संगतकार

संगतकार

संगतकार कवि-परिचय

प्रश्न-
मंगलेश डबराल का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-मंगलेश डबराल आधुनिक हिंदी कवि एवं पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं। इनका जन्म सन् 1948 में टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड) के काफलपानी नामक गाँव में हुआ था। इनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई थी। दिल्ली आकर ये पत्रकारिता से जुड़ गए थे। श्री डबराल जी ने हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास आदि पत्र-पत्रिकाओं में काम किया। तत्पश्चात् ये भारत भवन, भोपाल से प्रकाशित होने वाले पत्र पूर्वग्रह में सहायक संपादक के पद पर नियुक्त हुए। इन्होंने इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित होने वाले अमृत प्रभात में भी काम किया। सन् 1983 में जनसत्ता में साहित्यिक संपादक के पद को सँभाला था। श्री डबराल ने कुछ समय के लिए सहारा समय का भी संपादन किया है। आजकल डबराल जी नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़कर ‘काम कर रहे हैं।

2. प्रमुख रचनाएँ-अब तक डबराल जी के चार काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’ । इनकी रचनाओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, पोल्स्की, बल्गारी आदि भाषाओं में भी अनुवाद हो चुके हैं। काव्य के अतिरिक्त साहित्य सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति से संबंधित विषयों पर भी इनकी गद्य रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के कारण इन्हें विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। श्री डबराल कवि के रूप में ही अधिक प्रतिष्ठित हुए हैं तथा अच्छे अनुवादक के रूप में भी इन्होंने नाम कमाया है।

3. काव्यगत विशेषताएँ-श्री मंगलेश डबराल के काव्य में सामंती बोध एवं पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का विरोध किया गया है। वे यह विरोध अथवा प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं, अपितु प्रतिपक्ष में सुंदर सपना रचकर करते हैं। वे वंचितों का पक्ष लेकर काव्य रचना करते हैं। इनकी कविताओं में अनुभूति एवं रागात्मकता विद्यमान है। श्री डबराल जहाँ पुरानी परंपराओं का विरोध करते हैं, वहाँ नए जीवन-मूल्यों का पक्षधर बनकर सामने आते हैं। इनका सौंदर्य बोध अत्यंत सूक्ष्म है। सजग भाषा की सृष्टि इनकी कविताओं के कलापक्ष की प्रमुख विशेषता है।।

4. भाषा-शैली-इन्होंने शब्दों का प्रयोग नए अर्थों में किया है। छंद विधान को भी इन्होंने परंपरागत रूप में स्वीकार नहीं किया, किंतु कविता में लय के बंधन का निर्वाह सफलतापूर्वक किया है। इन्होंने काव्य में नई-नई कल्पनाओं का सृजन किया है। बिंब-विधान भी नवीनता लिए हुए हैं। नए-नए प्रतीकों के प्रति इनका मोह छुपा हुआ नहीं है। भाषा पारदर्शी और सुंदर है।

संगतकार कविता का सार

प्रश्न-
‘संगतकार’ शीर्षक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘संगतकार’ कविता में कवि ने मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका पर प्रकाश डाला है। कवि ने बताया है कि दृश्य माध्यम की प्रस्तुतियाँ; यथा-नाटक, फिल्म, संगीत नृत्य के बारे में तो यह बिल्कुल सही है। किंतु समाज और इतिहास में भी हम ऐसे अनेक उदाहरण देख सकते हैं। नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रस्तुत कविता में कवि ने यही संदेश दिया है कि हर व्यक्ति की अपनी-अपनी भूमिका होती है, अपना-अपना महत्त्व होता है। उनका सामने न आना उनकी कमज़ोरी नहीं, अपितु मानवीयता है। युगों से संगतकार अपनी आवाज़ को मुख्य गायक से मिलाते आए हैं। जब मुख्य गायक अंतरे की जटिल तान में खो जाता है या अपने सरगम को लाँघ जाता है, तब संगतकार ही स्थायी पंक्ति को संभालकर आगे बढ़ाता है। ऐसा करके वह मुख्य गायक के गिरते हुए स्वर को ढाँढस बँधाता है। कभी-कभी उसे यह भी अहसास दिलाता है कि वह अकेला नहीं है, उसका साथ देने वाला है। जो राग पहले गाया जा चुका है, उसे फिर से गाया जा सकता है। वह सक्षम होते हुए भी मुख्य गायक के समान अपने स्वर को ऊँचा उठाने का प्रयास नहीं करता। इसे उसकी असफलता नहीं समझनी चाहिए। यह उसकी मानवीयता है, वह ऐसा करके मुख्य गायक के प्रति अपना सम्मान प्रकट करता है।

Hindi संगतकार Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मुख्य गायक एवं संगतकार के संबंधों पर सार रूप में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मुख्य गायक और संगतकार का संबंध प्राचीनकाल से चला आ रहा है। मुख्य गायक और संगतकार का संबंध चोलीदामन का संबंध है। मुख्य गायक को संगतकारों के सहयोग के बिना प्रसिद्धि नहीं मिल सकती तथा मुख्य गायक के बिना संगतकारों की कला महत्त्वहीन ही रहती है। संगतकार मुख्य गायक की आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर सदा से उसे बल प्रदान करता आया है। वह मुख्य कलाकार या गायक की आवाज़ के मुकाबले में अपनी आवाज़ को कमज़ोर व धीमा रखता आया है।

प्रश्न 2.
गायन के क्षेत्र में प्रयोग होने वाले ‘स्थायी’ एवं ‘अंतरा’ शब्दों का अर्थ समझाइए।
उत्तर-
स्थायी-गायन के क्षेत्र में ‘स्थायी’ का अर्थ गीत की मुख्य पंक्ति या टेक है जिसे बार-बार दोहराया जाता है।।
अंतरा-‘अंतरा’ गीत की टेक की पंक्ति के अतिरिक्त दूसरी पंक्तियों को कहते हैं। गीत में एक से अधिक चरण या अंतरे होते हैं। हर अंतरे के पश्चात् स्थायी अर्थात् टेक की पंक्तियाँ होती हैं।

प्रश्न 3.
सरगम किसे कहते हैं?
उत्तर-
‘सरगम’ संगीत के क्षेत्र में सात स्वरों के समूह को सरगम कहते हैं। संगीत के सात स्वर हैं-षडज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम्, धैवत और निषाद। इन्हीं नामों के पहले अक्षर लेकर इन्हें सा, रे, ग, म, प, ध और नि कहा गया है।

प्रश्न 4.
सप्तक किसे कहते हैं? उसके कितने भेद होते हैं?
उत्तर-
संगीत के क्षेत्र में सप्तक का अत्यधिक महत्त्व है। सप्तक का अर्थ है-सात का समूह । सात शुद्ध स्वर हैं इसीलिए यह नाम पड़ा। लेकिन ध्वनि की ऊँचाई और निचाई के आधार पर संगीत में तीन तरह के सप्तक माने गए हैं। यदि साधारण ध्वनि से है तो उसे ‘मध्य सप्तक’ कहेंगे और ध्वनि मध्य सप्तक से ऊपर है तो उसे ‘तार सप्तक’ कहेंगे तथा ध्वनि मध्य सप्तक से नीचे है तो उसे ‘मंद्र सप्तक’ कहते हैं।

संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 5.
‘संगतकार’ कविता का उद्देश्य/मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘संगतकार’ शीर्षक कविता में कवि का लक्ष्य मुख्य कलाकार के सहयोगी कलाकारों की भूमिका के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उन्हें सम्मान प्रदान करना है। ठीक इसी प्रकार समाज के विभिन्न क्षेत्रों में भूमिका रूप में रहते हुए समाज के विकास में योगदान देने वाले लोगों को भी सम्मान देने की भावना को बढ़ावा देना है। संगतकार भले ही मुख्य कलाकार के सहायक हैं तथा उसके पीछे-पीछे चलते हैं। उसकी आवाज़ और गूंज में अपनी आवाज़ और गूंज मिलाकर उसे शक्ति व बल प्रदान करते हैं। उसे गीत के मुख्य स्वर से विचलित नहीं होने देते। उनके बिना मुख्य गायक सफल नहीं हो सकता। इसी प्रकार समाज में सामान्य लोगों के सहयोग के बिना शासक भी सफल नहीं हो सकता। अतः कविता का परम लक्ष्य संगतकारों के महत्त्व को उजागर करना है।

प्रश्न 6.
‘संगतकार’ शब्द यहाँ प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है। इस शब्द के माध्यम से लेखक ने क्या स्पष्ट किया?
उत्तर-
‘संगतकार’ मुख्य कलाकार के सहायक को कहा जाता है। वह अपनी शक्ति को मुख्य कलाकार का बल बना देता है। वह अपनी संपूर्ण शक्ति का प्रयोग मुख्य कलाकार को आगे बढ़ाने में करता है। वह स्वयं पीछे रहकर उसे आगे बढ़ाता है। इस प्रतीक के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि जीवन के हर क्षेत्र में सहायकों का कार्य महत्त्वपूर्ण होता है। वे कभी स्वयं ऊपर नहीं आ पाते। उनका समाज में उतना ही योगदान है जितना कि मुख्य कलाकारों का। यह सब कुछ जानते हुए भी वे अपने नेता को ही आगे बढ़ाते हैं। अतः उनके इस निःस्वार्थ भाव से किए गए त्याग को उजागर करना ही कविता का परम लक्ष्य है।

Hindi संगतकार Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है?
उत्तर-
संगतकार के माध्यम से कवि ऐसे लोगों की ओर संकेत करना चाह रहा है जिनका किसी कार्य के करने में योगदान तो पूरा रहता है किंतु उनका नाम कोई नहीं जानता। सारा श्रेय मुखिया को ही जाता है। कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि समाज में हर व्यक्ति का अपना-अपना महत्त्व है। जिस प्रकार कोई टीम केवल कैप्टन के प्रयास से नहीं जीतती, अपितु हर खिलाड़ी के प्रयास से जीतती है। अतः जीत का श्रेय हर खिलाड़ी को मिलना चाहिए।

प्रश्न 2.
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं?
उत्तर-
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा नाटक, फिल्म, विभिन्न खेलों की टीम, राजनीति आदि अनेक क्षेत्रों में दिखलाई पड़ते हैं। वैज्ञानिक क्षेत्र में प्रमुख वैज्ञानिक के साथ अनेक दूसरे वैज्ञानिक भी काम करते हैं। किंतु किसी महत्त्वपूर्ण खोज का श्रेय मुख्य वैज्ञानिक को दिया जाता है। कहने का अभिप्राय है कि काम तो अनेक लोग करते हैं, किंतु सफलता का श्रेय मुख्य व्यक्ति को ही दिया जाता है।

प्रश्न 3.
संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं?
उत्तर-
संगतकार अनेक प्रकार से मुख्य गायक-गायिकाओं की सहायता करते हैं, जैसे वे अपनी आवाज़ और गूंज को मुख्य गायक की आवाज़ और गूंज से मिलाकर उसे बल प्रदान करते हैं। वे मुख्य गायक द्वारा कहीं गहरे में चले जाने पर या आवाज़ को लंबी खींचने पर उनकी स्थायी पंक्ति अर्थात् गीत की टेक को पकड़े रखते हैं और गीत को बेसुरा नहीं होने देते। वे मुख्य गायक को मूल स्वर पर लौटा लाने का काम भी करते हैं। जब मुख्य गायक की आवाज़ थककर बिखरने व टूटने लगती है तो उस समय भी संगतकार उसे शक्ति प्रदान करते हैं। उसे अकेला नहीं पड़ने देते।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है उसे विफलता नहीं उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
उत्तर-
देखिए काव्यांश ‘3’ का अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न ‘ग’ भाग।

प्रश्न 5.
किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से अपना योगदान देते हैं। कोई एक उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
समाज में ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाते हैं। हम किसी भी विद्यालय के प्रधानाध्यापक या मुख्याध्यापकों का उदाहरण ले सकते हैं। विद्यालय को विकास के पथ पर ले जाने की सफलता का श्रेय प्रधानाचार्य को मिलता है जबकि उसमें अध्यापकों एवं अन्य कर्मचारियों का सहयोग भी रहता है। अकेला प्रधानाचार्य कुछ नहीं कर सकता। इसी प्रकार संसार के बड़े-बड़े सफल लोगों के उदाहरण भी दिए जा सकते हैं, जैसे-बिल गेट्स, अंबानी, लक्ष्मी मित्तल को देख लीजिए। इसकी सफलता के पीछे मैनेजमैंट से जुड़े लोगों की पूरी टीम है। ये लोग दिन-रात परिश्रम करते हैं। अकेले व्यक्ति के प्रयास से इतनी सफलता नहीं मिलती। अतः स्पष्ट है कि किसी भी महान् व्यक्ति की सफलता में अनेक लोगों का योगदान रहता है। कहा भी गया है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

प्रश्न 6.
कभी-कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नज़र आता है उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
संगतकार की प्रमुख भूमिका यही है कि वह मुख्य गायक का पूरा सहयोग करता है। जब भी उसका स्वर टूटने लगता है तो संगतकार उनकी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर उन्हें बल देता है, श्रोताओं को इसका पता ही नहीं चलता। यदि मुख्य गायक बिना संगतकार के गीत गा रहा है तो उसका स्वर बीच-बीच में बिखरता रहेगा। संगतकार ही उसके स्वर को बिखरने से बचाता है। यही संगतकार की विशिष्ट भूमिका है।

प्रश्न 7.
सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं तब उसे सहयोगी किस तरह सँभालते हैं? ‘
उत्तर-
सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं, तब उसके सहयोगी उसे अपना पूर्ण योगदान या सहयोग देकर सँभालते हैं। उसे मानसिक तौर पर सहारा देने हेतु अपनी सहानुभूति भी देते हैं। उसके साथ रहते हुए बार-बार उसकी योग्यताओं का अहसास करवाते रहते हैं ताकि वह पहले से अधिक परिश्रम कर सके। . वे अपनी सारी शक्ति उसके लिए लगा देते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
कल्पना कीजिए कि आपको किसी संगीत या नृत्य समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना है लेकिन आपके सहयोगी कलाकार किसी कारणवश नहीं पहुंच पाए
(क) ऐसे में अपनी स्थिति का वर्णन कीजिए।
(ख) ऐसी परिस्थिति का आप कैसे सामना करेंगे?
उत्तर-
(क) ऐसी स्थिति में आरंभ में तो थोड़ी चिंता होगी कि सहयोगी कलाकार के बिना काम करना कठिन होगा। किंतु समारोह का कार्यक्रम प्रस्तुत करना अति आवश्यक है तो मन में यह निश्चित करके अपना गीत व नृत्य अवश्य करूँगा।

(ख) ऐसी स्थिति को सँभालने के लिए सहयोगी कलाकारों से संपर्क करके उन्हें बुलाने का प्रयास करूंगा। उनसे संपर्क न होने की स्थिति में किसी नये संगतकार को बुलाने की कोशिश करूँगा। कुछ क्षणों के लिए नये सहयोगी कलाकारों के साथ अभ्यास करूँगा ताकि हमारी उनसे ताल-मेल ठीक बैठ जाए। यदि ऐसा न हो सका तो कार्यक्रम को स्थगित कर दूंगा तथा कार्यक्रम कि अन्य तिथि की घोषणा कर दूंगा।

प्रश्न 9.
आपके विद्यालय में मनाए जाने वाले सांस्कृतिक समारोह में मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों की भूमिका पर एक अनुच्छेद लिखिए। .
उत्तर-
विद्यालय में मनाए जाने वाले सांस्कृतिक समारोह में जितना महत्त्व मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले का है, उतना ही महत्त्व मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों का भी है। मंच पर उद्घोषणा करने वाले सहयोगी के समान ही अन्य सहयोगी कलाकारों का भी महत्त्व है। जिस प्रकार अच्छी नींव पर मजबूत भवन खड़ा हो सकता है। वैसे ही अच्छे एवं कुशल सहयोगी कलाकारों के बल पर ही कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम सफल होता है। संगीत व नृत्य के कार्यक्रम तो मंच के पीछे के सहयोगी कलाकारों के बिना होना संभव ही नहीं है। संगतकार नृत्य एवं संगीत के कार्यक्रमों की जान होते हैं। वे कार्यक्रम को जीवंतता प्रदान करते हैं। प्रकाश की अनुकूल व्यवस्था मंच के पीछे काम करने वाले ही करते हैं। प्रकाश की व्यवस्था का नाटक की प्रस्तुति में तो अत्यधिक महत्त्व रहता है। इसी प्रकार मंच की साज-सज्जा का दर्शक के मन पर सर्वप्रथम प्रभाव पड़ता है। साज-सज्जा का प्रभाव सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति पर पड़ता है। इसलिए मंच साज-सज्जा करने वाले सहायकों का महत्त्व भी उल्लेखनीय है। ध्वनि व्यवस्था का भी अपना ही महत्त्व है। ध्वनि की उचित व्यवस्था के अभाव में कार्यक्रम संभव नहीं है। किसी नृत्य की प्रस्तुति में मंच के पीछे गायन या वाद्य ध्वनि प्रस्तुत करने वाले कलाकारों की भूमिका का अत्यधिक महत्त्व है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सांस्कृतिक समारोह की प्रस्तुति में मंच के पीछे काम करने वाले सहयोगियों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 10.
किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले लोग प्रतिभावान होते हुए भी मुख्य या शीर्ष स्थान पर नहीं पहुँच पाते होंगे?
उत्तर-
किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले प्रतिभावान लोग मुख्य कलाकार नहीं बन पाते। इसका मुख्य कारण है कि वे मुख्य गायक या कलाकार के सहायक के रूप में आते हैं। यदि वे आजीवन तबला, हारमोनियम आदि वाद्ययंत्र ही बजाते रहें तो मुख्य गायक या कलाकार नहीं बन सकते। यदि वे स्वतंत्र रूप से अपनी प्रतिभा दिखाएँ तो वे मुख्य कलाकार बन सकते हैं। भले ही वे अपना तबला या हारमोनियम के बजाने की कला का प्रदर्शन करें। हाँ, यदि दूसरों के सहायक बनकर काम करेंगे तो उन्हें मुख्य कलाकार बनने का अवसर नहीं मिलेगा।

यदि संगतकार प्रतिभावान है तो वह शीघ्र ही अपनी कला में इतनी प्रसिद्धि प्राप्त कर लेगा कि उसे मुख्य कलाकार के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। प्रायः देखने में आया है कि संगतकार द्वितीय श्रेणी की प्रतिभा वाले होते हैं। इसलिए वे सदा मुख्य कलाकार के सहायक के रूप में बने रहते हैं। इसमें संदेह नहीं कि संगतकार हमेशा ही मंच के पीछे रहते हैं, इसलिए वे प्रतिभा संपन्न होकर भी श्रेष्ठ स्थान प्राप्त नहीं कर सकते।

पाठेतर सक्रियता

आप फिल्में तो देखते ही होंगे। अपनी पसंद की किसी एक फिल्म के आधार पर लिखिए कि उस फिल्म की सफलता में अभिनय करने वाले कलाकारों के अतिरिक्त और किन-किन लोगों का योगदान रहा?
उत्तर-
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

आपके विद्यालय में किसी प्रसिद्ध गायिका की गीत प्रस्तुति का आयोजन है।
(क) इस संबंध पर सूचना पट के लिए एक नोटिस तैयार कीजिए।
(ख) गायिका व उसके संगतकारों का परिचय देने के लिए आलेख (स्क्रिप्ट) तैयार कीजिए।
उत्तर-
(क) नोटिस
विद्यालय के सांस्कृतिक क्लब द्वारा एक गीतों भरी संध्या का आयोजन विद्यालय के सांस्कृतिक भवन में दिनांक 5.5.20….. को सायं पाँच बजे किया जा रहा है। देशभर में ही नहीं अपितु संसार भर में सुप्रसिद्ध गायिका मुनिश्वरी देवी और मनोज देव अपने-अपने मधुर स्वरों में गंगा बहाने आ रहे हैं। आप अपने माता-पिता के साथ इस आयोजन में सादर आमंत्रित हैं। आप समय पर पहुँचकर अपना-अपना स्थान ग्रहण करें।

रामपाल
अध्यक्ष
विद्यालय सांस्कृतिक क्लब

(ख) स्वरों की मल्लिका मुनिश्वरी देवी देशभर में अपनी मधुर आवाज़ के लिए प्रसिद्ध हैं। इनका नाम गीत-संगीत की दुनिया में बड़े आदर से लिया जाता है। इन्होंने अनेक फिल्मों के लिए गीत गाए हैं। बाल गीतों और भजनों के क्षेत्र में भी इन्होंने अपनी मधुर ध्वनि का सिक्का जमाया हुआ है। इनके साथ संगतकारों की पूरी टीम है। इस सभा में हारमोनियम पर पवन कुमार, तबला पर मुनीश, सारंगी पर उदय शर्मा, बाँसुरी पर अजीज तथा मृदंग पर गुरविन्द्र पाल साथ देंगे।

यह भी जानें

सरगम संगीत के लिए सात स्वर तय किए गए हैं। वे हैं-षडज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद। इन्हीं नामों के पहले अक्षर लेकर इन्हें सा, रे, ग, म, प, ध और नि कहा गया है।
सप्तक-सप्तक का अर्थ है सात का समूह। सात शुद्ध स्वर हैं इसीलिए यह नाम पड़ा। लेकिन ध्वनि की ऊँचाई और निचाई के आधार पर संगीत में तीन तरह के सप्तक माने गए हैं। यदि साधारण ध्वनि है तो उसे ‘मध्य सप्तक’ कहेंगे और ध्वनि मध्य सप्तक से ऊपर है तो उसे ‘तार सप्तक’ कहेंगे तथा यदि ध्वनि मध्य सप्तक से नीचे है तो उसे ‘मंद्र सप्तक’ कहते हैं।

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