चुनावी राजनीति Electoral Politics
चुनावी राजनीति Electoral Politics
चुनाव क्या है ?
♦ चुनाव ऐसी लोकतान्त्रिक व्यवस्था है जिससे लोग नियमित अन्तराल पर अपने प्रतिनिधियों को चुन सकें और अगर इच्छा हो तो उन्हें बदल भी दें सके।
♦ प्रतिनिधित्व वाले लोकतन्त्र में चुनाव को जरूरी माना जाता है।
चुनाव की जरूरत क्यों है?
♦ यह सम्भव नहीं कि प्रत्येक नागरिक शासन में प्रत्यक्ष रूप से भागीदार हो। इसलिए वह अपने प्रतिनिधियों को शासन का भार सौंपता है। प्रतिनिधियों के चयन के लिए लोकतान्त्रिक प्रक्रिया वाले चुनाव की आवश्यकता होती है।
♦ नियमित अन्तराल पर चुनाव करने से प्रतिनिधियों पर अंकुश लगाया जा सकता है, यदि किसी प्रतिनिधि ने अपने पिछले कार्यकाल में अच्छा कार्य नहीं किया हो, तो जनता के पास उससे छुटकारा पाने का विकल्प चुनाव देता है।
♦ चुनाव के जरिए लोग अपने लिए कानून वाले का चुनाव करते हैं।
♦ जनता द्वारा चुना गया प्रतिनिधि सरकार बनाने में भूमिका निभा सकता है अथवा सरकार के विपक्ष में रहकर एक अहम भूमिका अदा कर सकता है।
चुनाव को लोकतान्त्रिक मानने के आधार क्या हैं?
♦ हर किसी को चुनाव करने की सुविधा हो अर्थात् हर किसी को मताधिकार हो और हर किसी के मत का समान मोल हो।
♦ चुनाव में विकल्प उपलब्ध हों। पार्टियों और उम्मीदवारों को चुनाव में उतरने की आजादी हो और वे मतदाताओं के लिए विकल्प पेश करें।
♦ चुनाव का अवसर नियमित अन्तराल पर मिलता रहे। नये कुछ वर्षों में जरूर कराए जाने चाहिए।
♦ लोग जिसे चाहें वास्तव में चुनाव उसी का होना चाहिए।
♦ चुनाव स्वतन्त्र और निष्पक्ष ढंग से कराए जाने चाहिए जिससे लोग सचमुच अपनी इच्छा से व्यक्ति का चुनाव कर सकें।
क्या राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता अच्छी चीज है?
♦ चुनाव का मतलब राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता है। निर्वाचन क्षेत्रों में इसका स्वरूप उम्मीदवारों के बीच प्रतिद्वन्द्विता का हो जाता है। यदि यह प्रतिद्वन्द्विता नहीं रहे तो चुनाव का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा।
♦ चुनावी प्रतिद्वन्द्विता द्वारा राजनीतिक दल दूसरे दलों से अपने को श्रेष्ठ साबित करने का प्रयास करते हैं। नियमित चुनावी मुकाबले का लाभ राजनीतिक दलों और नेताओं को मिलता है। वे जानते हैं कि अगर उन्होंने लोगों की इच्छा के अनुसार मुद्दों को उठाया तो उनकी लोकप्रियता बढ़ेगी और अगले चुनाव में उनकी जीत की सम्भावना भी बढ़ेगी, इन्हीं उद्देयों की पूर्ति के लिए वे राजनैतिक प्रतिद्वन्द्विता का सहारा लेते हैं।
चुनाव की हमारी प्रणाली क्या है?
♦ हमारे यहाँ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हर पाँच साल बाद होते हैं।
♦ पाँच साल के बाद सभी चुने हुए प्रतिनिधियों का कार्यकाल समाप्त हो जाता है। लोकसभा और विधानसभाएँ भंग हो जाती हैं। फिर सभी चुनाव क्षेत्रों में एक ही दिन या एक छोटे अन्तराल में अलग-अलग दिन चुनाव होते हैं। इसे आम चुनाव कहते हैं।
♦ कई बार सिर्फ एक क्षेत्र में चुनाव होता है जो किसी सदस्य की मृत्यु या इस्तीफे से खाली हुआ होता है। इसे उपचुनाव कहते हैं।
चुनाव क्षेत्र
♦ चुनाव के उद्देश्य से देश को अनेक क्षेत्रों में बाँट लिया गया है, इन्हें निर्वाचन क्षेत्र कहते हैं।
♦ एक क्षेत्र में रहने वाले मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं।
♦ लोकसभा चुनाव के लिए देश को 543 निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है। हर क्षेत्र से चुने गए प्रतिनिधियों को संसद सदस्य कहते हैं।
♦ प्रत्येक राज्य को उसकी विधानसभा की सीटों के हिसाब से बाँटा गया है। इन सीटों से निर्वाचित प्रतिनिधियों को विधायक कहते हैं। प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में विधानसभा के कई-कई निर्वाचन क्षेत्र आते हैं।
♦ पंचायत चुनाव के लिए पंचायत को वार्डों में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक वार्ड से पंचायत या नगरपालिका के लिए एक सदस्य का चुनाव होता है।
♦ कुछ चुनाव क्षेत्र अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित किए गए हैं, इन्हें आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र कहा जाता है।
♦ इस समय लोकसभा की 84 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए और 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। ये सीटें पूरी आबादी में इन समूहों के हिस्से के अनुपात में हैं।
मतदाता सूची
♦ लोकतान्त्रिक चुनाव में मतदान की योग्यता रखने वालों की सूची चुनाव से काफी पहले तैयार कर ली जाती है और हर किसी को दे दी जाती है। इस सूची को आधिकारिक रूप से मतदाता सूची कहते हैं।
♦ भारत में 18 वर्ष से ऊपर के सभी व्यक्तियों को मताधिकार प्राप्त है।
♦ अपराधियों और दिमागी असन्तुलन वाले कुछ लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है, किन्तु ऐसा सिर्फ बेहद खास परिस्थितियों में ही होता है।
♦ सभी सक्षम मतदाताओं का नाम मतदाता सूची में हो यह व्यवस्था करना सरकार की जिम्मेदारी है।
♦ पिछले कुछ वर्षों में चुनावों में फोटो पहचान पत्र की नई व्यवस्था लागू की गई है।
उम्मीदवारों का नामांकन
♦ चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम उम्र 25 वर्ष होती है।
♦ चुनाव लड़ने के इच्छुक हर एक उम्मीदवार को एक ‘नामांकन पत्र’ भरना पड़ता है और कुछ रकम जमानत के रूप में जमा करानी पड़ती है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर उम्मीदवारों से एक घोषणा पत्र भरवाने की प्रणाली भी शुरू हुई है।
♦ प्रत्येक उम्मीदवार को निम्नलिखित विवरण देना अनिवार्य होता है
(i) उम्मीदवार के खिलाफ चल रहे गम्भीर आपराधिक मामले ।
(ii) उम्मीदवार और उसके परिवार के सदस्यों की सम्पत्ति और देनदारियों का ब्यौरा
(iii) उम्मीदवार की शैक्षिक योग्यता ।
चुनाव अभियान
♦ हमारे देश में उम्मीदवारों की अन्तिम सूची की घोषणा होने और मतदान की तारीख के बीच आमतौर पर दो सप्ताह का समय चुनाव प्रचार के लिए दिया जाता है। इस अवधि में उम्मीदवार मतदाताओं से सम्पर्क करते हैं, राजनेता चुनावी सभाओं में भाषण देते हैं और राजनीतिक पार्टियाँ अपने समर्थकों को सक्रिय करती हैं।
♦ चुनाव अभियान के दौरान राजनीतिक पार्टियाँ लोगों का ध्यान कुछ बड़े मुद्दों पर केन्द्रित कराना चाहती हैं।
♦ चुनाव प्रचार के दौरान निम्नलिखित कार्यों की सख्त मनाही है इनमें से किसी मामले में दोषी पाए गए तो चुने जाने के बावजूद उनका चुनाव रद्द हो सकता है
(i) मतदाता को प्रलोभन देना, घूस देना या धमकी देना।
(ii) उनसे जाति या धर्म के नाम पर वोट माँगना।
(iii) चुनाव अभियान में सरकारी साधनों का इस्तेमाल करना।
(iv) लोकसभा चुनाव में एक निर्वाचन क्षेत्र में ₹25 लाख या विधानसभा चुनाव में ₹10 लाख से ज्यादा खर्च करना ।
♦ हमारे देश की सभी राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव प्रचार की आदर्श आचार संहिता को भी स्वीकार किया है।
मतदान और मतगणना
♦ चुनाव का आखिरी चरण है, मतदाताओं द्वारा वोट देना। इस दिन को आमतौर पर चुनाव का दिन कहते हैं ।
♦ हमारे देश में मतदान अब ईवीएम अर्थात् इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों द्वारा होता है।
♦ मतदान हो जाने के बाद सभी वोटिंग मशीनों को सील बन्द करके एक सुरक्षित जगह पर पहुँचा दिया जाता है।
♦ एक तय तारीख पर एक चुनाव क्षेत्र की सभी मशीनों को एक साथ खोला जाता है और मतों की गिनती की जाती है। वहाँ दलों के एजेण्ट रहते हैं जिससे मतगणना का काम निष्पक्ष हो सके।
♦ किसी चुनाव में सर्वाधिक मत पाने वाले उम्मीदवार को विजयी घोषित किया जाता है।
स्वतन्त्र चुनाव आयोग
♦ हमारे देश में चुनाव एक स्वतन्त्र और बहुत ताकतवर चुनाव आयोग द्वारा करवाए जाते हैं। इसे न्यायपालिका के समान हो आजादी प्राप्त है।
♦ मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं।
♦ एक बार नियुक्त हो जाने के बाद चुनाव आयुक्त राष्ट्रपति या सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं रहता। यदि शासक या सरकार को चुनाव आयोग पसन्द न हो तब भी मुख्य चुनाव आयुक्त को हटा पाना लगभग असम्भव है।
♦ चुनाव आयोग चुनाव की अधिसूचना जारी करने से लेकर चुनावी नतीजों की घोषणा तक, पूरी चुनाव प्रक्रिया के संचालन के हर पहलू पर निर्णय लेता है।
♦ चुनाव के दौरान चुनाव आयोग आदर्श चुनाव संहिता लागू कराता है और इसका उल्लंघन करने वाले उम्मीदवारों और पार्टियों को सजा देता है।
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