शेयर बाजार में मौजूदा हलचल के मायने

बीते शुक्रवार को कारोबारी हफ्ते के आखिरी दिन निफ्टी 50 और बैंक निफ्टी के प्रदर्शन ने निराशाजनक हफ्ते का संकेत दिया. करीब दो महीने में शेयर बाजार का यह सबसे खराब हफ्ता रहा. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसइ) का वोलाटिलिटी इंडेक्स 11 सत्रों से लगातार बढ़ता जा रहा है. अप्रैल में यह कम रहा था, पर अब आशंका उच्च स्तर पर है.

यह इंडेक्स निफ्टी 50 सूचकांक के शेयर मूल्यों के अग्रिम अनुमान के आधार पर अगले 30 दिनों में बाजार के उतार-चढ़ाव का आकलन करता है. एनएसई ने फरवरी 2014 में इंडिया वोलाटिलिटी इंडेक्स के आधार पर अग्रिम अनुबंधों का कारोबार करना शुरू किया था. वोलाटिलिटी इंडेक्स और निफ्टी 50 इंडेक्स नकारात्मक तरीके से एक-दूसरे से संबद्ध हैं. इसका अर्थ है कि आम तौर पर ये दोनों विपरीत दिशा में जाते हैं.

जब निफ्टी 50 सूचकांक बढ़ता है, तो सामान्य रूप से वोलाटिलिटी इंडेक्स नीचे का रुख करता है. जब वोलाटिलिटी इंडेक्स नीचे जाता है, तो शेयर बाजार में तेजी का माहौल देखने को मिलता है. अभी इंडिया वोलाटिलिटी इंडेक्स 19 के ऊपर है, तो यह माना जा रहा है कि इस सप्ताह भी स्टॉक मार्केट में उथल-पुथल रहेगी, हालांकि सोमवार को बहुत मामूली सुधार देखने को मिला है.

कई विशेषज्ञों में इस बात पर सहमति बनती दिख रही है कि मौजूदा उथल-पुथल की मुख्य वजह लोकसभा चुनाव के परिणामों की अनिश्चितता है. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि सत्तारूढ़ दल को पहले के अनुमानों से कहीं कम सीटें मिल सकती हैं. हालांकि आम तौर पर अभी भी यही अनुमान है कि सत्तारूढ़ दल को तीसरी बार सरकार बनाने का जनादेश मिलेगा, लेकिन सामान्य बहुमत नीतिगत सुधारों को आगे बढ़ाने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है.

इन सुधारों में मुख्य रूप से इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाना तथा चीन के एक संभावित विकल्प के रूप में वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी करना शामिल हैं. भाजपा ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत 400 से अधिक सीटें जीतने के दावे के साथ की थी, लेकिन अब लगने लगा है कि ऐसा परिणाम नहीं आयेगा. विभिन्न चरणों में मतदान प्रतिशत में कमी भी बढ़ती चिंता में योगदान कर रही है. चुनाव के दौरान बाजार में उतार-चढ़ाव असामान्य बात नहीं है. वर्ष 2019 में मतों की गिनती से पहले के एक महीने में वोलाटिलिटी इंडेक्स 20 प्रतिशत से अधिक हो गया था.

मौजूदा उतार-चढ़ाव में कुछ अन्य कारकों का भी योगदान है. पिछले महीने विदेशी संस्थागत निवेशकों ने लगातार बिकवाली की थी. इस बिकवाली की वजह यह थी कि तब यह साफ हो गया था कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में जल्दी कोई कमी नहीं करेगा. अमेरिकी अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी हो रही है तथा रोजगार के आंकड़े भी बढ़ रहे हैं. लेकिन मुद्रास्फीति अभी उस स्तर पर नहीं आयी है, जैसी फेडरल रिजर्व की इच्छा है.

इसलिए फेडरल रिजर्व अभी इंतजार कर रहा है और इसके लिए उसे अच्छे सकल घरेलू उत्पाद और रोजगार के बढ़ते अवसरों से महत्वपूर्ण समय भी मिल रहा है. अमेरिका में अधिक ब्याज दर होना हमेशा भारत समेत अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं से पूंजी के पलायन के लिए कारक बन सकता है. इसी बीच भारतीय रिजर्व बैंक ने इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए धन मुहैया कराने के संबंध में बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं के लिए नये नियमों का प्रस्ताव रखा, जिससे देनदार और इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों में बेचैनी है.

प्रस्तावित नियमों में कर्ज के बढ़ते दबाव की गहन निगरानी का प्रावधान भी है. यदि ये नियम लागू हो जाते हैं, तो इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों द्वारा लिये जाने वाले कर्ज का खर्च बढ़ सकता है. साथ ही, देनदार बैंकों और वित्तीय संस्थानों के मुनाफे पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है. इसी वजह से निवेशकों ने पिछले सप्ताह स्टॉक मार्केट खुलते ही बैंकों, वित्तीय संस्थाओं तथा इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के शेयरों को भारी मात्रा में बेचना शुरू कर दिया.

बीते सप्ताह में सोमवार और मंगलवार को सार्वजनिक उपक्रम पॉवर फाइनेंस कॉर्पोरेशन और रुरल इलेक्ट्रिफिकेशन के शेयरों के दाम में क्रमशः 12.6 और 8.9 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गयी. इसी प्रकार अनेक इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों, मसलन- एनबीसीसी, एचजी इंफ्रा और केएनआर कंस्ट्रक्शन, के शेयरों में बड़ी गिरावट दर्ज की गयी. निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के शेयरों को अधिक आघात सहना पड़ा. केनरा बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के शेयरों के मूल्य में क्रमशः 7.8, 6.2 और 3.3 प्रतिशत की कमी आयी.

एलआईसी को भी 5.7 प्रतिशत का झटका लगा. व्यापक उथल-पुथल के साथ-साथ इन सभी कारकों की वजह से शेयर मार्केट में मौजूदा गिरावट देखने को मिल रही है. इस सप्ताह के पहले कारोबारी सत्र में सेंसेक्स में मामूली सुधार हुआ है, लेकिन ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे आने तक यह स्थिति बनी रह सकती है. उसके बाद कुछ स्थिरता की अपेक्षा की जा सकती है. तब तक स्टॉक मार्केट के निवेशकों, विशेष रूप से खुदरा निवेशकों, को खरीदारी और बिकवाली में सचेत रहना और संयम रखना चाहिए. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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