आतंकवाद

आतंकवाद

          हमारे देश में विभिन्न प्रकार के धर्मावलम्बी रहते हैं। सनातन धर्मी, आर्यसमाजी, ब्रह्मसमाजी, शैव, शाक्त, वैष्णव, कबीरपंथी, दादूपंथी, निरंकारी, सिख, ईसाई, मुसलमान, पारसी, शिया-सुन्नी आदि । सबके सब अपने-अपने धर्म-सम्प्रदाय का प्रचार करते हैं। एक-दूसरे से टकराते हैं और अपने धर्म सम्प्रदाय को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए समय-समय पर प्रदर्शन, जुलूस, नारेबाजी, भूख हड़ताल घेराव और दंगा-फसाद आदि किया करते हैं। इससे काफी धन-जन की हानि होती है। ऐसी दुराचारपूर्ण घटनाएँ घटित होती रहती हैं, जो मानव को मानवता से गिराकर पशुता में बदल देती हैं। इसमें मनुष्य का भौतिक पतन सब प्रकार से होने लगता है। वह पाशविक कुप्रवृत्ति में लिप्त हो उठता है। वह अनपेक्षित घृणित कर्म को करने में तनिक भी संकोच नहीं करता है ।
          सम्प्रदायिकता के अभिशाप के फलस्वरूप ही आज हमारा देश पूर्ण रूप से अशान्त और असुरक्षित होने का अनुभव कर रहा है। इस देश को आन्तरिक स्थिति की नींव हिल-डुल रही है। यह न केवल पंजाब- समस्या से लंगड़ा-बौना हो रहा है । अपितु असम-समस्या, हिन्दू-मुस्लिम समस्या विवाद से उत्पन्न हुई बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि को गंभीर समस्या से भी रोगग्रस्त होता जा रहा है। इसी साम्प्रदायिकता के अभिशाप से हमारे देश की अखंडता को भाषा-समस्या भी दीमक की तरह चाटती हुई बेदम करती जा रही है ।
          अतएव साम्प्रदायिकता के अभिशाप से किसी समाज या राष्ट्र का पिण्ड तभी छूट सकता है, जब शासन और समाज दोनों ही इसे गंभीरता से दूर करने के लिए कमर कस लें, अन्यथा इससे राष्ट्र की शक्ति और महत्त्व को गिरने में तनिक देर नहीं लगेगी ।
          ‘आतंकवाद’ शब्द में दो शब्द हैं- आतंक और वाद। आतंक का शाब्दिक अर्थ है-डर, भय आदि और वाद का अर्थ है- सिद्धान्त या समर्थन । इस प्रकार से आतंकवाद का अर्थ हुआ भय का सिद्धान्त या समर्थन अर्थात् आतंकवाद के द्वारा हमारे मन में भय या डर का भाव भरने का जो सिद्धान्त अथवा समर्थन किया जाता है, उसे ही आतंकवाद कहा जाता है। हमारे देश और दूसरे देश में आतंकवाद की विष-बेल फैल चुकी है। उससे यही भाव तो स्पष्ट होता है, लेकिन इससे कुछ अवश्य भिन्न-भाव की प्रकट होता है। आतंकवाद अंग्रेजी शब्द टैरिरिज्म का हिन्दी अनुवाद है- जिसका मुख्य अर्थ यही है कि प्रत्यक्ष युद्ध या विवाद से सम्पूर्ण जनमानस और वर्तमान शासन प्रणाली अपने को उद्देश्य की प्राप्ति के लिए जो भयजनक वातावरण तैयार करने का सिद्धान्त अपनाना ही आतंकवाद है।
          भारत में आतंकवाद नक्सलवाद के कठोर और निर्दय स्वरूप से आया क्योंकि नक्सलवाद में बेगुनाह लोगों की हाय-हत्या सुनाई पड़ती है। आंध्र प्रदेश, बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उड़ीसा नक्सलवाद के प्रमुख क्षेत्र रहे हैं । ‘भारत में आतंकवाद का बीजारोपण कांग्रेस-दल के आपसी मतभेद के फलस्वरूप उस समय हुआ जब आपातकाल के बाद हुए चुनाव में इन्दिरा सरकार की पराजय के बाद जनता पार्टी का शासन स्थापित हुआ था। जब यह जनता पार्टी सरकार चलाने में असमर्थ होकर लगभग ढाई साल में ही अयोग्य हो गई, तब इसका लाभ उठाते हुए श्रीमती इन्दिरा गांधी पुनः सत्ता में आ गयीं। कांग्रेसियों की आपसी अनबन के कारण ही पंजाब के श्री संत भिंडरवाला को श्रीमती इन्दिरा गांधी ने महत्त्व देना शुरू किया था। इससे वहाँ का वातावरण बदल जाएगा। हुआ भी यही संत भिंडरवाला पंजाब के सर्वाधिक शक्तिशाली सिख नेता बनकर सबको डराने धमकाने लगे। सभी लोग उनके आदेश का पालन करने लगे और जो विरोधी बने, वे मौत के घाट उतार दिए गए। इस तरह सम्पूर्ण पंजाब में भिंडरवाला का पूरा आतंक छा गया था। इसने इन्दिरा कांग्रेस को भी दहशत में डाल दिया। इसके परिणामस्वरूप इन्दिरा सरकार ने स्वर्ण मन्दिर पर सैनिक कार्रवाई की थी । धर्म पर सैनिक बल का प्रयोग किया था, जिससे संत भिंडरवाला का अंत अनेक आतंकवादियों के साथ ही हो गया था । इसके विरोध में आतंकवाद और उमड़कर सामने आया। उसने तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या कर दी । समस्त देश में सिक्ख हिन्दू दंगे हुए और अनेकानेक लोगों ने अपनी-अपनी जानें गवां दीं ।
          श्रीमती इन्दिरा गांधी की मृत्यु के बाद श्री राजीव गांधी देश के प्रधानमन्त्री बने । आतंकवाद को समाप्त करने के लिए इन्होंने संत लोंगोवाल के साथ समझौता किया लेकिन लोंगोवाल की भी हत्या कर दी गयी। आतंकवाद का ज्वर आज अधिक हो गया है; क्योंकि समझौता सफल नहीं हो रहा है।
          आज आतंकवाद ने इतना सिर उठा लिया है कि हम प्रतिदिन समाचारपत्र, रेडियो, दूरदर्शन, आम जनसम्पर्क के द्वारा कहीं-न-कहीं अवश्य हाय-हत्या की खबर्रता सुना-देखा करते हैं । इस प्रकार से जो भी घटनाएँ हो रही हैं वे सब नियोजित ढंग से हो रही हैं, जो साम्प्रदायिकता और क्षेत्रवादिता से प्रभावित हमें क्षेत्रवाद सम्प्रदायवाद से दूर हो कर आतंकवाद का मुकाबला करना चाहिए।
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