ऐसा क्यों और कैसे होता है -6

ऐसा क्यों और कैसे होता है -6

धक्का लगाने से गाड़ियां स्टार्ट क्यों हो जाती हैं ?
सामान्यतः मोटर वाहनों को स्टार्ट करने के लिए एक स्विच दबाया जाता है जिससे बिजली की मोटर चलती है। इसे ही स्टार्टर मोटर भी कहते हैं। इससे इंजन का क्रेंक चलता है और इस तरह इंजन चलने के लिए दहनचक्र प्रारंभ हो जाता है और मोटर वाहनों का इंजन चलने लगता है। कभी-कभी वाहन इंजन स्टार्ट नहीं हो पाता है; क्योंकि या तो उसकी स्टार्टर मोटर काम नहीं करती या उसकी बैटरी डाउन हो जाती है या इंजन के पिस्टन अपनी चरम स्थिति में पहुंच जाते हैं। इस स्थिति में इंजन को स्टार्ट किया जा सकता है यदि उसकी फ्रेंक को किसी तरह घुमाया जा सके। यह कार्य वाहन को गियर में डालकर वाहन को धक्का देने से पूरा किया जा सकता है। धक्का देने से वाहन के पहिए चलते हैं। इससे गियर के माध्यम से इंजन का क्रेंक शाफ्ट घूमने लगता है, जो इंजन को स्टार्ट कर देता है। यदि बिना गियर में डाले वाहन को धक्का दें, तो इंजन कभी स्टार्ट नहीं होगा; क्योंकि उस स्थिति में वाहन के पहिए तो घूमेंगे लेकिन इंजन का क्रेंक शाफ्ट नहीं घूमेगा, जो इंजन स्टार्ट करने हेतु आवश्यक होता है। इन्हीं कारणों से धक्का लगाने पर मोटरगाड़ियां स्टार्ट हो जाती हैं।
अपने हाथ से गुदगुदी क्यों नहीं होती?
अगर गलती से किसी व्यक्ति का हाथ हमें अनजाने में छू जाए, तो हमें गुदगुदी होने लगती है। कुछ लोगों का हाल तो इतना खराब होता है कि दूर से गुदगुदाने का इशारा मात्र उन्हें लोटपोट कर देता है। वहीं अगर हम स्वयं अपने शरीर को गुदगुदाते हैं, तो किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं होती है। हमारे दिमाग में कुछ इस तरह से प्रोग्राम होता है कि उसमें बाहरी संवेग और आंतरिक संवेगों को अलग करने में महारत हासिल होती है। दिमाग सबसे पहले उन संकेतों की अनदेखी करता है, जो आंतरिक होते हैं, यानी जो व्यक्ति स्वयं अपने शरीर पर करता है। जब भी कोई व्यक्ति हमें गुदगुदी मचाता है, तो हंसी उसके कारण होने वाले आकस्मिक भय का ही रूप होती है। जब हम स्वयं अपने को गुदगुदाते हैं, तो हमें किसी तरह का भय नहीं रह जाता है। अपने आप को गुदगुदाने पर यह प्रतिक्रिया दिमाग के जिस हिस्से के कारण नहीं हो पाती है, उसे ‘सेरेबेलम’ कहते हैं और यह दिमाग के पिछले हिस्से में स्थित होता है। यह दिमाग के अन्य हिस्सों को मिलने वाले संवेदात्मक संकेतों को नियंत्रित करने का काम करता है।
गंदे कपड़े धोते समय उन्हें पत्थर पर क्यों पीटते हैं?
हमारे कपड़े प्रायः धूल-मिट्टी तथा कई तरह की चिकनाई आदि से गंदे हो जाते हैं । इस गंदगी को हटाने के लिए हमें पानी के अलावा साबुन आदि का प्रयोग भी करना पड़ता है। साबुन कपड़ों से चिपकी गंदगी को तो अपने में घोलकर पानी के साथ कपड़े हटाने में सहायता करते हैं, लेकिन गंदगी के जो अंश कपड़े के रेशों के अंदर प्रवेश कर जाते हैं, वे वहीं फंसे रह जाते हैं। इसलिए जब हम कपड़ों को किसी पत्थर या फर्श पर पीटते हैं तो फंसे हुए ये धूल आदि गंदगी के कण बाहर आने लगते हैं, जिससे उन्हें आसानी से कपड़ों धोकर हटाया जा सकता है। इसीलिए कपड़ों को साफ करते समय उन्हें पत्थर या फर्श पर फटकारा या पीटा जाता है।
आइसक्रीम से सिरदर्द क्यों होजाता है ? 
शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा होगा, जिसे आइसक्रीम पसंद नहीं होगी। यह ऐसा भोज्य पदार्थ है, जिसे गर्मी तो गर्मी, सर्दी के मौसम में भी खाने का मोह लोग छोड़ नहीं पाते हैं। कुछ लोग काफी इच्छा होने के ” बाद भी आइसक्रीम का सेवन करने से बचते हैं, क्योंकि आइसक्रीम खाते ही उनके सिर में अचानक ही तेज दर्द शुरू हो जाता है। आइसक्रीम के कारण होने वाला सिरदर्द, जिसे आइसक्रीम हैडेक भी कहते हैं, दरअसल मुंह के तापमान में अचानक ही होने वाले परिवर्तन का परिणाम होता है। आइसक्रीम या बर्फ के गोले का तापमान मुंह के तापमान से काफी कम होता है। जैसे ही आइसक्रीम मुंह के ऊपरी हिस्से या तालू के संपर्क में आती है, वैसे ही मुंह में एक तरह की प्रतिक्रिया होती है। तालू में मौजूद तंत्रिका केंद्र आइसक्रीम के कम तापमान पर जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया व्यक्त कर दिमाग को गर्म रखने का प्रयास करता है। इस कारण दिमाग की रक्त वाहिनियां फूल जाती हैं और सिर में दर्द होने लगता है। यह तीक्ष्ण दर्द ज्यादा देर नहीं होकर सिर्फ 30 से 60 सैकंड तक ही होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के सिरदर्द से बचने का उपाय यह है कि जब भी आइसक्रीम खाएं, इस बात का प्रयास करें कि वह तालू को नहीं छुए।
कक्षा में घूमते अंतरिक्षयात्री भारहीनता क्यों अनुभव करते हैं?
जब कोई अंतरिक्षयान अंतरिक्ष में कक्षा की परिक्रमा कर रहा होता है, तो अंतरिक्ष में उसकी रफ्तार धरती के गुरुत्वाकर्षण बल को पूरी तरह प्रतिसंतुलित कर रही होती है। अर्थात् पृथ्वी के चारों ओर घूम रहे अंतरिक्षयान की गति से उत्पन्न हुआ अपकेंद्री बल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव को प्रतिसंतुलित करता है। इस तरह दो विपरीत बलों के प्रतिसंतुलित होने से अंतरिक्ष यान की गुरुत्वाकर्षण अवस्था शून्य हो जाती है। इसी शून्य गुरुत्वाकर्षण अवस्था के कारण ही अंतरिक्ष यान में बैठे अंतरिक्षयात्री भारहीनता का अनुभव करते हैं ।
पेट में गुड़गुड़ाहट होती है ? क्यों
पेट में से आवाज आने को पेट का गुड़गुड़ाना कहा जाता है। लगभग सभी लोगों ने इसे महसूस किया होगा। ऐसा तब होता है जब पेट खाली रहता है और आमाशय की दीवारें भोजन को पचाने के लिए आपस में संकुचित होती हैं। पेट के खाली होने से वहां उपस्थित गैसें और पाचक तत्वों के कारण आवाजें उत्पन्न होती हैं, जिसे हम पेट का गुड़गुड़ाना कहते हैं। हालांकि भूख का पेट के गुड़गुड़ाने से कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन भोज्य पदार्थ की अनुपस्थिति के कारण रक्त में कुछ निश्चित पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। भूख लगने पर मानव मस्तिष्क द्वारा इस बारे में संदेश प्रेषित किया जाता है। यह संदेश आमाशय और आंतों के लिए प्रेषित किया जाता है। रक्त में जैसे ही पोषक तत्वों की कमी होती है, मस्तिष्क से इस आशय का संदेश भेज दिया जाता है और यह संदेश मिलते ही आंतें और आमाशय में यह प्रतिक्रिया होने लगती है। आंतें और आमाशय इस बात के प्रति सतर्क नहीं रहते कि कौन सी चीज उन्हें संतुष्ट करेगी। इसलिए उनमें होने वाली प्रतिक्रिया के फलस्वरूप वहां उपस्थित गैसों और पाचक तत्वों में ही गति होने लगती है। इस कारण पेट से गुड़गड़ाने की आवाजें आने लगती हैं।
तेज दौड़नेवाले दौड़ने हेतु झुकते क्यों हैं?
धावकों को कम-से-कम समय में दौड़ पूरी करनी होती है, तभी वे जीत सकते हैं। इसलिए वे प्रारंभ से ही तेजी से दौड़ना चाहते हैं। झुककर खड़े होने से तुरंत दौड़ने में सहायता मिलती है, इसलिए धावक झुककर खड़े होते हैं। हम जानते हैं कि जब हम सीधे खड़े होते हैं तो हमारा संपूर्ण भार धरती पर पड़ रहा होता है, जिसे धरती का ऊपर की ओर आनेवाला बल संतुलित करता है। इसलिए दौड़ते समय धावक को प्रारंभ से बल मिलने हेतु आवश्यक त्वरण में धरती का बल ही सहायता कर सकता है । यदि धावक खड़ा रहेगा, तो यह धरती बल खड़े रहने में ही संतुलित हो जाएगा; इसलिए धावक झुककर खड़े होते हैं। ऐसा करने से शरीर का भार पैरों पर पड़ने के बजाय हाथ-पैरों में बंट जाता है, अतः झुककर खड़े होने में धरती का त्वरण बल और शरीर भार का बल एक रेखा में नहीं होते। शरीर भार का कुछ अंश पैरों पर होता है तथा शेष झुके भाग का भार धरती के समानांतर होता है। अतः धरती का आंशिक बल ही इस तरह खड़े रहने पर लग रहा होता है। शेष बल क्षैतिज बल के रूप में त्वरण हेतु भावक को मिल जाता है। जिससे धावक को प्रारंभ से ही तेज दौड़ने में सहायता मिलती है। इसीलिए तेज दौड़नेवाले धावक दौड़ने के लिए सीधे खड़े होने के बजाय झुककर खड़े होते हैं।
फल और सब्ज़ी में क्या अंतर है?
आमतौर पर लोग किसी बनने वाले बीजयुक्त गूदेदार भाग को ‘फल’ कहते हैं और दूसरे छोटे-छोटे मुलायम पौधों से प्राप्त होने वाले तनों, पत्तियों और फूलों को जिन्हें भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है, ‘सब्ज़ी’ कहते हैं। लेकिन विज्ञान की दृष्टि से यह परिभाषाएं पूर्णत: ठीक नहीं हैं। वनस्पतिशास्त्र के अनुसार तो पौधों के बीज पैदा करने वाले भाग को फल कहा जाता है और पौधों के दूसरे भागों को, जो भोजन के काम आते हैं, सब्ज़ी कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने फलों को तीन वर्गों में बांटा है – (अ) बीज वाले गूदेदार फल, ( ब ) गुठली वाले फल और (स) सूखे फल, जैसे अखरोट आदि। वनस्पति शास्त्रियों के अनुसार सेम और मटर की फली भी फलों की श्रेणी में आती हैं। खीरा और ककड़ी भी फल हैं। बंदगोभी, फूलगोभी, मूली, शलगम, प्याज, अरबी, आलू आदि सब्जियों में आते हैं लेकिन टमाटर फल है या सब्ज़ी – इस पर अमेरिका में बड़ी बहस हो चुकी है। अंततः इस बात का फैसला वहां के सर्वोच्य न्यायालय को करना पड़ा। वनस्पतिशास्त्र के अनुसार टमाटर एक फल है और उपयोग के आधार पर यह एक सब्ज़ी है। सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि व्यापार की दृष्टि से टमाटर एक सब्ज़ी है, विज्ञान के लिए इसे फल माना जा सकता है।
उच्च वोल्टता की लाइनों के पास भुनभुनाहट की ध्वनि क्यों सुनाई देती है ?
जब हम सितार के तार को छोड़ते हैं, तो उससे आवाज आने लगती है। इसी तरह उच्च वोल्टता की विद्युत् लाइनों के पास भुनभुनाहट की आवाज सुनाई पड़ती है। लेकिन इसका बिजली की उच्च वोल्टता आदि से कोई संबंध नहीं होता है। होता यह है कि उच्च वोल्टता की बिजली के तार ऊंचे खंभों के बीच में लटके होते हैं। इनके आसपास बह रही हवा के कारण वे अनुनादी कंपन करने लगते हैं। इसी अनुनादी कंपन के कारण ध्वनि पैदा होने लगती है, जो हमें उच्च वोल्टता की बिजली की लाइनों के पास भुनभुनाहट की तरह सुनाई देती रहती है।
सर्दियों में बर्फबारी क्यों होती है ?
अभी तक यह माना जाता है कि जब मौसम बेहद ठंडा हो जाता है, तभी बर्फबारी होती है। इस बर्फबारी के कारण ऐसा महसूस होता है जैसे वातावरण में थोड़ी गरमाहट आ गई हो। यह बात सही नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब जमकर सर्दी पड़ रही हो, तब अगर मौसम में थोड़ी सी गरमाहट होती है, तो यही बर्फबारी का कारण बनती है। आइए जानें क्यों होती है बर्फबारी ? सर्दी के मौसम में हवा में नमी रखने की क्षमता काफी कम हो जाती है। इस कारण जो वाष्प हवा को नमी नहीं दे पाती है, वह कोहरा बन जाती है। ऐसे मौसम में वाष्पीकरण की प्रक्रिया भी काफी धीमी हो जाती है और आर्द्रता भी कम हो जाती है। ऐसे मौसम में बर्फबारी नहीं होती है, लेकिन जैसे ही गर्म हवा ऐसे क्षेत्र में प्रवेश करती है, उसकी वाष्प को सोखने की क्षमता बढ़ जाती है और वाष्प जमने लगती है। यही जमी हुई वाष्प बर्फ की तरह जमीन पर गिरने लगती है और मौसम के भी अपेक्षाकृत थोड़ा गर्म होने का अहसास कराती है।
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