कार्बन एवं उसके यौगिक Carbon and Its Compounds

कार्बन एवं उसके यौगिक   Carbon and Its Compounds

 

कार्बन एवं इसमें सहसंयोजी आबन्ध
♦ भोजन, कपड़े, दवाओं, पुस्तकों, आदि वस्तुओं के साथ-साथ सभी सजीव संरचनाएँ कार्बन पर आधारित होती हैं।
♦ भूपर्पटी तथा वायुण्डल में अत्यन्त अल्प मात्रा में कार्बन उपस्थित है।
♦ भूपर्पटी में खनिजों (जैसे— कार्बोनेट, हाइड्रोजन कार्बोनेट, कोयला एवं पेट्रोलियम) के रूप में केवल 0.02% कार्बन उपस्थित है तथा वायुमण्डल में 0.03% कार्बन डाइऑक्साइड उपस्थित है। प्रकृति में इतनी अल्प मात्रा में कार्बन उपस्थित होने के बावजूद कार्बन का अत्यधिक महत्त्व है।
♦ कार्बन की परमाणु संख्या 6 है अर्थात् इसके सबसे बाहरी कोश में चार इलेक्ट्रॉन होते हैं तथा उत्कृष्ट गैस विन्यास को प्राप्त करने के लिए इसको चार इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने या खोने की आवश्यकता होती है। यदि इन्हें इलेक्ट्रॉनों को प्राप्त करना या खोना हो तो
(i) ये चार इलेक्ट्रॉन प्राप्त कर C4 ऋणायन बना सकता है। लेकिन छ: प्रोटॉन वाले नाभिक के लिए दस इलेक्ट्रॉन, अर्थात् चार अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन धारण करना मुश्किल हो सकता है।
(ii) ये चार इलेक्ट्रॉन खो कर C4+  धनायन बना सकता है। लेकिन चार इलेक्ट्रॉनों को खो कर छः प्रोटॉन वाले नाभिक में केवल दो इलेक्ट्रॉनों का कार्बन धनायन बनाने के लिए अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी।
♦ कार्बन अपने अन्य परमाणुओं अथवा अन्य तत्त्वों के परमाणुओं के साथ संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी करके इस समस्या को सुलझा लेता है। केवल कार्बन ही नहीं बल्कि अनेक अन्य तत्त्व भी इसी प्रकार इलेक्ट्रॉन की साझेदारी करके अणुओं का निर्माण करते हैं। जिन इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी की जाती है वे दोनों परमाणुओं के बाहरी कोश के ही होते हैं तथा इनके फलस्वरूप दोनों ही परमाणु उत्कृष्ट गैस विन्यास की स्थिति को प्राप्त करते हैं।
♦ दो परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रॉन के एक युग्म की साझेदारी के द्वारा बनने वाले आबन्ध सहसंयोजी आबन्ध कहलाते हैं। सहसंयोजी आबन्ध वाले अणुओं में भीतर तो प्रबल आबन्ध होता है, लेकिन इनका अन्तराअणुक बल कम होता है। फलस्वरूप इन यौगिकों के क्वथनांक एवं गलनांक कम होते हैं। चूँकि परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी होती है और आवेशित कण बनते हैं सामान्यतः ऐसे सहसंयोजी यौगिक विद्युत के कुचालक होते हैं। कार्बन के परमाणु भी सहसंयोजक आबन्ध बनाते हैं। इसलिए इसके यौगिक विद्युत के कुचालक होते हैं तथा उनका क्वथनांक एवं गलनांक कम होता है।
♦ अधिकतर अन्य तत्त्वों के साथ कार्बन द्वारा बनाए गए आबन्ध अत्यन्त प्रबल होते हैं जिनके फलस्वरूप ये यौगिक अतिशय रूप में स्थायी होते हैं। कार्बन द्वारा प्रबल आबन्धों के निर्माण का एक कारण इसका छोटा आकार भी है। इसके कारण इलेक्ट्रॉन के सहभागी युग्मों को नाभिक मजबूती से पकड़े रहता है। बड़े परमाणुओं वाले तत्त्वों से बने आबन्ध तुलना में अत्यन्त दुर्बल होते हैं।
♦ कार्बन परमाणुओं के बीच केवल एक आबन्ध से जुड़े कार्बन के यौगिक संतृप्त यौगिक कहलाते हैं।
♦ द्वि-अथवा त्रि-आबन्ध वाले कार्बन के यौगिक असंतृप्त यौगिक कहलाते हैं।
कार्बन के अपररूप
♦ प्रकृति में कार्बन तत्त्व अनेक विभिन्न भौतिक गुणों के साथ विविध रूपों में पाया जाता है। हीरा एवं ग्रेफाइट दोनों ही कार्बन के परमाणुओं से बने हैं, कार्बन के परमाणुओं के परस्पर आबन्धन के तरीकों के आधार पर ही इनमें अन्तर होता है। हीरे में कार्बन का प्रत्येक परमाणु कार्बन के चार अन्य परमाणुओं के साथ आबन्धित होता है जिससे एक दृढ़ त्रिआयामी संरचना बनती है। ग्रेफाइट में कार्बन के प्रत्येक परमाणु का आबन्धन कार्बन के तीन अन्य परमाणुओं के साथ एक ही तल पर होता है जिससे षट्कोणीय व्यूह मिलता है। इनमें से एक आबन्ध द्विआबन्धी होता है जिसके कारण कार्बन की संयोजकता पूर्ण होती है। ग्रेफाइट की संरचना में षट्कोणीय तल एक-दूसरे के ऊपर व्यवस्थित होते हैं।
♦ विभिन संरचनाओं के कारण हीरे एवं ग्रेफाइट के भौतिक गुणधर्म अत्यन्त भिन्न होते हैं, जबकि उनके रासायनिक गुणधर्म एक समान होते हैं।
♦ हीरा अब तक का ज्ञात सर्वाधिक कठोर पदार्थ है, जबकि ग्रेफाइट चिकना तथा फिसलनशील होता है। ग्रेफाइट अधातु होते हुए भी विद्युत का सुचालक होता है।
♦ शुद्ध कार्बन को अत्यधिक उच्च दाब एवं ताप पर उपचारित (Subjecting) करके हीरे को संश्लेषित किया जा सकता है। ये संश्लिष्ट हीरे आकार में छोटे होते हैं, लेकिन अन्यथा ये प्राकृतिक हीरों से अभेदनीय होते हैं।
♦ फुलेरीन कार्बन अपररूप का अन्य वर्ग है। सबसे पहले C-60 की पहचान की गई जिसमें कार्बन के परमाणु फुटबॉल के रूप में व्यवस्थित होते हैं।
कार्बन के यौगिक एवं इसकी सर्वतोमुखी प्रकृति
♦ हाल ही में रसायनशास्त्रियों द्वारा सूत्र सहित ज्ञात कार्बन यौगिकों की गणना की गई है जो लगभग तीन मिलियन आँकी गई है। अन्य सभी तत्त्वों के यौगिकों को एक साथ रखने पर भी इनकी संख्या उन सबसे कहीं अधिक है।
♦ कार्बन में पाए जाने वाले दो विशिष्ट लक्षणों, चतुः संयोजकता और शृंखलन से बड़ी संख्या में यौगिकों का निर्माण होता है। अनेक यौगिकों के अकार्बनिक परमाणु अथवा परमाणु के समूह विभिन्न कार्बन शृंखलाओं से जुड़े होते हैं। मूल रूप से इन यौगिकों को प्राकृतिक पदार्थों से प्राप्त किया गया था तथा यह समझा गया था कि ये कार्बन यौगिक अथवा कार्बनिक यौगिक केवल सजीवों में ही निर्मित हो सकते हैं। अर्थात्, यह माना गया कि उनके संश्लेषण के लिए एक ‘जीवन शक्ति आवश्यक थी। सन् 1828 में वोहलर ने अमोनियम सायनेट से यूरिया बनाकर इसे असत्य प्रमाणित किया। लेकिन कार्बन, कार्बोनेट तथा बाईकार्बोनेट लवणों के अतिरिक्त सभी कार्बन यौगिकों का अध्ययन अभी भी कार्बनिक रसायन के अन्तर्गत होता है।
♦ सहसंयोजी बन्ध की प्रकृति के कारण कार्बन में बड़ी संख्या में यौगिक बनाने की क्षमता होती है। कार्बन में दो कारक देखे गए हैं
(i) कार्बन में कार्बन के ही अन्य परमाणुओं के साथ आबन्ध बनाने की अद्वितीय क्षमता होती है जिससे बड़ी संख्या में अणु बनते हैं। इस गुण को शृंखलन (Catenation) कहते हैं। इन यौगिकों में कार्बन की लम्बी श्रृंखला, कार्बन की विभिन्न शाखाओं वाली शृंखला अथवा वलय में व्यवस्थित कार्बन भी पाए जाते हैं। साथ ही, कार्बन के परमाणु एक, द्वि-अथवा त्रि-आबन्ध से जुड़े हो सकते हैं। कार्बन यौगिकों में जिस सीमा तक शृंखलन का गुण पाया जाता है वह किसी और तत्त्व में नहीं मिलता। सिलिकॉन हाइड्रोजन के साथ यौगिक बनाते हैं जिनमें सात या आठ परमाणुओं तक की श्रृंखला हो सकती है, लेकिन यह यौगिक अति अभिक्रियाशील होते हैं। कार्बन कार्बन-आबन्ध अत्यधिक प्रबल होता है, अतः यह स्थायी होता है। फलस्वरूप अनेक कार्बन परमाणुओं के साथ आपस में जुड़े हुए अनेक यौगिक प्राप्त होते हैं।
(ii) चूँकि कार्बन की संयोजकता चार होती है, अत: इसमें कार्बन के चार अन्य परमाणुओं अथवा कुछ अन्य एक संयोजक तत्त्वों के परमाणुओं के साथ आबन्धन की क्षमता होती है। ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, सल्फर, क्लोरीन तथा अनेक अन्य तत्त्वों के साथ कार्बन के यौगिक बनते हैं, फलस्वरूप ऐसे विशेष गुण वाले यौगिक बनते हैं जो अणु में कार्बन के अतिरिक्त उपस्थित तत्त्व पर निर्भर करते हैं।
♦ अभिक्रियाशील समूह किसी कार्बनिक यौगिक में उपस्थित वह समूह जिस पर यौगिक का रासायनिक गुण निर्भर करता है, उस यौगिक का अभिक्रियाशील समूह कहलाता है। इसे प्रकार्यात्मक समूह भी कहते हैं।
♦ समजातीय श्रेणी कार्बन परमाणुओं को आपस में जोड़कर विभिन्न लम्बाई की शृंखलाएँ बनाई जा सकती हैं। साथ ही, इन कार्बन शृंखलाओं में स्थित हाइड्रोजन परमाणुओं को उपरोक्त किसी भी प्रक्रार्यात्मक समूहों से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। एल्कोहॉल जैसे प्रकार्यात्मक समूह की उपस्थिति कार्बन यौगिक के गुणधर्मों को प्रभावित करती है, चाहे कार्बन श्रृंखला की लम्बाई कुछ भी हो । यौगिकों की ऐसी श्रृंखला जिसमें कार्बन शृंखला में स्थित हाइड्रोजन को एक ही प्रकार का प्रकार्यात्मक समूह प्रतिस्थापित करता है, उसे समजातीय श्रेणी कहते हैं।
♦ जब किसी समजातीय श्रेणी में आणविक द्रव्यमान बढ़ता है तो भौतिक गुणधर्मों में क्रमबद्धता दिखाई देती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आणविक द्रव्यमान के बढ़ने के साथ गलनांक एवं क्वथनांक में वृद्धि होती है। किसी विशेष विलायक में विलेयता जैसे भौतिक गुणधर्म भी इसी प्रकार की क्रमबद्धता दर्शाते हैं। किन्तु पूर्ण रूप से प्रकार्यात्मक समूह के द्वारा सुनिश्चित किए जाने वाले रासायनिक गुण समजातीय श्रेणी में एकसमान बने रहते हैं।
♦ कार्बन यौगिकों की नाम पद्धति किसी समजातीय श्रेणी में यौगिकों के नामों का आधार बेसिक कार्बन की उन मूल शृंखलाओं पर आधारित होता है जिनको प्रकार्यात्मक समूह की प्रकृति के अनुसार ‘पूर्वलग्न’ ‘उपसर्ग’ या ‘अनुलग्न’ ‘प्रत्यय’ के द्वारा संशोधित किया गया हो।
♦ निम्न विधि के द्वारा किसी कार्बन यौगिक का नामकरण किया जा सकता है
(i) यौगिक में कार्बन परमाणुओं की संख्या को ज्ञात किया जाता है।
(ii) प्रकार्यात्मक समूह की उपस्थिति में इसको पूर्वलग्न अथवा अनुलग्न के साथ यौगिक के नाम में दर्शाया जाता है।
कार्बन यौगिकों के रासायनिक गुणधर्म
♦ दहन अपने सभी अपरूपों में कार्बन, ऑक्सीजन में दहन करके ऊष्मा एवं प्रकाश के साथ कार्बन डाइऑक्साइड देता है। दहन पर अधिकांश कार्बन यौगिक भी प्रचुर मात्रा में ऊष्मा एवं प्रकाश को मुक्त करते हैं।
♦ ऑक्सीकरण दहन करने पर कार्बन यौगिकों को सरलता से ऑक्सीकृत किया जा सकता है। इस पूर्ण ऑक्सीकरण के अतिरिक्त ऐसी अभिक्रियाएँ भी होती हैं जिनमें ऐल्कोहॉल को कार्बोक्सिलिक अम्ल में बदला जाता है।
♦ संकलन अभिक्रिया पैलेडियम अथवा निकिल जैसे उत्प्रेरकों की उपस्थिति में असंतृप्त हाइड्रोकार्बन हाइड्रोजन जोड़कर संतृप्त हाइड्रोकार्बन देते हैं। उत्प्रेरक वे पदार्थ होते हैं जिनके कारण अभिक्रिया भिन्न दर से आगे बढ़ती है जो अभिक्रिया को प्रभावित नहीं करते हैं निकिल उत्प्रेरक का उपयोग करके साधारणतः वनस्पति तेलों के हाड्रोजनीकरण में इस अभिक्रिया का उपयोग होता है। वनस्पति तेलों में साधारणतः लम्बी असंतृप्त कार्बन शृंखलाएँ होती हैं जबकि जन्तु वसा में संतृप्त कार्बन शृंखलाएँ होती हैं।
♦ प्रतिस्थापन अभिक्रिया संतृप्त हाइड्रोकार्बन अत्यधिक अनभिक्रित होते हैं तथा अधिकांश अभिकर्मकों की उपस्थिति में अक्रिय होते हैं। हालाँकि, सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अति तीव्र अभिक्रिया में क्लोरीन का हाइड्रोकार्बन में संकलन होता है। क्लोरीन एक-एक करके हाइड्रोजन के परमाणुओं का प्रतिस्थापन करती है। इसको प्रतिस्थापन अभिक्रिया कहते हैं, क्योंकि एक प्रकार का परमाणु अथवा परमाणुओं के समूह दूसरे का स्थान लेते हैं।
कोयले तथा पेट्रोलियम का निर्माण
कोयले तथा पेट्रोलियम का निर्माण जैवमात्रा से हुआ है जो विभिन्न जैविकीय तथा भू वैज्ञानिक प्रक्रियाओं पर निर्भर करते हैं। कोयला लाखों वर्ष पुराने वृक्षों, फर्न तथा अन्य पौधे का अवशेष है। सम्भवतः भूकम्प अथवा ज्वालामुखी फटने के कारण ये धरती में चट्टानों की परतों के नीचे दब गए थे तथा धीरे-धीरे क्षय होकर ये कोयला बन गए। तेल तथा गैस लाखों वर्ष पुराने छोटे समुद्री पौधों तथा जीवों के अवशेष हैं। उनके मृत होने पर उनके शरीर समुद्र तल में डूब गए तथा गाद से ढक गए। उन मृत अवशेषों पर बैक्टीरिया के आक्रमण से प्रबल दाब के कारण तेल तथा गैस का निर्माण हुआ। इसी बीच गाद धीरे-धीरे दबकर चट्टान बन गया। चट्टान के छिद्रित भागों से तेल तथा गैस का रिसाव हुआ और ये पानी में स्पंज की तरह फँस गए। कोयले और पेट्रोलियम का निर्माण जैव पदार्थों से हुआ है, इसलिए इन्हें जीवाश्म ईंधन कहा जाता है।
कुछ महत्त्वपूर्ण कार्बन यौगिक एथेनॉल तथा एथेनॉइक अम्ल
♦ एथेनॉल के गुणधर्म एथेनॉल कक्ष के ताप पर द्रव अवस्था में होता है। सामान्यतः एथेनॉल को एल्कोहॉल कहा जाता है तथा यह सभी एल्कोहॉली पेय पदार्थों का महत्त्वपूर्ण अवयव होता है। इसके अतिरिक्त यह एक अच्छा विलायक है इसलिए इसका उपयोग टिंचर आयोडीन, कफ सीरप, टॉनिक आदि जैसी औषधियों में होता है। एथेनॉल को किसी भी अनुपात में जल में मिलाया जा सकता है। तनु एथेनॉल की थोड़ी सी मात्रा लेने पर नशा आ जाता है।
♦ एल्कोहॉल सोडियम से अभिक्रिया कर हाइड्रोजन गैस उत्सर्जित करता है। एथेनॉल के साथ अभिक्रिया में दूसरा उत्पाद सोडियम एथॉक्साइड बनता है।
♦ 443K तापमान पर एथेनॉल को अधिक्य सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म करने पर एथेनॉल का निर्जलीकरण होकर एथीन बनता है।
♦ ईंधन के रूप में एल्कोहॉल गन्ना सूर्य के प्रकाश को रासायनिक ऊर्जा में बदलने में सर्वाधिक सक्षम होता है। गन्ने का रस मोलेसस (सिरा) बनाने के उपयोग में लाया जाता है जिसका किण्वन करके एल्कोहॉल (एथेनॉल) तैयार किया जाता है। कुछ देशों में एल्कोहॉल में पेट्रोल मिलाकर उसे स्वच्छ ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यह ईंधन पर्याप्त ऑक्सीजन होने पर केवल कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल उत्पन्न करता है।
♦ एथेनॉइक अम्ल के गुणधर्म एथेनॉइक अम्ल को सामान्यतः ऐसीटिक अम्ल कहा जाता है तथा यह कार्बोक्सिलिक अम्ल समूह से सम्बन्धित है। ऐसीटिक अम्ल के 3-4% विलयन को सिरका कहा जाता है इसे अचार में परिरक्षक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। शुद्ध एथेनॉइक अम्ल का गलनांक 290K होता है और इसलिए ठण्डी जलवायु में शीत के दिनों में यह जम जाता है। इस कारण इसे ग्लैशल ऐसीटिक अम्ल कहते हैं। कार्बोक्सिलिक अम्ल कहा जाने वाला कार्बनिक यौगिकों के समूह का अभिलक्षण इसकी विशिष्ट अम्लीयता होती है।
♦ एथेनॉइक अम्ल की अभिक्रियाएँ
(i) एस्टरीकरण अभिक्रिया एस्टर मुख्य रूप से अम्ल एवं ऐल्कोहॉल की अभिक्रिया से निर्मित होते हैं। एथेनॉइक अम्ल किसी अम्ल उत्प्रेरक की उपस्थिति में परिशुद्ध एथेनॉल से अभिक्रिया करके एस्टर बनाते हैं। एस्टर की गन्ध मृदु होती है। इसका उपयोग इत्र बनाने एवं स्वाद उत्पन्न करने वाले कारक के रूप में किया जाता है। एस्टर अम्ल या क्षारक की उपस्थिति में अभिक्रिया करके पुनः एल्कोहॉल एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल बनाता है। इस अभिक्रिया को साबुनीकरण कहा जाता है क्योंकि इससे साबुन तैयार किया जाता है।
(ii) क्षारक के साथ अभिक्रिया खनिज अम्ल की भाँति एथेनॉइक अम्ल सोडियम हाइड्रोक्सॉइड जैसे क्षारक से अभिक्रिया करके लवण (सोडियम एथेनोएट या सोडियम ऐसीटेट) तथा जल बनाता है।
(iii) कार्बोनेट एवं हाइड्रोजनकार्बोनेट के साथ अभिक्रिया एथेनॉइक अम्ल कार्बोनेट एवं हाइड्रोजनकार्बोनेट के साथ अभिक्रिया करके लवण, कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल बनाता है। इस अभिक्रिया में उत्पन्न लवण को सोडियम एसीटेट कहते हैं।
साबुन और अपमार्जक
♦ साबुन के अणु लम्बी श्रृंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्लों (उच्च वसा अम्लों) के सोडियम एवं पोटैशियम लवण होते हैं।
♦ वनस्पति तेलों या वसाओं का क्षार द्वारा जल अपघटन करके साबुन बनाया जाता है।
♦ वनस्पति तेल और वसा ग्लिसरॉल के ट्राइ-एस्टर होते हैं।
♦ साबुन का आयनिक भाग जल में घुल जाता है जबकि कार्बन शृंखला तेल में घुल जाती है। इस प्रकार साबुन के अणु मिसेली संरचना तैयार करते हैं, जहाँ अणु का एक सिरा तेल कण की ओर तथा आयनिक सिरा बाहर की ओर होता है। इससे पानी में जलरागी सिरा इमल्शन बनता है। इस प्रकार साबुन का मिसेल मैल को पान में घुलाने में मदद करता है और हमारे कपड़े साफ हो जाते हैं।
♦ साबुन द्वारा कपड़ों की धुलाई में अधिक परिश्रम करना पड़ता है तथा कठोर जल के साथ यह कठिनाई और अधिक हो जाती है: इस कठिनाई को दूर करने के लिए जिस पदार्थ का प्रयोग किया जाता है, उसे अपमार्जक (Deterger t) या साबुनरहित साबुन कहते हैं।
♦ अपमार्जक कठोर जल के साथ भी खूब झाग देता है।
♦ वाशिंग पाउडर में 15 से 30 प्रतिशत अपमार्जक रहता है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *