ऐसा क्यों और कैसे होता है -33
ऐसा क्यों और कैसे होता है -33
फूलों में सुगंध क्यों होती है ?
जब हम फूलों के किसी बगीचे से गुजरते हैं, तो फूलों की सुंदरता, मनमोहक रंग, पुष्परस और सुगंध बरबस ही हमें अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। वास्तव में फूलों में ये सब चीजें कीट-पतंगों को आकर्षित करने के लिए बनी हैं। फूलों की सुगंध, रंग और रस के कारण कीट-पतंगे इनकी ओर आकर्षित होकर इन पर बैठते हैं, तो अपने साथ ही वे फूलों के परागकणों को दूसरे फूलों तक ले जाते हैं। इन्हीं परागकणों से फूलों में गर्भाधान की क्रिया होती है, जिसके फलस्वरूप बीजों का जन्म होता है। इन्हीं बीजों से पेड़-पौधों का वंश चलता है। फूलों में अलग-अलग तरह के तेल होते हैं और इनके कारण ही उनमें सुगंध होती है। फूलों की कम से कम दो लाख प्रजातियां हैं। कुछ फूल सिर्फ 0.4 मिलीमीटर के होते हैं, तो कलेसिया जैसे कुछ फूल 90 सेंटीमीटर व्यास के होते हैं। फूलों को रंग देने का काम एंथोसाइनिन नामक पिगमेंट करता है। इसके कारण फूलों में लाल, नीला और बैंगनी रंग आता है, जबकि प्लास्टिड नामक पिगमेंट फूलों को अलग रंग देता है। ये सारे पिगमेंट फूलों के रस में मिले होते हैं। फूलों को हरा रंग क्लोरोफिल और केरोटिन की उपस्थिति के कारण मिलता है।
मृत सागर क्या है?
मृत सागर एक ऐसी खारी झील है जो जोर्डन और इजराइल के बीच में स्थित है। यह लगभग 80 किलोमीटर लंबी और 5 से 20 किलोमीटर चौड़ी है। समुद्र-तल से ऊंची होने के बजाय यह समुद्र तल से लगभग 400 मीटर नीची है। कहा जाता है कि यह कभी समुद्र की सतह से लगभग 430 मीटर ऊंची थी। तब इसमें जीव-जंतु रहते थे लेकिन आज इसमें कोई भी जीव-जंतु नहीं रहता है। इससे कोई नदी निकलने के बजाय इसमें जोर्डन नदी तथा अनेक नाले मिलते हैं और घुलनशील नमक को अपने साथ लाकर इसमें नमक की मात्रा बढाते रहते हैं।
सामान्यत: अन्य समुद्रों में नमक की मात्रा 4 से 5 प्रतिशत पाई जाती है लेकिन मृत सागर के पानी में यह मात्रा सर्वाधिक 25 प्रतिशत के लगभग है। इतना ही नहीं, इसमें पाए जानेवाले साधारण लवणों के अतिरिक्त जहरीले पदार्थ भी पाए जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि अन्य समुद्रों के पानी को तो चखकर देखा जा सकता है परंतु इसे तो चखा भी नहीं जा सकता, क्योंकि इसे चखते ही खारेपन के स्वाद के साथ चखनेवाला बीमार होने लगता है। अतः इस सागर के पानी में कोई भी जीव-जंतु जीवित नहीं रह पाता है । जोर्डन नदी एवं अन्य नालों के साथ आनेवाले जीव तथा अन्य समुद्री जीव इस सागर के पानी में प्रवेश करते ही मर जाते हैं। अतः यह सागर एक तरह से मौत का सागर है, इसीलिए इसे मृत सागर कहा जाता है।
विशेष स्थिति में डर क्यों लगता है?
जीवन के दौर में बहुत से ऐसे लोग देखने को मिलते हैं, जो कुछ विशेष स्थितियों से बहुत डरते हैं। कुछ लोग खुली जगह में जाने से डरते हैं, तो कुछ बंद स्थानों में जाने से। बहुत-से लोग ऐसे भी हैं, जो पानी, ऊंचाई, फाउंटेन, भीड़, अजनबी लोगों और जानवरों से डरते हैं। क्या आप जानते हैं कि विशेष स्थितियों में डर क्यों लगता है? अस्वाभाविक डर को हिंदी में दुर्भीति और अंग्रेजी में फोबिया कहते हैं। फोबिया खास तरह की मानसिक आकुलता होती है, जिसमें व्यक्ति को कुछ खास परिस्थितियों या वस्तुओं से बिना किसी कारण के डर लगता है। फोबिया से पीड़ित व्यक्ति की मुख्य समस्या होती है कि वह अपने मन में डर पैदा करने वाली वस्तु या स्थिति से बचने लिए कुछ भी कर सकता है। यह अनुचित डर होता है, जो मन के उन्माद के कारण एक रोग का रूप ले लेता है। विशेषज्ञों के मुताबिक किसी घटना से बचपन में व्यक्ति के मन में कोई डर बैठ जाता है और यही डर जीवन भर चलता रहता है। आमतौर पर बचपन में डर पैदा करने वाली घटना को लोग भूल जाते हैं। बचपन की उस घटना को याद दिलाकर, जिससे भय पैदा हुआ है, इन रोगों का इलाज किया जाता है।
दूध जमकर दही में कैसे बदल जाता है ?
दूध ऐसा पौष्टिक आहार है जिसमें स्वास्थ्य के लिए आवश्यक लगभग सभी पोषक तत्त्व उपस्थित होते हैं। तभी तो जब बच्चा पैदा होता है तो सबसे पहले आहार के रूप में वह मां का दूध पीना प्रारंभ करता है। जब दूध में जामन मिलाया जाता है तो वह दही में बदल जाता है। ऐसा होने का कारण यह है कि दूध में अन्य पदार्थों के साथ-साथ केसीन नामक प्रोटीन भी होती है। इसी के कारण दूध का रंग दूधिया होता है। जब दूध को जमाया जाता है तो उसमें पहले से जमे हुए दही का थोड़ा-सा जामन डाला जाता है। इस जामन से दूध में लैक्टिक एसिड (लैक्टोबैसिल्स) बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं और दूध की केसीन प्रोटीन के साथ क्रिया करने लगती है, और धीरे-धीरे दूध जमकर दही का रूप ले लेता है। इस तरह दूध का जमकर दही बनना एक तरह से लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया और केसीन प्रोटीन के बीच होनेवाली जमन क्रिया का ही परिणाम होता है।
टीके लगवाना क्यों जरूरी होता है ?
छूत की बीमारियों से बचने के लिए टीके से लगवाना एक महत्वपूर्ण उपाय है। जिन लोगों को किसी प्रकार की बीमारी के टीके लगा दिए जाते है, उन्हें वह विशेष बीमारी नहीं होती। क्या आप जानते हैं कि उपर्युक्त सावधानी के अलावा भी टीके लगवाना क्यों जरूरी है? दरअसल टीका लगाने से शरीर कीटाणु नाशक जीवाणु पैदा करने लगता है। ये कीटाणुनाशक जीवाणु शरीर पर हमला करने काले रोग के कोटाणुओं को नष्ट कर देते हैं। कुछ टोकों में उस विशेष रोग से मरे हुए बैक्टीरिया, वायरस या सूक्ष्म जीवाणु होते हैं। कुछ अन्य प्रकार के टोकों में रासायनिक रूप से सुधारा गया विष होता है। यह जिश रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं द्वारा उत्पन्न किया जाता है। एक प्रकार के वैक्सीन में जीवित कोट्नु होते हैं, जो रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणुओं से घनिष्ठ संबंध रखते हैं। टोका लगवाने से हमारा शरीर दो प्रकार से कीटाणुओं के विरुद्ध लड़ने की शक्ति प्राप्त करता है। रोगों की कीटाणुओं से प्राप्त होने वाली यह शक्ति दो प्रकार की होती हैं. एक सक्रिय और दूसरी निष्क्रिय।
जलने के बाद भी मोम नष्ट क्यों नहीं होता?
क्या आप जानते हैं कि मोमबत्ती के जलने के बाद भी मोम नष्ट क्यों नहीं होता? दरअसल, जलना वास्तव में एक रासायनिक परिवर्तन है, जो ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है। इस क्रिया में न तो पदार्थ नष्ट होता है और न ही पैदा होता है, केवल उसका रूप बदल जाता है। मोमबत्ती में लगे धागे के जलने से जो मोम पिघलता है, पृष्ठ तनाव के कारण धागे में ऊपर चढ़ता रहता है। मोम एक जटिल पदार्थ हैं, जो कार्बन और हाइड्रोजन तत्वों से मिलकर बना है। जलने की क्रिया में कार्बन वायु की ऑक्सीजन से मिलकर कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैसें बनाता है, जो हमें दिखाई नहीं देतीं। ऐसे ही हाइड्रोजन और ऑक्सीजन मिलकर पानी बनाते हैं, जो जलती हुई मोमबत्ती से भाप बनकर उड़ जाता है। कुछ अधजला कार्बन मोमबत्ती से धुएं (काजल) के रूप में बाहर आता है। इस प्रकार मोमबत्ती का मोम जलने की क्रिया में कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, पानी और काजल में बदल जाता है। मोमबत्ती के जलने की क्रिया में उसमें उपस्थित पदार्थ के दूसरे पदार्थों में बदलने के कारण मोम नष्ट नहीं होता है ।
फाउंटेन पेन की निब लिखते समय चिर क्यों जाती है?
जब फाउंटेन पेन से लिखना आरंभ करते हैं तो पेन की नली में भरी हुई स्याही निब के सहारे निकलकर कागज पर आने लगती है, और जैसे-जैसे निब आगे चलती जाती है, यह कागज पर सूखती हुई अपना निशान छोड़ती जाती है। यही निशान एक समान मोटाई की रेखा के रूप में लिखते समय काम आते हैं और हम जैसा भी अक्षर लिखना चाहें लिख लेते हैं। यहां यह जान लेना जरूरी है कि प्लास्टिक की जिस जीभ पर फाउंटेन पेन की निब चढ़ी होती है उस जीभ के सहारे गुरुत्वाकर्षण और पृष्ठीय तनाव के कारण स्याही निब के बीच में बने छेद के पास आकर एकत्र हो जाती है। जब हम लिखते हैं तो कागज पर कलम के पड़नेवाले दबाव से निब चिर जाती है और यह चिरा हुआ भाग एक तरह से बहुत पतली नली अथवा कोशिका की तरह कार्य करता है। इसके परिणामस्वरूप स्याही कोशिकीय बल के द्वारा खिंचकर कागज पर आने लगती है। और जब कलम उठाते हैं तो निब का चिरा हुआ भाग पुनः अपने स्थान पर आकर बंद हो जाता है, अतः स्याही आनी भी बंद हो जाती है। इस तरह फाउंटेन पेन की निब का चिरना और बंद होना लिखने के लिए बहुत आवश्यक है क्योंकि यह स्याही को निकालने और रोकने के लिए नली और वाल्व दोनों का कार्य करता है। इसीलिए फाउंटेन पेन की निब लिखते समय चिर जाती है।
गंगा नदी को पवित्र क्यों माना जाता है?
गंगा भारत की सबसे प्रसिद्ध नदी है। यह हिमालय पर्वत से निकलकर बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। क्या आप जानते हैं कि गंगा को पवित्र नदी क्यों माना जाता है? गंगा को पवित्र नदी माने जाने के दो कारण हैं एक तो इसका पानी बोतलों में रखने पर बहुत दिनों तक खराब नहीं होता। इसमें कुछ ऐसे खनिज पदार्थ मिले हुए हैं, जो पानी को सड़ने नहीं देते। इस आधार पर लोगों ने गंगा को पवित्र नदी मानना शुरू कर दिया। दूसरा कारण एक प्रचलित लोक कथा भी है, जिसके कारण गंगा की महिमा और भी अधिक बढ़ गई।
इस लोक कथा के अनुसार गंगा पहले स्वर्ग में बहा करती थी। सगर नाम के राजा के 60 हजार पुत्र थे, जो किसी ऋषि के शाप से मर गए थे, उनके उद्धार के लिए गंगा को भागीरथ स्वर्ग से धरती पर लाए थे। तभी से इसे उद्धार करने वाली माना जाने लगा है। इसकी लंबाई 2506 किमी है, लंबाई में एशिया की नदियों में इसका 15 वां स्थान है और संसार में 39वां । हिमालय से निकलकर यह ऋषिकेश में आती है और वहां से हरिद्वार के मैदान में आ जाती है।
बिजली का झटका घातक क्यों होता है ?
विद्युत या बिजली की धारा चांदी, तांबा, लोहा और एल्यूमीनियम जैसी धातुओं के अंदर से अधिक आसानी के साथ गुजर जाती है। ऐसी धातुओं को बिजली का सुचालक कहा जाता है। लकड़ी, हवा, शीशा, पोर्सिलेन, रबर, प्लास्टिक आदि जैसी चीजें बिजली की धारा के बहाव में बहुत बाधा डालती हैं, अतः इन्हें कुचालक कहते हैं। विद्युत धारा के लिए हमारे शरीर का प्रतिरोध बहुत ही कम है, सिर्फ हमारी त्वचा का प्रतिरोध ही मुख्य है। सूखी त्वचा का प्रतिरोध गीली त्वचा की अपेक्षा 100 से 600 गुना अधिक होता है। इसी कारण पानी से गीले शरीर को अधिक भयंकर झटका लगने का डर रहता है। जब हमारे शरीर का कोई अंग बिजली के किसी नंगे तार या उपकरण से स्पर्श करता है, तो विद्युतधारा उस अंग से होती हुई धरती की ओर प्रवाहित होने लगती है। विद्युतधारा के इस प्रवाह को हम झटके के रूप में महसूस करते हैं।
आग पानी से क्यों बुझ जाती है?
प्राय: आग लग जाने पर लोग पानी उड़लेकर उसे बुझाते देखे जाते हैं और पानी डालने से आग बुझ भी जाती है। पर ऐसा क्यों होता है? यह तो सभी जानते हैं कि आग लगने या जलने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही जलने के लिए ईंधन सूखा होना चाहिए। ईधन गीला होने पर उसमें आग नहीं लगती, बल्कि गीला ईंधन सुलग-सुलगकर धुंआ देता रहता है और जलता नहीं है। इसका मतलब यह है कि ऑक्सीजन के साथ-साथ जलने के लिए लकड़ी का सूखा होना भी आवश्यक है जिससे उसका तापमान ज्वलन-बिंदु तक पहुंच सके, और वह जलना प्रारंभ करे।
आग बुझाने के लिए इसी सूत्र का उपयोग करके जलती आग पर पानी डाला जाता है। ऐसा करने से एक तो ईंधन गीला हो जाता है और आसानी से जलता नहीं है, दूसरे जलते ईंधन का तापमान भी पानी डालने के कारण अपने ज्वलन – बिंदु से कम हो जाता है। ये दोनों ही स्थितियां आग जलने में सहायता नहीं करतीं, अतः पानी डालने से आग बुझ जाती है।
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