हमारा पर्यावरण Our Environment

हमारा पर्यावरण    Our Environment

 

♦ वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित हो जाते हैं, ‘जैव निम्नीकरणीय’ कहलाते हैं।
♦ वे पदार्थ जो इस प्रक्रम में अपघटित नहीं होते हैं ‘अजैव निम्नीकरणीय’ कहलाते हैं। यह पदार्थ सामान्यतया ‘अक्रिय (Inert)’ हैं तथा लम्बे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं अथवा पर्यावरण के अन्य सदस्यों को हानि पहुँचाते हैं।
पारितन्त्र
♦ सभी जीव जैसे कि पौधे, जन्तु, सूक्ष्मजीव एवं मानव तथा भौतिक कारकों में परस्पर अन्योन्यक्रिया होती है तथा प्रकृति में सन्तुलन बनाए रखते हैं। किसी क्षेत्र के सभी जीव तथा वातावरण के अजैव कारक संयुक्त रूप से पारितन्त्र बनाते हैं। अतः एक पारितन्त्र में सभी जीवों के जैव घटक तथा अजैव घटक होते हैं। भौतिक कारक; जैसे- ताप, वर्षा, वायु, मृदा एवं खनिज इत्यादि अजैव घटक हैं।
♦ उदाहरण के लिए, यदि आप बगीचे में जाएँ तो आपको विभिन्न पौधे जैसे-घास, वृक्ष, गुलाब, चमेली, सूर्यमुखी जैसे – फूल वाले सजावटी पौधे तथा मेंढक, कीट एवं पक्षी जैसे जन्तु दिखाई देंगे। यह सभी सजीव परस्पर अन्योन्यक्रिया करते हैं तथा इनकी वृद्धि, जनन एवं अन्य क्रियाकलाप पारितन्त्र के अजैव घटकों द्वारा प्रभावित होते हैं। अतः एक बगीचा एक पारितन्त्र है।
♦ वन, तालाब तथा झील पारितन्त्र के अन्य प्रकार हैं ये प्राकृतिक पारितन्त्र हैं, जबकि बगीचा तथा खेत मानव निर्मित (कृत्रिम ) पारितन्त्र हैं।
♦ जीवन निर्वाह के आधार जीवों को उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटक वर्गों में बाँटा गया है।
♦ सभी हरे पौधों एवं नील हरित शैवाल जिनमें प्रकाश संश्लेषण की क्षमता होती है, इसी वर्ग में आते हैं तथा उत्पादक कहलाते हैं।
♦ ये जीव जो उत्पादक द्वारा उत्पादित भोजन पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से निर्भर करते हैं, उपभोक्ता कहलाते हैं। उपभोक्ता को मुख्यतया शाकाहारी, माँसाहारी तथा सर्वाहारी एवं परजीवी में बाँटा गया है।
♦ आहार श्रृंखला एवं जाल विभिन्न जैविक स्तरों पर भाग लेने वाले जीवों की यह श्रृंखला आहार श्रृंखला का निर्माण करती हैं।
♦ आहार श्रृंखला का प्रत्येक चरण अथवा कड़ी एक पोषी स्तर बनाते हैं।
♦ स्वपोषी अथवा उत्पादक प्रथम पोषी स्तर हैं तथा सौर ऊर्जा का स्थिरीकरण करके उसे विषमपोषियों अथवा उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध कराते हैं।
♦ शाकाहारी अथवा प्राथमिक उपभोक्ता द्वितीयक पोषी स्तर; छोटे माँसाहारी अथवा द्वितीयक उपभोक्ता तीसरे पोषी स्तर; तथा बड़े माँसाहारी अथवा तृतीयक उपभोक्ता चौथे पोषी स्तर का निर्माण करते हैं।
♦ अनेक आहार श्रृंखलाओं के मिलने से आहार जाल का निर्माण होता है।
♦ पर्यावरण के विभिन्न घटकों के बीच ऊर्जा के प्रवाह
(i) एक स्थलीय पारितन्त्र में हरे पौधे की पत्तियों द्वारा प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा का लगभग 1% भाग खाद्य ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।
(ii) जब हरे पौधे प्राथमिक उपभोक्ता द्वारा खाए जाते हैं, ऊर्जा की बड़ी मात्रा का पर्यावरण में ऊष्मा के रूप में ह्रास होता है, कुछ मात्रा का उपयोग पाचन, विभिन्न जैव कार्यों में, वृद्धि एवं जनन में होता है। खाए हुए भोजन की मात्रा का लगभग 10% ही जैव मात्रा में बदल पाता है तथा अगले स्तर के उपभोक्ता को उपलब्ध हो पाता है।
(iii) अतः हम कह सकते हैं प्रत्येक स्तर पर उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों की मात्रा का औसतन 10% ही उपभोक्ता के अगले स्तर तक पहुँचता है।
(iv) क्योंकि उपभोक्ता के अगले स्तर के लिए ऊर्जा की बहुत कम मात्रा उपलब्ध हो पाती है, अतः आहार श्रृंखला सामान्यतया तीन अथवा चार चरण की होती हैं। प्रत्येक चरण पर ऊर्जा का ह्रास इतना अधिक होता है कि चौथे पोषी स्तर के बाद उपयोगी ऊर्जा की मात्रा बहुत कम हो जाती है।
(v) सामान्यतया निचले पोषी स्तर पर जीवों की संख्या अधिक होती है, अतः उत्पादक स्तर पर यह संख्या सर्वाधिक होती है।
(vi) विभिन्न आहार शृंखलाओं की लम्बाई एवं जटिलता में काफी अन्तर होता है। आमतौर पर प्रत्येक जीव दो अथवा अधिक प्रकार के जीवों द्वारा खाया जाता हैं, जो स्वयं अनेक प्रकार के जीवों का आहार बनते हैं। अत: एक सीधी आहार श्रृंखला के बजाए जीवों के मध्य आहार सम्बन्ध शाखान्वित होते हैं तथा शाखान्वित शृंखलाओं का एक जाल बनाते हैं जिसे ‘आहार जाल’ कहते हैं।
ओजोन परत
♦ पृथ्वी के चारों ओर समतापमण्डल में 15 से 35 किमी के बीच एक परत विद्यमान है, जो ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाले अणुओं, जिसे ओजोन कहा जाता है, से निर्मित है। ओजोन से बने इसी परत को ओजोन परत कहा जाता है।
♦ यह परत पृथ्वी की सुरक्षा के दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह पृथ्वी पर आने वाली सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करता है। सूर्य की ये पराबैंगनी किरणें प्राणियों के त्वचा के लिए अत्यन्त घातक हैं। इस तरह ओजोन परत पृथ्वी की सुरक्षा कवच का कार्य करती है।
ओजोन परत का क्षय
ओजोन परत के क्षय के कई कारण हैं
♦ औद्योगीकरण के बाद से वातावरण में हुए प्रदूषण के कारण पृथ्वी की इस सुरक्षा कवच में क्षरण हुआ है।
♦ ओजोन परत के क्षरण के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) एवं (CFC) एवं हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC) जैसे रासायनिक पदार्थ रहे हैं। इन दो पदार्थों के अतिरिक्त कार्बन टेट्राक्लोराइड, मिथाइल क्लोरोफॉर्म, मिथाइल ब्रोमाइड जैसे- रासायनिक पदार्थ भी ओजोन परत के क्षरण के लिए जिम्मेदार रहे हैं।
♦ ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण भी ओजोन परत को क्षति पहुँची है। पृथ्वी पर आने वाली सौर ऊर्जा की बड़ी मात्रा अवरक्त किरणों के रूप में पृथ्वी के वातावरण से बाहर चली जाती है। इस ऊर्जा की कुछ मात्रा ग्रीन हाउस गैसों द्वारा अवशं षित होकर पुन: पृथ्वी पर पहुँच जाती है जिससे तापक्रम अनुकूल बना रहता है।
♦ ग्रीन हाउस गैसों में मेथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्स ऑक्साइड इत्यादि हैं। वातावरण में ग्रोन हाउस गैसों का होना अच्छा है, किन्तु जब इनकी मात्रा बढ़ जाती है तो तापमान में वृद्धि में होने लगती है। इसके कारण पृथ्वी के ध्रुवों के ऊपर ओजोन परत को भारी क्षति पहुँची है। पिछले पचास वर्षों में इसकी क्षति में वृद्धि की दर अधिक रही है। संयुक्त राज्य अमेरिका की विभिन्न रिपोटा के अनुसार पृथ्वी के वायुमण्डल में ओ जोन परत में दो बड़े-बड़े छिद्र हैं। एक अण्टार्कटिका महासागर के ऊपर एव दूसरा आर्कटिक महासागर के ऊपर ।
ओजोन परत के क्षरण के घातक परिणाम
ओजोन परत के क्षरण के कई घातक परिणाम अब तक सामने आए हैं। यदि इसका क्षय नहीं रोका गया तो इसके और भी घातक परिणाम सामने आने की आशंका है।
♦ इसके कारण पृथ्वी पर आने वाली सूर्य की पराबैंगनी किरणों की मात्रा बढ़ जाएगी, जिसके कारण जीव-जन्तुओं को त्वचा सम्बन्धो अनेक प्रकार की समस्याओं (जैसे कैन्सर) का सामना करना पड़ेगा।
♦ पेड़-पौधों का विकास बाधित होने से अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ उत्पन्न होंगी। पृथ्वी के तापमान में अत्यधिक वृद्धि होगी, जिससे पर्यावरण सन्तुलन बिगड़ेगा।
कचरा प्रबन्धन
♦ किसी भी नगर एवं कस्बे में जाने पर चारों ओर कचरे के ढेर दिखाई देते हैं ।
♦ मानव द्वारा प्रयोग किए सामानों से निकले कचरे का प्रबन्धन एक गम्भीर समस्या है।
♦ कचरे का उपयोग ऊर्जा उत्पादन के लिए हो सकता है।
♦ यदि कचरे का सही प्रबन्ध किया जाए, तो ये ऊर्जा के अच्छे स्रोत हो सकते हैं और यदि निपटारा सही तरीके से नहीं किया गया, तो ये हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे।
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