जनतंत्र का जन्म

जनतंत्र का जन्म

Hindi ( हिंदी )

लघु उतरिये प्रश्न

प्रश्न 1. कवि की दृष्टि में आज के देवता कौन हैं और वे कहाँ मिलेंगे ?

उत्तर ⇒कवि ने भारतीय प्रजा, जो खून-पसीना बहाकर देशहित का कार्य करती है, जिसके बल पर देश में सुख-सम्पदा स्थापित होता है, किसान, मजदूर जो स्वयं आहूत होकर देश को सुखी बनाते हैं, उन्हें आज का देवता कहा है।


प्रश्न 2. कवि ने जनता को ‘दूधमुँही’ क्यों कहा है ?

उत्तर ⇒ सिंहासन पर आरूढ़ रहने वाले राजनेताओं की दृष्टि में जनता फूल या दूधमुंही बच्ची की तरह है। रोती हुई दूधमुंही बच्ची को शान्त रखने के लिए उसके सामने खिलौने दे दिये जाते हैं। उसी प्रकार रोती हुई जनता को खुश करने के लिए कुछ प्रलोभन दिए जाते हैं।


प्रश्न 3. कवि जनता के स्वप्न का किस तरह चित्र खींचता है ?

उत्तर ⇒ भारत की जनता सदियों से, युगों-युगों से राजा के अधीनस्थ रही है लेकिन कवि ने कहा है कि चिरकाल से अंधकार में रह रही जनता राजतंत्र को उखाड़ फेंकने के स्वप्न देख रही है। राजतंत्र समाप्त होगा और जनतंत्र कायम होगा। राजा नहीं बल्कि प्रजा राज करेगी।


प्रश्न 4. “देवता मिलेंगे खेतों में खलिहानों में” पंक्ति के माध्यम से कवि किस देवता की बात करते हैं और क्यों ?

उत्तर ⇒ प्रश्नोक्त पंक्ति के माध्यम से कवि जनतारूपी देवता की बात करते हैं, क्योंकि कवि की दृष्टि में कर्म करता हुआ परिश्रमी व्यक्ति ही देवतास्वरूप है। मंदिरों-मठों में तो केवल मूर्तियाँ रहती हैं वास्तविक देवता वे ही हैं जो अपने कर्म तथा परिश्रम से समाज को सुख-समृद्धि उपलब्ध कराते हैं।


प्रश्न 5. ‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता का भावार्थ लिखें।
अथवा, कविता का मूल भाव क्या है ? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर ⇒ प्रस्तुत कविता आधुनिक भारत में जनतंत्र के उदय का जयघोष है। सदियों की पराधीनता के बाद स्वतंत्रता-प्राप्ति हुई और भारत में जनतंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा हुई । जनतंत्र के ऐतिहासिक और राजनीतिक अभिप्रायों को कविता में उजागर करते हुए कवि यहाँ एक नवीन भारत का शिलान्यास करता है जिसमें जनता ही स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ होने को है। इसमें कवि ने जनता निहित शक्ति को उजागर करते हुए जनतंत्र की महत्ता को स्थापित करने पर बल दिया है। राजतंत्र की जड़ को उखाड़ फेंकने की ताकत जनता में है और राजसिंहासन का वास्तविक अधिकारी प्रजा ही है, ऐसा चित्रण किया गया है।


प्रश्न 6. दिनकर की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर-नाद क्या है ? स्पष्ट करें।
अथवा, कवि की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर-नाद क्या है ? स्पष्ट करें।

उत्तर ⇒ कवि ने सदियों से राजतंत्र से शासित जनता की जागति को उजागर करते हए समय के चक्र की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है। राजसिंहासन पर प्रजा आरूढ होने जा रही है। समय की पुकार ही क्रांति की शंखनाद के रूप में रथ का घर्घर-नाद है।


प्रश्न 7. कवि के अनुसार किन लोगों की दृष्टि में जनता फूल या दुध मँही बच्ची की तरह है और क्यों ? कवि क्या कहकर उनका प्रतिवाद करता है ?

उत्तर ⇒ अंग्रेजी सरकार भी भारत की जनता को अबोध समझकर कुछ प्रलोभन देकर राजसुख में लिप्त है । वह समझती है कि जनता फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है लेकिन इसके प्रतिकार में कवि ने कहा है कि जब भोली लगनेवाली जनता जाग जाती है, जब उसे अपने में निहित शक्ति का आभास हो जाता है तब राजतंत्र हिल उठता है।


प्रश्न 8. कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन किस रूप में करता है ?

उत्तर ⇒ कविता के आरंभ में कवि ने भारतीय जनता की सरल एवं विनीत छवि का वर्णन किया है । कवि ने कहा है कि जनता सहनशील होती है, जाड़ा-गर्मी सबको सहती है, दुःख-सुख में एकसमान रहती है। मिट्टी की मूरत की तरह अबोध है। जनता फूल की तरह है जिसे जब चाहो, जहाँ जिस रूप में रख दो । जनता अबोध बालक है जिसे छोटे प्रलोभन देकर प्रसन्न किया जा सकता है, अर्थात् भारत की भोली-भाली जनता असहनीय पीड़ा को चुपचाप सहकर भी मूक बनी रहनेवाली है। राजा द्वारा शोषित होने पर भी प्रतिकार नहीं करती है।

प्रश्न 9. कविता का मूल भाव क्या है ? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए ? अथवा, ‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता का भावार्थ लिखें।

उत्तर :- प्रस्तुत कविता आधुनिक भारत में जनतंत्र के उदय का जयघोष है। सदियों की पराधीनता के बाद स्वतंत्रता-प्राप्ति हुई और भारत में जनतंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा हुई । जनतंत्र के ऐतिहासिक और राजनीतिक अभिप्रायों को कविता में उजागर करते हुए कवि यहाँ एक नवीन भारत का शिलान्यास करता है जिसमें जनता ही स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ होने का है। इसमें कवि ने जनता निहित शक्ति को उजागर करते हुए जनतंत्र की महत्ता को स्थापित करने पर बल दिया है। राजतंत्र की जड़ को उखाड़ फेंकने की ताकत जनता में है और राजसिंहासन का वास्तविक अधिकारी प्रजा ही है, ऐसा चित्रण किया गया है।


दीर्घ उतरिये प्रश्न

प्रश्न 1. दिनकर रचित ‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता का सारांश लिखें।

उत्तर ⇒ ‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता आधुनिक भारत में जनतंत्र के उदय की जयघोष है।                                        समय का रथ सिंहासन की ओर बढ़ता आ रहा है। वह सिंहासनासीन अधिनायक से कहता है कि अब तुम सिंहासन का मोह त्याग दो। इसपर केवल जनता का अधिकार है। उसी जनता का इस सिंहासन पर अधिकार है जो युगों से पद-दलित रही है और जिसने अपने शोषण के विरुद्ध कभी आवाज नहीं उठाई है। वह जनता अब कोई दुधमुंही बच्ची नहीं रही जिसे खिलौनों से बहलाया जा सकें। जनता कोपाकुल होकर जब अपनी भृकुटि चढ़ाती है तो भूचाल आ जाता है। बड़े-बड़े बवंडर उठने लगते हैं। उनके हुंकारों में महलों को उखाड़ फेंकने की ताकत है, उनकी साँसों में ताज को हवा में उड़ा देने का बल है। जनता की राह को रोकने की क्षमता किसी में भी नहीं है। वह अपने साथ काल लिए चलती है। काल पर भी उसका शासन चलता है। सुनो, वह जनता युगों के शोषण के अंधकार को चीरती हुई बड़े वेग के साथ सिंहासन की तरफ आ रही है। संसार का सबसे बड़ा जनतंत्र सिंहासन के पास खड़ा है। उसका हृदय से अभिषेक करो। अब तुम्हारा समय नहीं रहा। अब प्रजा का समय है।

देवता मंदिरों, राजप्रासादों और तहखानों में निवास नहीं करते। वास्तविक देवता तो खेतों में, खलिहानों में हल चलाते मिलेंगे; कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ते और फावड़े चलाते मिलेंगे। अब उन्हीं किसानों और मजदूरों की बारी है। अब वे ही राज सिंहासन पर आरूढ़ होंगे। सिंहासन खाली कर देने में तुम्हें कोई आना-कानी नहीं करना चाहिए।


सप्रसंग व्याख्या

प्रश्न 1. निम्नलिखित पंक्तियों के भाव स्पष्ट करें:

‘हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती
साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।”

उत्तर ⇒ प्रस्तुत पद्यांश में कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने जनता में निहित व्यापक शक्ति को उजागर किया है। इसमें कहा गया है कि जनता जब जाग जाती है, अपने शक्ति-बल का अभ्यास करके जब चल पड़ती है तब समय भी उसकी राह नहीं रोक सकती बल्कि जनता ही जिधर चाहेगी कालचक्र को मोड़ सकती है।
युगों-युगों से अंधकारमय वातावरण में जीवन व्यतीत कर रही जनता अब जागृत हो चुकी है। युगों-युगों के स्वप्न को साकार करने हेतु कदम बढ़ चुके हैं जिसे अब रोका नहीं जा सकता।


प्रश्न 2. व्याख्या करें : –
“सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।”

उत्तर ⇒ प्रस्तुत पद्यांश कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘जनतंत्र का जन्म’ से लिया गया है। यहाँ कवि जनतंत्र के आगमन का संकेत करते हुए साम्राज्यवादियों को जनता के लिए राजगद्दी छोड़ने का निर्देश करता है।
कवि कहता है कि जनतंत्र के आगमन से युगों-युगों तक जनता के हृदय की जो आग बुझकर ठंढी हो चुकी थी उसमें भी चेतना और सुगबुगाहट पैदा हो गयी और धरती भी सोने का ताज पहनकर इठलाने लगी है। जनता जिस रथ पर आ रही है उसका शब्द भी सुनाई पड़ता है, इसलिए उसका रास्ता खाली करते हुए राजगद्दी भी साम्राज्यवादी लोग छोड़ दें।
अर्थात्, कवि का अभिप्राय है कि क्रांति हो चुकी है, सब जगह उल्लासमय वातावरण है और जनता अब अपनी राजगद्दी सँभालने को तत्पर है।

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