जवाहर – रोजगार योजना
जवाहर – रोजगार योजना
हमारा देश कृषि प्रधान देश है। यहाँ की अस्सी प्रतिशत जनसंख्या केवल गाँवों में निवास करती है। इतनी बड़ी जनसंख्या का भाग शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में बहुत पिछड़ा हुआ है। इस पिछड़ेपन के कारण एक नहीं अनेक हैं। ये एक समान नहीं हैं, अपितु विविध हैं। कहीं तो भूमि अन्नोत्पादक योग्य नहीं है। कहीं ऊबड़-खाबड़ और बहुत कठोर है। कहीं-कहीं पर तो वह असिंचित और ऊसर है । यही नहीं अपितु इसके साथ ही साथ ग्रामीणों का पैतृक धन्धा और रोजगार भी अब मशीनीकरण और औद्योगिकीकरण ने छीनना-हड़पना शुरू कर दिया है। विविध प्रकार की मशीनों के प्रयोग के कारण अब न तो कुटीर या लघु उद्योग बच पाये हैं और न हस्तोद्योग ही शेष रह गए हैं। आज तो ग्रामीणों को विकट समस्या के घने जंगल में भटकना पड़ रहा है। किसी-किसी के पास भूमि है तो वह आज के नवीन औजार-यन्त्रों, उर्वरकों की मंहगी मार से उत्पादक भूमि नहीं रह गयी है; क्योंकि इसके लिए वह यथोचित रूप में आवश्यकतानुसार बीज, खाद, पानी और अन्य जरूरी चीजों को पनाभाव के कारण जुटा पाने में पीछे रह जाती है। इस तरह उसकी जमीन ज्यों की त्यों पड़ी की पड़ी रह जाती है ।
इस प्रकार की ग्रामीणों की दुर्दशा और कष्टपूर्ण स्थिति को ध्यान में रखकर ही ‘जवाहर – रोजगार योजना’ को अप्रैल 1989 को तत्कालीन युवा प्रधान मन्त्री श्री राजीव गाँधी ने लोक सभा और राज्य सभा दोनों सदनों में इसको लागू करने के लिए घोषित कर दिया था। श्री गाँधी का यही मुख्य विचार रहा कि इस योजना का लाभ उन ग्रामीणों को प्राप्त होगा, जो हर प्रकार से शोषित, पीड़ित, सताए गए दीन दुःखी और अभावग्रस्त जीवन जीने के लिए मजबूर किए जा रह हैं। श्री गाँधी ने इस योजना को लागू करने के सन्दर्भ में यह घोषणा की थी “इस योजना को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने के लिए 2100 करोड़ रुपये की धनराशि दी जायेगी । प्रत्येक गाँव का पंचायत तक पहुँचना ही इसका मुख्य लक्ष्य है। भारत के ग्रामवासियों के समस्त अभावों को दूर करना इस योजना का सर्वप्रधान लक्ष्य और प्रयास होगा। निर्धनता और महामारी को दूर करने का महत्त्वपूर्ण प्रयास यह योजना करेगी ।”
इस पर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह तभी सार्थक और सफल होगा, जब हमारी आर्थिक नीति का संतुलन कायम हो सकेगा। हमारी आर्थिक नीति के संतुलन के बिगड़ने के कारण हमें निर्धनता और महामारी सहित अनेक प्रकार की सामाजिक विषमताओं का सामना करना पड़ता है। आर्थिक विकास की गलत नीतियों के कारण ही ग्रामवासियों को अभावग्रस्त जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है। आर्थिक विकास की धुरी ऐसी होनी चाहिए, जिससे समूचे देश में आर्थिक वितरण न्यायपूर्ण ढंग से हो ।
इस योजना के अन्तर्गत रोजगारों की प्राप्ति के भाग का 30 प्रतिशत केवल महिलाओं के लिए आरक्षित होगा। आदिवासियों व खानाबदोश जातियों के हितों की रक्षा को इस योजना के अन्तर्गत प्राथमिकता प्रदान की जायेगी । इय योजना के अन्तर्गत यह भी एक प्रावधान है कि प्रत्येक निर्धन ग्रामीण परिवार के एक सदस्य को उसके निवास स्थान के निकट एक वर्ष में 50 से 100 दिन तक रोजगार दिया जायेगा। अपने-अपने गाँवों में इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए तीन से चार हजार व्यक्तियों वाली प्रत्येक पंचायत को प्रतिवर्ष अस्सी हजार से एक लाख रुपये की धनराशि मिलेगी बशर्ते कि उसका गाँव दूर स्थित एक पिछड़े हुए क्षेत्र में हो।
इस योजना की अपेक्षित धनराशि का अस्सी प्रतिशत (64 हजार से 80 हजार ) केन्द्र सरकार तथा 20 प्रतिशत ( 16 हजार से 20 हजार ) राज्य सरकारें वहन करेंगी । इस योजना की राज्य सरकारें द्वारा जुटाई जाने वाली निम्नलिखित धनराशि आनुपातिक क्रम से प्रस्तुत है
उत्तर प्रदेश (417.14), बिहार (312.31 ), मध्य प्रदेश (206.68), पश्चिमी बंगाल (174.34), महाराष्ट्र (166.95), आंध्र प्रदेश (155.86 ), तमिलनाडु (139.94), उड़ीसा (102.10), राजस्थान (99.54), हरियाणा (15.37), पंजाब (12. 97), कर्नाटक ( 97.56), गुजरात (64.17 ), केरल ( 53 ), असम ( 42.5), जम्मू और कश्मीर (7.68), हिमाचल प्रदेश ( 5.5), त्रिपुरा (4.36 ), नागालैंड (4.07), मेघालय ( 3.69), गोवा (2.73 ), अरुणाचल (2.47 ), सिक्किम (1.51), मणिपुर (1.26), दिल्ली (1.89), पांडिचेरी (121.8), अण्डमान निकोबार महाद्वीप (58.8), दादरा और नगर हवेली ( 37.87 ), दमन और द्वीप ( 29.4), चण्डीगढ़ ( 8.4 ) , और लक्षद्वीप (8.4) I
श्री राजीव गाँधी ने पूरे राष्ट्र के सामने आवेशपूर्ण शब्दों में कहा है कि लगभग 80 प्रतिशत धनराशि को लोग डकार गये हैं। इसलिए गरीबों के साथ न्याय नहीं हो सका है। इस योजना के द्वारा पंचायतों का मार्गदर्शन दिया गया है। स्थानीय सम्पत्ति के भण्डार – स्रोतों, वनों, नदियों और पर्वतों के सही उपयोग के लिए बल दिया गया है। इस योजना के द्वारा 440 लाख परिवारों को लाभ होगा। इससे बेरोजगारों की संख्या घंटेगी तथा भ्रष्टाचार, स्वार्थवाद और अन्य सामाजिक कुरीतियों की शक्ति क्षीण होगी। सचमुच में इस योजना के द्वारा भाईचारा, एकता, समन्वय आदि का सुखद वातावरण लहरायेगा ।
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