आजाद भारत में मुगलों ने मांगी भीख, अंग्रेजों ने 29 बेटों और पोतों का किया था कत्ल
Mughal Families In Free India : अंग्रेजों ने जब भारत पर कब्जा किया, तो देश पर मुगलों का शासन था. बहादुर शाह जफर मुगलों के अंतिम बादशाह थे. मुगल बादशाह जहांगीर के काल में ही अंग्रेज भारत आ चुके थे, लेकिन उस वक्त वे व्यापार करने के लिए भारत आए थे. औरंगजेब के काल तक अंग्रेजों ने अपनी ताकत बढ़ा ली थी, लेकिन वे शासन को चुनौती देने की स्थिति में नहीं थे, लेकिन मुगल बादशाह फर्रुखसियर (1713-1719) के समय वे बहुत शक्तिशाली हो गए थे. मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय जिसका शासन काल 1759-1806 तक था, उसी के काल में मुगल अंग्रजों के गुलाम हो गए, वह समय था 1803. अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर नाम मात्र के बादशाह थे, क्योंकि अंग्रेजों ने पूरे भारत पर कब्जा कर लिया था, बहादुर जफर उनके अधीन नाममात्र के बादशाह थे, जिनका शासन सिर्फ लालकिले तक सीमित था.
अंग्रजों ने जब भारतीय राज्यों और रियासतों को हड़पने के लिए हड़प नीति लाई, तो पूरे देश से उनके खिलाफ आवाज बुलंद की गई और 1857 का विद्रोह हुआ. चूंकि उस वक्त बहादुर शाह जफर देश के बादशाह थे, इसलिए उन्हें इस विद्रोह का नेता घोषित किया गया. 1857 का विद्रोह कामयाब नहीं हुआ और अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचल दिया. बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके खिलाफ मुकदमा चला, उन्हें देश निकाला दिया गया और रंगून भेज दिया गया. 1862 में वहीं उसकी मौत हो गई.
बहादुर शाह जफर के बेटे-बेटियों और पत्नियों का क्या हुआ?
बहादुर शाह जफर की कुल कितनी पत्नियां थीं इसके बारे में दावे से कहना मुश्किल है, लेकिन आधुनिक इतिहासकार विलियम डलरिम्पल (William Dalrymple) ने अपनी किताब The Last Mughal में लिखा है कि उनकी कुछ प्रमुख पत्नियां थीं, इसके अलावा कई उप-पत्नियां भी थीं. बहादुर शाह जफर की प्रमुख पत्नियों में पहले नाम आता था ताज महल बेगम का,जो उनकी पहली और प्रमुख पत्नी थी, लेकिन 1840 में जब बहादुर शाह ने जीनत महल से शादी की, तो ताज महल बेगम का प्रभाव कम हो गया और जीनत ने बादशाह को अपने प्रभाव में ले लिया. शादी के वक्त जीनत कि उम्र महज 19 साल कि थी जबकि जफर 65 से अधिक के थे. जीनत महल इस कोशिश में थी कि बादशाह उसके बेटे मिर्जा जवान बख्त को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दे, जो उनके 16 बेटों में से 15वें स्थान पर था. लेकिन 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने मुगलों को खत्म करने के लिए उनके 29 पुरुषों जिनमें उनके बेटे और पोते शामिल थे,उन्हें दिल्ली में ही मार दिया था.
मिर्जा मुगल, मिर्जा खुर्शीद और मिर्जा अबू बकर को चांदनी चौक में गोली मारी गई
बहादुर शाह जफर के तीन बेटों मिर्जा मुगल, मिर्जा खुर्शीद और मिर्जा अबू बकर को अंग्रेजों ने 1857 के विद्रोह के बाद चांदनी चौक में गोली मार दी थी. अंग्रेज यह चाहते थे कि मुगलों का पतन हो जाए, इसी वजह से उन्होंने लगभग सभी राजकुमारों को मार दिया.
जीनत महल और ताजमहल बेगम का क्या हुआ?

बहादुरशाह जफर को जब निर्वासन दिया गया, तो उनके साथ हरम की महिलाएं और दोनों बेगम जीनत और ताज के साथ कुल 30 लोग रंगून जा रहे थे. विलियम डलरिम्पल ने अपनी किताब The Last Mughal में लिखा है कि जीनत महल और उसके बेटे जवान बख्त ने तो रंगून तक जफर का साथ दिया, लेकिन ताजमहल बेगम और लगभग अन्य 15 लोगों ने जिनमें हरम की महिलाएं भी थीं, इलाहाबाद के बाद आगे जाने से मना कर दिया. ताज महल बेगम ने कहा था कि मुझे बादशाह से कोई लेना-देना नहीं है, मेरा इनसे कोई बेटा भी नहीं है इसलिए मैं बादशाह के साथ जाना नहीं चाहती और वापस दिल्ली आ गई थीं. जीनत महल और उसके बेटे मिर्जा जवान बख्त रंगून गए, जहां वे बदहाल रहे. जवान बख्त को अफीम की लत थी और अपने पिता की हरम की किसी औरत से इश्क भी था. जीनत महल लकड़ी के घर में रह रही थी और उसी हाल में 1882 में उसकी मौत हो गई. जवान बख्त भी युवा अवस्था में ही मर गए, उसे लकवा मार गया था. ताज महल बेगम जब दिल्ली लौटी तो उसे अंग्रेजों की निगरानी में जीवन गुजारना पड़ा. उसपर यह आरोप था कि उसका संबंध जफर के भतीजे से था, वह भी गरीबी और तंगहाली में ही गुजर गई. जफर की एक और पत्नी शाह जमानी बेगम अंधी होकर मर गई.
जफर परिवार के जो बचे, उनका क्या हुआ?
अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर के अधिकतर परिवार वालों को मार दिया या निर्वासन में मरने के लिए छोड़ दिया. जो देश में रहे उन्हें भी अंग्रेजों ने बहुत कम पेंशन दिया और अन्य रानियों और परिजनों को बांट दिया, जिसकी वजह से उनमें विवाद होने लगे और वे गरीबी और बदहाली में जीते हुए मर गए.
कौन है सुलताना बेगम जो खुद को बताती हैं बहादुर शाह जफर की वारिस
हावड़ा में रहने वाली सुलताना बेगम खुद को जफर के पोते मिर्जा बकर के पोते की बहू यानी जफर के परपोते की पत्नी होने का दावा करती हैं. उन्हें सरकार की ओर से कुछ पेंशन भी मिलता है, लेकिन उन्हें मुगलों की उत्तराधिकारी के रूप में कोई मान्यता नहीं मिली है. कोर्ट ने भी सुलताना बेगम की अपील पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया है.
क्या मुगलों को आजादी के बाद अन्य रियासतों की तरह मिला था प्रिवी पर्स
आजादी के बाद जब देसी रियासतों को भारत में शामिल किया गया था, तो उन्हें प्रिवी पर्स दिया गया था, जिसके तहत हर माह उन्हें लाखों रुपए दिये जाते थे, लेकिन मुगलों को इस तरह का कोई प्रिवी पर्स नहीं दिया गया था, क्योंकि उनका शासन तो 1857 में ही समाप्त हो गया था और वे कहीं के राजा नहीं थे. देसी रियासतों को दिया जाने वाला प्रिवी पर्स भी 1971 में बंद कर दिया गया था. यानी कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि 1857 के विद्रोह के बाद मुगलों का पूरी तरह पतन हो गया और अधिकांश मुगल राजकुमारों, राजकुमारियों और रानियों का अंत हो गया, जो बचे वे तंगहाली और बेबसी में जिए.
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