उपभोक्ता अधिकार Consumer Right

उपभोक्ता अधिकार    Consumer Right

 

बाजार में उपभोक्ता
♦ बाजार में हमारी भागीदारी उत्पादक और उपभोक्ता दोनों रूपों में होती है। वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादक के रूप में, हम कृषि, उद्योग या सेवा जैसे क्षेत्रों में कार्यरत हो सकते हैं। उपभोक्ताओं की भागीदारी बाजार में तब होती है, जब वे अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं या सेवाओं को खरीदते हैं। उपभोक्ता के रूप में लोगों द्वारा उपभोग किए जाने वाली ये अन्तिम वस्तुएँ होती हैं।
♦ असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले बहुत से लोगों को निम्न वेतन पर कार्य करना पड़ता है और उन परिस्थितियों को झेलना पड़ता है, जो न्यायोचित नहीं होती हैं और प्रायः उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी होती हैं। ऐसे शोषण को रोकने के लिए और उनकी सुरक्षा हेतु नियमों एवं विनियमों का निर्माण किया गया है।
♦ ऐसी कई संस्थाएँ हैं जिन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए लम्बा संघर्ष किया है कि इन नियमों का अनुपालन हो ।
♦ बाजार में भी उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए नियम एवं विनियमों की आवश्यकता होती है, क्योंकि अकेला उपभोक्ता प्रायः स्वयं को कमजोर स्थिति में पाता है। खरीदी गई वस्तु या सेवा के बारे में जब भी कोई शिकायत होती है, तो विक्रेता सारा उत्तरदायित्व क्रेता पर डालने का प्रयास करता है। सामान्यतः उनकी प्रतिक्रिया होती है: “आपने जो खरीदा है अगर वह पसन्द नहीं है तो कहीं और जाइए’ मानो, बिक्री हो जाने के बाद विक्रेता की कोई जिम्मेदारी नहीं रह जाती। उपभोक्ता आन्दोलन इस स्थिति को बदलने का एक प्रयास है।
♦ बाजार में शोषण कई रूपों में होता है। उदाहरणार्थ, कभी-कभी व्यापारी अनुचित व्यापार करने लग जाते हैं, जैसे दुकानदार उचित वजन से कम वजन तौलते हैं या व्यापारी उन शुल्कों को जोड़ देते हैं, जिनका वर्णन पहले न किया गया हो या मिलावटी / दोषपूर्ण वस्तुएँ बेची जाती हैं।
♦ जब उत्पादक थोड़े और शक्तिशाली होते हैं और उपभोक्ता कम मात्रा में खरीददारी करते हैं और बिखरे हुए होते हैं, तो बाजार उचित तरीके से कार्य नहीं करता है। विशेष रूप से यह स्थिति तब होती है, जब इन वस्तुओं का उत्पादन बड़ी कम्पनियाँ कर रही हों।
♦ अधिक पूँजी वाली, शक्तिशाली और समृद्धि कम्पनियाँ विभिन्न प्रकार से चालाकीपूर्वक बाजार को प्रभावित कर सकती है। उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए वे समय-समय पर मीडिया और अन्य स्रोतों से गलत सूबना देते हैं। उदाहरण के लिए, एक कम्पनी ने यह दावा करते हुए कि माता के दूध हमारा उत्पाद बेहतर है, सर्वाधिक वैज्ञानिक उत्पाद के रूप में शिशुओं के लिए दूध का पाउडर पूरे विश्व में कई वर्षों तक बेच कई वर्षों के लगातार संघर्ष के बाद कम्पनी को यह स्वीकार करना पड़ा कि वह झूठे दावे करती आ रही थी। इसी तरह, सिगरेट उत्पादक कम्पनियों से यह बात मनवाने के लिए कि उनका उत्पाद कैंसर का कारण हो सकता है, न्यायालय में लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी।
♦ उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नियम और विनियमों की आवश्यकता होती है।
उपभोक्ता आन्दोलन
♦ भारत में ‘सामाजिक बल’ के रूप में उपभोक्ता आन्दोलन का जन्म,अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों को रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ हुआ।
♦ अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल में मिलावट की वजह से सन् 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आन्दोलन का उदय हुआ।
♦ सन् 1970 के दशक तक उपभोक्त संस्थाएँ वृहत् स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से सम्बन्धित आलेखों के लेखन और प्रदर्शनी का आयोजन का कार्य करने लगीं थीं। उन्होंने सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़-भाड़ और राशन की दुकानों में होने वाले अनुचित कार्यों पर नजर रखने के लिए उपभोक्ता दल बनाया।
♦ हाल ही में, भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है।
♦ उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारम्भ उपभोक्ताओं के असन्तोष के कारण हुआ, क्योंकि विक्रेता कई अनुचित व्यावसायिक व्यवहारों में शामिल होते थे।
♦ बाजार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। लम्बे समय तक, जब एक उपभोक्ता एक विशेष ब्राण्ड उत्पाद या दुकान से सन्तुष्ट नहीं होता था तो सामान्यतः वह उस ब्राण्ड उत्पाद को खरीदना बन्द कर देता था या उस दुकान से खरीददारी करना बन्द कर देता था। यह मान लिया जाता था कि यह उपभोक्ता की जिम्मेदारी है कि एक वस्तु या सेवा को खरीदते वक्त वह सावधानी बरते।
♦ संस्थाओं को लोगों में जागरूकता लाने में, भारत और पूरे विश्व को कई वर्ष लग गए। इसने वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी विक्रेताओं पर भी डाल दी।
♦ इन सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप, यह आन्दोलन वृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कम्पनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ। सन् 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया। यह उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, सन् 1986 में कानून का बनना था, जो COPRA के नाम से प्रसिद्ध है।
उपभोक्ता इन्टरनेशनल
♦ सन् 1985 में संयुक्त राष्ट्र ने उपभोक्ता सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के दिशा-निर्देशों को अपनाया। यह उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए उपयुक्त तरीके अपनाने हेतु राष्ट्रो के लिए और ऐसा करने के लिए अपनी सरकारों को मजबूर करने हेतु उपभोक्ता की वकालत करने वाले समूह’ के लिए, एक हथियार था। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह उपभोक्ता आन्दोलन का आधार बना।
♦ आज उपभोक्ता इन्टरनेशनल 100 से भी अधिक देशों के 240 संस्थाओं का एक संरक्षक संस्थान बन गया है।
वस्तुओं और सेवाओं के बारे में जानकारी
♦ जब हम कोई वस्तु खरीदते हैं तो उसके पैकेट पर कुछ खास जानकारियाँ पाते हैं। ये जानकारियाँ उस वस्तु के अवयवों, मूल्य, बैच संख्या, निर्माण की तारीख, खराब होने की अन्तिम तिथि और वस्तु बनाने वाले के पते के बारे में होती हैं।
♦ जब हम कोई दवा खरीदते हैं तो उस दवा के ‘उचित प्रयोग के बारे में निर्देश’ और उस दवा के प्रयोग के अन्य प्रभावों और खतरों से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
♦ जब हम वस्त्र खरीदते हैं, तो ‘धुलाई सम्बन्धी निर्देश प्राप्त करते हैं। ऐसे नियम इसलिए बनाए गए हैं कि उपभोक्ता जिन वस्तुओं और सेवाओं को खरीदता है, उसके बारे में उसे सूचना पाने का अधिकार है। तब उपभोक्ता वस्तु की किसी भी प्रकार की खराबी होने पर शिकायत कर सकता है, मुआवजे पाने या वस्तु बदलने की माँग कर सकता है।
♦ उदाहरण के लिए, यदि हम एक उत्पाद खरीदते हैं और उसके खराब होने की अन्तिम तिथि के पहले ही वह खराब हो जाता है, तो हम उसे बदलने के बारे में कह सकते हैं। यदि वस्तु खराब होने की अन्तिम समय-सीमा उस पर नहीं छपी है, तब विनिर्माता दुकानदार पर आरोप लगा देगा और अपनी जिम्मेदारी नहीं मानेगा। यदि लोग अन्तिम तिथि समाप्त हो गई दवाओं को बेचते हैं, तो उनके खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है।
♦ यदि कोई व्यक्ति मुद्रित मूल्य से अधिक मूल्य पर वस्तु बेचता है तो कोई भी उसका विरोध और शिकायत कर सकता है। यह अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) के द्वारा इंगित किया हुआ होता है।
♦ उपभोक्ता, विक्रेता से अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) से कम दाम पर वस्तु देने के लिए मोल-भाव कर सकते हैं।
♦ आज सरकार प्रदन विविध सेवाओं को उपयोगी बनाने के लिए, सूचना पाने के अधिकार को बढ़ा दिया गया है।
♦ सन् 2005 के अक्टूबर में भारत सरकार ने एक कानून लागू किया जो RTI (राइट टू इनफॉरमेशन) या सूचना पाने का अधिकार के नाम से जाना जाता है और जो अपने नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्य-कलापों की सभी सूचनाएँ पाने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।
चयन के अधिकार का उल्लंघन
♦ किसी भी उपभोक्ता को जो किसी सेवा को प्राप्त करता है, चाहे वह किसी आयु या लिंग का हो और किसी भी तरह की सेवा प्राप्त करता हो, उसको सेवा प्राप्त करते हुए हमेशा चुनने का अधिकार होगा। मान लीजिए, आप एक दन्त मंजन खरीदना चाहते हैं और दुकानदार कहता है कि वह केवल दन्त मंजन तभी बेचेगा, जब आप दन्त मंजन के साथ एक ब्रश भी खरीदेंगे। अगर आप ब्रश खरीदने के इच्छुक नहीं हैं, तब आपके चुनने के अधिकार का उल्लंघन हुआ है।
♦ ठीक इसी तरह, कभी-कभी जब आप नया गैस कनेक्शन लेते हैं। तो गैस डीलर उसके साथ एक चूल्हा भी लेने के लिए दबाव डालता है। इस प्रकार कई बार हमें उन वस्तुओं को खरीदने के लिए भी दबाव डाला जाता है, जिनको खरीदने की हमारी इच्छा बिल्कुल नहीं होती और तब आपके पास चुनाव के लिए कोई विकल्प नहीं होता।
इन उपभोक्ताओं को न्याय पाने के लिए कहाँ जाना चाहिए?
♦ उपभोक्ताओं को अनुचित सौदेबाजी और शोषण के विरुद्ध क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार है।
♦ यदि एक उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचाई जाती है, तो क्षति की मात्रा के आधार पर उसे क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार होता है। इस कार्य को पूरा करने के लिए एक आसान और प्रभावी जन-प्रणाली बनाने की आवश्यकता है।
♦ भारत में उपभोक्ता आन्दोलन ने विभिन्न संगठनों के निर्माण में पहल की है, जिन्हें सामान्यतया उपभोक्ता अदालत या उपभोक्ता संरक्षण परिषद् के नाम से जाना जाता है। ये उपभोक्ताओं का मार्ग दर्शन करती हैं कि कैसे उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज कराएँ?
♦ बहुत से अवसरों पर ये उपभोक्ता अदालत में व्यक्ति विशेष ( उपभोक्ता) का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। ये स्वयंसेवी संगठन जनता में जागरूकता पैदा करने के लिए सरकार से वित्तीय सहयोग भी प्राप्त करते हैं।
♦ हमने अपने को परा के अन्तर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तन्त्र स्थापित किया गया है।
♦ जिला स्तर का न्यायालय 20 लाख तक के दावों से सम्बन्धित मुकदमों पर विचार करता है, राज्य स्तरीय अदालतें 20 लाख से एक करोड़ तक और राष्ट्रीय स्तर की अदालतें 1 करोड़ से ऊपर की दावेदारी से सम्बन्धित मुकदमों को देखती हैं।
♦ यदि कोई मुकदमा जिला स्तर के न्यायालय में खारिज कर दिया जाता है, तो उपभोक्ता राज्य स्तर के न्यायालय में और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर के न्यायालय में भी अपील कर सकता है। इस प्रकार, अधिनियम ने उपभोक्ता के रूप में उपभोक्ता न्यायालय में प्रतिनिधित्व का अधिकार देकर हमें समर्थ बनाया है।
जागरूक उपभोक्ता बनने के लिए आवश्यक बातें
♦ जब हम विभिन्न वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदते वक्त, उपभोक्ता के के रूप में अपने अधिकारों के प्रति सचेत होंगे, तब हम अच्छे और बुरे में फर्क करने तथा श्रेष्ठ चुनाव करने में सक्षम होंगे।
♦ एक जागरूक उपभोक्ता बनने के लिए निपुणता और ज्ञान प्राप्त करने की जरूरत होती है।
♦ कोपरा (COPRA) अधिनियम ने केन्द्र और राज्य सरकारों में उपभोक्ता मामले के अलग विभागों को स्थापित करने में मुख्य भूमिका अदा की है।
आई. एस. आई और एगमार्क
♦ विभिन्न वस्तुएँ खरीदते समय अपने आवरण पर लिखे अक्षरों- आई. एस. आई, एगमार्क या हॉलमार्क के शब्द चिह्न (लोगो) को अवश्य देखा होगा। जब उपभोक्ता कोई वस्तु या सेवाएँ खरीदता है, तो ये शब्द चिह्न (लोगो) और प्रमाणक चिह्न उन्हें अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित कराने में मदद करते हैं। ऐसे संगठन जो कि अनुवीक्षण तथा प्रमाणपत्रों को जारी करते हैं, उत्पादकों को उनके द्वारा श्रेष्ठ गुणवत्ता पालन करने की स्थिति में शब्द चिह्न (लोगों को) प्रयोग करने की अनुमति देते हैं।
♦ यद्यपि ये संगठन बहुत से उत्पादों के लिए गुणवत्ता का मानदण्ड विकसित करते हैं, लेकिन सभी उत्पादकों को इन मानदण्डों का पालन करना जरूरी नहीं होता। फिर भी, कुछ उत्पाद जो उपभोक्ता की सुरक्षा और स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं या जिनका उपयोग बड़े पैमाने पर होता है, जैसे कि, एल.पी.जी सिलेण्डर्स, खाद्य रंग एवं उसमें प्रयुक्त सामग्री, सीमेन्ट, बोतल बन्द पेयजल आदि । इनके उत्पादन के लिए यह अनिवार्य होता है कि उत्पादक इन संगठनों से प्रमाण प्राप्त करें।
उपभोक्ता आन्दोलन को आगे बढ़ाने के सम्बन्ध में
♦ 24 दिसम्बर को भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है। सन् 1986 में इसी दिन भारतीय संसद ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया था। भारत उन देशों में से एक है, जहाँ उपभोक्ता सम्बन्धित समस्याओं के निवारण के लिए विशिष्ट न्यायालय हैं।
♦ भारत में उपभोक्ता आन्दोलन ने संगठित समूहों की संख्या और उनकी कार्यविधियों के मामले में कुछ तरक्की की है।
♦ आज देश में 700 से अधिक उपभोक्ता संगठन हैं, जिनमें से केवल 20-25 ही अपने कार्यों के लिए पूर्ण संगठित और मान्यता प्राप्त हैं। फिर भी, उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल, खर्चीली और समय-सामय साबित हो रही है। कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पड़ता है। ये मुकदमें अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने और आगे बढ़ने आदि में काफी समय लेते हैं। अधिकांश खरीदारियों के समय रसीद नहीं दी जाती हैं, ऐसी स्थिति में प्रमाण जुटाना आसान नहीं होता है।
♦ इसके अलावा बाजार में अधिकांश खरीददारियाँ छोटी फुटकर दुकानों से होती हैं।
♦ दोषयुक्त उत्पादों से पीड़ित उपभोक्ताओं की क्षतिपूर्ति के मुनाफे पर मौजूदा कानून भी बहुत स्पष्ट नहीं है। कोपरा के अधिनियम के 20 वर्ष बाद भी भारत में उपभोक्ता ज्ञान बहुत धीरे-धीरे फैल रहा है। श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कानूनों के लागू होने के बावजूद, खासतौर से असंगठित क्षेत्र में ये कमजोर हैं। इस प्रकार, बाजारों के कार्य करने के लिए नियमों और विनियमों का प्रायः पालन नहीं होता। फिर भी, उपभोक्ताओं को अपनी भूमिका और अपना महत्त्व समझने की जरूरत है।
♦ उपभोक्ताओं की सक्रिय भागीदारी से ही उपभोक्ता आन्दोलन प्रभावी हो सकता है। इसके लिए स्वैच्छिक प्रयास और सबकी साझेदारी से युक्त संघर्ष की जरूरत है।
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