अमेरिकी टैरिफ की धमकी से शेयर बाजार में गिरावट, सेंसेक्स और निफ्टी लुढ़के

US Tariff Impact: अमेरिकी टैरिफ की नई धमकी के बाद आज भारतीय शेयर बाजार बुरी तरह गिर गया है. इस खबर से सेंसेक्स और निफ्टी में तेज गिरावट दर्ज की गई, जिससे निवेशकों में हड़कंप मच गया है. व्यापार युद्ध बढ़ने की आशंकाओं के बीच वैश्विक बाजारों में भी अनिश्चितता का माहौल है, जिसका सीधा असर घरेलू निवेशकों के विश्वास पर पड़ा है. बाजार खुलते ही बिकवाली का दबाव बढ़ गया और दिन भर गिरावट जारी रही, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं. 

टैरिफ धमकी और शेयर बाजार पर असर

हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए नए टैरिफ की धमकी से भारतीय शेयर बाजार में बड़ी गिरावट देखी गई. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की रूस से तेल खरीद को लेकर भारत पर और अधिक टैरिफ लगाने की चेतावनी ने निवेशकों की चिंता बढ़ा दी. मंगलवार, 5 अगस्त, 2025 को शुरुआती कारोबार में भारतीय शेयर बाजारों में सुस्ती देखी गई.

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 199 अंक या 0. 25 प्रतिशत गिरकर 80,819 पर आ गया. कुछ समय बाद यह 315. 03 अंक या 0. 39 प्रतिशत की गिरावट के साथ 80,703. 69 अंक पर कारोबार कर रहा था. एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, सेंसेक्स 351. 6 अंक गिरकर 80,665. 8 रुपये पर आ गया. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी 44. 05 अंक या 0. 18 प्रतिशत गिरकर 24,678. 70 पर आ गया. निफ्टी भी 41. 80 अंक या 0. 17 प्रतिशत फिसलकर 24,680. 95 अंक पर आ गया. सुबह के कारोबार में निफ्टी मिडकैप 100 इंडेक्स 0. 71 प्रतिशत और निफ्टी स्मॉलकैप 100 इंडेक्स 0. 38 प्रतिशत गिरकर कारोबार कर रहे थे.

इससे पहले, 1 अगस्त को भी कमजोर वैश्विक संकेतों और अमेरिकी टैरिफ संबंधी चिंताओं के कारण सेंसेक्स 585 अंक लुढ़ककर 80,599 पर और निफ्टी 203 अंक गिरकर बंद हुआ था.

गिरावट के प्रमुख कारण

बाजार में इस गिरावट के कई कारण सामने आए हैं, जिनमें अमेरिकी टैरिफ धमकी सबसे प्रमुख है. ट्रंप प्रशासन की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत भारत सहित कई देशों पर टैरिफ लगाए गए हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर रूस से तेल खरीद पर नाराजगी जताई है और इसी कारण टैरिफ बढ़ाने की चेतावनी दी है. उन्होंने 25% तक टैरिफ और जुर्माने की बात कही है.

इसके अतिरिक्त, विदेशी पूंजी की लगातार निकासी भी बाजार की नकारात्मक भावना को बढ़ा रही है. विदेशी पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (एफपीआई) का रुख भारतीय बाजार के प्रति नकारात्मक रहा है. जुलाई 2025 में एफपीआई ने भारतीय शेयर बाजार से 17,741 करोड़ रुपये की भारी निकासी की, जिससे इस साल कुल निकासी 1. 01 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई है. यह तीन महीने की लगातार खरीदारी के बाद पहली बड़ी बिकवाली है. अकेले गुरुवार (1 अगस्त) को ही उन्होंने करीब 5,589 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे. डॉलर की मजबूती ने भी निकासी को बढ़ावा दिया है, क्योंकि डॉलर इंडेक्स में मजबूती से विदेशी निवेशक अपना पैसा अमेरिका या अन्य मजबूत अर्थव्यवस्थाओं की ओर स्थानांतरित कर रहे हैं.

अन्य कारणों में कंपनियों के कमजोर तिमाही नतीजे भी शामिल हैं, जिससे विदेशी निवेशकों की चिंता बढ़ी है. अप्रैल से जून तिमाही में कई कंपनियों का प्रदर्शन उम्मीद से कमजोर रहा, खासकर आईटी और बैंकिंग सेक्टर में सुस्ती देखी गई.

बाजार पर गहराता प्रभाव और सेक्टरवार असर

अमेरिकी टैरिफ की धमकी से बाजार में कई सेक्टरों पर असर पड़ा है. निफ्टी एफएमसीजी सबसे अधिक 0. 55 प्रतिशत नीचे रहा, जबकि निफ्टी बैंक 0. 12 प्रतिशत और निफ्टी आईटी इंडेक्स 0. 25 प्रतिशत नीचे आया.

सेक्टर प्रभाव
निफ्टी एफएमसीजी 0. 55% की सबसे अधिक गिरावट
निफ्टी बैंक 0. 12% की गिरावट
निफ्टी आईटी 0. 25% की गिरावट
निफ्टी मिडकैप 100 0. 71% की गिरावट
निफ्टी स्मॉलकैप 100 0. 38% की गिरावट

सबसे ज्यादा नुकसान झेलने वाले शेयरों में BEL, अडानी पोर्ट्स, इंफोसिस, HDFC बैंक, रिलायंस और सन फार्मा जैसी कंपनियां शामिल रहीं, जिनके शेयरों में 1. 37 प्रतिशत तक की गिरावट आई. वहीं, टॉप गेनर्स की लिस्ट में एक्सिस बैंक, एसबीआई, अल्ट्राटेक सीमेंट, मारुति सुजुकी इंडिया और भारती एयरटेल शामिल रहे, जिनके शेयरों ने 0. 67 प्रतिशत तक की बढ़त हासिल की.

अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिकी टैरिफ का सीधा असर भारत के निर्यात पर पड़ेगा. यदि अमेरिका भारत से आयात होने वाले उत्पादों पर टैरिफ लगाता है, तो वे उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे, जिससे भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाएगी. इससे भारत का व्यापार घाटा बढ़ सकता है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ सकता है और यह डॉलर के मुकाबले कमजोर हो सकता है. कमजोर रुपया आयात को महंगा बनाता है, जिससे महंगाई बढ़ सकती है और आम आदमी की जेब पर बोझ पड़ सकता है.

पीएल कैपिटल के सलाहकार प्रमुख विक्रम कासट ने कहा, “तकनीकी मोर्चे पर, निफ्टी का 24,956 के उच्च स्तर को पार करना अल्पकालिक गिरावट के रुझान को उलट सकता है, लेकिन तब तक, मंदड़ियों का पलड़ा भारी रहेगा.” उन्होंने यह भी कहा कि निफ्टी के लिए तत्काल समर्थन क्षेत्र 24,550 और 24,442 हैं, जबकि प्रतिरोध क्षेत्र 24,900 और 25,000 पर हैं.

विदेशी निवेशकों की भूमिका

भारतीय शेयर बाजार की चाल में विदेशी निवेशकों की भूमिका अहम होती है. हाल के दिनों में फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (एफपीआई) का रुख बाजार के प्रति नकारात्मक रहा है, जिसका असर बाजार की दिशा पर साफ नजर आ रहा है. पिछले 9 कारोबारी सत्रों में एफपीआई ने करीब 27,000 करोड़ रुपये की निकासी की है. इस महीने एफपीआई के रुझान में यह बड़ा बदलाव हैरान करने वाला है, जिसने अपने पिछले तेजी के रुख को पलटा है. अप्रैल से जून तक विदेशी निवेशकों ने बाजार में स्थिरता दी थी, लेकिन अब उनका भरोसा डगमगाने लगा है.

एफपीआई की बिकवाली के पीछे कई कारण बताए गए हैं. कमजोर तिमाही नतीजे, डॉलर की मजबूती और अमेरिका की टैरिफ नीति जैसे अंतरराष्ट्रीय हालात निवेशकों के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका और रूस के साथ संतुलन बनाए रखने की भारत की नीति पर वैश्विक संदेह बढ़ा है, जिससे भारत का “सुरक्षित निवेश स्थल” वाला दर्जा प्रभावित हो सकता है.

मार्केट विशेषज्ञ सुनील सुब्रमण्यम के अनुसार, एफपीआई की बिकवाली के पीछे कई आर्थिक कारण हैं. उन्हें पहले ही आशंका थी कि भारत को ट्रेड डील से विशेष लाभ नहीं मिलेगा. एंजल वन के वरिष्ठ बुनियादी विश्लेषक वकारजावेद खान ने भी कहा कि वैश्विक बाजारों और वृहद घटनाक्रमों के साथ-साथ भारत में नतीजों के सीजन के कारण एफपीआई ने निकासी की है.

सरकार और उद्योग जगत की प्रतिक्रिया

भारत सरकार ने अमेरिकी टैरिफ की धमकी का दृढ़ता से जवाब दिया है. भारत ने ट्रंप के टैरिफ लगाने की चेतावनी को “अनुचित” बताया है और अपने आर्थिक हितों की रक्षा करने की कसम खाई है. भारत सरकार का मानना है कि यूक्रेन युद्ध की शुरुआत में अमेरिका ने खुद भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था ताकि अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा बाजार में कीमतें स्थिर रह सकें. भारत ने स्पष्ट किया है कि रूस से कच्चे तेल का आयात भारतीय उपभोक्ताओं को उनके सामर्थ्य के अनुसार ईंधन खरीदने की सुविधा देने के लिए है.

वैश्विक व्यापार पर बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों और अमेरिका की टैरिफ नीति में आ रहे बदलावों के बीच भारत सरकार ने निर्यातकों के हितों की सुरक्षा के लिए एक ठोस रणनीति तैयार की है. भारत ने एक दीर्घकालिक “एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन” लाने का फैसला किया है. यह मिशन भारतीय निर्यातकों को मौजूदा आर्थिक दबावों से राहत देगा और भारत को वैश्विक सप्लाई चेन में एक मजबूत स्तंभ के रूप में स्थापित करेगा. वाणिज्य मंत्रालय, एमएसएमई मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के सहयोग से तैयार की जा रही यह योजना सितंबर से लागू की जाएगी.

सरकार ने टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए लगभग 20,000 करोड़ रुपये के बजट के साथ एक बहुआयामी रणनीति बनाई है. इस योजना के प्रमुख आयामों में शामिल हैं:

  • सस्ता और सुलभ ऋण: निर्यातकों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाएगा.
  • गैर-टैरिफ बाधाओं से निपटना: अमेरिकी बाजार सहित अन्य देशों में नॉन-टैरिफ बैरियर्स (जैसे क्वालिटी चेक्स, लेबलिंग नॉर्म्स) के समाधान के लिए विशेष उपाय किए जाएंगे.
  • ब्रांड इंडिया को वैश्विक मंच पर लाना: भारत की पहचान एक मजबूत निर्यातक राष्ट्र के रूप में बनाने के लिए “ब्रांड इंडिया” को ग्लोबल मार्केट में प्रमोट किया जाएगा.
  • ई-कॉमर्स हब और जिला स्तरीय निर्यात केंद्र: देशभर के जिलों को छोटे निर्यात केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा और अंतरराष्ट्रीय ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के साथ साझेदारी की जाएगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को मजबूत करने पर जोर दिया है और लोगों से स्वदेशी सामान खरीदने का आह्वान किया है. सरकार का उद्देश्य केवल तत्काल प्रतिक्रिया देना नहीं, बल्कि आने वाले वर्षों में भारतीय निर्यात को मजबूती देना है ताकि विश्व व्यापार में देश की भूमिका और भी मजबूत हो.

आगे की राह: चुनौतियां और अवसर

अमेरिकी टैरिफ की धमकी ने भारत के सामने तत्काल चुनौतियां और दीर्घकालिक अवसर दोनों पेश किए हैं. एक ओर, निर्यात में कमी, रुपये पर दबाव और कुछ उद्योगों में सुस्ती की आशंका है. लघु एवं मध्यम उद्यम (एसएमई) विशेष रूप से टैरिफ वृद्धि के प्रति संवेदनशील होते हैं, क्योंकि उनके पास सीमित कार्यशील पूंजी और छोटे मार्जिन होते हैं.

दूसरी ओर, यह स्थिति भारत को अपनी आर्थिक रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन और सुदृढ़ीकरण करने का अवसर भी देती है. भारत आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ रहा है और निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखता है. विश्लेषकों का सुझाव है कि ट्रंप की नीतियां हास्यास्पद तब हो जाती हैं जब वे भारत के व्यापार करने के अधिकार पर अंकुश लगाने की कोशिश करते हैं.

प्रवक्ता. कॉम के ललित गर्ग ने कहा, “ट्रंप का टैरिफ एक चुनौती है, लेकिन भारत की आत्मा में संघर्ष से जीतने का इतिहास है. हमने हर संकट को अवसर में बदला है, और इस बार भी हम यही करेंगे, न केवल अपनी अर्थव्यवस्था के लिए, बल्कि वैश्विक आर्थिक संतुलन के लिए भी.”

मजबूत घरेलू आर्थिक आंकड़े और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक से पहले आशावाद बाजार को तेजी प्रदान कर सकता है. निवेशक अब आरबीआई के फैसले पर भी नजर बनाए हुए हैं, जिससे रेपो रेट में कटौती को लेकर कुछ अहम फैसलों की उम्मीद है. घरेलू संस्थागत निवेशक (डीआईआई) के पास निवेश के लिए पर्याप्त नकद संसाधन उपलब्ध हैं, जो इस गिरावट को एक अवसर में बदल सकते हैं.

वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच, भारत के पास व्यापार संबंधों को बेहतर बनाने और आर्थिक अनुकूलता बढ़ाने का एक अनूठा अवसर है. क्षेत्रीय विकास, तकनीकी प्रगति और क्षेत्रीय व्यापार साझेदारियों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत बदलते वैश्विक परिदृश्य का लाभ उठा सकता है. सतत् विकास, क्षमता निर्माण और नवाचार-संचालित विकास पर रणनीतिक जोर देकर, भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी स्थिति बना सकता है.

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