कार्यशाला से जीवंत हो रही परंपरा
शास्त्रीय नृत्य की गरिमा को जिले में पुनर्जीवित करने के लिए तीन दिवसीय का शुरू हुआ आयोजन सहरसा . जिले में शास्त्रीय नृत्य की गरिमा को पुनर्जीवित करने का सुनहरा अवसर देते नृत्यारंभ व संस्कार भारती के तहत तीन दिवसीय कथक नृत्य ग्रीष्मकालीन कार्यशाला का भव्य आगाज किया गया. इस मौके पर प्रो डॉ रेणु सिंह, साहित्यकार मुक्तेश्वर सिंह, कवि अरविंद कुमार मिश्र, नाट्य निर्देशक कुंदन वर्मा, संगीतज्ञ प्रो मोहन कुमार ठाकुर व पूर्व प्राचार्य संजय कुमार झा ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत की. शुभारंभ सत्र में अतिथियों ने शास्त्रीय नृत्य की निरंतर प्रासंगिकता व इसके सांस्कृतिक महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला. उनके प्रेरक विचारों के बाद संस्थान के कला अभ्यासी ने गुरु वंदना की भावपूर्ण प्रस्तुति देकर मंच को साधना की पवित्रता से अभिमंत्रित कर दिया. कार्यशाला का संचालन कर रहे रोहित झा कत्थक ने बताया कि प्रतिभागियों को राष्ट्रीय कत्थक केंद्र नई दिल्ली के पूर्व छात्र व दूरदर्शन दिल्ली के बी ग्रेड आर्टिस्ट अनुराग कुमार प्रशिक्षण दे रहे हैं. प्रथम दिवस की कक्षाओं में तीन ताल की तत्कार, हस्तक एवं चक्कर की बारीकियों को सिखाया गया. जिसमें नृत्य की लयात्मकता व सौंदर्य की गहन व्याख्या की गयी. यह कार्यशाला केवल नृत्याभ्यास का अवसर नहीं है. बल्कि युवाओं के लिए अपनी सांस्कृतिक जड़ों को सहेजने एवं आत्म-अन्वेषण की यात्रा का माध्यम भी बन रही है. प्रतिभागियों में गहरी उत्सुकता एवं समर्पण देखने को मिला. जो जिले के सांस्कृतिक भविष्य के प्रति आशा का संचार करता है. आयोजकों के अनुसार, तीन दिनों तक चलने वाली यह कार्यशाला नृत्य की तकनीकी बारिकियों के साथ इसकी आत्मा से भी प्रतिभागियों को जोड़ने का प्रयास करेगी. कार्यशाला की सफलता से निश्चय ही जिले में सांस्कृतिक चेतना की एक नयी लहर उत्पन्न होगी.
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