हमारे 16वें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी

हमारे 16वें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी

          भारतीय राजनीतिक क्षितिज पर लोकप्रियता के शिखर पर सम्मानित राजनेताओं में श्री अटल बिहारी वाजपेयी का नाम अत्यन्त आदरणीय है। यही नहीं एक निष्पक्ष एवं विरोधी दल के नेता के रूप में आपका निडरतापूर्ण व्यक्तित्व भी एक युगीन छवि के रूप में भारतीय राजनीति के ऐतिहासिक काल-पृष्ठ पर सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।
          यह अत्यधिक रोचक बात है कि हिन्दुत्ववादी अटल का जन्म 1924 में क्रिसमस के दिन हुआ था। उनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी स्कूल मास्टर थे। उनके दादा पंडित श्याम लाल वाजपेयी जाने-माने संस्कृत के विद्वान थे। अपने प्रशंसकों में अटल जी नाम से लोकप्रिय श्री वाजपेयी की शिक्षा ग्वालियर में हुई, जहाँ विक्टोरिया कालेज आज का लक्ष्मीबाई कालेज से उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर के लिए वे डी. ए. वी. कालेज कानपुर चले गए। इसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई शुरू की, जिसे वह पूरा नहीं कर पाए। नौकरी से अवकाश लेने के बाद उनके पिता ने भी कानून की शिक्षा के लिए अपने बेटे के साथ प्रवेश लिया था। पिता पुत्र दोनों एक ही होस्टल में रहे थे। श्री वाजपेयी अपने शुरुआती जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सम्पर्क में आ गये थे और वह आर्य कुमार सभा के सक्रिय सदस्य रहे। उन्होंने 1941 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दामन थामा और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल गए । इस बारे में उनके विरोधियों का आरोप है कि उन्होंने क्षमायाचना कर जेल से अपनी रिहाई करा ली थी ।
          राष्ट्रीय स्वयं सेवक ने 1946 में उन्हें प्रचारक बनाकर लड्डुओं के लिए मशहूर शहर संडाला भेज दिया । कुछ महीने बाद उन्हें लखनऊ में राष्ट्र धर्म का सम्पादक नियुक्त किया गया । फिर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपना मुख्य पत्र पांचजन्य शुरू किया और श्री वाजपेयी उसके प्रथम सम्पादक बनाए गए। बाद के वर्षों में उन्होंने वाराणसी से प्रकाशित वीर चेतना साप्ताहिक, लखनऊ से प्रकाशित दैनिक स्वदेश और दिल्ली से प्रकाशित वीर अर्जुन का सम्पादन किया । श्री वाजपेयी की क्षमताओं, बौद्धिक कुशलता और भाषण कला को देखते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय जैसे नेताओं का ध्यान उनकी ओर गया । वह जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और बाद मे वह श्यामा प्रसाद मुखर्जी के निजी सचिव बन गये । श्री वाजपेयी ने 1955 में पहली बार चुनाव मैदान में कदम रखा। जब विजय लक्ष्मी पंडित द्वारा खाली की गई लखनऊ सीट के उपचुनाव में वह पराजित हो गए थे । आज वह इसी संसदीय क्षेत्र से जीतकर प्रधानमंत्री पद तक पहुँचे हैं। मौजूदा कार्यकाल समेत श्री वाजपेयी आठ बार लोकसभा के लिए चुने गये और दो बार वह राज्यसभा के सदस्य रहे।
          उन्होंने उत्तर प्रदेश की बलरामपुर सीट से चुनाव जीतकर 1957 में पहली बार लोकसभा में कदम रखा। वह 1962 में इस चुनाव क्षेत्र में कांग्रेस की सुभद्रा जोशी से हार गए। लेकिन 1967 में उन्होंने फिर इस सीट पर कब्जा कर लिया। उन्होंने 1971 में ग्वालियर सीट 1977 और 1980 में नयी दिल्ली 1991, 1996 तथा 1998 में लखनऊ संसदीय सीट पर विजय हासिल की। वह 1962-67 और 1986-89 में ऊपरी सदन से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष और 1977 के बाद जनता पार्टी के विभाजन के बाद बनी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक थे।
          जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में भी श्री वाजपेयी शामिल थे और आपात काल के बाद जनता पार्टी की आँधी चलने पर बनी मोरारजी देसाई सरकार में वह विदेश मंत्री बनाए गए। विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने निरस्त्रीकरण, पश्चिमी एशिया और रंगभेद की ओर सदस्य राष्ट्रों का ध्यान खींचा।
          आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण और अन्य विपक्षी नेताओं के साथ श्री वाजपेयी भी जेल गये । जब 1977 में आपातकाल समाप्त हो गया, तो जनसंघ के जनता पार्टी में विलय के काम में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
          श्री वाजपेयी को 1992 में पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया और 1994 में उन्हें श्रेष्ठ सांसद के तौर पर गोविंद बल्लभ पंत और लोकमान्य तिलक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
          श्री वाजपेयी ने अनेक पुस्तकें भी लिखी हैं, जिनमें उनके लोकसभा में भाषणों का संग्रह लोकसभा में अटल जी मृत्यु या हत्या, अमर बलिदान, कैदी कविराय की कुंडलिया कविता-संग्रह, न्यू-डाइमेंशन आफ इंडियाज, फॉरेन पालिसी, फोर डिकेड्स इन पार्लियामेंट प्रकाशित पुस्तकें है । इनका काव्य संग्रह मेरी इक्यावन कविताएँ प्रमुख हैं।
          श्री वाजपेयी अनेक प्रमुख संसदीय समितियों के सदस्य रहे हैं। वह साठ के दशक में आश्वासन समिति और इसी दशक में लोक लेखा समिति के अध्यक्ष रहे। अपने कुशल, सफल अद्भुत और संघर्षशील व्यक्तित्व के प्रभाव के फलस्वरूप भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल के नेता के रूप में श्री वाजपेयी ने राष्ट्रपति के. आर. नारायण के समक्ष, केन्द्र में नयी सरकार बनाने का दावा 10 मार्च 1998 को पेशकर दिया। राष्ट्रपति ने श्री वाजपेयी को 19 मार्च 1998 को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलायी। श्री वाजपेयी ने संसद में 29 मार्च 1998 को अपना बहुमत सिद्ध कर दिया। तब से श्री वाजपेयी इस पद पर कुशलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं ।
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