क्रिसिल रिपोर्ट में खुलासा! राज्यों का सामाजिक खर्च बढ़ा, खतरें में राजस्व घाटा और निवेश क्षमता
Crisil Report: रेटिंग एजेंसी क्रिसिल रेटिंग्स की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा किया गया है. एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सामाजिक कल्याण योजनाओं पर खर्च बढ़ने से राज्यों में राजस्व घाटा और निवेश क्षमता पर खतरा मंडरा रहा है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत के टॉप 18 राज्यों की ओर से सामाजिक कल्याण योजनाओं पर खर्च चालू वित्त वर्ष 2025-26 में भी उच्च स्तर पर बने रहने की उम्मीद है. ये राज्य देश के कुल सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का लगभग 90% योगदान करते हैं. क्रिसिल रेटिंग्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह खर्च जीएसडीपी के लगभग 2% या करीब 6.4 लाख करोड़ रुपये तक बना रहेगा. हालांकि, इससे राज्यों के राजस्व घाटे में वृद्धि हो सकती है, जो उनके वित्तीय लचीलापन को प्रभावित कर सकती है.
पिछड़े वर्गों, महिलाओं और श्रमिकों पर रहेगा फोकस
एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकारों का सामाजिक कल्याण पर राजस्व व्यय मुख्य रूप से पिछड़े वर्गों, महिलाओं, बच्चों और श्रमिकों के लिए विकास योजनाओं और सामाजिक सुरक्षा पेंशनों पर केंद्रित है. इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सुरक्षा, रोजगार सहायता और सामाजिक पेंशन शामिल हैं. यह व्यय जनसांख्यिकीय वर्गों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए जरूरी माना जा रहा है.
चुनावी डीबीटी योजनाओं से खर्च में उछाल
क्रिसिल रेटिंग्स के वरिष्ठ निदेशक अनुज सेठी के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2025 और 2026 के दौरान सामाजिक कल्याण व्यय में करीब 2.3 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होने का अनुमान है. इसमें से लगभग 1 लाख करोड़ रुपये सिर्फ महिलाओं को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजनाओं के लिए हैं, जो चुनावी वादों का हिस्सा हैं. शेष 1.3 लाख करोड़ रुपये की राशि पिछड़े वर्गों को वित्तीय और चिकित्सा सहायता तथा सामाजिक सुरक्षा पेंशन के रूप में दी जाएगी.
सभी राज्यों में समान वृद्धि नहीं
यह वृद्धि सभी राज्यों में एक समान नहीं होगी. क्रिसिल के विश्लेषण के अनुसार, लगभग 50% राज्यों में सामाजिक कल्याण खर्च में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिलेगी, जबकि बाकी राज्यों में यह खर्च स्थिर या मामूली रूप से बढ़ेगा. यह भिन्नता राज्यों की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक प्राथमिकताओं पर निर्भर करेगी.
राजस्व घाटा बढ़ने से पूंजीगत व्यय पर असर
क्रिसिल रेटिंग्स के निदेशक आदित्य झावर के अनुसार, सामाजिक कल्याण खर्च में बढ़ोतरी के चलते राजस्व घाटा भी बढ़ेगा. पिछले वित्त वर्ष में राजस्व घाटा 90% बढ़ गया था, जिससे पूंजीगत व्यय में केवल 6% की वृद्धि दर्ज हुई, जबकि पिछले 5 वर्षों का औसत 11% था. यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो राज्यों की निवेश क्षमता और दीर्घकालीन विकास योजनाएं बाधित हो सकती हैं.
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संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण
सामाजिक कल्याण योजनाएं आवश्यक हैं, लेकिन उनके चलते राज्यों के राजकोषीय संतुलन पर दबाव बढ़ सकता है. आने वाले चुनावों में डीबीटी योजनाओं की भूमिका और भी अहम होने की संभावना है, जिससे खर्च में और वृद्धि हो सकती है. ऐसे में राज्यों को सामाजिक कल्याण और पूंजीगत निवेश के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण होगा.
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