ऐसा क्यों और कैसे होता है -2
ऐसा क्यों और कैसे होता है -2
लंबी दूरी के लिए ए.सी. बिजली ही उपयोग क्यों की जाती है?
ए. सी. ऐसी विद्युत्धारा है, जिसके वोल्टेज को संप्रेषित करने के लिए आसानी से घटाया और बढ़ाया जा सकता है। यदि 4,00,00 वोल्ट पर ए. सी. आ रही है और उसे घरों में उपयोग के लिए भेजना है, तो इसे सुरक्षित 220 वोल्ट में परिवतर्तित किया जा सकता है। इसके लिए वोल्टेज गिरानेवाले ट्रांसफार्मर की आवश्यकता होती है । इस गुणता के अलावा लंबी दूरी तक संप्रेषित करने में ए.सी. बिजली की हानि उच्च वोल्टता पर बहुत कम होती है।
ये दो लाभकारी कारण हैं, जिनकी वजह से लंबी दूरी तक बिजली पहुंचाने के लिए ए.सी. बिजली का ही उपयोग किया जाता है।
चलती रेल में गेंद हाथ में क्यों आती हैं ?
ऐसा लगता जरूर है कि रेलगाड़ी के डिब्बे से उछाली गेंद, उछालने वाले व्यक्ति के पीछे गिरेगी क्योंकि गेंद को ऊपर जाने और नीचे आने में कुछ समय लगेगा और इस समय में गेंद उछालने वाला व्यक्ति रेलगाड़ी के साथ आगे बढ़ जाएगा। लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है। आइए जानें कि ऐसा क्यों होता है? चलती रेलगाड़ी में रखी सभी वस्तुएं रेलगाड़ी के साथ ही गति करने लगती हैं। रेलगाड़ी में लगे पंखे, उसमें बैठी सवारियां, गेंद और गेंद उछालने वाला व्यक्ति सभी कुछ रेलगाड़ी के वेग से गतिशील होते हैं। जब गेंद ऊपर फेंकी जाती है, तो रेलगाड़ी का वेग भी इसके साथ निहित होता है। गेंद को ऊपर फेंकने पर इसके क्षैतिज वेग के साथ-साथ ऊर्ध्वाधर वेग और जुड़ जाता है। रेल में चलने वाले यात्रियों को इसकी क्षैतिज गति दिखाई नहीं देती। गेंद केवल ऊपर-नीचे जाती दिखती है। रेल से बाहर जमीन पर खड़ा व्यक्ति इस गेंद को परवलयी रास्ते से जाता हुआ देखेगा, क्योंकि उसे क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों ही गतियां दिखाई देती हैं। वास्तव में सभी गतियां सापेक्ष होती हैं। यही कारण है कि रेलगाड़ी में उछाली गई गेंद की गति दो दर्शकों को भिन्न-भिन्न दिखती हैं।
आर्कर फिश कीड़ों पर क्यों थूकती है?
आकर फिश एक ऐसी मछली है, जो छोटे-छोटे समुद्री पौधों पर लटके कीड़ों पर थूक सकती है। इसका निशाना बहुत सटीक होता है और यह 1.8 मीटर की दूरी से कीड़ों और मक्खियों पर थूककर उन्हें पानी में गिरा देती है। पानी में गिरे कीड़ों पर यह तेजी से झपटती है और उन्हें खा जाती है। इन्हीं कीड़े-मकोड़ों को खाकर यह जिंदा रहती है। आर्कर फिश इतनी दूर तक किस प्रकार ठीक निशाने पर थूक पाती है, यह अपने आप में एक बड़ी रोचक प्रक्रिया है। इसके मुंह के ऊपरी हिस्से में एक लंबी नली जैसी संरचना होती है। यदि यह मछली अचानक ही अपने गिल ढक्कनों को बंद करती है, तो गिल कक्ष से दबाव के साथ पानी मुंह में आ जाता है। इसी समय जीभ ऊपर उठा दी जाती है, जिससे मुंह में बनी नली का आकार एक लंबी नलिका जैसा हो जाता है, जिससे पानी थूक के रूप में एक सीधी रेखा में बाहर निकल पड़ता है। आकर मछली का नाम इसके शिकार पकड़ने के इसी तरीके के आधार पर पड़ा है। आर्कर ताजे पानी की मछली है, जो टोक्सोटायडी परिवार में आती है। इस जाति की मछलियां खारे पानी में भी रह सकती हैं।
रात की रानी के फूल रात में ही क्यों खिलते हैं?
जैसे कुछ जीव रात में ही सक्रिय होते हैं, वैसे ही कुछ पौधे भी। ऐसे ही पौधों में हैं रात की रानी, हनी सकल और नाइटशेड । क्या आप जानते हैं कि रात की रानी जैसे पौधों में फूल रात को क्यों खिलते हैं? जिन पौधों के फूल रात को खिलते हैं, उन में मोहक सुगंध होती है। इस सुगंध के कारण पतंगे जैसे रात में क्रियाशील होने वाले जीव इनकी ओर आकर्षित होते हैं। जब ये कीड़े फूल पर बैठते हैं तो परागकण इनके पंखों से चिपक जाते हैं. फिर इन कीड़ों से ये परागकण दूसरे फूल तक पहुंच जाते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि रात की रानी के फूल रात में उन कीड़ों को आकर्षित करने के लिए ही खिलते हैं, जो पराग सेचन की क्रिया में सहायक होते हैं। वैसे रात्रि में अक्सर वे ही फूल खिलते हैं, जो दिन में सूर्य की गर्मी और प्रकाश को सहन नहीं कर सकते। रात्रि में खिलने वाले फूलों के विषय में एक तथ्य यह भी है कि इन फूलों का रंग बहुत चमकीला नहीं होता, क्योंकि यह रंग रात्रि के अंधेरे में दिखाई नहीं देता रात्रि में खिलने वाले अधिकतर फूलों का रंग सफेद होता है, क्योंकि सफेद रंग अंधेरे में भी स्पष्ट दिखाई देता है और कीड़ों को आकर्षित करने में सहायक होता है।
टी.वी. के एंटीना में ऐलुमिनियम ही क्यों उपयोग होता है?
सामान्यतः ऐसी कोई भी धातु जो विद्युत् चालकता के लिए उत्तम हो, टी.वी. का एंटीना बनाने के लिए उपयोग में लाई जा सकती है। इस काम के लिए कई धातुओं का उपयोग किया जा सकता है; लेकिन ऐलुमिनियम को ही इस कार्य के लिए चुने जाने में अन्य धातुओं की तुलना में इसमें पाई जानेवाली विशेषताएं ही मुख्य कारण है । ऐलुमिनियम हल्का होते हुए भी मजबूत होता है और एंटीना बनाने के लिए इसे पाइपों अथवा तश्तरियों आदि में ढाला जा सकता है। इतना ही नहीं, ऐलुमिनियम पर जंग आदि भी नहीं लगता; क्योंकि जंग लगने से एंटीना को नुकसान हो सकता है और टी.वी. केंद्र आदि से आने वाले संकेतों को ग्रहण करने में कठिनाई आ सकती है। यह दोष ऐलुमिनियम में नहीं है। इन सबसे प्रमुख एक बात यह भी है कि ऐलुमिनियम तांबा, पीतल जैसी धातुओं की तुलना में बहुत सस्ता होता है, अतः इससे बने एंटीना जन साधारण की पहुंच में रहते हैं। इन्हीं कारणों से टी.वी. के एंटीना अन्य धातुओं के बजाय ऐलुमिनियम के ही बनाए जाते हैं।
खेतों में खाद क्यों डाली जाती है?
अच्छी फसल पैदा करने के लिए हर किसान अपने खेतों में खाद डालता है। खाद डालने के बावजूद सभी खेतों में फसल की पैदावार एक-सी नहीं होती। किसी खेत में कम फसल पैदा होती है, तो किसी में ज्यादा। अच्छी फसल पाने के लिए खेतों में खाद डाली जाती है। क्या आप जानते हैं कि खेतों में खाद क्यों डाली जाती है? सभी पौधों की उचित वृद्धि के लिए कार्बन, हाइड्रोजन और आक्सीजन के अतिरिक्त 11 ऐसे तत्व हैं, जिनका मिट्टी में उपस्थित होना बहुत जरूरी है। ये तत्व हैं, नाइट्रोजन, पोटेशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक, लोहा, मैग्नीज, बोरोन, जस्ता और तांबा। पौधों को कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन तो हवा और पानी से प्राप्त हो जाते हैं, लेकिन शेष 11 तत्व जमीन से प्राप्त होते हैं। जिस मिट्टी में इन खनिजों की बहुतायत होती है, उसमें फसल अच्छी पैदा होती है। जिस मिट्टी में ये खनिज नहीं होते, तो कृत्रिम खाद जमीन में डालकर इनकी पूर्ति की जाती है। अतः खाद ऐसा पदार्थ है, जिसको जमीन में डालकर पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक तत्वों की पूर्ति की जाती है। आमतौर पर खाद दो तरह की होती 9 – एक प्राकृतिक खाद और दूसरी रासायनिक खाद। प्राकृतिक खाद से भूमि को नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्व भिन्न-भिन्न मात्राओं में प्राप्त होते हैं। रासायनिक खाद खनिजों से बनाई जाती हैं और उनमें निश्चित मात्राओं में पोषक तत्व होते है।
गुर्दे को शरीर की छलनी क्यों कहते हैं?
सभी रीढ़ वाले जीवों के शरीर में दो गुर्दे होते हैं। गुर्दों का मुख्य कार्य खून की गंदगी को शरीर से बाहर निकालना है। इसके अलावा गुर्दे शरीर में ज़रूरत से ज्यादा पानी की मात्रा हो जाने पर उसे मूत्र के रूप में बाहर निकालते रहते हैं। इस प्रकार वह रक्त को अधिक गाढ़ा या पतला नहीं होने देते और एक प्रकार की छलनी का काम करते हैं। यही नहीं ये खून में हर चीज की मात्रा का संतुलन भी बनाए रखते हैं। कभी-कभी रक्त में चीनी, नमक और पानी की मात्रा अधिक हो जाती है, तो गुर्दे इन पदार्थों की अतिरिक्त मात्रा को शरीर से मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देते हैं। शरीर की पाचन क्रिया और अन्य क्रियाओं के कारण शरीर में अमोनिया, यूरिक एसिड, कार्बन डाई आक्साइड और पानी बनता है। यह पदार्थ शरीर के लिए जहर की तरह घातक होता हैं। अधिक मात्रा में एकत्रित होने पर इनसे मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है। गुर्दे शरीर की इस गंदगी को मूत्र के रूप में निकालते रहते हैं और शरीर को स्वस्थ रखते हैं। प्रत्येक गुर्दे में दस लाख के करीब कुंडलीदार नलियां होती हैं। हृदय से आया हुआ रक्त इन नलियों से होकर बहता है। ये नलियां छन्नियों की तरह काम करती हैं। करी 1850 लीटर खून प्रतिदिन गुर्दों से होकर बहता है। इसमें से छानी गई गंदगी गुर्दों में से मूत्राशय थैली में जाती है। थैली के भरने पर मूत्र के साथ यह गंदगी भी बाहर निकल जाती है।
अंतरिक्ष यान छोड़ने पर उलटी गिनती क्यों की जाती है?
जब हम साइकल की भी सवारी करते हैं, तो सवारी करने से पहले अच्छी तरह जांच-पड़ताल करते हैं कि उसमें हवा, ब्रेक इत्यादि ठीक हैं या नहीं । ठीक इसी तरह अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में छोड़ने से पहले रॉकेट के सभी कल-पुरजों की जांच करना आवश्यक होता है। अंतरिक्ष उड़ान में अरबों-खरबों रुपए के उपकरण लगे होते हैं। किसी भी जरा सी बाल बराबर खराबी के कारण पूरी उड़ान स्वाहा हो सकती है, जिससे भारी हानि हो जाती है। इसलिए अंतरिक्ष यान छोड़ने के लिए रॉकेट सीढ़ी-दर- सीढ़ी प्रक्रम में बनाए जाते हैं। अर्थात् रॉकेट का एक प्रक्रम दूसरे प्रक्रम से एक-एक करके सहयोजित होता है। अतः रॉकेट को छोड़ने से पहले सभी प्रक्रमों की जांच करने के लिए प्रत्येक प्रक्रम को जांचा-परखा जाता है। जहां कहीं भी, जिस प्रक्रम में कोई खराबी नजर आती हैं वहां उसकी मरम्मत की जाती है और उस प्रक्रम के पूरी तरह ठीक होने पर ही आगे के प्रक्रम की जांच प्रारंभ की जाती है, और पूरे रॉकेट के सभी प्रक्रम एक-एक करके जांच लिये जाते हैं।
यह क्रिया एक से प्रारंभ होकर दो, तीन, चार की ओर भी बढ़ाकर पूरी की जा सकती थी; लेकिन इस अवस्था में हम चाहे कितने ही प्रक्रम जांच लेते, पूरी जांच की सही स्थिति मालूम नहीं पड़ती। इसीलिए नीचे से ऊपर के बजाय ऊपर से नीचे की ओर जांच की जाती है। इसका लाभ यह होता है कि जब प्रक्रमों को जांचते – जांचते शून्य पर आते हैं, तो पूरी तरह आश्वस्त हो जाते हैं कि सभी प्रक्रम ठीक हैं। इसीलिए अंतरिक्ष यान उड़ाते समय उलटी गिनती प्रारंभ की जाती है और शून्य पर आते ही रॉकेट उड़ाया जाता है।
फंगस एलएसडी खतरनाक क्यों होती है ?
कुछ बीमारियों का इलाज फंगस से बनी दवाइयों से ही संभव है, लेकिन इन दवाओं के सेवन से कई दुष्परिणाम भी उभर कर सामने आते हैं। ‘इरगोट फंगस’ से बनी एलएसडी (लिजरजिक एसिड डाइथेलेमाइड) एक ऐसी ही खतरनाक भ्रांतिजनक दवा है, जिससे शरीर पर कई अवांछित प्रभाव पड़ते हैं। आमतौर पर शराबखोरी की आदत छुड़ाने तथा कैंसर के मरीजों की पीड़ा को कम करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। ज्यादातर डॉक्टर एलएसडी को स्कीजोफ्रेनिया जैसी बीमारियों से पैदा होने वाले मानसिक तनावों को कम करने के लिए प्रयोग करते हैं। क्या आप जानते हैं कि फंगस से बनी यह दवा खतरनाक क्यों होती है? इस औषधि को इरगोट नामक फंगस से मिलने वाले यौगिकों को संश्लेषित करके बनाया जाता है।
यह फंगस राई व अन्य किस्म की घासों पर उगती है। ‘एलएसडी’ शरीर की किसी भी श्लेष्मलीय सतह द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। ‘एलएसडी’ सेरोटोनिन के विपरीत क्रिया करती है। इसकी ज्यादा मात्रा लेने से मनोविकृति संबंधी प्रतिक्रियाएं लंबी खिंचती हैं। एलएसडी 30 से 60 मिनट के बीच अपना असर दिखाना प्रारंभ कर देती है, जबकि 8 से 10 घंटों तक इसका असर बना रहता है। एलएसडी का लगातार प्रयोग क्रोमोसोस तथा आनुवंशिक संबंधी हानि भी कर सकता है।
कटा हुआ सेब नारंगी रंग का क्यों होने लगता है?
सेबों में ‘टेनिन’ होती है जो कषाय कारक का कार्य करती है। टेंनिन से फलों की नमी कम हो जाती है इनका सांद्रण सेब के फलों की परिपक्व अवस्था एवं मौसम पर निर्भर करता है। जब सेब के फल हरे होते हैं, तो उनमें टेंनिन की सांद्रता अधिकतम होती है। यह सांद्रता सेब की परिपक्वता के साथ कम होती जाती है। जब सेब को काटा जाता है या उसके टुकड़े कर दिए जाते हैं, तो टेंनिन हवा के संपर्क में आती है। जब टेनिन सेब में उपस्थित एंजाइमों के साथ ऑक्सीजन के संपर्क में आती है, तो ऑक्साइड बनाती है। यही ऑक्साइड कटे हुए सेब को नारंगी जैसे रंग की आभा प्रदान करती है और कटा सेब नारंगी रंग का होने लगता है।
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