जैव प्रक्रम

जैव प्रक्रम

Science ( विज्ञान  ) लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ऑक्सीहीमोग्लोबिन क्या है?

उत्तर⇒ रुधिरवर्णिका या हीमोग्लोबिन की लाल रक्त कोशिकाओं और कुछ अपृष्ठवंशियों के ऊत्तकों में पाया जानेवाला लौह युक्त ऑक्सीजन का परिवहन करने वाला धातु प्रोटीन है। रक्त में मौजूद हीमोग्लोबिन फेफड़ों या गिलों से शरीर के शेष भाग को ऑक्सीजन का परिवहन करता है, जहाँ वह कोशिकाओं के प्रयोग के लिए ऑक्सीजन को मुक्त कर देता है।


प्रश्न 2. प्रकाश संश्लेषण क्या है? इसका रासायनिक समीकरण लिखें। अथवा, प्रकाश-संश्लेषण किसे कहते हैं ? इसका महत्त्व लिखिए।

उत्तर⇒ प्रकाश-संश्लेषण हरे पौधे सूर्य के प्रकाश द्वारा क्लोरोफिल नामक वर्णक की उपस्थिति में CO2 और जल के द्वारा कार्बोहाइड्रेट (भोज्य पदार्थ) का निर्माण करते हैं और ऑक्सीजन गैस बाहर निकालते हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं।

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महत्त्व–
(i) इस प्रक्रिया के द्वारा भोजन का निर्माण होता है जिससे मनुष्य तथा अन्य जीव-जंतुओं का पोषण होता है।
(ii) इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन का निर्माण होता है, जो कि जीवन के लिए अत्यावश्यक है। जीव श्वसन द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं जिससे भोजन का ऑक्सीकरण होकर शरीर के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है।
(iii) इस क्रिया में CO2 ली जाती है तथा निकाली जाती है जिससे पर्यावरण में O2 एवं CO2 की मात्रा संतुलित रहती है।
(iv) कार्बन डाइऑक्साइड के नियमन से प्रदूषण दूर होता है।
(v) प्रकाश-संश्लेषण के ही उत्पाद खनिज, तेल, पेट्रोलियम, कोयला आदि हैं, जो करोड़ों वर्ष पूर्व पौधों द्वारा संग्रहित किये गये थे।


प्रश्न 3. उत्सर्जन की परिभाषा दें। उत्सर्जी पदार्थ क्या हैं? अथवा, उत्सर्जन क्या है ? मानव में इसके दो प्रमुख अंगों के नाम लिखें।

उत्तर⇒ शरीर में उपापचयी क्रियाओं द्वारा बने नेत्रजनीय अपशिष्ट पदार्थों का शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं। जो पदार्थ बाहर निकलता है, उसे उत्सर्जी पदार्थ कहते हैं।
उत्सर्जन अंग–
वृक्क (Kidney)-जो रक्त में द्रव्य के रूप में अपशिष्ट पदार्थों (liquid waste product) को मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकालता है।
फेफड़ा (Lungs)-जो रक्त में गैसीय अपशिष्ट पदार्थों (gaseous waste product) को शरीर से बाहर निकालता है।


प्रश्न 4. श्वसन और दहन में दो अंतर लिखें।

उत्तर⇒

श्वसन दहन
शरीर के बाहर से ऑक्सीजन को ग्रहण करना तथा कोशिकीय आवश्यकता के अनुसार खाद्य स्रोत के विघटन में इसका उपयोग श्वसन कहलाता है। जब कोई पदार्थ ऑक्सीजन में जलता है तो दहन कहा जाता है।
इसमें ऊष्मा तथा प्रकाश की उत्पत्ति नहीं होती है। इसमें ऊष्मा तथा प्रकाश की उत्पत्ति होती है।

प्रश्न 5. फ्लोयम और जाइलम में अंतर बताएँ।

उत्तर⇒

जाइलम फ्लोयम
ये वाहिकायें पत्तियों द्वारा बनाये गये भोजन को पौधे के विभिन्न भागों तक पहुँचाती हैं। ये बंडल जल और खनिज लवणों को जडों से पौधे के सभी ऊपरी भागों तक पहुँचाते हैं।
ये जावित ऊतक होते हैं। ये मृत ऊतक होते हैं। जीवित भी हो सकते हैं।
इनमें चालनी नलिकायें, साथी काशिकायें और फ्लोयम मृदुतक और फ्लोयम रेशे पाये जाते हैं। इसमें वाहिकायें, वाहिनिकायें, जाइलम मृदुतक तथा काष्ठ रेशे पाये जाते हैं।

प्रश्न 6. रक्त के दो कार्य लिखें।

उत्तर⇒ रक्त के कार्य—रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है, क्योंकि वह अपने प्रवाह के दौरान शरीर के सभी ऊतकों का संयोजन करता है।
वैसे रक्त के तीन प्रमुख कार्य हैं—(a) पदार्थों का परिवहन, (b) संक्रमण से शरीर की सुरक्षा एवं (c) शरीर के तापमान का नियंत्रण करना।


प्रश्न 7. मानव में परिवहन तंत्र के घटक कौन-कौन से हैं? दो घटकों के कार्य लिखें।

उत्तर⇒ मानव में परिवहन तंत्र के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं—
(i) हृदय, (ii) रुधिर, (iii) धमनियाँ, (iv) शिरायें तथा (v) रुधिरप्लेट्स।
दो घटकों के कार्य निम्नलिखित हैं—
हृदय—हृदय रुधिर को शरीर के विभिन्न अंगों की सभी कोशिकाओं में वितरित करता है।
रुधिर—यह एक गहरे लाल रंग का संयोजी ऊतक है जिसमें तीन प्रकार की कोशिकाएँ स्वतंत्रतापूर्वक तैरती रहती हैं । भोजन, जल, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य वर्ण्य पदार्थों के अतिरिक्त हॉर्मोंस भी इसी के माध्यम से शरीर के विभिन्न भागों में रहते हैं।
लाल रुधिर कणिकाओं में उपस्थिति लाल रंग के पाउडर (हीमोग्लोबिन) का मुख्य कार्य ऑक्सीजन को फेफड़ों से प्राप्त करके शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाना है।
श्वेत रुधिर कणिकाओं का कार्य शरीर में आये हुए रोगाणुओं से युद्ध करके उसे स्वस्थ बनाये रखने में सहायता करना है।


प्रश्न 8. किण्वन क्या है ?

उत्तर⇒ वह रासायनिक क्रिया जिसमें सूक्ष्मजीव (यीस्ट) शर्करा का अपूर्ण विघटन करके CO2 तथा ऐल्कोहॉल, ऐसीटिक अम्ल इत्यादि का निर्माण होता है, किण्वन (Fermentation) कहलाती है। इसमें कुछ ऊर्जा भी मुक्त होती हैं।


प्रश्न 9. पाचक एंजाइमों का क्या कार्य है ? अथवा, आमाशय में पाचक रस की क्या भूमिका है ?

उत्तर⇒ पाचक एंजाइम्स पाचक रसों में उपस्थित होते हैं जो पाचक ग्रन्थियों से उत्पन्न होते हैं। प्रत्येक ग्रन्थि का पाचक एंजाइम विशिष्ट प्रकार का होता है जिसका कार्य भी विशिष्ट हो सकता है। ये पाचक एंजाइम भोजन के विभिन्न पोषक तत्त्वों को जटिल रूप से सरल रूप में परिवर्तित करके घुलनशील बनाते हैं। ठदाहरणार्थ लार में उपस्थित सैलाइवरी एमाइलेज (टायलिन) कार्बोहाइड्रेट को माल्टोज शर्करा में परिवर्तित कर देता है। इसी प्रकार से पेप्सिन प्रोटीन को पेप्टोन में परिवर्तित करता है। अग्नाशय अग्नाशयिक रस का स्रावण करता है जिसमें ट्रिप्सिन नामक एंजाइम होता है जो प्रोटीन का पाचन करता है ।


प्रश्न 10. स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर⇒

स्वयंपोषी पोषण विषमपोषी पोषण
इस प्रकार का पोषण हरे पौधों में पाया जाता है। इस प्रकार का पोषण कीटों तथा जन्तुओं में पाया जाता है।
इसमें कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल की परस्पर संयोजन क्रिया से कार्बनिक पदार्थों का निर्माण होता है। जंतु अपने भोजन के लिए पौधों पर तथा शाकाहारी प्राणियों पर निर्भर करते हैं।
इन्हें अपने भोजन के निर्माण के लिए अकार्बनिक पदार्थों की आवश्यकता होती है। इसमें जंतुओं को अपने भोजन के लिए कार्बनिक पदार्थों की आवश्यकता होती है।
भोजन के निर्माण की क्रियाविधि प्रकाश-संश्लेषण में पर्णहरित तथा सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है। इसमें भोजन का निर्माण नहीं होता ।

प्रश्न 11. धमनी, शिरा और कोशिकाओं में अन्तर बताइये ।

उत्तर⇒

S.N. धमनी शिरा कोशिकाएं
1.
इनकी दीवारें तन्य, मोटी और पेशीयुक्त होती हैं। इनकी दीवारें पतली, रेशेदार तथा तन्य होती होती हैं । दीवारें अधिक पतली होती हैं ।
2.
 इनके अन्दर की गुहिका छोटी होती हैं। इनकी गुहिका बड़ी होती हैं। अन्दर की गुहिका अधिकपतली होती हैं।
3.
इनमें कपाट नहीं होते हैं। इनमें कपाट होते हैं। इनमें कपाट नहीं होते हैं।
4.
इनमें रुधिर दाब के साथ बहता है। रुधिर बिना झटके के बहता है। ये धमनी और शिरा से निकलती हैं।

प्रश्न 12. पादप में भोजन स्थानांतरण कैसे होता है?

उत्तर⇒ पादपों में जटिल संवहन ऊतक फ्लोएम द्वारा भोजन का स्थानांतरण होता है। भोजन तथा अन्य पदार्थों का स्थानांतरण संलग्न सखी कोशिका की सहायता से चालनी नालिका में ऊपरिमुखी एवं अधोमुखी दोनों दिशाओं में होता है। सुक्रोस के रूप में भोजन ATP से ऊर्जा लेकर स्थानांतरित होते हैं।


प्रश्न 13. पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है?

उत्तर⇒ पादपों के जड़ों में जाइलम एवं फ्लोएम ऊतक पाए जाते हैं। जाइलम से जल का वहन एवं फ्लोएम से खनिज-लवण का वहन होता है। जड़ के पास नमी मौजूद रहती है। इस नमी को ये दोनों ऊतकों के माध्यम से जड़ें सोखकर पौधे में परिवहन करती है।


प्रश्न 14. हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीज़न की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है ?

उत्तर⇒ मानव जैसे बहुकोशिकीय जीवों जिनके शरीर में कोशिकाएँ तथा ऊतक ही नहीं होते, वरन् अंग तथा अंग संस्थान भी होते हैं, इनमें ऊर्जा की बहुत आवश्यकता होती है। अधिकांशतः अंग शरीर में अन्दर की ओर स्थित होते हैं, अतः विसरण क्रिया द्वारा उन सभी अंगों को ऑक्सीजन नहीं पहुँचती जिसके परिणामस्वरूप उनमें उपस्थित भोजन का ऑक्सीकरण नहीं हो पाता । परिणामतः शारीरिक अंग कार्य नहीं करते । अतः, मानव जैसे जीवों में ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न अंगों की कोशिकाओं में पहुँचाने हेतु एक तंत्र होता है जिसे श्वसन तंत्र कहते हैं।


प्रश्न 15. मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?

उत्तर⇒ मनुष्य के शरीर में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड गैस का परिवहन रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन नामक वर्णक की मदद से होता है। यह वर्णक फेफड़ों के वायुकोष में उपस्थित वायु से ऑक्सीजन को ग्रहण कर इसे शरीर के विभिन्न कोशिकाओं में विसरित कर देता है। पुनः यह उपापचय क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड गैस को ग्रहण कर रक्त परिवहन के द्वारा फेफड़ों तक पहुँचाता है। फेफड़ों द्वारा इस कार्बन डाइऑक्साइड गैस को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।


प्रश्न 16. वायवीय (ऑक्सी) श्वसन तथा अवायवीय (अनॉक्सी) श्वसन में क्या अंतर है ? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिसमें अवायवीय श्वसन होता है।
उत्तर⇒

वायवीय श्वसन अवायवीय श्वसन
श्वसनी पदार्थों के तोड़ने के लिये ऑक्सीजन उपयोग होती है। ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है।
ग्लाइकोलाइसिस, साइटोप्लाज्म में और क्रेब चक्र माइटोकांड्रिया में होता है। यह साइटोप्लाज्म में ही होती है ।
ATP के 38 अणु बनते हैं। ATP के केवल दो अणु बनते हैं।
श्वसनी पदार्थ पूर्ण रूप से अपचयित हो जाता है। इसमें अपचयन अधूरा होता है।
अंतिम उत्पाद COऔर जल हैं। अंतिम उत्पाद इथाइल एल्कोहल और कार्बन डाइऑक्साइड हैं।
यह सभी जीवों में पायी जानेवाली क्रिया है।अवायवीय श्वसन विभिन्न प्रकार के भी होता है। यह कुछ ही जीवों में होती है और कम समय के लिये होती है।कवक, जीवाणुओं तथा गूदेदार फलों में

प्रश्न 17. सजीव के मुख्य चार लक्षण लिखें।

उत्तर⇒ (i) गति, (ii) पोषण, (iii) श्वसन तथा (iv) उत्सर्जन।


प्रश्न 18: कोशिका के चार कोशिकांग का नाम लिखें।

उत्तर⇒ (i) केन्द्रक, (ii) माइटोकॉण्ड्रिया, (iii) गॉल्जी उपकरण तथा (iv) तारक केन्द्र।


प्रश्न 19. परिसंचरण तंत्र से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर⇒ किसी जन्तु के शरीर में विभिन्न पदार्थों के परिवहन के लिए उत्तरदायी अंगतंत्र, परिसंचरण तंत्र कहलाते हैं। जैसे-मनुष्य में रूधिर परिसंचरण तंत्र।


प्रश्न 20. विषमपोषी पोषण से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर⇒ पोषण की वह विधि जिसमें कोई जीव अपना भोजन स्वयं न बना पाने के कारण अन्य जीवों पर आश्रित रहता है विषमपोषी पोषण कहलाती है। हरे पौधों एवं अन्य स्वपोषियों के अलावा प्रायः सभी सजीव विषमपोषी ही होते हैं।


प्रश्न 21. प्रायोगिक विवरण द्वारा बताएँ कि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है। अथवा, प्रयोग, द्वारा सिद्ध कीजिए कि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन निकलती है।

उत्तर⇒ प्रयोग —इसे सिद्ध करने के लिए एक बड़े बीकर में जल लेकर उसमें हाइड्रिला के कुछ पौधे डालकर उसे कीप से ढक देते हैं।
इस कीप में सोडियम बाइकार्बोनेट की कुछ मात्रा डाल देते हैं जिससे हाइड्रिला के पौधों को प्रकाश-संश्लेषण के लिए पर्याप्त मात्रा में CO2 मिलती रहे । अब कीप के ऊपर पानी से एक परखनली को उलटकर रख देते हैं। अब इस पूरे उपकरण को सूर्य प्रकाश में रखकर कुछ देर बाद देखते हैं कि हाइड्रिला के पौधे से बुलबुले उठकर परखनली के ऊपरी सिरे में एकत्रित होते हैं तथा परखनली के पानी का तल

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चित्र :- प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में का उत्पादन

नीचे की ओर गिरने लगता है । परीक्षण के बाद पता चलता है कि यह गैस ऑक्सीजन है, जिससे सिद्ध होता है कि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन निकलती है।


प्रश्न 22. पौधे में गैसों का आदान-प्रदान कैसे होता है ?

उत्तर⇒ पौधों में गैसों का आदान-प्रदान उनकी पत्तियों में उपस्थित रन्ध्र के द्वारा होता है। उनके CO2 एवं 0का आदान-प्रदान विसरण-क्रिया द्वारा होता है, जिसकी दिशा पौधों की आवश्यकता एवं पर्यावरणीय अवस्थाओं पर निर्भर करती है।


प्रश्न 23. पित्त क्या है ? मनुष्य के पाचन में इसका क्या महत्त्व है ? अथवा, पाचन में पित्त रस का महत्त्व लिखिए।

उत्तर⇒ पित्त रस प्रत्यक्ष रूप से भोजन के पाचन में भाग नहीं लेता है, लेकिन । इसमें विभिन्न प्रकार के रसायन होते हैं जो पाचन क्रिया में सहायता करते हैं।
इस तरह पित्त रस निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है—
(i) यह अमाशय से आए भोजन के अम्लीय प्रभाव को क्षारीय बनाता है।
(ii) यह जीवाणुओं को मारता है तथा इसकी उपस्थिति में ही अग्नाशयी रस कार्य करता है।
(iii) यह आंत की दीवार को क्रमाकुचन के लिए उत्तेजित करता है।
(iv) यह वसा में घुलनशील विटामिनों के अवशोषण में सहायक होता है।
(v) यह कुछ विषैले पदार्थों; जैसे-कोलेस्ट्रॉल और धातुओं के उत्सर्जन में सहायक होता है।


प्रश्न 24. श्वसन और श्वासोच्छवास में क्या अन्तर है ?

उत्तर⇒

श्वसन श्वासोच्छवास
यह क्रिया कोशिका के भीतर होती है। यह क्रिया कोशिकाओं के बाहर होती है।
इसमें एन्जाइमों की आवश्यकता होती है। इसमें एन्जाइमों की आवश्यकता नहीं होती है।

प्रश्न 25. उत्सर्जन और स्त्राव में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर⇒

उत्सर्जन स्त्राव
इस प्रक्रिया में उपापचय क्रियाओं में बने वर्ण्य पदार्थों को शरीर से बाहर निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में ग्रन्थियों द्वारा द्रव स्रावित किये जाते हैं।
इसमें उत्सर्जी पदार्थ बनते हैं। इसमें अंत:स्रावी और बहिःस्रावी ग्रन्थियाँ स्राव करती हैं।
त्वचा, फेफड़े, यकृत आदि उत्सर्जन अंग होते हैं। पाचक ग्रन्थियाँ, यकृत और सभी हार्मोन ग्रन्थियाँ स्राव करती हैं।

प्रश्न 26. रुधिर और लसीका में अंतर लिखें।

उत्तर⇒

रुधिर लसीका
यह लाल रंग का होता है। यह रंगहीन या हल्के पीले रंग का होता है।
इसमें हीमोग्लोबिन होता है। इसमें हीमोग्लोबिन नहीं होता है।
इसमें लाल रक्त कणिकायें, श्वेत रक्त कणिकायें और रुधिर पट्टिकायें होती हैं। इसमें कणिकाएँ नहीं होती हैं।
4. यह हृदय से अंगों तक बहता है और वापिस आता है। यह केवल एक ही दिशा में बहता है अर्थात् ऊतकों से हृदय की ओर ।
5: इसमें श्वसन वर्णक, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और वर्ज्य पदार्थ होते हैं। यह शरीर की कोशिकाओं को नहलाता है।
6. इसमें सभी प्रकार के रक्त प्रोटीन पाये जाते हैं। इसमें फाइब्रिनोजन नहीं होता है।

प्रश्न 27. रक्त क्या है ? मनुष्य में श्वेत रक्त कणों की संख्या लिखें।

उत्तर⇒ रक्त एक प्रकार का संयोजी उत्तक है। मनुष्य में श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या 5000-10000 प्रति घन मिली. रक्त होती है।


प्रश्न 28. मनुष्य के अमाशय में जो HCl अम्ल स्रावित होता है वह कैसे कार्य करता है?

उत्तर⇒ Gastric HCl अम्लीय माध्यम प्रदान करता है जो Gastric Engyme पेप्सीन को सक्रिय करता है। यह सक्रिय होकर भोजन में पाये जानेवाले विभिन्न कीटाणुओं को मारता है।


प्रश्न 29. पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया को सचिन दर्शाइए। अथवा, प्रकाश-संश्लेषण के लिए प्रकाश आवश्यक है। सिद्ध कीजिए।

उत्तर⇒ प्रयोग-विधि—एक गमले में पौधे को 36 घंटे अंधेरे में (स्टार्च मुक्त करने के लिए) रखते हैं । गमले के पौधे की एक पत्ती के दोनों ओर काला कागज. क्लिप से लगा देते हैं। इसके पश्चात् पौधे को तीन-चार घंटे के लिए सूर्य के तीव्र प्रकाश में रख देते हैं । उक्त पत्ती को तोड़कर पानी में उबालकर ऐल्कोहॉल से धोकर उस पर KI का घोल डालते हैं।

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चित्र :-  सूर्य के प्रकाश  की आवश्कता 

निरीक्षण—पत्ती का जो भाग काले कागज से ढंका था पीला है, शेष भाग मंड के कारण नीला हो जाता है।
निष्कर्ष— इससे सिद्ध होता है कि प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के लिए सूर्य-प्रकाश की आवश्यकता होती है।


प्रश्न 30. श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है ?

उत्तर⇒ जलीय जीव जल में घुली हुई ऑक्सीजन का श्वसन के लिए उपयोग करते हैं। जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा वायु में उपस्थित ऑक्सीजन की मात्रा की तुलना में बहत कम है। इसलिए जलीय जीवों के श्वसन की दर स्थलाय जीवों की अपेक्षा अधिक तेज होती है। मछलियाँ अपने मुँह के द्वारा जल लेती हैं और बलपूर्वक इसे क्लोम तक पहुँचाती हैं। वहाँ जल में घुली हुई ऑक्सीजन को रुधिर प्राप्त कर लेता है।


प्रश्न 31. मछली, मच्छर, केंचुआ और मनुष्य के मुख्य श्वसन अंगों के नाम लिखें।

उत्तर⇒

जीव का नाम श्वसन अंग
मछली गिलछिद्र
मच्छर वायु नलिकायें
केंचुआ त्वचा
मनुष्य  फेफड़ा

प्रश्न 32. अमीबा में पोषण की प्रक्रिया को चित्र के साथ समझाइए ।

उत्तर⇒ अमीबा सूक्ष्म जीवों को अपना भोजन बनाता है तथा सूक्ष्म पौधों को भी अपना भोजन बनाता है जो जल में तैरते रहते हैं। इसका भोजन ग्रहण करने का तरीका होलोजोइक है। यह पादाभ बनाकर अपना शिकार पकड़ता है।

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 चित्र :- अमीबा में का अंतर ग्रहण


प्रश्न 33. कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदण्ड का उपयोग करेंगे?

उत्तर⇒ यद्यपि हम अपने चारों ओर अनेकों वस्तुओं को देखते हैं । अब हमें इस बात की पुष्टि करनी है कि कौन-सी वस्तु जीवित है तथा कौन-सी वस्तु अजीवित है। इसके लिए हम उनमें होनेवाली गति को देखते हैं। यदि वस्तु बिना किसी बाह्य शक्ति के गति करती है तो उसे जीवित कहते हैं। यदि कोई बहुकोशिकीय जीव सोई हुई अवस्था में है तो भी आणविक गति निरंतर हो रही है । यद्यपि वह बाहर से दिखाई नहीं पड़ती तो भी उनमें गति हो रही होती है। स्पष्ट है कि गति द्वारा हम सजीव तथा निर्जीव वस्तु का निर्धारण कर सकते हैं।


प्रश्न 34. रक्त क्या है? मनुष्य में R.B.C. की संख्या लिखें।

उत्तर⇒ रक्त एक प्रकार का तरल संयोजी उत्तक है जिसका मूल कार्य परिवहन है। मानव रक्त में R.B.C. की संख्या 45-50 लाख प्रति घन मिली. रक्त होता है।


प्रश्न 35. वाष्पोत्सर्जन क्रिया का पौधों के लिए क्या महत्त्व है? अथवा, पौधों में वाष्पोत्सर्जन क्या है ? इसके महत्त्वों को लिखें।

उत्तर⇒ पौधे में पत्तियों के छिद्रों से जलवाष्प के रूप में जल के बाहर निकालने की क्रिया वाष्पोत्सर्जन कहलाती है।
महत्त्व—
(i) यह जल अवशोषण को नियमित करता है।
(ii) रसारोहण के प्रति उत्तरदायी होता है।
(iii) पौधों में तापमान संतुलित रखता है।


प्रश्न 36. मनुष्य के वृक्क की अनुप्रस्थ काट कर चित्र बनाइए।

उत्तर⇒

scienceचित्र :-  वृक्क की अनुप्रस्थ काट


प्रश्न 37. स्थलीय जीव और जलीय जीव, श्वसन क्रिया के लिये किस प्रकार ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं ?

उत्तर⇒ स्थलीय जीव वायुमंडल में उपस्थित ऑक्सीजन से श्वसन क्रिया करते हैं जबकि जलीय जीव पानी में घुला हुआ ऑक्सीजन से श्वसन क्रिया करते हैं।


प्रश्न 38. प्रयोग द्वारा सिद्ध कीजिए कि प्रकाश-संश्लेषण के लिए C0, आवश्यक है।

उत्तर⇒ उपकरण—गमले में लगा पौधा, KOH के घोल से भरी बोतल, कॉर्क, KI घोल आदि ।
विधि— गमले के पौधे को 36 से 48 घंटे अंधेरे में रखते हैं। एक हरी पत्ती को चौड़े मुँह की बोतल में कॉर्क के बीच इस प्रकार लगाते हैं कि पत्ती का आधा भाग KOH युक्त बोतल के अंदर रहे । बोतल के मुँह पर ग्रीस लगाकर वायुरुद्ध कर देते हैं । उपकरण को कुछ समय के लिए धूप में रखते हैं। कुछ घंटे बाद पत्ती को तोडकर, पानी में उबालकर ऐल्कोहॉल से धोकर उस पर KI का घोल डालते हैं।

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चित्र :- प्रकाश-संश्लेषण में CO2 की आवश्यकता

निरीक्षण—पत्ती का अग्र भाग जो बोतल में था पीला हो जाता है क्योंकि बोतल में रखे KOH के द्वारा बोतल की CO2 गैस सोख ली जाती है जिससे प्रकाश-संश्लेषण क्रिया पूरी न होने से पत्ती के अग्र भाग में मंड का निर्माण नहीं हो पाता है। शेष भाग मंड के कारण नीला हो जाता है।
परिणाम—प्रयोग से सिद्ध होता है कि प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के लिए COगैस आवयश्यक है।


प्रश्न 39. “लाल रक्त कोशिका’ की संरचना तथा कार्य लिखिए।

उत्तर⇒ इन्हें एरीथ्रोसाइट्स (erythrocytes) भी कहते हैं, जो उभयनतोदर डिस्क की तरह रचना होती हैं। इनमें केन्द्रक, माइटोकॉण्ड्रिया एवं अंतर्द्रव्यजालिका जैसे कोशिकांगों का अभाव होता है। इनमें एक प्रोटीन वर्णक हीमोग्लोबिन पाया जाता है, जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है। इसके एक अणु की क्षमता ऑक्सीजन के चार अणुओं से संयोजन की होती है। इसके इस विलक्षण गुण के कारण इसे ऑक्सीजन का वाहक कहते हैं। मनुष्य में इनकी जीवन अवधि 120 दिनों की होती है, और इनका निर्माण अस्थि-मज्जा में होता है। मानव के प्रति मिलीलीटर रक्त में इनकी संख्या 5-5.5 मिलियन तक होती है।


प्रश्न 40. हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?

उत्तर⇒ हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका निम्नलिखित हैं—
(i) हमारे आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल जठर ग्रन्थियों से स्रावित होता है और भोजन में अम्लीय, माध्यम प्रस्तुत करता है जिससे जठर रस का पेप्सिन नामक एन्जाइम अम्लीय माध्यम में कार्य कर सके।
(ii) यह भोजन में उपस्थित रोगाणुओं को अक्रियाशील एवं नष्ट करता है।
(iii) यह भोजन को शीघ्रता से नहीं पचने देता।


प्रश्न 41. अनुरक्षण क्या है ? अनुरक्षण के लिए कौन-कौन-सी क्रियाएँ आवश्यक है? अथवा, जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रम को आवश्यक मानेंगे?

उत्तर⇒ यद्यपि जीवधारियों में अनेक क्रियाएँ की जाती हैं; जैसे-एक व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा रहा है, एक कुत्ता ब्रेड खाता है, एक मक्खी उड़ रही है आदि । ये सभी क्रियाएँ जीवन से सम्बन्धित होती हैं। इन्हें जैविक क्रियाएँ कहते हैं; जैसे-गति, पाचन, श्वसन, परिवहन, उत्सर्जन, वृद्धि आदि । ये सभी क्रियाएँ जीवन को बनाये रखने के लिए अनिवार्य होती हैं।


प्रश्न 42. प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है ?

उत्तर⇒ पौधों में प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया होती है जिसके लिए निम्नलिखित
चार वस्तुओं की आवश्यकता होती है—
(i) कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)—पौधे इसे वायुमंडल से प्राप्त करते हैं ।
(ii) जल—पौधा इसे भूमि से जड़ों द्वारा प्राप्त करता है।
(iii) पर्णहरित—यह पौधे की कोशिकाओं में हरित लवक में उपस्थित होता है।
(iv) सूर्य-प्रकाश—पौधे इसे सूर्य के प्रकाश से फोटोन ऊर्जा कणों के रूप में प्राप्त करते हैं जो क्लोरोफिल ‘a’ में संचित होकर इस प्रक्रिया में आवश्यकतानुसार उपयोग कर लिए जाते हैं।


प्रश्न 43. फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिए।

उत्तर⇒

फुफ्फुस की कूपिका वक्क के वृक्काणु
कूपिकाएँ फुफ्फुस की क्रियात्मक इकाई हैं। वृक्काणु वृक्क की क्रियात्मक इकाई हैं।
एक वयस्क फुफ्फुस में लगभग 30 करोड़ कूपिकाएँ होती हैं। एक वृक्क में लगभग दस लाख वृक्काणु होते हैं।
कूपिकाएँ गैसीय विनिमय के लिए एक वृहद सतह बनाती हैं। वृक्काणु रुधिर को शुद्ध करने के लिए वृहद सतह बनाती है।
कूपिकाओं में फैली हुई रुधिर केशिकाओं के जाल से CO2और O2 का आदान-प्रदान होता है। वृक्काणु के बोमन संपुट में रुधिर और छनता है जिसमें कि जल-लवणों की सान्द्रता का नियमन होता है

प्रश्न 44. अत्यधिक व्यायाम के दौरान खिलाड़ी के शरीर में क्रैप होने लगता है। क्यों?

उत्तर⇒ अत्यधिक व्यायाम के दौरान खिलाड़ी के शरीर में ऑक्सीजन का अभाव हो जाता है और शरीर में अवायवीय श्वसन प्रारंभ होता है जिसमें पायरूवेट लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है और खिलाड़ी के शरीर में कैंप इसी लैक्टिक अम्ल के कारण होता है।


प्रश्न 45. ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से विभिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न मार्ग क्या हैं ?

उत्तर⇒ ग्लूकोज के ऑक्सीकरण द्वारा जीवों में ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

इसके निम्नलिखित मार्ग हैं-

class 10th science

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प्रश्न 46. कठोर परिश्रम या अभ्यास करते समय साँस लेने की क्रिया पर क्या प्रभाव पड़ता है, और क्यों ?

उत्तर⇒ सामान्य अवस्था में मनुष्य की श्वसन दर 15-18 प्रति मिनट होती है, लेकिन कठोर व्यायाम के बाद यह दर बढ़कर 20-25 प्रति मिनट हो जाती है, क्योंकि व्यायाम के समय अधिक ऊर्जा आवश्यक होती है, इसलिए अधिक ऊर्जा के लिए अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है जिसके फलस्वरूप कठोर व्यायाम के बाद श्वसन दर बढ़ जाती है ।


प्रश्न 47. क्या होगा अगर मानव शरीर से दोनों वृक्कों को हटा दिया जाय?

उत्तर⇒ मनुष्य के शरीर से दोनों वृक्क हटा देने से उसका उत्सर्जन तन्त्र नष्ट हो जायेगा जिससे यूरिया आदि पदार्थ शरीर से बाहर नहीं निकल पायेंगे।


प्रश्न 48. पोषण क्या है ? इनके विभिन्न चरण कौन-कौन से हैं ? अथवा, पोषण की परिभाषा दीजिए । पोषण की विभिन्न विधियाँ कौन-कौन सी हैं ?

उत्तर⇒ पोषण—वह समस्त प्रक्रम जिसके द्वारा जीवधारी बाह्य वातावरण से भोजन ग्रहण करते हैं तथा भोज्य पदार्थ से ऊर्जा मुक्त करके शरीर की वृद्धि करते हैं, उसको पोषण (Nutrition) कहते हैं।
जीवों में पोषण की दो विधियाँ हैं—
(i) स्वपोषी या स्वयंपोषी पोषण
(ii) परपोषी पोषण या विषमपोषी पोषण ।
परपोषी पोषण निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है—
(i) मृतोपजीवी पोषण या मृतजीवी पोषण,
(ii) परजीवी पोषण,
(iii) प्राणी समभोजी पोषण ।


प्रश्न 49. हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?

उत्तर⇒ हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी से रक्ताल्पता (anaemia) हो जाता है । हमें श्वसन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की प्राप्ति नहीं होगी जिस कारण हम शीघ्र थक जाएँगे। हमारा भार कम हो जाएगा। हमारा रंग पीला पड़ जाएगा। हम कमजोरी अनुभव करेंगे।


प्रश्न 50. गैसों के विनिमय के लिए मानव-फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अधिकाल्पित किया है ?

उत्तर⇒ जब हम श्वास अंदर लेते हैं तब हमारी पसलियाँ ऊपर उठती हैं। वे बाहर की ओर झुक जाती हैं। इसी समय डायाफ्राम की पेशियाँ संकुचित तथा उदर पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं। इससे वक्षीय गुहा का क्षेत्रफल बढ़ता है और साथ ही फुफ्फुस का क्षेत्रफल भी बढ़ जाता है जिसके परिणामस्वरूप श्वसन पथ से वायु अंदर आकर फेफड़े में भर जाती है।


प्रश्न 51. गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं?

उत्तर⇒ मानव के शरीर में दो फेफड़े होते हैं। प्रत्येक फेफड़ा लाखों सूक्ष्म कूपिकाओं में विभाजित होता है । वायु की अनुपस्थिति में कूपिका अति अल्प स्थान घेरती है जबकि वायु की उपस्थिति में कूपिका बहुत स्थान घेरती है। यदि इन कूपिकाओं को निकालकर फैला दिया जाए तो वे 80 वर्ग सेमी. क्षेत्रफल में फैल जाएगी। इससे श्वसन क्रिया में सहायता मिलती है।


प्रश्न 52. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं और उनके उपोत्पाद क्या हैं?

उत्तर⇒ स्वपोषी पोषण के लिए प्रकाश-संश्लेषण आवश्यक है। हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में क्लोरोफिल नामक वर्णक से CO2और जल के द्वारा कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं । इस क्रिया में ऑक्सीजन गैस बाहर निकलती है।

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प्रश्न 53. उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक क्या हैं ?

उत्तर⇒ उच्च संगठित पादपों में परिवहन के निम्नलिखित भाग होते हैं—
(i) जाइलम वाहिनियाँ जो खनित तथा जल को भूमि से शोषित करके पादप के शिखर तक ले जाती हैं।
(ii) फ्लोयम वाहिनियाँ पत्तियों में तैयार भोजन पादप के अन्य भागों तक ले जाती है जिन्हें संचित करने की आवश्यकता होती है।


प्रश्न 54. हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है ? यह प्रक्रम कहाँ होता है ?

उत्तर⇒ हमारे शरीर में वसा का पाचन आहार नाल की छुद्रांत्र में होता है। यकृत से निकलनेवाला पित्तरस, जो क्षारीय होता है, आये हुए भोजन के साथ मिलकर उसकी अम्लीयता को निष्क्रिय करके उसे क्षारीय बना देता है। इसी क्षारीय प्रकृति पर ही अग्नाशयिक रस सक्रियता से कार्य करता है । अग्नाशयिक रस में तीन एंजाइम्स होते हैं-ट्रिप्सिन, एमीलोप्सिन तथा लाइपेज।
पित्तरस वसा को सूक्ष्म कणों में तोड़ देता है । इस क्रिया को इमल्सीकरण क्रिया कहते हैं तथा इसे इमल्सीफाइड वसा कहते हैं । लाइपेज एंजाइम इमल्सीफाइड वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देता है।


प्रश्न 55. किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता

उत्तर⇒ जीवधारी के शरीर की प्रत्येक कोशिका कार्बनिक यौगिकों द्वारा निर्मित होती है जिनमें कार्बन प्रमुख अवयव होता है। इन कोशिकाओं का जीवनकाल निश्चित होता है जिसके पश्चात् जीव की मृत्यु हो जाती है। कछ कोशिकाएँ कछ निश्चित सीमा तक विकसित होती है तत्पश्चात् वह विभाजित होती हैं। उसके जीवन काल में उसे सभी जैविक कार्यों को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो उसे कार्बनिक यौगिकों के विघटन से प्राप्त होती है। ये कार्बनिक यौगिक भोजन का रूप धारण करते हैं। ये भोजन ऊर्जा प्राप्ति का बाह्य यौगिक बनाते हैं।
स्वयंपोषी (हरे पौधों) में कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण से प्राप्त होती है तथा जल जड़ों द्वारा भूमि से प्राप्त करते हैं जिसके साथ खनिज भी अवशोषित कर लिए जाते हैं। ये पौधे हरे भागों में सूर्य-प्रकाश की उपस्थिति में परस्पर संयोग करके जटिल कार्बनिक पदार्थ बनाते हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं।


प्रश्न 56. भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है ?

उत्तर⇒ भोजन के पाचन में लार की अति महत्त्वपूर्ण भूमिका है। लार एक रस है जो तीन जोड़ी लाल ग्रंथियों से मुँह में उत्पन्न होता है। लार में एमिलेस नामक एक एंजाइम होता है जो मंड जटिल अणु को लार के साथ पूरी तरह मिला देता है।
लार के प्रमुख कार्य हैं—
(i) यह मुख के खोल को साफ रखती है।
(ii) यह मुख खोल में चिकनाई पैदा करती है जिससे चबाते समय रगड़ कम होती है।
(iii) यह भोजन को चिकना एवं मुलायम बनाती है।
(iv) यह भोजन को पचाने में भी मदद करती है।
(v) यह भोजन के स्वाद को बढ़ाती है।
(vi) इसमें विद्यमान टायलिन नामक एंजाइम स्टार्च का पाचन कर उसे माल्टोज में बदल देता है।


प्रश्न 57. पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है ?

उत्तर⇒ छुद्रांत्र में आंतरिक कला में अंगली की आकृति के प्रवर्ध होते हैं जो छुद्रांत्र की सतह को फैलाकर बड़ा कर देते हैं जिससे पचित भोजन का अवशोषण अधिक मात्रा में हो सके । अंगुलाकृतियों में रुधिर कोशिकाओं का जाल बिछा होता है जो पचे हुए भोजन का अवशोषण करती हैं। यह सभी कोशिकाओं में वितरित कर दिया जाता है । इन कोशिकाओं में भोजन का प्रयोग ऊर्जा प्राप्ति के लिए किया जाता है तथा नये ऊतकों के निर्माण तथा टूटे हुए ऊतकों की मरम्मत हेतु होता है।


प्रश्न 58. स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है ?

उत्तर⇒ स्तनधारी तथा पक्षियों का हृदय चार वेश्मी होता है। ऊपर के दो कक्ष को दाहिना तथा बायाँ अलिन्द कहते हैं जबकि नीचे की ओर के कक्ष दाहिना तथा बायाँ निलय कहलाते हैं । दाहिना अलिन्द में शरीर से आनेवाला अशुद्ध रुधिर एकत्र होता है जबकि बाएँ अलिन्द में फेफड़ों से आने वाला शुद्ध रक्त एकत्र होता है। इस प्रकार से दोनों प्रकार का रुधिर (शद्ध तथा अशुद्ध) परस्पर मिल नहीं पाते । रुधिर के दोनों प्रकार के न मिलने से ऑक्सीजन के वितरण पर किसी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस प्रकार का रुधिर संचरण विशेष रूप से उन जन्तुओं के लिए अधिक लाभदायक होता है जिनमें दैनिक कार्यों के लिए अधिक ऊजी का आवश्यकता होती है । उदाहरणार्थ स्तनधारी, पक्षी आदि । ऊर्जा की अधिक आवश्यकता शरीर के तापक्रम को सम बनाए रखने के लिए होती है।


प्रश्न 59. मूत्र बनने की मात्रा का नियम किस प्रकार होता है ?

उत्तर⇒ मत्र की मात्रा पानी के पुनः अवशोषण पर प्रमुख रूप से निर्भर करती है ।
वृक्काणु नलिका द्वारा पानी की मात्रा का पुनः अवशोषण निम्नलिखित पर निर्भर करता है—
(i) शरीर में अतिरिक्त पानी की कितनी मात्रा है जिसको निकालना है । जब शरीर के ऊतकों में पर्याप्त जल है, तब एक बड़ी मात्रा में तनु मूत्र का उत्सर्जन होता है। जब शरीर के ऊतकों में जल की मात्रा कम है, तब सांद्र मूत्र की थोड़ी-सी मात्रा उत्सर्जित होती है।
(ii) कितने घुलनशील उत्सर्जक, विशेषकर नाइट्रोजनयुक्त उत्सर्जक; जैसे यूरिया तथा यूरिक अम्ल तथा लवण आदि का शरीर से उत्सर्जन होता है।
जब शरीर में घुलनशील उत्सर्जक की अधिक मात्रा हो, तब उनके उत्सर्जन के लिए जल की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है । अतः, मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।
स्वपोषी पोषण के आवश्यक परिस्थितियाँ हैं—सूर्य-प्रकाश, क्लोरोफिल, कार्बन डाइऑक्साइड और जल। इसके उपोत्पाद आणविक ऑक्सीजन है।


प्रश्न 60. उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं ?

उत्तर⇒ उत्सर्जक पदार्थों से मुक्ति पाने के लिए पादप निम्नलिखित तरीकों का प्रयोग करते हैं—
(i) अनेकों उत्सर्जक उत्पाद कोशिकाओं के धानियों में भण्डारित रहते हैं । पादप कोशिकाओं में तुलनात्मक रूप से बड़ी धानियाँ होती हैं।
(ii) कुछ उत्सर्जक उत्पाद पत्तियों में भण्डारित रहते हैं। पत्तियों के गिरने के साथ ये हट जाते हैं।
(iii) कुछ उत्सर्जक उत्पाद, जैसे रेजिन या गम, विशेष रूप से निष्क्रिय पुराने जाइलम में भण्डारित रहते हैं।
(iv) कुछ उत्सर्जक उत्पाद जैसे टेनिन, रेजिन, गम छाल में भण्डारित रहते हैं। छाल के उतरने के साथ हट जाते हैं।
(v) पादप कुछ उत्सर्जक पदार्थों का उत्सर्जन जड़ों के द्वारा मृदा में भी करते हैं।


प्रश्न 61. जल-रंध्र किसे कहते हैं ?

उत्तर⇒ ये विशेष रचनाएँ जलीय पौधों या छायादार शाकीय पौधों में पाई जाती हैं। ये पत्तियों की शिराओं के शीर्ष पर अति सूक्ष्मछिद्र के रूप में होती हैं जिसमें पानी बूंदों के रूप में निःस्राव होता है । इसी कारण उन्हें जलमुख या जलरंध्र कहते हैं।


प्रश्न 62. वाष्पोत्सर्जन क्या है ?

उत्तर⇒ वाष्पोत्सर्जन एक जैविक क्रिया है। इस क्रिया में पानी पौधों के वायवीय भागों से वाष्प के रूप में बाहर निकलता है । यह क्रिया रक्षक कोशिकाओं के द्वारा बाहर निकलती है।


प्रश्न 63. विसरण किसे कहते हैं ?

उत्तर⇒ विसरण वह क्रिया है जिसमें उच्च सांद्रता क्षेत्र से निम्न सांद्रता की ओर आयनों और अणुओं का अभिगमन होता है। विसरण में अर्द्धपारगम्य झिल्ली से होकर अभिगमन नहीं होता है । यह क्रिया ठोस, द्रव और गैस तीनों में हो सकती है।


प्रश्न 64. आंत में विलाई पाये जाते हैं, लेकिन अमाशय में नहीं, क्यों ?

उत्तर⇒  आंत में पचे हुए भोजन के अवशोषण के कार्य को पूरा करने के लिए विलाई पाये जाते हैं। ये अवशोषण सतह को बढाते हैं। आमाशय में अवशोषण का कार्य नहीं के बराबर होता है। इस कारण इसमें विलाई नहीं पाये जाते हैं।


प्रश्न 65. काइम और काइल में अंतर बताइए।

उत्तर⇒ अमाशय की दीवार की क्रमाकुंचन गति के कारण बनी भोजन की लग्दी को काइम कहते हैं । यह अम्लीय प्रकृति का होता है, जबकि ग्रहणी की दीवार की क्रमाकुंचन गति के कारण बने पेस्ट को काइल कहते हैं। यह क्षारीय प्रकृति का होता है।


प्रश्न 66. श्वसन किसे कहते हैं ?

उत्तर⇒ श्वसन जीवों में होनेवाली एक ऑक्सीकरण क्रिया है, जिसमें जटिल कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति में अपघटन किया जाता है, जिसके फलस्वरूप जल, CO2 तथा ऊर्जा मुक्त होती है।
इसे निम्नलिखित समीकरण द्वारा दर्शाया जा सकता है- C6H1206 → 6C02+ 6H20 +673 K cal ऊर्जा  38 ATP


प्रश्न 67. ऑक्सी श्वसन किसे कहते हैं ? –

उत्तर⇒ यह वह श्वसन है, जिसमें भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण ऑक्सीजन, की उपस्थिति में पूर्णरूपेण CO2तथा H2O में हो जाता है । इस श्वसन में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है।


प्रश्न 68. अनॉक्सी श्वसन किसे कहते हैं ? समीकरण दीजिए ।

उत्तर⇒ यह वह श्वसन है, जिसमें भोज्य पदार्थों का अपूर्ण ऑक्सीकरण ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है । इसमें अपेक्षाकृत कम ऊर्जा मुक्त होती है ।
इसे निम्नलिखित समीकरण से व्यक्त करते हैं—
C6H120→ 2CO2 +2C2H5OH + 21 K.cal ऊर्जा (2ATP)

इसे निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त करते हैं—
C6H1206 +602 →6CO2+6H2O+ 673 Kcal ऊर्जा


प्रश्न 69. श्वसन में माइट्रोकाँड्रिया की क्या भूमिका है ?

उत्तर⇒ श्वसन की ग्लाइकोलिसिस क्रिया कोशिका द्रव्य में लेकिन पाइरूविक अम्ल तथा श्वसन के दौरान बने NADH2 का ऑक्सीकरण माइट्रोकाँड्रिया के अंदर होता है। इसके लिए आवश्यक प्रोटीन माइट्रोकाँड्रिया के क्रिस्टी में उपस्थित रहते हैं। इसके अलावा माइट्रोकाँड्रिया ATP जंतुओं का संचय भी करती है। अतः माइट्रोकाँड्रिया ऑक्सीकरण द्वारा जीव कोशिकाओं के लिए ऊर्जा का उत्पादन करता है। इसी कारण इसे कोशिका का ऊर्जागृह (पावर हाउस) भी कहते हैं ।


प्रश्न 70. होमिओस्टेसिस को समझाइए।

उत्तर⇒ मूत्र निर्माण तथा उत्सर्जी पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने के अतिरिक्त वृक्क शरीर में जल, अम्ल, क्षार तथा लवणों का संतुलन बनाये रखने में सहायता देता है । वृक्क रुधिर से अतिरिक्त जल की मात्रा को मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकालता है। इसी प्रकार वृक्क के कारण रुधिर में लवण सदैव एक निश्चित मात्रा में ही मिलते हैं। अमोनिया रुधिर के H की अधिकता को कम करके रुधिर में अम्ल-क्षार संतुलन बनाने में सहायता देती है । वृक्कों द्वारा ही विष, दवाइयाँ आदि हानिकारक पदार्थों का भी शरीर से विसर्जन होता है । अतः, वह समस्त क्रियाएँ जिनके द्वारा शरीर में एक स्थायी अवस्था बनी रहती है उसको होमिओस्टेसिस कहते हैं।


प्रश्न 71. जीवधारियों के लिए पोषण क्यों अनिवार्य है ?

उत्तर⇒ जीवधारियों (जीवों) को पोषण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है—
(i) ऊर्जा उत्पादन के लिए— शरीर की जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है और जीवधारियों को यह ऊर्जा भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है।
(ii) शरीर की टूट-फूट की मरम्मत के लिए— विभिन्न जैविक क्रियाओं में शरीर के ऊतकों की टूट-फूट होती है, इनकी मरम्मत के लिए पोषण की आवश्यकता होती है।
(iii) वृद्धि के लिए— नये जीवद्रव्य से नई कोशिकाएँ बनती हैं। इनसे जीवों की वृद्धि होती है।
(iv) उपापचयी क्रियाओं के नियंत्रण के लिए— भोजन को पचाने तथा श्वसन आदि उपापचयी क्रियाओं में कुछ निर्माणकारी और कुछ विनाशकारी क्रियाएँ होती रहती हैं। इन क्रियाओं के संपन्न होने में तथा इन क्रियाओं पर नियंत्रण के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है


प्रश्न 72. किण्वन क्या है ? इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।

उत्तर⇒ किण्वन वह क्रिया है, जिसमें सूक्ष्मजीव ग्लूकोज या शर्करा का अपूर्ण विघटन कोशिका के बाहर करके Co, तथा सरल कार्बनिक पदार्थ; जैसे-इथाइल ऐल्कोहॉल, लैक्टिक एसिड, मैलिक एसिड, ऑक्जैलिक एसिड, साइट्रिक एसिड इत्यादि का निर्माण करते हैं, जिसके फलस्वरूप कुछ ऊर्जा मुक्त होती है।
किण्वन की क्रिया का निम्नलिखित महत्त्व है—
(i) इसकी सहायता से एल्कोहल, बीयर आदि का उत्पादन किया जाता है।
(ii) इस क्रिया के द्वारा कई महत्त्वपूर्ण कार्बनिक यौगिकों जैसे ऐसिटिक अम्ल ल्यूटेरिक अम्ल आदि का उत्पादन किया जाता है।
(iii) इस तकनीक का उपयोग बेकरी तथा सिरका उद्योग में किया जाता है।
(IV) जूट, सन्, तंबाकू, चाय, चमड़ा इत्यादि उद्योग में इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
(V) इसका उपयोग रंग, साबुन, प्लास्टिक, रेजिन, ईथर के निर्माण में किया जाता है।


प्रश्न 73. निम्नलिखित श्वासनांगों पर टिप्पणी लिखिए (i) लेरिंक्स (ii) ट्रैकिया (iii) ब्रींकाई फेफड़े ।

उत्तर⇒ (i) लरिक्स—यह श्वास नली का वह भाग है जहाँ ग्रसनी टैकिया से जुड़ती है । इसे स्वर या कण्ठ भी कहते हैं। यह भोजन नली की प्रतिपृष्ठ सतह पर स्थित होता है। इसकी गुहा (कंठ कोष) आगे की तरफ ग्लॉटिस छिद्र द्वारा ग्रसनी से जुड़ता है । इसके ऊपर इपीग्लॉटिस नामक एक उपास्थि होती है जो भोजन निगलते समय ग्लॉटिस को बंद कर देती है। इसका मुख्य कार्य ध्वनि उत्पादन है।
(ii) ट्रकिया— यह लगभग 12 cm लंबी उपास्थि की एक नली है जो हवा को लेरिक्स से ब्राँकस तक लाती है।
(ii) ब्रांकाई—ट्रैकिया वक्षीय गुहा में जाकर दो शाखाओं में बँट जाते हैं। जिन्हें ब्राँकाई कहते हैं। इससे होकर वायु फेफड़ों में पहुँचती है।
(iv) फेफड़े —प्रत्येक ब्राँकस अपनी तरफ के फेफड़ों में खुलते हैं। ये ब्राँकस फेफडों में प्रवेश करने के बाद अनेक पतली-पतली शाखाओं में बँट जाते हैं। ये शाखाएँ पुनः छोटे-छोटे कोष्ठकों में बँट जाती हैं, जिन्हें कूपिका कहते हैं। इसी के लिए पतली एवं दीवार द्वारा वायु का आदान-प्रदान होता है।


प्रश्न 74. लसीका वाहिकायें और रुधिर वाहिकायें में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर⇒

लसीका वाहिकायें रक्त वाहिकाये
रंगहीन होती हैं। ये लाल रंग की होती हैं।
ये लसीका का परिवहन करती हैं। ये रक्त का परिवहन करती हैं।
ये रक्त कोशिकाओं से बड़ी होती है। ये लसीका वाहिकाओं से तंग होती हैं

प्रश्न 75. प्राणि समभोजी पोषण और मृतोपजीवी पोषण में अंतर बताएँ।

उत्तर⇒

प्राणि समभोजी पोषण मृतापजावी पोषण
ये जंत ठोस पदार्थों का भक्षण करते हैं। ये मृत व गले-सडे पदार्थों से भोजन लेते हैं।
यह प्राणी के शरीर में होता है। उदाहरण-अमीबा, चूहा, मनुष्य आदि । यह शरीर के बाहर होता है। उदाहरण—फफूंदी आदि ।

प्रश्न 76. अंतःकोशिकीय और बाह्यकोशिकीय पाचन में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर⇒

अंतः कोशिकीय पाचन बाह्य कोशिकीय पाचन
ये निम्न वर्ग के जंतुओं में होता है, जैसे-अमीबा। यह उच्च वर्ग के जंतुओं में पाया जाता है।
कोशिकीय एंजाइम की सहायता से कोशिका के अंदर होता है। एंजाइम की सहायता से कोशिका के बाहर होता है।
पाचक रस जीवद्रव्य में होते हैं ।  पाचक रस ग्रन्थियों से आहार नाल में आते हैं।
पाचन के बाद पूरा भोजन वहीं रहता है। पाचित भोजन का ही अवशोषण होता है।

प्रश्न 77. मांसाहारी और शाकाहारी जीवों में क्या अंतर है?

उत्तर⇒

शाकाहारी जीव
मांसाहारी जीव
ये अपने भोजन के लिये पौधों पर निर्भर करते हैं। ये जंतुओं पर अपने भोजन के लिये निर्भर करते हैं।
कृतंक दाँत अधिक विकसित होते हैं। रदनक दाँत अधिक विकसित होते हैं।
नाखून कम विकसित होते हैं। उदाहरण-घोड़ा, गाय, बकरी,ऊँट, हिरण आदि । नाखून अधिक विकसित होते हैं। उदाहरण शेर, चीता, मगरमच्छ, मेंढक आदि।

प्रश्न 78. लाल रुधिर कणिकाएँ और श्वेत रुधिर कणिकाएँ में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर⇒

लाल रुधिर कणिकाएँ श्वेत रुधिर कणिकाएँ
इनकी संख्या अधिक होती है। इनकी संख्या लाल रुधिर कणिकाओं से कम होती हैं।
ये अस्थिमज्जा में बनती हैं।  ये हमारे शरीर को बीमारियों और संक्रमण से बचाती हैं।
ये ऑक्सीजन का परिवहन करती हैं। ये प्रतिरक्षी बनाती हैं, जो आक्रमणकारियों से लड़ती हैं।
इसकी सतह पर लाल रंग का वर्णक हीमोग्लोबिन पाया जाता है। रुधिर का थक्का जमाने में सहायक होती है।

 


प्रश्न 79. प्रकाश-संश्लेषण और श्वसन में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर⇒

प्रकाश-संश्लेषण श्वसन
यह पौधों की उन कोशिकाओं में होता है जिनमें यह पौधों और जंतुओं की प्रत्येक कोशिकाओं में होता है।
यह एक उपचय क्रिया है। यह एक अपचय क्रिया है।
इसमें जल और CO2 कच्चीसामग्री के रूप और ग्लूकोज व ऑक्सीजन उत्पाद के रूप में प्राप्त होते हैं। इसमें प्रकाश-संश्लेषण से उल्टा होता है।
इसमें ऊर्जा का भोजन के रूप में संग्रह होता है। इसमें भोजन की ऊर्जा निष्कासित होती है।

 


प्रश्न 80. विसरण और परासरण में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर⇒

विसरण  परासरण
जब दो विभिन्न सांद्रता के पदार्थ एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं, तो अणु कम सांद्रता से अधिक सांद्रता की ओर गति करते हैं। जब दो विभिन्न सांद्रता के पदार्थ एक दूसरे के सम्पर्क में आते हैं, तो अणु अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर बढ़ते हैं।
इसमें किसी प्रकार की झिल्ली की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें दोनों विलयनों के बीच अर्धपारागम्य झिल्ली होती है।
यह दोनों दिशाओं में होता है। यह एक ही दिशा में होता है।
इसमें कोई दाब उत्पन्न नहीं होता है। इसमें परासरण दाब उत्पन्न होता है ।
यह ठोस, द्रव और गैस सभी में होता है। यह द्रव और उसमें घुलित पदार्थों में होता है।

 


प्रश्न 81. मृतजीवी और परजीवी में अंतर लिखें।

उत्तर⇒

मृतजीवी परजीवी
मृत और क्षय शरीर से भोजन लेते हैं। ये जीव दूसरे जीवों पर आश्रित रहते हैं।
ये मृतोपजीवी हैं। ये प्राणी समभोजी हैं।
मृतजीवी जीवों में फफूंदी, यीस्ट, छत्रक और जीवाणु जैसे जीव आते हैं। इसमें मलेरिया परजीवी, फीता कृमि गोल कृमि आदि जीव आते हैं।

 


प्रश्न 82. अंतर्ग्रहण और मल-परित्याग में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर⇒

अंतर्ग्रहण मल परित्याग 
इस क्रिया में भोजन शरीर के अंदर लिया जाता है। इस क्रिया में अपचा भोजन शरीर से बाहर निकाला जाता है।
यह ठोस या द्रव हो सकता है। यह ठोस-द्रव का मिश्रण होता है।
इसमें भोजन के साथ रुक्षांश भी होता है। इसमें रुक्षांश और अपचा भोजन होता है।
इसे भोजन लेना कहते हैं। इसे मल परित्याग कहते हैं।

प्रश्न 83. मनुष्य में श्वास लेने की क्रियाविधि के प्रमुख दो आधारों का विवरण दीजिए।

उत्तर⇒ श्वासोच्छ्वास की क्रिया में गैसीय आदान-प्रदान के लिए वायुमंडलीय वायु को फेफड़ों के अंदर लिया जाता है तथा श्वसन के पश्चात् फेफड़े की वायु (CO2) को शरीर से बाहर किया जाता है।
मनुष्य के श्वासोच्छ्वास की क्रिया-विधि दो चरणों में पूरी होती है—
(i) निश्वसन—वायुमंडलीय या वातावरणीय वायु फेफड़ों में भरने की क्रिया को निश्वसन कहते हैं। इस क्रिया में मस्तिष्क के श्वसन केंद्र से प्राप्त उद्दीपन के कारण बाह्य इंटरकॉस्टल पेशियाँ संकुचित होती हैं, जिससे पसलियाँ बाहर की ओर झुक जाती हैं। इसी समय डायफ्राम की अरीय पेशियाँ संकुचित तथा उदर पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं, जिससे वक्षीय गुहा का आयतनं बढ़ने के साथ फेफड़े का आयतन भी बढ़ जाता है, फलतः श्वसन पथ से वायु अंदर आकर फेफड़े में भर जाती है।
(ii) निःश्वसन—वह क्रिया है जिसके द्वारा फेफड़ों की वायु को वायु पथ द्वारा शरीर से बाहर किया जाता है। इस क्रिया में मस्तिष्क के श्वसन केंद्र की उद्दीपन के कारण अंत:इंटरकॉस्टल पेशियाँ संकुचित, डायफ्राम की पेशियाँ शिथिल तथा उदर गुहा की पेशियाँ संकुचित होती हैं, फलतः वक्षीय गुहा के साथ फेफड़े का आयतन कम हो जाता है और फेफड़े की वायु श्वसन पथ से होते हुए बाहर निकल जाती है।


प्रश्न 84. मुखगुहा में पाचन क्रिया समझाइए।

उत्तर⇒ मुखगुहा में पाचन क्रिया—मुख गुहा में भोजन को दाँतों द्वारा चबाया और पीसा जाता है। चबाते समय भोजन से लार अच्छी तरह मिलकर उसे लग्दी में बदल देता है।
अब लार में उपस्थित एंजाइमों द्वारा भोजन का निम्न प्रकार पाचन होता है—
(i) म्युसिन—यह भोजन को चिकना बनाता है जिससे यह आसानी से सरक कर आहार नाल में बढ़ जाता है।
(ii) टायलिन—यह भोजन में उपस्थित मण्ड (स्टार्च) को माल्टोज शर्करा में बदल देता है। यदि टायलिन बहुत देर तक क्रिया करता रहे तो माल्टोज ग्लूकोज में बदल जाता है। इसलिए अधिक देर तक भोजन चबाने से मीठा लगने लगता है ।
(iii) लाइसोजाइम- यह भोजन में उपस्थित जीवाणुओं की कोशिकाभित्ति के पॉलीसेकेराइड्स को पचाकर जीवाणुओं को मारता है।


प्रश्न 85. रक्तदाब किसे कहते हैं ? इसे कैसे मापते हैं ? रक्त चाप अधिक बढ़ जाने से क्या क्षति हो सकती है?

उत्तर⇒ रक्त वाहिकाओं की दीवारों के विरुद्ध जो दाब लगता है उसे रक्तदाब कहते हैं। यह दाब शिराओं की अपेक्षा धमनियों में बहुत अधिक होता है। धमनी के अंदर रक्त का दाब निलय प्रकुंचन के दौरान प्रकुंचन दाब तथा निलय अनुशिथिलन के दौरान धमनी के अंदर का दाब अनुशिथिलन दाब कहलाता है। सामान्य प्रकुंचन दाब लगभग 120 मिमी० (पारा) तथा अनुशिथिलन दाब लगभग 80 मिमी. (पारा) होता है।

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स्फाईग्मोमैनोमीटर नामक यंत्र से रक्तदाब मापा जाता है। उच्च रक्तदाब को अति तनाव भी कहते हैं और इसका कारण धमनिका का सिकुड़ना है। इससे रक्त प्रवाह में प्रतिरोध बढ़ जाता है। इससे आँख, मस्तिष्क आदि अंगों की धमनी फट सकती है। इससे आंतरिक रक्तस्रावण हो सकता है।


प्रश्न 86. प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया को कौन-कौन से कारक प्रभावित करते हैं ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर⇒ प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया को निम्न कारक प्रभावित करते हैं—
(i) प्रकाश-प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया सूर्य-प्रकाश में होती है, इसलिए प्रकाश का प्रकार तथा उसकी तीव्रता इस क्रिया को प्रभावित करती हैं। प्रकाश की लाल एवं नीली किरणों तथा 100 फुट कैंडल से 3000 फुट कैंडल तक प्रकाश तीव्रता प्रकाश-संश्लेषण की दर को बढ़ाती है जबकि इससे उच्च तीव्रता पर यह क्रिया रूक जाती है।
(ii) CO,- वातावरण में CO, की मात्रा 0.03% होती है। यदि एक सीमा तक CO, की मात्रा बढ़ाई जाए, तो प्रकाश-संश्लेषण की दर भी बढ़ती है, लेकिन अधिक होने से घटने लगती है।
(iii) तापमान—प्रकाश-संश्लेषण के लिए 25-35°C का तापक्रम सबसे उपयुक्त होता है । इससे अधिक या कम होने पर दर घटती-बढ़ती रहती है।
(iv) जल—इस क्रिया के लिए जल एक महत्त्वपूर्ण यौगिक है । जल की कमी होने से प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया प्रभावित होती है क्योंकि जीवद्रव्य की सक्रियता घट जाती है, स्टोमेटा बंद हो जाते हैं और प्रकाश-संश्लेषण की दर घट जाती है।
(v) ऑक्सीजन—प्रत्यक्ष रूप से ऑक्सीजन की सांद्रता से प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया प्रभावित नहीं होती है, लेकिन यह पाया गया है कि वायुमंडल में 0, की मात्रा बढ़ने से प्रकाश-संश्लेषण की दर घटती है।


प्रश्न 87. रंध्र एवं वातरंध क्या हैं ? श्वसन में इनकी क्या भूमिका है?

उत्तर⇒ पौधों की पत्तियों की सतह पर असंख्य छोटे-छोटे छिद्र पाये जाते हैं, जो भीतरी पादप ऊतकों और बाहरी पर्यावरण के बीच गैसों का आदान-प्रदान करते हैं। इन छिद्रों को स्टोमेटा रंध्र (स्टोमेटा) कहते हैं। वायु अन्य जीवित कोशिकाओं तक विसरण के द्वारा पहुँचती हैं, वातरंध्र तनों के छाल में उपस्थित छिद्र है, जिनके द्वारा तना वातावरण से गैसों का आदान-प्रदान करता है। द्वितीयक वृद्धि के बाद वात रंध्रों को निर्माण इसलिए होता है, क्योंकि कॉर्क कोशिकाएँ अवकाशविहीन एवं सुवेरिनयुक्त होने के कारण अपारगम्य होती हैं।

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वातरंध्र स्टोमेटा के नीचे तथा कॉर्क कैबियम की क्रियाशीलता से बनते हैं। इनके निर्माण के दौरान कॉर्क कैबियम बाहर की ओर पतली भित्ति वाली पैरेनकाइमा कोशिकाएँ बनाता है जिन्हें पूरक कोशाएँ कहते हैं। इन कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है जिससे बाह्य त्वचा टूट जाती है। उन स्थानों पर पूरक कोशिकाएँ सूक्ष्म छिद्र वातरंध्र सहित उभर आती हैं। इन कोशिकाओं के बीच में पर्याप्त अंतरकोशिकीय अवकाश होते हैं जिससे गैसों का विनिमय तथा जलवाष्प के रूप में निकलता रहता है।


प्रश्न 88. मनुष्य के लसीका तंत्र पर टिप्पणी लिखिए तथा लसीका के दो प्रमुख कार्यों को इंगित कीजिए।

उत्तर⇒ हमारे शरीर में रक्त लगातार हृदय की ओर जाता है और वापिस अंगों के पास जाता है पर इसके अतिरिक्त एक और भी परिसंचरण तंत्र है जो बंद वाहिनियों का परिसंचरण कहलाता है-इसे लसीका तंत्र कहते हैं । लसीका या लिम्फ स्वच्छ तरल है जो रक्त कोशिकाओं से बाहर आ जाता है और सभी ऊतक गुहाओं को गीला रखता है। यह हीमोग्लोबिन की अनुपस्थिति के कारण रक्त की तरह लाल नहीं होता। इसका रंग हल्का पीला होता है। यह ऊतकों की ओर से हृदय की ओर ही बहता है । यह किसी पम्प के द्वारा गति नहीं करता। इस तंत्र में अनेक वाहिनियाँ, ग्रथियाँ और वाहिनिकाएँ होती हैं।

scienceइनके कुछ प्रमुख कार्य हैं—
(i) हानिकारक जीवाणुओं को समाप्त कर रोगों से शरीर की रक्षा करती हैं।
(ii) शरीर पर लगे धावों को ठीक करने में सहायता करती हैं।
(iii) लिंफ नोड में छानने का कार्य करती है।
(iv) छोटी आंत में वसा का अवशोषण करती हैं।
(v) लिंफोसाइट्स का निर्माण करती हैं।


प्रश्न 89. डायलिसिस की प्रक्रिया को समझाइए।

उत्तर⇒ कई बार विपरीत परिस्थितियों के कारण गुर्दे अपना कार्य ठीक प्रकार से नहीं करते । शरीर में बनने वाला यूरिया तथा अन्य उत्सर्जी पदार्थों को ये रक्त

scienceसे छानने में असमर्थ हो जाते हैं जिस कारण रक्त में ये विषैले पदार्थ बढ़ने लगते हैं। तब डायलिसिस यंत्र का प्रयोग कर रक्त को साफ किया जाता है। इस यंत्र में रक्त सेलोफोन झिल्ली की बनी नलिकाओं में बहता है । इन नलिकाओं के बाहर रक्त का समपरासी लवण द्रव को बहाया जाता है । जिस कारण नलिकाओं के अंदर बहते रक्त से उत्सर्जी पदार्थ अलग होकर यंत्र के द्रव में आ जाते हैं और रक्त यरिया तथा उत्सर्जी पदार्थों से मुक्त हो जाता है। इस क्रिया के बाद रक्त को शरीर में वापिस भेज दिया जाता है।


प्रश्न 90. जंतुओं में गैसीय आदान-प्रदान की विभिन्न विधियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर⇒ जंतुओं में गैसीय आदान-प्रदान निम्नलिखित विधियों द्वारा होता है—
(i) सामान्य कोशिकाओं में सतह द्वारा— इसमें प्रक्रम श्वसन एक कोशिकीय जीवों अमीबा, पैरामीशियम, स्पंजों तथा सीलेण्ट्रेटम में होता है। इसमें जीव की कोशिकाएँ सीधे जल के संपर्क में रहती हैं तथा सामान्य विसरण द्वारा 0, को ग्रहण तथा CO2 को त्यागती है।
(ii) त्वचा द्वारा—ऐनेलिडा (केंचुआ, जोंक, नेरीज) ऐम्फिविया (मेढ़क) संघ के जंतुओं की त्वचा में कोशिकाओं का जाल फैला होता है, जिसकी सहायता से त्वचा गैसीय आदान-प्रदान करती है।
(iii) श्वसन नलियों द्वारा–आर्थोपोडा समूह में जंतुओं; जैसे-कीटों, काकरोच. बिच्छु आदि में श्वसन (गैसीय आदान-प्रदान एवं परिवहन) पतली-पतली नलिकाओं द्वारा होता है जिन्हें ट्रैकिया (श्वसन नलिका) कहते हैं। ये पूरे शरीर में एक जाल-सा बनाती है, जिसे ट्रेकियल सिस्टम कहते हैं।
(iv) गिल्स द्वारा— विकसित जलीय जीवों; जैसे-मछलियों, झींगों, मोलास्को, इकाइकोडमेंट्स, मेढ़क के टेडपीलों आदि में गैसीय आदान-प्रदान गिल्स के द्वारा होता है।
(v) फेफड़ों द्वारा— उभयचरों, स्तनियों, सहित कोटा के सभी जीवों में गैसीय आदान-प्रदान फेफड़ों द्वारा होता है। फेफड़ों द्वारा होनेवाली श्वसन क्रिया को फुफ्फुसी श्वसन कहते हैं। इनमें जीवों में एक विकसित श्वसन तंत्र. पाया जाता है जिसके द्वारा वायु को फेफड़ों तक लाया जाता है तथा उससे बाहर निकाला जाता है। इस तरह फेफड़ों की सतह द्वारा गैसों का आदान-प्रदान होता है।


प्रश्न 91. हृदय रोग होने या इसकी शंका के निवारण के लिए डॉक्टरों के द्वारा प्रायः कौन-सा परीक्षण किया जाता है ? वे हृदय की प्रसमता को किस प्रकार मापते हैं ?

उत्तर⇒ किसी व्यक्ति को हृदय रोग होने या इसकी शंका होने पर प्रायः सबसे पहले ECG (Electro Cardio Gram) के द्वारा हृदय की कार्य-विधि का अध्ययन करते हैं।
हृदय के निकट के हिस्से में शरीर पर विशिष्ट स्थानों पर इलेक्ट्रोड लगा दिये जाते हैं । हृदय संकुचन के समय जो विद्युत विभव S.A. Node से उत्पन्न होकर हृदय के विशिष्ट संवाही पेशी तंतुओं से प्रवाहित होकर हृदय की पेशियों को सिकुड़ने के. लिए प्रेरित करता है । इस अध्ययन के द्वारा उसे मापा जाता है। अगर हृदय में कोई दोष होता है तो वह ग्राफ से पता लग सकता है।

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प्रश्न 92. छोटी आंत में पचे हुए भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता . है ? सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर⇒ पाचन क्रिया के बाद भोजन के प्रोटीन, अमीनो अम्ल से स्टार्च, शर्करा में तथा वसा-वसीय अम्ल एवं गिलसरॉल में रूपान्तरित हो जाते हैं । ये पदार्थ आहार नाल की गुहा में पाये जाते हैं तथा इनका अवशोषण छोटी आंत की सूक्ष्मांकुर द्वारा होता है। छोटी आंत में स्थित पदार्थ या तो निष्क्रिय या सक्रिय रूप से पराश्रित होकर आंत की म्यूकस झिल्ली की रुधिर कोशिकाओं या लसिका कोशिकाओं में कोशिका से होते हुए चले जाते हैं।

निष्क्रिय अवशोषण में कोशिकीय ऊर्जा का उपयोग नहीं होता। इसमें पदार्थ सांद्रता प्रवणता के अनुसार कोशिकाओं में चले जाते हैं, जबकि सक्रिय अवशोषण द्वारा पदार्थ के अवशोषण में कोशिकीय ऊर्जा का उपभोग होता है। रुधिर कोशिकाएँ आपस में मिलकर यकृत निवाहिका शिरा बनाती हैं, जिसके द्वारा ये अवशोषित पदार्थ यकृत में पहुँचा दिये जाते हैं । लसिका कोशिकाएँ, आपस में मिलकर लसिका परिसंचरण तंत्र की वक्षीय वाहिनी में में खुलती है । अब वे पदार्थ परिसंचरण तंत्र द्वारा संपूर्ण शरीर में पहुँचाए जाते. हैं। छोटी आंत अवशोषण कार्य के लिए पूरी तरह से चित्र-अवशोषण को प्रदर्शित करता हुआ एक सूक्ष्मांकुर अनुकूलित होती है।

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                                  चित्र:- अवशोषण को प्रदर्शित करता हुआ एक सूक्ष्मांकुर

 

Science ( विज्ञान  ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

 

1. पोषण क्या है ? जीवों में होनेवाली विभिन्न पोषण विधियों का वर्णन करें।

उत्तर⇒ वह जैव प्रक्रम जिसमें जीव अपने जीवन के अस्तित्व को बनाए रखने लिए भोज्य पदार्थों के पोषक तत्त्वों को ग्रहण कर उनका उपयोग करते हैं, पोषण कहलाता है।
जीवों में पोषण मुख्यतः दो विधियों द्वारा होता है –

(I) स्वपोषण – वह विधि जिसमें सजीव भोजन के लिए किसी अन्य जीवों पर निर्भर न रहकर अपना भोजन स्वयं संश्लेषित कर लेते हैं, स्वपोषण कहलाती है। इस विधि द्वारा पोषण करनेवाले जीवों को स्वपोषी कहते हैं। सभी हरे पौधे स्वपोषी होते हैं।
(ii) परपोषण – परपोषण वह विधि है, जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं संश्लेषित न कर किसी-न-किसी रूप में अन्य स्रोतों से प्राप्त करते हैं। इस विधि द्वारा पोषण करनेवाले जीवों को परपोषी कहते हैं। सभी जंतु, जीवाणु एवं कवक परपोषी कहलाते हैं।


2. परपोषण कितने प्रकार के होते हैं? वर्णन करें।

उत्तर⇒ परपोषण मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है –

(a) मृतजीवी पोषण – इसमें जीव मृत जंतुओं एवं पादपों के शरीर से अपना भोजन, अपने शरीर की सतह से, घुलित कार्बनिक पदार्थों के रूप में अवशोषित करते हैं। ऐसे जीवों को मृतजीवी या अपघटक भी कहते हैं, जैसे—कवक एवं बैक्टीरिया।

(b) परजीवी पोषण – इस प्रकार के पोषण में जीव दूसरे प्राणी के संपर्क में स्थायी या अस्थायी रूप से रहकर, उससे अपना भोजन प्राप्त करते हैं। भोजन प्राप्त करनेवाले जीव परजीवी एवं जिनके शरीर से परजीवी अपना भोजन प्राप्त करते हैं, उन्हें पोषी (hot) कहते हैं। उदाहरण के लिए एंटअमीबा हिस्टोलीटिका, मलेरिया परजीवी इत्यादि।

(c) प्राणिसम पोषण – जीवों में पोषण की वह विधि जिसमें प्राणी अपना भोजन ठोस या तरल रूप में जंतुओं के भोजन ग्रहण करने की विधि द्वारा ग्रहण करते हैं, प्राणिसम पोषण कहलाता है। इस विधि द्वारा जंतुओं (अमीबा, मेढक, मनुष्य) में पोषण होता है।


3. मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की आवश्यकता क्यों होती है ? – व्याख्या करते हुए समझाएँ ।

उत्तर⇒रक्त हृदय में दो बार परिसंचरण के दौरान गुजरता है इसलिए इसे दोहरा परिसंचरण कहते हैं। हृदय के बायें आलिंद का संबंध फुफ्फुस शिरा से होता है जो फेफड़ों में ऑक्सीजनयुक्त रक्त को लाती है। बायें आलिन्द का संबंध एक दिकपाट द्वारा बायें निलय से होता है। अत: बायें आलिन्द का संबंध एक दिक्पाट बायें निलय से होता है। अत: बायें आलिन्द का ऑक्सीजन युक्त रक्त कपाट खोलकर बायें निलय में भरा जाता है। बायें निलय का संबंध एक महाधमनी से होता है। अत: बायें निलय का ऑक्सीजन युक्त रक्त इस महाधमनी से होकर पूरे शरीर में चला जाता है। फिर शरीर विभिन्न भागों से ऑक्सीजन विहीन अशुद्ध रक्त महाशिरा द्वारा दायें आलिन्द में आता है। दायें आलिंद और दायें निलय के बीच त्रि-कपाट होता है। अतः दायें आलिन्द का रक्त इस कपाट से होकर दायें निलय में आ जाता है । दायें निलय का संबंध फुफ्फुस धमनी से होता है जो फेफड़ों तक जाती है। वहाँ उसकी कार्बन डाइऑक्साइड फेफड़ों में चली जाती है और ऑक्सीजन रक्त में आ जाता है।


4. मानव के रक्त के कार्यों का वर्णन करें।

उत्तर⇒ रक्त के कार्य रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है, क्योंकि वह अपने प्रवाह के दौरान शरीर के सभी ऊतकों का संयोजन करता है ।

(i) यह फेफड़े से ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों में परिवहन करता है।
(ii) यह शरीर की कोशिकाओं से CO2को फेफड़े तक लाता है, जो श्वासोच्छ्वास के द्वारा बाहर निकल जाता है।
(iii) यह पचे भोजन को छोटी आँत से शरीर के विभिन्न भागों में पहँचाता है।
(iv) यह शरीर को विभिन्न रोगाणुओं के संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करता है, क्योंकि रक्त के घटक WBC. शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र का निर्माण करते हैं।
(v) रक्त पट्टिकाणु, रक्त जमने में सहायक होते हैं ।


5. वृक्क का नामांकित चित्र बनाकर वर्णन करें।

उत्तर⇒ मनुष्य के वृक्क में निम्नलिखित रचनाएँ पाये जाते हैं।

(1) वृक्क (Kidney) :- मनुष्य में दो ववक होते हैं। यह गहरे भूरे-लाल रंग के होते हैं। दोनों वृक्क उदरगुहा की पष्ठीय देहभित्ति में कशेरूकदंड के दोनों ओर स्थित होते हैं। प्रत्येक वृक्क का बाहरी सतह उत्तल (Convex) तथा भीतरी सतह अवतल (Concave) होता है। वृक्क के आंतरिक अवतल सतह को हीलस (hilus) कहते हैं।

(2) मत्रवाहिनी (Ureters) :- प्रत्येक वृक्क के हीलस से 20-30 cm लंबी नली के आकार की रचना निकलती है, जिसे मत्रवाहिनी कहते हैं। प्रत्येक मूत्रवाहिनी आगे की ओर मूत्राशय में खुलती है।

(3) मूत्राशय (Urinary bladder) :- यह एक थैली के आकार की रचना है, जो उदरगुहा के पिछले भाग में रेक्टम के नीचे स्थित होती है। मूत्राशय का ऊपरी चौड़ा भाग मुख्य भाग होता है तथा पिछला भाग मूत्राशय की ग्रीवा कहलाती है। मूत्राशय में 0.5 से 1 लीटर तक पेशाब जमा रहता है।

(4) मूत्रमार्ग (Urethra) :- मूत्राशय की ग्रीवा से एक नली निकलती है जिसे मूत्रमार्ग कहते हैं।

वृक्क की रचना का चित्र


6. वृक्क के महत्त्वपूर्ण कार्य क्या हैं ?

उत्तर⇒ वृक्क रक्त में जल की उचित मात्रा को बनाए रखने में सहायक होता है। यह रक्त में खनिज की सही समानता बनाए रखता है। यह शरीर से दूषित पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं अन्यथा अगर यह शरीर में रहे तो उस जीव के लिए खतरनाक साबित होते हैं। वृक्क रक्त के संपूर्ण आयतन को व्यवस्थित करता है। शरीर में अत्यधिक रक्तस्राव होने से रक्तचाप कम हो जाता है, जिससे कम मात्रा में ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट बनता है व वृक्क से निम्न मात्रा में मूत्र का उत्सर्जन होता है। इस प्रकार शरीर में तरल पदार्थ की अवस्था में सभी लवण, ग्लूकोज और अन्य पदार्थ संचित रहते हैं।


7. होमिओस्टेसिस क्या है ?

उत्तर⇒ वृक्क हमारे शरीर में जल, अम्ल, क्षार तथा लवणों को संतुलन बनाये रखने में मददगार होता है। मूत्र के निर्माण व उत्सर्जी पदार्थों को शरीर के बाहर निकालने के अतिरिक्त रुधिर में अतिरिक्त जल की मात्रा को मूत्र के रूप में शरीर से वृक्क बाहर निकालता है। इसी प्रकार वृक्क के कारण रुधिर में लवण सदैव एक निश्चित मात्रा में मिलते हैं। अमोनिया रुधिर के H की अधिकता को कम करके रुधिर में अम्ल-क्षार संतुलन बनाने में सहायता देती है। वृक्कों द्वारा ही विष, दवाइयाँ आदि हानिकारक पदार्थों का भी शरीर से विसर्जन होता है। अतः वे सारी क्रियाएँ जिनसे शरीर में एक स्थायी अवस्था बनी रहती है, होमिओस्टेसिस कहलाती हैं।


8. भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है ?

उत्तर⇒ लार एक पाचक रस है जो कि तीन जोड़ी लार ग्रंथियों से स्रावित होती है। मुँह में भोजन के पाचन में लार की भूमिका निम्नलिखित हैं –

(i) यह मुख के खोल में चिकनाई पैदा करती है जिससे चबाते समय रगड़ कम होती है।
(ii) यह भोजन को चिकना एवं मुलायम बनाती है।
(iii) यह भोजन को पचाने में मदद करती है।
(iv) इसमें एमिलेस नामक एक एंजाइम होता है जो मंड जटिल अणु को व लार को पूरी तरह मिला देता है।
(v) इसमें विद्यमान टायलिन नामक एंजाइम स्टार्च का पाचन कर उसे माल्टोज में बदल देता है।


9. कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे ?

उत्तर⇒ जीवों का शरीर कोशिकाओं का बना हुआ होता है एवं इसके जीवद्रव्य में विभिन्न प्रकार के अणुओं का समायोजन होता है। सजीव और निर्जीव पदार्थों में अणुओं के विन्यास व संयोजन या व्यवस्था का सबसे बड़ा अंतर होता है। जीवित पदार्थों में अणुओं का विशेष प्रकार से संयोजन होने के कारण ही जीवों का निर्माण संभव हो पाता है। जीवन का मुख्य आधार है जीवद्रव्य (Protoplasm) जो कि न्यूक्लियोप्रोटीन (nucleo protein) अणुओं के साथ अन्य तत्त्वों के अणुओं के संयोजन से बनता है। जीवद्रव्य में सजीवों के सारे गुण पाये जाते हैं। इसमें उपस्थित विभिन्न अणुओं की विशेष व्यवस्था एवं गति आणविक गति कहलाती है जो निर्जीवों में नदारद होती है। इन्हीं मापदंडों का उपयोग हम किसी वस्तु के सजीव होने में करेंगे।


10. बीजाणुजनन से क्या समझते हैं ? सचित्र समझाएँ।

उत्तर⇒बीजाणुजनन अलैंगिक जनन की एक उन्नत विधि है। यह मुख्य रूप से निम्न श्रेणी के जीवों जैसे—जीवाणु, शैवाल एवं कवक आदि में पाई जाती है। बीजाणुधानियाँ एक सूक्ष्म थैली जैसी संरचनाएँ हैं जो प्रतिकूल परिस्थिति में निर्मित होती है। इनके अंदर असंख्य गोलाकार सूक्ष्म जीवाणु या स्वोर का निर्माण होता है। प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे—उच्चतापमान, उच्च अम्लीयता या उच्च क्षारीयता सूखापन आदि में बीजाणुधानी के चारों ओर एक मोटे एवं कड़े आवरण का निर्माण हो जाता है। अनुकुल परिवेश में बीजाणु अंकुरित होने लगते हैं जिससे उनके भीतर की कोशिकीय रचनाएँ बाहर आ जाती हैं।बीजाणुजनन से क्या समझते हैं


11. पौधे अपना उत्सर्जी पदार्थ किस रूप में निष्कासित करते हैं ?

उत्तर⇒ पौधे अपना उत्सर्जन जंतुओं से बिलकुल भिन्न रूप में युक्ति अपनाकर करते हैं । प्रकाशसंश्लेषण में जनित ऑक्सीजन भी एक अपशिष्ट उत्पाद है । पौधे अतिरिक्त जल से वाष्पोत्सर्जन द्वारा छुटकारा पा सकते हैं । पौधे अपने कुछ उत्पाद जैसे-पत्तियों का क्षय भी कर सकते हैं । बहुत से पादप अपशिष्ट उत्पाद कोशिका रिक्तिका में संचित रखते हैं । पौधों से गिरने वाली पत्तियों में भी अपशिष्ट उत्पाद संचित रहते हैं । अन्य अपशिष्ट उत्पाद रेजिन तथा गोंद के रूप में विशेषतया पुराने जाइलम में संचित रहते हैं । पादप भी कुछ अपशिष्ट पदार्थों को अपने आसपास की मृदा में उत्सर्जित करते हैं।


12. रक्तदाब क्या है ?

उत्तर⇒ रुधिर वाहिकाओं की भित्ति के विरुद्ध जो दाब लगता है उसे रक्तदाब कहते हैं । यह दाब शिराओं की अपेक्षा धमनियों में बहुत अधिक होता है । धमनी के अंदर रुधिर का दाब निलय प्रकुंचन (संकुचन) के दौरान प्रकुंचन दाब तथा निलय अनुशिथिलन (शिथिलन) के दौरान धमनी के अंदर का दाब अनुशिथिलन दाब कहलाता है । सामान्य प्रकुंचन दाब लगभग 120mm (पारा) तथा अनुशिथिलन दाब लगभग 80mm (पारा) होता है।

चित्र: रक्त दाब


13. रक्त क्या है? इसके घटकों का वर्णन करें।

उत्तर⇒रक्त-रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है। यह लाल रंग का गाढ़ा क्षारीय (pH = 7.4) तरल पदार्थ है जो हृदय तथा रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होता है।
रक्त के दो प्रमुख घटक होते हैं – (1) प्लाज्मा (2) रक्त कोशिकाएँ ।

(1) प्लाज्मा—यह रक्त का तरल भाग है। यह हल्के पीले रंग का चिपचिपा द्रव है जो आयतन के हिसाब से परे रक्त का करीब 55 प्रतिशत होता है। प्लाज्मा में करीब 90% जल, 7% प्रोटीन, 0.9%, अकार्बनिक लवण, 0.18% ग्लूकोज, 0.5% वसा शेष अन्य कार्बनिक पदार्थ होते हैं।

(2) रक्त कोशिकार –यह रक्त का ठोस भाग है जो कल रक्त का करीब 45 प्रतिशत है।
जिसमें मुख्य रूप से तीन प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं –

(i) लाल रक्त कोशिकाएँ (R.B.C) – इसमें एक विशेष प्रकार का प्रोटीन वर्णक हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) पाया जाता है। जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है।

(ii) श्वेत रक्त कोशिकाएँ (W.B.C) – ये अनियमित आकार की न्यूक्लियस युक्त कोशिकाएँ हैं। इनमें हीमोग्लोबिन नहीं रहने के कारण रंगहीन होते हैं।

(iii) रक्त पट्टिकाणु – ये बिंबाणु या थ्रोम्बोसाइट्स भी कहलाते हैं। इसका प्रमुख कार्य रक्त को थक्का बनने में सहायक होना है।


14. मानव नेफ्रॉन का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाकर वर्णन करें।

उत्तर⇒प्रत्येक वृक्क में लगभग 10,00,000 वृक्क नलिकाएँ होती हैं जिसे नेफ्रॉन कहते हैं।
मानव नेफ्रॉन को निम्नलिखित प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है –

(i)बोमैन संपूट (Bowman’s Capsule) – यह वृक्क-नलिका के आरंभ में प्याले जैसी संरचना है जो कोशिका गुच्छ या Glomerulus नामक रक्त कोशिकाओं के एक जाल को घेरता है। Bowman’s capsule एवं Glomerulus को सम्मिलित रूप से Malpighian capsule कहते हैं।

(ii) कुंडलित नलिका – इसके दो प्रमुख भाग हैं— (क) हेनले का चाप (Henle’s loop), (ख) संग्राहक नलिका (Collecting tubule)

(iii) सामान्य संग्राहक नली (Common collecting duet) – जो अंत में मूत्र-वाहिनी से जुड़ा होता है। मानव नेफ्रॉन रक्त में मौजूद द्रव्य अपशिष्ट पदार्थों को मूत्र के रूप में निकालने में मदद करता है।

सामान्य संग्राहक नली


15.नलिकाओं द्वारा खाद पदार्थों का परिवहन को चित्र के द्वारा दर्शाएँ।

उत्तर⇒


16. मनुष्य में विभिन्न प्रकार की रक्त कोशिकाओं का चित्र बनाएँ।

उत्तर⇒

रक्त कोशिकाओं


17. प्रकाश-संश्लेषण क्रिया को कौन-कौन से कारक प्रभावित करने हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर⇒ प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को निम्न कारक प्रभावित करते हैं –

(i) प्रकाश – प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया सूर्य-प्रकाश में होती है, इसलिए । प्रकाश का प्रकार तथा उसकी तीव्रता इस क्रिया को प्रभावित करती हैं। प्रकाश की लाल एवं नीली किरणों तथा 100 फुट कैंडल से 3000 फुट कैंडल तक प्रकाश तीव्रता प्रकाश-संश्लेषण की दर को बढ़ाती है जबकि इससे उच्च तीव्रता पर यह क्रिया सका | जाती है।
in co2 वातावरण में Co2, की मात्रा 0.03% होती है। यदि एक सीमा तक Co2, की मात्रा बढ़ाई जाए तो प्रकाश-संश्लेषण दर भी बढ़ती है लेकिन अधिक होने से घटने लगती है।

(ii) तापमान प्रकाश-संश्लेषण के लिए 25-35°C का तापक्रम सबसे उपयुक्त होता है। इससे अधिक या कम होने पर दर घटती-बढ़ती रहती है।

(iv) जल – इस क्रिया के लिए जल एक महत्त्वपूर्ण यौगिक है। जल की कमी होने से प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है क्योंकि जीवद्रव्य की सक्रियता घट जाती है, स्टोमेटा बंद हो जाते हैं और प्रकाश संश्लेषण दर घट जाती है।

(v) ऑक्सीजन – प्रत्यक्ष रूप से ऑक्सीजन की सांद्रता से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित नहीं होती है लेकिन यह पाया गया है कि वायुमंडल में ), की मात्रा बढ़ने से प्रकाश-संश्लेषण की दर घटती है।


18. पौधों में प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया को सचित्र दर्शाइए।

उत्तर⇒प्रकाशसंश्लेषण एक जटिल जैव प्रक्रम है जिसमें हरे पौधे सूर्य के विकिरण ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं। हरी पत्तियों में अवस्थित क्लोरोफिल सूर्य के प्रकाश से उत्पन्न विकिरण ऊर्जा को अवशोषित कर इनके जल को H20एवं 02में विभक्त करती है। 02 रंधों द्वारा बाहर निकल जाता है। H2 C02 से संयोग कर ग्लूकोज बनाता है। इस प्रक्रम के दौरान तीन मुख्य रासायनिक घटनाएँ होती हैं –

(i) क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण
(ii) प्रकाश ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरण तथा जल अणुओं का हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में विघटन
(iii) कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन

कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन


19. प्रकाशसंश्लेषण के लिए पौधों को सूर्य की रोशनी की आवश्यकता होती है। प्रयोग द्वारा समझाइए।

उत्तर⇒उदेश्य – प्रकाशसंश्लेषण की अभिक्रिया में प्रकाश की अनिवार्यता प्रदर्शित करना।

आवश्यक उपकरण एवं सामग्री – गमला सहित एक स्वच्छ पौधा, गैनोंग का लाइटस्क्रीन अथवा काला कागज एवं क्लिप, चिमटी, त्रिपाद स्टैण्ड, तार की जाली, स्पिरिट लैम्प, पेट्रीडिश एवं बीकर, जल ऊष्मक, ऐल्कोहॉल एवं आयोडीन, माचिस।

सिद्धान्त – प्रकाशसंश्लेषण पौधों का एक महत्त्वपूर्ण जैविक प्रक्रम है जिसमें हरे पौधे अपनी पत्तियों में स्थित क्लोरोफिल की सहायता से वायुमंडलीय CO2, सूर्य का प्रकाश एवं जल (H2O) का उपयोग कर अपना भोजन (ग्लूकोज) संश्लेषित करते हैं।

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प्रकाशसंश्लेषण की अभिक्रिया में सूर्य का प्रकाश एक महत्त्वपूर्ण घटक है।

कार्यविधि –
(i) दो-तीन दिनों तक आप एक गमले को स्वच्छ पौधे के साथ अंधेरे में रखें। इससे उसकी पत्तियाँ पूरी तरह से स्टार्च रहित हो जाएगी।
(ii) इस पौधे के किसी एक पत्ती के बीचों-बीच का भाग गैनोंग लाइटस्क्रीन अथवा काला कागज द्वारा अच्छी तरह से ढंक दें।
(iii) अब इस पूरे गमले को 3-4 घंटों तक सूर्य के प्रकाश में छोड़ दें।
(iv) ढंकी हुई पत्ती को तोड़कर हटाने के उपरान्त गैनोंग का लाइटस्क्रीन या काला कागज हटा दें।
(v) अब इस पत्ती को बीकर में रखे पानी में लगभग 10 मिनट तक अच्छा तरह उबालें।
(vi) अब एक दूसरे बीकर में ताजा ऐल्कोहॉल लें तथा उबली हुई पत्ता का इसमें पूरी तरह डूबो दें।
(vii) अब ऐल्कोहॉल वाले बीकर को जलऊष्मक पर लगभग 15 मिनट तक अच्छी तरह उबालें। इससे पत्ती का संपूर्ण क्लोरोफिल बाहर निकल जाएगा तथा पत्ती रंगहीन हो जाएगी ।
(viii) पत्ती को ऐल्कोहॉल से निकालकर स्वच्छ जल से धो लें तथा पेट्रीडिश से सारा जल गिरा दें। अब इस पत्ते पर आयोडीन का विलयन डालें तथा रंग परिवर्तन का ध्यानपूर्वक देखें।

पत्ती को ऐल्कोहॉल से निकालकर स्वच्छ जल से धो लें


20. प्रायोगिक विवरण द्वारा बताएँ कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है।

उत्तर⇒ उद्देश्य प्रयोग द्वारा यह दर्शाना कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है।

आवश्यक उपकरण एवं सामग्री – एक बीकर, test tube, funnel और एक जलीय पौधे जैसे—हाइड्रिला।

सिद्धांत – प्रकाश संश्लेषण एक जैव रासायनिक प्रक्रिया है, जिसमें पौधे सूर्य के प्रकाश और क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बनडाइऑक्साइड (CO2) और जल (H2O) का उपयोग कर अपना भोजन (ग्लूकोस) का निर्माण करते हैं।

पत्ती को ऐल्कोहॉल से निकालकर स्वच्छ जल से धो लें

इस प्रक्रिया के अंत में ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है।

कार्यविधि –
(i) एक बीकर में 2/3 भाग पानी लेंगे।
(ii) हाइड्रिला के पौधे को पानी में डाल देंगे और उसे Funnel से ढंक देंगे।
(iii) एक test tube में पानी भरकर उसे funnel के ऊपर उल्टा रख देंगे।
(iv) इस पूरे उपकरण को सूर्य की रोशनी में रख देंगे।

अवलोकन –
(i) कुछ समय के बाद हम पाते हैं कि हाइड्रिला के कटे हुए भाग से गैस का बुलबुला निकल रहा है जो Test tube के ऊपरी भाग में एकत्रित हो रहा है। जिसके कारण पानी का स्तर test tube में नीचे की ओर चला जाता है।
(ii)एकत्रित गैस ऑक्सीजन है अथवा नहीं, इसे जानने के लिए जलती हुई माचिस की तीली ले जाते हैं तो हम पाते हैं कि तीली तेजी से जलने लगती है।

निष्कर्ष – इस प्रयोग से साबित होता है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है।

अवलोकन

चित्र: प्रकाश संश्लेषणकी क्रिया से ओक्सीजन गैस मुक्त होती है ।


21. स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है ?

उत्तर⇒ स्तनधारी तथा पक्षियों का हृदय चार वेश्मी होता है। ऊपरी दो कक्ष दायाँ व बायाँ अलिन्द तथा निचले दोनों कक्ष दाहिना व बायाँ निलय कहलाते हैं। दाहिने अलिन्द में शरीर से आनेवाला अशुद्ध रुधिर एकत्र होता है जबकि बाएँ अलिन्द में फेफड़ों से आनेवाला शुद्ध रक्त एकत्र होता है। इस प्रकार से शुद्ध रुधिर व अशुद्ध रुधिर आपस में मिल नहीं पाते। रुधिर के दोनों प्रकार के न मिलने से ऑक्सीजन का वितरण सही तरीके से संभव हो पाता है। इस प्रकार का रुधिर संचरण विशेष रूप से उन जंतुओं के लिए अधिक लाभदायी है जिन्हें दैनिक कार्यों के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा की अधिक आवश्यकता शरीर के तापक्रम को सम बनाए रखने के लिए होती है।


22. वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अंतर जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है।

अथवा, ऑक्सी एवं अनॉक्सी श्वसन में अन्तर लिखें एवं अनॉक्सी श्वसन की क्रियाविधि लिखें।

उत्तर ⇒

वायवीय श्वसन अवायवीय श्वसन
(i) खाद्य पदार्थों के विश्लेषण के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। (i) इस प्रकार के श्वसन में ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती।
(ii) कोशिका के कोशिका द्रव्य में वाली क्रिया ग्लाइकोलिसिस कहलाती है जबकि माइटोकॉण्ड्यिा में होने वाली श्वसनीय क्रियाक्रैब चक्र कहलाती है। (ii) यह क्रिया केवल कोशिका द्रव्य में होने ही होती है।
(iii) इस क्रिया में 38 ATP अणु निर्मित होते हैं। (iii) इस क्रिया में A.T.P के केवल दो अणु ही बनते हैं।
(iv) इस क्रिया में अन्तिम उत्पाद CO2तथा जल होता है। (iv) इस क्रिया के अन्तिम उत्पाद इथाइल ऐल्कोहॉल तथा कार्बन डाइऑक्साइड है।
(v) यह क्रिया सभी जीवधारियों में पायी जाती है (v) यह क्रिया कुछ ही जीवधारियो जी पायी जाती है।
(vi) इस क्रिया में खाद्य पदार्थ का पूर्णरूप से अपचयन होता है। (vi) इस क्रिया में भोजन रूप से अपचयन होता है।

23. डायलिसिस की प्रक्रिया को चित्र सहित समझाएँ।

उत्तर⇒कई बार विपरीत परिस्थितियों के कारण गुर्दे अपना कार्य सही ढंग से नहीं कर पाते हैं। शरीर में बनने वाला यूरिया तथा अन्य उत्सर्जी पदार्थों को यह रक्त से छानने में समर्थ नहीं होते जिससे रक्त में विषैले पदार्थ बढ़ने लगते हैं। तब हम डायलिसिस यंत्र का प्रयोग करना पड़ता है जिससे रक्त का शुद्धिकरण किया जाता है। इस यंत्र में रक्त सेलोफोन झिल्ली की बनी नलिकाओं में बहता है। इन नलिकाआ के बाहर रक्त का समपरासी लवण द्रव को बहाया जाता है। तब नलिकाओं के अंदर बहते रक्त से उत्सर्जी पदार्थ अलग होकर यंत्र के द्रव में आ जाते हैं और रक्त यूरिया व अन्य उत्सर्जी पदार्थों से मुक्त हो जाता है। इस क्रिया के बाद रक्त को शरीर में वापस भेज दिया जाता है ।

रक्त कोशिकाओं


24. मधुमेह के कुछ रोगियों की चिकित्सा इंसलिन का इंजेक्शन देकर क्यों की जाती है ?

उत्तर⇒ यह अति आवश्यक है कि हॉर्मोन का स्रावण परिशुद्ध मात्रा में हो। इसके लिए एक सही क्रियाविधि की आवश्यकता होती है जिससे यह कार्य संपन्न हो। स्रावित होने वाले हॉर्मोन का समय और मात्रा का नियंत्रण पुनर्भरण क्रियाविधि (leedback mechanism) द्वारा किया जाता है। इसलिए इससे रुधिर में शर्करा स्तर बढ़ जाता है तो इसे अग्न्याशय (pancreas) की कोशिका संसूचित कर लेती है तथा इसकी अनुक्रिया में अधिक इंसुलिन नावित करती है। जब रुधिर में शर्करा स्तर कम हो जाता है तो इंसुलिन का स्रवण कम हो जाता है। अग्न्याशय (pancreas) की कोशिकाएँ-लैंगरहैंस द्वीपिकाओं (Islets of Langerhans) के हॉर्मोन रक्त में ग्लूकोज की उचित मात्रा को जब नहीं नियंत्रित कर पाते तब मधुमेह नामक रोग हो जाता है। इसीलिए रक्त में ग्लूकोज की उचित मात्रा हेतु कुछ रोगियों को मधुमेह में इंसुलिन का इंजेक्शन देकर चिकित्सा की जाती है।


25. फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिये।

उत्तर⇒ फुफ्फुस की कूपिकाओं की व वृक्क में वृक्काणु की रचना तथा क्रियाविधि का तुलनात्मक अंतर –

फुफ्फुस की कूपिका वृक्क के वृक्काणु
(i) एक वयस्क फुफ्फुस में लगभग 30 करोड़ कूपिकाएँ होती है। (i) एक वृक्क में लगभग दस लाख वृक्काणु है।
(ii) कूपिकाएँ गैसीय विनिमय के लिए वृहद् सतह बनाती हैं। (ii) वृक्काणु रुधिर को शुद्ध करने लिए एक वृहद् सतह बनाती हैं।
(iii) कूपिकाओं में फैली हुई रुधिर कोशिकाओं के जाल से CO2 और 02 का आदान – प्रदान होता है। (iii) वृक्काणु के बोमैन संपुट में रुधिर छनता है जिसमें कि जल और लवणों की सांघ्रता का नियमन होता है।

26. (i) अत्यधिक व्यायाम के दौरान खिलाड़ी के शरीर में क्रैंप होने लगता है। क्यों ?
      (ii) जब एड्रिनलीन हारमोन रुधिर में मिल जाता है, तो शरीर में क्या अनुक्रिया होती है ?

उत्तर⇒ (i) अत्यधिक व्यायाम के समय खिलाड़ियों की मांसपेशियों में कैम्प होने का कारण यह है कि अत्यधिक व्यायाम के कारण मांसपेशियों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिससे ग्लूकोज के विघटन से प्राप्त प्रथम उत्पाद पायरुवेट तीन कार्बन युक्त लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है । इसी लैक्टिक अम्ल.के मांसपेशियों में एकत्रित होने के कारण क्रेम्प उत्पन्न होने लगते हैं।

(ii) एड्रीनलीन रुधिर में स्रावित हो जाता हैं और शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचा दिया जाता है । हृदय सहित, अन्य अंगों तक तथा विशिष्ट ऊतकों पर यह कार्य करता है । इस कारणवश हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, ताकि हमारी पेशियों में अधिक ऑक्सीजन की आपूर्ति हो सके। पाचन तंत्र तथा त्वचा में रुधिर की आपूर्ति कम हो जाती है, क्योंकि इन अंगों की छोटी धमनियों के आसपास की पेशियाँ सिकुड़ जाती हैं । यह रुधिर की दिशा हमारी कंकाल पेशियों की ओर कर देता है। डायफ्राम तथा पसलियों की पेशी के संकुचन से श्वसन दर भी बढ़ जाती है। यह सभी अनुक्रियाएँ मिलकर जंतु शरीर को स्थिति से निपटने के लिए तैयार करती हैं। ये जंतु हॉर्मोन अंतःस्रावी ग्रंथियों का भाग हैं जो हमारे शरीर में नियंत्रण एवं समन्वय का दूसरा मार्ग है।


27. मनुष्य के कतर्नक दाँत का चित्र बनाएँ।

उत्तर⇒
मनुष्य के कतर्नक दाँत का चित्र बनाएँ

 

 

 

 

 

 


28. मानव हृदय का एक स्वच्छ नामांकित चित्र बनाएँ। वर्णन की आवश्यकता नहीं है।

उत्तर⇒


चित्र: मनुष्य के हृदय की आंतरिक रचना
चित्र: मनुष्य के हृदय की आंतरिक रचना


29. अमीबा में पोषण की प्रक्रिया को चित्र के साथ समझाइए।

उत्तर⇒अमीबा में भोजन का अंतर्ग्रहण शरीर की किसी भी सतह से हो सकता है। अमीबा का शरीर जैसे ही किसी भोजन के संपर्क में आता है, उस दिशा में कूटपाद (Pseudopodia) तेजी से बढ़ने लगते हैं, तथा भोजन को चारों तरफ घेर लेते हैं।

 चित्र अमीबा में अपचे भोजन का बहिष्करण

धीरे-धीरे कूटपादों के शीर्ष तथा पार्श्व आपस में युग्मित हो जाते हैं तथा एक पर्ण भोजन रसधानी का निर्माण होता है। अमीबा में अंतः कोशिकीय पाचन होता बीपचा हआ भोज्य पदार्थ भोजन रसधानी से कोशिका द्रव्य में विसरित हो जाता है तथा पूरे शरीर में स्वांगीकृत हो जाता है


30: मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?

उत्तर⇒ श्वसन की दो अवस्थाएं प्रश्वास (inspiration) तथा उच्छवास (expiration) मिलकर श्वासोच्छ्वास (breathing) कहलाते हैं। प्रश्वास द्वारा वायमंडलीय हवा नासिका तथा श्वसन से होती हुई फफड़ों की वायु कोष्ठिकाओं में पहुँच जाती के विभिन्न भागों में अनाक्साकृत रक्त (deoxygenated blood) पहले हृदय में पहुंचता है जहाँ से इसे फेफड़े में भेज दिया जाता है। यह रक्त शिरीय रक्त (Tvenous blood) भी कहलाता ह। शिराय रक्त फेफडे की वाय कोशिकाओं के चारों ओर स्थित रक्त कोशिकाओं में पहुंच जाता है। रक्त कोशिकाओं में शिरीय रक्त में वायमण्डलीय हवा से जो कि वायु कोष्ठिकाओं में होता है, ऑक्सीजन की मात्रा बहत कम होती है। अतः यहाँ ऑक्सीजन का आंशिक दबाव बहत अधिक होता है जिसके फलस्वरूप ऑक्सीजन का विसरण (diffusion) वाय कोष्ठिकाओं से शिरीय रक्त में हो जाता है। यहाँ लाल रुधिर कोशिकाओं (RBC) के हीमोग्लोबिन (haemoglobin) ऑक्सीजन से संयोजन कर ऑक्सीहीमोग्लोबिन (oxyhaemoglobin) परिवर्तित हो जाते हैं और यह रुधिर संचरण द्वारा शरीर के विभिन्न भागा मस्थित कोशिकाओं में पहुँच जाते हैं। ऑक्सीहीमोग्लोबिन पुनः टूटकर हीमोग्लोबिन और ऑक्सीजन बनाता है। यह ऑक्सीजन भोजन अणुओं को ऑक्सीकृत कर ऊर्जा उत्पादन करता है। इधर उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड विसरण द्वारा कोशाओं से रुधिर कोशिकाआ के रक्त में पहुँचता है। यह रुधिर के हीमोग्लोबिन से संयोजन कर कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन (carboxyhaemoglobin) बनाते हैं जो परिसंचरण द्वारा इसी रूप में फेफड़ों में पहँचता है। फेफड़ों की शिरीय रुधिर कोशिकाओं में कार्बन डाइऑक्साइड के आंशिक दबाव अधिक होने के कारण इसका विसरण वायु कोष्ठिकाओं में हो जाता है। यहाँ से उच्छ्वास द्वारा इसे श्वासनली तथा नासिका द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।

ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के परिवहन तथा विनिमय का व्यवस्थात्मक निरूपणचित्र: ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के परिवहन तथा विनिमय का व्यवस्थात्मक निरूपण


31. रक्त और लसिका में अंतर लिखें।

उत्तर⇒ रक्त और लसिका में निम्नलिखित अंतर हैं-

रक्त (Blood) लसीका (Lymph)
(i) रक्त का रंग लाल होता है। (i) लसीका रंगहीन या हल्के पीले रंग की होती है।
(ii) रक्त में लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC) पाई जाती हैं। (ii) लसीका में लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC) नहीं पाई जाती हैं।
(iii) रक्त वाहिनियाँ में प्रवाहित होती है। (iii) लसीका कोशिकाओं के बीच स्थित स्थानों में प्रवाहित होती है।
(iv) रक्त में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है। (iv) लसीका में रक्त की अपेक्षा प्रोटीन की मात्रा कम होती है।

 


32. उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं ?

उत्तर⇒ पौधों में उत्सर्जन के लिए विभिन्न तरीके होते हैं । जैसे-

(i) श्वसन क्रिया से निष्कासित कार्बन डाइऑक्साइड गैस व प्रकाशसंश्लेसन से निष्कासित ऑक्सीजन गैस विसरण क्रिया द्वारा पत्तियों के रंध्रो एवं अन्य भागों में स्थित वातरंध्रों द्वारा उत्सर्जित होती है।

(ii) बहुत से पौधे कार्बनिक अपशिष्टों या उत्सर्जी पदार्थों को बनाते हैं जो उनकी मृत कोशिकाओं (जैसे-अंतः काष्ठ) में संचयित रहते हैं। जैसे—रेजिन एवं गोंद पुराने जाइलम में होता है।

(iii) कुछ पधि उत्सर्जी पदार्थों को अपनी पत्तियों व छाल में भी संचित करते हैं। जैसे-टैनिन वृक्षों की छाल में संचित रहता है।

(iv) कुछ पौधों में उत्सर्जी पदार्थ गाढे, दधिया तरल के रूप में संचित रहता है जिसे लैटेक्स (latex) कहते हैं। उदाहरण पीपल, बरगद, कनेर इत्यादि।
(v) जलीय पौधे उत्सर्जी पदार्थों को विसरण द्वारा सीधे जल में निष्कासित करते हैं।


33. जल-संतुलन क्या है ? यह मनष्य में कैसे होता है ?

उत्तर⇒ शरीर में जल की संतुलित मात्रा का होना भी अनिवार्य है। शरीर में जल की मात्रा का संतुलन जिस क्रिया के द्वारा होता है, उसे ‘जल-संतुलन’ कहते हैं।
वृक्क शरीर के उत्सर्जन के साथ-साथ शरीर के प्रयोजन के अनुसार मूत्र को हाइपोटॉनिक या हाइपरटोनिक बनाकर जल तथा लवणों की मात्रा का नियंत्रण करता है, क्योंकि जब शरीर में जल की मात्रा अधिक हो जाती है तब वृक्क को हाइपोटोनिक मूत्र त्याग करना होता है। जब शरीर में जल-संरक्षण करना होता है, तब इसे हाइपरटोनिक मूत्र त्याग करना होता है। यह क्रिया वृक्क के द्वारा संपन्न होती है।


34. ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से विभिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न मार्ग क्या हैं ?

उत्तर⇒ ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने की दो परिस्थितियाँ संभव हैं –
(i) अवायवीय (anaerobic)-ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ।
(ii) वायवीय (aerobic)-ऑक्सीजन की उपस्थिति में ।

सर्वप्रथम, इसे समझने के लिए हम एक चार्ट की मदद ले सकते हैं

ऑक्सीजन का

सभी अवस्थाओं में पहला चरण ग्लूकोज, एक छ: कार्बन वाले अणु का तीन कार्बन वाले अणु पायरुवेट में विखंडन है। यह प्रक्रम कोशिकाद्रव्य में होता है । इसके पश्चात् पायरुवेट इथेनॉल तथा कार्बन डायऑक्साइड में बदल सकता है । यह प्रक्रिया किण्वन के समय होता है व वायु (ऑक्सीजन) की अनुपस्थिति में होता है। इसे इसलिए अवायवीय (anaerobic) श्वसन कहते हैं। पायरुवेट का विखंडन ऑक्सीजन का उपयोग करके माइट्रोकोण्ड्रिया में होता है । चूँकि यह वायु की उपस्थिति में होता है, इसलिए इसे वायवीय (aerobic) श्वसन कहते हैं । कोशिकीय श्वसन द्वारा मोचित ऊर्जा तत्काल ही ए०टी०पी० (ATP) नामक अणु के संश्लेषण में प्रयुक्त हो जाती है जो कि अन्य क्रियाओं के लिए ईंधन की तरह प्रयुक्त होती है।

35. जीवधारियों में पोषण की आवश्यकता क्यों होती है ? कोई पाँच कारण लिखिए ।

उत्तर ⇒ वह विधि जिसके द्वारा पोषक तत्वों को ग्रहण कर उसका उपयोग करते हैं पोषण कहलाता है।

जीवधारियों में पोषण की आवश्यकता निम्नलिखित कारण से जरूरी है –

(i) ऊर्जा – पोषण से जीवों को ऊर्जा की वाद्य आपूर्ति होना आवश्यक है, नहीं तो जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

(ii) जैविक क्रियाओं – जैविक क्रियाओं के संपादन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा की प्राप्ति पोषण के द्वारा होता है।

(iii) कोशिकाओं के निर्माण एवं मरम्मत – नई कोशिकाओं और ऊतकों के निर्माण एवं ऊतकों की टूट-फूट की मरम्मत हेतु नये जैव पदार्थों का संश्लेषण भी भोजन के द्वारा ही प्राप्त होता है।

(iv) स्व-पोषण – स्व-पोषण में जीव सरल अकार्बनिक तत्वों से प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम द्वारा अपने भोजन का संश्लेषण स्वयं करते हैं।

(v) पर-पोषण-पर –पोषण में जीव अपना भोजन अन्य जीवों से जटिल और ठोस पदार्थ के रूप में प्राप्त करते हैं।


36. मनष्य के उत्सर्जी तंत्र का सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ वृक्क एवं इसके अनेक सहायक अंग मनुष्य के उत्सर्जी तंत्र कहते हैं वृक्क उत्सर्जन तंत्र का प्रमुख अंग है जो केवल उत्सर्जीवायवीय श्वसन (ऑक्सी श्वसन)—इस प्रकार के श्वसन में अधिकांश प्राणी ऑक्सीजन का उपयोग करके  पदार्थों को उपयोग पदार्थों से छानकर अलग कर देता है । वृक्क भूरे रंग का, सेम के बीज के आकारकी संरचनाएँ हैं, जो कि उदरगुहा में कशेरूक दंड के बायाँ वृक्क धमनी दोनों तरफ होती है। प्रत्येक वृक्क लगभग 10 सेमी लंबा, 6 सेमी चौड़ा और 2.5 सेमी० बायाँ वृक्क मोटा होता है । यकृत की वजह बायीं वृक्क शिरा से दायाँ वृक्क का बाहरी महाधमनी किनारा उभरा हुआ होता है बायीं जबकि भीतरी किनारा सा महाशिरा मूत्रवाहिनी होता है जिसे हाइलम कहते हैं और इसमें से मूत्र नलिका निकलती है। मूल नलिका जाकर एक पेशीय थैले जैसी (शिश्न में) संरचना में खुलती है जिसे मूत्राशय कहते हैं।

 


37. ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं ?

उत्तर ⇒ श्वसन एक जटिल पर अति आवश्यक प्रक्रिया है । इसमें ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है तथा ऊर्जा मुक्त करने के लिए खाद्य का ऑक्सीकरण होता है।

C6H120+60→ 6C02 +6H20 + ऊर्जा

श्वसन एक जैव रासायनिक प्रक्रिया है । श्वसन क्रिया दो प्रकार की होती है—

(i) वायवीय श्वसन (ऑक्सी श्वसन) – इस प्रकार के श्वसन में अधिकांश प्राणी ऑक्सीजन का उपयोग करके श्वसन करते हैं। इस प्रक्रिया में ग्लूकोज पूरी तरह से कार्बन डाइऑक्साइड और जल में विखंडित हो जाता है।

वायवीय श्वसन (ऑक्सी श्वसन)—इस प्रकार के श्वसन में अधि

चूँकि यह प्रक्रिया वायु की उपस्थिति में होती है, इसलिए इसे वायवीय श्वस कहते हैं।

(ii) अवायवीय श्वसन (अनॉक्सी श्वसन) –यह श्वसन प्रक्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होती है । जीवाणु और यीस्ट इस क्रिया से श्वसन करते हैं। इस प्रक्रिया में इथाइल ऐल्कोहॉल CO, तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है।

इड और जल में विखंडित हो जाता है।

(iii) ऑक्सीजन की कमी हो जाने पर कभी – कभी हमारी पेशी कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। पायरूवेट के विखंडन के लिए दूसरा रास्ता अपनाया जाता है। तब पायरूवेट एक अन्य तीन कार्बन वाले अणु लैक्टिक अम्ल में बदल जाता है। इसके कारण कैम्प हो जाता है।
अवायवीय श्वसन (अनॉक्सी श्वसन) -यह श्वसन प्रक्रिया ऑक्सीजन की अ


38. मनुष्य के हृदय की संरचना और क्रिया विधि समझाइए।

उत्तर ⇒
मनुष्य के हृदय की संरचना और क्रिया विधि समझाइए।

संरचना – मनुष्य का हृदय चार भागों में कोष्ठों में बँटा रहता है-अग्र दो भाग आलिंद कहलाते हैं। इनसे एक बायाँ आलिंद तथा दूसरा दायाँ आलिंद होता है। पश्व दो भाग निलय कहलाता है जिनमें एक बायाँ निलय तथा दूसरा दायाँ निलय होता है । बाँयें आलिंद एवं बाँयें निलय के बीच त्रिवलनी कपाट तथा दाएँ आलिंद एवं दाएँ निलय के बीच त्रिवलीन कपाट होते हैं। ये वाल्व निलय की ओर खुलते हैं । बाएँ निलय का संबंध अर्द्धचंद्राकार द्वारा महाधमनी से तथा दाएँ निलय का संबंध अर्द्धचंद्राकार कपाट द्वारा फुफ्फुस धमनी से होता है। दाएँ आलिंद से महाशिरा आकर मिलती है तथा बाएँ आलिंद से फुफ्फुस शिरा आकर मिलती है।

हृदय की क्रियाविधि – हृदय के आलिंद व निलय में संकुचन व शिथिलन दोनों क्रियाएँ होती हैं। यह क्रियाएँ एक निश्चित क्रम में निरंतर होती हैं। हृदय की एक धड़कन या स्पंदन के साथ एक कर्डियक चक्र पूर्ण होता है।

एक चक्र में निम्नलिखित चार अवस्थाएँ होती हैं –

(i) शिथिलन –इस अवस्था में दोनों आलिंद शिथिलन अवस्था में रहते हैं और रुधिर दोनों आलिंदों में एकत्रित होता है।

(i) आलिंद संकुचन – आलिंदों के संकुचित होने को आलिंद संकुचन कहते हैं । इस अवस्था में आलिंद निलय कपाट खुल जाते हैं और आलिंदों से रुधिर निलयों में जाता है। दायाँ आलिंद सदैव बाँयें आलिंद से कुछ पहले संकुचित होता है।

(iii) निलय संकुचन – निलयों के संकुचन को निलय संकुचन कहते हैं, जिसके फलस्वरूप आलिंद-निलय कपाट बंद हो जाते हैं एवं महाधमनियों के अर्द्धचंद्राकार कपाट खुल जाते हैं और रुधिर महाधमनियों में चला जाता है।

(iv) निलय शिथिलन – संकुचन के पश्चात् निलयों में शिथिलन होता है और अर्द्धचंद्राकार कपाट बंद हो जाते हैं। निलयों के भीतर रुधिर दाब कम हो जाता है जिससे आलिंद निलय कपाट खुल जाते हैं।


39. मनुष्यों में पाचन की प्रक्रिया का विवरण दीजिए।

उत्तर ⇒ मनुष्यों में पाचन क्रिया मनुष्य की पाचन क्रिया निम्नलिखित चरणों में विभिन्न अंगों में पूर्ण होती है

(i) मुखगुहा में पाचन – मनुष्य मुख के द्वारा भोजन ग्रहण करता है । मुख में स्थित दाँत भोजन के कणों को चबाते हैं जिससे भोज्य पदार्थ छोटे-छोटे कणों में विभक्त हो जाता है। लार-ग्रंथियों से निकली लार भोजन में अच्छी तरह से मिल जाती है। लार में उपस्थित एंजाइम भोज्य पदार्थ में उपस्थित मंड (स्टार्च) को शर्करा (ग्लूकोज) में बदल देता है। लार भोजन को लसदार चिकना और लुग्दीदार बना देती है, जिससे भोजन ग्रसिका में से होकर आसानी से आमाशय में पहुंच जाता है ।

(ii) आमाशय में पाचन क्रिया – जब भोजन आमाशय में पहुँचता है तो वहाँ भोजन का मंथन होता है जिससे भोजन और छोटे-छोटे कणों में टूट जाता है। भोजन में नमक का अम्ल मिलता है जो माध्यम को अम्लीय बनाता है तथा भोजन को सडने से रोकता है। आमाशयी पाचक रस में उपस्थित एंजाइम प्रोटीन को छोटे-छोटे अणुओं में तोड़ देते हैं।

आमाशय में पाचन क्रिया - जब भोजन आमाशय में पहुँचता है

(iii) ग्रहणी में पाचन – आमाशय में पाचन के बाद जब भोजन ग्रहणी में पहुँचता है तो यकृत में आया पित्त रस भोजन से अभिक्रिया करके वसा का पायसीकरण कर देता है तथा माध्यम को क्षारीय बनाता है जिससे अग्नाशय से आये पाचक रस में उपस्थित एंजाइम क्रियाशील हो जाते हैं और भोजन में उपस्थित प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं वसा का पाचन कर देते हैं।

(iv) क्षुद्रात्र में पाचन – ग्रहणी में पाचन के बाद जब भोजन क्षुद्रांत्र में पहुँचता है तो वहाँ आंत्र रस में उपस्थित एंजाइम बचे हुए अपचित प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा का पाचन कर देते हैं। आस्त्र की विलाई द्वारा पचे हुए भोजन का अवशोषण कर लिया जाता है तथा अवशोषित भोजन रक्त में पहुंचा दिया जाता है।

(v) बड़ी आंत्र (मलाशय) में पाचन – क्षुद्रांत्र में भोजन के पाचन एवं अवशोषण के बाद जब भोजन बडी आंत्र में पहुँचता है तो वहाँ पर अतिरिक्त जल का अवशोषण कर लिया जाता है. बडी आंत्र में भोजन का पाचन नहीं होता। भोजन का अपाशष्ट (अतिरिक्त) भाग यहाँ पर एकत्रित होता रहता है तथा समय-समय पर मल द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।


40. स्टोमेटा के खुलने और बंद होने की प्रक्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ रुधिरों का खुलना एवं बंद होना रक्षक कोशिकाओं की सक्रियता पर निर्भर करता है। इसकी कोशिका भित्ति असमान मोटाई की होती है। जब यह कोशिका स्फीति दशा में होती है तो छिद्र खलता है व इसके ढीली हो जाने पर यह बंद हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि द्वार कोशिकाएं आस-पास की कोशिकाओं से पानी को अवशोषित कर स्फीति की जाती है। इस अवस्था में कोशिकाओं में पतली भित्तियां फैलती हैं, जिसके कारण छिद्र के पास मोटी भित्ति बाहर का और खिंचती है, फलतः रंध्र खल जाता है। जब इसमें पानी की कमी हो जाती है तो तनाव मुक्त पतली भित्ति पनः अपनी पुरानी अवस्था में आ जाता है, फलस्वरूप छिद्र बंद हो जाता है।
प्रकाश-संश्लेषण के दौरान पत्तियों में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर गिरता जाता है और शर्करा का स्तर रक्षक कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में बढ़ता जाता है। फलस्वरूप परासरण दाब और स्फीति दाब में परिवर्तन हो जाता है । इससे रक्षक कोशिकाओं में एक कसाव आता है जिससे बाहर की भित्ति बाहर की ओर खिंचती है। इससे अंदर की भित्ति भी खिंच जाती है। इस प्रकार स्टोमेटा चौड़ा हो जाता है अर्थात् खुल जाता है।
अंधकार में शर्करा स्टार्च में बदल जाती है जो अविलेय होती है। रक्षक कोशिकाओं को कोशिका द्रव्य में शर्करा का स्तर गिर जाता है। इससे रक्षक कोशिकाएँ ढीली पड़ जाती हैं। इससे स्टोमेटा बंद हो जाता है।

है। इससे रक्षक कोशिकाएँ ढीली पड़ जाती हैं। इससे स्टोमेटा बंद हो जाता है।


41. मानव श्वसन तंत्र का सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒– मानव के श्वसन तंत्र का कार्य शुद्ध वायु को शरीर के भीतर भोजन तथा अशुद्ध वायु को बाहर निकलना हैं।

इसके प्रमुख भाग निम्नलिखित हैं –

(i) नासाद्वार एवं नासागहा – नासाद्वार से वायु शरीर के भीतर प्रवेश करती है । नाक में छोटे-छोटे और बारीक बाल होते हैं जिनसे वायु छन जाती है। उसकी धूल उनसे स्पर्श कर वहीं रुक जाती है इस मार्ग में श्लेष्मा की परत इस कार्य में सहायता करती है। वायु नम हो जाती है। ..

(ii) ग्रसनी – ग्रसनी ग्लॉटिस नामक छिद्र से श्वासनली में खुलती है। जब हम भोजन करते हैं तो ग्लॉटिस त्वचा के एक उपास्थियुक्त कपाट एपिग्लाटिस से ढंका रहता है।

(iii) श्वास नली – उपास्थित से बनी हुई श्वासनली गर्दन से नीचे आकर श्वसनी बनाती है। यह वलयों से बनी होती है तो सुनिश्चित करते हैं कि वायु मार्ग में रुकावट उत्पन्न न हो।

(iv) फुफ्फुस – फुफ्फुस के अंदर मार्ग छोटी और छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाते हैं जो गुब्बारे जैसी रचना में बदल जाता है। इसे कूपिका कहते हैं। कूपिका एक सतह उपलब्ध कराती है जिससे गैसों का विनिमय हो सकता है। कूपिकाओं । की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का विस्तीर्ण जाल होता है।

(v) कार्य – जब हम श्वास अंदर लेते हैं, हमारी पसलियाँ ऊर उठती हैं और १. हमारा डायाफ्राम चपटा हो जाता है। इससे वक्षगुहिका बड़ी हो जाती है और वायु फुफ्फुस के भीतर चूस ली जाती है । वह विस्तृत कूपिकाओं को ढक लेती है । रुधिर शेष शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड कूपिकाओं में छोड़ने के लिए लाता है। कूपिका

रुधिर वाहिका का रुधिर कूपिका वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है । श्वास चक्र के समय जब वायु अंदर और बाहर होती । है, फफ्फस सदैव वायु का विशेष आयतन रखते हैं जिससे ऑक्सीजन के अवशोषण । तथा कार्बन डाइऑक्साइड के मोचन के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।


42. पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है ?

अथवा, पादप में भोजन का स्थानांतरण कैसे होता है ?

उत्तर ⇒ पादप शरीर के निर्माण के लिए आवश्यक जल और खनिज लवणा को अपने निकट विद्यमान मिट्टी से प्राप्त करते हैं

(i) जल – हर प्राणी के लिए जल जीवन का आधार है। पौधों में जल जाइलम ऊतकों के द्वारा अन्य भागों में जाता है। जड़ों में धागे जैसी बारीक रचनाओं की बहुत बड़ी संख्या होती है। इन्हें मलरोम कहते हैं। ये मिटटी में उपस्थित पानी से साध संबंधित होते हैं । मलरोग में जीव द्रव्य की सांद्रता मिटटी में जल के घोल की अपक्षा आधक होती है । परासरण के कारण पानी मलरोमों में चला जाता है पर इसस मूलराम के जीव द्रव्य की सांद्रता में कमी आ जाती है और वह अगली कोशिका म चला जाता है। यह क्रम निरंतर चलता रहता है जिस कारण पानी जाइलम वाहिकाओं में पहुँच जाता है। कुछ पौधों में पानी 10 सेमी. से 10) सेमी प्रति मिनट की गति से ऊपर चढ़ जाता है ।

पादप शरीर के निर्माण के लिए आवश्यक जल और(ii) खनिज – पेड़-पौधों को खनिजों की प्राप्ति अजैविक रूप में करनी होती है। नाइट्रेट, फॉस्फेट आदि पानी में घुल जाते हैं और जड़ों के माध्यम से पौधों में प्रविष्ट हो जाते हैं। वे पानी के माध्यम से सीधा जड़ों से संपर्क में रहते हैं। पानी । और खनिज मिलकर जाइलम ऊतक में पहुँच जाते हैं और वहाँ से शेष भागों में चले जाते हैं। जल तथा अन्य खनिज-लवण जाइलम के दो प्रकार के अवयवों वाहिनिकाओं एवं वाहिकाओं से जड़ों से पत्तियों तक पहुंचाए जाते हैं। ये दोनों मृत तथा स्थूल कोशिका भित्ति से युक्त होती हैं । वाहिनिकाएँ लंबी, पतली, तुर्क सम कोशिकाएँ हैं जिनमें गर्त होते हैं। जल इन्हीं में से होकर एक वाहिनिका से दुसरी वाहिनिका में जाता है। पादपों के लिए वांछित खनिज, नाइट्रेट तथा फॉस्फेट अकार्बनिक लवणों के रूप में मूलरोम द्वारा घुलित अवस्था में अवशोषित कर जड़ में पहुंचाए जाते हैं। यही जड़ें जाइलम ऊतकों से उन्हें पत्तियों तक पहुँचाते हैं।

खनिज-पेड़-पौधों को खनिजों की प्राप्ति अजैविक रूप


43. रक्त क्या है? इसके संघटन का वर्णन कार्य के साथ करें।

उत्तर ⇒ रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है जो उच्च बहकोशिकीय जन्तओं में एक तरल परिवहन माध्यम है, जिसके द्वारा शरीर के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थानों में पदार्थों का परिवहन होता है।

मानव रक्त के दो प्रमुख घटक होते हैं –

(a) द्रव घटक, जिस प्लाज्मा कहते हैं एवं
(b) प्लाज्मा : यह हल्के पीले रंग का चिपचिपा द्रव है, जो आयतन के हिसाब सेपो रक्त का 55 प्रतिशत होता है। इसमें करीब 90% जल, 7% प्रोटीन,0.09% अकार्बनिक लवण, 0.18% ग्लूकोज, 0.5% वसा तथा शेष अन्य कार्बनिक पदार्थ विद्यमान होते हैं।
इनमें उपस्थित प्रोटीन को प्लाज्मा प्रोटीन कहते हैं, जिनमें प्रमुख हैं-फाइब्रिनोजन, प्रोओबिन तथा हिपैरिन। फाइब्रिनोजनरहित प्लाज्मा को सीरम कहते हैं।

(b) रक्त कोशिकाएँ : आयतन के हिसाब से रक्त कोशिकाएँ कुल रक्त का 45 प्रतिशत भाग हैं।

ये तीन प्रकार की होती हैं

(i) लाल रक्त कोशिका
(ii) श्वेत रक्त कोशिका तथा
(iii) रक्त पटिटकाण ।

(i) लाल रक्त कोशिका (Red Blood Cell/RBC) : इन्हें एरीथ्रोसाइट्स (erythrocytes) भी कहते हैं, जो उभयनतोदर डिस्क की तरह रचना होती हैं। इनमें केन्द्रक, माइटोकॉण्ड्रिया एवं अंतर्द्रव्यजालिका जैसे कोशिकांगों का अभाव होता है। इनमें एक प्रोटीन वर्णक हीमोग्लोबिन पाया जाता है, जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है। इसके एक अणु की क्षमता ऑक्सीजन के चार अणुओं से संयोजन की होती है। इसके इस विलक्षण गुण के कारण इसे ऑक्सीजन का वाहक कहते हैं। मनुष्य में इनकी जीवन अवधि 120 दिनों की होती है, और इनका निर्माण अस्थि-मज्जा में होता है। मानव के प्रति मिलीलीटर रक्त में इनकी संख्या 5-5.5 मिलियन तक होती है।

(ii) श्वेत रक्त कोशिका (White Blood Cell/WBC) : ये अनियमित आकार की न्यूक्लियसयुक्त कोशिकाएँ हैं। इनमें हीमोग्लोबिन जैसे वर्णक नहीं पाये जाते हैं, जिसके कारण ये रंगहीन होती हैं। इन्हें ल्यूकोसाइट्स (leucocytes) भी कहते हैं। मानव के प्रति मिलीलीटर में इनकी संख्या 5000-6000 होती है। संक्रमण की स्थिति में इनकी संख्या में वृद्धि हो जाती है।

ये दो प्रकार की होती है –

(a) ग्रैनुलोसाइट्स एवं  (b) एग्रैनुलोसाइट्स।

(a) ग्रैनुलोसाइट्स अपने अभिरंजन गुण के कारण तीन प्रकार की होती हैं –

(i) इयोसिनोफिल (ii) बसोफिल एवं (iii) न्यूट्रोफिल।

इनकी कोशिकाद्रव्य कणिकामय होती है। इयोसिनोफिल एवं न्यूट्रोफिल्स
फैगोसाइटोसिस द्वारा हानिकारक जीवाणुओं का भक्षण करते हैं।

(b) एग्रैनुलोसाइट्स दो प्रकार के होते हैं –

(i) मोनोसाइट्स एवं (ii) लिम्फोसाइट्स।

इनमें उपस्थित केन्द्रक में अनेक धुंडियाँ पाई जाती हैं। इनमें मोनोसाइट्स का कार्य भक्षण करना एवं लिम्फोसाइट्स का काम एंटिबॉडी का निर्माण करना होता है।

(iii) रक्त पट्टिकाणु (Blood Platlets) : ये बिम्बाणु या ओम्बोसाइट्स भी कहलाते हैं। ये रक्त का थक्का बनने (blood clotting) में सहायक होते हैं।

रक्त के कार्य – रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है, क्योंकि वह अपने प्रवाह के दौरान शरीर के सभी ऊतकों का संयोजन करता है।

वैसे रक्त के तीन प्रमुख कार्य हैं –

(a) पदार्थों का परिवहन, (b) संक्रमण से शरीर की सुरक्षा एवं (c) शरीर के तापमान का नियंत्रण करना।

रक्त के निम्नलिखित अन्य कार्य हैं –

(a) यह फेफड़े से ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों में परिवहन करता है।

(b) यह शरीर की कोशिकाओं से CO,को फेफड़े तक लाता है, जो श्वासोच्छ्वास के द्वारा बाहर निकल जाता है।


44. अग्न्याशय द्वारा स्त्रावित सभी पाचक रस की चर्चा करें।

उत्तर⇒ अग्न्याशय द्वारा निम्नलिखित पाचक एंजाइम स्रावित होते है— ट्रिप्सिन, काइमोट्रिप्सिन, एमाइलेज, लाइपेज तथा न्यूक्लियेज। ये सभी भोजन के पाचन में अहम भूमिका निभाते हैं

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