खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Minerals and Energy Resources

खनिज तथा ऊर्जा संसाधन     Minerals and Energy Resources

 

♦ भू-पर्पटी ( पृथ्वी की ऊपरी परत) विभिन्न खनिजों के योग से बनी चट्टानों से निर्मित है। इन खनिजों का उपयुक्त शोधन करके ही ये धातुएँ निकाली जाती हैं।
♦ खनिज हमारे जीवन का अति अनिवार्य भाग है। लगभग हर चीज जो हम इस्तेमाल करते हैं- एक छोटी सूई से लेकर एक बड़ी इमारत तक, या फिर एक बड़ा जहाज आदि-सभी खनिजों से बने हैं।
♦ मनुष्य ने विकास की सभी अवस्थाओं में अपनी जीविका तथा सजावट, त्योहारों व मार्मिक अनुष्ठान के लिए खनिजों को प्रयोग किया है।
♦ खनिजों के बिना जीवन प्रक्रिया नहीं चल सकती। यद्यपि हमारे कुल पौष्टिक उपभोग का केवल 0.3% भाग ही खनिज है तथापि ये इतने महत्त्वपूर्ण और गुणकारी हैं कि इनके बिना हम 99.7% भोज्य पदार्थों को उपयोग करने में असमर्थ होंगे।
खनिज क्या है ?
♦ भू-वैज्ञानिकों के अनुसार खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्त्व है जिसकी एक निश्चित आन्तरिक संरचना है। खनिज प्रकृति में अनेक रूपों में पाए जाते हैं। जिसमें कठोर हीरा व नरम चूना तक सम्मिलित हैं।
♦ चट्टानें खनिजों के समरूप तत्त्वों के यौगिक हैं। कुछ चट्टानें जैसे चूना पत्थर केवल एक ही खनिज से बनी हैं लेकिन अधिकतर चट्टानें विभिन्न अनुपातों के अनेक खनिजों का योग हैं।
♦ यद्यपि 2000 से अधिक खनिजों की पहचान की जा चुकी है, लेकिन अधिकतर चट्टानों में केवल कुछ ही खनिजों की बहुतायत है।
♦ एक खनिज विशेष जो निश्चित तत्त्वों का योग है, उन तत्त्वों का निर्माण उस समय के भौतिक व रासायनिक परिस्थितियों का परिणाम है। इसके फलस्वरूप ही खनिजों में विविध रंग, कठोरता, चमक, घनत्व तथा विविध क्रिस्टल पाए जाते हैं। भू-वैज्ञानिक इन्हीं विशेषताओं के आधार पर खनिजों का वर्गीकरण करते हैं।
सामान्य व वाणिज्यिक (व्यापारिक) उद्देश्य हेतु खनिज निम्न प्रकार से वर्गीकृत किए जाते हैं
खनिजों की उपलब्धता
♦ सामान्यतः खनिज ‘अयस्कों’ में पाए जाते हैं। किसी भी खनिज में अन्य अवयवों या तत्त्वों के मिश्रण या संचयन हेतु ‘अयस्क’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। खनन का आर्थिक महत्त्व तभी है जब अयस्क में खनिजों का संचयन पर्याप्त मात्रा में हो।
♦ खनिज प्राय: निम्न शैल समूहों से प्राप्त होते हैं
♦ आग्नेय तथा कायान्तरित चट्टानों में खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व विदरों में मिलते हैं। छोटे जमाव शिराओं के रूप में और वृहत् जमाव परत के रूप में पाए जाते हैं। इनका निर्माण भी अधिकतर उस समय होता है जब ये तरल अथवा गैसीय अवस्था में दरारों के सहारे भू-पृष्ठ की ओर धकेले जाते हैं। ऊपर आते हुए ये ठण्डे होकर जम जाते हैं। मुख्य धात्विक खनिज जैसे— जस्ता, ताँबा, जिंक और सीसा आदि इसी तरह शिराओं व जमावों के रूप में प्राप्त होते हैं। –
♦ अनेक खनिज अवसादी चट्टानों के अनेक खनिज संस्तरों या परतों में पाए जाते हैं। इनका निर्माण क्षैतिज परतों में निक्षेपण, संचयन व जमाव का परिणाम है। कोयला तथा कुछ अन्य प्रकार के लौह अयस्कों का निर्माण लम्बी अवधि तक अत्यधिक उष्मा व दबाव का परिणाम है। अवसादी चट्टानों में दूसरी श्रेणी में खनिजों में जिप्सम, पोटाश, नमक व सोडियम सम्मिलित हैं। इनका निर्माण विशेषकर शुष्क प्रदेशों में वाष्पीकरण के फलस्वरूप होता है।
♦ खनिजों के निर्माण की एक अन्य विधि धरातलीय चट्टानों का अपघटन है। चट्टानों के घुलनशील तत्त्वों के अपरदन के पश्चात् अयस्क वाली अवशिष्ट चट्टानें रह जाती हैं। बॉक्साइट का निर्माण इसी प्रकार होता है।
♦ पहाड़ियों के आधार पर घाटी तल की रेत में जलोढ़ जमाव के रूप में भी कुछ खनिज पाए जाते हैं। ये निक्षेप ‘प्लेसर निक्षेप’ के नाम से जाने जाते हैं। इनमें प्राय: ऐसे खनिज होते हैं जो जल द्वारा घर्षित नहीं होते हैं। इन खनिजों में सोना, चाँदी, टिन व प्लेटिनम प्रमुख हैं।
♦ महासागरीय जल में भी विशाल मात्रा में खनिज पाए जाते हैं लेकिन इनमें से अधिकांश के व्यापक रूप से विसरित होने के कारण इनकी आर्थिक सार्थकता कम है। फिर भी सामान्य नमक, मैगनीशियम तथा ब्रोमाइन ज्यादातर समुद्री जल से ही प्रग्रहित (Derived) होते हैं। महासागरीय तली भी मैंगनीज ग्रन्थिकाओं (Nodules) में धनी हैं।
कुछ प्रमुख खनिज लौह खनिज
♦ लौह खनिज धात्विक खनिजों के कुल उत्पादन मूल्य के तीन-चौथाई भाग का योगदान करते हैं। ये धातु शोधन उद्योगों के विकास को मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
♦ भारत अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के पश्चात् बड़ी मात्रा में धात्विक खनिजों का निर्यात करता है।
♦ लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है तथा औद्योगिक विकास की रीढ़ है।
♦ भारत में लौह अयस्क के विपुल संसाधन विद्यमान हैं। भारत उच्च कोटि के लोहांशयुक्त लौह अयस्क में धनी है।
♦ मैग्नेटाइट सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क है जिसमें 70% लोहांश पाया जाता है। इसमें सर्वश्रेष्ठ चुम्बकीय गुण होते हैं, जो विद्युत उद्योगों में विशेष रूप से उपयोगी हैं।
♦ हेमेटाइट सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है जिसका अधिकतम मात्रा में उपभोग हुआ है। किन्तु इसमें लोहांश की मात्रा मैग्नेटाइट की अपेक्षा थोड़ी-सी कम होती है। (इसमें लोहांश 50 से 60% तक पाया जाता है।)
♦ भारत में लौह अयस्क की पेटियाँ हैं—
♦ उड़ीसा-झारखण्ड पेटी ओडिशा में उच्चकोटि का हेमेटाइट किस्म का लौह अयस्क मयूरभंज व केन्दूझर जिलों में बादाम पहाड़ खदानों से निकाला जाता है। इसी के निकट झारखण्ड के सिंहभूम जिले में गुआ तथा नोआमुण्डी से हेमेटाइट अयस्क का खनन किया जाता है।
♦ दुर्ग- बस्तर चन्द्रपुर पेटी यह पेटी महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ राज्यों के अन्तर्गत पाई जाती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में बेलाडिला पहाड़ी शृंखलाओं में अति उत्तम कोटि का हेमेटाइट पाया जाता है। जिसमें इस गुणवत्ता के लौह के 14 जमाव मिलते हैं। इसमें इस्पात बनाने में आवश्यक सर्वश्रेष्ठ भौतिक गुण विद्यमान हैं। इन खदानों का लौह अयस्क विशाखापत्तनम से जापान तथा दक्षिण कोरिया को निर्यात किया जाता है।
♦ बेलारी- चित्रदुर्ग, चिकमगलूर-तुमकुर पेटी कर्नाटक की इस पेटी में लौह अयस्क की वृहत् राशि संचित है। कनार्टक में पश्चिम घाट में अवस्थित कुद्रेमुख की खानें शत् प्रतिशत निर्यात इकाई हैं। कुद्रेमुख निक्षेप संसार के सबसे बड़े निक्षेपों में से एक माने जाते हैं। लौह अयस्क कर्दम (Slurry) रूप में पाइपलाइन द्वारा मैंगलोर के निकट एक पत्तन पर भेजा जाता है।
♦ महाराष्ट्र-गोआ पेटी यह पेटी गोआ तथा महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरि जिले में स्थित है। यद्यपि यहाँ का लोहा उत्तम प्रकार का नहीं है तथापि इसका दक्षता से दोहन किया जाता है। मरमागाओ पत्तन से इसका निर्यात किया जाता है।
मैंगनीज
♦ मैंगनीज मुख्य रूप से इस्पात के विनिर्माण में प्रयोग किया जाता है।
♦ एक टन इस्पात बनाने में लगभग 10 किग्रा मैंगनीज की आवश्यकता होती है।
♦ इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएँ व पेंट बनाने में किया जाता है।
♦ भारत में ओडिशा मैंगनीज का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। वर्ष 2000-01 में देश के कुल उत्पादन का एक तिहाई भाग यहाँ से प्राप्त हुआ।
अलौह खनिज ताँबा
♦ भारत में ताँबे के भण्डार व उत्पादन क्रान्तिक रूप से न्यून
♦ घातवर्ध्य (Malleable), तन्य और ताप सुचालक होने के कारण ताँबे का उपयोग मुख्यत: बिजली के तार बनाने, इलेक्ट्रोनिक्स और रसायन उद्योगों में किया जाता है।
♦ मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें देश का लगभग 52% ताँबा उत्पन्न करती हैं।
♦ झारखण्ड का सिंहभूम जिला भी ताँबे का मुख्य उत्पादक है। राजस्थान की खेतड़ी खदानें भी ताँबे के लिए प्रसिद्ध थीं।
बॉक्साइट
♦ यद्यपि अनेक अयस्कों में एल्युमीनियम पाया जाता है परन्तु सबसे अधिक ऐलुमिना क्ले (Clay) जैसे दिखने वाले पदार्थ बॉक्साइट से ही प्राप्त किया जाता है बॉक्साइट निक्षेपों की रचना एल्युमीनियम सिलिकेटों से समृद्ध व्यापक भिन्नता वाली चट्टानों के विघटन से होती है।
♦ एल्युमीनियम एक महत्त्वपूर्ण धातु है क्योंकि यह लोहे जैसी शक्ति के साथ-साथ अत्यधिक हल्का एवं सुचालक भी होता है। इसमें अत्यधिक घातवर्ध्यता (Malleability) भी पाई जाती है।
♦ भारत में बॉक्साइट के निक्षेप मुख्यतः अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ियों तथा बिलासपुर-कटनी के पठारी प्रदेश में पाए जाते हैं।
♦ ओडिशा भारत का सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य है। यहाँ कोरापुट जिले में पंचपतमाली निक्षेप राज्य के सबसे महत्त्वपूर्ण बॉक्साइट निक्षेप हैं।
अधात्विक खनिज अभ्रक
♦ अभ्रक एक ऐसा खनिज है जो प्लेटों अथवा पत्रण क्रम में पाया जाता है। इसका चादरों में विपाटन (Split) आसानी से हो सकता है। ये परतें इतनी महीन हो सकती हैं कि इसकी एक हजार परतें कुछ सेन्टीमीटर ऊँचाई में समाहित हो सकती हैं।
♦ अभ्रक पारदर्शी, काले, हरे, लाल, पीले अथवा भूरे रंग का हो सकता है।
♦ इसकी सर्वोच्च परावैद्युत शक्ति, ऊर्जा ह्रास का निम्न गुणांक, विंसवाहन के गुण और उच्च वोल्टेज की प्रतिरोधिता के कारण अभ्रक विद्युत व इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में प्रयुक्त होने वाले अपरिहार्य खनिजों में से एक है।
♦ अभ्रक के निक्षेप छोटानागपुर पठार के उत्तरी पठारी किनारों पर पाए जाते हैं। बिहार-झारखण्ड की कोडरमा-गया-हजारीबाग पेटी अग्रणी उत्पादक हैं। राजस्थान के मुख्य अभ्रक उत्पादक क्षेत्र अजमेर के आस पास हैं। आन्ध्र प्रदेश की नेल्लोर अभ्रक पेटी भी देश की महत्त्वपूर्ण उत्पादक पेटी है।
चट्टानी खनिज चूना पत्थर
♦ चूना पत्थर कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट तथा मैगनीशियम कार्बोनेट से बनी चट्टानों में पाया जाता है।
♦ यह अधिकांशतः अवसादी चट्टानों में पाया जाता है।
♦ चूना पत्थर सीमेन्ट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल होता है और लौह- ह-प्रगलन की भट्टियों के लिए अनिवार्य है।
खनिजों का संरक्षण
♦ जिन खनिज संसाधनों के निर्माण व सान्द्रण में लाखों वर्ष लगे हैं, हम उनका शीघ्रता से उपभोग कर रहे हैं। खनिज निर्माण की भूगर्भिक प्रक्रियाएँ इतनी धीमी हैं कि उनके वर्तमान उपभोग की दर की तुलना में उनके पुनर्भरण की दर अपरिमित रूप से थोड़ी है। इसीलिए खनिज संसाधन सीमित तथा अनवीकरण योग्य हैं।
♦ समृद्ध खनिज निक्षेप हमारे देश की अत्यधिक मूल्यवान सम्पत्ति हैं, लेकिन ये अल्पजीवी हैं। अयस्कों के सतत् उत्खनन से लागत बढ़ती है क्योंकि खनिजों के उत्खन्न की गहराई बढ़ने के साथ उनकी गुणवत्ता घटती जाती है।
♦ धातुओं का पुनः चक्रण रद्दी धातुओं का प्रयोग तथा अन्य प्रतिस्थापों का उपयोग भविष्य में हमारे खनिज संसाधनों के संरक्षण के उपाय हैं।
ऊर्जा संसाधन
♦ ऊर्जा सभी क्रिया-कलापों के लिए आवश्यक हैं। खाना पकाने में, रोशनी व ताप के लिए गाड़ियों के संचालन तथा उद्योगों में मशीनों के संचालन में ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
♦ ऊर्जा का उत्पादन ईंधन खनिजों जैसे—कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम तथा विद्युत से किया जाता है।
♦ ऊर्जा संसाधनों को परम्परागत तथा गैर-परम्परागत साधनों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
♦ परम्परागत साधनों में लकड़ी, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत (दोनों जल विद्युत व ताप विद्युत) सम्मिलित हैं।
♦ गैर-परम्परागत साधनों में सौर, पवन, ज्वारीय, भू-तापीय, बायोगैस तथा परमाणु ऊर्जा शामिल किए जाते हैं।
परम्परागत ऊर्जा के स्रोत कोयला
♦ भारत में कोयला बहुतायात में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। यह देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का महत्त्वपूर्ण भाग प्रदान करता है। इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन तथा उद्योगों और घरेलू जरूरतों के लिए ऊर्जा की आपूर्ति के लिए किया जाता है। भारत अपनी वाणिज्यिक ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मुख्यतः कोयले पर निर्भर है।
♦ कोयले का निर्माण पादप पदार्थों के लाखों वर्षों तक सम्पीडन से हुआ है। इसीलिए सम्पीडन की मात्रा, गहराई और दबने के समय के आधार पर कोयला अनेक रूपों में पाया जाता है ।
♦ दलदलों में क्षय होते पादपों से पीट उत्पन्न होता है, जिसमें कम कार्बन, नमी की उच्च मात्रा व निम्न ताप क्षमता होती है।
♦ लिग्नाइट एक निम्न कोटि का भूरा कोयला होता है, यह मुलायम होने के साथ-साथ अधिक नमीयुक्त होता है। लिग्नाइट के प्रमुख भण्डार तमिलनाडु के नैवेली में मिलते हैं और विद्युत उत्पादन में प्रयोग किए जाते हैं।
♦ गहराई में दबे तथा अधिक तापमान से प्रभावित कोयले को बिटुमिनस कोयला कहा जाता है। वाणिज्यिक प्रयोग में यह सर्वाधिक लोकप्रिय है। धातु शोधन में उच्च श्रेणी के बिटुमिनस कोयले का प्रयोग किया जाता है जिसका लोहे के प्रगलन में विशेष महत्त्व है।
♦ एन्थ्रेसाइट सर्वोत्तम गुण वाला कठोर कोयला है।
♦ भारत में कोयला दो प्रमुख भूगर्भिक युगों के शैलक्रम में पाया जाता – एक गोंडवाना जिसकी आयु 200 लाख वर्ष से कुछ अधिक है और दूसरा टरशियरीनिक्षेप जो लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं।
♦ गोंडवाना कोयले, जो धातुशोधन कोयला है, के प्रमुख संसाधन दामोदर घाटी (पश्चिमी बंग तथा झारखण्ड), झरिया, रानीगंज, बोकारों में स्थित हैं जो महत्त्वपूर्ण कोयला क्षेत्र हैं। गोदावरी, महानदी व सोन नदी घाटियों में भी कोयले के जमाव पाए जाते हैं।
♦ टरशियरी कोयला क्षेत्र उत्तर पूर्वी राज्यों–मेघालय, असोम, अरुणाचल प्रदेश व नागालैण्ड में पाया जाता है। –
पेट्रोलियम
♦ भारत में कोयले के पश्चात् ऊर्जा का दूसरा प्रमुख साधन पेट्रोलियम या खनिज तेल है। यह ताप व प्रकाश के लिए ईंधन, मशीनों को स्नेहक और अनेक विनिर्माण उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करता है।
♦ भारत में अधिकांश पेट्रोलियम की उपस्थिति टरशियरी युग की शैल संरचनाओं के अपनति व भ्रंश टैप में पाई जाती है। वलन, अपनति और गुम्बदों वाले प्रदेशों में यह वहाँ पाया जाता है जहाँ उद्ववलन के शीर्ष में तेल टैप हुआ होता है।
♦ भारत में कुल पेट्रोलियम उत्पादन का 63% भाग मुम्बई हाई से, 18% गुजरात से और 16% असोम से प्राप्त होता है। अंकलेश्वर गुजरात का सबसे महत्त्वपूर्ण तेल क्षेत्र है। असोम भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक राज्य है। डिगबोई नहरकटिया और मोरन-हुगरीजन इस राज्य के महत्त्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।
प्राकृतिक गैस
♦ प्राकृतिक गैस एक महत्त्वपूर्ण स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है जो पेट्रोलियम के साथ अथवा अलग भी पाई जाती है। इसे ऊर्जा के एक साधन के रूप में तथा पेट्रो रसायन उद्योग के एक औद्योगिक कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड के कम उत्सर्जन के कारण प्राकृतिक गैस को पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है। इसलिए यह वर्तमान शताब्दी का ईंधन है।
♦ कृष्णागोदावरी नदी बेसिन में प्राकृतिक गैस के विशाल भण्डार खोजे गए हैं। पश्चिमी तट के साथ मुम्बई हाई और सन्धि क्षेत्रों को खम्भात की खाड़ी में पाए जाने वाले तेल क्षेत्र सम्पूरित करते हैं। अण्डमान-निकोबार द्वीपसमूह भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहाँ प्राकृतिक गैस के विशाल भण्डार पाए जाते हैं।
विद्युत
♦ आधुनिक विश्व में विद्युत के अनुप्रयोग इतने ज्यादा विस्तृत हैं कि इसके प्रति व्यक्ति उपभोग को विकास का सूचकांक माना जाता है।
♦ विद्युत मुख्यतः दो प्रकार से उत्पन्न की जाती है – (i) प्रवाही जल से जो हाइड्रो – टरबाइन चला कर जल विद्युत उत्पन्न करता है (ii) अन्य ईंधन जैसे कोयला पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस को जलाने से टरबाइन चलाकर ताप विद्युत उत्पन्न की जाती है। एक बार उत्पन्न हो जोने के बाद विद्युत एक जैसी ही होती है।
♦ तेज बहते जल से जल विद्युत उत्पन्न की जाती है जो एक नवीकरण योग्य संसाधन है।
♦ भारत में अनेक बहुउद्देशीय परियोजनाएँ हैं जो विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती हैं जैसे- भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी कार्पोरेशन और कोपिली हाइडल परियोजना आदि ।
♦ ताप विद्युत – कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के प्रयोग से उत्पन्न की जाती है। ताप विद्युत गृह अनवीकरण योग्य जीवाश्मी ईंधन का प्रयोग कर विद्युत उत्पन्न करते हैं। भारत में 310 ताप विद्युत गृह हैं।
परमाणु ऊर्जा
♦ परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा अणुओं की संरचनाओं को बदलने से प्राप्त की जाती है। जब ऐसा परिवर्तन किया जाता है तो ऊष्मा के रूप में काफी ऊर्जा विमुक्त होती है और इसका उपयोग विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने में किया जाता है।
♦ यूरेनियम और थोरियम जो झारखण्ड और राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखला में पाए जाते हैं, का प्रयोग परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है। केरल में मिलने वाली मोनाजाइट रेत में भी थोरियम की मात्रा पाई जाती है।
गैर-परम्परागत ऊर्जा के साधन
♦ ऊर्जा के बढ़ते उपभोग ने देश को कंोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्मी ईंधनों पर अत्यधिक निर्भर कर दिया है। गैस व तेल की बढ़ती कीमतों तथा इनकी सम्भाव्य कमाने भविष्य मे ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा के प्रति अनिश्चितताएँ उत्पन्न कर दी हैं। इसके राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर गम्भीर प्रभाव पड़ते हैं। इसके अतिरिक्त जीवाश्मी ईंधनों का प्रयोग गम्भीर पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न करता है। अतः नवीकरण योग्य ऊर्जा संसाधनों जैसे – सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैविक ऊर्जा तथा अवशिष्ट पदार्थ जनित ऊर्जा के उपयोग की बहुत जरूरत है। ये ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधन कहलाते हैं।
सौर ऊर्जा
♦ भारत एक उष्ण-कटिबन्धीय देश है। यहाँ सौर ऊर्जा के दाहन की असीम सम्भावनाएँ हैं।
♦ फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी द्वारा धूप का सीधे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है।
♦ भारत के ग्रामीण तथा सुदूर क्षेत्रों में सौर ऊर्जा तेजी से लोकप्रिथ हो रही है।
♦ भारत का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा संयन्त्र भुज के निकट माधोपुर में स्थित है, जहाँ सौर ऊर्जा से दूध के बड़े बर्तनों को कीटाणुमुक्त किया जाता है।
पवन ऊर्जा
♦ भारत को अब विश्व में ‘पवन महाशक्ति (Wind super power! का दर्जा प्राप्त है।
♦ भारत में पवन ऊर्जाफार्म की विशालतम पेटी तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरई तक अवस्थित है। इसके अतिरिक्त आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र तथा लक्षद्वीप में भी महत्त्वपूर्ण पवन ऊर्जा फार्म हैं। नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग के लिए जाने जाते हैं।
बायो गैस
♦ ग्रामीण इलाकों में झाड़ियों, कृषि अपशिष्ट, पशुओं और मानव जनित अपशिष्ट के उपयोग से घरेलू उपभोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है।
♦ जैविक पदार्थों के अपघटन से गैस उत्पन्न होती है, जिसकी तापीय सक्षमता मिट्टी के तेल, उपलों व चारकोल की अपेक्षा अधिक होती है।
♦ बायो गैस संयन्त्र नगरपालिका, सहकारिता तथा निजी स्तर पर लगाए जाते हैं।
♦ पशुओं का गोबर प्रयोग करने वाले संयन्त्र ग्रामीण भारत में ‘गोबर गैस प्लाण्ट’ के नाम से जाने जाते हैं। ये किसानों को दो प्रकार से लाभांवित करते हैं—एक ऊर्जा के रूप में और दूसरा उन्नत प्रकार के उर्वरक के रूप में।
♦ बायो गैस अब तक पशुओं के गोबर का प्रयोग करने में सबसे दक्ष है। यह उर्वरक की गणुवत्ता को बढ़ाता है और उपलों तथा लकड़ी को जलाने से होने वाले वृक्षों के नुकसान को रोकता है।
ज्वारीय ऊर्जा
♦ महासागरीय तरंगों का प्रयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है। संकरी खाड़ी के आर-पार बाढ़ द्वार बना कर बाँध बनाए जाते हैं। उच्च ज्वार में इस संकरी खाड़ीनुमा प्रवेश द्वार से पानी भीतर भर जाता है और द्वार बन्द होने पर बाँध में ही रह जाता है। बाढ़ द्वारा के बाहर ज्वार उतरने पर, बाँध के पानी को इसी रास्ते द्वारा पाइप समुद्र की तरफ बहाया जाता है जो इसे ऊर्जा उत्पादक टरबाइन की ओर ले जाता है।
♦ भारत में कच्छ की खाड़ी में ज्वारीय तरंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ उपस्थित हैं। राष्ट्रीय हाइड्रोपावर कार्पोरेशन ने यहाँ 900 मेगावाट का ज्वारीय विद्युत ऊर्जा संयन्त्र स्थापित किया है।
भू-तापीय ऊर्जा
♦ पृथ्वी के आन्तरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।
♦ भू-तापीय ऊर्जा इसलिए अस्तित्व में होती है क्योंकि बढ़ती गहराई के साथ पृथ्वी प्रगामी ढंग से तप्त होती जाती है।
♦ जहाँ भी भू-तापीय प्रवणता अधिक होती है वहाँ उथली गहराइयों पर भी अधिक तापमान पाया जाता है। ऐसे क्षेत्रों में भूमिगत जल चमकानों से ऊष्मा का अवशोषण कर तप्त हो जाता है। यह इतना तप्त हो जाता है कि यह पृथ्वी की सतह की ओर उठता है तो यह भाप में परिवर्तित हो जाता है। इसी भाप का उपयोग टरबाइन को चलाने और विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
♦ भारत में सैंकड़ों गर्म पानी के चश्मे हैं, जिनका विद्युत उत्पादन में प्रयोग किया जा सकता है। भू-तापीय ऊर्जा के दोहन के लिए भारत में दो प्रायोगिक परियोजनाएँ शुरू की गईं। एक हिमाचल प्रदेश में मणिकरण के निकट पार्वती घाटी में स्थित है तथा दूसरी लद्दाख में पूगा घाटी में स्थित है।
ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण
♦ आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा एक आधारभूत आवश्यकता है। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रत्येक सेक्टर- कृषि, उद्योग, परिवहन, वाणिज्य व घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऊर्जा के निवेश की आवश्यकता है।
♦ ऊर्जा के विकास के सतत् पोषणीय मार्ग के विकसित करने की तुरन्त आवश्यकता है। ऊर्जा संरक्षण की प्रोन्नति और नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का बढ़ता प्रयोग सतत् पोषणीय ऊर्जा के दो आधार हैं।
♦ वर्तमान में भारत विश्व के अल्पतम ऊर्जा दक्ष देशों में गिना जाता है। हमें ऊर्जा के सीमित संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग के लिए सावधानीपूर्ण उपागम अपनाना होगा।
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