कारगिल – एक अघोषित युद्ध

कारगिल – एक अघोषित युद्ध

मुझे तोड़ लेना वन माली,
उस पथ में देना तुम फैक। 
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, 
जिस पथ पर जावें वीर अनेक ।
          प्रस्तावना – परिवर्तन ही जीवन का क्रम है, उत्थान-पतन सोपानों पर आरूढ़ होता हुआ आगे बढ़ता रहता है । सृष्टि के आदि से मानव की शांत व आक्रमणकारी प्रवृत्ति रही है। यदा-कदा दूसरे के साम्राज्य को हड़प लेने की लालसा भी मानव हृदय में हिलोरे लेती ही रहती है। यही एक ऊर्मि पाकिस्तान के हृदय में उठ खड़ी हुई, जिस प्रकार समुद्र की एक तरंग अपने साथ असंख्य सीप, पत्थर किनारे पर छोड़ जाती है, उसी प्रकार पाकिस्तानी तरंग ने शांति अवसर का लाभ उठाकर उस समय जबकि कारगिल की पहाड़ियों पर बर्फ जमी हुई थी, अपने घुसपैठियों तथा सेना के नौजवानों को घुसपैठियों की संज्ञा देकर भारतीय नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण करवाकर भारतीय सीमा में गुप्त रूप से प्रवेश कराना प्रारम्भ कर दिया। शनैः शनैः अपनी रसद, अपना असलाह एकत्र कर युद्ध मोर्चों के लिए बंकर बनाने लगे और इन्हीं ऊँचे-ऊँचे शिखरों पर पैर फैलाने प्रारम्भ कर दिए । स्थान-स्थान पर अपनी चौकियाँ स्थापित कर ली तथा उन स्थानों पर अपना आधिपत्य दर्शाने लगे ।
          भारतीय सेना को जब यह ज्ञात हुआ, तब उसका रक्त खौलने लगा, अस्त्र-शस्त्र उसके हाथ फड़कने लगे,उसकी भावनाएँ मातृभूमि की रक्षा के लिए शत्रुओं पर अग्नि वर्षा कर उन्हें राख में मिला देने के लिए बेचैन हो उठीं ।
          धन्य है वह वीर माँ,जो ऐसे सपूतों को जन्म देती है, जिनका उद्देश्य केवल यही होता है –
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।’
          आज एक नहीं असंख्य वीर इस भारत माता की रक्षा के लिए उमड़े पड़ रहे हैं। प्राणों को हथेली पर रखे हुए शत्रुओं को नाकों चने चबवा रहे हैं, उनको ईंट का उत्तर पत्थर से देने के लिए तत्पर हैं । यह युक्ति उचित ही है,“शठे शाठ्यम् समाचरेत् ।” काँटे को काँटे से ही निकाला जा सकता है। भारतीय वीर सैनिक मनसा, वाचा, कर्मण | अपना तन, मन, धन सब कुछ समर्पण करने के लिए मातृभूमि पर प्राणोत्सर्ग के लिए तत्पर हैं ।
          पाक का पूर्व नियोजित षड्यंत्र – जिस समय पहाड़ों पर बर्फ पड़ती है, उस समय भारतीय सैनिक नीचे आ जाते हैं और पाक सेना जानती थी कि भारतीय सेना मई माह में चोटियों पर लौटती है, इसी का लाभ उठाकर कपट नीति से पाक सेना व कश्मीरी घुसपैठियों ने भारतीय सेना के कई बंकरों पर कब्जांकर लिया, शनैः शनैः उन्होंने अपने भी मोर्चे तैयार कर लिए थे । २६ मई से शनैः शनैः और आक्रमण बढ़ने लगे । हमारी सेना के समक्ष सबसे कठिन समस्या यह थी कि शत्रु उनसे बहुत ऊँची चोटियों पर बैठे थे। पाकिस्तान के पास जो कश्मीर का हिस्सा है, वह ऊँचाई पर है, इससे पूर्व विश्व सैनिक इतिहास में ऐसा कोई युद्ध नहीं हुआ जो बर्फ की इतनी ऊँची, दुर्गम बर्फीली पहाड़ियों पर लड़ा गया हो । शत्रु आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्रों से युक्त हों । नीचे पहाड़ियों से घुसपैठियों को समाप्त करना सरल नहीं था, इसी कारण शनैः शनैः भारतीय सेना के कदम आगे बढ़ रहे थे, परन्तु इसी कारण हमारे कितने ही नौजवान रणबांकुरे युद्ध क्षेत्र में शहीद हो गये, पर बलिदान व्यर्थ नहीं जाता। आश्चर्य की बात यह रही कि पाँच महीने पहले पाकिस्तानी घुसपैठियों ने हमारी सीमा में प्रवेश कर लिया था और हमें उसका आभास नहीं हो पाया ।
          यह पहला अवसर है कि जब पाक सैनिकों ने घुसपैठियों के साथ कश्मीर सीमा पर युद्ध किया हो, वैसे करता ही रहता है । यह उसकी आदत बन गयी है, पूर्व ले० जे० वी० एम० कौल ने कहा है, “कभी-कभी पाकिस्तान में अचानक उन्माद आता है, जिसके चलते वह भारत से टकराने की बेवकूफी कर बैठता है।” इससे स्पष्ट है कि पाक छल-छद्म नीति में आगे बढ़ता रहा है। कश्मीर की नियन्त्रण रेखा का अतिक्रमण उसने क्यों किया इसके पीछे पाकिस्तानी खुफिया एजेन्सी इण्टर सर्विसेज ! इण्टेलीजेन्स है। अपनी कुटिल नीति से ही उसने कुछ स्थानों को प्राप्त किया है। परन्तु भारतीय सेना तब तक चैन की साँस नहीं लेगी जब तक एक भी चिन्ह कपटी पाक का भारत की भूमि पर रहेगा।
          यह अविश्वसनीय आश्चर्य है कि यह लड़ाई उस समय प्रारम्भ हुई, जब दिल्ली-लाहौर बस सेवा के अवसर पर मित्रता से हाथ मिलाए जा रहे थे। अचानक पाकिस्तान ने पीठ पर छुरा घोंप दिया। भारत शक्तिशाली है। भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्पष्ट कहा कि “पाकिस्तान को यह समझ लेना चाहिए कि अगर हम दोस्ती के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो हम पर युद्ध लादने पर हम उन्हें सबक भी सिखा सकते हैं।” उन्होंने कहा कि “शांतिकाल में भी रक्षा की तैयारी में कोई ढील नहीं होगी ।” सेना के पास ऐसे हथियार हों, जो दुश्मन के हथियारों और उपकरणों से बेहतर किस्म के हों । ये हथियार और उपकरण तत्काल जरूरतों को पूरा करने के लिए विदेशों से भी आयात किए जाने चाहिएँ । वास्तव में पाकिस्तानी घुसपैठियों के पास स्टिंगर मिसाइलें हैं, भारत के पास मिग २१ व २७ हैं। भारतीय सेना के पास अब और नई तकनीक वाली मिसाइल, रडार, स्नामोबाइल, मोर्टार आदि सब उपलब्ध होने चाहियें ।
          पाकिस्तान की ओर से शांति और मित्रता की बातें, जो लाहौर में की गई थी, वह सब हवा में विलीन हो गईं । पाक ऊँची चोटियों पर होने के कारण कहता है कि वह उन सभी हथियारों का प्रयोग करेगा जो उसके पास हैं परन्तु भारत पाकिस्तान से प्रत्येक क्षेत्र में कहीं अधिक शक्तिशाली है। वह किसी भी धमकी से भयभीत होने वाला नहीं ।
          पाक को चिन्ता – अब पाकिस्तान को धीरे-धीरे अपनी पराजय का आभास होने लगा। वह इधर-उधर भागने लगा। भारत की निंदा करने लगा। अमेरिका के राष्ट्रपति क्लिंटन के पास गया, उन्होंने भी यही समझाया कि नियंत्रण रेखा से वापिस लौट जाओ, ब्रिटेन का भी यही कथन था, चीन से भी उसे सहयोग नहीं मिला । उसने समझाया, भारत कमजोर नहीं है। पाक शरीफ, अमेरिका, ब्रिटेन, चीन अपने को दूध का धुला स्पष्ट करने गया था परन्तु सब की एक मत विचारधारा थी कि घुसपैठियों को वापिस बुलाओ,कितनी सफाई से पाक शरीफ कहता है कि घुसपैठियों पर मेरा अधिकार नहीं परन्तु यह स्पष्ट है कि घुसपैठियों (आतंकवादी) के रूप में अधिकांश पाक सैनिक ही हैं।
          भारत का विजय अभियान प्रारम्भ – भारतीय सेना ने हवाई हमलों से स्थिति को नियंत्रण में लिया। फोटो विश्लेषकों की सहायता से भारतीय वायुसेना ने आक्रमण किए तथा टाइगर हिल पर ३ मई को विजय प्राप्त की, अपना तिरंगा फहरा दिया । इस विजय से पाक सेना असमंजस में पड़ गई। उसने कभी भारत को धमकी दी, कभी वार्ता के लिए बुलाया, यहाँ तक कि अमेरिका के राष्ट्रपति क्लिंटन ने भी तत्काल प्रधानमंत्री वाजपेयी जी को वाशिंगटन आने का आग्रह किया था। परन्तु मान-मर्यादा के प्रतिरूप राष्ट्रवादी नेता वाजपेयी जी ने इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया। संसार देखता रह गया कि दुनिया की सबसे बड़ी ताकत को इन्कार कर भारत का स्थान ऊँचा हो गया। वास्तव में यह निर्णय साहसपूर्ण था । अमेरिका कश्मीर समस्या पर मध्यस्थ बनना चाहता था जिसे वाजपेयी जी स्वीकार नहीं करना चाहते थे। यह दृढ़ निश्चय वास्तव में प्रशंसनीय है और अब सम्पूर्ण कश्मीर भारत का ही अभिन्न अंग होगा। वह दिन दूर नहीं है।
          वाजपेयी जी तथा सुरक्षा समिति ने घुसपैठियों को खदेड़ भगाने के लिए भारतीय थल, वायु सेना को पूरे अधिकार दे दिए, बस इतनी अवश्य सीमा रखी कि नियंत्रण रेखा के अन्दर रह कर ही शत्रु को समाप्त करना है। इसी कारण विश्व का जनमत भारत के पक्ष में हो गया। अमेरिका भी जो पाक का संरक्षक व समर्थक रहा है, उसे भी भारत की बात माननी पड़ी। उसकी प्रशंसा किए बिना न रह सका, इसके विपरीत पाकिस्तान अकेला पड़ गया, यहाँ तक कि वहाँ गृह युद्ध की भी सम्भावना हो गई ।
          भारतीय विजय क्रम– भारतीय सेना ने रात्रि भर भीषण लड़ाई के पश्चात् बटालिक सब-सैक्टर में श्री नगर-लेह राजमार्ग पर स्थित सामरिक महत्त्व की ‘जुबार हिल्स’ तथा तीन अन्य पहाड़ियों पर विजय प्राप्त की। ९ जौलाई को पुनः अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके पश्चात् ४८ घंटे की भीषण लड़ाई के पश्चात् बटालिक दो चोटियों प्वाइण्ट ४९२७ पॉइट ५२८७ द्रास की एक चोटी पर विजय प्राप्त की।
          इस विजय से पाक चिंतित हो गया, पाकिस्तानी विदेश मंत्री सरताज अजीज ने कहा कि घुसपैठियों को तभी वापिस बुलाया जायेगा, जब भारत सियाचिन समस्या का समाधान करे। उसने यह भी कहा कि कश्मीर समस्या का स्थायी हल न निकाला गया तो तब तक अनेक कारगिल बन सकते हैं। परन्तु इन बंदर घुड़कियों से भारत भयभीत होने वाला नहीं था। वह कारगिल से एक-एक घुसपैठिये को इस प्रकार समाप्त कर देगा, जैसे गधे के सिर से सींग। कहीं ऐसा न हो, भारत का क्रोध बढ़ जाये तथा पाकिस्तान का भारत में विलय हो जाये । आत्मा पुनः परमात्मा में मिल परमात्मा बन जाती है,उसी प्रकार पाकिस्तान पुनः भारत में विलीन होकर भारत ही बन जायेगा ।
          ९, १०, ११ जौलाई तक संघर्ष करते-करते भारतीय सेना के विजयी कदम आगे बढ़ते रहे । ९ जौलाई को वायु सेना की सहायता से बटालिक व द्रास को घुसपैठियों से मुक्त करा लिया। सेना नियन्त्रण रेखा पर पहुँच गई । इसके पश्चात् द्रास, बटालिक, काकसर सब-सैक्टर पर अत्याधिक गोलाबारी करनी प्रारम्भ की । मुश्कोह घाटी पर भी इसी प्रकार किया और प्वाइण्ट ५६६०, प्वाइण्ट ५६६३ पर भी शीघ्र विजय प्राप्त ही गई । १५ जौलाई को भारतीय सेना ने द्रास प्वाइंट ४५७५ चोटी पर भारतीय तिरंगा फहरा दिया । गर्व है ऐसे भारत भूमि रक्षक सैनिकों पर । इस प्रकार सम्पूर्ण कार्सगल पर हमारे वीरों ने आधिपत्य स्थापित कर लिया और घुसपैठियों से उसे मुक्त कर दिया । वास्तव में कारगिल के शहीदों ने बलिदान का नया इतिहास रचा।
          पाक की दुष्टतापूर्ण नीतियाँ – सर्वप्रथम पाक ने २७ मई को स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा के मिग २१ विमान पर निशाना साधा, यद्यपि वह पैराशूट से धरातल पर सुरक्षित उतर गये थे, परन्तु उतरते हुए उन्हें समाप्त कर दिया गया । परन्तु उनको मारने वाला पाक सैनिक बशारत अली भी कारगिल सैक्टर में बिहार रेजीमेंट की सैनिक कार्यवाही में मारा गया ।
          कारगिल में घुसपैठियों के रूप में पाक के सैनिक लड़ते रहे, यह छल-छद्म नीति कब तक सबकी आँखों पर परदा डालती रहेगी। इसी छल-छद्म नीति का उदाहरण है, १२ जौलाई को प्रधानमंत्री शरीफ ने वाजपेयी जी से बातचीत के लिए कहा – “मैं श्री वाजपेयी को दावत देता हूँ, हमें अपने लोगों को युद्ध के खतरों से बचाना चाहिए और उन्हें शांतिपूर्ण और सुरक्षित जिदंगी जीने का अवसर देना चाहिये ।” तथा इसके साथ ही वह मुजाहिदीनों अपना नैतिक, कूटनीतिक और राजनीतिक समर्थन जारी रखेगा। इतना ही नहीं पाक ने छः भारतीय सैनिकों के साथ अत्यन्त नीचता एवं अमानवीय का व्यवहार किया। इसके विपरीत भारतीय सैनिक पाक के मृतक सैनिकों के साथ भी सम्मान की भावना रखते हैं। उन्होंने इस व्यवहार में भारतीय संस्कृति का परित्याग नहीं किया।
          भारत की स्पष्ट व साहसिक नीति-विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता आर० एस० जस्सल ने कहा कि पाकिस्तान से हमारी बात तभी सम्भव है जब वह हमारी इन तीन शर्तों को पूर्ण कर लेगा ।
          (1) पाक सैनिक कारगिल से पूरी तरह वापिस हों ।
          (2) पाक सैनिकों की वापसी के पश्चात् ही पाकिस्तान सरकार इस बात का भरोसा दिलाए कि नियन्त्रण रेखा का भविष्य में पुनः उल्लंघन नहीं होगा। नियंत्रण रेखा का सम्मान करेगा।
          (3) पाकिस्तान सीमा पार प्रायोजित जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की समाप्ति के लिए पाकिस्तान में इससे सम्बन्धित समस्त नैटवर्क का खात्मा हो ।
          भारतीय शहीद-सम्पूर्ण भारत के विभिन्न जाति-भाषा के वीरों ने अनेकता में एकता का परिचय देकर मातृभूमि के लिए बलिदान किया। इन शहीदों के नाम सदैव स्वर्णाक्षरों में लिखे जायेंगे। शहीदों की इस सूची में सबसे पहला नाम नमनीय है सेकिण्ड लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया का जिन्हें १४ मई को काकसर में घुसपैठ का पता लगाने भेजा गया था जिन्हें अमानवीय यातनायें भी दी गईं। धिक्कार है। पाक को ! इसके पश्चात् दिल्ली के ले० हनीफुद्दीन । मातृभूमि की रक्षा के लिए देश के कोने-कोने से हमारे सैनिक शहीद होते रहे । इनमें उत्तर प्रदेश के वीर सबसे अधिक शहीद हुए, इसका हमें गर्व है। देश के सपूत रणबांकुरे नायक चमन सिंह (हापुड़), मेरठ के मेजर मनोज तलवार, शहीद योगेन्द्र, शहीद जितेन्द्र सिंह, शहीद अनिल, शहीद राजसिंह, शहीद योगेन्द्र यादव, शहीद जुबैर अहमद, शहीद मोहम्मद रिजवान आदि जिन्होंने मातृभूमि के लिए बलिदान किया, उन सभी के लिए हमारा शत-शत नमन । इन रणबांकुरों के शहीद होने पर महाकवि हरिओम पँवार की रोमांचित कर देने वाली पंक्तियों को विस्मृत नहीं किया जा सकता –
तब आँसू की एक बूँद से, सातों सागर हारे होंगे।
जब मेंहदी वाले हाथों ने, मंगल सूत्र उतारे होंगे ।
          शहीदों की संख्या – पाक की छल-छद्म नीति के कारण ही हमारे देश में कितने ही रणबांकुरों प्राण मातृभूमि के लिए बलिदान हो गये। इस बार कारगिल युद्ध में पाक के ३० अधिकारी समेद ६९ नष्ट हुए तथा भारत के २३ अधिकारि समेत ३९८ सैनिक शहीद हुए तथा ५७८ घायलावस्था में ईश्वर उन्हें शीघ्र स्वस्थ करे ।
          योगदान–कारगिल के शहीदों को देखकर भारत का बच्चा-बच्चा एक नन्हा सैनिक बन गया है। प्रत्येक शत्रु से लोहा लेने को तत्पर है । कोई रक्त देने को तत्पर है तब कोई धन | शहीद रक्षा कोष में देश-विदेश सब ओर से धन आ रहा है । करोड़ों रुपया जनता ने हृदय से दिया है। धन्य है ऐसे भारतवासी । सेवा निवृत्त सैन्य अधिकारियों ने शहीदों के परिवारों की सुरक्षा का बीड़ा उठाया है। प्रत्येक पुनः सीमा पर जाने को तैयार है । धन्य है यह मातृभूमि ।
          भारत की प्रशंसा– युद्ध के समय भारत का संयम सराहनीय था यही कारण था कि भारत शनैःशनै कारगिल पर विजय प्राप्त की। इसी कारण अमेरिका ने अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की बढ़ती समस्या से निबटने के लिए भारत से सहयोग माँगा है। उसने कारगिल संघर्ष में भारत द्वारा अभूतपूर्व परिपक्वता और संयम की सराहना भी की ।
          उपसंहार—कारगिल समस्या के समाधान व सफलता में ये शहीद सदैव चिरस्मरणीय रहेंगे उनके ऋण को हम कदापि न चुका सकेंगे ।
“लौटकर आ सके न जहाँ में तो क्या, 
याद बनकर दिलों में रहोगे सदा । ”
        भारतीय वीर शहीद होते-होते कह गये –
“कट गए सर हमारे तो कुछ गम नहीं ।
 सर हिमालय का हमने न झुकने दिया || 
          हमारा कर्त्तव्य यही है तथा सच्ची श्रद्धांजलि भी यही है कि इसी प्रकार मातृभूमि की रक्षा के लिए हम अपने प्राणों का उत्सर्ग करने के लिए सदैव तत्पर रहें, तथा और वे शहीद स्वर्ग से झाँककर देख सकें तथा वे प्रसन्न हों कि जिस हिमालय पर से शत्रुओं के पद चिन्हों को समाप्त किया है, अब उस शत्रु का प्रतिबिम्ब भी न पड़ सके ।
          वास्तव में,
कितनी गोदें सूनी हुईं, कितनों के अरमान लुटे । 
धन्य वही माँ है, धन्य वही पत्नी है II
जो अपना सर्वस्व देकर, सदा रहती मुस्काती है ।
अंतिम आलंबन को भी, देश समर्पित करती है ॥
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