समाचार पत्र और उनकी उपयोगिता
समाचार पत्र और उनकी उपयोगिता
मनुष्य के हृदय में कौतूहल और जिज्ञासा दो ऐसी वृत्तियाँ हैं, जिनसे प्रेरित होकर वह संसार की नित्य नवीन घटने वाली घटनाओं से परिचित होना चाहता है। वह जानना चाहता है कि आज अपने देश के ही नहीं, अपितु विश्व के कोने-कोने में क्या हो रहा है। व्यापारी व्यापार के विषय में नये-नये भावों को, समाजशास्त्री समाज की नई व्यवस्थाओं को, साहित्यिक आज के युग की नई रचनाओं और रचनाकारों को तथा सभी प्रकार के मनुष्य राजनीति में होने वाले रोजाना के उत्थान-पतन को जानना चाहते हैं। आज के युग में विश्व के रंगमंच पर नित्य नवीन घटनायें घट रही हैं । आज ऐसा कोई भी देश नहीं जहाँ की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक नीति में उलट-फेर न हो रहा हो। इसको जानने का सबसे मुख्य साधन समाचार-पत्र ही है । समाचार-पत्र ही एक ऐसा साधन है जिसे लोकतन्त्रात्मक शासन-प्रणाली पल्लवित और पुष्पित होती हुई संसार को सौरभमय बना सकती है। समाचार पत्र, शासक और शासित में माध्यम का अर्थात् दुभाषिए का काम करते हैं। इनकी वाणी जनता जनार्दन की वाणी है। वह जनता के हाथों का महान् शस्त्र है। विभिन्न राष्ट्रों तथा जातियों के उत्थान एवं पतन में समाचार-पत्रों का बहुत बड़ा हाथ होता है। एक समय था जबकि एक देश के निवासी दूसरे देशों के समाचार जानने के लिए वर्षों भटकते थे। अपने देश के लिए ही एक अंचल की घटना दूसरे अंचल तक मुश्किल से महीनों में कर्ण परम्परा के माध्यम से पहुँच पाती थी परन्तु आज मानव के सामने समय अथवा दूरी की कोई ऐसी दीवार नहीं जो बाधा के रूप में उपस्थित हो सके। समाचार-पत्रों ने आज विश्व के अन्तर को समाप्त कर दिया है। सात समुद्र पार की कल रात की दुघर्टना को आज प्रातः काल ही समाचार-पत्रों में पढ़ लेते हैं और उसके लिए संवेदना प्रकट करने लगते हैं। समाचार-पत्र वास्तव में विश्वात्मैक्य की भावना को सफल बनाने का एक अमूल्य साधन हैं।
आज से लगभग तीन शताब्दी पहले लोगों को समाचार पत्रों के विषय में कोई ज्ञान नहीं था। केवल कर्ण परम्परा या सन्देशवाहक के माध्यम से ही समाचार एक-दूसरे तक पहुँचते थे । समाचार-पत्रों का प्राथमिक उद्गम स्थान इटली है। इसका जन्म इटली के वेनिस नगर में १३वीं शताब्दी में हुआ और इसका प्रचार उत्तरोत्तर बढ़ने लगा। जनता ने इसकी उपयोगिता का अनुभव किया। १७वीं शताब्दी में इंगलैंड में भी इसका प्रचार हुआ और दिन पर दिन समाचार पत्रों की संख्या बढ़ने लगी। अट्ठारहवीं शताब्दी में अंग्रेजों ने भारतवर्ष में पदार्पण किया । जब उन्होंने देखा कि देश में कोई ऐसा साधन नहीं जिससे कि हम अपनी बात जनता तक पहुँचा सकें तथा जनता की बात अपने तक ला सकें तब उन्होंने भारतवर्ष में भी समाचार पत्रों का श्रीगणेश किया । ईसाई पादरियों ने भारतवर्ष की भोली-भाली जनता के हृदय तक अपने धर्म की विशेषताओं को पहुँचाने के लिये ‘समाचार – दर्पण’ नामक पत्र निकाला था। उससे प्रभावित होकर तथा उन्हें मुँह तोड़ उत्तर देने के लिए ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने ‘कौमुदी’ नामक पत्र निकाला। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने ‘प्रभात’ नामक समाचार पत्र का सफल सम्पादन किया । इसके बाद तो देश में समाचार-पत्रों की सर्वप्रियता लगी और देश के विभिन्न अंचलों से भिन्न-भि भाषाओं में समाचार-पत्र निकलने लगे । उन्नीसवीं शताब्दी में समाचार पत्रों में विषय भी बढ़े, क्या राजनैतिक, क्या सामाजिक और क्या साहित्यिक ।
मुद्रण कला के विकास की कहानी ही भारत के समाचार पत्रों के विकास की कहानी है। भारतवर्ष में जैसे-जैसे मशीनों का युग बढ़ता गया उसी गति से समाचार पत्र भी बढ़ते गये। आज यह व्यवसाय अपने पूर्ण यौवन पर है। बड़े और छोटे सभी प्रकार के समाचार-पत्र देश में प्रकाशित हो रहे हैं। ऐसा कोई नगर नहीं जिसमें दस-पाँच समाचार पत्र प्रकाशित न होते हों। समाचार पत्र के व्यवसाय में बहुत-से व्यक्तियों की आवश्यकता होती है और धन की भी, इसीलिये यह व्यवसाय मुख्य रूप से पैसे वालों के हाथ की कठपुतली बना हुआ है। सर्वप्रथम छापने के लिये मशीन, मशीनमैन, कम्पोजिटर, सम्पादक तथा संवाददाता, इतने व्यक्ति एक साथ समाचार-पत्र में सहायक होते हैं। समाचार-पत्र की सफलता उसके संवादों और संवादों की सफलता संवाददाताओं पर निर्भर होती है। बड़े-बड़े समाचार पत्रों के संवाददाता सारे संसार में होते हैं। राष्ट्रपति भवन से लेकर पनवाड़ी की दूकान तक आप इन्हें छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी जगह पा सकते हैं। ये लोग आधुनिक युग के नारद हैं, किसी भी स्थान पर इनका प्रवेश कानूनी दृष्टि से वर्जित नहीं। टेलीफोन, तार तथा पत्रों आदि की सहायता से ये लोग विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक के समाचार अपने पत्रों को भेजते हैं। समाचार-पत्र का सम्पादकीय विभाग उनमें उचित संशोधन करके कम्पोजिटरों के पास भेजता है। इसके बाद मशीनमैन उन्हें छापते हैं और फिर दूर-दूर तक के नगरों में रेल, हवाई जहाज, मोटर, बस आदि की सहायता से उन्हें शीघ्रातिशीघ्र भेजने का प्रयत्न किया जाता है।
देशवासियों की व्यापारिक उन्नति में समाचार पत्र एक बहुत बड़ा सहायक साधन है। अपनी व्यावसायिक उन्नति के लिये हम किसी भी पत्र में अपना विज्ञापन प्रकाशित करा सकते हैं। अपनी तथा अपने यहाँ की बनी हुई वस्तुओं की विशेषता दूर-दूर तक की जनता के सामने रख सकते हैं। इस प्रकार हमारी ग्राहक संख्या बढ़ जाती है और घर बैठे ही बाहर से माल मंगवाने के आर्डर आते रहते हैं। बड़ी-बड़ी विदेशी फर्म इसी माध्यम से घर बैठे लाखों रुपये कमाती हैं।
पढ़े-लिखे,परन्तु बेरोजगार,समाचार-पत्रों में अपनी रोटियाँ ढूँढते हैं। राजकीय तथा गैर-सरकारी नौकरियों के विज्ञापन के लिए आजकल एक पूरा पृष्ठ समाचार पत्र में आता है। अविवाहित बन्धु समाचार-पत्रों में ही अपनी गृहणियों की खोज करते हैं और वे पिता जो अपनी कन्या के लिये वर ढूँढते-ढूँढते थक जाते हैं, समाचार पत्रों का आश्रय लेते हैं। माँ से रूठकर पुत्र, पत्नी से लड़कर पति और कुसंगति से प्रेम करके छोटा बच्चा जब घर से निकल जाता है तब उसको बुलाने और खोज करने के माध्यम का श्रेय समाचार पत्रों को ही है। आज के युग में चलचित्रों की इतनी सफलता का श्रेय समाचार पत्रों को ही है। तस्वीर बनकर तैयार नहीं हुई, परन्तु वर्षों पहले से धडाधड़ चित्ताकर्षक विज्ञापन निकलने लगते हैं। परिणाम यह होता है कि मनचले लोग चित्र आने की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं। जून के अन्तिम सप्ताह में जबकि समाचार पत्रों में विभिन्न परीक्षाओं के परीक्षा-परिणाम प्रकाशित होते हैं, तो उस समय लाखों विद्यार्थी अखबार वालों की दूकान के चक्कर काटते देखे जाते हैं, अतः समाचार पत्र छात्रों के भाग्य-निर्णायक भी हैं। अब अखबार वाले भिन्न-भिन्न कम्पनियों के शेयरों के तेजी-मन्दी छाप कर उनके भी भाग्य-निर्णायक हो गये हैं।
आज के युग में पिछड़ी हुई जातियों के उत्थान में समाचार पत्रों ने बहुत बड़ी सहायता की है। किसी शोषित जाति पर प्रशासकों द्वारा किये गये अत्याचारों की करुणापूर्ण कहानी के सन्देश को सारे संसार में फैलाकर अन्य देश या जाति वालों की संवेदना या सहानुभूति प्राप्त करने में समाचार-पत्र सबसे अधिक सहायक सिद्ध हुए हैं। भारतवर्ष की राष्ट्रीय चेतना को सजग बनाने में समाचार-पत्रों ने आशातीत योगदान दिया और उसी का फल है कि आज हम स्वतन्त्र हैं और हमारे देश का मस्तक गर्वोन्नत है ।
संसार की सभी वस्तुएँ सुन्दर हैं और कुरूप भी । जहाँ किसी वस्तु से हमें लाभ है वहाँ हमें उससे हानि की भी आशंका हो सकती है। समाचार पत्र जहाँ हमारी सर्वांगीण सहायता करते हैं वहाँ अनेक बार उनसे जनहित और राष्ट्रहित दोनों को बड़े घातक परिणाम भी भोगने पड़ जाते हैं। कभी-कभी स्वार्थी और युयुत्सु प्रकृति के प्राणी अपनी दूषित और विषैली विचारधाराओं को समाचार-पत्रों में प्रकाशित करके दूसरी जाति या देश के साथ घृणा की भावना उत्पन्न कर देते हैं। इससे राष्ट्र में अराजकता फैल जाती है, साम्प्रदायिक उपद्रव होने लगते हैं और एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र शत्रु की दृष्टि से देखने लगता है। पिछले विश्वयुद्ध में इसी प्रकार के कुत्सित और घृणापूर्ण विचार फैलाये गये थे। चारित्रिक दृष्टि से समाचार पत्र कभी-कभी देश को पतन के गर्त में धकेल देते हैं। अश्लील विज्ञापनों तथा नग्न चित्रों द्वारा लोगों के विचार ही दूषित नहीं होते अपितु उनका आत्मिक और मानसिक पतन भी होता है। संवाददाताओं की निरंकुशता भी जनता को अखरने लगती है झूठ को सच और सच को झूठ बनाने में ये लोग सिद्धहस्त होते हैं। अच्छे को बुरा कह देने का मतलब यह है कि ये लोग अपनी आत्मा और अपने देश के साथ अन्याय कर रहे को हैं।
आज स्वतन्त्रता का युग है। जनता को अपने शासकों की आलोचना करने तथा उनके कार्य से असन्तुष्ट होने पर उन्हें पदच्युत करने का अधिकार प्राप्त है । प्रत्येक मनुष्य अपने-अपने विचारों में स्वतन्त्र है और उन्हें प्रकट करने का जन्मजात अधिकार है। अपने विचारों को जनता के कानों तक पहुँचाने के दो ही माध्यम हैं— भाषण और समाचार पत्र । भाषण का अधिकार क्षेत्र कुछ सीमित है और समाचार-पत्रों का विस्तृत । भारतवर्ष के स्वतन्त्रता संग्राम में समाचार-पत्रों ने अद्वितीय योगदान दिया था। अतः आज युग की पुकार है कि शासन को इन्हें अधिकाधिक स्वतन्त्रता देनी चाहिए, परन्तु साथ-साथ यह भी ध्यान रखना चाहिये कि कहीं समाचार पत्र निरंकुश शासक की भाँति बिल्कुल मनचाही तो नहीं करने लगे हैं ।
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