ऐसा क्यों और कैसे होता है -7

ऐसा क्यों और कैसे होता है -7

ब्लडबैंक में अधिक दिनों तक रक्त कैसे सुरक्षित रहता है?

हमारे रक्त का लाल रंग लाल कोशिकाओं के कारण होता है। ये लाल कोशिकाएं अपना कार्य करते-करते लगभग 120 दिन में मर जाती हैं। जैसे संसार में लोग मरते रहते हैं और बच्चे पैदा होते रहते हैं और संसार चलता रहता है; ठीक इसी तरह लगभग 120 दिन तक कार्य करते रहने के बाद रक्त की लाल कोशिकाएं मर जाती हैं और अस्थिमज्जा में इन्हें बदलने के लिए नई कोशिकाएं बनती रहती हैं एवं रक्त में लाल कोशिकाओं की क्षतिपूर्ति होती रहती है। लेकिन जब रक्त को ब्लड बैंक में भंडारित किया जाता है, तो रक्त की जीवनक्रियाएं रुक जाती हैं, इसीलिए रक्त बहुत दिनों तक रखा जा सकता है।
चोट आदि से बाहर आनेवाला रक्त शीघ्र जम जाता है। इसलिए जब रक्तदाता का रक्त निकाला जाता है, तो इसे एक विशेष प्रकार के निजर्मीकृत किए हुए थैले में निकालते हैं। इस थैले में साइट्रेट साल्ट जैसे रक्त को न जमानेवाले यौगिक होते हैं। इसके अतिरिक्त थैले में कुछ एडिनीन और डेक्सट्रोस भी होता है; इसमें डेक्सट्रोस साधारण शर्करा होती है। इनसे रक्त की कोशिकाएं भंडारण के समय पोषण पाती रहती हैं। वैसे रक्त निकालने के बाद जल्दी-से-जल्दी 4°-6° सेंटीग्रेड के तापमान पर फ्रिज में रख दिया जाता है। इस तापमान पर एंजाइमों की क्रियाएं नहीं हो पाती हैं। अतः रक्त को जमाने वाला कोई एंजाइम भी मौजूद हो, तो भी रक्त जम नहीं पाता है और रक्त बहुत अधिक दिनों तक रखा जा सकता है। कहने वालों का तो यहां तक कहना है कि यदि रक्त को तरल नाइट्रोजन में रखा जाय, तो यह लगभग दो हजार वर्षों से भी अधिक समय तक रखा जा सकता है और उपयोग में लाया जा सकता है। लेकिन अभी इतने लम्बे समय तक रक्त को रखा नहीं गया है। इस तरह लाल कोशिकाओं का जीवन कम होने पर भी रक्त ब्लड बैंक में अधिक दिनों तक रखा रहता है।
आवाज कैसे/ क्यों रिकॉर्ड होती है ?
टेपरिकॉर्डर एक ऐसी मशीन है, जो आवाज को प्लास्टिक की एक पतली टेप पर रिकॉर्ड कर लेती है। इसे कभी भी सुना जा सकता है। टेप पर आवाज को अंकित करने के लिए पहले इसे विद्युतधारा में बदलना होता है। जिस व्यक्ति की आवाज रिकॉर्ड करनी होती है, वह माइक्रोफोन के सामने बोलता है। माइक्रोफोन ध्वनि को विद्युतधारा में बदल देता है। यह विद्युतधारा काफी कम होती है, अतः एक एंप्लीफायर द्वारा इस धारा को बढ़ा दिया जाता है। इसका चुंबकीय क्षेत्र बदलती हुई ध्वनि के अनुसार ही बदलता रहता है । इसी दौरान चुंबकीय पदार्थ (आयरन ऑक्साइड) से युक्त टेप एक मोटर द्वारा चुंबक के बीच से गुजरती है । आयरन ऑक्साइड ध्वनि के द्वारा पैदा हुई चुंबक में बदलता जाता है। इस प्रकार ‘ध्वनि’ टेप पर चुंबकीय क्षेत्र के रूप में अंकित हो जाती है। जब टेप से आवाज को सुनना होता है, तो इसे टेप रिकॉर्डर में लगाकर चलाते हैं। जैसे-जैसे टेप चलती है, वैसे-ही-वैसे इसके चुंबकीय क्षेत्र से कुंडली में विद्युतधारा पैदा होती है। इस विद्युतधारा का परिमाण टेप पर अंकित ध्वनि के अनुसार बदलता है। इसे एंप्लीफायर द्वारा अधिक करके लाउडस्पीकर में भेज दिया जाता है ।
बॉलपेन में फाउंटेन पेन की स्याही क्यों नहीं चलती?
लिखने के कलम इस तरह बने होते हैं कि उन्हें चलाने के लिए अपनी रचना के अनुसार उपयुक्त स्याही की आवश्यकता होती है। बॉलपेन में सिरे पर एक छोटी गोली, अर्थात् बाल होती है; जो घूमती है, तो स्याही उसके साथ निकलकर कागज़ पर आती है और लिखना प्रारंभ करती है। इसलिए इसमें कुछ गाढ़ी स्याही आवश्यक होती है। हमारे सामान्य फाउंटेनपेनों की निबों में कोशिकीय क्रिया के द्वारा स्याही आती है; इसलिए उसके लिए पानी में घुली पतली स्याही आवश्यक होती है। अतः यदि बॉलपेन में सामान्य पेन की स्याही का उपयोग किया जाएगा तो बॉलपेन की बॉल ठीक से चल नहीं सकेगी; क्योंकि साधारण पेन की स्याही वहां आकर सूखने लगेगी और बॉल को जाम कर देगी। इसीलिए बॉलपेन में फाउंटेनपेन की स्याही नहीं चलती है।
बिल्ली क्यों घुरघुराती है?
जब कोई बिल्ली संतोष अथवा आनंद की अभिव्यक्ति करना चाहती है, तो वह घुरघुराती है। घुरघुराहट एक किस्म की धीमी और निरंतर की जाने वाली गुंजन होती है, जिसका बिल्ली की वास्तविक आवाज से कोई संबंध नहीं होता। मादा बिल्ली अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए घुरघुरा कर ही बुलाती है। जन्म के समय बिल्ली के बच्चे न तो देख पाते हैं, न सुन पाते हैं और न ही सूंघ पाते हैं। अतः जन्म के तुरंत बाद वाली स्थितियों में उनकी मां की घुरघुराहट ही उन्हें उनसे संबंध रखने में मदद करती है। जैसे ही बच्चे दूध पीना शुरू करते हैं, बिल्ली घुरघुराना बंद कर देती है। इस तरह घुरघुराना एक तरह की अभिव्यक्ति है। बिल्ली के स्वरतारों के कंपनों से घुरघुराना पैदा होती है। जब कोई बिल्ली अपने फेफड़ों में हवा भरती है, तो वह हवा उसके ध्वनि बॉक्स से गुजरती है, जहां उसके स्वर तार होते हैं। अगर बिल्ली संतोष की अभिव्यक्ति करना चाहती है तो वह सांस लेते समय फेफड़ों से हवा अंदर-बाहर निकालते हुए अपने स्वर तारों को कंपित करती है। जब वह घुरघुराना नहीं, चाहती, तब ध्वनिबॉक्स से गुजरने वाली हवा स्वर – तारों पर असर नहीं डालती, जिससे इस किस्म की ध्वनि पैदा नहीं होती ।
तेज आवाज पर आंखें बंद क्यों हो जाती हैं?
हर आवाज अच्छी नहीं लगती। इसलिए अच्छी न लगनेवाली आवाजें शोर कहलाने लगती हैं। जोर से होने वाली आवाज या धमाके आदि भी अनचाही आवाजें हैं। जब कोई धमाका या तेज आवाज होती है, तो इससे अनचाहा आवेग हमारी ध्वनितंत्रिकाओं के साथ भेजा जाता है, जो हमारी तंत्रिका – प्रणाली को उद्दीपित कर देता है। इससे ऐसा आभास होने लगता है कि हमारे शरीर को कोई नुकसान होने वाला है। यह एक तरह की ऐसी चेतावनी होती है, जो यह कहती है कि खतरे से बचने के लिए सावधान हो जाइए। इस आने वाले खतरे के नुकसान से बचने के लिए हमारी आंखें तुरंत बंद हो जाती हैं। यह एक ऐसी क्रिया है, जो खतरा होने पर प्रतिवर्ती क्रिया की तरह तुरंत अपने आप होने लगती है। खतरे से बचने के लिए इस स्थिति में मस्तिष्क से राय लेने का इंतजार नहीं किया जाता; बल्कि सीधे ही यह कार्यवाही हो जाती है। इसीलिए तेज आवाज होने पर हमारी आंखें बंद हो जाती हैं।
कुछ कीड़ों के काटने से मनुष्य बीमार क्यों हो जाता है ?
पृथ्वी पर रहने वाले हजारों प्रकार के कीड़ों में से कुछ काटने वाले कीड़े हमारे बहुत बड़े दुश्मन हैं। काटकर रोग फैलाने वाले कीड़ों में मुख्य रूप से मच्छर, ट्सेट्से मक्खी, जुआं, रैटफ्लाई, खटमल आदि ऐसे हैं, जो अनेक बीमारियां फैलाते हैं। ये कीड़े जब किसी रोगी को काटते हैं और उसका खून चूसते हैं, तो उस रोगी से बीमारी के कीटाणु कीड़ों के शरीर में आ जाते हैं ।
यही कीड़ा जब किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है, तो अपनी सुई जैसी खोखली नली द्वारा लार के साथ उस रोग के कीटाणु शरीर में प्रवेश करा देता है। ये कीटाणु उसके शरीर में पहुंचकर उस स्वस्थ व्यक्ति को भी रोगी बना देते हैं। मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से मलेरिया फैलता है। ट्सेट्से मक्खी के काटने से स्लीपिंग सिकनेस, जुओं के काटने से टायफाइड और रैटफ्लाई के काटने से प्लेग के कीटाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। दरअसल, यह कीटाणु स्वयं जीवित रहने के लिए हमारा खून चूस कर अपना पेट भरने हेतु हमें काटते हैं। खून चूसने से पहले ये थोड़ी-सी लार हमारे शरीर के अंदर भेजते हैं ताकि खून सूखकर गाढ़ा न हो जाए और इसी लार के साथ रोग के कीटाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं
थके शरीर को दबाने पर आराम क्यों मिलता है ?
जब हम सामान्य क्षमता से अधिक कार्य करते हैं, तो हमारी पेशियां थकने लगती हैं और उनमें दर्द होने लगता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि अधिक काम करने पर काम करनेवाली पेशियों को मिलनेवाली सामान्य ऊर्जा कम पड़ जाती है। इसे पूरा करने के लिए पेशियां ‘ग्लाइकोलिसिस’ का तरीका अपनाती हैं। इसमें शरीर की शर्करा ‘लेक्टिक अम्ल’ में बदलने लगती है। पेशियों में जब यह लेक्टिक अम्ल एकत्र होने लगता है, तो हमें थकान और दर्द अनुभव होने लगता है। इसलिए जब हारी-थकी पेशियों को दबाया या सहलाया जाता है, तो रक्त का संचार बढ़ने लगता है। इससे एकत्रित लेक्टिक अम्ल तो हटने ही लगता है, साथ-ही-साथ थकी पेशियों को आवश्यक ऑक्सीजन भी मिल जाती है। हाथ-पैर दबाने से तंत्रिकाओं के सिरे भी सक्रिय हो जाते हैं, जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएं कुछ दर्दनिवारक रसायन छोड़ देती हैं, जो दर्द को कम करने में सहायता करते हैं। इसीलिए पेशियों को दबाने और सहलाने से थके-हारे होने पर हमें आराम मिलता है।
ठंडे देशों में एंटीफ्रीज पदार्थ क्यों जरूरी होता है ?
प्रतिहिम या एंटीफ्रीज पदार्थ वे होते हैं, जो किसी द्रव के साथ मिलाए जाने पर उसका हिमांक कम कर देते हैं। ठंडे देशों में कारों और बसों में शीतलीकरण प्रणालियों में काम आने वाले द्रव पदार्थ जम जाते हैं। इन द्रवों को जमने से रोकने के लिए ही प्रतिहिम पदार्थ का प्रयोग किया जाता है। ठंडे गोदामों में औषधियों और शृंगार प्रसाधनों को जमने से रोकने का काम भी यही पदार्थ करते हैं। सभी प्रतिहिम पदार्थों में मुख्य अवयव अल्कोहल है। प्रतिहिम पदार्थों का आधार सामान्यत: इथाइलीन ग्लाइकोल होता है और इसका उपयोग अंतर्दहन इंजनों की शीतलीकरण प्रणाली में किया जाता है। सर्दी के मौसम में प्रतिहिम पदार्थ को पानी में मिलाकर या ऐसे ही शीतलीकरण प्रणाली में उपयोग किया जाता है, जिससे वह जमे नहीं। कभी कभार अंर्तदहन इंजनों में मिथाइल अल्कोहल का उपयोग भी किया जाता है। यह पानी का हिमांक कम कर देता है। जब जमने का खतरा समाप्त हो जाता है, तब इसे प्रणाली से निकाल लिया जाता है। वायुयान के पंखों और प्रोपेलरों पर बर्फ जमने से रोकने के लिए भी इथाइलीन ग्लाइकोल का प्रयोग किया जाता है।
फिटकरी लगाने से रक्त बहना क्यों बंद हो जाता है?
जब किसी भी रक्तनालिका के कट जाने पर रक्त रिसना प्रारंभ कर देता है, तो वहां घाव आदि से रक्त बहने लगता है। यदि कटा हुआ भाग जरा-सा है, तो रक्त के जम जाने की स्वाभाविक क्रिया से वह स्थान भर जाता है और रक्त बहना बंद हो जाता है। रक्त में कुछ कारक ऐसे होते हैं, जिनकी वजह से घुली हुई प्रोटीन चटाई के समान बहुत पतले तंतुओं का जाल – सा बना देती है। यह जाल रक्त के जमने में सहायता करता है और रक्त बहना रुक जाता है। फिटकरी ऐलुमिनियम पोटाशियम सल्फेट का एक तरह से मिश्रित साल्ट है। इसमें जो पोटाशियम होता है, वह रक्त जमने में शीघ्रता लाता है, जिससे रक्त बहना जल्दी बंद होता है। इसके अतिरिक्त फिटकरी में संकोचक गुण भी होता है, जिसके कारण रक्तनलिकाएं संकुचित हो जाती हैं। इससे कटी हुई नलिकाएं संकुचन क्रिया के द्वारा रक्त का बहना बंद कर सकती हैं। अतः फिटकरी में रक्त को जमाने और रक्तनलिकाओं को संकुचित करने के गुण के कारण फिटकरी लगाने से रक्त बहना बंद हो जाता है।
चूहा मुंह क्यों खरोंचता है?
कभी-कभी जानवर ऐसी स्थिति में फंस जाते हैं कि वे न तो भाग सकते हैं और न ही अपने शत्रु से सकते हैं। यह स्थिति उनके लड़ लिए एक विशेष प्रकार का तनाव उत्पन्न करती है, जिससे छुटकारा पाने के लिए जानवर विभिन्न तरीके अपनाते हैं। तनाव की स्थिति से छुटकारा पाने को हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि जब बच्चे कोई गलती करते हुए अध्यापक द्वारा पकड़े जाएं, तो वे न तो उनका विरोध कर सकते हैं, न ही भाग सकते हैं। ऐसे में इस तनाव से छुटकारा पाने के लिए वह या तो अपना सिर खुजाते हैं या जोर-जोर से सांस लेने लगते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं कि उनका तनाव कम हो सके। ठीक इसी प्रकार बिल्ली द्वारा घेरे जाने पर चूहा न भाग सकता है और न वह बिल्ली का मुकाबला कर सकता है । ऐसे में वह बैठ जाता है और अपने पंजों से चेहरे को बार-बार रगड़ता है । ये सभी ऐसी क्रियाएं हैं जो जानवरों द्वारा तनावपूर्ण स्थिति से छुटकारा पाने के लिए की जाती हैं । इन्हें विस्थापन क्रियाएं कहते हैं । कभी-कभी ऐसी स्थिति में जानवर मनुष्यों को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं । ये सभी क्रियाएं उनकी प्रतिवर्ती क्रियाएं हैं ।
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