ऐसा क्यों और कैसे होता है -9
ऐसा क्यों और कैसे होता है -9
रेलवे लाइनों को पत्थर की गिट्टियों पर क्यों बिछाया जाता है?
रेलवेलाइन एक तरह से पत्थर की रोड़ी या गिट्टियों की सड़क के ऊपर बिछाई जाती है। ऐसा करने का कारण यह है कि रेल की पटरी अंग्रेजी के T अक्षर के आकार की होती है। इसका चौड़ा सिरा नीचे की ओर रहता है, जिसके सहारे यह लकड़ी या सीमेंट के स्लीपरों पर समकोण अवस्था में कसी होती है। ये स्लीपरों पर कसी हुई रेलपटरियां पत्थर की रोड़ी की सड़क पर जड़ी रहती हैं। पत्थर की रोड़ी रेलपटरी के कुछ हिस्से को भी ढके रहती है। जब ट्रेन, अर्थात् रेलगाड़ी इन पटरियों पर दौड़ती है, तो उन पर पड़नेवाला दबाव लगातार जल्दी-जल्दी बदलता रहता है। इस दबाव का अंतर इतना अधिक होता है कि यदि पत्थर की रोड़ियों के बजाय यह रेलपटरियां सामान्य पक्की सड़क पर होतीं, तो वह चटक जाती और पूरा रेलमार्ग ही अव्यवस्थित हो जाता। पत्थर की रोड़ी से रेलवेलाइन को बदलते दबाव को सहने की लचक या लचीलापन मिलता है। इसके अतिरिक्त पत्थर की रोड़ी से गद्दीदार लचीलेपन के अलावा रेलवेलाइन के आसपास जल निकास आदि में भी सहायता मिलती है। इसीलिए रेलवेलाइनों को पत्थर की गिट्टियों पर बिछाया जाता है।
रोने के बाद राहत क्यों महसूस होती है ?
अक्सर ऐसा कहा जाता है कि रो लेने के बाद बेहतर महसूस होता है। जब हम रोते हैं तो आंखों से आंसू आ जाते हैं। आंसुओं में शरीर द्वारा बनाए गए रसायन और हार्मोन होते हैं। जब हम दुखी होते हैं, तो इसका असर हमारे शरीर और मस्तिष्क पर पड़ता है। मस्तिष्क और शरीर द्वारा इस संवेदना की प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। इस प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप मस्तिष्क और शरीर द्वारा इन रसायनों और हार्मोन का अतिरिक्त उत्पादन होने लगता है। हमारे शरीर को इन अतिरिक्त रसायनों और आंसुओं की आवश्यकता नहीं होती। रोते समय आंसुओं के माध्यम से ये अतिरिक्त रसायन हमारे शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इन रसायनों और हार्मोस का उत्पादन उस दौरान होता है, जब हम दुखी होते हैं। इसलिए जैसे-जैसे आंसू बहते जाते हैं, उन रसायनों का उत्सर्जन आंसुओं के रूप में होता जाता है और ये शरीर से बाहर निकल जाते हैं। रसायनों के शरीर से बाहर निकलने के साथ ही दुख के कारण उत्पन्न भाव भी कम होते जाते हैं और व्यक्ति हलकापन महसूस करने लगता है।
कुछ संगीत वाद्यों में खोखला बक्स क्यों उपयोग किया जाता है ?
सितार जैसे संगीत वाद्यों में खोखले बक्स वाद्य की आवाज को तेज करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। यदि बिना खोखले बक्से के इन वाद्यों के तारों को झनकारा जाता, तो उनसे निकली आवाज हमें शायद ही सुनाई देती। जब तारों को झनकारा जाता है तो उनसे जो कंपन पैदा होता है, वह बाजे के खोखले बक्से के कंपन से भिन्न होता है। ऐसा इसलिए होता है; क्योंकि हर तार एवं खोखले बक्स अपनी विशेष फ्रीक्वेंसी पर कंपन करते हैं, जो उनका प्राकृतिक कंपन कहलाता है। इसीलिए तार और खोखले बक्स का कंपन एक समान नहीं होता। जब तारों का कंपन खोखले बक्स को कंपित होने के लिए दबाव डालता है, तो इस दबावी कंपन से तेज आवाज पैदा होती है, जिसे हम आसानी से सुन लेते हैं। इसीलिए सितार जैसे संगीत-वाद्यों में खोखला बक्स लगाया जाता है।
कुछ की सांस से आती है? बदबू क्यों
हेलिटोसिस अर्थात सांसों से बदबू आना ऐसी बीमारी है, जिसके बारे में लोग सतर्क नहीं रहते हैं। आइए जानें क्यों आती हैं सांसों से बदबू ? सांसों में आने वाली बदबू के लिए वाष्पीकृत सल्फर यौगिक जवाबदेह होते हैं, जैसे हाइड्रोजन सल्फाइड, मिथाइल मरकैप्टन आदि। इन यौगिकों के स्रोत ऐसे बैक्टीरिया होते हैं, जो ऑक्सीजन के बिना भी जीवित रह सकते हैं। ये बैक्टीरिया मुख की भीतरी दीवार की कोशिकाओं, जीभ, मसूड़ों और दांतों की संधि के बीच रहते हैं। ये स्थान इनके लिए उपयुक्त रहते हैं, क्योंकि अंधेरे और शुष्क स्थान पर ही ये पलते, बढ़ते हैं। इसके अतिरिक्त सिगरेट, शराब इत्यादि नशीले पदार्थों का सेवन और कुछ भोज्य और पेय पदार्थों के कारण भी सांसों से बदबू आती है। खाने में दुग्ध उत्पाद, मसालेदार खाना, शक्करयुक्त पदार्थ और काँफी इत्यादि इन बैक्टीरिया की संख्या में वृद्धि करते हैं, जो सल्फर यौगिक पैदा करते हैं। मसूड़ों में होने वाला संक्रमण और रोग भी सांसों में बदबू पैदा करते हैं। दांतों में फंसे अन्न के कणों के सड़ने की वजह से यहां बैक्टीरिया पनपते हैं और फिर यह बैक्टीरिया सल्फरयुक्त यौगिक बनाते रहते हैं, जो सांसों में बदबू का कारण बन जाते हैं।
सड़कें मोड़ों पर ढलुआ क्यों होती हैं?
सामान्यतः सीधी सड़कों पर दौड़ती मोटरगाड़ियां अपकेंद्रीबल से मुक्त रहती हैं। जब वे रफ्तार से दौड़ते हुए सड़क के मोड़ों पर मुड़ती हैं, तो उनको अपकेंद्रीबल का भी सामना करना पड़ता है। इस बल के कारण वे छिटककर सड़क से बाहर जाकर दुर्घटनाग्रस्त हो सकती हैं। इस कठिनाई से बचने के लिए अपकेंद्रीबल का प्रभाव घटाना आवश्यक होता है। ऐसा करने के लिए मोड़ों पर सड़क को बाहर से अंदर की ओर ढाल देकर बनाया जाता है। इससे परिणामी भार और अपकेंद्रीबल वाहन या मोटरगाड़ी के ऊर्ध्वाधार समतल संतुलन से समाप्त हो जाता है और सवारियों तथा वाहन को किसी भी प्रकार के हिचकोले नहीं लगते तथा दौड़ती मोटरगाड़ी सड़क से छिटकने से भी बच जाती है। इसीलिए सड़कें मोड़ों पर ढाल देकर बनाई जाती हैं।
बाल घुंघराले क्यों होते हैं?
जब भी हमें किसी के घुंघराले बाल दिखते हैं, तो सहज ही प्रश्न उठता है कि बाल घुंघराले क्यों हो जाते हैं? एक ही घर में दो लोगों के बालों में भी अंतर देखा जा सकता है। दरअसल बाल केराटीन नामक प्रोटीन से बनते हैं और इनका विकास रोमकूपों से होता है। रोमकूपों में मौजूद कोशिकाएं ही केराटीन और अन्य प्रोटीन का निर्माण करती हैं। ये प्रोटीन ही बालों के तीरे या केशिका बनाती हैं। इन प्रोटीन में गंधक अणु होते हैं और जब दो अणु मिलकर बंध बनाते हैं, तो उसे डिसल्फाइड बंध कहते हैं। अगर किसी प्रोटीन में दो सल्फर अणु कुछ दूरी पर हैं और वे जुड़कर डिसल्फाइड बंध बनाते हैं, तो वह प्रोटीन मुड़ जाता है। यही बालों को घुंघराला बनाने का काम करता है। जिन लोगों के बालों में ये बंध अधिक होते हैं, उनके बालों में उतना ही अधिक घुंघरालापन होता है, वहीं जिन लोगों के बालों में इस तरह के बंध कम होते हैं, उनके बाल सीधे होते हैं। बालों को स्थायी रूप से घुंघराले करने के लिए ‘पर्मिंग’ कराई जाती है। इसमें भी बालों में रसायनों का प्रयोग कर डिसल्फाइड बंध बनाए जाते हैं।
बेहोशी की दवा से लोग बेहोश कैसे हो जाते हैं?
बेहोशी की दवा कैसे बेहोश कर देती है, इसकी सही जानकारी के लिए यह जान लेना जरूरी है कि हममें चेतना कैसे रहती है? क्योंकि इसी चेतना को रोककर ही तो बेहोशी प्राप्त की जाती है। हमारे मस्तिष्क के आधार में कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाएं होती हैं, जिनकी क्रिया से हम सचेत एवं जागे रहते हैं। इनके द्वारा तंत्रिका कोशिकाओं का जाल – सा बिछा रहता है। मस्तिष्क के अन्य भागों की अपेक्षा इन कोशिकाओं की सक्रियता चेतनता का निर्णय करती है। मस्तिष्क की कोशिकाओं को एक-दूसरे से संपर्क साधने की आवश्यकता रहती है; तभी वे तालमेल के साथ कार्य कर पाती हैं। इसके लिए वे Na + और Ka+ आयनों को कोशिकाभित्तियों के साथ विनिमय करके हलकी विद्युत्धारा पैदा करती हैं, जो संचार कार्य को संपन्न कराने में सहायक होती है। इस कार्य में कुछ रसायनों का भी उपयोग किया जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि चेतनता के संचार में कुछ रसायनों एवं बिजली की प्रमुख भूमिका होती है। बेहोशी की दवा इन्हीं दो क्रियाओं के कार्यों में अस्थायी रुकावट पैदा कर देती है, जिससे मस्तिष्क की कोशिकाओं से संपर्क टूट जाता है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति बेहोश या अचेत हो जाता है। दवा का असर समाप्त होने पर चेतनता वापस आ जाती है और व्यक्ति पहले की तरह सामान्य हो जाता है।
शून्य का महत्व क्यों है?
ईसा के जन्म से बहुत पहले भारत में लोगों ने संख्याओं को लिखने का एक उचित तरीका विकसित कर लिया था, किंतु उस समय शून्य का आविष्कार नहीं हुआ था। बाद में शून्य का आविष्कार हुआ और लगभग 900 ईस्वी में यूरोप के लोगों को इससे परिचित कराया गया। इसे अरब के व्यापारी अरब ले गए और यह हिंदू अरबी विधि कही जाने लगी। इस विधि से सभी संख्याएं 123,4,5,6,7,8,9 अंकों और एक शून्य (0) की सहायता से लिखी जाती थीं। इस विधि से हर अंक का मूल्य लिखी संख्या में उसके स्थान के अनुसार होता है। रोमन पद्धति में उस समय तक शून्य नहीं था। शून्य में कुछ विशेष गुण हैं। यदि इसे किसी अंक में जोड़ा या किसी अंक से घटाया जाए, तो परिणाम वही रहता है। किसी अंक को यदि शून्य से गुणा किया जाए तो, परिणाम शून्य हो जाता है। शून्य एक मात्र ऐसा अंक है, जिसे किसी भी अंक से भाग दे सकते हैं, लेकिन यह किसी और अंक को विभाजित नहीं कर सकता है। यदि शून्य के साथ प्रतिशत लिखें, तो इसका कोई अर्थ नहीं निकलता है। वास्तव में यह संख्या निर्धारित नहीं है।
क्रिकेट की गेंद पृथ्वी को छुए बिना हवा में कैसे घूमती है?
क्रिकेट की गेंद जब हवा में जा रही होती है तो वह घूमती भी रहती है। जब गेंद घूमती है, तो वह अपने आसपास की हवा को भी घुमाती है। है। अब वंहा घूमती हवा विकेट के ऊपर बह रही हवा के संपर्क में आती है। यदि घूमती गेंद और बहती हवा की दिशा एक ही होती है, तो हवा की कुल रफ्तार गेंद की तरफ बढ़ जाती है। इससे दबाव में कमी आ जाती है। इसके विपरीत दिशा में घूमती गेंद, जहां घूमती हवा की दिशा बहती हवा के विपरीत होती है, वहां हवा की कुल रफ्तार घट जाती है। इससे दबाव में वृद्धि होती है। गेंद के विपरीत दिशाओं में यह असंतुलित दबाव, (जब गेंद हवा में होती है,) उसे एक तरफ धकेलता है। इसलिए गेंद फेंकनेवाले गेंद को इच्छित दिशा में घुमाने के लिए बह रही हवा की दिशा की सहायता लेते हैं। इस तरह क्रिकेट की गेंद पृथ्वी को छुए बिना हवा में घूमती रहती है ।
पैरों से बदबू क्यों आती है ?
कोई भी व्यक्ति जब जूते निकालता है, तो उसके पैरों से अजीब सी बदबू आती है। सामान्यतः यह कहा जाता है कि मोजे में बंद होने के कारण दुर्गंध आती है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि मोजे का साफ नहीं होना इस दुर्गध का कारण होता है। दरअसल, पैरों से आने वाली दुर्गंध का मुख्य कारण वह बैक्टीरिया या जीवाणु होते हैं, जो पसीने के कारण पैरों में उत्पन्न होते हैं। ये कीटाणु पैरों में पाई जाने वाली करीब दो लाख 50 हजार स्वेद ग्रंथियों से होने वाले स्राव का सेवन करते हैं और इनकी मौजूदगी ही दुर्गंध का कारण बनती है। जिन व्यक्तियों को अधिक पसीना आता है, उनके पैरों से आने वाली गंध भी काफी तीखी होती है, जबकि कम पसीने वाले व्यक्तियों के पैरों से अपेक्षाकृत कम दुर्गंध आती है। इस दुर्गध को और बढ़ाने का काम जूते और मोजे करते हैं, जिनके कारण पसीना पैरों में ही फंस कर रह जाता है और यह गीलापन व अंधेरा बैक्टीरिया को अधिक आकर्षित करता है। इस दुर्गंध से बचने के लिए ही व्यक्ति ऐसे मोजे पहनते हैं, जो पसीना सोखकर पैरों को सूखा रखने में मदद करते हैं।
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