टमाटर की बंपर आवक से औंधे मुंह गिरे दाम, किसानों को हुआ भारी नुकसान

Tomato Price: टमाटर की बंपर पैदावार के चलते बाजार में अत्यधिक आपूर्ति होने से इसकी कीमतें न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई हैं. किसानों को इस समस्या से उबारने के लिए सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य, सरकारी खरीद और कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की व्यवस्था करनी चाहिए. अन्यथा, किसानों को इस घाटे से उबरने में वर्षों लग सकते हैं.

Tomato Price: मध्यप्रदेश की प्रमुख थोक मंडियों में नई फसल की भरपूर आवक के कारण टमाटर के दाम में ऐतिहासिक गिरावट देखी जा रही है. इससे किसानों के सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है, जिससे उनकी मेहनत का उचित मुनाफा नहीं मिल पा रहा है.

इंदौर मंडी में टमाटर के थोक दाम 2 रुपये किलो

मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी थोक इंदौर की देवी अहिल्याबाई होलकर फल एवं सब्जी मंडी में टमाटर के थोक दाम मात्र 2 रुपये किलो तक पहुंच गए हैं. खंडवा जिले के किसान धीरज रायकवार ने बताया कि इतने कम दामों में फसल तुड़वाने और परिवहन का खर्च निकालना भी मुश्किल हो रहा है. उन्होंने बताया कि स्थिति इतनी खराब हो गई है कि किसानों को बिना बिके टमाटर मंडी में ही फेंककर जाना पड़ रहा है.

ऊंचे दामों की उम्मीद में हुई अधिक बुवाई, अब घाटे में किसान

पिछले साल टमाटर की ऊंची कीमतों को देखते हुए इस बार किसानों ने इसकी बड़े पैमाने पर बुवाई की थी. लेकिन, भारी उत्पादन के चलते बाजार में टमाटर की अधिकता हो गई है, जिससे कीमतों में भारी गिरावट आई है. धार जिले के किसान दिनेश मुवेल ने बताया कि उन्होंने 2 लाख रुपये का कर्ज लेकर दो एकड़ में टमाटर की खेती की थी, लेकिन अब भाव गिरने से उन्हें बड़ा नुकसान हो रहा है.

किसानों की मांग – सरकार करे समर्थन मूल्य की घोषणा

संयुक्त किसान मोर्चा के संयोजक रामस्वरूप मंत्री ने मध्यप्रदेश सरकार से मांग की है कि वह किसानों से उचित दर पर टमाटर की खरीद सुनिश्चित करे, ताकि उन्हें नुकसान से बचाया जा सके. उन्होंने कहा कि सरकार को टमाटर जैसी फसलों के लिए भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करना चाहिए, जिससे किसानों को उचित लाभ मिल सके.

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कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग सुविधाओं की कमी बनी समस्या

भारतीय किसान-मजदूर सेना के अध्यक्ष बबलू जाधव ने बताया कि राज्य के ग्रामीण इलाकों में कोल्ड स्टोरेज (शीत भंडारण) और प्रोसेसिंग यूनिट की भारी कमी है. इसके कारण टमाटर जैसे जल्दी खराब होने वाले उत्पादों को किसान औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हैं.

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