सातवाँ गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन १९८३

सातवाँ गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन १९८३

          आज सम्पूर्ण विश्व दो शक्तिशाली गुटों-पूँजीवादी और साम्यवादी, में बँटा हुआ है। विश्व के अधिकांश राष्ट्र इन दोनों में से किसी एक के सदस्य हैं। लेकिन विश्व में कुछ राष्ट्र ऐसे भी हैं जो इन दोनों गुटों में शामिल न होकर गुट निरपेक्षता या तटस्थता की नीति का पालन कर रहे हैं। ऐसे राष्ट्रों को ही गुट निरपेक्ष कहा जाता है। इन राष्ट्रों की प्रमुख नीति किसी देश के घरेलू मामलों में दखल न देकर शांति एवं सहयोग की नीति का पालन करना है।
          द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व की महाशक्तियों के मध्य बढ़ती हुई अणु आयुधों की प्रबल प्रतियोगिता ने समस्त मानव जाति को बारूद के ढेर पर बिठा दिया है। किसी भी समय एक छोटी सी चिनगारी इस बारूद में ऐसा भयंकर विस्फोट करेगी कि उसकी आग में सम्पूर्ण मानव जाति का अस्तित्व ही मिट जायेगा। इस विषम परिस्थिति में गुटं निरपेक्ष देश अपनी ही एकता के बल पर भयाक्रान्त मानव जाति की रक्षा करने में समर्थ हो सकते हैं।
          द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एशिया और अफ्रीका के गुट निरपेक्ष देशों ने पारस्परिक एकता के लिए अनेक प्रयत्न किये और आज तो उन्हें संसार की तीसरी शक्ति ! (तृतीय विश्व) के रूप में स्वीकार किया जाने लगा है। भारत के प्रधानमन्त्री स्वर्गीय पं० जवाहर लाल नेहरू का पंचशील सिद्धान्त गुट निरपेक्ष देशों की एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था ।
          विश्व में गुट निरपेक्ष आन्दोलन का श्रीगणेश भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। सन् १९५५ के बाँडुंग सम्मेलन में अफ्रीका व एशिया के गुट निरपेक्ष देशों ने एकमत से विश्व में निःशस्त्रीकरण को बढ़ावा देने, शान्ति और सहयोग की नीति पर चलने का निश्चय किया। बाँडुंग के बाद गुट निरपेक्ष देशों के अनेक सम्मेलन हुए जिनका विवरण इस प्रकार है—प्रथम गुट निरपेक्ष सम्मेलन १९६१ में बेलग्रेड में हुआ, दूसरा सम्मेलन १९६४ में काहिरा में, तीसरा सम्मेलन १९७० में लुसाका में, चौथा सम्मेलन १९७३ में अल्जीरिया में, पाँचवाँ सम्मेलन १९७६ में कोलम्बो में, छठा सम्मेलन १९७९ में हवाना में हुआ। इन सम्मेलनों में गुट निरपेक्ष आन्दोलन को सफल बनाने में भारत के पं० जवाहर लाल नेहरू, मिश्र के कर्नल नासिर और युगोस्लाविया के मार्शल टीटो ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
          ७ मार्च, १९८३ ई० के पावन दिन को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में सातवें गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन का उद्घाटन श्रीमती इन्दिरा गाँधी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। क्यूबा के राष्ट्रपति फीडल कास्ट्रो और श्री यासिर अराफात ने श्रीमती इन्दिरा गाँधी को बधाई देते हुए सम्मेलन की सफलता की कामना की। सम्मेलन के अध्यक्ष पद पर आरूढ़ होकर श्रीमती गाँधी ने अपने प्रारम्भिक भाषण में कहा- “वर्तमान सम्मेलन विश्व के इतिहास में शांति के लिए सबसे बड़ा और अभूतपूर्व सम्मेलन है। हमारे समक्ष दो भीषण संकट है। पहला विश्व का अर्थतंत्र विनाश के कगार पर पहुँच चुका है और दूसरा परमाणु युद्ध विश्व की मानव जाति को नष्ट करने के लिए सम्भावित प्रतीत होता है। हमें इन दोनों संकटों को दूर करने के लिए कारगर कदम उठाने हैं।” श्रीमती गाँधी के भाषण को आमंत्रित राष्ट्राध्यक्षों, प्रधानमन्त्रियों, प्रतिनिधियों और अन्य गणमान्य अतिथियों ने ध्यानपूर्वक सुना और कई बार करतल ध्वनि की । १२ मार्च, १९८३ ई० तक यह सम्मेलन नई दिल्ली के विज्ञान भवन में सफलतापूर्वक चलता रहा । गुट निरपेक्ष देशों के प्रतिनिधियों ने अनेक अन्तर्राष्ट्रीय प्रश्नों पर विचार-विमर्श किया और उनके लिए निराकरण के सुझाव दिये । सम्मेलन के समापन के पूर्व गुट निरपेक्ष देशों ने राजनीतिक और आर्थिक घोषणा पत्र भी सहर्ष स्वीकार किया ।
          सातवें गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन की उपलब्धियाँ बड़ी महत्वपूर्ण रहीं । सर्वप्रथम तो इस आन्दोलन में १०१ देशों के नेता सम्मिलित हुए, इससे पूर्व किसी सम्मेलन में इतने अधिक नेता शामिल नहीं हुए थे, इस दृष्टि से यह सम्मेलन बड़ा महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक था । दूसरे इस सम्मेलन द्वारा जारी संदेश में गुट निरपेक्ष देशों की प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक माँगें सार रूप में प्रस्तुत की गईं और इसमें विश्व की महाशक्तियों से अपील की गई कि वे विश्व को परमाणु युद्ध की ओर बरबस बढ़ने से रोकें, जो हमारे युग में ही नहीं वरन् हमारी आगामी पीढ़ियों में मानव जाति के कल्याण के लिए भयंकर खतरा बन गया है। इस संदेश में न्याय और औचित्य पर आधारित नयी विश्व अर्थव्यवस्था की भी माँग की गई और यह अपील की गई कि आर्थिक पुनरुत्थान की प्रक्रिया आरम्भ करने तथा विश्व अर्थव्यवस्था को विकास पद पर अग्रसर करने के लिए प्रभावकारी कदम उठाये जाने चाहिये। संदेश के अन्त में कहा गया, “हमारी सभ्यता के सामने जो संकट उपस्थित है वह मानवीय इतिहास में अभूतपूर्व है, बड़े-बड़े काम हमारे सामने हैं और उनके लिए विवेकपूर्ण निर्णय आवश्यक हैं, महाशक्तियों से हम अपील करते हैं कि वे अविश्वास का परित्याग करें और निःशस्त्रीकरण से सम्बन्धित विभिन्न उपायों के बारे में सहमति पर पहुँचने और हम सभी के लिए खतरा बने हुए आच्छादित आर्थिक संकट से निकलने के मार्ग की खोज ‘ हेतु परस्पर मैत्रीपूर्ण व सहयोग तथा ईमानदारी व दूरदर्शितापूर्ण वार्ता का शुभारम्भ करें।
          सारांशत: सातवाँ गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन भारत की एक गौरवपूर्ण उपलब्धि है। इसने विश्व की मानव जाति के कल्याण के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त किया है। उसके साथ ही विश्व की महाशक्तियों के समक्ष गुट निरपेक्ष देशों को एक तृतीय विश्व के रूप में उपस्थित करके उनकी सामूहिक शक्ति का आभास कराया है। संक्षेप में यह शिखर सम्मेलन शान्ति, सहयोग और बन्धुत्व का सच्चा प्रतीक है।
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