ऐसा क्यों और कैसे होता है -5

ऐसा क्यों और कैसे होता है -5

गैस लाइटर के अगले सिरे को छूकर चलाने पर करंट क्यों लगता है ?

गैस के इलेक्ट्रॉनिक लाइटरों में उच्च वोल्टता की बिजली से स्पार्क, अर्थात् चिंगारी पैदा की जाती है। गैस लाइटर में एक दाब विद्युत् क्रिस्टल का होता है, जिसे दबाने से बिजली पैदा होती है। जब लाइटर के बटन को दबाया जाता है, तो उससे क्रिस्टल दबता है और उससे बिजली का वोल्टेज पैदा होता है। यह वोल्टेज स्टार्टर में लगे एक इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के द्वारा बढ़ाया जाता है और इसे स्टार्टर के सिरे पर लगे दो इलेक्ट्रोड के बीच के अंतर से कुदाया जाता है, जिससे लाइटर में शक्तिशाली चिंगारी पैदा हो जाती है। इसी चिंगारी को गैस चूल्हे में गैस को जलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
अब ऐसे गैस लाइटर के आखिरी सिरे को हाथ या शरीर के किसी भी भाग पर रखकर चलाएंगे तो स्पार्क की जगह बिजली लाइटर के शरीर से छू रहे स्थान के द्वारा गुजरेगी और परिणामस्वरूप बिजली का झटका लगेगा ही। इसीलिए गैस लाइटर के आखिरी सिरे को हाथों आदि से छुआकर चलाने पर बिजली के करंट का झटका लगता है।
भूकंप क्यों आते हैं ?
भूकंप का नाम सुनते ही थरथराती जमीन, डोलते मकान, भरभराकर गिरती इमारतों सहित एक भयानक तस्वीर जेहन में आ जाती है। आइए जानें क्यों आते हैं ये भूकंप ? दरअसल, भूकंप धरती की आंतरिक सतह पर होने वाली एक निरंतर प्रक्रिया है। धरती की बाह्य ऊपरी सतह पतली और प्रायः ठंडी होती है, वहीं धरती की आंतरिक सतह में पाई जाने वाली चट्टानें अत्यधिक गर्म होती हैं। धरती की सतह पर छोटी-बड़ी कई दरारें होती हैं, जिन्हें फॉल्ट्स नाम से जाना जाता है। यह फॉल्ट्स सैकड़ों मील लंबाई में फैली होती हैं। चूंकि यह धरती के अंदर बहुत गहराई में होती हैं, इसलिए इन्हें देखा नहीं जा सकता। धरती के भीतर स्थित परतें एक-दूसरे से मजबूती से कसी रहती हैं। उनका एक-दूसरे पर लगा यह शक्तिशाली बल या कसाव उन्हें अत्यंत धीमे-धीमे विस्थापित करता है। जब विभिन्न दिशाओं से दो परतों पर बल लगता है, तो वे आपस में लंबे समय (कई वर्षों) तक जुड़ी रहती हैं। लंबे समय तक इतना बल लगने से एक समय अचानक वे टूट जाती हैं। धरती के गर्भ में हुई इस घटना से उठे कंपन, धरती की बाह्य सतह तक आते हैं और चारों तरफ फैल जाते हैं। इसे ही हम भूकंप कहते हैं ।
समान तापमान पर गलीचे की तुलना में पत्थर का फर्श ठंडा क्यों लगता है ?
हां, संगमरमर के फर्श पर ठंडक अनुभव होती है लेकिन गलीचे पर ऐसा नहीं होता। इसका कारण यह है कि जब हम संगमरमर के फर्श के संपर्क में आते हैं, तो हमारे शरीर की ऊष्मा संगमरमर में बड़ी तेजी से स्थानांतरित होने लगती है, जबकि गलीचे में ऊष्मा के स्थानांतरण की दर बहुत कम होती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि संगमरमर ऊष्मा की अच्छी सुचालक होती है, जबकि गलीचा नहीं होता। इसलिए संगमरमर और गलीचे में उनकी ऊष्मा सुचालकता के अंतर के कारण हमें गलीचे की तुलना में संगमरमर से पैरों को अधिक ठंडक मिलती है।
वीडियोफोन में चित्र क्यों दिखता है?
वीडियो टेलीफोन एक ऐसी संचार व्यवस्था है, जिसमें एक साथ बातचीत और चित्र दोनों ही प्रेषित होते हैं तथा प्राप्त होते हैं। इस व्यवस्था द्वारा एक ओर बैठा हुआ व्यक्ति दूसरी ओर बैठे हुए व्यक्ति की तस्वीर देख सकता है तथा उसकी बात भी सुन सकता है। दूसरी ओर का व्यक्ति भी इस ओर के व्यक्ति की तस्वीर देख सकता है और बात सुन सकता है। एक समूची वीडियो टेलीफोन व्यवस्था में एक कैमरा होता है, चित्रों को प्रदर्शित करने की व्यवस्था होती है और एक माइक्रोफोन और स्पीकर फोन होता है। ये यंत्र, आवाज तथा चित्र दोनों को विद्युत संकेतों के रूप में भेजते तथा प्राप्त करते हैं। दूरस्थ स्थानों पर संदेश भेजने के लिए तारों की व्यवस्था होती है। इसमें एक स्विचिंग पद्धति भी होती है, जिसके द्वारा तस्वीर देखी जा सकती है। प्रेषण बिंदु पर आवाज और तस्वीर ही विद्युत संदेशों में बदल जाती है। ये संदेश संचरण व्यवस्था द्वारा दूरस्थ स्थान तक प्रेषित हो जाते हैं और ग्राही यंत्र (टेलीफोन) पर ये संदेश फिर से ध्वनि और तस्वीर में बदल जाते हैं, जो दूरस्थ स्थान पर बैठे हुए व्यक्ति द्वारा सुन और देख लिये जाते हैं।
गरम पानी की थैली से सेंकने पर दर्द कम क्यों हो जाता है ?
अभी तक इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है, फिर भी गरम थैली से दर्द कम होने के बारे में कुछ मान्यताएं अवश्य हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि हमें किसी भी स्थान पर दर्द तब मालूम पड़ता है, जब दर्द के स्थान में गुजर रही कुछ दर्द नाड़ियों में चुनचुनाहट आदि होने लगती है। जब इसकी सूचना मस्तिष्क में पहुंचती है, तो हमें दर्द मालूम होता है। अतः जब गरम पानी की थैली दर्द के स्थान पर रखते हैं तो वहां की तनावपूर्ण तथा दर्द भरी पेशियों को गरमाहट के कारण कुछ राहत मिलती है और वहां रक्त का संचार बढ़ जाता है, जो दर्द कम करने में सहायता करता है। लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि गरम थैली से दर्द की नाड़ियों और बिना दर्द की नाड़ियों, दोनों में ही चुनचुनाहट पैदा हो जाती है। और जब इन दोनों की सूचना मस्तिष्क को पहुंचती है, तो वहां भ्रम उत्पन्न हो जाता है, अतः दर्द अनुभव नहीं होता। इसके अतिरिक्त यह भी संभावना है कि दर्द होने पर उसे दूर करने के लिए मस्तिष्क द्वारा ‘एंडोर्फिन’ भेजी जाती है। अतः गरम थैली द्वारा रक्तसंचार बढ़ जाने से इसकी मात्रा भी अधिक पहुंच जाती हो और दर्द में राहत मिलती है। खैर, कारण चाहे जो भी हो, बहरहाल यह सच है कि दर्द के स्थान पर गरम पानी की थैली रखने से दर्द में कुछ राहत अवश्य मिलती है।
लेथ मशीन का उपयोग क्यों किया जाता है ?
लेथ कार्यशालाओं में प्रयोग होने वाली एक बहुत ही महत्वपूर्ण मशीन है। यह मशीन लकड़ी, धातु और प्लास्टिक को विभिन्न आकार देने के लिए प्रयोग की जाती है। इसकी सहायता से चूड़ियां (थ्रेड) भी काटी जा सकती हैं। लेथ में खिसकने वाला एक ‘टेलस्टॉक’ होता है, जो वर्कपीस (जिसे काटा जाना है) का केंद्र स्थापित करने के काम आता है। इसी टेलस्टाक के साथ ड्रिलबिट लगाकर वर्कपीस में छेद भी किया जा सकता है। लेथ मशीनें इतना सही काम करती हैं कि काटने और रूप देने की क्रियाएं एक सेंटीमीटर के हजारवें भाग तक ठीक-ठीक कर सकती हैं। सबसे अधिक प्रयोग में आने वाली लेथ को ‘सेंटर लेथ या ईंजन लेथ’ कहते हैं। एक दूसरे प्रकार की प्रसिद्ध लेथ को ‘टरैट लेथ’ कहते हैं। काटने के लिए टरैट में छह टूल लगाए जा सकते हैं। इनका लाभ यह है कि मशीन को बिना बंद किए अलग-अलग टूलों का प्रयोग किया जा सकता है। इस मशीन का दूसरा लाभ यह है कि एक बार टूल को समायोजित करके बहुत से वर्कपीस काटे जा सकते हैं।
खड़े होने की अपेक्षा बैठने पर अधिक आराम क्यों मिलता है ?
स्कूल में जब मास्टरजी नाराज हो जाते हैं, तो प्रायः बच्चों को खड़े होने की सजा दे देते हैं । संभवतः खड़े होने की सजा इसीलिए दी जाती है, क्योंकि बैठे रहने की अपेक्षा खड़े रहने पर आराम कम मिलता है। हमें आराम मिलने का सीधा संबंध इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे शरीर का भार कितने क्षेत्र पर विभाजित हो रहा है। यदि भार अधिक क्षेत्र पर बंट रहा है, तो आराम मिलेगा और कम क्षेत्र पर पड़ रहा है, तो आराम के बजाय कष्ट मिलेगा।
जब हम खड़े होते हैं, तो हमारा सारा भार पैरों पर उनकी एड़ी और पंजों पर आ जाता है। इससे इनकी मांसपेशियों पर एक तरह का भारी दबाव पड़ता और पेशियों को अधिक कार्य करना पड़ता है, है अतः दबाव और अधिक कार्य के कारण हमें थकान अनुभव होती है। लेकिन जब हम बैटे होते हैं, तो हमारे शरीर का भार अधिक क्षेत्र पर बंट जाता है, अतः हम विशेष दबाव का अनुभव नहीं करते और अतः पेशियों को कार्य भी कम करना पड़ता है, खड़े रहने की तुलना में बैठने पर अधिक आगम मिलता है।
कुछ लोग पैर क्यों हिलाते हैं?
कुछ लोग बैठे-बैठे अकारण ही पैर हिलाने लगते हैं। अधिकांश लोग ऐसा अनजाने में करते हैं, जो दूसरों को और कभी-कभी खुद को भी तकलीफ दे देता है। दरअसल पैरों को इस प्रकार से हिलाते रहना एक प्रकार की बीमारी कहलाती है, जिसे ‘रेस्टलेस लैग्स सिंड्रोम’ कहते हैं। इसमें व्यक्ति को अपने पैर हिलाने की इच्छा होती है। कभी-कभी तो यह इच्छा इतनी बलवती होती है कि व्यक्ति इस पर नियंत्रण ही नहीं रख पाता है। ऐसा अकसर तब होता है, जब व्यक्ति आराम की अवस्था में होता है या फिर सोने वाला होता है। ऐसे में व्यक्ति तब तक अपने पैरों को हिलाता रहता है, जब तक उसे नींद न आ जाए | रेस्टलेस लैग्स सिंड्रोम होने की मुख्य वजह ज्यादा देर तक पैरों का स्थिर रह जाना अथवा गतिशील न हो पाना है। यह अकसर लंबी यात्राओं के दौरान या लंबे समय तक ऑफिस आदि में बैठे रहने के कारण होता है। शुरुआत में तो यह सामान्य सा प्रतीत होता है, लेकिन एक उम्र के पश्चात इसके कारण अनिद्रा, अवसाद, चिंता और थकान जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं।
वृद्धावस्था में त्वचा पर झुर्रियां क्यों पड़ जाती हैं?
त्वचा पर झुर्रियां पड़ना बुढ़ापे की निशानी माना जाता है। प्रायः ऐसा उम्र के साथ त्वचा के अंदर होने वाले परिवर्तनों के परिणामस्वरूप होता है। हमारी त्वचा का भीतरी भाग दो तरह के प्रोटीन तंतुओं से बना होता है। इनमें एक ‘कोलैजन’ तथा दूसरा ‘ऐलास्टिन’ कहलाता है । कोलैजन एक तरह से त्वचा के ऊतकों के निर्माण की सामग्री उपलब्ध कराता है। जबकि ऐलास्टिन का कार्य त्वचा को मुलायम और लचीला करना होता है। इन्हीं के कारण त्वचा पर झुर्रियां न होकर वह चौरस और साफ-सुथरी होती है। इसमें ऐलास्टिन की मात्रा पहले ही कम होती है, इसलिए इसकी और कमी होने पर त्वचा का स्वरूप बदलने लगता है।
बढ़ती उम्र के साथ कोलैजन बेतरतीब अथवा असंगठित होने लगते हैं और ऐलास्टिन की मात्रा घटने लगती है। इतना ही नहीं, कोलैजन तंतु असंगठित होने के साथ परस्पर गुंफित भी होने लगते हैं। इससे त्वचा की चौरसता और लचीलापन कम होने लगता है और धीरे-धीरे बुढ़ापे में त्वचा पर झुर्रियां पड़ने लगती हैं।
चमगादड़ उलटे क्यों लटकते हैं?
चमगादड़ एक ऐसा जीव है जो ज्यादातर खंडहरों में ही पाया जाता है। यह एक निशाचर प्राणी होता है। इसे पेड़ों की शाखाओं पर उलटा लटक कर आराम करते हुए देखा जा सकता है। चमगादड़ एकमात्र ऐसा स्तनपायी जीव है, जो उड़ सकता है। इसके पंखों की लंबाई 6 इंच से लेकर 6 फुट तक होती है। इनके पैरों की मांसपेशियां कमजोर होती हैं, इसीलिए इन्हें उलटे लटके रहना पड़ता है। चमगादड़ अंडे न देकर सीधे बच्चों को जन्म देता है एवं स्तनपान कराता है इसीलिए नवजात शिशुओं के पास भी अपनी मां के साथ उलटे लटकने अलावा कोई चारा नहीं होता। चमगादड़ के बारे में एक गलत धारणा यह भी है कि यह रात में बहुत साफ देख सकता है और इसकी दिन में देख पाने की क्षमता बहुत कम होती है। वास्तव में चमगादड़ प्रतिध्वनि प्रणाली पर काम करता है । वह एक उच्च आवृत्ति की ध्वनि निकालता है, जिसे मानव अपने कानों से नहीं सुन सकता है, जब वह ध्वनि किसी वस्तु से टकराकर वापस लौटती है, तो चमगादड़ को इस बात का अहसास हो जाता है कि उसके रास्ते में कोई वस्तु या बाधा है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *