समाजवाद एवं साम्यवाद

समाजवाद एवं साम्यवाद

History [ इतिहास ] लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. खूनी रविवार क्या है ?

उत्तर ⇒ 1905 ई. के रूस-जापान युद्ध में रूस एशिया के एक छोटे-से देश जापान से पराजित हो गया। पराजय के अपमान के कारण जनता ने क्रांति कर दी। 9 जनवरी, 1905 ई. लोगों का समूह प्रदर्शन करते हुए सेंट पिट्सबर्ग स्थित महल की ओर जा रहा था। जार की सेना ने इन निहत्थे लोगों पर गोलियाँ बरसाईं जिसमें हजारों लोग मारे गये। यह घटना रविवार के दिन हुई, अतः इसे खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है।


प्रश्न 2. अक्टूबर क्रांति क्या है ?

उत्तर ⇒7 नवम्बर, 1917 ई० में बोल्शेविकों ने पेट्रोग्राद के रेलवे स्टेशन, बैंक, डाकघर, टेलीफोन केन्द्र, कचहरी तथा अन्य सरकारी भवनों पर अधिकार कर लिया। करेन्सकी भाग गया और शासन की बागडोर बोल्शेविकों के हाथों में आ गई जिसका अध्यक्ष लेनिन को बनाया गया। इसी क्रान्ति को बोल्शेविक क्रांति या नवम्बर की क्रांति कहते हैं। इसे अक्टूबर की क्रान्ति भी कहा जाता है, क्योंकि पुराने कैलेन्डर के अनुसार यह 25 अक्टूबर, 1917 ई. की घटना थी।


प्रश्न 3. पूँजीवाद क्या है ?

उत्तर ⇒ पूँजीवादी ऐसी राजनीतिक-आर्थिक व्यवस्था है जिसमें निजी सम्पत्ति तथा निजी लाभ की अवधारणा को मान्यता दी जाती है। यह सार्वजनिक क्षेत्र में विस्तार एवं आर्थिक गतिविधियों में सरकारी हस्तक्षेप का विरोध करती है।


प्रश्न 4. रूसी क्रांति के किन्हीं दो कारणों का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ रूसी क्रांति के निम्न दो कारण हैं-

मजदूरों की दयनीय स्थिति : रूस में मजदूरों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। उन्हें अधिक काम करना पड़ता था परन्तु उनकी मजदूरी काफी कम थी। उनके साथ दुर्व्यवहार तथा अधिकतम शोषण किया जाता था, मजदूरों को कोई राजनीतिक अधिकार नहीं थे । अपनी मांगों के समर्थन में वे हड़ताल भी नहीं कर सकते थे और न ‘मजदूर संघ’ ही बना सकते थे। मार्क्स ने मजदूरों की स्थिति का चित्रण करते हुए लिखा है कि “मजदूरों के पास अपनी बेड़ियों को खोने के अलावा और कुछ भी नहीं है।” ये मज़दूर पूँजीवादी व्यवस्था एवं जारशाही की निरंकुशता को समाप्त कर ‘सर्वहारा वर्ग’ का शासन स्थापित करना चाहते थे।

औद्योगिकीकरण की समस्या : रूस में अलेक्जेण्डर-III के समय में औद्योगिकीकरण की गति में तीव्रता आई, लेकिन रूसी औद्योगिकीकरण पश्चिमी पूँजीवादी औद्योगिकीकरण से भिन्न था। यहाँ कुछ ही क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण उद्योगों के विकास के लिए विदेशी पूँजी पर निर्भरता बढ़ती गई । विदेशी पूँजीपति आर्थिक शोषण को बढ़ावा दे रहे थे इसके कारण लोगों में असंतोष व्याप्त था।


प्रश्न 5. सर्वहारा वर्ग किसे कहते हैं ?

उत्तर ⇒समाज का वह वर्ग जिसमें गरीब किसान, कृषक मजदूर, सामान्य मजदूर, श्रमिक एवं आम गरीब लोग शामिल हो, उसे सर्वहारा वर्ग कहते हैं।


प्रश्न 6. रूसीकरण की नीति क्रांति हेतु कहाँ तक उत्तरदायी थी ?

उत्तर ⇒ रूसीकरण की नीति : रूस की प्रजा विभिन्न जातियों के सम्मिश्रण से बनी थी। वहाँ कई धर्म प्रचलित थे। कई भाषाएँ थीं। रूस में स्लाव, फिन, पोल, जर्मन, यहूदी आदि अन्य जातियों के लोग थे परन्तु इनमें स्लाव जाति के लोग प्रमुख थे। इन अल्पसंख्यक जातियों के विरुद्ध जार निकोलस द्वितीय के समय रूसीकरण की नीति अपनाई गई और ‘एक जार एक धर्म’ का नारा अपनाया गया । गैर-रूसी जनता का दमन किया गया, इनकी भाषाओं पर प्रतिबंध लगाये गये, इनकी संपत्ति छीन ली गई। 1863 ई. में इस नीति के विरुद्ध पोलों ने विद्रोह किया तो उनका निर्दयतापूर्वक दमन किया गया। इस कारण गैर-रूसी जनता में असंतोष फैला और वह जारशाही के विरुद्ध हो गई।


प्रश्न 7. साम्यवाद एक नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था थी; कैसे ?

उत्तर ⇒ मजदूरों को पूँजीपतियों के शोषण से मुक्त कराना, उत्पादन एवं वितरण में समानता स्थापित करना, मजदूरों को विशेष सुविधाएँ, जैसे-कार्य के घंटे, वेतन, मजदूरों को संघ बनाने की सुविधाएँ तथा मजदूरों की न्यूनतम आवश्यकताओं की पर्ति कराना । सामाजिक व्यवस्था में वर्ग संघर्ष को समाप्त कर वर्गहीन समाज की स्थापना करना।


प्रश्न 8. यूरोपियन समाजवादियों के विचारों का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ ऐतिहासिक दृष्टि से आधुनिक समाजवाद का विभाजन दो चरणों में किया जाता है-मावर्स से पूर्व एवं मार्क्स के पश्चात्। मार्क्सवादी विचारकों ने इन्हें क्रमशः यूरोपियन समाजवाद तथा वैज्ञानिक समाजवाद का नाम दिया।
यूरोपियन चिंतक आरंभिक चिंतक थे जिन्होंने पूँजी और श्रम के बीच संबंधों की समस्या का निराकरण करने का प्रयास किया। इनकी दृष्टि आदर्शवादी थी। ये प्रबुद्ध चिन्तकों की तरह मानव की मूलभूत अच्छाई एवं जगत की पूर्णता में विश्वास किया करते थे। इन्होंने वर्ग संघर्ष के बदले वर्ग समन्वय पर बल दिया।


प्रश्न 9. साम्राज्यवाद की क्या विशेषताएँ थी ?

उत्तर ⇒  समानता का अर्थ : आर्थिक और राजनीतिक समानता । इसमें अवसरों की समानता, योग्यता के अनुसार कार्य करने का अधिकार, समान कार्य के लिए समान वेतन तथा जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति उपलब्ध करने की भावना सन्निहित है। उसका अन्तिम लक्ष्य वर्ग-संघर्ष का अंत कर वर्गहीन समाज की स्थापना करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर राष्ट्र के अधिकार को उचित ठहराया गया है।

समाजवाद के तीन मुख्य सिद्धांत हैं जिनपर सभी समाजवादी सहमत हैं –
प्रथम – समाजवाद निजी पूँजीवाद की आलोचना करता है।
द्वितीय – समाजवाद श्रमिक वर्ग और मजदूरों की आवाज है। एक तरफ यह व्यावसायिक वर्ग का पक्ष लेता है
तो दूसरी तरफ पूँजीपतियों या मिल-मालिकों के शोषणमूलक चरित्रों का विरोध करता है।
तृतीय – समाजवाद धन के वितरण के संबंध में न्याय चाहता है-अर्थात् उत्पादन के सभी साधनों पर समस्त जाति या समाज का स्वामित्व मान लिया जाए।


प्रश्न 10. “रूस की क्रांति ने पूरे विश्व को प्रभावित किया।” किन्हीं दो उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करें।

उत्तर ⇒1917 की रूसी क्रांति के प्रभाव काफी व्यापक और दूरगामी थे। इसका प्रभाव न केवल रूस पर बल्कि विश्व के अन्य देशों पर भी पड़ा जो निम्नलिखित थे –

(i) रूसी क्रांति के बाद विश्व विचारधारा के स्तर पर दो खेमों में बँट गया-साम्यवादी एवं पूँजीवादी विश्व ।
धर्मसुधार आंदोलन के पश्चात और साम्यवादी क्रांति के पहले यूरोप में वैचारिक स्तर पर इस तरह का विभाजन नहीं देखा गया था।

(ii) रूसी क्रांति की सफलता ने एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश-मुक्ति को प्रोत्साहन दिया एवं इन देशों में होनेवाले राष्ट्रीय आंदोलन को अपना
वैचारिक समर्थन प्रदान किया।


प्रश्न 11. क्रांति से पूर्व रूसी किसानों की स्थिति कैसी थी ?

उत्तर ⇒ क्रांति से पूर्व रूसी कृषकों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। वे अपने छोटे-छोटे खेतों में पुराने ढंग से खेती करते थे। उनके पास पूँजी का अभाव था और करों के बोझ से वे दबे हुए थे। समस्त कृषक जनसंख्या का एक-तिहाई भाग भूमिहीन था जिनकी अर्द्धदासों जैसी थी।


प्रश्न 12. प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय ने क्रांति हेतु मार्ग प्रशस्त किया; कैसे ?

उत्तर ⇒ प्रथम विश्वयुद्ध 1914 से 1918 तक चला । रूस इस युद्ध में मित्र राष्ट्रों की ओर से लड़ा । युद्ध में शामिल होने का एकमात्र उद्देश्य था कि रूसी जनता आंतरिक असंतोष को भूलकर बाहरी मामलों में उलझी रहे । परन्तु, युद्ध में रूसी सेना चारों तरफ हार रही थी। सेनाओं के पास न अच्छे हथियार थे और न ही पर्याप्त भोजन की सुविधा थी। युद्ध के मध्य में जार ने सेना का कमान अपने हाथों में ले लिया, फलस्वरूप दरबार खाली हो गया । जार की अनुपस्थिति में जरीना और उसका तथाकथित गुरु रासपुटीन (पादरी) जैसा निकृष्टतम व्यक्ति को षड्यंत्र करने का मौका मिल गया जिसके कारण राजतंत्र की प्रतिष्ठा धूमिल हुई।


प्रश्न 13. नई आर्थिक नीति मार्क्सवादी सिद्धांतों के साथ समझौता था। कैसे ?

उत्तर ⇒ मार्च, 1921 ई. में लेनिन ने नई आर्थिक नीति का प्रतिपादन किया जिसमें साम्यवादी विचारधारा के साथ-ही-साथ पूँजीवादी विचारधारा को स्वीकार किया गया। जैसे –
(i) कृषकों से अतिरिक्त उपज की अनिवार्य वसूली बंद कर दी गई एवं किसानों को अतिरिक्त उत्पादन को बाजार में बेचने की अनुमति प्रदान . की गई।
(ii) 1924 ई. में सरकार ने अनाज के स्थान पर रूबल (सोवियत संघ की मुद्रामें कर लेना प्रारम्भ किया।
(iii) सोवियत संघ में छोटे उद्योगों का विराष्ट्रीयकरण किया गया। 1922 ई० __में चार हजार छोटे उद्योगों को लाइसेंस जारी किया गया।
(iv) श्रमिकों को कुछ नगद मुद्रा प्रदान किया जाने लगा।


प्रश्न 14. समाजवाद क्या है ?

उत्तर ⇒ उत्पादन, वितरण एवं लाभ पर राष्ट्र तथा समाज का नियंत्रण और आर्थिक एवं सामाजिक समानता की स्थापना।


प्रश्न 15. समाजवाद शब्द का सर्वप्रथम उपयोग कब एवं कहाँ हुआ ?

उत्तर ⇒ समाजवाद शब्द सर्वप्रथम 1832 में ‘ले ग्लोब’ नामक एक फ्रांसीसी पत्रिका में छपा।

 

History ( इतिहास ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. रूसी क्रांति के प्रभाव की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ 1917 का 1917 की बोल्शेविक क्रांति के दूरगामी और व्यापक प्रभाव पडे। इसका MAIT न सिर्फ रूस पर बल्कि विश्व के अन्य देशों पर भी पड़ा। इस क्रांति के रूस पर निम्नलिखित प्रभाव हुए-

(i) स्वेच्छाचारी जारशाही का अंत- 1917 की बोल्शेविक क्रांति के स्वरूप अत्याचारी एवं निरकुश राजतंत्र की समाप्ति हो गई। रोमनोव वंश के शासन की समाप्ति हुई तथा रूस में जनतंत्र की स्थापना की गई।

(ii) सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद की स्थापना- बोल्शेविक कांति ने की बार शोषित सर्वहारा वर्ग को सत्ता और अधिकार प्रदान किया। नई व्यवस्था भूमि का स्वामित्व किसानों को दिया गया। उत्पादन के साधनों पर निजी के अनुसार भूमि स्वामित्व
समाप्त कर दिया गया। मजदूरों को मतदान का अधिकार दिया गया।

(iii) नई प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना- क्रांति के बाद रूस में एक नई प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना की गई। यह व्यवस्था साम्यवादी विचारधारा के अनुकूल थी। प्रशासन का उद्देश्य कृषकों एवं मजदूरों के हितों की सुरक्षा करना एवं उनकी प्रगति के लिए कार्य करना था। रूस में पहली बार साम्यवादी सरकार की स्थापन

(iv) नई सामाजिक- आर्थिक व्यवस्था-क्रांति के बाद रूस में नई सामाजिक आर्थिक व्यवस्था की स्थापना हुई। सामाजिक असमानता समाप्त कर दी गई। वर्गविहीन समाज का निर्माण कर रूसी समाज का परंपरागत स्वरूप बदल दिया गया।

क्रांति का विश्व पर प्रभाव- रूसी क्रांति का विश्व के दूसरे देशों पर भी प्रभाव पड़ा। ये प्रभाव निम्नलिखित थे

(i) पूँजीवादी राष्ट्रों में आर्थिक सुधार के प्रयास- विश्व के जिन देशों में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था थी। वे भी अब यह महसूस करने लगे कि बिना सामाजिक, आर्थिक समानता के राजनीतिक समानता अपर्याप्त है।

(ii) साम्यवादी सरकारों की स्थापना- रूस के समान विश्व के अन्य देशों चीन, वियतनाम इत्यादि में भी बाद में साम्यवादी सरकारों की स्थापना हुई। साम्यवादी विचारधारा के प्रसार और प्रभाव को देखते हुए राष्ट्रसंघ ने भी मजदूरों की दशा में सुधार लाने के प्रयास किए। इस उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ की स्थापना की गई।

(iii) साम्राज्यवाद के पतन की प्रक्रिया तीव्र- बोल्शेविक क्रांति ने साम्राज्यवाद के पतन का मार्ग प्रशस्त कर दिया। रूस ने सभी राष्ट्रों में विदेशी शासन के विरुद्ध चलाए जा रहे स्वतंत्रता आंदोलन को अपना समर्थन दिया। एशिया और अफ्रीका में उपनिवेशों से स्वतंत्रता के लिए प्रयास तेज कर दिए गए।

(iv) नया शक्ति संतुलन- रूस के नवनिर्माण के बाद रूस साम्यवादी सरकारों का अगुआ बन गया। दूसरी ओर अमेरिका पूँजीवादी राष्ट्रों का नेता बन गया। इससे विश्व दो शक्ति खंडों में विभक्त हो गया। इसने आगे चलकर दोनों खेमों में सशस्त्रीकरण की होड एवं शीतयद्ध को जन्म दिया।


2. कार्ल मार्क्स की जीवनी एवं सिद्धांतों का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 ई० को जर्मनी में राइन प्रांत के ट्रियर नगर में एक यहदी परिवार में हआ था। समाजवादी विचारधारा को आगे बढाने में कार्ल मार्क्स की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मार्क्स पर रूसो, मॉटेस्क्यू एवं हीगेल के विचारधारा का गहरा प्रभाव था। मार्क्स और एंगेल्स ने मिलकर 1848 में कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो अथवा साम्यवादी घोषणा-पत्र प्रकाशित किया। मार्क्स ने पूँजीवाद की घोर भर्त्सना की और श्रमिकों के हक की बात उठाई। मजदूरों को अपने हक के लिए लड़ने को उसने उत्प्रेरित किया। मार्क्स ने 1867 ई० में “दास-कैपिटल” नामक पुस्तक की रचना की जिसे ‘समाजवादियों का बाइबिल’ कहा जाता है। मार्क्सवादी दर्शन साम्यवाद (Communism) के नाम से विख्यात हुआ।

मार्क्स के सिद्धांत –

(i) द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत
(ii) वर्ग संघर्ष का सिद्धांत
(iii) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या
(iv) मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
(v) राज्यहीन व वर्गहीन समाज की स्थापना


3. साम्यवाद के जनक कौन थे ? समाजवाद एवं साम्यवाद में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर ⇒ साम्यवाद के जनक फ्रेडरिक एंगेल्स तथा कार्ल मार्क्स थे। समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसने आधुनिक काल में समाज को एक नया रूप प्रदान किया। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप समाज में पूँजीपति वर्गों द्वारा मजदूरों का शोषण अपने चरमोत्कर्ष पर था। उन्हें इस शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने तथा वर्गविहिन समाज करने में समाजवादी विचारधारा ने अग्रणी भूमिका अदा की। समाजवाद उत्पादन में मुख्यतः निजी स्वामित्व की जगह सामूहिक स्वामित्व या धन के समान वितरण पर जोर देता है। यह एक शोषण-उन्मुक्त समाज की स्थापना चाहता है। आरंभिक समाजवादियों में सेंट साइमन, चार्ल्स फूरिए, लुई ब्लाँ तथा राबर्ट ओवेन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। ये सभी समाजवादी उच्च और व्यवहारिक आदर्श से प्रभावित होकर ‘वर्ग संघर्ष’ की नहीं बल्कि ‘वर्ग समन्वय’ की बात करते थे। दूसरे प्रकार के समाजवादियों में फ्रेडरिक एंगेल्स, कार्ल मार्क्स और उनके बाद के चिंतक ‘साम्यवादी’ कहलाए। ये लोग समन्वय के स्थान पर वर्ग संघर्ष की बात की। इन लोगों ने समाजवाद की एक नई व्याख्या प्रस्तुत की जिसे वैज्ञानिक समाजवाद कहा जाता है। माक्र्सवादी दर्शन साम्यवाद के नाम से विख्यात हुआ। मार्क्स का मानना था कि मानव इतिहास ‘वर्ग संघर्ष’ का इतिहास है। इतिहास उत्पादन के साध नों पर नियंत्रण के लिए दो वर्गों के बीच चल रहे निरंतर संघर्ष की कहानी है।


4. समाजवाद के उदय और विकास को रेखांकित करें।

उत्तर ⇒ समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसने आधनिक काल में समाज
को एक रूप प्रदान किया। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप समाज में पूंजीपति गोदारा मजदरों का लगातार शोषण अपने चरमोत्कर्ष पर था। उन्हें इस शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने तथा वर्गविहीन समाज की स्थापना करने में समाजवादी विचारधारा ने अग्रणी भूमिका अदा की। समाजवाद उत्पादन में मुख्यतः निजी स्वामित्व की जगह सामूहिक स्वामित्व या धन के समान वितरण पर जोर देता है। एक शोषण उन्मुक्त समाज की स्थापना चाहता है। समाजवादी विचारधारा की उत्पत्ति 18 वीं शताब्दी के प्रबोधन आंदोलन के दार्शनिकों के लेखों में ढूँढे जा सकते हैं। आरंभिक समाजवादी आदर्शवादी थे, जिनमें सेंट साइमन, चार्ल्स फूरिए, लुई ब्लाँ तथा रॉबर्ट ओवेन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। समाजवादी आंदोलन और विचारधारा मुख्यतः दो भागों में विभक्त
की जा सकती है –

(i) आरंभिक समाजवादी अथवा कार्ल मार्क्स के पहले के समाजवादी
(ii) कार्ल मार्क्स के बाद के समाजवादी।

आरंभिक समाजवादी आदर्शवादी या ‘स्वप्नदर्शी’ समाजवादी कहे गए। वे उच्च और अव्यावहारिक आदर्श से प्रभावित होकर “वर्ग संघर्ष” की नहीं बल्कि ‘वर्ग समन्वय’ की बात करते थे। दूसरे प्रकार के समाजवादियों में फ्रेडरिक एंगेल्स, कार्ल मार्क्स और उनके बाद के चिंतन जो ‘साम्यवादी’ कहलाए ने वर्ग समन्वय के स्थान पर ‘वर्ग संघर्ष’ की बात कही। इन लोगों ने समाजवाद की एक नई व्याख्या प्रस्तुत की जिसे “वैज्ञानिक समाजवाद” कहा जाता है।


5. यूटोपियन समाजवादियों के विचारों का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ (यूटोपियन) समाजवादी आदर्शवादी थे, उनके कार्यक्रम की प्रवृत्ति अव्यावहारिक थी। इन्हें “स्वप्नदर्शी समाजवादी” कहा गया क्योंकि उनके लिए समाजवाद एक सिद्धांत मात्र था। अधिकतर यूटोपियन विचारक फ्रांसीसी थे जो क्रांति के बदले शांतिपूर्ण परिवर्तन में विश्वास रखते थे अर्थात् वे वर्ग संघर्ष के बदले वर्ग समन्वय के हिमायती थे। प्रथम यूटोपियन (स्वप्नदर्शी) समाजवादी जिसने समाजवादी विचारधारा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया वह फ्रांसीसी विचारक सेंट साइमन था। उसका मानना था कि राज्य और समाज का पुनर्गठन इस प्रकार होना चाहिए जिससे शोषण की प्रक्रिया समाप्त हो तथा समाज के गरीब तबकों की स्थिति में सुधार लाया जा सके। उसने घोषित किया ‘प्रत्येक को उसकी क्षमता के अनुसार तथा प्रत्येक को उसके कार्य के अनुसार।
एक अन्य महत्त्वपूर्ण यूटोपियन विचारक चार्ल्स फूरिए था। वह आधुनिक औद्योगिकवाद का विरोधी था तथा उसका मानना था कि श्रमिकों को छोटे नगर अथवा कसबों में काम करना चाहिए। इससे पूँजीपति उनका शोषण नहीं कर पाएंगे। फ्रांसीसी यूटोपियन चिंतकों में एकमात्र व्यक्ति जिसने राजनीति में भी हिस्सा लिया लई ब्लॉ था। उसका मानना था कि आर्थिक सधारों को प्रभावकारी बनाने के लिए पहले राजनीतिक सुधार आवश्यक है। यद्यपि आरंभिक समाजवादी अपने आदर्शों में सफल नहीं हो सके, लेकिन इन लोगों ने ही पही बार पूँजी और श्रम के बीच संबंध निर्धारित करने का प्रयास किया।


6. लेनिन की नई आर्थिक नीति क्या है ?

उत्तर ⇒ लेनिन एक स्वप्नदर्शी विचारक नहीं, बल्कि वह एक कुशल सामाजिक चिंतक तथा व्यावहारिक राजनीतिज्ञ था। उसने यह स्पष्ट देखा कि तत्काल पूरी तरह समाजवादी व्यवस्था लागू करना या एक साथ सारी पूँजीवादी दुनिया से टकराना संभव नहीं है, जैसा कि ट्रॉटस्की चाहता था। इसलिए 1921 ई० में उसने एक नई नीति की घोषणा की जिसमें मार्क्सवादी मूल्यों से कुछ हद तक समझौता करना पड़ा। नई आर्थिक नीति की प्रमुख बातें निम्नलिखित थी-

(i) किसानों से अनाज लेने के स्थान पर एक निश्चित कर लगाया गया। बचा हुआ अनाज किसान का था और वह इसका मनचाहा इस्तेमाल कर सकता था।

(ii) यघपि यह सिद्धांत कायम रखा गया कि जमीन राज्य की है फिर भा व्यवहार में जमीन किसान की हो गई।

(iii) 20 से कम कर्मचारियों वाले उद्योगों को व्यक्तिगत रूप से चलाने का अधिकार मिल गया।

(iv) उद्योगों का विकेंद्रीकरण कर दिया गया। निर्णय और क्रियान्वयन के बारे में विभिन्न इकाइयों को काफी छुट दी गई।

(v) विदेशी पूँजी भी सीमित तौर पर आमंत्रित की गई।

(vi) व्यक्तिगत संपत्ति और जीवन की बीमा भी राजकीय एजेंसी द्वारा शुरू किया गया।

(vii) विभिन्न स्तरों पर बैंक खोले गए।

(viii) ट्रेड यूनियन की अनिवार्य सदस्यता समाप्त कर दी गई। लेनिन की नई आर्थिक नीति द्वारा उत्पादन की कमी को नियंत्रित किया गया तथा रूस की अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ।


7. स्टालिन के कार्यों का उल्लेख करें।

उत्तर ⇒ रूस में सत्ता संभालते ही स्टालिन के समक्ष अनेक विकट समस्याएँ थी। इनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण आर्थिक समस्या थी। अतः सर्वांगीण आर्थिक विकास के लिए स्टालिन ने 1928 में पंचवर्षीय योजना लागू की। तीन पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा आर्थिक विकारा को गति की गई। औद्योगिकीकरण की गति बढ़ी, कृषि का आधुनिकीकरण हुआ तथा वैज्ञानिक प्रगति हुई। श्रमिकों, किसानों और स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया गया। सामूहिक कृषि की व्यवस्था की गई, परंतु यह व्यवस्था सफल नहीं हो सकी। अत: स्टालिन ने राज्य नियंत्रित कृषि फार्म (कोलखोज) खोले। इसका विरोध करनेवालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की गई। साम्यवादी दल के भीतर भी स्टालिन की नीतियों की आलोचना की गई। अतः इन्हें षड्यंत्रकारी मानकर दंडित किया गया। अनेकों को जेल में बंद कर दिया गया। ट्रॉटस्की सहित अनेक नेताओं को निर्वासित कर दिया गया। लोकतंत्र, भाषण और प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। क्रांति और मार्क्सवाद के आदर्शों की उपेक्षा की गई। इस नीति का कला और साहित्य के विकास पर प्रतिकूल असर पड़ा। स्टालिन ने सर्वाधिकारवाद की नीति अपनाई तथा तानाशाह बन गया। इसके बावजूद स्टालिन ने सोवियत संघ को एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में परिणत कर दिया।

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