्वों के आवर्त में स्थान के आधार पर उनकी संयोजकता, परमाणु आकार, धात्विक अथवा अधात्विक अभिलक्षण आदि का पता लगाया जा सकता है।
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