क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं ? Is Matter Around Us Pure ?
क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं ? Is Matter Around Us Pure ?
शुद्ध और अशुद्ध पदार्थ
♦ दूध, जल, वसा, प्रोटीन आदि वस्तुओं में यदि कोई मिलावट न हो, तो सामान्य व्यक्ति इसे ‘शुद्ध’ पदार्थ की श्रेणी में रखता है, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण इससे अलग है। वैज्ञानिकों के अनुसार शुद्ध पदार्थ वे हैं जिनमें मौजूद सभी कण समान रासायनिक प्रकृति के होते हैं।
♦ रासायनिक गुणों एवं शुद्धता के आधार पर पदार्थ को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है— तत्त्व, यौगिक एवं मिश्रण।
♦ वैज्ञानिकों के अनुसार, तत्त्व एवं यौगिक शुद्ध पदार्थ तथा मिश्रण अशुद्ध पदार्थ हैं, क्योंकि तत्त्वों एवं यौगिकों के कण एक समान रासायनिक प्रकृति के होते हैं जबकि मिश्रण के सभी कण एक समान रासायनिक प्रकृति के नहीं होते हैं।
तत्त्व
♦ रॉबर्ट बॉयल पहले वैज्ञानिक थे, जिन्होंने सन् 1661 में सर्वप्रथम तत्त्व शब्द का प्रयोग किया। फ्रांस के रसायनज्ञ एण्टोनी लॉरेण्ट लवाइजिए (सन् 1743–सन् 1794) ने सबसे पहले तत्त्व की परिभाषा को प्रयोग द्वारा प्रतिपादित किया। उनके अनुसार तत्त्व पदार्थ का वह मूल रूप है जिसे रासायनिक अभिक्रिया द्वारा अन्य सरल पदार्थों में विभाजित नहीं किया जा सकता।
♦ तत्त्वों को साधारणतया धातु, अधातु तथा उपधातु में वर्गीकृत किया जा सकता है।
♦ धातुएँ प्रायः दिए हुए निम्न गुणधर्मों में से सभी को या कुछ को प्रदर्शित करती हैं
♦ ये चमकीली होती हैं।
♦ ये चाँदी जैसी सफेद या सोने की तरह पीले रंग की होती हैं।
♦ ये ताप तथा विद्युत की सुचालक होती हैं।
♦ ये तन्य होती हैं अर्थात् इनको तार के रूप में खींचा जा सकता है।
♦ ये आघातवर्ध्य होती हैं। इनको पीटकर महीन चादरों में ढाला जा सकता है।
♦ ये प्रतिध्वनिपूर्ण होती हैं।
♦ सोना, चाँदी, ताँबा, लोहा, सोडियम, पोटैशियम इत्यादि धातु के उदाहरण हैं। पारा धातु होते हुए भी कमरे के तापमान पर द्रव है।
♦ अधातुएँ दिए गए निम्न गुणों में से प्राय: कुछ को या सभी को प्रदर्शित करती हैं
♦ ये विभिन्न रंगों की होती हैं।
♦ ये ताप और विद्युत की कुचालक होती हैं।
♦ ये चमकीली, प्रतिध्वनिपूर्ण और आघातवर्ध्य नहीं होती हैं।
♦ हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, आयोडीन, कार्बन, ब्रोमीन, क्लोरीन इत्यादि अधातुओं के उदाहरण हैं।
♦ कुछ तत्त्व धातु और अधातु के बीच के गुणों को दर्शाते हैं, जिन्हें उपधातु (metalloid) कहा जाता है, जैसे बोरॉन, सिलिकॉन, जर्मेनियम इत्यादि ।
♦ अभी तक ज्ञात तत्त्वों की संख्या 100 से अधिक है। इनमें से 92 तत्त्व प्राकृतिक हैं जबकि शेष मानव-निर्मित हैं।
♦ अधिकतर तत्त्व ठोस हैं।
♦ 11 तत्त्व कमरे के तापमान पर गैसें हैं।
♦ 2 तत्त्व पारा तथा ब्रोमीन कमरे के तापमान पर द्रव हैं ।
♦ गैलियम तथा सीजियम तत्त्व कमरे के तापमान (303 K) से कुछ अधिक तापमान पर द्रव अवस्था ले लेते हैं।
यौगिक
♦ यौगिक वह पदार्थ है जो कि दो या दो से अधिक तत्त्वों के नियत अनुपात में रासायनिक तौर पर संयोजन से बना है।
♦ यौगिक के गुण उनके अवयवी तत्त्वों के गुणों से भिन्न होते हैं। जैसे—जल एक यौगिक है, जो ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन से मिलकर बना है। ऑक्सीजन जलने में सहायक होता है और हाइड्रोजन खुद जलता है, लेकिन इन दोनों का यौगिक जल आग को बुझाने का गुण रखता है।
मिश्रण
♦ वह पदार्थ जो दो या दो से अधिक तत्त्वों या यौगिकों को किसी भी अनुपात में मिलने से प्राप्त होता है, मिश्रण कहलाता है। जैसे- हवा, मिट्टी आदि।
♦ मिश्रण में एक से अधिक पदार्थ होते हैं।
मिश्रण के प्रकार
♦ अवयवों की प्रकृति के अनुसार विभिन्न प्रकार के मिश्रणों का निर्माण होता है। इस तरह मिश्रण के कई प्रकार होते हैं। जैसे- समांगी मिश्रण, विषमांगी मिश्रण, आदि।
♦ ऐसे मिश्रण जिनकी बनावट समान होती है, समांगी मिश्रण अथवा विलयन कहलाते हैं। समांगी मिश्रण में अवयव निश्चित अनुपात में होते हैं। जल में नमक और जल में चीनी, आदि इस तरह के मिश्रणों के उदाहरण हैं।
♦ अनिश्चित अनुपात में अवयवों को मिलाने से विषमांग मिश्रण का निर्माण होता है। इसके प्रत्येक भाग के गुण एवं उनके संघटक भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे— बारूद, कुहासा आदि।
♦ मिश्र धातुएँ धातुओं के समांगी मिश्रण होते हैं जिन्हें भौतिक क्रिया द्वारा अवयवों में पृथक नहीं किया जा सकता है लेकिन फिर भी मिश्र धातुओं को मिश्रण माना जाता है क्योंकि ये अपने घटकों के गुणों को दर्शाते हैं और पृथक्-पृथक् संघटन रखते हैं। उदाहरण के लिए पीतल, जिंक (लगभग 30%) और कॉपर (लगभग 70%) का मिश्रण है।
विलयन
♦ विलयन दो या दो से अधिक पदार्थों का समांगी मिश्रण होता है। नींबू जल, सोडा जल आदि विलयन के उदाहरण हैं।
♦ प्राय: विलयन को ऐसे तरल पदार्थ माना जाता है, जिसमें ठोस, द्रव या गैस मिले हों लेकिन प्रकृति में ठोस विलयन (मिश्र धातु) और गैसीय विलयन (वायु) भी होते हैं।
♦ एक विलयन के कणों में समांगिकता होती है। उदाहरण के लिए नींबू जल का स्वाद सदैव समान रहता है। यह दर्शाता है कि इस विलयन में चीनी और नमक के कण समान रूप से वितरित होते हैं।
♦ किसी विलयन को दो भागों विलायक और विलेय में विभाजित किया जाता है।
♦ विलयन का वह घटक जो दूसरे घटक को विलयन में मिलाता है, उसे विलायक कहते हैं।
♦ विलयन का वह घटक जो कि विलायक में घुला रहता है, विलेय कहलाता है।
♦ चीनी और जल के विलयन में चीनी विलेय और जल विलायक है।
विलयन के गुण
♦ विलयन समांगी मिश्रण होता है।
♦ विलयन के कण व्यास में 1 नैनोमी (1 nm) से भी छोटे होते हैं। इसलिए वे आँख से नहीं देखें जा सकते हैं।
♦ अपने छोटे आकार के कारण विलयन के कण, गुजर रही प्रकाश की किरण को फैलाते नहीं हैं। इसलिए विलयन में प्रकाश का मार्ग दिखाई नहीं देता।
♦ छानने की विधि द्वारा विलेय के कणों को विलयन में से पृथक् नहीं किया जा सकता हैं। विलयन को शान्त छोड़ देने पर भी विलेय के कण नीचे नहीं बैठते हैं, अर्थात् विलयन स्थायी है।
विलयन की सान्द्रता
♦ निश्चित तापमान पर पृथक्-पृथक् पदार्थों की विलयन क्षमता भिन्न होती हैं।
♦ विलयन में मौजूद विलेय पदार्थ की मात्रा के आधार पर इसे तनु, सान्द्र या संतृप्त घोल कहा जाता है। तनु और सान्द्र तुलनात्मक शब्द हैं।
♦ दिए गए निश्चित तापमान पर यदि विलयन में विलेय पदार्थ नहीं घुलता है तो उसे संतृप्त विलयन कहते हैं। विलेय पदार्थ की वह मात्रा, जो इस ताप पर संतृप्त विलयन में उपस्थित है, उसकी घुलनशीलता कहलाती है।
♦ यदि एक विलयन में विलेय पदार्थ की मात्रा संतृप्तता से कम है तो इसे असंतृप्त विलयन कहा जाता है।
♦ यदि विलयन में विलेय पदार्थ की सान्द्रता संतृप्त स्तर से कम हो तो उसे अतिसंतृप्त विलयन कहते हैं।
♦ विलायक की मात्रा (द्रव्यमान अथवा आयतन) में घुले हुए विलेय पदार्थ की मात्रा को अथवा विलेय पदार्थ की मात्रा जो विलयन की किसी दी गई मात्रा अथवा आयतन में उपस्थित हो, उसे विलयन की सान्द्रता कहते हैं।
♦ विलयन की सान्द्रता = विलेय की मात्रा / विलयन की मात्रा या विलेय की मात्रा / विलायक की मात्रा
निलम्बन
♦ निलम्बन एक विषमांगी मिश्रण है, जिसमें विलेय पदार्थ के कण घुलते नहीं हैं बल्कि माध्यम की समष्टि में निलम्बित रहते हैं।
♦ निलम्बन के निलम्बित कण आँखों से देखे जा सकते हैं।
♦ ये निलम्बित कण प्रकाश की किरण को फैला देते हैं, जिससे उसका मार्ग दृष्टिगोचर हो जाता है।
♦ जब इसे शान्त छोड़ देते हैं तब ये कण नीचे की ओर बैठ जाते हैं अर्थात् निलम्बन अस्थायी होता है। छानन विधि द्वारा इन कणों को मिश्रण से पृथक् किया जा सकता है।
कोलॉइड विलयन
♦ कोलॉइड के कण विलयन में समान रूप से फैले होते हैं। निलम्बन की अपेक्षा कणों का आकार छोटा होने के कारण यह मिश्रण समांगी प्रतीत होता है लेकिन वास्तविकता में विलयन विषमांगी मिश्रण है, जैसे- दूध।
♦ कोलॉइड कणों के छोटे आकार के कारण हम इसे आँख से नहीं देख पाते हैं लेकिन ये कण प्रकाश की किरण को आसानी से फैला देते हैं।
♦ विलयन में प्रकाश के कण का फैलना टिण्डल प्रभाव कहा जाता है। टिण्डल नामक वैज्ञानिक ने इसकी खोज की थी।
♦ एक कमरे में छोटे छिद्र के द्वारा जब प्रकाश की किरणें आती है तब वहाँ पर टिण्डल प्रभाव को देखा जा सकता है। यह कमरे में मौजूद धूल और कार्बन के कणों के द्वारा प्रकाश के फैलने के कारण होता हैं।
♦ कोलॉइड विलयन परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम से बनता है। विलेय पदार्थ की तरह का घटक या परिक्षिप्त कण जो कि कोलॉइड रूप में रहता है उसे परिक्षिप्त प्रावस्था (dispersed phase) कहते हैं तथा वह घटक जिसमें परिक्षिप्त प्रावस्था निलम्बित रहता है, उसे परिक्षेपण माध्यम (dispersing medium) कहते हैं। कोलॉइड को परिक्षेपण माध्यम (ठोस, द्रव या गैस) की अवस्था और परिक्षिप्त प्रावस्था के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है।
कोलॉइड के गुणधर्म
♦ यह एक विषमांगी मिश्रण होता है।
♦ कोलॉइड के कणों का आकार इतना छोटा होता है कि ये पृथक् रूप में आँखों से नहीं देखे जा सकते हैं।
♦ ये इतने बड़े होते है कि प्रकाश की किरण को फैलाते हैं तथा उसके मार्ग को दृश्य बनाते हैं।
♦ जब इनको शान्त छोड़ दिया जाता है तब ये कण तल पर बैठते हैं अर्थात् ये स्थायी होते हैं।
♦ ये छानन विधि द्वारा मिश्रण से पृथक् नहीं किए जा सकते। किन्तु एक विशेष विधि अपकेन्द्रीकरण तकनीक द्वारा पृथक् किए जा सकते हैं।
मिश्रण के घटकों का पृथक्करण
♦ विषमांगी मिश्रण को साधारण भौतिक क्रिया द्वारा पृथक् किया जा सकता है, जैसे—हाथ से चुनकर, छन्नी से छानकर, प्रतिदिन व्यवहार में लाते हैं। कभी-कभी मिश्रण से घटकों को पृथक् करने के लिए विशेष तकनीकों को प्रयोग में लाया जाता है। वाष्पीकरण स्याही जल में रंग के मिश्रण में से विलायक से विलेय पदार्थ को वाष्पीकरण की विधि से अलग किया जाता है।
पृथक्करण–दो अघुलनशील द्रवों के मिश्रण को अलग करने के लिए इस विधि का उपयोग किया जाता है। इसका सिद्धान्त यह है कि दो अघुलनशील द्रव अपने घनत्व के अनुसार विभिन्न परतों में पृथक् हो जाते हैं, उसके बाद उन्हें अलग कर लिया जाता है। जैसे— पानी और तेल के मिश्रण को अलग करना।
अपकेन्द्रन विधि–दूध से क्रीम को अलग करने के लिए अपकेन्द्रन विधि का सहारा लिया जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार, जब दूध को तेजी से घुमाया जाता है, तब भारी कण नीचे बैठ जाते हैं और हल्के कण ऊपर ही रह जाते हैं। जाँच प्रयोगशाला में रक्त और मूत्र के जाँच में, डेयरी एवं घर में क्रीम से मक्खन निकालने की प्रक्रिया में तथा पड़े धोने की मशीन में भीगे हुए कपड़ों से जल निचोड़ने में इस विधि का प्रयोग किया जाता है। ऊर्ध्वपातन विधि इस विधि द्वारा दो ऐसे ठोसों के मिश्रण को अलग किया जाता है, जिसमें एक ठोस ऊर्ध्वपातित हो, दूसरा नहीं। अमोनियम क्लोराइड, कपूर आदि को अलग करने के लिए इस विधि का सहारा लिया जाता है।
आसवन–दो घुलनशील द्रवों को आसवन विधि से अलग किया जाता है। जब दो द्रवों के क्वथनांकों में अन्तर अधिक होता है, तो उसके मिश्रण को आसवन विधि से पृथक किया जाता है। इसमें मिश्रण का एक अवयव वाष्पीकृत हो जाता है तथा दूसरा अवयव संघनित होकर पृथक रूप में प्राप्त होता है।
प्रभाजी आसवन–दो या दो से अधिक घुलनशील द्रवों, जिनके क्वथनांक का अन्तर 25 केल्विन से कम होता है, के मिश्रण को पृथक् करने के लिए प्रभाजी आसवन विधि का प्रयोग किया जाता है। जैसे—वायु से विभिन्न विभिन्न गैसों का पृथक्करण तथा पेट्रोलियम उत्पादों से उनके विभिन्न घटकों का पृथक्करण ।
रवाकरण–इसे क्रिस्टलीकरण भी कहा जाता है। इस विधि का प्रयोग अकार्बनिक ठोस पदार्थों को शुद्ध करने के लिए किया जाता है। है। इस विधि में अशुद्ध ठोस मिश्रण को उचित विलायक के साथ मिलाकर गर्म किया जाता है तथा गर्म अवस्था में ही कीप द्वारा छान लिया जाता है। छानने के बाद विलयन को कम ताप पर धीरे-धीरे ठण्डा किया जाता है। ठण्डा होने पर शुद्ध पदार्थ क्रिस्टल के रूप में विलयन से पृथक् हो जाता है। जैसे – समुद्री जल से नमक प्राप्त करने तथा अशुद्ध नमूने से फिटकरी को पृथक् करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है।
क्रोमैटोग्राफी–यह विधि इस तथ्य पर आधारित है कि किसी मिश्रण के विभिन्न घटकों की अवशोषण क्षमता भिन्न भिन्न होती है तथा वे किसी अवशोषक पदार्थ में विभिन्न दूरियों पर अवशोषित होते हैं, इस प्रकार वे पृथक् कर लिए जाते हैं। जैसे— डाई के दो या दो से अधिक रंगों को पृथक् करने के लिए इस विधि का प्रयोग होता है। ग्रीक में क्रोमा (Kroma) का अर्थ रंग होता है। इस विधि को सबसे पहले रंगों को पृथक् करने में प्रयोग किया गया था इसलिए इसका नाम क्रोमैटोग्राफी पड़ा।
भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन
♦ ऐसे गुण जिनका हम अवलोकन एवं वर्णन कर सकते हैं, जैसे कि रंग, कठोरता, दृढ़ता, बहाव, घनत्व, द्रवणांक तथा क्वथनांक इत्यादि को भौतिक गुण कहा जाता है ।
♦ अवस्थाओं का अन्तः रूपान्तरण एक भौतिक परिवर्तन है क्योंकि ये परिवर्तन पदार्थों के संघटन में बिना परिवर्तन किए होते हैं और उनकी रासायनिक प्रकृति में भी कोई परिवर्तन नहीं होता है। यद्यपि बर्फ, जल और वाष्प अलग-अलग दिखते हैं और ये भिन्न-भिन्न भौतिक गुणों को दर्शाते हैं लेकिन ये रासायनिक रूप से समान होते हैं।
♦ जल तथा खाना पकाने वाले तेल दोनों द्रव हैं, लेकिन इनके रासायनिक गुणधर्म भिन्न हैं। इनकी गन्ध और ज्वलनशीलता में अन्तर है। हम जानते हैं कि तेल हवा में जलता है, जबकि जल आग को बुझाता है। तेल का यह रासायनिक गुण जल से इसे अलग करता है। जलना एक रासायनिक परिवर्तन है। जलने की प्रक्रिया में एक पदार्थ दूसरे से क्रिया करके अपने रासायनिक संघटन में परिवर्तन लाता है। रासायनिक परिवर्तन पदार्थ के रासायनिक गुणधर्मों में परिवर्तन लाता है तथा हम नया पदार्थ पाते हैं।
♦ रासायनिक परिवर्तन को रासायनिक अभिक्रिया भी कहा जाता है।
♦ मोमबत्ती के जलने की प्रक्रिया में भौतिक एवं रासायनिक दोनों परिवर्तन होते हैं। इसमें जलने की क्रिया रासायनिक परिवर्तन का और मोम का गलकर ठोस रूप में बदलना भौतिक परिवर्तन है।
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