सूरदास के पद

सूरदास के पद

सूरदास के पद कवि-परिचय

प्रश्न-
महाकवि सूरदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-महाकवि सूरदास का संपूर्ण भक्ति-काव्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। सूरदास सगुण भक्तिधारा की कृष्णभक्ति शाखा के कवि थे। उनकी जन्म-तिथि एवं जन्म-स्थान के विषय में पर्याप्त मतभेद हैं। उनका जन्म सन् 1478 से 1483 के लगभग स्वीकार किया गया है। कुछ विद्वानों का विचार है कि उनका जन्म रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था जबकि कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि उनका जन्म दिल्ली के निकट सीही नामक गाँव में हुआ था। ऐसा अनुमान है कि महाकवि सूरदास जन्मांध थे, किंतु सूर के बाल-लीला वर्णन, प्रकृति-चित्रण एवं रंग-विश्लेषण के वर्णन को पढ़कर विश्वास नहीं हो पाता कि वे जन्म से अंधे थे। सूर के गुरु महाप्रभु वल्लभाचार्य माने जाते हैं। गुरु जी से भेंट से पहले सूरदास प्रभु का गुणगान विनय के पदों में किया करते थे। अपने गुरु के आग्रह पर उन्होंने शेष जीवन में, अपने पदों द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की बाल-लीला, मुरली वादन, गोपी विरह (भ्रमरगीत) आदि का चित्रण किया। सूरदास की मृत्यु सन् 1583 में पारसौली में हुई।

2. प्रमुख रचनाएँ-सूरदास द्वारा रचित तीन रचनाएँ उपलब्ध हैं(1) ‘सूरसागर’, (2) ‘सूरसारावली’ तथा (3) ‘साहित्य लहरी’ ।
सूरसागर ‘श्रीमद्भागवत’ पर आधारित वृहत ग्रंथ है। इसके द्वादश स्कंध में श्रीकृष्ण की लीला का वर्णन है। 3. काव्यगत विशेषताएँ-सूरदास के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) विनय भाव-गुरु से भेंट से पूर्व सूरदास ने विनय के पदों की रचना की है। इनमें कवि ने स्वयं को दीन-हीन, तुच्छ, खल, कामी आदि तथा प्रभु को सर्वगुणसंपन्न कहा है; यथा
‘मो सम कौन कुटिल खल कामी।’
(ii) बाल-लीला वर्णन-सूरदास ने वात्सल्य वर्णन के अंतर्गत अपने उपास्य देव श्रीकृष्ण की बाल-छवि, बाल-क्रीड़ाओं, मुरलीवादन, माखन-चोरी आदि का मनोहारी चित्रांकन किया है। माखन-चोरी का एक उदाहरण देखिए
– “मैया मैं नहीं माखन खायो। .
ग्वाल बाल सब ख्याल परें हैं बरबस मुख लपटायौ।”

(iii) श्रृंगार-वर्णन-सूरदास ने श्रीकृष्ण की रास-लीला के माध्यम से श्रृंगार रस का अत्यंत मनोहारी चित्रण किया है। ‘भ्रमरगीत’ में गोपियों की विरह दशा का हृदयस्पर्शी चित्रण किया गया है। एक उदाहरण देखिए
“ऊधौ, मन नाहिं दस बीस।
एक हुतो सो गयो स्याम संग, कौन आराधे ईस।”

सूर काव्य की रचना ब्रज प्रदेश में हुई है। अतः कवि ने ब्रज प्रदेश की प्रकृति का स्वाभाविक वर्णन किया है। उन्होंने प्रकृति के उद्दीपक रूप का अधिक वर्णन किया है, लेकिन कवि को प्रकृति के कोमल रूप से अधिक प्रेम है। ‘सूरसागर’ में प्रकृति-वर्णन के अनेक स्थल हैं; यथा
‘पिय बिनु नागिन काली रात।’ ।

4. भाषा-शैली-सूरदास के काव्य की भाषा शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा है। उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दावली का भी सुंदर एवं सार्थक मिश्रण किया गया है। कवि ने यथास्थान मुहावरों और लोकोक्तियों का भी सुंदर प्रयोग किया है जिससे भाषा में अधिक सार्थकता आ गई है। सूरदास का संपूर्ण काव्य पद अथवा गेय शैली में रचित है। सूरदास के काव्य में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, श्लेष, अतिशयोक्ति आदि अलंकारों का सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।

सूरदास के पद पदों का सार

प्रश्न-
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘सूरदास’ द्वारा रचित ‘पदों’ का सार लिखिए।
उत्तर-
सूरदास द्वारा रचित इन पदों में गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम व्यक्त हुआ है। श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ अत्यंत व्याकुल हो उठती हैं। वे श्रीकृष्ण के मित्र ऊधौ को कभी उलाहना देती हैं तो कभी उस पर ताना कसती हैं। वे ऊधौ से कहती हैं कि तुम बहुत भाग्यशाली हो कि तुम किसी से प्रेम आदि के चक्कर में नहीं पड़े हो। तुमने श्रीकृष्ण के साथ रहते हुए भी उनसे प्रेम नहीं किया। हम ही ऐसी मूर्ख हैं कि श्रीकृष्ण के प्रेम में ऐसी चिपटी हुई हैं जैसी चींटियाँ गुड़ से चिपक जाती हैं।

दूसरे पद में गोपियाँ ऊधौ को उलाहना देती हुई कहती हैं कि अब हमारे मन की आशा मन में रह गई है। जिस कृष्ण के लौट आने की आशा हमारे मन में बनी हुई थी, वह तुम्हारी योग-साधना के संदेश को सुनकर समाप्त हो गई है। अब हम श्रीकृष्ण के वियोग में किसी भी प्रकार का धैर्य नहीं रख सकती क्योंकि अब धैर्य का कोई आधार ही नहीं रह गया है।

तीसरे पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार बताती हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी अपने मुख में पकड़े हुए तिनके को अपने जीवन का आधार मानता है; उसी प्रकार वे दिन-रात श्रीकृष्ण के नाम को रटती रहती हैं। योग का नाम तो उन्हें कड़वी ककड़ी के समान कड़वा लगता है। योग-साधना तो उनके लिए है जो प्रभु श्रीकृष्ण से प्रेम नहीं करते।

चतुर्थ पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण पर करारा व्यंग्य करती हुई कहती हैं कि वह उनके साथ राजनीति खेल रहा है। वह जन्म से ही चालाक था और अब तो राजनीति के दाँव-पेच भी जान गया है। पहले राजनीतिज्ञ जनता की भलाई के लिए आगे-आगे फिरते थे, किंतु अब वे प्रजा के प्रति अन्याय करते हैं। ऐसे ही श्रीकृष्ण हमें योग-साधना करने के लिए कहकर हमारे प्रति अन्याय ही तो कर रहे हैं। श्रीकृष्ण का यह व्यवहार किसी भी प्रकार उचित नहीं है।

Hindi सूरदास के पद Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सूरदास किस भक्ति-भावना के पक्ष में थे? उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
सूरदास सगुण भक्ति-भावना के पक्ष में थे। उनकी गोपियाँ भगवान् विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की उपासिकाएँ थीं। वे श्रीकृष्ण से अनन्य प्रेम करती थीं। गोपियाँ अपने संबंध में कहती हैं कि “अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी” । वे हारिल पक्षी का उदाहरण देती हुई कहती हैं कि हम हारिल की लकड़ी के समान कृष्ण की सच्ची आराधिका हैं अर्थात् वे अपने हृदय में हर क्षण श्रीकृष्ण को बसाए रहती हैं। सूरदास ने सगुण भक्ति में प्रेम की भावना को अनिवार्य माना है तथा उसकी मर्यादा का पालन करना भी अनिवार्य बताया है। वे निर्गुणोपासना या योग-साधना की अवहेलना ‘कड़वी- ककड़ी’ कहकर करते हैं तो कभी उसे ‘व्याधि’ कहकर उसका विरोध करते हैं। इन सब तथ्यों से स्पष्ट है कि सूरदास सगुण भक्ति-भावना के उपासक हैं।

प्रश्न 2.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पठित पदों में भक्त कवि सूरदास ने बताया है कि गोपियों के मन में श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम की भावना थी। वे अपना सर्वस्व श्रीकृष्ण के प्रेम में त्याग चुकी थीं। उनकी प्रेमनिष्ठता के सामने निर्गुण ईश्वर का उपासक उद्धव भी परास्त हो जाता है। उद्धव का मान-सम्मान करते हुए वे उन पर सीधा कटाक्ष न करते हुए उन्हें मधुकर कहकर संबोधित करती हैं। वे लोक-मर्यादा का पूर्ण ध्यान रखती हैं। श्रीकृष्ण द्वारा प्रेम की मर्यादा का पालन न करने पर उन्हें बहुत दुःख होता है। वे श्रीकृष्ण के वियोग में पीड़ा सहन करती हैं। वे दिन-रात, सोते-जागते यहाँ तक कि स्वप्न में भी श्रीकृष्ण के नाम की रट लगाती रहती हैं।

प्रश्न 3.
पठित पदों के मूल संदेश पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
सूरदास-कृत इन पदों में गोपियों एवं उद्धव के संवाद के माध्यम से निर्गुण ईश्वर की भक्ति पर सगुण ईश्वर की भक्ति की भावना की विजय दिखाई गई है। उद्धव गोपियों की श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम-भावना को देखकर दंग रह जाता है। वह गोपियों के द्वारा किए गए तर्कों का कोई उत्तर नहीं दे सकता। सूरदास ने गोपियों के माध्यम से सख्य-भाव की भक्ति का उद्घाटन किया है। इसीलिए वे श्रीकृष्ण पर व्यंग्य करने से भी नहीं चूकतीं। अलौकिक धरातल पर यदि देखा जाए तो सूरदास ने आत्मा और परमात्मा के मिलन व सामीप्य का साक्षात्कार करवाया है। यही इन पदों का परम लक्ष्य भी है।

प्रश्न 4.
‘ते क्यौं अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए’-काव्य-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने गोपियों के प्रति श्रीकृष्ण द्वारा अपनाई गई अनीति की ओर संकेत किया है। गोपियाँ कहती हैं कि श्रीकृष्ण तो सबको अन्याय से छुड़ाने वाले हैं अर्थात् वे किसी के प्रति अन्याय होता नहीं देख सकते, फिर वे प्रेम के बदले में योग-संदेश भेजकर हमारे प्रति अन्याय क्यों कर रहे हैं? कवि के कहने का भाव यह है कि गोपियों के लिए श्रीकृष्ण की प्रेम-भक्ति ही श्रेष्ठ मार्ग है फिर भला योग संदेश भेजकर वे हमारे मार्ग में बाधा क्यों खड़ी कर रहे हैं। यह तो हमारे प्रति अन्याय है। अन्याय से छुड़वाने वाला ही अन्याय करे तो फिर कोई क्या कर सकता है।

(ख) संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
“हमारे हरि हारिल की लकरी” के माध्यम से कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि ने संदेश दिया है कि ईश्वर-प्राप्ति हेतु हमें सच्चे मन से ईश्वर को हृदय में बसाना होगा। जिस प्रकार हारिल पक्षी सदा ही अपने पंजों में लकड़ी पकड़े रहता है, उसे एक क्षण के लिए भी नहीं छोड़ता; उसी प्रकार भक्त को अत्यंत निष्ठा एवं दृढ़तापूर्वक भगवान् का नाम स्मरण करना चाहिए। जब भक्त सांसारिक मोह त्यागकर दिन-रात, सोते-जागते व स्वप्न में भी प्रभु का नाम स्मरण करता है, तभी वह प्रभु का साक्षात्कार कर सकता है। .

प्रश्न 6.
“हरि हैं राजनीति पढ़ि आए” में श्रीकृष्ण की किस प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया गया है?
उत्तर-
इस पंक्ति में गोपियों ने श्रीकृष्ण की उस प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है जिसके कारण वे प्रेम की मर्यादा को ठीक प्रकार से नहीं निभाते। कहने का भाव यह है कि गोपियाँ श्रीकृष्ण से सच्चे मन से प्रेम करती हैं और उनकी विरह की पीड़ा में व्याकुल हैं। ऐसे में उन्हें स्वयं आकर गोपियों से मिलकर उनके विरह की व्याकुलता को शांत करना चाहिए था किंतु वे निर्गुण ईश्वर के उपासक उद्धव की परीक्षा लेने हेतु उसे योग का संदेश देकर गोपियों के पास भेज देते हैं। इसलिए गोपियाँ श्रीकृष्ण की इस नीति को देखते हुए उन्हें कहती हैं कि श्रीकृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है। अब वे राजनीतिज्ञों की भाँति व्यवहार करते हैं।

प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव को ‘बड़भागी’ क्यों कहा है? सूरदास इसके माध्यम से किन लोगों पर व्यंग्य करना चाहते हैं ?
उत्तर-
गोपियों ने उद्धव को ‘बड़भागी’ व्यंग्य में कहा है। गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती हैं और अब श्रीकृष्ण मथुरा चले गए हैं। वे उनके विरह में पीड़ित रहती हैं। उद्धव मथुरा में श्रीकृष्ण का मित्र बनकर रहता है, किंतु प्रेम के सागर श्रीकृष्ण के प्रेम से वंचित रहता है। इसलिए गोपियाँ व्यंग्य में उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं जिसका अर्थ दुर्भाग्यशाली है। अतः स्पष्ट है कि सूरदास ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जिन लोगों ने भगवान् से कभी प्रेम नहीं किया। भगवान् के प्रेम से वंचित रहने वाले लोगों का जीवन व्यर्थ है। भगवान् के प्रेम में चाहे कितने ही कष्ट हों, किंतु उससे ही जीवन की सार्थकता है।

प्रश्न 8.
गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति किस प्रकार समर्पित हैं?
उत्तर-
गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रति पूर्णतः समर्पित हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी लकड़ी को अपना आधार मानकर उसे पकड़े रहता है; उसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण की प्रेम-भक्ति को अपने जीवन का आधार मानकर उनकी प्रेम-भक्ति में अपना सर्वस्व त्यागकर दिन-रात उन्हीं का ध्यान करती हैं। वे क्षणभर के लिए भी उनसे अपना ध्यान डिगने नहीं देतीं। वे मन, वचन और कर्म से श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित हैं तथा उनके प्रेम के बंधन में बँधी हुई हैं।

सूरदास के पद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है? ।
उत्तर-
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहकर वास्तव में उसके दुर्भाग्य पर व्यंग्य किया गया है जो व्यक्ति प्रेम के सागर श्रीकृष्ण के समीप रहकर भी प्रेम रूपी जल को प्राप्त नहीं कर सकता, वह वास्तव में दुर्भाग्यशाली ही होगा। गोपियों के कहने का अभिप्राय यह है कि उद्धव के हृदय में प्रेम जैसी पावन भावना का संचार नहीं है। इसलिए वह भाग्यवान नहीं, अपितु भाग्यहीन है।

प्रश्न 2.
उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर-
उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते एवं तेल की गगरी से की गई है। जिस प्रकार कमल का पत्ता पानी में रहता हुआ भी उससे प्रभावित नहीं होता अर्थात् उस पर पानी की बूंदों के दाग नहीं पड़ते और तेल की गगरी भी चिकनी होती है। उस । पर पानी की बूंदें भी नहीं ठहर सकतीं। ठीक इसी प्रकार उद्धव पर भी श्रीकृष्ण के प्रेम का प्रभाव नहीं पड़ सका।

प्रश्न 3.
गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर-
गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा उद्धव को उलाहने दिए हैं-
वे कहती हैं कि हे उद्धव ! हमारी प्रेम-भावना हमारे मन में ही रह गई है। हम तो कृष्ण को अपने मन की प्रेम-भावना बताना चाहती थीं किंतु उनका यह योग का संदेश सुनकर तो हम उन्हें कुछ भी नहीं बता सकतीं। हम तो श्रीकृष्ण के लौट आने की आशा में जीवित थीं। हमें उम्मीद थी कि श्रीकृष्ण अवश्य ही एक-न-एक दिन लौट आएँगे, किंतु उनका यह संदेश सुनकर हमारी आशा ही नष्ट हो गई और हमारे विरह की आग और भी भड़क उठी। इससे तो अच्छा था कि तू आता ही न। गोपियों को यह भी आशा थी कि श्रीकृष्ण प्रेम की मर्यादा का पालन करेंगे। वे उनके प्रेम के प्रतिदान में प्रेम देंगे। किंतु उन्होंने निर्गुणोपासना का संदेश भेजकर प्रेम की सारी मर्यादा को तोड़ डाला। इस प्रकार वह मर्यादाहीन बन गया है।

प्रश्न 4.
उद्धव द्वारा दिए गए योग के सदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर-
श्रीकृष्ण के मथुरा गमन के पश्चात् गोपियाँ विरह की आग में जलती रहती थीं। वे श्रीकृष्ण को याद करके तड़पती रहती थीं। उन्हें आशा थी कि एक-न-एक दिन श्रीकृष्ण अवश्य लौटकर आएँगे और तब उन्हें उनका खोया हुआ प्रेम पुनः मिल जाएगा। श्रीकृष्ण के आने पर वे अपने हृदय की पीड़ा को उनके सामने व्यक्त करेंगी। किंतु उसी समय उद्धव श्रीकृष्ण द्वारा भेजा गया योग-साधना का संदेश लेकर गोपियों के पास आ पहुँचा तब गोपियों की सहनशक्ति जवाब दे गई। उन्होंने श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे जाने वाले ऐसे योग संदेश की कभी कल्पना भी नहीं की थी। इससे उनका विश्वास टूट गया था। विरहाग्नि में जलता हुआ उनका हृदय योग के वचनों से दहक उठा था। योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम किया था। इसीलिए उन्होंने उद्धव और श्रीकृष्ण को मनचाही जली-कटी सुनाई थी।

प्रश्न 5.
‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर-
कवि ने इस कथन के माध्यम से स्पष्ट किया है कि प्रेम की मर्यादा यही है कि प्रेमी व प्रेमिका दोनों ही प्रेम के नियमों . का पालन करें अर्थात् प्रेम के प्रतिदान में प्रेम देवें। प्रेम की सच्ची भावना को समझते हुए प्रेम की मर्यादा का पालन करें, किंतु श्रीकृष्ण ने गोपियों के प्रेम के बदले उन्हें योग-साधना अपनाने का संदेश भेज दिया जो कि उनकी एक चाल थी। श्रीकृष्ण की इसी छलपूर्वक चाल को ही मर्यादा का उल्लंघन कहा गया है।

प्रश्न 6.
कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर-
जिस प्रकार हारिल पक्षी सदा ही अपने पंजों में लकड़ी को पकड़े रहता है और उसे अपने जीवन का आधार समझता है; उसी प्रकार गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम को अपने जीवन का आधार समझती हैं और सदा उसे अपने हृदय में बसाए रहती हैं। वे मन से श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित हैं। इसलिए वे दिन-रात, सोते-आगते, उठते-बैठते तथा स्वप्न में भी कान्ह-कान्ह रटती रहती हैं। इस प्रकार गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को अभिव्यक्त किया है।

प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर-
गोपियों के अनुसार उनका मन श्रीकृष्ण के प्रेम में लगा हुआ है। वे एकनिष्ठ भाव से ही कृष्ण से प्रेम करती हैं। इसलिए उनके मन में किसी प्रकार की उलझन व दुविधा नहीं है। अतः वे कहती हैं कि उद्धव को यह शिक्षा उन लोगों को देनी चाहिए जिनके मन चकरी की भाँति घूमते हों अर्थात् जिनके मन में दुविधा हो व जिनके मन अस्थिर हों।

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर-
गोपियों के लिए योग-साधना बिल्कुल निरर्थक है। उनके लिए तो यह कड़वी ककड़ी की भाँति व्यर्थ एवं अरुचिकर है। योग-साधना की शिक्षा उनके लिए कष्टप्रद है। वह उनके कानों को भी कष्ट देने वाली प्रतीत होती है। इतना ही नहीं, वे योग-साधना को अनीतिपूर्ण, शास्त्र-विरुद्ध एवं अग्रहणीय बताकर उनका विरोध करती हैं। वे यहाँ तक कह देती हैं कि इस साधना की शिक्षा तो उन लोगों को दो जिनके मन भ्रम में पड़े हो, जिनके मन अस्थिर हों।

प्रश्न 9.
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर-
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म प्रजा की रक्षा व कल्याण करना होना चाहिए। उसे अपनी प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट नहीं देना चाहिए। उसे प्रजा के सुख-चैन का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 10.
गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर-
गोपियों के अनुसार अब श्रीकृष्ण बदल गए हैं। अब वे मथुरा के राजा बन गए हैं और उन्होंने राजनीति भी पढ़ ली है। अब वे पहले से भी अधिक बुद्धिमान् व चतुर हो गए हैं। अब वे प्रजा (गोपियों) के हित की नहीं सोचते। वे केवल अपने स्वार्थ की बात सोचते हैं। उन्होंने गोपियों की विरह-वेदना को शांत करने के लिए स्वयं न आकर उद्धव के माध्यम से योग-संदेश भेजकर उन्हें भड़काने का काम किया है जो उनके प्रति अन्याय एवं अहितकर है।

प्रश्न 11.
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य से उद्धव को निरुत्तर कर दिया था। गोपियों ने सर्वप्रथम उन्हें भाग्यशाली कहा कि उनके मन को प्रेम छू न सका। जिस प्रकार कमल का पत्ता पानी में रहता है किंतु पानी का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, उसी प्रकार तेल की गगरी पर भी पानी की बूंद तक नहीं ठहर सकती परंतु गोपियों के अनुसार योग-साधना उन लोगों के लिए है जिनका मन अस्थिर रहता है या जिनका मन चकरी की भाँति दुविधा में रहता है। वे स्वयं को हारिल पक्षी और श्रीकृष्ण को हारिल पक्षी द्वारा पकड़ी हई लकड़ी बताती हैं जिससे उन्हें श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम का बोध होता है। इस प्रकार वे अपने वाक्चातुर्य से उद्धव को परास्त करने में सफल होती हैं।

प्रश्न 12.
संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
सूर के भ्रमरगीत की सबसे प्रमुख विशेषता है कि इसमें गोपियों की श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम की अभिव्यञ्जना हुई है। वे अपने हृदय में हारिल पक्षी की भाँति श्रीकृष्ण के प्रेम को सदैव बसाए रखती हैं। गोपियाँ उद्धव को अपने वाक्चातुर्य से परास्त कर देती हैं जिससे सिद्ध हो जाता है कि कवि ने सगुण की निर्गुण पर विजय दिखाई है।
भ्रमरगीत में व्यंग्य, कटाक्ष, उलाहना, निराशा, विरह की पीड़ा, प्रार्थना, आस्था, अनास्था, गुहार आदि अनेक भावों को एक साथ व्यक्त करने का सफल प्रयास किया गया है।
भ्रमरगीत में ब्रजभाषा का सफल प्रयोग किया गया है। भाषा में जितना माधुर्यगुण है उतनी ही कटाक्ष व व्यंग्य करने की क्षमता भी। संपूर्ण भ्रमरगीत में कवि ने अनेक अलंकारों का प्रयोग करके भाषा को अलंकृत किया है। भ्रमरगीत में विचारधारा के पक्ष के लिए श्रीकृष्ण पर्दे के पीछे रहते हैं, किंतु गोपियाँ सामने आकर वार करती दिखाई देती हैं। . रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 13.
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर-
गोपियाँ उद्धव को बता रही हैं कि हे उद्धव! यदि यह योग-साधना इतनी उत्तम वस्तु है तो इसे मथुरावासियों को क्यों नहीं सिखाते। फिर हम तो श्रीकृष्ण की एक मन से आराधना करती हैं। हमारे पास तो उनका प्रेम ही जीवन के आधार के रूप में विद्यमान है। जिस व्यक्ति ने मीठी मिसरी का स्वाद चख लिया हो वह भला कड़वी निबौरी क्यों खाएगा। हम गोपियाँ कोमलांग युवतियाँ हैं, जबकि योग-साधना बहुत ही कठिन शारीरिक साधना है। इसलिए योग-साधना की शिक्षा या उपदेश कहीं और जाकर दीजिए।

प्रश्न 14.
उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर-गोपियों के पास श्रीकृष्ण के अनन्य प्रेम की शक्ति, उनके प्रति निष्ठा और पूर्ण समर्पण भाव की वह शक्ति थी, जो . उद्धव के समक्ष उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी।

प्रश्न 15.
गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
गोपियों के मन में श्रीकृष्ण के प्रति सहचर्य से उत्पन्न सच्चा प्रेम था। वे श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने के पश्चात् उनके विरह की पीड़ा से व्याकुल थीं। श्रीकृष्ण ने उनकी विरह की पीड़ा से उत्पन्न व्याकुलता को शांत करने के लिए स्वयं आने की अपेक्षा निर्गुण ईश्वर की उपासना का ज्ञान देने के लिए उद्धव को भेज दिया। श्रीकृष्ण के निर्मम और अनीतिपूर्ण व्यवहार पर व्यंग्य करते हुए गोपियाँ उन्हें राजनीतिज्ञ की संज्ञा देती हैं। गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में भी दिखाई देता है। जो मनुष्य शासन या राजनीति से जुड़ जाता है, वह शुष्क एवं नीरस व्यवहार करने लगता है। उसके मन में प्रेम, स्नेह जैसी कोमल भावनाएँ लुप्त हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त वह प्रेम के व्यवहार की मर्यादाएँ भी भूल जाता है।

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