जीव जनन कैसे करते हैं
जीव जनन कैसे करते हैं
प्रश्न 1. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के क्या लाभ हैं ? अथवा, अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिए।
उत्तर⇒ अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन अधिक श्रेष्ठ है।
इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
(i) लैंगिक जनन में शुक्राणु तथा अंडाणु के सायुजन के कारण DNA द्वारा पैतृक गुण वर्तमान पीढ़ी के सदस्य में हस्तान्तरित हो जाते हैं जो जीवित रहने के लिए अधिक शक्तिशाली होते हैं जबकि अलैंगिक जनन में एकल DNA होने के कारण जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है ।
(ii) लैंगिक जनन में DNA की दोनों प्रतिकृतियों में कुछ न कुछ अंतर अवश्य होते हैं जिनके परिणामस्वरूप नई पीढ़ी के सदस्य जीव में भिन्नता अवश्य दिखाई देती है जबकि अलैंगिक जनन में भिन्नता नहीं दिखाई देती । यदि उसमें किसी कारण से भिन्नता आ जाती है तो जीव की मृत्यु हो जाती है।
(iii) लैंगिक जनन उद्विकास में बहुत सहायक है जबकि अलैंगिक जनन उद्विकास में सहायक नहीं है।
प्रश्न 2. कायिक प्रवर्धन को परिभाषित करें।
उत्तर⇒ जब पौधों के किसी भी अंग से नया पौधा तैयार हो तो उसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।
प्रश्न 3. परागण किसे कहते हैं? स्वपरागण तथा परपरागण में क्या अंतर है? कोई चार अंतर लिखें।
उत्तर⇒ परागकोष से परागकण के स्त्रीकेसर में स्थानांतरण को परांगण कहते हैं।
स्वपरागण | परपरागण |
परागकण उसी फूल के या उसी पौधे के दूसरे फूल के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं। | परागकण किसी दूसरे पौधे के फूल के वर्तिकान पर पहुँचते हैं। |
परागकणों के नष्ट होने की सम्भावना कम होती है। | परागकणों के नष्ट होने की सम्भावना अधिक होती है। |
इस क्रिया से उत्पन्न बीज अधिक स्वस्थ नहीं होते। | इस क्रिया से उत्पन्न बीज अधिक स्वस्थ होते हैं। |
इस क्रिया से नई जातियाँ उत्पन्न नहीं होती। | इस क्रिया से नई जातियाँ उत्पन्न होती हैं। |
प्रश्न 4. गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनाने के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर⇒ गर्भनिरोधक युक्तियाँ मुख्य रूप से गर्भ रोकने के लिए ही अपनाई जाती हैं। इनसे बच्चों की आयु में अंतर बढ़ाने में भी सहयोग लिया जा सकता है। कंडोम के प्रयोग में यौन संबंधी कुछ रोगों के संक्रमण से भी बचा जा सकता है।
प्रश्न 5. मानव नर-जनन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर⇒
चित्र : मानव का जनन तंत्र
प्रश्न 6. DNA प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व है? अथवा, DNA की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यों है?
उत्तर⇒ DNA गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं जो कोशिका के केन्द्रक में उपस्थित होते हैं । ये जनन की विशेष सूचना को धारण करनेवाली प्रोटीन के निर्माण के लिए उत्तरदायी होते हैं। प्रत्येक प्रकार की सूचना के लिए विशिष्ट प्रकार की प्रोटीन उत्तरदायी होती है। DNA के अणुओं में आनुवंशिक गुणों का संदेश होता है जो जनक से संतति पीढ़ी में जाता है।
प्रश्न 7. पुष्प की अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर⇒
चित्र : पुष्प की अनुदैर्ध्य काट
प्रश्न 8. एककोशिक एवं बहुकोशिक जीवों की जनन-पद्धति में क्या अंतर है?
उत्तर⇒ एक कोशिक प्रायः विखंडन मुकुलन, पुनरुद्भवन, बहुखंडन आदि विधियों से जनन करते हैं। उनमें केवल एक ही कोशिका होती है। वे सरलता से कोशिका विभाजन के द्वारा तेजी से जनन कर सकते हैं। बहुकोशिक जीवों में जनन क्रिया जटिल होती है और वह मुख्य रूप से लैंगिक जनन क्रिया ही होती है।
प्रश्न 9. ऋतुस्राव क्यों होता है ?
उत्तर⇒ यदि नारी शरीर में निषेचन नहीं हो, तो अंड कोशिका लगभग एक दिन तक जीवित रहती है। अंडाशय हर महीने एक अंड का मोचन करता है और निषेचित अंड की प्राप्ति हेतु गर्भाशय भी हर महीने तैयारी करता है। इसलिए, इसकी “अंत:भित्ति मांसल एवं स्पोंजी हो जाती है। यह अंड के निषेचन होने की अवस्था में उसके पोषण के लिए आवश्यक है। लेकिन निषेचन न होने की अवस्था में इस पर्त की भी आवश्यकता नहीं रहती। इसलिए यह पर्त धीरे-धीरे टूटकर योनि मार्ग में रुधिर एवं म्यूकस के रूप में बाहर निकल जाती है। इस वक्र में लगभग एक मास का समय लगता है। इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं। इसकी अवधि लगभग 2 से 8 दिनों की होती है।
प्रश्न 10. पौधों में द्विनिषेचन का वर्णन कीजिए।
उत्तर⇒ परागकण वर्तिकान पर गिरकर फूल जाते हैं। इनसे परागनलिका निकलती है जिसमें 3 नर युग्मक होते हैं। नर तथा मादा युग्मक का संयोग ही निषेचन है। इसके बाद युग्मनज बनता है । यह द्विगुणित होता है । दूसरा नर युग्मक
चित्र : वर्तिकाग्र पर परागकणों पर अंकुरण
द्वितीय केन्द्रक के साथ मिलकर त्रिगुणित केन्द्रक बनाता है। यह क्रिया त्रिसमेकन कहलाती है । चूँकि निषेचन दो बार होता है, अतः इसे द्विनिषेचन कहते हैं । द्विनिषेचन का वर्णन सर्वप्रथम नावासचिन (1898) ने किया था।
प्रश्न 11. मुकुलन क्या है ?
उत्तर⇒ शरीर पर एक ऊर्ध्व संरचना बनती है जिसे मुकुलन कहते हैं । शरीर का केन्द्रक दो भागों में विभक्त हो जाता है और उनमें से एक केन्द्रक मुकुलन पैतृक जीव से अलग होकर वृद्धि करता है और पूर्ण विकसित जीव बन जाता है। जैसे यीस्ट, हाइड्रा तथा ल्यूकोसोलिनिया (स्पंज) आदि ।
प्रश्न 12. जनन कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर⇒ सजीव में जनन दो प्रकार से होता है–
(i)अलैंगिक जनन-अलैंगिक जनन के लिए नर एवं मादा के जनन अंगों का कोई उपयोग नहीं होता है। अतः, एकल जीव प्रायः अलैंगिक जनन ही करते हैं।
अलैंगिक जनन निम्न प्रकार के होते हैं-(i) विखंडन, (ii) मुकुलन, (iii) जीवाणु जनन, (iv) पुनर्जनन तथा (v) कायिक प्रवर्धन।
(ii)लैंगिक जनन-लैंगिक जनन के लिए नर एवं मादा जनन अंगों का पारस्परिक सम्मिलन आवश्यक होता है। अतः, इसके लिए किसी जाति के दो व्यक्तियों (एक नर, एक मादा) की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 13. हम अपने माता-पिता के समान क्यों होते हैं ?
उत्तर⇒ 1902 ई. में सटन और बॉवेरी नामक वैज्ञानिकों ने स्वतंत्र रूप से आनुवंशिकी के गुणसूत्र सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
इस सिद्धांत के अनुसार–
मेण्डल ने आनुवंशिकता के लिए जिन कारकों को उत्तरदायी बताया था वे जीन हैं जो गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं। गुणसूत्रों का ही पृथक्करण होता है और उन्हीं का स्वतंत्र अपव्यूहन होता है। स्वतंत्र अपव्यूहन की घटना अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन के समय घटित होती है।
अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन के समय गुणसूत्रों का क्रॉसिंग ओवर होता है। उसी समय जब काइएज्मा बनता है तब जीनों की अदला-बदली और पुनर्योजन होता है। जीन जोड़ों में गुणसूत्रों से संयुक्त होते हैं। परन्तु, अर्द्धसूत्रण के समय अलग हो सकते हैं। इस प्रकार गुणसूत्र ही आनुवंशिकता के लिए उतरदायी होते हैं। इसीलिए हम अपने माता-पिता के समान होते हैं।
प्रश्न 14. नर-जनन तथा मादा-जनन हॉर्मोनों के नाम तथा कार्य लिखें।
उत्तर⇒ नर-जनन हॉमोन के नाम–टेस्टोस्टेरॉन
टेस्टोस्टेरॉन के कार्य–शुक्राणुओं का निर्माण
मादा-जनन हॉर्मोन के नाम–एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्टरॉन
एस्ट्रोजन के कार्य–द्वितीय लैंगिक लक्षणों का विकास एवं जनन शक्ति का विकास
प्रोजेस्टरौन के कार्य–भ्रूण के विकास में सहायक, भ्रूण के पोषण में सहायक ।
प्रश्न 15. गुणसूत्र का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर⇒
चित्र: वर्तिकाग्र पर परागकणों पर अंकुरण
प्रश्न 16. परागण क्या है ? परपरागण का वर्णन करें।
उत्तर⇒ पुंकेसर के परागकोश से स्त्रीकेसर के वर्तिकान पर पराग कणों के स्थानांतरण को परागण कहते हैं । पराग कणों का यह स्थानांतरण जब एक ही फूल में अथवा एक ही पौधे के दो फूल के बीच होता है तब इसे स्वपरागण कहते हैं। स्वपरागण करनेवाले फूल अधिकतर आभाहीन तथा सफेद होते हैं। जब यह परागण क्रिया एक ही जाति के दो अलग-अलग पौधों के फूलों के बीच होती है तब उसे परपरागण कहते हैं । परपरागण करने वाले फूल अधिकतर रंगीन तथा आकर्षक होते
चित्र : परागण
हैं। परपरागण के समय, परागकणों का स्थानांतरण हवा द्वारा, पानी द्वारा अथवा कीटों द्वारा होता है। परागण के फूल में निषेचन क्रिया होती है जिसके उपरान्त बीज तथा फल बनते हैं। स्वपरागण को आटोगैमी कहते हैं तथा परपरागण को एलोगैमी कहा जाता है।
प्रश्न 17. एक-लिंगी और द्विलिंगी जीव की परिभाषा एक-एक उदाहरण के साथ दीजिए।
उत्तर⇒ एकलिंगी जीव–जिस जीव में नर और मादा अलग-अलग होते हैं उसे एकलिंगी जीव कहते हैं। उदाहरण-मनुष्य।
द्विलिंगी जीव–जिस जीव में नर और मादा दोनों उपस्थित होते हैं उसे द्विलिंगी जीव कहते हैं। उदाहरण- केंचुआ।
प्रश्न 18. लैंगिक तथा अलैंगिक जनन में कोई पाँच अन्तर लिखें।
उत्तर⇒
लैंगिक जनन | अलैंगिक जनन |
लैंगिक जनन में नर और मादा दोनों की आवश्यकता पड़ती है। | अलैंगिक जनन में नर तथा मादा दोनों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। |
उच्च स्तर के प्राणियों में ही इस प्रकार का जनन होता है। | यह निम्न श्रेणी के जीवों में होता है। |
लैंगिक जनन में निषेचन क्रिया के बाद जीवों का निर्माण होता है। | अलैंगिक जनन में निषेचन क्रिया होता नहीं होती है। |
इस जनन द्वारा उत्पन्न संतान में नये-नये गुण विकसित हो सकते हैं। | इस विधि द्वारा उत्पन्न संतान में नये गुण नहीं आ सकते हैं। |
लैंगिक जनन में बीजाणु उत्पन्न बीजाणु उत्पन्न हो सकते हैं। | इस क्रिया में एक कोशिकीय नहीं होते हैं। |
प्रश्न 19. द्विखंडन बहुखंडन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर⇒
द्विखंडन | बहुखंडन |
कोशिका के चारों ओर सिस्ट अथवा रक्षी भित्ति नहीं बनती है। | कोशिका के चारों ओर सिस्ट अथवा रक्षी भित्ति बन जाती है। |
द्विखंडन में बहुखंडन की तरह की कोई प्रक्रिया नहीं होती है | सिस्ट के भीतर कोशिका का केन्द्रक कई बार खंडित होकर अनेक छोटे छोटे केन्द्रक बनाता है जो संतति केन्द्रक कहलाते हैं। प्रत्येक संतति केन्द्रक के चारों ओर कुछ कोशिका द्रव्य एकत्रित हो जाता है और उसके चारों ओर पतली झिल्लियाँ बन जाती हैं। |
जनक जीव खंडित होकर दो नये को जीवों का जन्म देता है। | जब सिस्ट फटती है तब उसमें उपस्थित अनेक संतति कोशिकाएँ निकल आती हैं जो नए जीवों को उत्पन्न करती हैं। |
प्रश्न 20. परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर⇒
परागण | निषेचन |
वह क्रिया जिसमें परागकण स्त्री-केसर के वर्तिकाग्र तक पहुँचते हैं, परागण कहलाती है। | वह क्रिया जिसमें नर युग्मक और मादा युग्मक मिलकर युग्मनज बनातेहैं, निषेचन कहलाती है। |
यह जनन क्रिया का प्रथम चरण है। | यह जनन क्रिया का दूसरा चरण है। |
परागण क्रिया दो प्रकार की होती है-स्व-परागण और पर-परागण। | निषेचन क्रिया भी दो प्रकार की होती है-बाह्य निषेचन एवं आंतरिक निषेचन। |
परागकणों के वर्तिकान पर स्थानान्तरणों (शुक्राणु) के मादा युग्मक (अंडाणु) के साथ संयोजन को निषेचन कहते हैं।
प्रश्न 21. वर्षा होने के समय मक्का के परागण क्रिया में क्या-क्या प्रभाव पड़ सकता है ?
उत्तर⇒ मक्का के पौधों में वायु परागण होता है। मक्का के पौधों में नर पुष्प एक मंजरी के रूप में शिखर पर लगते हैं जबकि मादा पुष्प पत्ती की कक्षा में नीचे की तरफ लगते हैं । वर्षा के समय परागकण भींग जाएँगे, जिससे वे वर्तिकान तक नहीं पहुंच पाएँगे।
प्रश्न 22. हाइड्रा में मुकुलन को चित्र द्वारा दिखाएँ।
उत्तर⇒
चित्र : हाइड्रा में मुकुलन द्वारा प्रजनन
प्रश्न 23. पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) किसे कहते हैं ? प्लेनेरिया में पुनरुद्भवन की क्रिया चित्र द्वारा प्रस्तुत करें। अथवा, चित्र में दर्शायी गई घटना का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर⇒ शरीर के किसी कटे हुए भाग से नए जीव का निर्माण पुनरुद्भवन या पुनर्जनन कहलाता है । चित्र प्लैनेरिया में पुनरुद्भवन को दर्शाता है। इसके अन्तर्गत प्लैनेरिया के चाहे जितने टुकड़े हो जायें, प्रत्येक टुकड़ा स्वतंत्र प्लैनेरिया के रूप में विकसित होता है।
प्रश्न 24. बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित होता है?
उत्तर⇒ बीजाणु द्वारा जनन से जीव लाभान्वित होता है, क्योंकि बीजाणु के चारों ओर एक मोटी भित्ति होती है जो प्रतिकूल परिस्थितियों में उसकी रक्षा करती है, और नम सतह के संपर्क में आने पर वह वृद्धि करने लगती है।
प्रश्न 25. शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि की क्या भूमिका है ?
उत्तर⇒ शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि अपना स्राव शुक्र वाहिका में डालते हैं जिससे शुक्राणु एक तरल माध्यम में आ जाते हैं। इसके कारण इनका स्थानांतरण सरलता से होता है। साथ ही, यह स्राव उन्हें पोषण भी प्रदान करता है।
प्रश्न 26. जनन किसी स्पीशीज की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर⇒ किसी भी स्पीशीज की समष्टि के स्थायित्व में जनन और मृत्यु का बराबर का महत्त्व है। यदि जनन और मृत्य-दर में लगभग बराबरी की दर हो तो स्थायित्व बना रहता है। एक समष्टि में जन्म-दर और मृत्यु-दर ही उसके आधार का निर्धारण करते हैं।
प्रश्न 27. माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता
उत्तर⇒ गर्भस्थ भ्रूण को माँ के रुधिर से पोषण प्राप्त होता है। इसके लिए प्लेसेंटा की संरचना प्रकृति के द्वारा की गई है। यह एक तश्तरीनुमा संरचना है जो गर्भाशय की भित्ति में धंसी होती है। इसमें भ्रूण की ओर से ऊतक के प्रवर्ध होते हैं। माँ के ऊतकों में रक्त स्थान होते हैं जो प्रवर्ध को ढांपते हैं। ये माँ से भ्रूण को ग्लूकोज, ऑक्सीजन और अन्य पदार्थ प्रदान करते हैं।
प्रश्न 28. परागण क्रिया, निषेचन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर⇒
परागण | निषेचन |
वह क्रिया जिसमें परागकण स्त्री-केसर वर्तिकान तक पहुँचते हैं, परागण कहलाती के है। | वह क्रिया जिसमें नर युग्मक और मादा युग्मक मिलकर युग्मनज बनाते हैं, निषेचन कहलाती है। |
यह जनन क्रिया का प्रथम चरण है। | यह जनन क्रिया का दूसरा चरण है। |
परागण क्रिया दो प्रकार की होती है-स्व-परागण और पर-परागण । | निषेचन क्रिया भी दो प्रकार की होती है-बाह्य निषेचन एवं आंतरिक निषेचन । |
प्रश्न 29. क्या आप कुछ कारण सोच सकते हैं जिससे पता चलता हो कि जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नई संतति उत्पन्न नहीं कर सकते ?
उत्तर⇒ जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नई संतति उत्पन्न नहीं कर सकते, क्योंकि अधिकतर बहुकोशिक जीव विभिन्न कोशिकाओं समूह मात्र ही नहीं हैं। विशेष कार्य हेतु विशिष्ट कोशिकाएँ संगठित होकर ऊतक का निर्माण करती हैं तथा ऊतक संगठित होकर अंग बनाते हैं, शरीर में इनकी स्थिति भी निश्चित होती हैं। ऐसी सजग व्यवस्थित परिस्थिति में कोशिका-दर-कोशिका विभाजन अव्यवहारिक है।
प्रश्न 30. मानव में वृषण के क्या कार्य हैं ?
उत्तर⇒ मानव के शरीर में वषण संख्या में दो होते हैं जो शरीर के बाहर त्वचा की एक थैली, वृषण कोष में स्थित होते हैं।
वृषण के निम्नलिखित कार्य हैं—
(i) वृषण में शुक्राणु उत्पन्न होते हैं जो लैंगिक जनन क्रिया में सक्रिय भाग लेकर भावी पीढ़ी को जन्म देने में सहायक होते हैं।
(ii) वृषण में टेस्टोस्टीरोन नामक हार्मोन उत्पन्न होता है जो मानव शरीर में द्वितीयक जनन लक्षणों को स्थापित करने के लिए उत्तरदायी होता है।
प्रश्न 31. यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन-से परिवर्तन दिखाई देते
उत्तर⇒ यौवनारंभ के समय लड़कियों में निम्न परिवर्तन दिखाई देते हैं—
(i) शरीर के कुछ नए भागों; जैसे-काँख और जाँघों के मध्य जननांगी क्षेत्र में बाल गुच्छ निकल आते हैं।
(ii) हाथ, पैर पर महीन रोम आ जाते हैं।
(iii) त्वचा तैलीय हो जाती है। कभी-कभी मुहाँसे निकल आते हैं।
(iv) वक्ष के आकार में वृद्धि होने लगती है।
(v) स्तनाग्र की त्वचा का रंग गहरा होने लगता है।
(vi) रजोधर्म होने लगता है।
प्रश्न 32. कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर⇒ कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग किया जाता है क्योंकि—
(i) कुछ पौधे बीजरहित होते हैं अथवा लम्बी सुषुप्तावस्था में बीज उत्पन्न करते हैं।
(ii) आनुवांशिक गुण जनन संतति में कायम रहते हैं।
(iii) कुछ पौधों का विकास तीव्र गति से किया जाता है।
प्रश्न 33. जंतु परागण क्या है ?
उत्तर⇒ जंतु परागण में कीट, गिलहरी, चिड़िया, बन्दर व हाथी सहायक होते हैं । परागकण जन्तुओं के पैरों में चिपक जाते हैं तथा दूसरे पुष्पों तथा पहुँच जाते हैं।
प्रश्न 34. कंडोम क्या है?
उत्तर⇒ यह परिवार नियोजन का एक साधन है। पुरुष द्वारा इसका उपयोग करने से शुक्राणु मादा के गर्भाशय में नहीं पहुँच पाते जिससे गर्भधारण की कोई संभावना नहीं होती।
प्रश्न 35. पैरामीशियम में अलैंगिक जनन का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर⇒ यह एमाइटोसिस द्वारा होता है तथा कोई युग्मक भाग नहीं लेते हैं। पैरामीशियम में अलैंगिक जनन अनुप्रस्थ द्विखण्डन द्वारा होता है। यह अनुकूल दशाओं में होता है। एक पैरामीशियम से दो पुत्री पैरामीशियम बन जाते हैं।
प्रश्न 36. मीनार्की तथा रजोनिवृत्ति में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर⇒
मीनाकी | रजोनिवृत्ति |
स्त्री में रजोधर्म का प्रारम्भ मीनार्की है। | स्त्री में रजोधर्म का बंद होना रजोनिवृत्ति है। |
यह 11-13 वर्ष की आयु में होता है । | यह 40-50 वर्ष की आयु में होता है। |
प्रश्न 37. लैंगिक जनन का क्या अर्थ है ? इसकी क्या शर्त है ?
उत्तर⇒ लैंगिक जनन एक कोशिकीय तथा बहुकोशिकीय दोनों जीवों में होता है, लेकिन कुछ पौधे तथा जंतुओं में, जैसे-केंचुआ, हाइड्रा में एक ही जीव नर तथा मादा दोनों युग्मकों को उत्पन्न करता है । ऐसे जीवों को उभयलिंगी या द्विलिंगी जीव कहते हैं । लैंगिक जनन में जीव की लिंग कोशिकायें या युग्मक अर्धसूत्री कोशिका विभाजन द्वारा बनते हैं। ये अगुणित होते हैं।
प्रश्न 38. संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है।
उत्तर⇒ निषेचन प्रक्रम के दौरान शुक्राणु एवं अंडाणु का संलयन होता है । दोनों में समान गुणसूत्र होते हैं। समसूत्रण के समय गुणसूत्रों की संख्या नर और मादा के गुणसूत्रों के साम्मिलन के कारण दुगुनी हो सकती है । परन्तु, अर्धसूत्रण के कारण उनकी यह संख्या आधी हो जाती है। इस प्रकार संततियों में जनको के समान ही गुणसूत्र रहते हैं । इस प्रकार आनुवंशिक योगदान में नर एवं मादा की साझेदारी समान होती है।
प्रश्न 39. पौधों में लैंगिक जनन कैसे होता है ?
उत्तर⇒ एंजिओस्पर्मस (पुष्पी पौधे) में अधिकांश पुष्प द्विलिंगी होते हैं। इनमें दोनों प्रकार के जननांग होते हैं। पुमंग को नर जननांग या जायांग तथा कारपल को मादा जननांग कहते हैं। पुमंग में पराग कण बनते हैं जिसे माइक्रोस्पोर भी कहते हैं । जायांग में बीजाण्ड या मेगास्पोर बनते हैं। ये अर्धसूत्री विभाजन द्वारा बनते हैं। इनके निषेचन के बाद फल तथा बीज बनते हैं। बीज के अंकुरण के बाद नन्हा पौधा बनता है।
प्रश्न 40. जंतुओं में निषेचन के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर⇒ निषेचन का महत्त्व निम्नलिखित हैं—
(i) शुक्राणु का प्रवेश अण्डाणु को सक्रिय करता है।
(ii) इनके संयोग से युग्मनज बनता है।
(iii) इनके संयोग से जीव में गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित, अर्थात् पैतृकों के समान हो जाती है।
(iv) संतानों में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
प्रश्न 41. परागण से लेकर पौधे में बीज बनने तक सभी अवस्थाएँ लिखिए।
उत्तर⇒ परागकोश में परागकण परिपक्व होने के बाद हवा, पानी या कीटों द्वारा स्त्रीकेसर के वर्तिकान पर पहुँच जाते हैं। इस प्रक्रिया को परागण कहते हैं। परागण के बाद परागकण से एक परागनली निकलती है। परागनली में दो नर युग्मक होते हैं। इनमें से एक नर युग्मक पराग नली में होता हुआ बीजांड तक पहुँच जाता है । यह बीजाण्ड के साथ संलयन हो जाता है जिससे युग्मनज बनता है। ऐसे संलयन को निषेचन कहते हैं।
युग्मनज माइटोटिक विधि द्वारा कई बार विभाजित होता है। निषेचन के बाद फूल के पंखुड़ी, पुंकेसर, वर्तिका तथा वर्तिकान गिर जाते हैं। बाह्य दल सूख जाता है और अंडाशय पर लगा रहता है। अंडाशय शीघ्रता से वृद्धि करता है और इसमें स्थित कोशिकायें कई बार विभाजित होकर वृद्धि करती हैं और बीज का बनना आरम्भ हो जाता है। बीज में एक नन्हा पौधा अथवा भ्रूण होता है।
प्रश्न 42. बाह्य निषेचन तथा आंतरिक निषेचन का क्या अर्थ है ? संभोग अंग क्या होते हैं ?
उत्तर⇒ बाह्य निषेचन—जब नर तथा मादा युग्मकों का संलयन मादा के शरीर के बाहर होता है तो इस संलयन को बाह्य निषेचन कहते हैं । जैसे-मेंढक में नर तथा मादा दोनों जीव संभोग करते हैं और अपने-अपने युग्मकों को पानी में छोड़ देते हैं, शुक्राणु अंडों को पानी में ही निषेचित करता है।
बाह्य निषेचन में अंडाणुओं की आन्तरिक सुरक्षा की अनुपस्थिति के कारण नष्ट होने के अवसर अधिक होते हैं, इसलिये इस बात की निश्चितता के लिए कुछ अण्डाणु निषेचित हो सकें, मादा अधिक अण्डाणु उत्पन्न करती है।
आंतरिक निषेचन—बहुत-से जीवों, जैसे-कुत्ता, बिल्ली, गाय, कीट, मनुष्य, सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारियों आदि में नर अपने शुक्राणुओं को मादा के शरीर के अन्दर छोडते हैं। शक्राण अंडों को मादा के शरीर के अन्दर ही निषेचित करते हैं। ऐसे निषेचन को आंतरिक निषेचन कहते हैं। शुक्राणु (वृषण से) मादा के अण्डाशय से निकले अण्डाणु से संयोग करते हैं । मादा के शरीर में निषेचन होता है। शुक्राणु के स्थानान्तरण का कार्य संभोग कहलाता है। इससे सम्बन्धित अंग संभोग अंग होते हैं।
प्रश्न 43. पौधे में लैंगिक जनन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर⇒ फूल, पौधे का जनन अंग होता है । फूल के नर भागों को पुंकेसर तथा मादा भाग को स्त्रीकेसर कहते हैं। पुंकेसर के परागकोषों में परागकण होते हैं। परागकण नर युग्मक बनाते हैं।
स्त्रीकेसर के तीन भाग होते हैं—
(i) वर्तिकाग्र,
(ii) वर्तिका तथा
(iii) अण्डाशय ।
स्त्रीकेसर के आधार वाले चौड़े भाग में अण्डाणु होते हैं । अण्डाणु में बीजाण्ड होते हैं जो मादा यग्मक बनाते हैं। पंकेसर के परागकोश में परागकणों का स्त्रीकेसर के अग्रभाग जिसे वर्तिकाग्र कहते हैं, पर पहुँचना परागण कहलाता है। परागण के बाद परागकण से एक परागनली निकलती है । परागनली में दो नर युग्मक होते हैं। इनमें से एक नर युग्मक पराग नली में से होता हुआ बीजांड तक पहुँच जाता है । यह बीजांड के साथ संलयित हो जाता है जिससे एक युग्मनज बनता है । ऐसे संलयन को निषेचन कहते हैं। युग्मनज माइटोटिक विधि द्वारा कई बार विभाजित होता है जिससे अन्ततः एक नया पौधा बन जाता है।
प्रश्न 44. चित्र का निरीक्षण करें और इस पर आधारित प्रश्नों के
(a) चित्र क्या दर्शाता है ?
(b) चित्र में प्रदर्शित घटना का विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर⇒ (a) अमीबा में अलैंगिक जनन – द्विखण्डन
(b) द्विखण्डन का विवरण- सर्वप्रथम केन्द्रक का विभाजन प्रारंभ हो जाता है। समसूत्रण विधि द्वारा समान गुणसूत्र विपरीत ध्रुवों पर जमा होते हैं। प्लाज्मा झिल्ली बीच में अंदर की ओर धंसती है तथा एक कोशिका दो भागों में विभक्त हो जाती है।
प्रश्न 45. ऊतक संवर्धन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर⇒ इस विधि में पौधे के ऊतक के एक छोटे-से भाग को काट लेते हैं। इस ऊतक को उचित परिस्थितियों में पोषक माध्यम में रखते हैं। ऊतक से एक अनियिमित ऊर्ध्व-सा बन जाता है जिसे कैलस कहते हैं। कैलस का उपयोग पुनः
चित्र : ऊतक संवर्धन
गुणन में किया जाता है । इस ऊतक का छोटा-सा भाग किसी अन्य माध्यम में रखते हैं जो पौधे में विभेदन की प्रक्रिया को उत्तेजित करता है। इस पौधे को गमलों या भूमि में लगा दिया जाता है और उनको परिपक्व होने तक वृद्धि करने दिया जाता है। ऊतक संवर्धन से आजकल ऑर्किड, गुलदाउदी, शतावरी तथा बहुत-से अन्य पौधे तैयार किये जाते हैं।
प्रश्न 46. फूल (पुष्प) के जननांगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर⇒ पुष्प के जननांग-फूल के जननांग हैं-पुंकेसर तथा स्त्रीकेसर ।
1. नर जनन अंग पुंकेसर होते हैं। पुंकेसर के अग्र भाग पर एक चपटी रचना होती है जिसे परागकोष कहते हैं। इनमें परागकोष बनते हैं तथा परिपक्व होते हैं । यह नर युग्मक कहलाते हैं। प्रत्येक पुंकेसर के दो भाग होते हैं-परागकोष तथा फिलामेन्ट । परागकोष में दो कोष होते हैं। इन्हें संयोजी जोड़ता है।
2. स्त्रीकेसर पुष्प का मादा जननांग है । इसके तीन भाग हैं : वर्तिकान, वर्तिका तथा अंडाशय वर्तिकान स्त्रीकेसर का ऊपरी, चौड़ा भाग होता है। इसी पर परागकण चिपकते हैं। इसके नीचे लम्बी वर्तिका होती है। यह अंडाशय तक होती है। अण्डाशय स्त्रीकेसर का निचला फला हआ भाग होता है। इसमें बीजाण्ड भरे रहते हैं। निषेचन के बाद यही भाग फल तथा बीज बनता है।
चित्र : पुष्प के विभिन्न भाग
नर तथा मादा युग्मकों के मिलने से युग्मनज बनता है।
(अ) स्त्री केसर, (ब) पौधों में अंडाशय का अनुप्रस्थ काट (स) पुंकेसर के भाग
47.शिशु जन्म के नियमन की विधियों का वर्णन कीजियए ।
उत्तर⇒ जन्म-नियंत्रण के उपाय ये हैं-1. अंत:गर्भाशय युक्ति 2. योनि डायाफ्राम्स, क्रीम-जैली आदि, 3. ऑपरेशन विधि । गर्भ निरोधक गोलियाँ हारमोन्स से तैयार की जाती हैं। गर्भाशय में कॉपर-T के रोपण से भ्रूण का पोषण नहीं हो पाता है।
चित्र : सेक्टोमी (नसबन्दी)
पुरुष में कण्डोम का प्रयोग किया जाता है। स्त्रियों में अवरोधक उपाय भी अपनाये जाते हैं। जैसे कॉपर-T का प्रयोग । ऑपरेशन द्वारा भी जन्म नियमन किया जाता है। पुरुषों में नसबन्दी (शुक्राणुनलिका काटकर बाँधना) तथा स्त्रियों में नलबन्दी (फैलोपियन नलिकाएँ काटकर बाँधना) द्वारा जनसंख्या नियंत्रण करते हैं।
चित्र: टयबेक्टोमी (नलबन्दी)
प्रश्न 48. यीस्ट में मुकुलन के विभिन्न पदों का वर्णन करें।
उत्तर⇒ यीस्ट में कलिकोत्पादन या मकलन_एक कोशिकीय फफूदी में कलिका द्वारा जनन होता है। पहले एक उभार बनता है तथा फिर केन्द्रक का दो भागों में विभाजन होता है। परिमाप में वृद्धि होती है तथा उसके ऊपर पुनः विभाजनों द्वारा एक श्रृंखला बन जाती है ।
चित्र: यीस्ट में कलिकोत्पादन
प्रश्न 49. मनुष्य में निषेचन क्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर⇒ मनुष्य में आन्तरिक निषेचन होता है। नर युग्मक (शुक्राणु) मादा की देह में मैथुन क्रिया द्वारा पहुँचता है। इस हेतु मैथुन अंग होते हैं। शुक्राणु अत्यन्त सक्रिय तथा सचल होता है। मादा की योनि में लाखों शुक्राणु प्रवेश करते हैं तथा वे सर्विक्स एवं गर्भाशय की ओर भ्रमण करते हैं। अंत में फैलीपियन नलिका में केवल एक शुक्राणु द्वारा अंडाणु का समगाम होता है । इसके पश्चात् मासिक धर्म बन्द हो जाता है।
चित्र: मानव में निषेचन
Science ( विज्ञान ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के क्या लाभ हैं ?
उत्तर⇒अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन अधिक श्रेष्ठ है। इसके मुख्य लाभ हैं –
(i) लैंगिक जनन में शुक्राणु तथा अंडाणु के सायुजन के कारण डी० एन० ए० द्वारा पैतृक गुण वर्तमान पीढ़ी के सदस्य में हस्तान्तरित हो जाते हैं, जो जीवित रहने के लिए अधिक शक्तिशाली होते हैं जबकि अलैंगिक जनन में एकल डी० एन० ए० होने के कारण जीवित रहने के लिए संभावना कम हो जाती है।
(ii) लैंगिक जनन में डी० एन० ए० की दोनों प्रतिकृतियों में कुछ न कुछ अंतर अवश्य होते हैं जिनके परिणामस्वरूप नई पीढ़ी के सदस्य जीव में भिन्नता अवश्य दिखाई देती है जबकि अलैंगिक जनन में भिन्नता नहीं दिखाई देती है। यदि उसमें किसी कारण से भिन्नता आ जाती है तो जीव की मृत्यु हो जाती है।
(iii) लैंगिक जनन उद्विकास में बहुत सहायक है जबकि अलैंगिक जनन उदविकास में सहायक नहीं है।
2. पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) किसे कहते हैं ? प्लेनेरिया में पुरुद्भवन की क्रिया चित्र द्वारा प्रस्तुत करें।
उत्तर⇒इस प्रकार के जनन में किसी कारण से जीवों का शरीर—प्राकृतिक कारण या कृत्रिम कारण से—दो या दो से अधिक टुकड़ों में खंडित हो जाता है तथा प्रत्येक खंड अपने खोये हुए भागों का विकास कर पूर्ण विकसित नये जीव में परिवर्तित हो जाता है और सामान्य जीवनयापन करता है। उदाहरण—स्पाइरोगाइरा (Spirogyra), हाइड्रा (Hydra) तथा प्लेनेरिया (Planaria) आदि में इस प्रकार का जनन पाया जाता है।
3. जनन कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर⇒जनन दो प्रकार का होता है- (1) अलैंगिक जनन (2) लैंगिक जनन
(1) अलैंगिक जनन- इस विधि में जीवों का सिर्फ एक व्यष्टि भाग लेता है तथा इसमें युग्मक भाग नहीं लेते हैं। इस विधि द्वारा उत्पन्न जीव आनुवंशिक गुणों में ठीक जनकों के समान होते हैं। इस प्रकार का प्रजनन मुख्य रूप से निम्न कोटि के पौधों तथा जंतुओं में होता है।
इसके निम्नलिखित प्रकार हैं-
(i) विखंडन—द्विखंडन, बहुखंडन, (ii) मुकुलन, (iii) अपखंडन या पुनर्जनन, (iv) बीजानुजनन, (v) कायिक प्रवर्धन।
(2) लैंगिक जनन – इस विधि में दो भिन्न लिंग अर्थात् नर और मादा भाग लेते हैं। जिसमें नर युग्मक (शुक्राणु) एवं मादा युग्मक (अंडाणु) के संगलन (निषेचन) के फलस्वरूप युग्मनज का निर्माण होता है। यही युग्मनज विकसित, विभाजित एवं विभेदित होकर वयस्क जीव में परिवर्तित हो जाता है जो जनकों से भिन्न होते हैं।
4. लैंगिक तथा अलैंगिक जनन में अंतर लिखें।
उत्तर⇒अलैंगिक तथा लैंगिक जनन में निम्नलिखित अन्तर हैं-
अलैंगिक जनन | लैंगिक जनन |
(i) इस प्रक्रिया में एक कोशिका अथवा एक जनक ही भाग लेते है। | (i) इस प्रक्रिया में दो कोशिकाओं अथवा दो युग्मकों, जो एक जनक अथवा दो विभिन्न जनकों से उत्पन्न हों, की साझेदारी होती है। |
(ii) जनक का पूरा शरीर अथवा एक कोशिका या प्रवर्ध जनन इकाई हो सकती है। | (ii) इसमें जनन इकाई को युग्मक (gamete) कहते हैं जो एक कोशिकीय तथा हैप्लायड (haploid) होता है। |
(iii) इस प्रक्रिया से उत्पन्न संतति आनुवंशिकी रूप से जनकों के समान होते हैं। | (iii) इनमें संतति प्रायः अपने जनकों से भिन्न होते हैं। |
(iv) इस प्रक्रिया में केवल समसूत्री विभाजन ही होता है। | (iv) इस प्रक्रिया में अर्द्धसूत्री विभाजन तथा निषेचन अहम् है। |
(v) इसमें जननांग का निर्माण नहीं होता है। | (v) इसमें जननांग का निर्माण मुख्य रूप से होता है। |
5. बाह्य निषेचन तथा आंतरिक निषेचन का क्या अर्थ है ?
उत्तर⇒बाह्य निषेचन – जब नर तथा मादा युग्मकों का संलयन मादा के शरीर के बाहर होता है तो इस संलयन को बाह्य निषेचन कहते हैं, जैसे मेंढक में नर तथा मादा दोनों जीव संभोग करते हैं और अपने-अपने युग्मकों को पानी में छोड़ देते हैं, शुक्राणु अंडों को पानी में ही निषेचित करता है।
बाह्य निषेचन में अंडाणुओं को आंतरिक सुरक्षा की अनुपस्थिति के कारण नष्ट होने के अवसर अधिक होते हैं, इसलिए इस बात की निश्चितता के लिए कुछ अण्डाणु निषेचित हो सकें, मादा अधिक अण्डाणु उत्पन्न करती है।
आन्तरिक निषेचन – बहुत-से जीवों, जैसे कुत्ता, बिल्ली, गाय, कीट, मनुष्य, सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारियों आदि में नर अपने शुक्राणुओं को मादा के शरीर के अन्दर छोड़ते हैं। शुक्राणु अंडों को मादा के शरीर के अन्दर ही निषेचित करते हैं। ऐसे निषेचन को आन्तरिक निषेचन कहते हैं।
6. माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रंण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है ?
उत्तर⇒मैथुन के समय शुक्राणु योनि मार्ग में स्थापित होते हैं वहाँ से अंडकोशिका में मिलने के बाद निषेचित अंड गर्भाशय में स्थापित हो जाता है तथा विभाजित होने लगता है। गर्भाशय की आंतरिक परत मोटी हो जाती है तथा भ्रूण पोषण हेतु रुधिर प्रवाह भी बढ़ जाता है। भ्रूण को माँ के रुधिर से ही पोषण मिलता है, इसके लिए एक विशेष संरचना होती है, जिसे प्लेसेंटा कहते हैं। यह एक तश्तरीनुमा संरचना है जो गर्भाशय की भित्ति में धंसी होती है। इसमें भ्रूण की ओर क ऊतक में प्रवर्ध होते हैं। माँ के ऊतकों में रक्त स्थान होते हैं जो प्रवर्ध को आच्छादित करते हैं। यह माँ से भ्रूण को ग्लूकोज, ऑक्सीजन एवं अन्य पदार्थों के
स्थानांतरण हेतु एक वृहद क्षेत्र प्रदान करते हैं। विकासशील भ्रूण द्वारा अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न होते हैं जिनका निपटान उन्हें प्लेसेंटा के माध्यम से माँ के रुधिर में स्थानांतरण द्वारा होता है। इस तरह से माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण प्राप्त होता है।
7. जनसंख्या नियंत्रण के लिए व्यवहार में लाये जानेवाले विभिन्न उपायों का वर्णन करें।गर्भ निरोधन की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर⇒जनसंख्या नियंत्रण के लिए व्यवहार में लाए जानेवाले विभिन्न उपाय निम्नलिखित हैं –
प्राकृतिक विधि –अगर कुछ दिनों तक संभोग रोक दिया जाए तब उस दौरान स्त्री की योनि में वीर्य का प्रवेश नहीं होगा जिससे अंडाणु-निषेचन की संभावना नहीं रहेगी।
यांत्रिक विधियाँ – पुरुष के लिए कंडोम (condom) का उपयोग सबसे अधिक प्रभावी उपाय है। इससे नर-नारी AIDS जैसे जानलेवा लैंगीय संचारित रोगों से भी बचते हैं। स्त्रियों के लिए डायाफ्राम, कॉपर-T तथा लूप जैसे परिवार नियोजन के साधन उपलब्ध हैं।
रासायनिक विधियाँ – ऐसी विधियों में विभिन्न रसायनों से निर्मित साधनों का उपयोग किया जाता है।
सर्जिकल विधियाँ – इसके अंतर्गत पुरुष नसबंदी किया जाता है। स्त्रियों में होनेवाली इसी प्रकार की शल्य क्रिया स्त्री नसबंदी कहलाती है।
सामाजिक जागरूकता – जनसंख्या-वृद्धि का मानव समाज पर प्रभाव तथा इसके नियंत्रण के लिए विभिन्न साधनों के उपयोग का प्रचार समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, दूरदर्शन, पोस्टर या अन्य प्रचार के सशक्त माध्यमों द्वारा किये जाने से जनसंख्या नियंत्रण के प्रति मानव की जागरूकता बढ़ेगी।
8. फैलोपियन नलिका की संरचना का वर्णन करें ।
उत्तर⇒फैलोपियन नलिका एक जोड़ी नलिकाएँ हैं जो अंडाशय के ऊपरी भाग से शुरू होकर नीचे की ओर जाती हैं और अंत में गर्भाशय से जुड़ जाती हैं । प्रत्येक फैलोपियन नलिका का शीर्षभाग एक चौड़े कीप के समान होता है जो अंडाणु को फैलोपियन नलिका में प्रवेश करने में सहायता करते हैं । फैलोपियन नलिका की दीवार मांसल एवं संकुचनशील होती है । इसकी भीतरी सतह पर सीलिया लगी होती है, जो अंडाणु को फैलोपियन नलिका के द्वारा अंडाणु गर्भाशय में पहुँचाते हैं ।
9. मादा जननतंत्र का नामांकित चित्र बनाएँ।
उत्तर⇒
10. शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि की क्या भूमिका है ?
उत्तर⇒ प्रोस्टेट ग्रंथि मूत्राशय के आधार पर स्थित एक छोटी लगभग गोलाका ग्रंथि है। पुरस्थ ग्रंथि से पुरस्थ द्रव (prostatic fluid) स्रावित होता है। पुरःस्थ दत शुक्राणु द्रव (spermatic fluid) तथा शुक्राशय द्रव (seminal fluid) मिलकर वीर्य (semen) बनाते हैं। पुरस्थ द्रव के कारण ही वीर्य में विशेष गंध होती है। पुरस्थ द्रव वीर के शुक्राणुओं (नर युग्मक) को उत्तेजित करता है। प्रोस्टेट तथा शुक्राशय अपने स्राव शुक्रवाहिका में डालते हैं जिससे शुक्राणु एक तरल माध्यम में आ जाते हैं इसके कारण इनका स्थानांतरण सरलता से होता है साथ ही उन्हें यह स्राव पोषण भी प्रदान करता है। शुक्राणु सूक्ष्म संरचनाएँ हैं जिनमें मुख्यतः आनुवंशिक पदार्थ होते हैं तथा एक लंबी पूँछ होती है जो उन्हें मादा जनन-कोशिका की ओर तैरने में सहायता करती है।
11. गर्भ निरोध की विधियों का वर्णन करें।
उत्तर⇒ गर्भ निरोध के निम्नलिखित उपाय हैं –
महिलाओं में –
(i) अन्तः गर्भाशय युक्ति,
(ii) योनि डायाफ्राम्स, कीम-जैली आदि,
(iii) ऑपरेशन विधि,
(iv) हॉर्मोन्स से तैयार गर्भ निरोधक गोलियाँ,
(v) गर्भाशय में कॉपर-टी के रोपण से भ्रूण का पोषण नहीं हो पाता है।
पुरुष में
(i) नसबंदी
(ii) कंडोम, इत्यादि का प्रयोग होता है गर्भ निरोध के लिए।
ऑपरेशन द्वारा जन्म नियमन किया जाता है। स्त्रियों में नसबन्दी (फैलोपियन नलिकाएँ काटकर बाँधना) तथा पुरुषों में नसबन्दी (शुक्राणु नलिका काटकर बाँधना) द्वारा जनसंख्या नियंत्रण करते हैं।
12. द्विखंडन बहुखंडन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर⇒द्विखंडन विखंडन में एक व्यष्टि से खंडित होकर दो का निर्माण होता है। इस विधि में कोशिका या शरीर वृद्धि कर दो बराबर भागों में विभाजित हो जाता है। पहले केंद्रक समसूत्री विभाजन (mitosis) या असमसूत्री विभाजन (amitosis) द्वारा दो समान संतति केंद्रकों (daughter nuclei) में विभाजित हो जाता है व अंततः कोशिका द्रव्य (cytoplasm) भी दो बराबर भागों में बँट जाता है। इससे दो संतति जीवों की उत्पत्ति होती है। उदाहरण—जीवाणु, पैरामीशियम, अमीबा, क्लेमाइडोमोनास, यूग्लीना, यीस्ट, आदि।
बहुखंडन में एक व्यष्टि खंडित होकर अनेक व्यष्टियों की उत्पत्ति करता है। इनमें प्रतिकूल परिस्थितियों में कुछ एककोशीय जीव अपने शरीर या कोशिका के चारों ओर एक कड़ी भित्ति, पुटि या सिस्ट (cyst) का निर्माण करते हैं। कोशिका के भीतर केंद्रक बार-बार विभाजित होकर संतति केंद्रकों का निर्माण करता है। इसके बाद इन केंद्रकों के चारों ओर कोशिका द्रव्य का आवरण बन जाता है। इस प्रकार पुटी.के अंदर कई संतति कोशिकाओं की उत्पत्ति हो जाती है। अनुकूल परिस्थितियों के आगमन पर पुटि फट जाती है और संतति कोशिकाएँ बाहर निकलकर विकसित होती हैं। उदाहरण—अमीबा, प्लैज्मोडियम, निम्न कोटि के शैवाल आदि
अतः द्विखंडन बहुखंडन से इस प्रकार भिन्न है।
13. एक प्ररूपी पुष्प के सहायक अंग एवं आवश्यक अंग में क्या भिन्नता है ?
उत्तर⇒एक प्ररूपी पुष्प (typical flower) में चार प्रकार के पुष्पपत्र होते हैं –
(i) बाह्यदलपुंज (Calyx)
(ii) दलपुंज (Corolla)
(iii) पुमंग (Androecium)
(iv) जायांग (Gynoecium)
इनमें से दो बाहरी चक्रों यानी बाह्यदलपुंज एवं दलपुंज को सहायक अंग (accessory organs) एवं भीतरी दो चक्रों यानी पुमंग और जायांग को आवश्यक अंग (essential organs) कहा जाता है। सहायक अंग फूल को आकर्षक बनाने के साथ आवश्यक अंगों की रक्षा भी करते हैं तथा आवश्यक अंग जनन का कार्य करते हैं। इनमें यही भिन्नता है।
14. एक प्रारूपिक पुष्पी पौधे में परागण से बीज के निर्माण तक की संपूर्ण प्रक्रियाओं को सूचीबद्ध करें।
उत्तर⇒परागण के बाद परागकण वर्तिकाग्र तक पहुँचते हैं, जहाँ पोषक तत्त्वों का अवशोषण कर वृद्धि करते हैं। परागकण से परागनलिका निकलती है, जो वर्तिका से होते हुए बीजांड में प्रविष्ट हो जाती है। बीजांड में अंडाणु से संयुग्मित होकर नरयुग्मक, युग्मनज या जाइगोट बनाता है, जो अंततः भ्रूण का निर्माण करते हैं। निषेचन के उपरांत अंडाशय एवं बीजांड क्रमशः फल एवं बीज में विकसित हो जाते हैं।
15. परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर⇒परागण में परागकणों के परागकोश से निकलकर उसी पुष्प या उस जाति के दूसरे पुष्पों के वर्तिकान तक पहुँचने की क्रिया होती है। यह दो प्रकार से होता है-स्व-परागण द्वारा तथा पर-परागण द्वारा। स्व-परागण केवल उभयलिंगी (hermaphrodate) पौधों में ही होता है, जैसे—सूर्यमुखी, बालसम, पोर्चुलाका आदि । इसके लिए किसी बाहरी कारक या बाह्यकर्ता (agent) की जरूरत होती है जो किसी एक पौधे के पुष्प परागकोश से परागकणों को अन्य किसी पुष्प के वर्तिकान तक पहुँचाने का कार्य करता है। ये बाहरी कारक कीट, पक्षी, चमगादड़, मनुष्य, वायु, जल आदि कोई भी हो सकते हैं। पर-परागण के लिए पुष्पों में कुछ विशेष अवस्थाएँ. होती हैं जिनसे उनमें पर-परागण ही संभव हो पाता है। यह है परागण की क्रिया।
निषेचन की क्रिया परागकणों के वर्तिकाग्र पहुँचने के बाद होती है। नर युग्मक व मादा युग्मक के संगलन (fusion) को निषेचन (fertilization) कहते हैं। इसमें परागकण से एक नलिका विकसित होती है तथा वर्तिका से होती हुई बीजांड तक पहुँचती है।
16. पुष्पी पौधों में निषेचन क्रिया का सचित्र वर्णन करें।
उत्तर⇒ पुष्पी पौधों में परागकणों के वर्तिकार तक पहुँचने की क्रिया (परागण) के बाद. निषेचन की क्रिया होती है। नर युग्मक और मादा युग्मक के संगलन को निषेचन कहते हैं। परागकण वर्तिकाग्र तक पहुँचने के बाद वर्तिकाग्र की सतह से पोषक पदार्थ अवशोषित कर परागनलिका विकसित करता है। ये परागनलिका वृद्धि कर वर्तिका से होते हुए बीजांड में प्रवेश करती है।परागनलिका से नर युग्मक निकलकर बीजांड में अवस्थित मादा युग्मक से संगलित हो जाता है। निषेचन के बाद युग्मनज विभाजित होकर भ्रूण के रूप में विकसित हो जाता है। निषेचन के उपरांत अंडाशय फल में तथा बीजांड बीजों में विकसित हो जाते हैं।
17. परागण किसे कहते हैं ? वर्षा होने पर परागण पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
उत्तर⇒पुंकेसर के परागकोश से स्त्रीकेसर के वर्तिकान पर परागकणों के स्थानांतरण को परागण कहते हैं। परागकणों का यह स्थानांतरण जब एक ही फूल के अथवा एक ही पौधे के दो फूल के बीच होता है तब इसे स्वपरागण कहते हैं। स्वपरागण करने वाले फूल अधिकतर सफेद होते हैं। जब परागण क्रिया एक ही जाती के दो अलग-अलग पौधों के फूलों के बीच संपन्न होती है तब इसे पर परागण कहते हैं। पर परागण करने वाले फूल रंगीन तथा चमकदार होते हैं। परपरागण में परागकणों का स्थानांतरण, कीट द्वारा, हवा द्वारा और पानी द्वारा होता है। परागण के फलस्वरूप बीज और फल बनते हैं। वर्षा होने पर परागण की क्रिया मंद हो जाती है।
18. डॉ०एन०ए० की प्रतिकृति बनाना जनन के लिये आवश्यक क्यों है ?
उत्तर⇒ डी०एन०ए० की प्रतिकति बनाना जनन के लिये आवश्यक है क्योंकि ये जनन की विशेष सूचना को धारण करने वाली प्रोटीन के निर्माण के लिये उत्तरदायी होते हैं। डी०एन०ए० गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं जो कोशिका के केन्द्रक में उपस्थित होते हैं। प्रत्येक प्रकार की विशेष सूचना के लिये विशिष्ट प्रकार की प्रोटीन उत्तरदायी होती है। डी०एन०ए० के अणुओं में आनुवंशिक गुणों का संदेश होता है जो जनक से संतति पीढ़ी में, जाता है।
19. डी०एन०ए० प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर⇒जनन कोशिका में डी०एन०ए० की दो प्रतिकृतियाँ बनती हैं तथा उनका एक-दूसरे से अलग होना आवश्यक है। डी०एन०ए० की एक प्रतिकृति का मूल काशिका में रखकर दूसरी प्रतिकंति को उससे बाहर नहीं निकाला जा सकता क्याक दूसरी प्रतिकृति के पास जैव-प्रक्रमों के अनुरक्षण हेतु संगठीय कोशिकीय संरचना नहीं होगी। इसलिए डी०एन०ए० की प्रतिकृति बनने के साथ-साथ दूसरी कोशिकीय सरचनाओं का सृजन भी होता रहता है। इसके बाद डी०एन०ए० की प्रतिकृतियाँ विलग हो जाती हैं। परिणामतः एक कोशिका विभाजित होकर दो कोशिकाएँ बनाती हैं। संतति कोशिकाएँ समान होते हुए भी किसी-न-किसी रूप में एक-दूसरे से भिन्न हाता है। जनन में होनेवाली यह विभिन्न्ताएँ जैव विकास का आधार है एवं प्रजनन में इसका यही महत्त्व है।
20. कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर⇒पौधों के कुछ भाग जैसे जड़, तना तथा पत्तियाँ उपयुक्त परिस्थितियों म विकसित होकर नया पौधा उत्पन्न करते हैं। अधिकतर जंतुओं के विपरीत, एकल पौधे इस क्षमता का उपयोग जनन की विधि के रूप में करते हैं। परन्तु, कलम अथवा रोपण जैसी कायिक प्रवर्धन की तकनीक का उपयोग कृषि में भी किया जाता है। गन्ना, गुलाब अथवा अंगूर इसके कुछ उदाहरण हैं। कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाये गये पौधों में बीज द्वारा उगाये गये पौधों की अपेक्षा पुष्प एवं फल कम समय में लगने लगते हैं। यह पद्धति केला, संतरा, गुलाब एवं चमेली जैसे पौधों को उगाने के लिए उपयोगी है जो बीज उत्पन्न करने की क्षमता खो चुके हैं। कायिक प्रवर्धन का दूसरा लाभ यह भी है कि इस प्रकार उत्पन्न सभी पौधे आनुवंशिक रूप से जनक पौधे के समान होते हैं, क्योंकि इनमें लैंगिक जनन की आवश्यकता नहीं होती है जिसके चलते विभिन्नता पैदा नहीं होती है। इसी प्रकार ब्रायोफाइलम की पत्तियों की कोर पर कुछ कलिकाएँ विकसित होकर मृदा में गिर जाती है तथा नए पौधे के रूप में विकसित हो जाती हैं।
21. यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन से परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं ?
उत्तर⇒यौवनारंभ अर्थात् किशोरावस्था (adolescence) लड़कियों के काँख (armpit) एवं दोनों जंघाओं के बीच तथा बाह्य जननांग के समीप बाल आने लगते हैं। टाँगों तथा बाहुओं पर कोमल बाल उगने लगते हैं। त्वचा कुछ तैलीय (oily) होने लगती है। इस अवस्था में चेहरे पर फुसियों (pimples) का निकलना भी प्रारंभ हो जाता है। स्तनों में उभार आने लगता है। स्तन के केन्द्र में स्थित स्तनाग्र (nipple) के चारों ओर की त्वचा का रंग गाढ़ा होने लगता है। मासिक चक्र प्रारंभ हो जाता है। इस अवस्था में अपने जैसे विपरीत लिंग वाले व्यक्तियों के प्रति आकर्षण होने लगता है। यौवनारंभ की इस अवस्था को प्यूबर्टी (puberty) कहते हैं।
22. जीवों में विभिन्नता स्पीशीज के लिए तो लाभदायक है परन्तु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्यों ?
उत्तर⇒अपनी जनन क्षमता का उपयोग कर जीवों की समष्टि पारितंत्र में अपना स्थान अथवा निकेत ग्रहण करते हैं। जनन के दौरान डी० एन० ए० प्रतिकृति का अविरोध जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाइन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं जा उसे विशिष्ट निकेत के योग्य बनाती है। अतः किसी प्रजाति (स्पीशीज) की समष्टि के स्थायित्व का संबंध जनन से है।
परंतु, निकेत में अनेक परिवर्तन आ सकते हैं जो जीवों के नियंत्रण से बाहर हैं। पृथ्वी का ताप कम या अधिक हो सकता है, जल स्तर में परिवर्तन अथवा किसी उल्का पिण्ड का टकराना इसके कुछ उदाहरण हैं। यदि एक समष्टि अपने निकेत के अनुकूल है तथा निकेत में कछ उग्र परिवर्तन आते हैं तो ऐसी अवस्था में समाष्ट का समूल विनाश भी संभव है। परंतु यदि समष्टि के जीवों में विभिन्नता होगी तो उनके जीवित रहने की कुछ संभावना है। अतः यदि शीतोष्ण जल में पाए जाने वाले जीवाणुओं की कोई समष्टि है तथा वैश्विक ऊष्मीकरण (global warming) के कारण जल का ताप बढ़ जाता है तो अधिकतर जीवाणु व्यष्टि मर जाएँगे, परंतु ऊष्ण प्रतिरोधी क्षमता वाले कुछ परिवर्त ही जीवित रहते हैं तथा वृद्धि करते हैं। अतः विभिन्नताएँ स्पीशीज की उत्तरजीविता बनाए रखने में उपयोगी हैं।
23. प्रतिवर्ती क्रिया क्या है ? चित्र की सहायता से इसका वर्णन करिए।
उत्तर⇒प्रतिवर्ती क्रियाएँ स्वायत्त प्रेरक के प्रत्युत्तर हैं। ये क्रियाएँ मस्तिष्क की इच्छा के बिना होती हैं। इसलिए ये अनैच्छिक क्रियाएँ हैं। यह बहुत स्पट आर यांत्रिक प्रकार की हैं। जैसे-जब हमारी आँखों पर तेज रोशनी पड़ती है तो हमारी आँख की पतली अचानक छोटी होने लगती है । यह क्रिया तुरंत और हमारे मस्तिष्क की इच्छा के बिना होती है।
प्रतिवर्ती क्रियाएँ मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित पेशियों द्वारा अनैच्छिक क्रियाएँ होती हैं जो प्रेरक के प्रत्युत्तर में होती हैं। यदि शरीर के किसी भाग में अचानक एक पिनचुभोया जाए तो संवेदियों द्वारा प्राप्त यह उद्दीपक इस प्रेरक तंतु क्षेत्र के एफैरेंट तंत्रिका तंतु को उद्दीपित करता है। तंत्रिका तंतु मेरु तंत्रिका के पृष्ठीय पथ द्वारा इस उद्दीपक को मेरुरज्जु तक ले जाता है।
मेरुरज्जु से यह उद्दीपन के अधरीय पथ द्वारा एक या अधिक इफरेंट (Efferent) तंत्रिका तंतु में पहुँचता है । इफैरेंट तंत्रिका तंतु प्रभावी अंगों को उद्दीपित करता है। पिन चुभोने के । तुरंत बाद इसी कारण प्राणी प्रभावी भाग हटा लेता है। उद्दीपक का संवेदी अंग से प्रभावी अंग तक का पथ प्रतिवर्ती चाप कहलाता है।
प्रतिवर्ती चाप तंत्रिका तंत्र की क्रियात्मक इकाई बनाती है।
प्रतिवर्ती चाप में होता है ।
(i) संवेदी अंग – वह अंग या स्थान जो प्रेरक को प्राप्त करता है।
(ii)एफैरेंट तंत्रिका तन्तु (Afferent Nerve Fibre)-यह संवेदक प्रेरणा को संवेदी अंग से केंद्रीय तंत्र तक ले जाता है, जैसे मस्तिष्क यामेरुरज्जु ।
(ii) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र-मस्तिष्क या मेरुरज्जु का कुछ भाग ।
(iv) इफैरेंट अथवा मोटर तंत्रिका (Efferent or Motor Nerve)- यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से मोटर प्रेरणाओं को प्रभावी अंगों तक लाता है, जैसे पेशियाँ अथवा ग्रंथियाँ।
(v) प्रभावी अंग (Effector)-यह तंत्रिका विहीन भाग जैसे ग्रंथियों की पेशियाँ जहाँ मोटर प्रेरणा खत्म होती है और प्रत्युत्तर दिया जाता है। कार्य-प्रतिवर्ती क्रिया प्रेरक को तुरंत प्रत्युत्तर देने में सहायता करती है और मस्तिष्क को भी अधिक कार्य से मुक्त करती है।
24. मानव मस्तिष्क का एक स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर⇒
25. मेरुरज्जु का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर⇒मेडूला ऑब्लाँगेटा खोपड़ी के महारंध्र से निकल कर रीढ़ की हड्डी की कशेरुकाओं के बीच में से निकल कर नीचे तक फैली रहती है।
इसी को मेरुरज्जु या रीढ़ रज्जु कहते हैं। इसके ऊपर डयरामेटर, ऐरेक्रॉइड और पिओमेट नामक तीन झिल्लियाँ उसी प्रकार होती हैं जैसी मस्तिष्क में ऊपर होती हैं। मेरुरज्जु से निश्चित दूरियों पर 31 जोड़े मेरू तंत्रिकाएँ निकलती हैं। इसकी लम्बाई लगभग 45 सेमी होती है।
मेरुरज्जु के कार्य
(i) यह साधारण प्रतिवर्ती क्रियाओं जैसे घुटने के झटके का प्रत्युत्तर, स्वयं मेरुरज्जु चालित प्रतिक्रियाएँ जैसे मूत्राशय का सिकुड़न आदि के समन्वय केंद्र काकार्य करती है।
(ii) यह मस्तिष्क और सुषुम्ना के मध्य संचार का कार्य करती है।
26. मानव नर जननांगों का वर्णन करें।
उत्तर⇒ मनुष्य केनर जनन तंत्र में निम्नलिखित अंग आते हैं-
(i) वृषण – मनुष्य में एक जोड़ी वृषण होते हैं जो वृषण कोश में बन्द रहते हैं। वृषण में शुक्राणु उत्पन्न होते हैं। वृषण से शुक्राणु निकलने के बाद लगभग 48 घन्टे तक जीवित रहते हैं। शुक्राणुओं का निर्माण शुक्रजनन कहलाता है। वृषण कोष शुक्राणुओं को शरीर के ताप से 1-3°C निम्न ताप प्रदान करते हैं।
वृषण के कार्य हैं—
(क) शुक्राणु उत्पन्न करना, तथा (ख) नर लिंग, हारमोन-टेस्टोस्टीरोन की उत्पत्ति तथा स्रावण ।
यदि वृषण देहगुहा में ही रह जाते हैं तो बन्ध्यता उत्पन्न होती है।
(ii) एपीडिडिमिस – यह एक नलिकाकार संरचना होती है जो वृषण के साथ मजबूती से जुड़ी रहती है। यह सेमिनीफेरस नलिकाओं से जुड़ी रहती है ओर शुक्राणुओं के लिए एक संचय घर का कार्य करती है।
(iii) शक्राशय – एपीडिडिमिस से शुक्राणु वाहिनी द्वारा शुक्राणु शुक्राशय में आते हैं जहाँ ये पूरी तरह परिपक्व होते हैं तथा इनमें कुछ स्राव मिल जाते है।
(iv) प्रोस्टेट ग्रन्थि – यह ग्रन्थि कुछ विशिष्ट गंध या स्राव स्रावित करती है जो कि शुक्र रस में मिल जाते हैं।
(v) मन्त्र मार्ग – यह वह मार्ग है जिसमें से होकर मूत्र बाहर आता है। यह मूत्र मार्ग एक पेशीय अंग से निकलता है जिसे शिश्न कहते हैं। शिश्न का उपयोग मूत्र करने के साथ-साथ शुक्राणुओं (शुक्ररस) को निकालने के लिये भी किया जाता है।
27. पौधों में कायिक प्रवर्धन की किन्हीं तीन कृत्रिम विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर⇒कायिक जनन की तीन कृत्रिम विधियाँ कायिक प्रवर्धन की कृत्रिम विधियों में रोपण, कलम लगाना, दाब कलम तथा ऊतक संवर्धन प्रमख हैं।
(i) कलम लगाना – इस विधि म राना, पात्तया तथा जड़ों का प्रयोग किय बनाकर जिसमें दो पर्वसन्धियाँ होती हैं, भूमि में गाड़ देते हैं। कुछ समय बाद उनसे जड़ें तथा प्ररोह विकसित हो जाते हैं । उदाहरण गुलाब तथा गन्ना, गुड़हल व अंगूर । कक्षस्थ कलिकाओं सहित तने के टुकड़ों को मातृ पौधे से अलग कर लेते हैं।
(ii) दाब लगाना – इसे गूटी लगाना भी कहा जाता है। कुछ पौधों के तने के भाग भूमि के समीप होते हैं। उन्हें झुकाकर ज़मीन में मिट्टी में दबा देते हैं। वहीं . पर कुछ समय बाद जड़ें निकल आती हैं। उसे मातृ पौधे से अलग कर लेते हैं। इस प्रकार नया पौधा प्राप्त होता है। उदाहरण-नींबू, मोगरा, अमरूद, गुड़हल,जैसमीन, बोगेनविलिया आदि।
(iii) कली लगाना – इस विधि में साधारण जाति के पौधे के तने पर छाल की गहराई तक एक तिरछा काट लगा देते हैं। उसी काट में एक अच्छे पौधे की कलिका को उसी जाति के पौधे से रोपित कर देते हैं । कुछ समय बाद कलिका पौधे से जुड़ जाती है और नई शाखा बन जाती है। इसे काट कर अलग कर देते हैं। यह विधि गुलाब, अंगुर, शरीफा, संतरा आदि में अपनाई जाती है।
28. रजोधर्म का वर्णन कीजिए।
उत्तर⇒ स्त्रियों में मासिक धर्म-स्त्रियों में यह चक्र 13-15 वर्ष की आयु में ‘प्रारम्भ होता है। यह यौवनावस्था होती है। स्त्रियों में मासिक धर्म 28 दिन का होताहै। यही समय अण्डाणु का पूर्ण जीवन काल होता है।
इसकी अवस्थायें निम्नलिखित हैं-
(i) 1-5 वें दिन तक पुराना अंडाणु रजोधर्म के समय बाहर आता है।अंडाशय में नये अंडाणु की वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है ।
(ii) 6-12वें दिन तक अंडाशय से अंडाणु परिपक्व होकर ग्रेफियन फालिकिल बन जाता है।
(iii) 13-14वें दिन में ग्रफियन फालिकिल अंडाशय से बाहर आकर अंडवाहिनी में पहुँच जाता है। ये अंडोत्सर्ग कहलाता है।
(iv) 15-16वें दिन अंडाणु अंडवाहिनी और फिर गर्भाशय में आकर शुक्राणु से मिलने की प्रतीक्षा करता है। यदि इस बीच निषेचन होता है हो अंडाणु युग्मनज में परिवर्तित हो जाता है, जो विकास करके 9 माह में शिशु बनकर जन्म लेता है।
(v) निषेचन नहीं होता है तो 17-28वें दिन तक यह निष्क्रिय हो जाता है। 28 दिन बाद रजोधर्म से बाहर आता है।
(vi) यह चक्र एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टीरोन हार्मोन्स द्वारा नियंत्रित रहता है।स्त्रियों में रजोनिवृत्ति 45-50 वर्ष तक होती है। लड़कों में किशोरावस्थाका प्रारम्भ 13 से 15 वर्ष में होता है। इनमें कोई चक्र नहीं होता है। शुक्राणओं का निर्माण जीवन भर होता है ।
29. मुकुलन क्या है ? हाइड्रा तथा स्पंज में मुकुलन द्वारा जनन कैसे होता है ?
उत्तर⇒ शरीर पर एक ऊर्ध्व संरचना बनती है जिसे मुकुल कहते हैं। शरीर का केन्द्रक दो भागों में विभक्त हो जाता है और उनमें से एक केन्द्रक मुकुल में आ जाता है। मुकुल पैतृक जीव से अलग होकर वृद्धि करता है और पूर्ण विकसित जीव बन जाता है। जैसे यीस्ट, हाइड्रा तथा ल्यूकोसोलिनिया (स्पंज) आदि ।
30. गर्भनिरोधन की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर⇒बच्चों के जन्म को नियमित करने के लिए आवश्यक है कि मादा का निषेचन न हो।
इसके लिए मुख्य गर्भ निरोधक विधियाँ निम्नलिखित हैं –
(i) रासायनिक विधि—अनेक प्रकार के रासायनिक पदार्थ मादा निषेचन को रोक सकते हैं। स्त्रियों के द्वारा गर्म-निरोधक गोलियाँ प्रयुक्त की जाती हैं। झाग की गोली, जैली, विभिन्न प्रकार की क्रीमें आदि यह कार्य करती हैं।
(ii)शल्य – पुरुषों में नसबंदी तथा स्त्रियों में भी नसबंदी के द्वारा निषेचन रोका जाता है। पुरुषों की । शल्य चिकित्सा में शुक्र वाहिनियों को काटकर बाँध दिया जाता है जिससे वृषण में बनने वाले शुक्राणु बाहर नहीं आ पाते । स्त्रियों में अंडवाहिनी को काटकर बाँध देते हैं जिससे अंडाशय में बने अंडे गर्भाशय में नहीं आ पाते।
(iii) भौतिक विधि – विभिन्न भौतिक विधियों से शुक्राणुओं को स्त्री के गर्भाशय में जाने से रोक दिया जाता है । लैंगिक संपर्क में निरोध आदि प्रयोग इसी के अंतर्गत आता है।