हमारे कॉलिज में एक महापुरुष का शुभागमन
हमारे कॉलिज में एक महापुरुष का शुभागमन
कुछ घटनाएँ मानव-जीवन में अपनी अमिट छाप छोड़ जाती हैं। सम्भवतः मैं उस दिन को कभी न भूल सकूँगा, जिस दिन भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री नेहरू हमारे कॉलिज में आये थे । उत्तर प्रदेश के प्रमुख काँग्रेसी कार्यकर्ताओं का राजघाट नरौरा में एक सम्मलेन होने जा रहा था। नरौरा प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से गंगा किनारे एक सुरम्य स्थान है। पंडित नेहरू तथा श्रीमती इन्दिरा गाँधी उसी में भाग लेने के लिये दिल्ली से आ रहे थे । हमारे प्रधानाचार्य जी ने नगर के प्रसिद्ध कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से प्रार्थना की कि पण्डित जी को कुछ क्षणों के लिये कॉलिज में भी यदि ले आया जाये, तो बड़ी कृपा होगी। कई बार प्रार्थना करने पर नगर के नेताओं ने बात मान ली और कॉलिज के लिये पाँच मिनट का समय कार्यक्रम में लिखा दिया गया ।
केवल दो दिन का समय रह गया था। बहुत सुन्दर ढंग से स्वागत करने का निश्चय किया गया। कॉलिज के हॉल की तूतिया से पुताई आरम्भ हो गई। दरवाजों और खिड़कियों पर वार्निश होने लगी । पुताई के पश्चात् जमीन पर फर्श बिछा दिये गये और उन पर अभी नया फर्नीचर याया था, लगा दिया गया। आगे अतिथियों एवम् महिलाओं के बैठने की व्यवस्था की गई। उनके लिये हत्थे वाली कुर्सियाँ थीं और उनके पीछे कॉलिज के छात्रों के लिये स्टूल थे। सामने मंच बनाया गया था, काफी ऊंचे दो तख्त थे, जो मिलाकर बिछाये गये थे। उनके चारों ओर बांस लगाकर ऊपर छत बनाई गई थी। बांसों के ऊपर लाल कपड़ा तथा गोटा लगाया गया था। मण्डप की छत फूलों के गुच्छे लटकाये गये थे, मंच पर बहुत सुन्दर सुनहरी साड़ियों से बनाई गई थी। उसमें तरह-तरह के मुगल काल की कालीनें बिछाई गई थीं और सलमा सितारों के कामदार तकिये थे। मंच के पीछे की दीवार पर भारतवर्ष का एक बड़ा नक्शा लगाया गया, अन्य दीवारों पर राष्ट्रीय नेताओं के चित्र सजाये गये और बीच-बीच मे तिरंगे झण्डे लगा दिए गये थे। कॉलिज के मुख्य द्वार पर एक हरी पत्तियों का बहुत बड़ा द्वार .i बनाया गया, जिस पर स्वागतम् और शुभागमन के बोर्ड लगा दिए गए। दिल्ली से फूल-मालाओं का प्रबन्ध किया गया था। ढाई सौ फूल-मालायें मँगाई गई थीं जिनमें से डेढ़ सौ तो मंच की सजावट में खर्च हो गई थीं और भिन्न-भिन्न पुष्पों को सौ मालायें पण्डित जी को पहिनाने और कुछ उनके ऊपर पुष्प वर्षा करने के लिए रख ली गई थीं। अब वे क्षण कुछ ही दूर थे, जबकि हमारे मान्य अतिथि हमारे मध्य में आने वाले थे। दर्शकों की भीड़ कॉलिज में उमड़ी चली आ रही थी। चारों ओर सशस्त्र पुलिस लगी हुई थी सिपाही और दीवानों की तो बात ही क्या, वहाँ थानेदार और डी० एस० पी० घण्टों से ड्यूटी दे रहे थे। सी० आई० डी० चारों ओर घूम रही थी । खद्दर की टोपियाँ और खद्दर के कुर्ते ही अधिक दिखाई पड़ रहे थे। गणमान्य नागरिक और आमन्त्रित नेता तथा कॉलेज के छात्र पहले से ही हॉल में बैठा दिये गए थे। द्वार पर केवल स्वागत करने वाले अधिकारी थे। सभी लोगों की दृष्टि उसी मार्ग पर लगी हुई थी, जिधर से पण्डित नेहरू की कार आने वाली थी । सभी लोग बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे। इतनें में ही लाल झण्डे वाली मोटर साइकिल दनदनाती हुई आई, जिस पर आगे पाइलैट चलता है। चारों ओर शोर मच गया “नेहरू जी आने वाले हैं, नेहरू जी आने वाले हैं। “दो-तीन मिनट के बाद ही चौदह-पन्द्रह कार एक साथ कॉलिज के द्वार पर आकर रुकीं । एक में डी० एम० थे, दूसरी में एस० पी० कुछ कारों में उत्तर प्रदेश के कुछ मन्त्री थे, और कुछ में पण्डित जी के निजी व्यक्ति बीच की कार में से मुस्कराते हुये “पण्डित नेहरू” बाहर आये। उनके पीछे उनकी इकलौती पुत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी थीं। “पण्डित नेहरू की जय” के गगन-भेदी नारों से आकाश गूंजने लगा | उनके स्वागत में धांय- धांय ग्यारह बन्दूकें छोड़ी गई । प्रधानाचार्य तथा अन्य गणमान्य लोगों ने पण्डित जी को पुष्पहार पहनाये। कमरों के ऊपर से छात्रों ने पुष्प पर्षा की । एन० सी० सी० और पी० ई० सी० के छात्र सैनिकों का निरीक्षण करते हुये पण्डित जी सीधे मंच की ओर पहुँचे । पण्डित जी बहुत तीव्र गति से चल रहे थे। उनके शरीर में स्फूर्ति थी, मुख-मण्डल तेजोमय था । अंग-रक्षक पीछे खड़े रह गए और पण्डित जी भीड़ को चीरते हुए तेजी से मंच पर पहुँचे। मुस्कारते हुए उन्होंने सबको नमस्कार किया। प्रधानाचार्य जी ने एक सूक्ष्म भाषण में नेहरू जी का अभिनन्दन किया, फिर कॉलेज के विद्यार्थी परिषद् के मन्त्री ने अभिवादन पत्र पढ़कर सुनाया और पण्डित जी को सादर भेंट किया।
अभिनन्दन-पत्र भेंट किये जाने के पश्चात् नेहरू जी भाषण देने के लिये खड़े हुए तो तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूँज उठा। फिर एकदम पूर्ण शान्ति हो गई। चारों ओर हॉल के भीतर तथा बाहर माइक का प्रबंध था। सर्वप्रथम उन्होंने हमारे द्वारा किए गये स्वागत का धन्यवाद दिया। अपने सारगर्भित भाषण में पहले तो छात्रों के कर्त्तव्य और अनुशासन पर प्रकाश डाला। स्वतन्त्रता संग्राम में छात्रों द्वारा किए गए कार्यों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि आज का विद्यार्थी कल का भावी नागरिक है। हम लोग सदैव शासन को नहीं चलाते रहेंगे। विद्यार्थी के लिए सच्चरित्रता बहुत आवश्यक है। इस तरह नेहरू जी ने हम लोगों के समक्ष लगभग दस मिनट तक भाषण दिया। भाषण समाप्त होते ही हॉल में एक बार तालियों का सामूहिक स्वर गूंज उठा। मंच से पण्डित नेहरू जी ने सबको फिर नमस्कार किया और तेजी से चल दिये। मैंने देखा कि नेहरू जी को न पुलिस चाहिये और न स्वयं सेवक । उनको सामने देखकर भीड़ स्वयं हट जाती थी। भीड़ में कितनी ही गड़बड़ी हो वे स्वयं ही झगड़ा दूर करते चले जाते थे। उन्हें न कोई भय था और न संकोच। भीड़ को पार करते हुए नेहरू जी सीधे अपनी कार तक पहुँचे। एक बार उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, जनता हाथ बाँधे खड़ी थी। उन्होंने भी हाथ जोड़कर सबको नमस्कार किया और गाड़ी में बैठ गये। सर-सर करती हुई सभी कारें एक के पीछे एक चलने लगीं, देखते-देखते नेहरू जी की कार हमारी दृष्टि से ओझल हो गई। दर्शनार्थियों की भीड़ अपने-अपने घर जाने लगी |
पण्डित नेहरू के प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का मेरे हृदय पर गम्भीर प्रभाव पड़ा । पण्डित जी का चन्द्रिका-स्नान गौर वर्ण, उनके उन्नत ललाट, दूर दिशा में अनावत की झाँकती हुई आँखें और गम्भीर मुद्रा, मुझे सदैव स्मरण रहेगी। मैंने यह अनुभव किया कि पण्डित नेहरू की वाणी में कोई जादू था । जनता मन्त्रमुग्ध होकर उनके एक-एक वाक्य को वेद वाक्य के समान सुनती थी । उस पर विचार करती थी। उनके ओजस्वी एवम् सारगर्भित भाषण की एक- एक पंक्ति विद्वानों और कूटनीतिज्ञों के मनन की एक वस्तु हो जाती थी । उनका तपोमय जीवन भारतवर्ष के प्रत्येक नागरिक के लिये एक आदर्श प्रस्तुत कर रहा है। उनका शान्ति और अहिंसा का सन्देश विश्व के कोने-कोने में गूँज रहा है। यह हमारे कॉलिज का सौभाग्य था कि उन जैसे महापुरुष ने हमारे यहाँ पधारने की कृपा की। उनके से निकले हुये महत्त्वपूर्ण शब्दों का आज तक मेरे हृदय पर प्रभाव ।
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