ऐसा क्यों और कैसे होता है -32
ऐसा क्यों और कैसे होता है -32
केले को उपयोगी क्यों माना जाता है ?
केले के लिए कहा जाता है कि यह स्वास्थ्य के लिए एक बहुत ही उपयोगी फल है। केले की लगभग दो सौ किस्में हैं और इसका पौधा 609. 60 सेमी से 914.4 सेमी तक बढ़ता है। यह उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में पैदा होता है। सबसे पहले केले का पौधा दक्षिण-पूर्व एशिया और इंडोनेशिया के जंगलों से प्राप्त हुआ था। गर्म प्रदेशों में केले के पौधे खूब उगाए जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि स्वास्थ्य के लिए केला उपयोगी क्यों है? विशेषज्ञों के मुताबिक केला शरीर की गर्मी को दूर करता है। केले के गूदे में 74 प्रतिशत पानी, 20 प्रतिशत चीनी, 2 प्रतिशत प्रोटीन, 1.5 वसा, 1 प्रतिशत सेल्यूलोज और शेष विटामिन होते हैं। विटामिनों में मुख्य रूप से ए, बी और सी होते हैं। इन सभी पदार्थों के कारण केला हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही उपयोगी है। प्राकृतिक चिकित्सा में कुछ रोगों में मरीज को केला खाने के लिए दिया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार केले में उपस्थित चीनी शरीर में शर्करा की मात्रा को संतुलित करती है। सूखे केले से बनाया गया आटा डाइबिटीज के रोगियों के लिए, जबकि केले के तने का सेवन रक्त शर्करा के मरीजों के लिए लाभदायक हैं
प्यास बुझाने के लिए ठंडा पानी ही क्यों पसंद किया जाता है ?
प्यास बुझाने के लिए ठंडा पानी ही क्यों पसंद किया जाता है, यह बात अभी पूरी तरह से ज्ञात नहीं है। लेकिन जो भी जानकारी उपलब्ध है उसके अनुसार हमारे के आधार केन्द्र पर नर्व सैल, अर्थात् तंत्रिका कोशिकाओं का समूह होता है। जिनकी सहायता से प्यास केंद्र को मालूम पड़ता है कि खून में पानी की कमी हो गई है। इसके अलावा जब हमारे गले में खुश्की आने लगती है तो प्यास केंद्र को प्यासे होने की जानकारी होने लगती है। गले में खुश्की की सूचना वहां से गुजरनेवाली तंत्रिकाओं के माध्यम से दिमाग को मिलती रहती है। जब पानी पीते हैं तो गरम या सामान्य पानी की अपेक्षा ठंडे पानी से गले की इन तंत्रिकाओं को पर्याप्त आराम मिलता है, जिससे प्यास के बुझने का आभास होता है और हम संतुष्टि अनुभव करते हैं। इसीलिए प्यास बुझाने के लिए ठंडा पानी पीना पसंद किया जाता है।
जानवर जुगाली क्यों करते हैं?
गाय, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट आदि ऐसे जानवर हैं, जो जुगाली करते हैं। इनको रूमीनेंट कहते हैं। ये जानवर जल्दी-जल्दी अपना भोजन, जैसे – घास, पेड़ों की पत्तियां आदि खा लेते हैं और फिर आराम से बैठकर खाए हुए भोजन को पेट से दुबारा मुंह में लाकर भली प्रकार से चबाते हैं। चबाने की इस क्रिया को जुगाली करना कहा जाता है। ये जानवर चबाए गए भोजन को फिर से पेट ” में ले जाते हैं, जहां यह पच जाता है। जानवरों का पेट चार हिस्सों में बंटा होता है। पहले हिस्से को पाउंच या रूमन, दूसरे को रेटीकलम या हनीकोम बैग, तीसरे को ओमासम या मेनीप्लाइज और चौथे को एबोमासम या टूस्टमक कहते हैं। निगला हुआ भोजन सबसे पहले पेट के प्रथम भाग में जाता है। यहां यह कुछ रसों द्वारा मुलायम हो जाता है। यहां से भोजन पेट के दूसरे हिस्से में पहुंचता है। इस हिस्से में यह जुगाली करने लायक हो जाता है । इसके बाद जानवर अपने खाए हुए भोजन को मुंह में वापस लाकर काफी देर तक चबाते रहते हैं। जुगाली करने के बाद यह भोजन पेट के तीसरे भाग में पहुंच जाता है। तीसरे हिस्से में इसमें कुछ पाचक रस और मिल जाते हैं। अंत में इस भाग से पेट की मांसपेशियों द्वारा यह भोजन चौथे भाग आमाशय में पचने के लिए भेज दिया जाता है।
लेमिंग आत्महत्या क्यों करते हैं?
लेमिंग चूहों से मिलते-जुलते ऐसे प्राणी हैं, जो कुतर कर खाने वाले जंतुओं की श्रेणी में आते हैं। इनका रंग भूरा होता है। ये प्रायः उत्तरी गोलार्द्ध के ठंडे भागों अलास्का, उत्तरी पश्चिमी कनाडा, नार्वे, स्वीडन आदि देशों में अधिक संख्या में मिलते हैं। इनकी लंबाई 12 से 16 सेमी (5 से 6 इंच ) तक होती है। लेमिंग बड़े ही विचित्र जंतु हैं। जब किसी क्षेत्र में इनकी संख्या बहुत अधिक हो जाती है, तंब ये बड़ी संख्या में समुद्र में कूदकर मर जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि ये जंतु ऐसा क्यों करते हैं? मादा लेमिंग एक वर्ष में दो बार बच्चे पैदा करती है। प्रारंभ में यह एक बार में तीन से पांच बच्चों को जन्म देती है, लेकिन तीन वर्ष बाद एक मादा पांच के बजाय दस बच्चों को जन्म देने लगती है। भोजन की कमी और संख्या बढ़ने के कारण इनका जीना मुश्किल हो जाता है। तब ये जानवर समुद्र की ओर चल पड़ते हैं। खेत खलिहान, जंगलों को पार करते हुए ये नदी या समुद्र में कूद पड़ते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार लेमिंग आत्महत्या नहीं करते वरन भोजन वाले नए स्थान को खोजने की धुन में मर जाते हैं।
क्या बर्फ को सुखाया जा सकता है ?
बर्फ तो पानी से बनती है, चाहे वह पानी को जमाकर बनाई गई हो या पहाड़ों आदि पर प्राकृतिक रूप से गिरकर जमा हुई हो। इसे सुखाना संभव नहीं है क्योंकि सुखाने के लिए दी गई गरमी से यह पिघलकर सूखने के बजाय पुनः पानी में बदल जाती है। लेकिन पानी जमाकर बनाई गई बर्फ और पहाड़ों पर गिरनेवाली बर्फ के अलावा एक तीसरे प्रकार की बर्फ भी होती है जिसे उसके गुण के कारण ही ‘सूखी बर्फ’ कहा जाता है। यह बर्फ पानी बजाय कार्बन डाइऑक्साइड गैस से बनाई जाती है। कार्बन डाइऑक्साइड सामान्यत: गैस अवस्था में ही होती है। इसकी सूखी बर्फ बनाने के लिए इसे सामान्य दबाव से पांच गुने अधिक दबाव पर दबाकर जब तापमान को कम किया जाता है तो यह सिकुड़ना प्रारंभ कर देती है और ठोस अवस्था में आकर सूखी बर्फ का रूप धारण कर लेती है।
सूखी बर्फ बहुत अधिक ठंडी होती है। लेकिन यह पिघलने पर तरल अवस्था में आने के बजाय सीधी ही गैस अवस्था में बदल जाती हैं। इसका उपयोग वैज्ञानिक अनुसंधानों के अलावा सड़कर खराब होने वाली वस्तुओं को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है।
सल्फा खाने से बैक्टीरिया क्यों मर जाते हैं?
सल्फा औषधियां मनुष्य द्वारा बनाए गए ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं, जो बैक्टीरिया जनित बहुत से रोगों के इलाज के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। जीव विज्ञान के अनुसार वृद्धि और प्रजनन के लिए कोशिकाओं को फोलिक अम्ल की आवश्यकता होती है। मनुष्य तथा दूसरे प्राणियों को यह अम्ल भोजन से प्राप्त होता है। बैक्टीरिया स्वयं ही फोलिक अम्ल का निर्माण करते हैं। इस अम्ल के निर्माण के लिए उन्हें पैराअमीनोबेंजोइक अम्ल की आवश्यकता होती है। सल्फा ड्रग और पैरा- अमीनोबेंजोइक अम्ल की रचना लगभग एक-सी होती है। फर्क इतना है कि सल्फा औषधियों में गंधक के परमाणु होते हैं और बेंजोइक अम्ल में कार्बन के। बैक्टीरिया इन दोनों पदार्थों में अंतर स्थापित नहीं कर पाते और सल्फा औषधि को बेंजोइक अम्ल समझकर खा लेते हैं। परिणाम यह होता है कि वे फोलिक अम्ल का निर्माण नहीं कर पाते। बिना फोलिक अम्ल के बैक्टीरिया की वृद्धि और प्रजनन रुक जाता है और वे समाप्त हो जाते हैं। इस प्रकार शरीर रोग से मुक्त हो जाता है।
कुछ बादल बरसते क्यों नहीं हैं?
सामान्यतः जब बादल इकट्ठे होते हैं तो ठंडे होकर बरसने ही लगते हैं। लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बादलों को देखकर बरसात होने की आशा तो होने लगती है, परंतु वे कुछ देर उमड़ने-घुमड़ने के बाद बरसने के बजाय गायब हो जाते हैं और अनायास ही हम कहने लगते हैं कि आज बादल बिन बरसे ही चले गए।
वर्षा होने का सीधा-सा कारण है कि पानी भाप बनकर उड़ता है यह भाप इकट्ठी होकर बादलों का रूप धारण कर लेती है। इनमें जल वाष्प की कणिकाएं जब ठंडी होकर बड़ी होने लगती हैं तो भारी हो जाती हैं और बूंदों के रूप में बरसने लगती हैं। लेकिन यह क्रिया तभी होती है जब बादलों के नीचे की हवा ठंडी होती है, क्योंकि यह ठंडी हवा ही तो जलवाष्प कणिकाओं को संघनित कर बरसात की बूंदों में बदलने का कार्य करती है। परंतु कभी-कभी इसके विपरीत बादलों के नीचे ठंडी हवा के बजाय गरम हवा की पट्टी होती है तब बादलों की जलवाष्प कणिकाएं संघनित होकर बूंदों में बदलने के बजाय पुनः वाष्प में बदल जाती हैं और बादल बिना बरसे ही चले जाते हैं।
आंसू क्यों बहते हैं?
जब किसी शोक- समाचार या दुख के कारण हम रोते हैं तो हमारी आंखों से आंसू निकलने लगते हैं। रोने का कारण चाहे कुछ भी हो, लेकिन इस क्रिया में सदा ही हमारी आंखों से आंसू निकलते हैं । क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है? हमारी आंखों की पलकें सदा ही खुलती और बंद होती रहती हैं। पलकों का यह खुलना और बंद होना मांसपेशियों द्वारा होता है। इनकी गति इतनी तीव्र होती है कि पलक झपकने से हमारी दृष्टि पर कोई असर नहीं पड़ता है। पलक झपकने की क्रिया हर छह सैंकड के अंतर से सारी उम्र होती है। हमारी आंख के बाहरी कोने के अंदर एक आंसू-ग्रंथि होती है। इस ग्रंथि से पतली नलियां आंसुओं को ऊपर की पलक तक ले जाती हैं और वहां से दूसरी पतली नलियों द्वारा आंसू आंखों से बाहर आ जाते हैं। जब भी हम पलक झपकते हैं, वैसे ही आंसू नलिकाओं से कुछ तरल पदार्थ बाहर आ जाता है। यही तरल पदार्थ आंखों को नम रखता है और सूखने से बचाता है।
तेल और पानी आपस में क्यों नहीं घुलते?
नमक और चीनी जैसे पदार्थ तो पानी में घुल जाते हैं, लेकिन तेल और घी जैसे पदार्थ पानी में नहीं घुलते हैं, क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों होता है? वैज्ञानिक नियमानुसार वही पदार्थ एक-दूसरे में घुलते हैं जिनके अणुओं की संरचना लगभग एक जैसी होती है। पानी के अणुओं की संरचना पोलर होती है अतः इसमें वहीं पदार्थ घुलेंगे जिनके अणुओं की बनावट पोलर या आयनिक होगी। नमक और चीनी के अणुओं की संरचना आयनिक होती है, इसलिए वे पानी में घुल जाते हैं। इसी प्रकार दूध और पानी के अणुओं की संरचना भी एक जैसी होती है अतः वे भी एक-दूसरे में घुल जाते हैं।
तेल के अणुओं की संरचना पानी के अणुओं की संरचना से भिन्न होती है, इसलिए वे आपस में नहीं घुलते हैं। तेल के अणु पानी के अणुओं की तुलना में काफी बड़े होते हैं। पानी में वे पदार्थ नहीं घुलते हैं, जिनके अणुओं की संरचना में समन्वित बंध होते हैं। तेल के अणु पानी में तैरते रहते हैं, क्योंकि पानी और तेल के अणुओं के बीच का आकर्षण बल तेल के अणुओं के आपसी आकर्षण बल से कम होता है अतः तेल छोटी-छोटी बूंदों के रूप में पानी में तैरता रहता है और पानी में नहीं घुलता है।
समुद्र का पानी खारा क्यों होता है ?
नमक हमारे स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है. तभी तो हम अपने भोजन में नमक का इस्तेमाल करते हैं। यदि नमक न हो तो अच्छे-से-अच्छे पकवान भी फीके लगते हैं। हमारे भोजन का यह महत्त्वपूर्ण नमक चट्टानों के अलावा समुद्र से ही प्राप्त होता है। समुद्र में पाए जानेवाले इस नमक के कारण ही समुद्र का पानी खारा होता है। अब प्रश्न उठता है कि समुद्र में इतना नमक कहां से आया, जो समुद्र के अपार पानी को खारा बनाए रहता है।
धरती के अनेक भागों में जैसे अन्य खनिज पाए जाते हैं उसी तरह नमक भी पाया जाता है। कहीं-कहीं तो नमक की पूरी की पूरी चट्टानें और पहाड़ भी पाए जाते हैं। हमें मालूम है कि नमक पानी में घुलनशील होता है और धरती के किसी-न-किसी भाग में बरसात होती रहती है। बरसात का यह पानी अपने साथ धरती के नमक को घोल लेता है और नदियों आदि में बहता हुआ समुद्र में आ जाता है। इस तरह संपूर्ण धरती से बरसात के पानी में घुल-घुलकर नमक समुद्र में पहुंचता रहता है । जब समुद्र का पानी भाप बनकर उड़ता है तो नमक भाप नहीं बन पाता है और समुद्र में ही रह जाता है। इस तरह समुद्र से कम होने के बजाय नमक समुद्र में लगातार आता रहता है। और यह क्रिया हजारों-लाखों वर्षों से निरंतर चल रही है। इसके परिणामस्वरूप समुद्र के पानी में एक अनुमान के अनुसार इतना नमक आ चुका है कि यदि इस नमक से भूमध्य रेखा पर मीलों चौड़ी एवं ऊंची दीवार बनाई जाए तो पूरी पृथ्वी पर विशालकाय दीवार बन सकती है। नमक की इसी मात्रा के समुद्र में होने से समुद्र का पानी खारा होता है ।
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