चीन चुपके-चुपके विकास करता रहा और हम देखते रहे, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के इंटरव्यू की तीसरी कड़ी
Prabhat Khabar Special: ‘हमारा पड़ोसी देश चीन कभी आर्थिक मजबूती के तौर पर भारत से काफी पीछे था. वह चुपके-चुपके विकास करता रहा और हम देखते रहे.’ यह हम नहीं, बल्कि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के एक्सक्लूसिव इंटरव्यू का सार है. राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के साथ प्रभात खबर डॉट कॉम के संपादक जनार्दन पांडेय ने लंबी बातचीत की है. पेश है उस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू की तीसरी कड़ी…
हरिवंश: इस विकास की यात्रा में हर राज्य को समझना होगा कि उनकी साझेदारी उतनी है. उनका योगदान उतना ही जरूरी है. मैं आजकल दो तीन विधानसभाओं में नए देश के हाल के महीने डेढ़ महीने में गया. उनके जो नए विधायक होते हैं. ओरिएंटेशन प्रोग्राम होता है. उनके साथ संवाद करने के लिए मुझे बुलाया गया.
जनार्दन पांडेय: अभी आप जाने वाले भी है शायद?
हरिवंश: नहीं, ऑलरेडी यहां कल मैं बात कर चुका हूं लंबा और एक जम्मू कश्मीर में गया था और एक अभी चंडीगढ़ गया था. उसके पहले पटना में दूसरे ढंग का स्पीकर्स कॉन्फ्रेंस था. उसके पहले इसी कार्यक्रम के लिए ओडिशा में गया था. अभी हाल में मैं एक-एक लेख के बारे में राज्यों में भी कहता हूं और मीडिया से भी कहता हूं. मैंने अभी पढ़ा ही हुआ है. मैं आपको दिखा दूं. ये लेख है. इकोनॉमिक टाइम्स में छपा है 8 फरवरी को. यह लेख भी किसी असाधारण व्यक्ति का ही है. यह हैं कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम. यह साधारण व्यक्ति हैं. यह भारत के आर्थिक सलाहकार पहले रहे हैं. आज की तारीख में आईएमएफ के एक्सक्यूटिव डायरेक्टर हैं. इन्हीं की किताब है इंडिया एट द रेट ऑफ 100 यानी 100 वर्षों बाद भारत दुनिया के बड़े अर्थशास्त्री ही आईएमएफ एक्टिव डायरेक्टर होंगे. कहने की जरूरत नहीं भारत के बारे में. इस व्यक्ति ने किताब लिखी. अब वो अर्थशास्त्री हैं, जो भारत के बारे में कंसर्न हैं, सोचते हैं. इनका सवाल है मीडिया से लेकर के और हमारे सारे जो बौधिक हैं देश के उनसे. और सारे ये जितने बॉडीज हैं, आपके चेंबर ऑफ कॉमर्स जैसे इस तरह की जितनी बॉडीज हैं, उन सब से कि भाई केंद्र सरकार का जब बजट आता है, तो केंद्र सरकार के बजट पर चर्चा, राज्य सरकार के बजट की स्क्रूटनी क्यों नहीं? तब तो आप चैनलों पर बड़ा लंबा डिस्कशन चलाते हैं. ओपेट चलाते हैं. अखबारों में सब लोग विचार व्यक्त करते हैं, पर असल विकास का इंजन तो एक तरह से कहें… यह मैं कह रहा हूं, वह तो राज्यों के हाथ में है. क्या राज्य के मीडिया राज्य के लोग राज्य के चेंबर ऑफ कॉमर्स, राज्य का सीआईआई कन्फेडरेशनों, टेड माइंड उस व्यक्ति का यह कहना वो कहते क्या हैं. आगे मैं बहुत संक्षेप में आपको सुना रहा हूं. बड़ा मौजू है ये, क्योंकि दो बड़े राज्यों का… भारत के दो बड़े राज्यों के बजट लगभग तैयार हैं और इस महीने में वो पेश होंगे. कहते हैं, ‘एवरी मैन्युफैक्चरिंग फर्म रिलाइज ऑन सिक्स क्रिटिकल इनपुट्स’. देश में मैन्युफैक्चरिंग पर जोर 2014 के बाद पड़ा. चीन ने मैन्युफैक्चरिंग के लिए 1977 से अपनी कोशिश की और कैसे उन्होंने इसके लिए अलग से उन्होंने प्रयास किए. यह एक लंबा किस्सा है. मैं जिस अखबार में काम करता था या 10 वॉल्यूम की बात किया, उसमें लिखा है, उस सज्जन जो उनका पहला वो था स्पेशल जोन, जो सज्जन उन्होंने बनाया हांगकांग के बगल में. वो देंग शियाओ पेंग ने कैसे बनाया और सबसे पहले वो जापान के पास गए. आप देखिए प्रैक्टिकल सोच जापान और चीन का रिश्ता.
इतिहास आप उठाकर देखें, तो बिल्कुल डागर्स का रहा है, बिल्कुल एक दूसरे के खिलाफ आंख मिलाकर के बिल्कुल तरेरने वाला और बहुत क्या कहें. मतलब एक-दूसरे के प्रति बहुत कटू भाव रहे हैं उनके. इतिहास में उसकी वजह रही है, क्योंकि चीन मानता है कि सेकंड वर्ल्ड वॉर में कई जगहों पर जापान ने का कब्जा किया था और वहां मानते हैं उनके अनुसार कि जापान ने वहां पर अपने ढंग से क्रूरता की. इसलिए हाल-हाल तक वे मांग करते हैं कि जापान हमें उसके लिए माफ मांगे. उसी जापान में देंग शियाओ पेंगजब नया सपना देखते हैं चीन को बनाने का, तो सबसे पहले वो आदमी जापान जाते हैं. सी द प्रैक्टिकल विजन और जापान जाकर वो वहां के बादशाह के सामने खड़े हो जाते हैं. देंग शियाओ पेंग… बड़े… मैं तो छोटा हूं. मेरा कद बहुत छोटा है, पर वो शायद मुझसे भी कद में बड़े छोटे थे. उस इतिहासकार ने लिखा है, जिसने उस वर्ल्ड… उस पर पॉलिटिक्स और टर्न अराउंड पर.. जो सामग्री लिखी थी, जो मैं पढ़ा था उसमें कि वो उसमें भी काफी झुक करके द शियाओ पेंग ने सम्राट के सामने कहा कि हम अतीत को भूल जाएं… हम अतीत को भूल जाएं और चीन अब एक नया अध्याय शुरू करना चाहता है. उसमें जापान की उसको जरूरत है और जापान टेक्नोलॉजी में सबसे आगे था. ये सारे मेरे लिखे हुए लेख हैं उसी अखबार में, जो बाद में संकलन में आए हैं. किताबों में भी शामिल होगा. फिर यही नहीं कहा, उसके बाद जापान ने 100 बिलियन डॉलर पहला पैसा दिया. जापान ने उसके बाद वहां की जितनी बड़ी कंपनियां थीं, ऑटोमोबाइल की टोयोटा से लेकर सबमें… उसमें देंग शियाओ पेंग एक-एक बड़ी कंपनी में गए. उतने बड़े स्टेचर का नेता, जो चीन का चीफ था, ऑटो कंपनियों के पास जा रहे हैं. ऑटो कंपनियों के जो सीईओ हैं सारे, उन सबको इनवाइट किया. पहली चीन का सारा सक्सेस मैन्युफैक्चरिंग का. हम देख नहीं सके, हमारे राजनेता देख नहीं सके. हम बदलने से इंकार करते रहे. हमारा देश बैंकरप्ट होने के कगार पर खड़ा था. उसके बारे में मैं आपको बताऊंगा. हम इतने विजनरी के अभाव वाले नेताओं का देश यह रहा कि जो सिर्फ सत्ता प्रिय हो गए और हमारे सामने एक देश करवट लेकर के हमसे बहुत तेज से आगे बढ़ रहा था. वो खतरे हम समझ रहे थे, पर हम चुप थे. ये एक नागरिक के तौर पर मैं कह रहा हूं अभी आपको कि जब मैं ये सवाल उठा रहा हूं, तो मैं एक सांसद के रूप में नहीं या जिस पद पर हूं, उसके रूप में नहीं, बल्कि एक भारतीय होने के नाते मुझे इस पर चिंता होती है अपने देश के लिए कि हम चूक गए. और यह चिंता इसलिए होती है, क्योंकि इतिहास के बारे में कहा गया है कि आप अतीत से सीखिए तो भविष्य के लिए दृष्टि मिलेगी. मैं अपने उन सारे महान नेताओं को, जो आजादी की लड़ाई में रहे या 1977 से 1980 के बीच में संकट से देश को निकाला. उनके प्रति सारा सम्मान रखते हुए मैं इसलिए याद कर रहा हूं कि मैं भविष्य के लिए सीख सकूं. किसी उनके प्रति अवमानना की भावना के साथ नहीं याद कर रहा. फिर देंग शियाओ पेंग के साथ पूंजी आई और चीन ने अपना किस रूप में विकास किया. मैन्युफैक्चरिंग की हम लोग बात कर रहे थे, पर असल विकास की कुंजी तो इस देश में राज्यों के पास है, जिस पर कोई चर्चा नहीं करता, राज्य मीडिया बात नहीं करती, राज्य के राजनेता बात नहीं करते, राज्य का सीआई का जो चैप्टर है वह बात नहीं करता, चेंबर ऑफ कॉमर्स बात नहीं करता. सबसे पहला लॉ एंड ऑर्डर किसके हाथ में है? राज्यों के हाथ में है. फिर यह कहते हैं कि क्या है सिक्स क्रिटिकल इनपुट चाहिए. किसी मैन्युफैक्चरिंग में सक्सेस के लिए लैंड वो किसके पास है? साहब, लेबर… श्रम कानून किसके पास है? कैपिटल… पूंजी भी अनिवार्य है, तो पूंजी तो उन्हीं राज्यों में आएगी, जहां का लॉ एंड ऑर्डर बेहतर होगा. निवेश के लिए अनुकूल माहौल होंगे. बिल्कुल, क्योंकि पूंजी कोई मुफ्त में लेकर नहीं आता. जनार्दन, वो या तो बैंकों से लेगा, फाइनेंसियल इंस्टिट्यूशन से लेकर अपनी पूंजी लगाएगा, तो उसमें रिटर्न चाहेगा.
यह दुनिया का नियम है. पावर ट्रांसपोर्ट एंड स्केल… इनमें से पांच चीजें लैंड, लेबर, पावर, ट्रांसपोर्ट और स्केल, यह तो सब राज्यों के हाथ में है, स्टेट जूरिडिक्शन है. कृष्णमूर्ति कह रहें हैं, मैं नहीं कह रहा. एंड ये स्टेट गवर्नमेंट है. प्राइज रिफॉर्म इन दिस एरिया… किन राज्यों ने इन क्षेत्रों में अपने ये रिफॉर्म… सुधार किए हैं. इंस्टेड ऑफ इनेबलिंग कंपीट मार्केट फॉर दि इनपुट्स स्टेट अलाउड देम टू रिमन रिडल विथ फिक्शन… अपने ये सारी चीजों को उलझा कर रखा है. अब ये कहते हैं आगे कि हमारे राज्यों को अकाउंटेबल बनाने के लिए उनकी अपनी रिस्पांसिबिलिटी के प्रति क्या उसका जब बजट आता है, तो उसके नागरिक, उसका सोशल मीडिया, मेन स्ट्रीम मीडिया, यह सीआईआई या बाकी ऐसे लोग प्रोफेसर्स, वकील, यही लोग रहे हमारी आजादी… क्या यह सवाल पूछते हैं, जैसे हाउ मेनी न्यू जॉब्स क्रिएटेडटेड ओवर द लास्ट ईयर यानी पिछले साल जितनी नौकरियां आपके राज्य में मिली हैं, उससे कितनी नई नौकरियां आपने दी? हां, हाउ मेनी रैंक्स डिड द स्टेट इंप्रूव इन द नीति आयोग ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग व्हेन कंपेयर टू लास्ट ईयर यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के आधार पर पिछले साल आप जहां खड़े थे. उनमें से उन बाधाओं को हटाकर आप कितना आगे बढ़े हैं. नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, इसमें आपकी क्या प्रगति रही है. व्हाट रिफॉर्म्स आर बीइंग प्रपोज टू क्रिएट मोर जॉब्स इन द स्टेट. क्या सुधार आप ला रहे हैं कि राज्य में और अधिकाधिक नौकरियां आए. व्हाट इज द परसेंटेज इंप्रूवमेंट इन द एवरेज ट्रेवल टाइम एज मेजर्ड बाय ग मैप्स ओवर द लास्ट ईयर. श्ह भी देख रहे हैं, एक जगह से दूसरी जगह जाने में कितना कम समय लगता है, उसके लिए आपने क्या किया यानी यातायात संचार की दृष्टि से क्या क्रांति आपने की? व्हाट स्टेप्स इन द स्टेट प्रपोजिंग इन द बजट टू फर्दर रिड्यूस एवरेज रियल टाइम और इस बजट में आप क्या प्रपोज कर रहे हैं कि और यह समय कम लगे स्टेट चैप्टर्स ऑफ सीआईआई, फिक्की एंड एसोसिएशन मस्ट होल्ड कॉन्फ्रेंसेस टू डिबेट द स्टेट गवर्नमेंट बजट फ्रॉम फॉलोइंग लेंस… क्या सोशल मीडिया पर हमारे वीर बहादुर चिंतित होने वाले लोग, जो रात दिन उसी पर रहते हैं, यह सवाल पूछते हैं? कभी नहीं दिखाई देती ये चीजें. वेयर द रिफॉर्म्स अंडरटेकन टू सिंपलीफाई लैंड रिक्विजिशन… लैंड रिक्विजिशन के लिए क्या सुधार किए गए. ब्यूरो क्रिटिक प्रोसेसेस वेयर सिंपलीफाइड टू मेक इट इजियर फॉर इंटरप्रेस टू स्टार्ट एंड ग्रो बिजनेस. व्हाट स्टेप्स टेकन टू अट्रैक्ट इन्वेस्टमेंट इनटू द स्टेट… ये यह मैं नहीं कह रहा, यह अपने समय के दुनिया के सर्वश्रेष्ट इकोनॉमिस्ट की बात है, जो कह रहे कि राज्य क्या कर रहा है, क्योंकि सारी चीज तो राज्यों के हाथ में है? अब राज्यों में क्या हो रहा है? इस देश में इसी फरवरी में एक बड़ा अभिनव और एक बेहतर शुरुआत बात हुई है, पर मैं उस पर और उसके पहले आपको बता दूं कि ये मैं जाता हूं तो हर जगह कहता हूं इसलिए कि लोग जानें.
देश में आज की तारीख में 800 जिले हैं जनार्दन. पूरे भारतवर्ष 800 में से लगभग 13 जिले ऐसे हैं, 2021 के आपके इस आंकड़े के अनुसार सोर्स मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन डिस्ट्रिक्ट डोमेस्टिक प्रोडक्ट एस्टीमेट 2021. ये उसके आधार पर आंकड़े हैं कि डिस्ट्रिक्ट कंट्रीब्यूटिंग टू 50 पर ऑफ इंडिया जीडीपी 2021 में वैल्यू इन बिलियन डॉलर्स यानी पूरे 800 जिलों में से ये 13 जिले हैं, सिर्फ जो 50 पर भारत के टोटल जीडीपी में अपना योगदान देते हैं. अब इसमें जिले सुन लें आप. इसमें मुंबई है, दिल्ली है, इनमें कितने बिलियन डॉलर है वो उल्लेख नहीं कर रहा हूं. ठीक है. मुंबई है, दिल्ली है, कोलकाता है, बेंगलोर अर्बन है, पुणे है, हैदराबाद है, अहमदाबाद-चेन्नई है, सूरत है, ठाणे हैख् जयपुर है, नागपुर है, नासिक है. अब मैं यह कहता हूं हर जगह कि क्यों आप संकल्प नहीं ले सकते कि यह 13 में से चौदहवां जिला मेरे राज्य का होगा. यह काम कौन करेगा, राज्य नहीं करेगा तो? क्या आप में संकल्प नहीं है? राजनीति सिर्फ सत्ता में हम आ जाए और सत्ता के सुख भोगें. यही राजनीत है या हमारी कोई अकाउंटेबिलिटी है? यह पूछा जाना चाहिए कि हमारे खास तौर से उत्तर के राज्य जो हैं, कहते हैं हम पिछड़ गए. ठीक है. तो आजादी के बाद भारत के जीडीपी में आपका योगदान अधिक था और दक्षिण के जो राज्य हैं, उनका कम था. उनका कम था. आज दक्षिण के राज्य तेजी से आगे चले गए, क्योंकि उदारीकरण के बाद 1990-91 के बाद उन्होंने अपने यहां कुछ बेहतर चीजें अपनाई. उन पॉलिसीज को सबसे अच्छा इंप्लीमेंट किया.
जब बिहार में चरवाहा विद्यालय खुल रहे थे एक जमाने में, तो वे अपने यहां टेक्निकल इंस्टिट्यूट खोल रहे थे. उन टेक्निकल इंस्टिट्यूट से निकले लड़के सिलिकन वैली में राज करते हैं. हकीकत है ये. अब मैं आपको बताऊं एक तो संकल्प हम पैदा करना और कहना कि हम आगे बढ़ेंगे, बनेंगे और हमारा भी एक जिला इसमें शामिल होगा. अब तो देश में टायर टू और टायर थ्री, टायर फोर सिटी, जो छोटी सिटीज कही जाती है. वो टेक्नोलॉजी का हब बन रही है. हमारे यहां कोई पूछे कि हम जिन राज्य में रहते हैं? उसमें कितने टायर टू, टायर थ्री, टायर फोर सिटीज हैं, जो टेक्नोलॉजिकल हब बन रहे हैं? अर्बन प्लानिंग तो स्टेट्स के उस पर है. आप जहां जिस राज्य में रहते हैं, इसकी अर्बन प्लानिंग क्या है? यह कभी आप पूछें तो इन सब चीजों पर फोकस 2014 के बाद केंद्र दिला रहा है, पर अंतत: करना तो राज्यों को है? राइट? यह सारी रिस्पांसिबिलिटीज राज्यों के हाथ में है और राज्यों की अकाउंटेबिलिटी जिस दिन बढ़ जाएगी, ये सोशल मीडिया पर बढ़ जाएगी, मेन स्ट्रीम मीडिया पर बढ़ जाएगी. जिस दिन लोग सवाल करने लगेंगे कि आप अपने परफॉर्मेंस का हिसाब दीजिए, उस दिन ये बदलाव उसकी अकाउंटेबिलिटी जरूरत है. तब भारत आर्थिक महाशक्ति बनेगा, तब 2047 तक में बड़े मजबूत देश के रूप में सामने आएंगे.
बार-बार भारत के प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि यह जो क्षेत्र कुछ राज्य बहुत आगे निकल चुके हैं और कुछ राज्य ऐसे हैं पूर्वी इलाके के, जो अभी उन्हें और आगे बढ़ना है और जिस पर उनका बहुत फोकस है 2014 के बाद. आप देखेंगे. उन राज्यों के लिए बहुत सारी चीजें वो लगातार कर रहे हैं, पर करना तो अतंत: राज्यों को है. जब अंतिम चाभी राज्यों के हाथ में है, तब ये हमें सोचना पड़ेगा. अब इस देश में नई अपॉर्चुनिटी आने वाली है रोजगार में. मेरा एक दूसरा सवाल यह भी, मैं कई जगह करता हूं, जो मैं आपको सोचा था कि आपको इसलिए बताऊं कि नहीं.
जनार्दन पांडेय: बेहद आवश्यक विषयों पर सर जिक्र हम लोग कर रहे हैं.
हरिवंश: हां, जैसे?
जर्नादन पांडेय: औसतन ये चर्चाएं नहीं आ पा रही हैं जो एकदम उपयुक्त आप कह रहे हैं.
हरिवंश: जी… एक बदलाव क्या हो रहा है हमारे यहा पूरे उसमें देश में कि आज केरल में जो मैं उल्लेख किया था कि एक महत्त्वपूर्ण घटना हुई है, जिस पर कोई देश में चर्चा नहीं हो रही है बहुत. सिर्फ राजनीतिक दुर्भाग्य है कि राजनीतिक चर्चा हो रही है. वो चर्चा यह है कि केरल में 22 फरवरी को एक समिट हुआ. ये टू डे इनवेस्ट केरला ग्लोबल समिट कोची में. राज्य सरकार ने आयोजित किया. राज्य सरकार सीपीएम की है, पर इसमें कांग्रेस से लेकर एनडीए… सब शामिल हुए. आप इस रूप में देखिए कि केरल सबसे अधिक जागरूक आइडोलिजकली कहा जाता है कि अलाइव स्टेट है यानी सब अपने-अपने राजनीतिक मान्यताओं, आइडियोलॉजी, राजनीति आग्रहों, विचारों के प्रति बहुत प्रतिबद्ध लोग हैं. इस हद तक हैं कि दूसरे को शायद वे एकोमोडेट करने के तैयार नहीं होते. ये सुनते हैं ना केरल के बारे में?
जनार्दन पांडेय: जी.
हरिवंश: उस केरल के इस सम्मेलन में केरल के चीफ मिनिस्टर होते हैं, बाकी लोग होते हैं और क्या होता है मैं आपको यह बता रहा हूं. इससे जो ट्रेंड उभर रहा है, वो समझने की हमें कोशिश करनी चाहिए.
जनार्दन पांडेय: जी
हरिवंश: इसमें यह अलग है कि इसमें 3000 से अधिक लोग और छह देशों के लोग और बड़े पैमाने पर और उद्यमी शामिल हुए. केरल की मुख्य चिंता क्या थी? केरल की चिंता यह थी कि जो सदर्न स्टेट्स हैं, दक्षिण के जो राज्य हैं, अन्य राज्य हमसे तेजी से आगे जा रहे हैं, हम पिछड़ रहे हैं… अच्छा… जबकि केरल विकसित है हमारे मुकाबले…तो वो काफी विकसित है तमिलनाडु और कर्नाटक. उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के देश में बड़े केंद्र बन चुके. केंद्र बन गए तेलंगाना लगातार आईटी और आईटी सेक्टर से जुड़ी चीजों में आगे जा रहा है.
जनार्दन पांडेय: जी…
हरिवंश: ये इस स्थिति में पॉलिटिकल आइडियोलॉजी को अलग रह करके सारे दलों के लोग केरल के एक मंच पर इकट्ठे होते हैं. यह बड़ी परिघटना है देश की राजनीति को समझने के लिए. और उसकी वजह क्या है. अभी मैं बताऊंगा. वहां पर वहां के मुख्यमंत्री क्या कहते हैं, मैं उनको कोट कर रहा हूं.
जनार्दन पांडेय: जी…जी.
हरिवंश: ये शायद इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट है 22 फरवरी की. हां, इंडियन एक्सप्रेस की.
जनार्दन पांडेय: जी
हरिवंश: वो कहते हैं कि द चेंजेज वी हैव ब्रॉट अबाउट नाउ आर नॉट इंक्रीमेंटल बट सब्सटेंशियल… जो हमने बदलाव राज्य में किया है, यह मामूली बदलाव नहीं है, यह सब्सटेंशियल मौलिक बहुत बड़े और गहरे बदलाव हमने किए राज्य में. लंबा स्पीच है. मैं बहुत छोटा आंसर दे रहा हूं. वी हैव इंश्योर्ड दैट नो इन्वेस्टर कमिंग टू केरल विल हैव टू फेस द कवेप्स ऑफ प्रोसीजरल डिलेज… हमने यह तय किया है कि कोई इन्वेस्टमेंट करने के लिए आए, तो उसे एक मामूली प्रॉब्लम भी फेस ना करना पड़े. कोई रेट टेप का बैरियर ना हो. वी हैव मेड मेजर स्टाइट्स इन सिंपलीफाइंग प्रोसीजर्स एज रिगार्ड्स टू इन्वेस्टमेंट. इन्वेस्टमेंट के लिए सारा प्रोसीजर हमने सिंपलीफाई कर दिया. यह केरल के मुख्यमंत्री कह रहे हैं उस समिट में. अब वहां पर वहां के विपक्ष के नेता क्या कह रहे हैं. विपक्ष के नेता है कांग्रेस के वीडी सेथसन और इसी के बारे में शशि थरूर ने सपोर्ट में लेख लिखा. वो भी उनका लेख भी है. वो भी पढ़ा जाना चाहिए इंडियन एक्सप्रेस में, जिसको लेकर के बड़ा विवाद चला कांग्रेस में, पर मैं उस पॉलिटिकल क्योंकि हमारे यहां हर चीज को देखने का पोलिटिकल एंगल हो गया है.
जनार्दन पांडेय: जी…
हरिवंश: इस पॉलिटिकल एंगल की आज बिल्कुल जरूरत नहीं है और जनता बाध्य करे नेताओं को कि विकास ही असल चीज है और क्यों है, मैं उसका रीजन आपको बताऊंगा. कांग्रेस के वहां विपक्ष के नेता कह रहे हैं. आई कोट फ्रॉम दिस रिपोर्ट रिगार्डलेस ऑफ पॉलिटिकल एफिन आवर कलेक्टिव गोल इज टू प्रोपेल केरला इनटू ए फ्यूचर ऑफ इकोनॉमिक प्रोस्पेरिटी एंड इंडस्ट्रियल एक्सलेंस. हमारे सारे राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को दूर करते हुए, अलग रखते हुए, हमारा कलेक्टिव गोल होना चाहिए कि हम केरल को कैसे इकोनॉमिक प्रोस्पेरिटी और इंडस्ट्रियल एक्सलेंस का हब बना लें. यह विपक्ष का नेता साथ कह रहा है उसी मंच से, जिसे मुखमंत्री बोल रहे हैं, जिससे हमारे पीयूष गोयल जी बोल रहे हैं और जिससे जुड़े हमारे जयंत चौधरी जी वहां मौजूद थे. उन्होंने भी बोला मंत्री के रूप में. नितिन गडकरी ने क्या कहा, वो भी बताता हूं. फिर कहते हैं आगे वह विपक्ष के नेता… आई एम वेरी मच प्राउड टू डिक्लेयर… मैं फक्र के साथ यह बता रहा हूं दैट अपोजिशन इज टेकिंग एन इनिशिएटिव फॉर द बिगिनिंग ऑफ ए न्यू कल्चर कि अपोजिशन एक नए संस्कृति की शुरुआत कर रहा है. वी आर गिविंग आवर फुल सपोर्ट… हम आपको पूरी मदद कर रहे हैं, सपोर्ट दे रहे हैं. आई एम हैप्पी टू से वी हैव नॉट कंडक्टेड एनी हड़ताल फॉर द पास्ट फोर इयर्स… हमने चार वर्ष में कोई हड़ताल नहीं किया. बता ये विपक्ष के नेता कह रहे हैं, माय रिक्वेस्ट टू द गवर्नमेंट इज दैट व्हेन यू विल बी इन द पोजीशन यू हैव टू कंटिन्यू द सेम कल्चर. आज आज केंद्र से लेकर राज्यों में जो भी लोग भी पक्ष में हैं, उनकी ये भूमिका है देश को बनाने की, तो क्यों है जनार्दन. हम आज दुनिया की जो जिओ पॉलिटिकल सिचुएशन है, आप देख रहे हैं. अभी यूक्रेन का युद्ध पुराना है. यूक्रेन और अमेरिका के बीच जो चल रहा है, मैं उस विस्तार में नहीं जाना चाहता.
जनार्दन पांडेय: जी
हरिवंश: …पर इसका मर्म यह है कि दुनिया में आर्थिक ताकत ही आपका भविष्य तय करने वाली है. अगर आर्थिक रूप से आप महाशक्ति और ताकत नहीं है, तो आपके लिए… तो आपके लिए असंख्य चुनौतियां हैं जनार्दन. हर स्तर प इस देश को अपने मूल्यों को, अपनी संस्कृति को, अपने वजूद को, बनाए रखने के लिए आर्थिक रूप से ताकतवर होना आज पहली और अंतिम हर संभव मुमकिन प्रयास आर्थिक महाशक्ति होना ही है. इसलिए सारे दलों को जुटाना और केरल ने रास्ता दिखा दिया, शुरुआत कर दी. क्या है साहब… अंतरराष्ट्रीय मानकों पर…? अंतरराष्ट्रीय मानक पर कोई एक देश युद्ध में मान लीजिए पिछले कई वर्षों से है… युद्ध भारत मानता है कि मानवता के लिए सही नहीं. युद्ध खत्म होने चाहिए. हमारे प्रधानमंत्री का डिक्लेयर्ड उनकी नीति है और कहते रहे और इसके लिए हम प्रयास भी किया. हमारे प्रधानमंत्री जी ने हमेशा प्रयास किया है. इन देश के जो दोनों देशों के शिखर के लोगों से मिलकर, कहकर, पर जिन लोगों के भरोसे से मुल्क… एक छोटा मुल्क युद्ध में उतरा… हम… हम… हम… जिसको एक अंब्रेला… नाटो का देने का वादा किया गया, उसके बड़े देश कह रहे हैं कि अब आप अपने भरोसे रहिए. और हमने जो आपको युद्ध में मदद की है वो सारा आप अपने मिनरल रिसोर्सेस के अनुसार हमें को लौटाइए.
जनार्दन पांडेय: जी…
हरिवंश: हां और उस देश के वो नेता कहते हैं कि अगर मिनरल रिसोर्सेज में इनको नहीं दिया, तो हमारी पांच पीढ़ी गुलाम हो जाएगी. यह आर्थिक ताकत की असलियत है. असल मैसेज यह है दुनिया के समझदार लोगों के लिए…
जनार्दन पांडेय: अगर अपने आर्थिक वजूद पर आप नहीं रहे, तो अगली पांच पीढ़ियों को गुलाम बनाने के लिए…
हरिवंश: यह दुनिया का परिदृश्य है.
जनार्दन पांडेय: जी…
हरिवंश: तो क्या भारत उससे सीख नहीं ले सकता? हमारे केरल के लोगों को केरल की राजनीति करने वाले सभी लोगों को प्रति हमारे जैसा एक सामान्य नागरिक का सलाम कि उन्होंने इस देश को रास्ता फिर दिखाया. हमारे प्रधानमंत्री 2014 के बाद यही कह रहे हैं प्रधानमंत्री जी कि हम एक दुनिया के नए दौर में और भारत मुमकिन कर सकता है, हम कामयाब हो सकते हैं, हमें कामयाबी की तरफ बढ़ना चाहिए. ये हकीकत है. दूसरा बड़ा ट्रेंड जो हमारे लोग कहते हैं रोजगार के लिए… एक चीज दो चीज मैं आपको बताऊंगा. अगर आप चाहें.
जनार्दन पांडेय: नहीं नहीं मैं बहुत उत्सुकता से… मैंने शुरुआत में ही स्पष्ट किया था कि यह बातचीत खत्म ना हो..
हरिवंश: नहीं… उसमें…
जनार्दन पांडेय: जी…
हरिवंश: जैसे मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर इसका बहुत विकास अनसाउथ के राज्यों में हुआ. इसलिए वो आगे बढ़ गए.
जनार्दन पांडेय: जी आपको मालूम है केरल भी उसी दिशा में चिंतित है. वो वही चाहता है कि मुझे हासिल होना चाहिए.
हरिवंश: बिल्कुल. केरल का मैंने आपको उदाहरण बताया. इसी में आपको मैं बताऊं कि किस तरह से आज एक कंपनी… सिर्फ एक कंपनी… दुनिया का… अपने देश की तकदीर बदल सकती है… एक इस दौर में, क्योंकि मैंने आपसे कहा कि सिर्फ हमारे यहां मान लीजिए पहले एग्रीकल्चर था. एग्रीकल्चर के बाद सर्विस सेक्टर आया. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर आया. चीन ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कमाल किया. आज ताकत बन गया. हम उस अवसर को चूक गए, पर हमारे लोगों ने सर्विस सेक्टर में… साउथ के लोगों ने… नारायण मूर्ति वगैरह ने किस तरह से कामयाबी दी और वह आज स्टेट बहुत तेजी से आगे चले गए.
जनार्दन पांडेय: आप उस मेडिसिन वाली कंपनी का…
हरिवंश: हां, उस मेडिसिन वाली कंपनी का, जिसका मैंने कहा… यह एक कंपनी है आपकी डेनमार्क की. यह शायद डेनमार्क की कंपनी है. इसका नाम है नो कंपनी. 2017 में यह 100 वर्ष की पुरानी कंपनी है जनार्दन. डेनिस फार्मा कंपनी नो नार्डिस इसका नाम है. इसका मार्केट कैपिटलाइजेशन अभी हाल में जब इसने दवा खोजी, तो शायद पिछले साल बढ़कर 570 अरब डॉलर हो गया, जो कि डेनमार्क की अर्थव्यवस्था कुल 406 अरब डॉलर. इस कंपनी ने क्या किया साहब? वजन घटाने की दवा खोजी… तो पहली चीज जो मैं कहना चाहूंगा कि ये दौर इनोवेशन का है. ये दौर जो स्टार्टअप्स आप सुनते हैं, यह दौर रिसर्च एंड डेवलपमेंट का है, यह दौर आपके यहां टैलेंटेड बच्चे पढ़ कर के निकले…. आपके यहां सेंटर ऑफ एक्सलेंस का है. मैं जब यहां अखबार में काम करता था, तो हम लोग लड़ते थे कि आईआईएमम कैसे खुले, आईआईटी कैसे खुले? यहां बिहार ने खोला. आज आप देखें, बिहार बगल में है. बिहार जब अलग हो रहा था, तो लोग कहते थे, नारे लगाते थे, क्योंकि उन दिनों जो वहां सत्ता में थे जो व्यक्ति, उनको लेकर के कि यहां बिहार में क्या बचेगा, तो उनका नाम लेते थे और बालू और आलू. ये तो 2005 के बाद नीतीश जी आए तो बिहार आज बहुत ही तेजी से प्रगति कर आज इस जगह पहुंचा. अच्छा… पर उसके पहले जब बंटवारा हो रहा था 2000 में, तो नारा लगता था झारखंड में कि भाई बिहार के पास क्या बचा? तो उस राजनेता का नाम बालू और ये परिचित हैं लोग उससे.
जनार्दन पांडेय: जी…
हरिवंश: आज देश के जीडीपी में बिहार का योगदान…बिहार का योगदान… देश के जीडीपी में झारखंड से दोगुना से ज्यादा है. झारखंड के योगदान से दोगुना से अधिक है शायद. वो फिगर है. इतनी तेजी से बिहार ने अपनी प्रगति कर ली और जो रूर ऑफ इंडिया कहा जाता था झारखंड, वो सबसे पीछे रह गया.
जनार्दन पांडेय: आपके किताब के जो शीर्षक हैं वह भी… बिहार सपना और सच… झारखंड संपन्न माटी और उदास बसंत…
हरिवंश: बिल्कुल एक पुस्तक का यही वो है.
जनार्दन पांडेय: जी…
हरिवंश: तो मैं वहां ये बताना चाहता था कि भाई आप देखें कि 100 वर्ष पुरानी कंपनी है डेनिस फार्मा. एक कंपनी कैसे तकदीर बदल सकती है. अब यहां पर सेंटर ऑफ एक्सीलेंस हम बनाएं, अच्छे इंस्टीट्यूशन खोलें, अच्छे हॉस्पिटल्स लाएं. इसकी जद्दोजहद राजनीति में सारे दलों में है या नहीं है, यह तो आपको जज करना चाहिए.
जनार्दन पांडेय: जी
हरिवंश: हम जब थे, तो अभियान चलाते थे कि हो और क्यों जरूरी है, क्योंकि दक्षिण के या अन्य विकसित राज्यों ने अपने यहां पहले कायम किया, तब आज वहां आज सॉफ्टवेयर रिवोल्यूशन हुआ, वहां इंफोसिस आ गई. जो किताब लिखी द वर्ल्ड इ फ्लैट उन्होंने, जो अमेरिकन राइटर थे. बड़े मशहूर न्यूयॉर्क टाइम्स के कॉलमनिस्ट है. मैं नाम अभी बताऊंगा आपको. बाद में नंदनी निलेकनी की किताब आई बड़ी मशहूर वह किताब है. ये वर्ल्ड फ्लैट का मतलब कि अब दुनिया समतल है यानी जो काम आप सिलिकन वैली से करते हो न्यूयार्क में, बेंगलूर में संपन्न हो रहा है. बेंगलूर को कहा गया कि ईस्ट का सिलिकन वैली ये है, तो बेंगलूर क्यों नहीं रांची हो सका या क्यों नहीं हमारे अन्य हिंदी इलाके के राज्य बन सके. उत्तर प्रदेश तेजी से विकसित कर रहा है. अभी हाल के दिनों में एक चीज और आपको बताऊं कि 1964 के आसपास देश में जो तब की सरकार ने सपना देखा केंद्र सरकार ने कि देश में तीन इंडस्ट्रियल कैपिटल हब होंगे हमारे. अच्छा…एक पुणा, एक बेंगलोर और एक रांची… 1964 में यहां पर एचएमटी एचईसी लगा. हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन रशियन कॉपरेशन से, जो आज एचसी जहां पर आप विधानसभा और सारी चीजें देखते हैं और वहां एचएमटी कंपनी लगी बेंगलोर में… घड़ी वाली… जो थी सरकारी और पुणे में भी डिफेंस का कुछ लगा या दवा की फार्मा की कोई कंपनी लगी. आज कहां है पुना और कहां है बेंगलोर, कहां है झारखंड? केंद्र तो एक ही है ना? केंद्र एक ही है… तो उन राज्यों के जो नेतृत्व रहे अपने राज्य में, उन्होंने बेंगलोर को आज यहां पहुंचा दिया, पुणे को यहां पहुंचा दिया, झारखंड में रांची या अनडिवाइडेड बिहार में रांची आज यहां पर है.
हमारे सेल्फ इंट्रोस्पेक्शन इसके लिए किसी को ब्लेम करने की जरूरत नहीं है और अब हमें अपने पुरखों को भी या अतीत को याद करके अतीत के प्रति एक आलोचनात्मक भाव लेकर हम चीजों को ठीक नहीं कर सकते. हमेशा अतीत को देखें भविष्य का संकल्प पैदा करने के लिए, तो सारे दलों को क्या कभी यहां मिलकर के बैठक नहीं करनी चाहिए कि हम अपने पॉलिटिकल डिफरेंसेस को खत्म कर रहे हैं, हटा रहे हैं. हम पॉलिटिक्स में लड़ेंगे. हमें जब गद्दी पानी होगी, तो हम लड़ेंगे, पर हम राज्य को मुकम्मल… जिसको प्रकृति ने सबसे समृद्ध संपदा… प्राकृतिक संपदा और सबसे गरीब राज्य नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बना हुआ है, रहने नहीं देंगे. ये विशलेषण हम खत्म करेंगे. हम अपने पुरुषार्थ से करेंगे, संकल्प से करेंगे, कर्म से करेंगे, यह संकल्प कहां है?
एक कंपनी कैसे दुनिया को बदल रही है, एहसास भी हमारे लोगों को है? अब इस कंपनी के… और देखिए इस कंपनी के आय का असर क्या पड़ा? इस कंपनी ने सत्र में वजन घटाने की दवा खोजी, तब इसका मार्केट कैपिटलाईजेशन 111 अरब डॉलर था, जो बढ़ कर के बाद में 570 अरब डॉलर हो गया. इस कंपनी की निवेश व रिकॉर्ड उत्पादन से डेनमार्क की अर्थव्यवस्था दो फीसद बढ़ी. सिर्फ एक कंपनी के कंट्रीब्यूशन से यह पूरे यूरोप के औसत से चार गुना थी. इस कंपनी ने पिछले ढाई अरब डॉलर का.. ढाई अरब डॉलर का टैक्स देश को दिया. आर्थिक विशेषज्ञों ने कहा कि नो कंपनी नहीं होती, तो यहां की अर्थव्यवस्था या डेनमार्क की अर्थव्यवस्था में मंदी आ गई होती. इस एक कंपनी से वहां कॉर्पोरेट टैक्स से रेवेन्यू में 10 गुना बढ़ोतरी हुई, बेरोजगारी में दो तिहाई कमी आई, सरकार ने कंपनी की जरूरत देखते हुए देश की इमीग्रेशन पॉलिसी में बदलाव किया, ताकि विदेशी टैलेंट यहां अधिक से अधिक आ सके. काम कर रहे यहां यूनिवर्सिटी ने भी कंपनी के हिसाब से अपने पाठ्यक्रमों में बदलाव किया. यह 2024 की बात है.
जनार्दन पांडेय: इतना बदलाव सिर्फ एक कंपनी के…एक कंपनी की वजह से… एसडीआई में जब रिपोर्ट आती है सबसे खुशहाल देशों, खुशहाल राज्यों की तो वहां डेनमार्क अग्रणी श्रेणी में होता है, ऊपर होता है.
हरिवंश: बिल्कुल. आपने सही कहा… तो क्या ये हमें नहीं करना चाहिए? यह हमें यह कौन करेगा हमारे लिए आकर? हमारे पुरुषार्थ को कौन आकार देगा? क्या केंद्र सरकार आकर आकार देगी? केंद्र सरकार सारा हैंड होल्डिंग कर रही है. केंद्र सरकार ने आपके यहां क्या सड़कों की रांची से जमशेदपुर जाते थे. 10 वर्षों तक क्या स्थिति थी? जब हम रहते थे, आप कल्पना नहीं कर सकते उस राज्य में. आज अगर उस राज्य में नहीं बल्कि पूरे देश में जो इंफ्रास्ट्रक्चर रिवोल्यूशन हुआ है, उसकी कल्पना हम नहीं कर सकते. हमने इकोनॉमिस्ट पत्रिका में जो पश्चिम की पत्रिकाएं 2014 के बाद खास तौर से बढ़ते भारत को देख कर के बड़ी आलोचनात्मक भूमिका में है, उन्होंने भी एक नॉलेज किया. चार पेज में इकोनॉमिस्ट में रिपोर्ट थी भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर रिवोल्यूशन पर, सड़कों की क्रांति पर, पुलों की क्रांति पर, रोडों की क्रांति पर.
जनार्दन पांडेय: एक छोटा सा यहां आपसे टिप्पणी लूंगा कि आप पत्रकारिता जगत से इतना वास्ता रखते हैं. पश्चिम की पत्रकारिता जो भारत के लिए की जाती है, उसमें भारत को कमजोर या यहां पर जो मौजूदा जिसका हम 2014 के बाद परिवर्तन की बात कर रहे हैं, तो मानते हैं कि 2014 के बाद स्थिति और बदतर हुई है, जो जो भारत की मूल संस्कृति है. कई देश में भी इस तरह की वाइसेस है कि बहुत संस्थागत तरीके से… बहुत ऑर्गेनाइज तरीके से. भारत से पत्रकारीय दमन हुआ है, पत्रकारिता को कम किया गया है और इसमें पश्चिम का साथ बहुत तेजी से मिलता है. पश्चिम के देशों में जाकर के अगर भारत में संविधान की चर्चा कर दी जाए, तो तुरंत वह बात… तुरंत पूरे इंटरनेशनल पटल पर नजर आने लग जाती है, दिखने लग जाती है कि भारत में लोकतंत्र कमजोर हो रहा है. भारत में पत्रकारीय मूल्य और लोकतंत्र के जो स्तंभ है, उनको कमजोर किया जा रहा है. उसमें सबका नाम विधायिका से.. कार्यपालिका से… न्यायपालिका तक का जिक्र होता है.
हरिवंश: दरअसल. बहुत अच्छा सवाल आपने पूछा. मैं आपको उदाहरण के साथ बताना चाहता हूं. हम पहली बार विदेश गए, शायद यहीं काम करते हुए 1994 में… भारत को जिस रूप में देखा और जाना जाता था, वह था… वह धारणा थी… सांप और सपेरों का देश, जादूगरों का देश, गरीब मुल्क… जादू-टोना का देश… और मेरी बड़ी उत्सुकता रहती थी… जैसे… जब मैं यहां काम करता था, अविभाजित बिहार था. उस वक्त देश के किसी हिस्से में जाता था, तो बिहार की खबरें पढ़ने के लिए बड़ा रहता था. अच्छा… तो बिहार की जो जिसे आप कहते हैं अपनी भाषा में कि जो समाज जिन चीजों को बिल्कुल नकारात्मक ढंग से देखता है, वही खबरें निकाल करके देना… तो ऐसी बिहार की खबरें देश के अन्य मीडिया के हिस्सों में देखता था. अच्छा… जब मैं अंतरराष्ट्रीय फलक पर गया 1994 में, तो यूएस वगैरह में. ब्रिटेन में. वही मैं देखने लगा कि भारत के बारे में जितनी कुप्रचार से जुड़ी हुई खबर उन्हीं को ज्यादा से ज्यादा प्रमोशन किया जा रहा है.
जनार्दन पांडेय: ओके… किसी किसी उद्देश्य के तहत?
हरिवंश: बिल्कुल… उसके पीछे का उद्देश्य मैं बता रहा हूं. तब मुझे याद आया कि हमारे लेखों में इस पुस्तक का बार-बार उल्लेख है, जो अभी हाल में पुस्तकें आई हैं, क्योंकि जहां अखबार में काम करता था, वहां इन चीजों पर भी लिखा है हमने. शायद सैमोल हर्डिंगटन की किताब वो है इंडिया द मोस्ट डेंजरस डिकेड हिट. उसमें यह था कि भारत कैसे… 1960 के दशक में आई होगी… भारत कैसे आने वाले दशकों में टूट जाएगा, विखर जाएगा.
जनार्दन: अच्छा…
हरिवंश: हां और दूसरा मैं आपको उदाहरण के साथ बता रहा हूं कैसे पश्चिम में तब उसके पहले आपके चाइनीज वॉर जब हुए थे, चीन के साथ तब कैसे भारत को लेकर के… भारत हमलावर है… यह पश्चिम की मीडिया ने लिखा था और वह जो बड़े पत्रकार थे टाइम्स लंडन से जुड़े हुए, उन्होंने तो बाकायदा दिल्ली में रिपोर्टिंग करते हुए शायद तीसरे जनरल इलेक्शन को लिख दिया था कि अंतिम जनरल इलेक्शन, आखरी चुनाव आम चुनाव हो रहे हैं. भारत में बाद की चुनावी व्यवस्था समाप्त होने के कगार पर है. ऐसे अनेक साहित्य पश्चिम से हमारे बारे में लिखे जाते थे और इकोनॉमिस्ट में भी मैं पढ़ा करता था, तब जब लिबरलाइजेशन के पहले कि कैसे भारत बड़े खराब हालत से गुजर रहा है, भारत कभी आगे नहीं बढ़ सकता. इस तरह के भाव होते थे उनके, लेकिन इन चीजों के पीछे प्रयोजन साफ नजर आता था कि इनकी दृष्टि भारत के प्रति क्या है? आप जानते हैं कि भारत के बंटवारे के पीछे भी यही ब्रिटिश ताकतें, यही पश्चिम का दिमाग था,,, भारत के बंटवारे में इनकी भूमिका रही. इसलिए कभी भी भारत एक विकसित मुल्क के रूप में आगे बढ़े, यह इनके मानस में नहीं था.
जनार्दन पांडेय: अच्छा?
हरिवंश: 2014 के बाद भारत इनकी इच्छाओं के विपरीत अपनी शर्तों पर, अपने वजूद पर, अपने मूल्यों के साथ तेजी से बढ़ता हुआ आगे देश है. इसको वर्ल्ड बैंक कह रहा है, आईएमएफ कह रहा है, दुनिया के टॉप इकोनॉमिस्ट कह रहे हैं, नोबेल लॉरेट इकोनॉमिस्ट कह रहे हैं, यह तो सब एक नॉलेज फैक्ट्स है, 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे गए यह एक नॉलेज फैक्ट्स है. इनको उम्मीद थी कि भारत पश्चिम का वैसे ही पिछलग्गू बना रहेगा और जब आपको मैं एक उदाहरण के साथ बता रहा हूं कि किस तरह से जब कोविड आया, तो दुनिया की इन मुल्कों की पश्चिमी जो विकसित मुल्क है, उनको दो लॉबी बड़ी प्रभावित करती है. अच्छा या उनकी राजनीति के पीछे नेपथ्य में खेल खेलती है और अपने ढंग से वहां के सत्ता तंत्र को भी और मीडिया को भी चलाती है. हथियारों की लॉबी, जो आर्म्स मैन्युफैक्चरर्स है और दूसरी है आपकी दवाओं की लॉबी. तो जब आपके ये कोविड आया, पश्चिम के मीडिया में, सारे अखबारों में… आप उस वक्त के अखबार पलट कर देखिए… आने लगा कि सबसे अधिक भारत में मरेंगे. राइट. सबसे अधिक भारत में अव्यवस्था है. 353 दिन का दौर है, जब रोजाना इंटरनेशनल मीडिया भारत की स्थिति को बहुत प्रमुखता से अपने यहां प्रकाशित करता रहा है.
ये 2022 के अप्रैल के बाद के दिन के बात है. मई… मैं उसके थोड़ा पहले के कह रहा हूं आप निकाल कर देखिए, जब कोविड की आहट आई कि कोविड से ऐसे लोग मरेंगे, उसके पहले से कैसे शुरू हो गया इन पश्चिमी मीडिया के बड़े स्तंभों में कि भारत में सबसे अधिक कैजुअलिटी होगी, क्योंकि इनकी तैयारी नहीं है. इनके टीके नहीं है. इनको टीका कब मिलेगा? क्या होगा? कैसे होगा? इतनी आबादी का देश है, इनके यहां हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है. यह सब लिखा हुआ तो उसके पीछे मैंने कहा कि हिस्टोरिकल रीजन तो है ही, पर पर्पस भी है और उसमें मैंने कोविड का उल्लेख किया था कि कोविड के पहले देखें आप भारत में जब जब बड़ी-बड़ी महामारी आई या इस तरह के रोग-आपदाएं आईं, तो उसके टीके आने में कितने वर्ष लगे और उस सारे टीके विदेशी मार्केट से आते थे. बाद में आपने देखा होगा, जिस फाइजर कंपनी ने दवा बनाई, उसके सीईओ को लोगों ने दावोस में मीडिया वालों ने घेरा था. वो कुछ बोले नहीं, चुप होकर निकल गए पर खबरें तो ये आईं कि 190 दुनिया के देशों ने शिकायत की कि टीका देने के नाम पर इन्होंने हमारी वर्जिनिटी को गिरवी रखने की कोशिश की, स्वायत्ता को गिरवी रखने की कोशिश की. आज इन पश्चिमी मीडिया के लोगों का देख रहे हैं ना रूख कि एक देश को… छोटे देश को उकसा कर युद्ध में उतारते हैं और आज उसे कहते हैं कि युद्ध में जो मैंने मदद की, वो सारा हमें सारा खनिज उसके बदले दीजिए, नहीं तो आपको मदद नहीं करेंगे. इनके अपने वेस्टेड इंटरेस्ट हैं.
उमेश उपाध्याय की किताब… बड़े जर्नलिस्ट इस देश के रहे हैं… हम सब दुर्भाग्य से असमय उनकी मृत्यु हो गई… उनकी किताब आई है वेस्टर्न मीडिया नेटिव फ्रॉम गांधी टू मोदी. हर एक को पढ़ना चाहिए. कैसे गांधी के बारे में इन्होंने खिलाफ में लिखा. क्या-क्या गांधी के बारे में कहा गया? क्या पंडित जवाहरलाल जी के बारे में कहा गया? क्या हमारी इंदिरा जी शायद 1967 में प्रधानमंत्री के रूप में गई थी न्यूयॉर्क तो इन्हीं में से न्यूयॉर्क टाइम्स का शायद ये हेडिंग था इंडिया कम बैगिंग. मुझे बताने की जरूरत नहीं कि इंडिया कम्स बैगिंग हेडिंग का क्या अर्थ है. हमारी प्रधानमंत्री के बारे में आप ऐसी टिप्पणी करते हैं और बांग्लादेश युद्ध में आज हमें नैतिक शिक्षा लोग देते हैं पश्चिम के. बांग्लादेश युद्ध में जब हमारी प्रधानमंत्री या बाकी लोग इन्यूज पर बात करते हैं, तो आपका जवाब क्या होता है? उसके कॉन्फिडेंशियल डॉक्यूमेंट भी आ गए हैं. उसमें किस तरह के लब्ज आप इस्तेमाल करते हैं? हमारे देश के बड़े नेताओं के प्रति मैं वह शब्द उच्चरित नहीं करना चाहता. इनका बसनेस तो पहले से क्लियर है वेस्ट का कि किसी कीमत पर मजबूत भारत नहीं चाहते. यह नहीं चाहते कि दुनिया का सबसे बड़ा जीवंत लोकतंत्र और दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र अपने मजबूत आर्थिक उसमें खड़ा हो सके. तो दुनिया को बड़ी उम्मीद थी.
इन्होंने लगातार लिखा, जब कोविड की आहट हुई कि सबसे अधिक लोग यहां मरेंगे. जो लॉबियों का जिक्र हम कर रहे थे. हथियार लॉबी और यही मीडिया कंट्रोल करते हैं. यही वहां के शासन पर भी असल प्रभाव रखते हैं और इन्हीं मीडिया हाउसों के बारे में वाशिंगटन पोस्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स के बारे में है. कैसे पुलित्जर अवार्ड इन लोगों को मिलते हैं आपस में बांट कर. किताब पढ़ लीजिए, वहीं की एक महिला पत्रकार ने लिखा. वो किताब भी मेरे लाइब्रेरी में है. मैं कभी उसका उल्लेख अलग से कर दूंगा आपको. तो अब असल बात जो आपको बता रहा हूं कि यह फाइजर कंपनी कैसे 200 में से 140 देश या 190 देशों ने कंप्लेन किया कि हमारी सोवर्निदी को गिरवी रख रहे हैं. टीका टीका पाना बड़ा एक कठिन काम था. किसी को उम्मीद नहीं थी, आहट नहीं थी, क्योंकि इसके पहले हुआ ही नहीं था कि भारत अपना टीका खोज लेगा. भारत टीका खोज लेगा, भारत जेनरिक दवाएं बनाएगा. किसको हानि होने वाली है. यह बिलियन डॉलर्स की इंडस्ट्री है, जो फार्मा इंडस्ट्री है, उसी की हानि होने वाली है ना. तो उस इंडस्ट्री के इशारे से संचालित ये जितनी लॉबी है मीडिया से लेकर, वह हमारे पास हमारे लिए क्या भाव रखेंगी? वो तो किसी भी कीमत पर नहीं चाहेंगी. उसी तरह आर्म्स लॉबी असल में इन सब चीजों के पीछे यह असल में और मैं उसका और प्रमाण बता रहा हूं. इसलिए मैंने अपना मोबाइल फोन आपके पास मंगवाया. पिछले दिनों मैंने एक लेक्चर में पत्रकारिता के कहा था.
जनार्दन पांडेय: अच्छा, कहा क्या था?
हरिवंश: कहा था कि जो सवाल आपने मुझसे पश्चिमी मीडिया की इस रूख के बारे में पूछा और खासतौर से मोदी जी के राज्य के बाद जो ये चीजें कह रहे हैं, इस संदर्भ में. उन्हीं का जवाब उन्हीं लोगों के सबसे प्रमाणिक स्रोत से दे रहा हूं. पश्चिम मीडिया अभी एक किताब 2019 के आसपास ही आई है. कोविड के दौरान ही नैरेटिव इकोनॉमिक्स हाउ स्टोरीज गो वायर एंड ड्राइव मेजर इकोनॉमिक इवेंट्स यानी कुप्रचार या खबरें कैसे दुनिया में यह जो आपके वायरल होकर के बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर डालती हैं, तबाह कर डालती हैं. उसका आशय यह और ये किताब लिखा किसने? यह नोबल प्राइज विनर इकोनॉमिस्ट रॉबर्ट जे सीलर. यह पश्चिम के नोबल प्राइज विनर विजेता मापदंड के अनुसार सबसे बड़े इकोनॉमिस्ट हैं वहां के. उनकी किताब है. हमारे देश की किसी व्यक्ति ने या 2014 के बाद जो केंद्र में सरकार के उनके पक्ष किसी व्यक्ति ने किताब नहीं लिखी. कैसे नैरेटिव इकोनॉमी में झूठ फैला कर के वायरल चीजें करके सोशल मीडिया से अर्थव्यवस्थाओं को तबाह किया जा सकता है और कैसे भारत में और कैसे दुनिया में यह घटनाएं हुई है, दुनिया दूसरे देशों को और भारत में किस तरह से यह काम हो रहा है इस पर बहुत अच्छी तरह से इसमें नई नया दौर भी शामिल है.
मुझे याद आता है कि भारत में किसान आंदोलन पीक पर थे और उस दौर में बहुत बड़ी सेलिब्रिटीज क्योंकि उनके फॉलोअर की संख्या ज्यादा है, सोशल मीडिया में उन सेलिब्रिटीज ने भी अपनी राय रखी थी, पक्ष रखा था और उस वक्त टूलकिट जैसी चीज बहुत ज्यादा वायरल होने लग गई थी. इसमें बताने की जरूरत नहीं कि इन सारी चीजों के पीछे किस तरह की ताकतें भारत के खिलाफ लगी हैं. यह सारे प्रमाण हैं और यह तो जो किताब का नाम बताया… आपने सुना… अब इन किताबों के आधार पर कैसे भारत के खिलाफ कुप्रचार चला. उस पर भी बहुत अच्छा एक प्रामाणिक वो है. ये हैं डॉक्टर शबिका रवि ये आजकल प्रधानमंत्री इकोनॉमिक एडवाइजरी कांसिल की सदस्य भी हैं. इन्होंने पूरे कोविड से लेकर अब तक किस तरह के कुप्रचार सोशल मीडिया पर भारत के खिलाफ आए और किन स्रोतों से आए. वह स्रोत अज्ञात है, वह स्रोत सारे चीन की तारीफ में आए. इन सारी चीजों पर विस्तार से उनका प्रेजेंटेशन है. बहुत प्रमाणिक विवरणों के साथ इसमें विस्तार से बताया. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि आप देखिए क्या वजह रही कि ये सिर्फ रेफरेंस के लिए है. आपके समझने के लिए मैं तो कई बार सोचता हूं. इस पर सुधांशु त्रिवेदी जी ने बहुत अच्छी तरह पार्लियामेंट में उठाया था कि क्या वजह है कि जब-जब भारत की पार्लियामेंट होने वाली होती थी, तब-तब बाहर से खबर कुछ लाई जाती थी. किसी उद्यमी के बारे में… भारतीय उद्यमी के बारे में… किसी और चीज के बारे में और केरल में जहां इन्वेस्टमेंट हुआ, वहां 30 हजार करोड़ उस उद्यमी ने इन्वेस्ट किया है. ये जानबूझ कर के ये पॉलिटिकल गेम क्या है. यह समझने की कोशिश हमें करनी चाहिए.
भाई, उद्यम का कोई लेना देना नहीं राजनीति से. वो चूंकि भारत के उद्यमी हैं, इसलिए जानबूझ कर के उनकी खबर लाई जाए और जो संस्था खबर लाने वाली थी, वो संस्था ही रातोंरात खत्म हो गई. ये तो आपने सुना, तो कैसे एक निहित उद्देश्य के साथ भारत को कमजोर किया जाए. ये डिजाइन शुरू हुआ 1962 के वॉर से. नेवली मैक्सवेल मैं नाम भूल गया था. नेवली मैक्सवेल जिन्होंने भारत को आक्रमणकारी ठहराया था चाइना वार में. उसमें किताब भी उनकी बड़ी चर्चित हुई उस पर. बाद में चीन ने बुलाकर अपने यहां उनको सम्मानित किया और वह करेस्पॉन्ड थे टाइम्स लंडन के. उन्होंने लिखा भारत में आखिरी चुनाव तो मैं आपको शुरू से यानी गांधी जी से लेकर के, पंडित जी से लेकर के, इंदिरा जी से लेकर के अभी तक. अभी इसलिए ये हमला बढ़ गया क्योंकि भारत अब ताकतवर हो रहा है. भारत दुनिया की आज पांचवीं इकॉनमी है, कल तीसरी होने वाला है. भारत अब चांद पर अपने बूते चीजों को भेजने की स्थिति में है और सबसे सस्ता भेजने की स्थिति में है. भारत अपने बूते टीका इजाद कर ले रहा है, जो टीका आपके आपकी कृपा से हमें मिलता था या आप हमारी वर्जनिटी को बंधक बनाकर कई गुना दाम लेकर हमें देते थे. आज हम टीका उस रूप में लेते, तो भारत की कितनी आर्थिक चीजें प्रभावित होतीं आप कल्पना कर सकते हैं क्या? टीका को कीमत रख रहे थे हम और मैं उन दिनों कई ऐसे विदेशी फर्मों में भारतीय सांसद प्रतिनिधियों की टीम के साथ जाता था. मैं उल्लेख करना चाहूंगा कि भारत का टीका मांगने के लिए सबसे अधिक बेचैनी देशों में होती थी कि भारत अपना टीका दे. ये हमारी प्रामाणिकता थी और भारत ने 120 या इससे अधिक देशों को मुफ्त वैक्सीन दिया भेजा है.
इसे भी पढ़ें: कहां छुपा है भारत की समृद्धि का राज? जानना है तो पढ़ें और देखें राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू
ये हमारा मुल्क है. 2014 के बाद जिस पर हम फख्र करते हैं… तो भारत आज चाहे आर्म्स की बात हो, उसी तरह से आर्म्स में हम आज कह रहे हैं कि नहीं, हम अपने बूते खड़े होंगे. हमें इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि क्या वजह थी कि आज तक दुनिया के हम सबसे बड़े हथियार खरीददार देश बने, जबकि अंग्रेज हमारे पास जो इंफ्रास्ट्रक्चर छोड़ गए थे ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज को, बेस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर थे दुनिया में हम. क्यों 2014 के बाद इस सरकार ने संकल्प लिया कि नहीं, हम अपने देश में स्वदेशी हथियारों का निर्माण करेंगे. उसमें वक्त लगेगा, पर आज यह देश इस संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है और भारी पैमाने पर स्वदेशी हथियार बनने शुरू हो गए हैं. एक समय लगेगा अभी. तत्काल हम सब चीजें नहीं कर पा रहे, क्योंकि हमने भविष्य में 50 वर्ष-60 वर्ष पहले जो यात्रा शुरू करनी चाहिए थी, जो नई एजुकेशन पॉलिसी की हो या ये डिफेंस में आत्मनिर्भर होने की हो, ये हम अब कर रहे हैं, तो समय लगेगा.
इसे भी पढ़ें: 2014 के बाद भारत में क्या हुआ? क्या कभी चीन से आगे था भारत? पेश है हरिवंश के साथ एक्सक्लूविस इंटरव्यू की दूसरी कड़ी
Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.