ऋतुराज वसंत

ऋतुराज वसंत

          वसंत ऋतु को ऋतुराज कहा जाता है, क्योंकि इसका प्रभाव और महत्त्व सभी ऋतुओं से बढ़कर होता है । वसंत ऋतु का महत्त्व और प्रभाव कितना बड़ा होता है, इस पर विचारते हैं तो हम यह देखते हैं कि यह सचमुच में ऋतुओं का शिरोमणि है ।
          सर्वप्रथम वसंत का आगमन होता है। पौराणिक वसंत कामदेव का पुत्र बतलाया जाता है। रूप-सौंदर्य के देवता कामदेव के घर में पुत्रोत्पति का समाचार पाते ही प्रकृति नृत्यरत हो जाती है। उसकी सम्पूर्ण देह प्रफुल्लता से रोमांचित हो उठती है। तब किसलय रूपी अंग-प्रत्यंग थिरकने लगते हैं। भाँति-भाँति के पुष्प उसके आभूषणों का कार्य करते हैं । हरियाली उसके वस्त्र तथा कोयल की मधुर पंचम स्वर वाली कूक उसका स्वर बन जाती है। रूपयौवन सम्पन्न प्रकृति इठलाते और मदमाते हुए पुत्र वसंत का सजधज के साथ स्वागत करती है ।
तुम आओ तुम्हारे लिए वसुधा ने हृदय पर मंच बना दिए हैं। 
पथ में हरियाली के सुन्दर सुन्दर पाँवड़े भी विछवा दिए हैं। 
चारों ओर पराग भरे सुमनों के नये विरवा लगवा दिए हैं। 
ऋतुराज ! तुम्हारे ही स्वागत में सरसों के दिए जलवा दिए हैं।
          सुन्दर-सुखद आकर्षक सर्वाधिक रोचक ऋतु वसंत ऋतु है । इसका समय 22 फरवरी से 22 अप्रैल तक होता है। भारतीय गणना के अनुसार इसका समय फाल्गुन से वैसाख माह तक होता है। सचमुच इस ऋतु का सौंदर्य सर्वाधिक होता है । इस ऋतु में प्रकृति के सभी अंग मस्ती में हँसने लगते हैं। सारा वातावरण मस्ती से झूभ उठता है। वन में, उपवन में, बाग में, कुँज में, गली-गली में, गांव-घर और सब जगह वसंत ऋतु की छटा देखते ही बनती है। प्रकृति का नया रूप हर प्रकार से आकर्षक, सुहावना और मस्ती से भरा हुआ दिखाई देता है।
          किसानों के लिए वसंत ऋतु सुख का सन्देश लाती है। अपने खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर किसान खुशी में झूम उठते हैं। धरती के पुत्रों के लिए धरती माता सोना उगलती है। किसान आने वाले कल के सुन्दर सुहावने सपने ले रहा होता है। धरती ही किसान की सम्पत्ति है। अपने परिश्रम का फल वह अपनी आँखों के सामने देखकर फूला नहीं समाता । उसका मन मयूर नाच उठता है। खेतों में सरसों ऐसी प्रतीत होती है, मानो धरती ने पीली ओढ़नी ओढ़ रखी हो । धरती इस प्रकार नई नवेली दुल्हन सी दिखाई देती है ।
          वसंत ऋतु को ऋतुपति कहते हैं । इस ऋतु के अन्तर्गत ही संवत वर्ष और सौर वर्ष का नया चक्र प्रारम्भ होता है। इस ऋतु के अन्तर्गत पड़ने वाले दो प्रमुख त्योहार होली और रामनवमी का अत्यधिक महत्व और सम्मान है। ये दोनों ही त्योहार लोक-प्रिय त्योहार हैं और इनको मना कर मन प्रसन्न हो उठता है । कवियों की दृष्टि से यह ऋतु बहुत ही प्रेरणादायक, उत्साहवर्द्धक और रोचक ऋतु है । इसकी प्रशंसा में अनेकानेक रचनाएं रची गई हैं। सचमुच इस ऋतु के आनन्द को भला हम कैसे भूल सकते हैं। मनुष्य ही नहीं, देवता भी इस ऋतु का आनन्द प्राप्त करने के लिए तरसते रहते हैं। नवरात्रि का व्रत, उपवास और अनेक प्रकार की देवाराधना इस ऋतु के अंतर्गत होते हैं। उनसे देवशक्तियाँ प्रभावित होती हैं। वे अपनी प्रसन्नता से सौभाग्यपूर्ण इस ऋतु की शोभा को निखारने में मनुष्य को अपना योगदान दे । वास्तव में वसंत को ऋतुराज, ऋतुपति आदि नाम देना सार्थक ही है ।
          वसंत का त्योहार केवल मौसमी पर्व ही नहीं, इसका धार्मिक महत्त्व भी माना जाता है। लोग इस दिन को शुभ मानते हैं और कई समारोह इसी दिन निश्चित किए जाते हैं। वसंत आता है और साथ लाता है – रंग भरी होली, जिसमें बच्चों, नवयुवकों, नवयुवतियों और यहां तक बूढ़ों को भी रंग खेलने का मन ललक उठता है। वसंत ऋतु की शोभा इसके द्वारा द्विगुणित हो जाती है। स्वास्थ्य सुधारने के लिए यह ऋतु विशेष महत्त्व रखती है। देह में फुर्ती- सी आ जाती है। न तो सर्दी की कंप-कंपी और न गर्मी की लू । ऐसे सुन्दर दिन और शीतल रात्रि का मोह सबको वसंत की प्रशंसा करने पर बाध्य कर देता है। इसी आमोद-प्रमोद के साथ वसंत पंचमी को भारत में मनाया जाता है।
          ऋतुराज वसंत सृष्टि में नवीनता का प्रतिनिधि बनकर आता है। यह बड़ी आनन्ददायक ऋतु है । इस ऋतु में न अधिक गर्मी होती है और न अधिक ठंडक । यह देवदूत वसंत जन-जन की नव निर्माण और हास-विलास के माध्यम से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के पथ पर अवसर होते रहने की प्रेरणा प्रदान करता है ।
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