अफसरों को जूते मारो, मैं चोरों का सरदार; सुधाकर सिंह के वे आठ बयान और मांगें, जो बनीं इस्तीफे का कारण
अफसरों को जूते मारो, मैं चोरों का सरदार; सुधाकर सिंह के वे आठ बयान और मांगें, जो बनीं इस्तीफे का कारण
बिहार के कृषि मंत्री सुधाकर सिंह को पहली बार मंत्रिमंडल में शामिल होने के दो माह के अंदर ही इस्तीफा देना पड़ गया। राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और सुधाकर के पिता ने सबसे पहले इसकी जानकारी मीडिया को दी। कुछ ही घंटे बाद उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की मार्फत सुधाकर का इस्तीफा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक पहुंचा और उन्होंने इसे तत्काल राज्यपाल फागु चौहान के पास अपनी अनुशंसा के साथ भेज दिया।
जगदानंद और सुधाकर के बयान सरकार को असहज करने वाले
अब सुधाकर सिंह बिहार के पूर्व कृषि मंत्री हो चुके हैं। कृषि विभाग दूसरे मंत्री को दे दिया गया है। इस प्रकरण के बीच आम लोगों के मन में कई तरह के सवाल पैदा हो रहे हैं। जगदानंद सिंह ने कहा कि सुधाकर ने किसानों के हित में अपना पद छोड़ा है। इससे पहले सुधाकर ने कहा था कि अगर किसानों के हितों की अनदेखी होगी, तो उन्हें कुर्सी को कोई मोह नहीं है।
सुधाकर के विवादित बयान
- मंत्री बनने के बाद से कृषि मंत्री सुधाकर सिंह सरकार पर हमले कर रहे थे। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, कृषि विभाग में चोर भरे पड़े हैं और वे मंत्री होने के नाते चोरों के सरदार है।
- माप तौल विभाग के अफसर पर वसूली का आरोप लगाया और कहा, कृषि विभाग का कोई अफसर पैसा मांगे तो जूते मारिएगा, मैं समझ लूंगा।
- कृषि रोड मैप को लेकर भी विवाद पैदा किए और कहा कृषि रोड मैप से न किसानों की आमदनी बढ़ी न पैदावार बढ़ी।
- मुख्यमंत्री ने जब मंत्रिमंडल की बैठक में विवादित बयानों पर उनका पक्ष जानना चाहा तो बैठक से निकल कर चले गए। लगातार सरकार विरोधी बातें सार्वजनिक मंच से कह रहे थे।
सुधाकर चाहते थे यह सब करना
- कृषि विभाग के सचिव एन सरवण कुमार का तबादला किया जाए।
- कृषि सुधार से जुड़ी मांगों पर सुनवाई नहीं, कृषि रोड मैप की जांच हो।
- मंडी व्यवस्था को राज्य में एक बार फिर प्रभावी बनाया जाए।
- कृषि बाजार समिति एक्ट को पुनर्जीवित करने के लिए पीत पत्र भी लिखा, चाहते थे प्रस्ताव कैबिनेट में लाया जाए।
सरकार की नीतियों से नहीं थे सहमत
शपथ ग्रहण से इस्तीफे तक सुधाकर सिंह ने कई ऐसे बयान दिए, जिससे सरकार पर सवाल खड़े हो रहे थे। उनकी मांगों और उनकी सोच से सरकार के शीर्ष स्तर पर बैठे लोग सहमत नहीं थे। दूसरी तरफ सुधाकर सिंह अपनी ही सरकार की नीतियों से सहमत नहीं थे।
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