संयुक्त राष्ट्र संघ

संयुक्त राष्ट्र संघ

          आज का युग युद्ध का युग है। बड़े राष्ट्र छोटे राष्ट्रों को निगल जाने के लिये आतुर बैठे हैं । विश्व के चारों ओर अशांति का आतंक छाया हुआ है। आज का सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन संघर्षों का केन्द्र बना हुआ है । युद्ध से अनन्य धन-जन शक्ति का विनाश होता है यह सभी. जानते और मानते भी हैं, परन्तु मानव स्वार्थलिप्सा उसे सब कुछ भुलाकर पथ भ्रष्ट कर देती है। विश्वबन्धुत्व की पवित्र भावना तथा मानवता का पुनीत सम्बन्ध आज समाप्त हो गया है। विगत दोनों महायुद्धों का लोक-संहारकारी ताण्डव नृत्य संसार ने देखा, मानवता चीत्कार कर उठी । इन युद्धों में जितना धन अपव्यय किया गया, यदि वही विश्व की जनता के कल्याण के लिये व्यय किया जाता तो आज विश्व कई गुना अधिक सुखी और सम्पन्न होता । विज्ञान की उन्नति के साथ-साथ विनाश की भयंकरता भी उत्तरोत्तर बढ़ती गई और कगार पर खड़ा हुआ एक धक्के की प्रतीक्षा कर रहा है, परन्तु लोगों की आँख प्रथम महायुद्ध ने खोल दी थीं और कुछ आँखें द्वितीय ने। इस दूसरे महायुद्ध की विषैली गैसों, बमों और तोपों द्वारा भीषण नरसंहार को देखकर संसार के देश भयभीत हो उठे । आज तो मानव का मस्तिष्क उससे भी भयानक अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण कर रहा है। इस भयानक गतिविधि को रोकने के लिए संसार के विचारकों ने एक ऐसी संस्था बनाने का निश्चय किया, जिसमें विश्व की समस्त अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं और पारस्परिक विवादों का समाधान, शान्तिपूर्ण वार्तालाप और आपसी समझौतों द्वारा किया जा सके ।
          इसी धारा के फलस्वरूप द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् २६ जून, १९४५ को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई। संसार के ५१ से अधिक देशों ने इस संघ की सदस्यता स्वीकार की। उन्होंने यह स्वीकार किया कि हम अपने आपसी झगड़ों का युद्ध के द्वारा निर्णय न करके संयुक्त राष्ट्र संघ में शान्तिपूर्ण वार्तालाप द्वारा सुलझाने को तैयार हैं और हम युद्ध का घोर विरोध करते हैं। युद्ध से समस्त विश्व को संयुक्त राष्ट्र संघ के रूप में मानों कोई शरण मिल गई हो । विश्व के देशों की सम्मिलित पंचायत का नाम संयुक्त राष्ट्र संघ रख दिया गया।
          प्रथम महायुद्ध के पश्चात् भी, इसी प्रकार की शान्ति प्रिय संस्था का उदय हुआ, जो अपना अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व रखती थी, जिसका नाम लीग ऑफ नेशन्स अर्थात् राष्ट्र संघ रक्खा गया था। इस राष्ट्र संघ के प्रायः सभी वही उद्देश्य थे, जो इस संयुक्त राष्ट्र संघ के हैं, परन्तु विश्व शान्ति और विश्वात्मैक्य के प्रयास में यह प्रथम पदन्यास था। लीग ऑफ नेशन्स एक दुर्बल संस्था थी। राष्ट्र उसके निर्णयों को स्वीकार भी नहीं करते थे। यही कारण था कि इसके रहते हुए भी जापान ने मंचूरिया पर तथा इटली ने अबिसीनिया पर आक्रमण किया। इसके विरुद्ध राष्ट्र संघ केवल प्रस्ताव पास करके ही रह गया, कोई ठोस कदम न उठा सका । द्वितीय विश्व युद्ध में परमाणु बमों द्वारा भीषण नरसंहार हुआ, जिससे यह स्पष्ट था कि यदि तृतीय महायुद्ध हुआ तो मानव जाति सदा-सदा के लिये समाप्त हो जायेगी ।
          द्वितीय महायुद्ध अभी समाप्त भी न हो पाया था कि मित्र राष्टों ने एटलांटिक घोषणा-पत्र तैयार किया, जिसमें मनुष्य को धर्म और विचारों की स्वतन्त्रता, निर्भयता और प्रत्येक प्रकार के अभाव से मुक्ति प्राप्त कराने की घोषणा की गई । अमेरिका के सेनफ्रांसिस्को नगर में एक विशाल सम्मेलन हुआ, जिसमें विश्व के अधिकांश राष्ट्रों ने भाग लिया। एक मत होकर युद्ध की निन्दा की गई, मनुष्यों की समानता का सिद्धान्त स्वीकार किया गया। यह निश्चय किया गया कि देश चाहे छोटे हों या बड़े अपने घरेलू मामलों में पूर्णतया स्वतन्त्र हैं, किसी भी दूसरे राष्ट्र को उनके आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ के इस प्रथम अधिवेशन में यह भी स्वीकार किया गया कि प्रजातन्त्र शासन प्रणाली ही सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली है। द्वितीय विश्व युद्ध के जन्मदाता इटली तथा जर्मनी थे। दोनों देशों में अधिनायकतन्त्रीय शासन प्रणाली थी, अगर इन देशों में प्रजातन्त्र शासन प्रणाली होती तो सम्भवतः द्वितीय विश्व युद्ध न हुआ होता । अधिनायकतंत्रीय देशों का ध्यान अपनी राज्य सीमाओं के बढ़ाने, दूसरे देशों पर अधिकार करने तथा अपनी गौरव वृद्धि की ओर ही अधिक रहता है।
          संयुक्त राष्ट्र संघ इस समय एक सुसंगठित और शक्तिशाली संस्था है। विश्व के प्रायः सभी बड़े और छोटे राष्ट्र इसके सदस्य हैं। सदस्य देशों की संख्या इस समय १०० से अधिक है। संघ का उद्देश्य विश्व के सभी राष्ट्रों में पारस्परिक सहयोग, सहानुभूति, सद्भावना, सहिष्णुता और संवेदना की भावना की वृद्धि करना है। वह अपने उद्देश्यों में बहुत कुछ सफलता भी प्राप्त कर चुका है। संयुक्त राष्ट्र संघ का कार्य क्षेत्र सर्वतोमुखी है और अधिक विस्तृत है। कोई भी राष्ट्र हो उसकी सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, औद्योगिक, कृषि सम्बन्धी, पुनर्निर्माण, आदि कोई भी लोकोपकारी कार्य हो, उसमें यह संघ पूरी दिलचस्पी से काम लेता है। इसके कई अंग हैं। इसकी सबसे अधिक शक्तिशाली और प्रभुत्व सम्पन्न सभा जनरल एसेम्बली है। किसी भी विषय में जनरल एसेम्बली का निर्णय अन्तिम समझा जाता है। वैसे इसका अधिवेशन वर्ष में एक बार होता है, परन्तु आवश्यकता पड़ने पर कभी भी बुलाया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् एक महत्त्वपूर्ण शाखा है। जनरल एसेम्बली के पश्चात् सुरक्षा परिषद् को ही सबसे अधिक अधिकार प्राप्त होता है । इसका काग संसार में शान्ति बनाए रखना है। यदि कहीं भी आक्रमण होता है, तो सुरक्षा परिषद् सामूहिक सुरक्षा के आधार पर उस आक्रमण का प्रतिरोध करती है। इसमें ११ सदस्य होते हैं इसका अध्यक्ष क्रम से उन्हीं ग्यारहों में चुना जाता है। काश्मीर, कोरिया और मिस्र के आक्रमणों को रोकने के लिये सुरक्षा परिषद् ने ही ठोस प्रयत्न किये ।
          इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र संघ की और भी अनेक महत्वपूर्ण शाखाएँ हैं, जिनमें विश्व बैंक, स्वास्थ्य संगठन, अन्न एवम् कृषि संगठन, संयुक्त राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। पिछड़े हुए राष्ट्रों की आर्थिक सहायता के लिए विश्व बैंक से ऋण के रूप में धनराशि प्राप्त की जा सकती है। ऐसे देशों की औद्योगिक उन्नति के लिये कुशल वैज्ञानिक भेजे जाते हैं। स्वास्थ्य, चिकित्सा तथा शिक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ विशेष रूप से प्रयत्न कर रहा है। संक्रामक भयानक रोगों को नष्ट करने के लिये औषधियों के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ मानव समाज की बहुमूल्य सेवा कर रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय संसार के आपसी झगड़ों को समाप्त करने में अपना अन्तिम निर्णय देता है। ट्रस्टीशिप कौंसिल पराजित राष्ट्रों की देखभाल करती है।
          संयुक्त राष्ट्र संघ ने पिछले वर्षों में कई महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं। उत्तर कोरिया के बन्धन से दक्षिण कोरिया को मुक्त कराया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने कई देशों की संयुक्त सेना बनाकर उत्तरी कोरिया के आक्रमणों का मुकाबला किया और दक्षिणी कोरिया को फिर स्वतन्त्र करा दिया। इसके द्वारा, डच, इण्डोनेशिया, अरब, यहूदियों तथा मिस्र के झगड़ों को बड़ी सफलतापूर्वक निर्णय किया गया है। अफ्रीका में भारतीयों के प्रति दुर्व्यवहार भी इसके द्वारा समाप्त कर दिया है। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ का कार्य निःसन्देह सराहनीय है ।
          संयुक्त राष्ट्र संघ यदि निष्पक्ष होकर कार्य करता रहा तो वास्तव में विश्व का कल्याण होता रहेगा, परन्तु यह सत्य कुछ संदिग्ध प्रतीत हो रहा है, क्योंकि संसार इस समय पूँजीवादी और साम्यवादी दो गुटों में विभक्त है। दोनों पक्ष एक-दूसरे के विरोधी हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में सदैव एक-दूसरे की टक्कर होती रहती है। संघ में जो प्रतिनिधि लिए जाते हैं वे जनसंख्या के आधार पर न होकर देशों के आधार पर लिये जाते हैं इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका के समर्थक देशों की संख्या अधिक है, वीटों के बल पर अमेरिका अपनी गलत बात भी मनवा सकता है । यदि यह गुटबन्दी समाप्त न हुई तो एक समय वह आयेगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ लीग ऑफ नेशन्स की तरह स्वयं समाप्त हो जायेगा । फलस्वरूप कई बार यह माँग उठाई गई कि साम्यवादी चीनी सरकार का प्रतिनिधित्व भी होना चाहिये, परन्तु अमेरिका के दबाव के कारण यह प्रस्ताव सदैव असफल रहा। परन्तु १९७१ से अमेरिका के प्रेसीडेन्ट निक्सन का रुख चीन के प्रति बदला। अब चीन संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य है। परन्तु अब चीन ने अपने वीटो के अधिकार से बंगला देश को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनने से रोक रक्खा है ।
          परन्तु अभी तक संयुक्त राष्ट्र संघ ने संसार को युद्ध की विभीषिकाओं से बचा कर स्तुत्य कार्य किया है। जब-जब विश्व के भाग्याकाश पर युद्ध के काले डरावने जल्द मंडराये तब-तब इस संघ ने अपने अद्वितीय और सत्प्रयत्नों से उन्हें दूर करके मानव जाति को विनाश के मुख में जाते-जाते बचा लिया। परन्तु खेद है नवोदित बंगला देश में पाकिस्तान द्वारा किए गए भयंकर नरसंहार के प्रति संयुक्त राष्ट्र संघ मौन और उदासीन रहा । इस क्रूर मानव-विनाश को रुकवाने के लिए भारत की प्रार्थना पर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की न्यायप्रियता एवम् मानव-सेवा नहीं कही जा सकती । संयुक्त राष्ट्र संघ का यह दौर्बल्य, चाहे वह किसी दबाव या प्रभाव के कारण हो, अनादर्श एवम् कर्तव्यहीनता है।
          १७ फरवरी, १९७९ से ४ मार्च, १९७९ तक चीन के वियतनाम पर बर्बर आक्रमण और घोर युद्ध के विषय में भी संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका सफल सिद्ध नहीं हो सकी। ३ जुलाई, १९८८ को अमेरिकी नौ सेना के एक पोत ने एक ईरानी यात्री विमान को हरभज की खाड़ी में मार गिराया जिसमें २९० यात्री थे । ९ भारतीय भी उसी में यात्रा कर रहे थे। तेहरान ने इस घटना पर संयुक्त राष्ट्र संघ में विरोध प्रकट किया। अमेरिका के राष्ट्रपति रीगन ने इस कार्यवाही को उचित बताया क्योंकि अमेरिकी अधिकारियों ने इस विमान को लड़ाकू विमान समझा था । विश्व के सभी देशों ने इस घटना की निन्दा की पर संयुक्त राष्ट्र संघ इसमें कुछ कर पायेगा यह नितान्त सन्दिग्ध है। हमें विश्वास है कि संयुक्त राष्ट्र संघ भविष्य में इस ओर ध्यान देगा और सच्चे हृदय से से निष्पक्षतापूर्वक मानव जाति की सेवा करता हुआ विश्व में शांति और न्याय स्थापित करने में समर्थ हो सकेगा। सम्भव है विश्व के महान् विचारकों के तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के सत्प्रयासों से एक दिन ऐसा भी आ सकेगा जबकि विश्व के राष्ट्र परस्पर भाई की तरह व्यवहार करके एक-दूसरे के सुख-दुख में समभागी हो सकेंगे ।
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