सवैया और कवित्त

सवैया और कवित्त

सवैया और कवित्त कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर देव का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-रीतिकालीन काव्य-परंपरा के कवियों में ‘देव’ का विशिष्ट स्थान है। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। इनके पूर्ण जीवन-वृत्त के बारे में विद्वानों को अधिक ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाया। ‘भाव प्रकाश’ के एक दोहे के अनुसार इनका जन्म इटावा में सन् 1673 में हुआ था। इनके जन्म-स्थान के बारे में एक उक्ति भी है-
“योसरिया कवि देव को नगर इटावो वास।”

कुछ विद्वानों ने कविवर बिहारी को इनका पिता माना है, लेकिन अन्य लोग कहते हैं कि इनके पिता वंशीधर थे। इनका कोई भाई नहीं था, परंतु दो पुत्र थे भवानी प्रसाद और पुरुषोत्तम । कवि देव के गुरु श्री हितहरिवंश थे, जो वृंदावन में रहते थे। देव किसी भी राजा या नवाब के यहाँ अधिक देर तक नहीं टिक सके। आज़मशाह, राजा सीताराम, कुशल सिंह तथा राजा योगी लाल आदि के यहाँ इन्होंने आश्रय ग्रहण किया। ये लगभग समूचे देश में भ्रमण करते रहे। इनका देहांत सन् 1767 के आस-पास माना जाता है। इनके वंशज अब भी इटावा में रहते हैं।

2. रचनाएँ-कवि देव की रचनाओं की संख्या 52 या 72 मानी जाती है, लेकिन डॉ० नगेंद्र ने इनके ग्रंथों की संख्या 20 मानी है। इनके उल्लेखनीय ग्रंथों में ‘भाव-विलास’, ‘रस-विलास’, ‘भवानी-विलास’, ‘कुशल-विलास’, ‘सुमिल विनोद’, ‘सुजान विनोद’, ‘काव्य-रसायन’, ‘जयसिंह विनोद’, ‘अष्टयाम’, ‘प्रेम-चंद्रिका’, ‘वैराग्य-शतक’, ‘देव-चरित्र’, ‘देवमाया प्रपंच’ तथा ‘सुखसागर तरंग’ आदि हैं। इनके नाम के साथ कुछ संस्कृत की रचनाएँ भी जुड़ी हुई हैं।

3. काव्यगत विशेषताएँ-देव ने केशव की भाँति कवि और आचार्य कर्म, दोनों का निर्वाह किया। इन्होंने तीन प्रकार की रचनाएँ लिखीं-(क) रीति-शास्त्रीय ग्रंथ, (ख) शृंगारिक काव्य (ग) भक्ति-वैराग्य तथा तत्त्व-चिंतन संबंधी काव्य। देव के काव्य-शास्त्रीय ग्रंथों से प्रतीत होता है कि ये रसवादी आचार्य थे। दर्शन-शास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद तथा काम-शास्त्र आदि का इनको पूर्ण ज्ञान था। महाकवि देव एक रुचि-संपन्न तथा प्रतिभा-संपन्न कवि थे। इन्होंने विशाल काव्य की रचना की। रीतिकाल में इनका स्थान सर्वोच्च है। आचार्य एवं कवि होने के कारण इनका काव्य रीतिकालीन प्रवृत्तियों की कसौटी पर खरा उतरता है। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार से हैं

(i) सौंदर्य-वर्णन-नायक-नायिका का सौंदर्य-वर्णन करने में कवि देव को सफलता प्राप्त हुई है। इनका सौंदर्य-वर्णन अतींद्रिय और वायवी न होकर स्थूल और मांसल है। अतः यह इंद्रिय ग्राह्य एवं पार्थिव जगत् की विभूति है। कवि देव ने नायिका के सौंदर्य का वर्णन करते समय उसके विभिन्न अंगों का आकर्षक वर्णन किया है। एक उदाहरण देखिए-

रूप के मंदिर तो मुख में मनि दीपक से दृग है अनुकूले।
दर्पन में मनि, मीन सलील सुधाकर नील सरोज से फूले ॥
‘देवजू’ सुरमुखी मृदु कूल के भीतर भौंर मनो भ्रम भूले।
अंक मयंकज के दल पंकज, पंकज में मनो पंकज फूले ॥

(ii) शृंगार-वर्णन-देव रीतिकालीन शृंगारी कवि थे। इन्होंने अपने काव्य में सच्चे प्रेम का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। इन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘प्रेम-चन्द्रिका’ में प्रेम का सजीव एवं क्रमबद्ध वर्णन किया है। इसमें इन्होंने प्रेम का लक्षण, स्वरूप, महत्त्व, भेद आदि का अत्यंत सूक्ष्म वर्णन किया है। कवि ने नायिका के सौंदर्य, चपलता, अंग-विभा आदि का अत्यंत मार्मिक वर्णन किया है। देव के शृंगारिक काव्य के चित्र बड़े सुंदर एवं सजीव हैं। देव के शृंगारिक-वर्णन का निम्नलिखित उदाहरण देखिए-

धार में धाइ धसी निरधार है, जाइ फँसी उकसी न उफरी,
री अँगराय गिरी गहरी, गहि फेरे फिरी न फिरी नहिं घेरौं।
देव कछू अपनो बसु ना, रस लालच लाल चितै भईं चेरी,
बेगि ही बूड़ि गईं पँखियाँ, अँखियाँ मधु की मखियाँ भईं मेरीं ॥

(iii) वियोग श्रृंगार-देव के काव्य में विरह के मार्मिक चित्र अंकित किए गए हैं। इनके विरह-वर्णन में दीनता, व्याकुलता और प्रेम की गहन कूक है। इन्होंने अपने काव्य में विरह की सभी दशाओं का वर्णन किया है। कवि ने एक विरहिणी की दशा का वर्णन करते हुए लिखा है
साँसन ही सों समीर गयो अरु, आँसन ही सब नीर गयो ढरि
तेज गयो गुन लौ अपनो अरु भूमि गई तन की तनुता करि।

कहने का भाव यह है कि यह पाँच तत्त्वों से बना शरीर विरह की आग में जलकर समाप्त हो गया है तथा केवल शून्य तत्त्व ही शेष रह गया है।

(iv) रीति-शास्त्रीय विवेचन देव कवि का रीतिकालीन आचार्य कवियों में प्रमुख स्थान है। इन्होंने 20 से भी अधिक रीति-ग्रंथों की रचना की है। इन्होंने अपने रीति-ग्रंथों में नायिका-भेद तथा शृंगार-रस का निरूपण सविस्तार किया है। इनके रीति-ग्रंथों में मौलिकता का अभाव है। इन रीति-ग्रंथों में वे सभी कमियाँ देखी जा सकती हैं, जो उस युग के अन्य आचार्य कवियों के ग्रंथों में पाई जाती थीं। देव आचार्य की अपेक्षा कवि अधिक प्रतीत होते हैं। इन्होंने जिस काव्य की रचना अपने आचार्यत्व के घेरे से मुक्त होकर की, उस काव्य को अत्यंत सफलता मिली है।

(v) भक्ति और वैराग्य की भावना-देव कवि के काव्य में ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का अत्यंत मार्मिक वर्णन हुआ है। देव की भक्ति-संबंधी रचनाओं में शांत-रस का सुंदर परिपाक हुआ है। जीवन के अंतिम समय में इनमें भक्ति और वैराग्य की भावना उत्पन्न हुई थी। अतः कवि ने अपने जीवन के अनुभव के आधार पर भक्ति और तत्त्व-चिंतन पर रचनाएँ लिखीं। ‘देव चरित्र’, ‘देव शतक’ आदि रचनाएँ इसी कोटि में आती हैं। देव अपने मन को डराते एवं समझाते हुए लिखते हैं

ऐसो हौं जु जानतो कि जैहै तू विषै के संग
ए रे मन मेरे, हाथ-पाँय तेरे तोरतो।

अर्थात् हे मन! यदि मैं यह जानता कि तू विषय-वासनाओं में डूब जाएगा तो मैं तेरे हाथ-पाँव तोड़ देता। इसके साथ ही कवि अपने मन को कृष्ण-भक्ति के समुद्र में डुबाने की इच्छा भी व्यक्त करता है।

(vi) प्रकृति-चित्रण-रीतिकालीन अन्य कवियों की भाँति देव ने भी प्रकृति का चित्रण पृष्ठभूमि के रूप में ही किया है। देव ने प्रकृति के अनेक चित्र बड़ी भावपूर्णता के साथ अंकित किए हैं। कवि पूनम की रात में रास-लीला का वर्णन करते हुए भाव-विभोर हो उठता है तथा लिखता है
झहरि झहरि झीनी बूंद हैं परति मानों,
घहरि घहरि घटा घेरि हैं गगन में।

4. भाषा-शैली-कविवर देव ने प्रायः मुक्तक काव्य-शैली को अपनाया। चित्रकला के रमणीय संयोजन तथा अभिव्यक्ति व्यञ्जना-कौशल में वे अद्वितीय हैं। इन्होंने प्रायः साहित्यिक ब्रजभाषा का ही प्रयोग किया है। इनकी भाषा में माधुर्य गुण विद्यमान है। इस भाषा में इन्होंने ब्रज-प्रदेश में प्रचलित तद्भव और देशज शब्दों का भी सुंदर मिश्रण किया है।

देव का शब्द-कोश काफी समृद्ध है। इसके साथ ही, ये भाषा के अच्छे पारखी भी हैं। व्याकरण की दृष्टि से इनकी भाषा सर्वथा दोषहीन कही जा सकती है। देव की भाषा के विषय में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है, “अधिकतर इनकी भाषा में प्रवाह पाया जाता है। कहीं-कहीं शब्द-व्यय बहुत अधिक है और कहीं-कहीं अर्थ अल्प भी। अक्षर-मैत्री के ध्यान से इन्हें कहीं-कहीं अशक्त शब्द रखने पड़ते थे, जो कहीं-कहीं अर्थ को आच्छन्न करते थे। तुकांत और अनुप्रास के लिए ये कहीं-कहीं शब्दों को तोड़ते-मरोड़ते व वाक्य को भी अविन्यस्त कर देते थे।”

देव ने शब्दालंकारों के साथ-साथ अर्थालंकारों का भी सफल प्रयोग किया है। फिर भी अनुप्रास तथा यमक इनके प्रिय अलंकार हैं। अर्थालंकारों में इन्होंने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि का प्रयोग किया है। कवित्त और सवैया इनके प्रिय छंद हैं। इनकी काव्य-भाषा में लाक्षणिकता एवं व्यञ्जनात्मकता भी देखी जा सकती है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि देव, रीतिकाल के एक श्रेष्ठ कवि थे। भाव और भाषा, दोनों दृष्टियों से इनका काव्य उच्च-कोटि का है। इन्होंने आचार्य और कवि दोनों के कर्मों का अनुकूल निर्वाह किया।

सवैया और कवित्त कविता का सार

प्रश्न-
सवैया एवं कवित्त का सार लिखिए।
उत्तर-
सवैया-कवि देव के द्वारा रचित सवैये में बालक श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया गया है। बालक कृष्ण के पाँवों में पड़ी पाजेब अत्यंत मधुर ध्वनि करती है। उनकी कमर में करधनी है और पीले रंग के वस्त्र भी अत्यंत सुशोभित हैं। उनके माथे पर मुकुट है। उनकी आँखें चंचल एवं सुंदर हैं। उनकी मंद-मंद हँसी बहुत ही मधुर एवं उज्ज्वल है। इस संसार रूपी मंदिर में उनकी शोभा दीपक के समान फैली हुई है।

कक्ति-कवि देव ने कवित्तों में बालक को बसंत रूप में दिखाकर प्रकृति के साथ उसका संबंध जोड़ा है। ऐसा लगता है मानो बालक बसंत में पेड़ों के पलने पर झूलता है और भाँति-भाँति के फूल उनके शरीर पर ढीले-ढीले वस्त्रों के रूप में सजे हुए हैं। हवा उन्हें झूला झुलाती है। मोर, तोते आदि उससे बातें करते हैं। कोयल उसका मन बहलाती है। कमल की कली रूपी नायिका उसकी नज़र उतारती है। कामदेव बालक बसंत को प्रातःकाल ही उठा देता है। दूसरे कवित्त में कवि ने रात्रिकालीन छवि का वर्णन किया है। कवि ने रात की चाँदनी की तुलना दूध के फैन जैसे पारदर्शी बिंबों से की है। चारों ओर चाँदनी छाई हुई है। तारों की भाँति झिलमिल करती हुई राधा की अंगूठी दिखाई दे रही है। उसके शरीर का हर अंग शोभायुक्त है। चाँदनी जैसे रंग वाली राधा चाँदनी रात में स्फटिक के महल में छिपी-सी रहती है।

Hindi सवैया और कवित्त Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
देव के काव्य की भाषा का सार रूप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
देव के काव्य की भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है। भाषा के सौष्ठव, समृद्धि एवं अलंकरण पर देव का विशेष ध्यान रहा है। इनकी कविता में पद-मैत्री, यमक और अनुप्रास अलंकारों के पर्याप्त दर्शन होते हैं। भाषा में रसाता और गति कम पाई जाती है। कहीं-कहीं शब्द व्यय अधिक और अर्थ बहुत अल्प पाया जाता है। देव की भाषा में मुहावरों और लोकोक्तियों का सुंदर प्रयोग देखने को मिलता है।

प्रश्न 2.
देव के काव्य के कलापक्ष पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
देव के काव्य के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उन्होंने परंपरागत काव्य-शैली का सफल प्रयोग किया है। उन्होंने कवित्त, सवैया आदि छंदों का सुंदर प्रयोग किया है। चित्रकला और अभिव्यञ्जना के सुंदर समन्वय की कला में देव का मुकाबला नहीं किया जा सकता। उन्होंने ब्रजभाषा के साहित्यिक रूप का प्रयोग किया है। देव ने ब्रजभाषा के साथ-साथ तत्सम, तद्भव, देशज, फारसी आदि के शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है। रीतिकाल के कवियों में देव संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे, इसलिए उनके काव्य की भाषा भी पाण्डित्यपूर्ण है। उन्होंने विभिन्न अलंकारों के सफल प्रयोग से अपनी कविता को सजाया है।

प्रश्न 3.
कवि देव द्वारा चाँदनी रात का वर्णन किस रूप में किया गया है? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
चाँदनी रात न केवल कवियों का ही मन आकृष्ट करती है, अपितु हर व्यक्ति को अच्छी लगती है। चाँदनी रात की आभा संसार को सुंदरता प्रदान करती है। कवि ने बताया है कि स्फटिक की शिलाओं से अमृत-सा उज्ज्वल भवन चमक उठता है। दही के सागर की तरंगें अपार मात्रा में चमक उठती हैं। चाँदनी की अधिकता के कारण दीवारें भी कहीं दिखाई नहीं देतीं। सारा भवन चाँदनी से नहाया हुआ-सा लगता है। राधा भी चाँदनी में झिलमिलाती हुई-सी लगती है; जैसे मोती की आभा में मल्लिका के पराग की सुगंध मिली हुई हो। चंद्रमा की जगमगाहट राधा के प्रतिबिंब का ही रूप लगता है।

प्रश्न 4.
श्रीकृष्ण की हँसी की तुलना कवि ने चाँदनी से क्यों की है?
उत्तर-
जिस प्रकार चाँद की चाँदनी चारों ओर फैलकर वातावरण को सुंदर बना देती है; उसी प्रकार श्रीकृष्ण की हँसी भी सभी के चेहरों पर खुशी ला देती है। इसलिए कवि ने श्रीकृष्ण की हँसी की तुलना चाँदनी से की है। (ख) संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
कवि ने सवैये में किस प्रकार की संतष्टि प्रदान की है?
उत्तर-
कविवर देव के प्रथम सवैये में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया गया है। कविवर देव द्वारा रचित सवैया में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत कवितांश में कवि ने श्रीकृष्ण को ‘ब्रजदूल्हा’ के रूप में चित्रित किया है। श्रीकृष्ण को जिस रूप में चित्रित किया गया है वह रूप लोगों के मन को अत्यधिक भाता है। लोग श्रीकृष्ण के सुसज्जित रूप को देखकर अधिक संतुष्ट होते हैं। श्रीकृष्ण के इस रूप को देखकर उन्हें आत्मिक सुख व आनंद मिलता है। इस सवैये का महत्त्व इसी आत्मिक सुख व संतुष्टि में है।

प्रश्न 6.
देव के कवित्तों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कवित्तों में कवि के सौंदर्यबोध का पता चलता है। प्रथम कवित्त में बसंत ऋतु का वर्णन परंपरा से हटकर किया गया है। कवि ने बसंत को बालक के रूप में चित्रित किया है। यह कवि की अत्यंत सुंदर कल्पना है। साथ ही कवि ने प्रकृति के विभिन्न अवयवों की भी सुंदर कल्पना की है। इसी प्रकार दूसरे कवित्त में चाँदनी रात के विभिन्न चित्र अंकित किए गए हैं। राधिका जी के रूप की उज्ज्वलता ही चंद्रमा की उज्ज्वलता के रूप में प्रतिबिंबित होने की सुंदर कल्पना की गई है। इन कवित्तों में कलात्मकता देखते ही बनती है। कवि ने प्रकृति के विभिन्न अवयवों को कल्पना के चाक पर चढ़ाकर अत्यंत सुंदर रूप प्रदान किया है।

प्रश्न 7.
‘देव दरबारी कवि थे’ इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
निश्चय ही देव दरबारी कवि थे अर्थात् उन्होंने विभिन्न राजाओं के दरबार में रहकर उन्हें प्रसन्न करने के लिए काव्य लिखा है। देव के तीनों पठित कवितांशों में दरबारी संस्कृति के दर्शन होते हैं। इन तीनों कविताओं में दरबारी चमक-दमक तथा राजसी ठाठ-बाठ देखे जा सकते हैं। श्रीकृष्ण मुकुट, पाजेब, करधनी आदि आभूषणों से सुसज्जित हैं। तत्कालीन राजा भी आभूषण धारण करते थे। इसी प्रकार कवित्त में बालक बसंत को भी अत्यंत लाड-प्यार से पले बालक के समान दिखाया है। वृक्ष पालना झुलाते हैं तो विभिन्न पक्षी अपनी मधुर ध्वनियों से उसका मन बहलाते हैं। प्रातःकाल उसे कलियाँ चटकाकर जगाता है। इसी प्रकार दूसरे कवित्त में भी राधा के रूप-सौंदर्य का चित्रण किया गया है। इस कवित्त में राजाओं के महलों, राजसी वैभव का उद्दीपन रूप में चित्रण किया गया है। इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि देव दरबारी कवि थे तथा उनका काव्य दरबार के हाव-भाव के अनुकूल रखा गया है।

Hindi सवैया और कवित्त Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर-
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक इसलिए कहा है क्योंकि जिस प्रकार मंदिर का दीपक संपूर्ण मंदिर में अपना प्रकाश फैलाता है; उसी प्रकार श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं एवं कलाओं से संपूर्ण संसार को प्रभावित किया है।

प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
निम्नलिखित पंक्तियों के रेखांकित अंशों में अनुप्रास अलंकार है।
पायनि नूपुर मंजु बजै, कटि किकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
निम्नलिखित पंक्तियों के रेखांकित अंशों में रूपक अलंकार है।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुख चंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई ॥

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
पाँयनि नूपुर मंजु बसें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई ॥
उत्तर-

  • इस काव्यांश में श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया गया है। उनके साँवले शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं।
  • गले में वनमाला है। पाँवों में पाज़ेब और कमर में करधनी है।
  • अनुप्रास अलंकार की छटा देखते ही बनती है।
  • तत्सम शब्दावली युक्त ब्रजभाषा का प्रयोग है।
  • सवैया छंद है।
  • संपूर्ण पद में भाषा लयात्मक एवं संगीतमय है।
  • शब्द-योजना अत्यंत सार्थक बन पड़ी है।

प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर-
परंपरागत रूप से बसंत का वर्णन करते हुए कवि प्रायः ऋतु परिवर्तन की शोभा का वर्णन करते हैं। कवि रंग-बिरंगे फूलों, चारों ओर फैली हुई हरियाली, नायक-नायिकाओं का झूलना, राग-रंग आदि का उल्लेख करते हैं। वे नर-नारियों के हृदय में उत्पन्न रागात्मकता का वर्णन भी करते हैं। किंतु इस कवित्त में कविवर देव ने बसंत का एक बालक के रूप में चित्रण किया है। यह बालक कामदेव का बालक है। कवि ने दिखाया है कि सारी प्रकृति उसके साथ ऐसा व्यवहार करती है जैसा नवजात या छोटे बच्चों से व्यवहार किया जाता है। इससे कवि की बसंत ऋतु संबंधी कल्पनाशीलता का बोध होता है तथा यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कवि देव के द्वारा किया गया बसंत वर्णन परंपरागत नहीं है।

प्रश्न 5.
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
काव्य में यह माना जाता है कि प्रातःकाल में जब कलियाँ खिलकर फूल बनती हैं तो ‘चट्’ की ध्वनि होती है। कवि ने इसी काव्य रूढ़ि का प्रयोग करते हुए बालक रूप बसंत को प्रातः जगाने के लिए गुलाब के फूलों की सहायता ली है। सुबह-सवेरे गुलाबों के खिलते समय चटकने की ध्वनि होती है। कवि ने कल्पना की है कि गुलाब के फूलों का चटककर खिलना ऐसा लगता है मानो वे चटक की ध्वनि से बालक रूपी बसंत को जगाते हैं।

प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
उत्तर-
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने दूध, दही के समुद्र, सफेद संगमरमर के फर्श, गौरांगी तरुणियों, जिनके वस्त्र मोतियों एवं मल्लिका के फूलों से सुसज्जित हैं, के रूप में देखा है।

प्रश्न 7.
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
राधा का रूप अत्यंत सुंदर है। चाँदनी में नहाया राधा का रूप अति उज्ज्वल है। चंद्रमा की शोभा और चमक-दमक अपनी नहीं है, अपितु वह राधा के रूप को प्रतिबिंबित कर रही है। राधा चंद्रमा से भी अधिक सुंदर है। यहाँ रूढ़ उपमान (चाँद) उपमेय हो गया है। अतः यहाँ उपमेय उपमान बन गया है। यहाँ उपमा अलंकार है किंतु इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार का भी आभास मिलता है।

प्रश्न 8.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर-
कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया है(1) स्फटिक शिला, (2) दूध का सागर, (3) सुधा-मंदिर, (4) आरसी, (5) दूध की झाग से बना फर्श, (6) आभा आदि।

प्रश्न 9.
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

देव दरबारी कवि थे। उन्होंने अपने आश्रयदाताओं को प्रसन्न करने के लिए काव्य की रचना की है। उन्होंने जीवन के सुख-दुःख का वर्णन करने की अपेक्षा विलासमय जीवन का चित्रण किया है। उनके सवैये में श्रीकृष्ण के दूल्हा-रूप का चित्रण किया गया है। कवित्तों में बसंत और चाँदनी को राजसी-वैभव से परिपूर्ण रूप में चित्रित किया गया है।

प्रस्तुत काव्यांश में कविवर देव ने कल्पना शक्ति का परिचय देते हुए विषय को परंपरागत रूप से भिन्न रूप में प्रस्तुत किया है। वृक्षों को पालने के रूप में, पत्तों को बिछौने के रूप में, बसंत को बालक के रूप में, चाँदनी रात में आकाश को सुधा मंदिर के रूप में चित्रित करना देव की कल्पना शक्ति का परिचायक है।

पठित काव्यांश में सवैया और कवित्त छंदों का सुंदर प्रयोग किया गया है। देव के काव्य की भाषा में ब्रजभाषा का सुंदर एवं सटीक प्रयोग किया गया है। अनुप्रास, रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा आदि अलंकारों का सुंदर एवं सफल प्रयोग किया गया है। कोमलकांत शब्दावली का विषयानुकूल प्रयोग देखते ही बनता है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 10.
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर-
पूर्णिमा की रात अपनी सुंदरता से हमेशा कवियों को लुभाती आई है। फिर सर्दकालीन पूर्णिमा की रात का तो कहना ही क्या? कल ही पूर्णिमा की रात थी। मैं अपने घर की छत पर गया तो देखा चाँद पूर्ण रूप से चमक रहा था। उसकी चाँदनी चारों ओर फैली हुई थी। ऐसा लगता था कि सारे संसार ने ही चाँदनी में नहाकर उज्ज्वल रूप धारण कर लिया है। आकाश में तारे भी चमक रहे थे। वातावरण अत्यंत शीतल एवं मनोरम था। मैं देर तक चाँदनी की उज्ज्वलता को निहारता रहा। वहाँ से उठने को मन ही नहीं कर रहा था। रात काफी बीत चुकी थी किंतु चाँदनी की उज्ज्वलता में कोई कमी नहीं आई थी।

यह भी जानें

कवित्त – कवित्त वार्णिक छंद है, उसके प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के सोलहवें या फिर पंद्रहवें वर्ण पर यति रहती है। सामान्यतः चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।

‘पाँयनि नूपुर’ के आलोक में भाव-साम्य के लिए पढ़ें
सीस मुकुट कटि काछनि, कर, मुरली उर माल।
यों बानक मौं मन सदा, बसौ बिहारी लाल ॥ -बिहारी
रीतिकालीन कविता का बसंत ऋतु का एक चित्र यह भी देखिए-
कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में,
क्यारिन में कलित कलीन किलकत है।

कहै पदमाकर परागन में पौनहू में
पातन में पिक में पलासन पगंत है।
द्वारे में दिसान में दुनी में देस देसन में ।
देखौ दीपदीपन में दीपत दिगंत है।
बीथिन में ब्रज में नबेलिन में बेलिन में
बनन में बागन में बगस्यौ बसंत है ॥

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