विद्यत धारा के चंबकीय प्रभाव

विद्यत धारा के चंबकीय प्रभाव

SCIENCE ( विज्ञान ) लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. विद्युत मोटर में विभक्त वलय की क्या भूमिका है? अथवा, विद्युत मोटर में विभक्त वलय क्यों लगाया जाता है?

उत्तर⇒ विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिक्परिवर्तक का कार्य करता है। यह परिपथ में विद्युत-धारा के प्रवाह को उत्क्रमित करने में सहायता देता है । विद्युत-धारा के उत्क्रमित होने पर दोनों भुजाओं पर आरोपितं बलों की दिशाएँ भी उत्क्रमित हो जाती हैं। इस प्रकार कुंडली की पहली भुजा जो पहले नीचे की ओर धकेली गयी थी अब ऊपर की तरफ धकेली जाती है तथा कुंडली की दूसरी भुजा जो पहले ऊपर की ओर धकेली गयी अब नीचे की ओर धकेली जाती है। इसलिए कुंडली तथा धुरी उसी दिशा में अब आधा घूर्णन और पूरा कर लेती हैं। प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात् विद्युत धारा के उत्क्रमित होने का क्रम दोहराता रहता है जिसके कारण कुंडली और धुरी का लगातार घूर्णन होता रहता है।


प्रश्न 2. विद्युत मोटर का क्या सिद्धांत है?

उत्तर⇒ जब किसी कुण्डली को चुंबकीय क्षेत्र में रखकर उसमें धारा प्रवाहित की जाती है तो कुण्डली पर एक बल युग्म कार्य करने लगता है, जो कुण्डली को उसी अक्ष पर घुमाने का प्रयास करता है। यदि कुण्डली अपनी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतन्त्र हो तो वह घूमने लगती है।


प्रश्न 3. दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद क्यों नहीं करतीं ?

उत्तर⇒ चुंबकीय सूई सदा एक ही दिशा की ओर संकेत करती है। यदि दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद करें तो इसका अर्थ होगा कि प्रतिच्छेद बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ हैं और दिक्सूची ने दो दिशाओं की ओर संकेत किया है जो संभव नहीं है। इसलिए, चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को कभी प्रतिच्छेद नहीं करतीं।


प्रश्न 4. विद्युत-धारा के चुम्बकीय प्रभाव से संबंधित दक्षिण-हस्त अंगठा का नियम लिखें। अथवा, फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम लिखें।

उत्तर⇒ फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम- अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा अंगुली तथा अंगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत् हों। चुंबकीय क्षेत्र | यदि तर्जनी चंबकीय क्षेत्र की दिशा की ओर संकेत करती है तथा अंगूठा चालक की गति की दिशा की ओर संकेत करता है तो मध्यमा चालक में प्रेरित विद्युत-धारा की दिशा दर्शाती है।class 10th science


प्रश्न 5. फ्लेमिंग का वाम-हस्त नियम लिखिए ।

उत्तर⇒ अपने वामहस्त के अंगूठे, तर्जनी के मध्य अंगुली को इस प्रकार फैलाएँ कि वे परस्पर समकोण बनाएँ। तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र को निर्दिष्ट करेगी। मध्य अंगुली धारा के प्रवाह की दिशा को बताएगी और अंगूठा चालक की दिशा को प्रभावित करेगा।class 10th science


प्रश्न 6. विद्युत धारा क्या है ? विद्युत धारा का SI मात्रक लिखें।

उत्तर⇒ किसी चालक से प्रवाहित विद्युत-धारा की प्रबलता उस चालक के किसी अनुप्रस्थ काट से एकांक समय में प्रवाहित आवेश का परिमाण है। यदि 1 सेकण्ड में 1 कूलॉम आवेश प्रवाहित होता है, तो उस अनुप्रस्थ काट से प्रवाहित धारा का मान 1 ऐम्पियर होता है।

अर्थात् 1A = 1c / 1s विधुत धारा का SI मात्रक है । 


प्रश्न 7. चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुणों को लिखें।

उत्तर⇒ चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण इस प्रकार हैं—
(i) ये रेखाएँ उत्तरी ध्रुव से शुरू होती है और दक्षिणी ध्रुव पर समाप्त होती हैं। ये रेखाएँ एक बंद वक्र होती हैं।
(ii) ये रेखाएँ कभी भी एक-दूसरे को नहीं काटती।
(iii) जहाँ चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ अपेक्षाकृत अधिक निकट होती है वहाँ चुंबकीय बल की प्रबलता होती है।


प्रश्न 8. किसी छड़ चुंबक के चारों ओर चुंबकीय रेखाएँ खींचिए ।

उत्तर⇒

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प्रश्न 9.किसी क्षैतिज संचरण तार (पावर लाइन) में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर विद्युत-धारा प्रवाहित हो रही है, इसके ठीक नीचे के किसी बिन्दु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है ?

उत्तर⇒ विद्युत-धारा पूरब से पश्चिम की ओर प्रवाहित हो रही है। दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम के लागू करने पर हमें तार के नीचे के किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा उत्तर से दक्षिण की ओर प्राप्त होती है। तार से ठीक ऊपर के किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर है।


प्रश्न 10. विद्युत चुंबकीय प्रेरण किसे कहते हैं ? कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत-धारा अधिकतम कब होती है?

उत्तर⇒ वह प्रक्रम जिसके द्वारा किसी चालक के परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र के कारण किसी अन्य चालक में विद्युत धारा प्रेरित करती है। इसे विद्युत चुंबकीय प्रेरण कहा जाता है । इसे किसी कुंडली में प्रेरित विद्युत-धारा या तो उसे किसी चुंबकीय क्षेत्र में गति कराकर अथवा उसके चारों ओर के चुंबकीय क्षेत्र को परिवर्तित करके उत्पन्न कर सकते हैं। चुंबकीय क्षेत्र में कुंडली को गति प्रदान कराकर प्रेरित विद्युत-धारा उत्पन्न करना अधिक सुविधाजनक होता है । जब कुंडली की गति की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत् होती है, तब कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा अधिकतम होती है।


प्रश्न 11. विद्युत फ्यूज क्या है, यह किस मिश्रधातु का बना होता है ?

उत्तर⇒ विद्युत फ्यूज (या फ्यूज) बहुत कम गलनांक के पदार्थ का एक छोटा तार होता है जिसे विद्युत-परिपथ में सुरक्षा की दृष्टि से लगाया जाता है। जब अतिभारण अथवा लघुपथन के कारण विद्युत-परिपथ में अधिक प्रबलता की विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है तब फ्यूज गल जाता है (जिसे फ्यूज का उड़ जाना कहते हैं) और विद्युत परिपथ भंग हो जाता है। विद्युत फ्यूज में मिश्रधातु सीसा और टीन की होती है।


प्रश्न 12. लघुपथन से आप क्या समझते हैं ? अथवा, किसी विद्युत परिपथ में लघुपथन से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर⇒ यदि किसी प्रकार धनात्मक तथा ऋणात्मक तार सम्पर्क में आ जाते हैं, तो विद्युत परिपथ में प्रतिरोध लगभग नगण्य हो जाता है और परिपथ में धारा अत्यधिक गर्म हो जाता है और इससे आग भी लग सकती है। इससे होने वाली क्षति से बचने के लिए परिपथ में फ्यूज का प्रयोग अवश्य किया जाता है।


प्रश्न 13. धारावाही चालक तार के इर्द-गिर्द चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। उसे दिखाने के लिए ऑस्टैंड के प्रयोग का वर्णन करें।

उत्तर⇒ ऑस्टेंड का प्रयोग : एक तार PQ जिसमें धारा दक्षिण से उत्तर की ओर बह रही हो, मेज पर रखी एक चुम्बकीय सूई के ऊपर रखा। सूई का उत्तरी ध्रुव पश्चिम की ओर घूम जाता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।

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अब तार में विद्युत-धारा की दिशा बदलकर चुम्बकीय सूई के ऊपर रखा। चुम्बकीय सूई का उत्तरी ध्रुव विपरीत दिशा में अर्थात् पूर्व की ओर विक्षेपित हो जाता है। जैसा कि चित्र से स्पष्ट है। यदि तार को चुम्बकीय सूई के नीचे रखें, तो सूई विपरीत दिशा में विक्षेपित हो जाती है।


प्रश्न 14. परिनालिका का एक स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए। अथवा, परिनालिका चुंबक की भाँति कैसे व्यवहार करती है ? क्या आप किसी छड़ चुंबक की सहायता से किसी विद्युत-धारावाही परिनालिका के उत्तर ध्रुव तथा दक्षिण ध्रुव का निर्धारण कर सकते हैं ?

उत्तर⇒ किसी परिनालिका में धारा प्रवाहित करने पर उसके भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। परिनालिका द्वारा इस प्रकार उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र दण्ड चुंबक के क्षेत्र के समान होता है। इस परिनालिका का एक सिरा चुम्बकीय उत्तर ध्रुव की “भाँति तथा दूसरा सिरा चुंबकीय दक्षिण ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है।

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प्रश्न 15. प्रयोग द्वारा सिद्ध करें कि विद्युत-धारा चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है।

उत्तर⇒ जब किसी चालक में से विद्युत-धारा गुजारी जाती है तो चालक के चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।
एक समतल गत्ते का टुकड़ा लें । इस पर एक सफेद कागज लगाकर उसे स्टैंड में क्षैतिज लगाएँ। इसके बीचो-बीच एक तांबे की तार गुजारें । तार की एक सैल E तथा कुंजी K से जोड़कर परिपथ पूरा करें। अब कुंजी J को दबाकर तार XY और उसके चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र की रेखायें । में से विद्युत-धारा गुजारें । तार के पास एक चुंबकीय सूई ले जाएँ। चुंबकीय सूई एक विशेष दिशा में रुकती है। इस प्रकार इस प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि किसी चालक तार में से विद्युत-धारा गुजारने पर इसके चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है । जैसे-जैसे तार में प्रवाहित चुंबकीय क्षेत्र विद्युत धारा के परिमाण में वृद्धि होती है, वैसे-वैसे किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र के परिमाण में भी वृद्धि होती है।

class 10th scienceकिसी चालक से प्रवाहित की गई विद्युत-धारा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र चालक से दूर जाने पर घटता है। जैसे-जैसे विद्युत धारावाही सीधे चालक तार से दूर हटते जाते हैं, उसके चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को निरूपित करनेवाले संकेंद्री वृत्तों का साइज बड़ा हो जाता है।


प्रश्न 16. विद्युत जनित्र का सिद्धान्त लिखिए।

उत्तर⇒ विद्युत जनित का सिद्धान्त विद्युत चुंबकीय प्रेरण पर आधारित है । जब किसी कुण्डली को तीव्र चुंबकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है तो कुण्डली से संबंधित चुंबकीय बल रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होता है जिसके फलस्वरूप कुण्डली में प्रेरित धारा प्रवाहित होने लगती है । धारा की दिशा फैराडे के दाहिने हाथ के नियम से ज्ञात की जा सकती है।


प्रश्न 17. विद्युत शॉक से क्या अभिप्राय है?

उत्तर⇒ जब हमारे शरीर का कोई अंग बिजली की नंगी तार से छू जाता है, तो हमारे शरीर और पृथ्वी के बीच विभवांतर पैदा हो जाता है, जिससे हमे एक धक्का लगता है। इसे विद्युत शॉक कहते हैं।


प्रश्न 18. विद्युत के परिपथ के किसी भाग को सुधारने के लिए रबड़ के दस्ताने प्रयोग किये जाते हैं, क्यों?

उत्तर⇒ विद्युत के परिपथ के किसी भाग को सुधारने के लिए रबड़ के दस्तानों का प्रयोग करने से तथा सूखी लकड़ी पर खड़ा होकर कार्य करने से झटका नहीं लगता क्योंकि रबड़ तथा लकड़ी विद्युत की कुचालक होती है।


प्रश्न 19. घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिए क्या-क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

उत्तर⇒ घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिए निम्न सावधानी बरतनी चाहिए—
(i) एक ही सॉकेट से बहुत-से विद्युत साधित्रों को संयोजित नहीं करना चाहिए ।
(ii) विद्युत परिपथ में उपयुक्त तारें विद्युतरोधनयुक्त होनी चाहिए।


प्रश्न 20. चिकित्साविज्ञान के क्षेत्र में चुंबकत्व का क्या महत्त्व है?

उत्तर⇒ मानव शरीर में अति कमजोर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। यह शरीर के भीतर चुंबकीय क्षेत्र के विभिन्न भागों के प्रतिबिंब प्राप्त करने का आधार बनता है। इसके लिए चुंबकीय अनुनाद प्रतिबिंबन [Magnetic Resonance Imaging (MRI)] की सहायता से विशेष प्रतिबिंब लिए जाते हैं तो चिकित्सा विज्ञान के लिए
अति महत्त्वपूर्ण होते हैं।


प्रश्न 21. फ्यूज क्यों लगाया जाता है ?

उत्तर⇒ फ्यज—यह सीसे और टिन से बनी मिश्रधातु का कम गलनांक वाला एक पतला तार होता है जो विद्युत परिपथ में शॉर्ट-सर्किट होनेवाली हानि से हमें बचाता है।
लाभ—विद्युत परिपथ में शॉर्ट सर्किट होने पर वह स्वयं पिघल जाता है जिससे तारों तथा विद्युत उपकरणों को कोई हानि नहीं पहुँचती।।
फ्यूज को चीनी मिट्टी के बने एक खोल में रखते हैं। इसको फ्यूज कैरियर कहते हैं।


प्रश्न 22. दिष्टधारा मोटर और डायनेमो में क्या अंतर होता है?
उत्तर⇒

दिष्टधारा (DC) मोटर  डायनेमो
दिष्टधारा विद्युत मोटर विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरित करती है। दिष्ट धारा डायनेमो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है।
विद्युत मोटर में कार्बन ब्रशों पर बैटरी लगाई जाती है। डायनेमो में ब्रशों पर एक बल्ब लगाया जाता है।

प्रश्न 23. पृथ्वी एक बड़े चंबक की भाँति व्यवहार क्यों करती है ?

उत्तर⇒ पृथ्वी बहुत बड़े छड़ चुम्बक के रूप में कार्य करती है । इसके चुंबकीय क्षेत्र को तल से 3×104 किमी. ऊँचाई तक अनुभव किया जा सकता है । वास्तव में पृथ्वी के तल के नीचे कोई चुंबक नहीं है।
चुंबकीय क्षेत्र के निम्नलिखित कारण माने जाते हैं—
(i) पृथ्वी के भीतर पिघली हुई अवस्था में विद्यमान धात्विक द्रव्य निरंतर घूमते हुए इसे बड़े चुंबक की भाँति व्यवहार करता है।
(ii) पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने के कारण इसका चुंबकत्व प्रकट होता है।
(iii) पृथ्वी के केंद्र की रचना लोहे और निक्कल से हुई है। पृथ्वी के निरंतर घूमने से इनका चुंबकीय व्यवहार प्रकट होता है।


प्रश्न 24.शॉर्ट-सर्किट क्या है ? इससे क्या हानियाँ हो सकती हैं ?

उत्तर⇒ शॉर्ट-सर्किट—किसी विद्युत यंत्र में धारा कम प्रतिरोध से होकर प्रवाह हो जाना शॉर्ट-सर्किट कहलाता है।
हानियाँ—
(i) प्रतिरोध कम होने के कारण तारें अधिक गर्म हो जाती हैं और उनके ऊपर चढ़ा रोधी पदार्थ जल जाता है।
(ii) तारों के ऊपर चढ़े रोधी पदार्थ जल जाने से तारें नंगी हो जाती हैं जिससे विद्युत-शॉक लग सकता है।
(iii) विद्युत उपकरण बेकार हो सकता है।
(iv) इससे घरों, दुकानों आदि में आग लग सकती है।
(v) विद्युत-धारा का प्रवाह रुक जाता है।


प्रश्न 25.विद्युत चुंबक के उपयोग लिखिए। इसके कौन-कौन से गुण हैं?

उत्तर⇒ विद्युत चुंबक बहुत उपयोगी होता है।
इसके कुछ प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं—
(i) इसे विद्युत उपकरणों में प्रयुक्त किया जाता है। बिजली की घंटी, पंखों, रेडियो, कंप्यूटरों आदि में इनका प्रयोग किया जाता है।
(ii) विद्युत मोटरों और जनरेटरों के निर्माण में यह प्रयुक्त होते हैं।
(iii) इस्पात की छड़ों को चुंबक बनाने के लिए इनका प्रयोग होता है।
(iv) चुंबकीय पदार्थों को उठाने में इनका प्रयोग होता है।
(v) चट्टानों को तोड़ने में इनका प्रयोग किया जाता है।
(vi) अयस्कों में से चुंबकीय और अचुंबकीय पदार्थों को अलग करने के लिए इनका प्रयोग होता है।


प्रश्न 26. किसी विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश के कारण चुंबकीय क्षेत्र कैसा होता है ? उसकी विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर⇒ किसी विद्युत धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र सदा उससे दूरी के व्युत्क्रम पर निर्भर करता है। इसी प्रकार किसी विद्युत धारावाही पाश के प्रत्येक बिन्दु पर उसके चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को प्रकट करने वाले संकेंद्री वृत्तों का आकार तार से दूर जाने पर लगातार बड़ा होता जाता है । जब वृत्ताकार पाश के केंद्र पर पहुँचते हैं, इन वृहत वृत्तों के चाप सरल रेखाओं जैसे लगने लगते हैं। विद्युत धारावाही तार के प्रत्येक बिंदु से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ पाश के केंद्र पर सरल रेखा जैसी लगने लगती हैं । विद्युत धारावाही तार के प्रत्येक बिंदु से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्रं रेखाएँ पाश के केन्द्र पर सरल रेखा जैसा ही प्रतीत होती हैं। तार का हर हिस्सा चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं में योगदान देता है और पाश के भीतर सभी चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक ही दिशा में होती हैं।

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प्रश्न 27.चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ क्या होती हैं ? किसी बिंदु पर चंबकीय क्षेत्र की दिशा कैसे निर्धारित की जाती है ?

उत्तर⇒ चुंबक के आस-पास के क्षेत्र में जहाँ एक चुंबक के आकर्षण और विकर्षण के बल को अनुभव किया जा सकता है उसे चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं। वह पथ जिस पर चुंबक का उत्तरी ध्रुव चुंबकीय क्षेत्र में मुक्त अवस्था में आने पर गति चित्र : लौह-चूर्ण का चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं करेगा उसे चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ कहते हैं।

class 10th scienceचुंबकीय क्षेत्र रेखाओं को दो प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है। एक गत्ते पर चुंबक रखें और उस पर लौह-चूर्ण छिड़क कर गत्ते को धीरे-धीरे थपथपाएँ । लौह-चूर्ण अपने आप चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं में चित्र के अनुसार व्यवस्थित हो जाएगा। चुंबक को एक कागज पर रखकर चुंबकीय कपास की सहायता से चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ खींची जा सकती हैं। चुंबकीय सूई की चुंबक के उत्तरी ध्रुव के निकट रखकर दोनों सिरों को पैंसिल की सहायता से चिह्नित करें। चुंबकीय सूई को दक्षिण दिशा की ओर चिन्हों के अनुसार बढ़ाते जाएँ । पैंसिल से इन बिंदुओं को मिलाएँ। चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की प्राप्ति रेखांकन के अनुसार हो जाएगी।
चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा चुंबकीय सूई की सहायता से प्राप्त होती है । जिस दिशा में उत्तरी ध्रुव का निर्देश प्राप्त होता है वहीं चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा होती है।

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प्रश्न 28. विद्युत फ्यूज का कार्य स्पष्ट करने के लिए एक प्रयोग का वर्णन कीजिए।

उत्तर⇒ विद्युत परिपथ सुरक्षा के लिए फ्यूज का प्रयोग बहुत आवश्यक है क्योंकि शॉर्ट सर्किट होने की अवस्था में इसमें लगी तार पिघल जाती है और विद्युत धारा का प्रवाह रुक जाता है जिससे आग लगने का भय कम हो जाता है।
किसी विद्युत परिपथ में कम प्रतिरोध से होकर धारा के प्रवाहित हो जाने को शॉर्ट सर्किट कहते हैं। विद्युत ऊर्जा के चालक तार पुराने होने या उनका रोधी पदार्थ निकल जाने पर दो तारों को छू जाने से शॉर्ट-सर्किट हो जाता है।

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फ्यूज से सुरक्षा—एक बैटरी तथा बल्ब को चित्र के अनुसार जोड़े। धारा प्रवाहित होने पर बल्ब जल जाएगा। अब बल्ब से कुछ ऊपर संपर्क तारों पर रोधी पदार्थ को छीलकर निकाल दें। बल्ब जलता रहेगा। अब इन तारों के खुले भाग को मिला दीजिए । बल्ब जलना बंद हो जाएगा । इस अवस्था में बल्ब में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती बल्कि सारी धारा सीधी तारों से होकर चली जाती है। संपर्क तारों का प्रतिरोध कम होने के कारण धारा का मान बहुत अधिक हो जाता है और तार शीघ्र गर्म हो जाते हैं। किसी विद्युत यंत्र में इस प्रकार कम प्रतिरोधी से होकर धारा में प्रवाहित हो जाने को शॉर्ट-सर्किट कहते हैं । फ्यूज लगे होने पर इसकी तार पिघल जाती है और आग लगने का भय कम हो जाता है।

 

Science ( विज्ञान  ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. विधुत चुंबकीय प्रेरण की परिघटना को समझावें ।

उत्तर ⇒ चित्र में AB एक कुंडली दिखाया गया है। B सिरे से एक चुंबक के N ध्रुव को तेजी से कुंडली में घुसाया जाता है तो गैलवेनोमीटर के सूई में विक्षेप उत्पन्न होता है। अगर चुम्बक को झटके से कुंडली के गर्भ से बाहर निकाला जाता है तो सूई में विक्षेप विपरीत दिशा में होती है। चुंबक या कुंडली के गति में रहने पर क्षणिक विद्युत विभव उत्पन्न होता है, और कुंडली में क्षणिक विद्युत धारा बहती है। चुंबक कुंडली के गर्भ में स्थिर छोड़ दिया जाए तो कोई विक्षेप उत्पन्न नहीं होता है। यह चुंबकीय प्रेरण की परिघटना को दर्शाता है।

विधुत चुंबकीय प्रेरण की परिघटना को समझावें ।


2. घरेलू विधुत परिपथों में से एक परिपथ का व्यवस्था आरेख खींचें।

उत्तर ⇒ घरेलू वायरिंग में तीन तार-जीवित तार (लाल रंग का), उदासीन तार (काले रंग का) तथा भूसंपर्क तार (हरे रंग का) लगे होते हैं। प्रत्यावर्ती धारा जीवित तार से प्रवाहित होती हुई उदासीन तार से लौटती हुई मानी जाती है। भूसंपर्क तार जमीन के अंदर लगभग 5 मीटर गड़ी होती है जिसे धातु के एक प्लेट में बाँध कर गाड़ दिया जाता है। परिपथ 15 A और 5A के बनाए जाते हैं। 15 A के परिपथ में हीटर, रेफ्रीजरेटर, विद्युत इस्तिरी चलाये जाते हैं और 5 A के परिपथ में बल्ब, पंखा आदि जोड़े जाते हैं। 15 A के लाइन को पावर लाइन और 5A के लाइन कोघरेलू लाइन कहा जाता है।

नीचे एक घरेलू परिपथ का नमूना दिया गया है –

घरेलू विधुत परिपथों में से एक परिपथ का व्यवस्था आरेख खींचें।


3. विधुत परिपथ में काम करते समय कौन-सी सावधानियाँ बरती जाती हैं ?

उत्तर ⇒ विधुत परिपथ में काम करते समय निम्नांकित सावधानियाँ बरतनी चाहिए

(i) विधुत परिपथ में काम करते समय हाथ में दस्ताना, पैर में जूता और बदन ढका होना चाहिए।

(ii) वैसे युक्तिओं का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें अचालक पदार्थ का मूठ लगा हो।

(iii) अधिक शक्ति के उपकरणों जैसे हीटर, गीजर, इस्त्री, टोस्टर, रेफ्रीजरेटर आदि के धात्विक आवरण को भू-तार से संपर्कित कर लिया जाए ताकि इस धात्विक आवरण का विभव शून्य रहे और विद्युत झटका से बचाव हो।

(iv) उचित अनुमतांक का फ्यूज उपयोग करें।

(v) स्वीच, प्लग, सॉकेट तार के जोड़ों पर संबंधन अच्छे से कसे होना चाहिए । इससे आग लगने की संभावना नहीं रहेगी।

(vi) परिपथ जोड़ने में उचित मुटाई के तार ही जोड़ें ताकि तार न जले।

(vii) तारों के संबंधन की जगह विद्युतरोधी टेप का व्यवहार करना चाहिए।

(viii) अगर किसी व्यक्ति को विद्युत झटका लगा हो तो हाथों से उसे नहीं छना चाहिए बल्कि अचालक पदार्थ (लकड़ी) आदि से झटका देकर छुड़ाना चाहिए।

(ix) सो विधुत झटका लगे व्यक्ति को किसी सूखे बिछावन पर लेटाकर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।


4. डायनेमो क्या है ? इसके क्रिया सिद्धांत और कार्यविधि का सचित्र वर्णन करें।

उत्तर ⇒ डायनेमो ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विद्यत-ऊर्जा में बदला जाता है। इसकी क्रिया विद्युत-चुंबकीय-प्रेरण के सिद्धांत पर आधारित है। इसमें तार की एक कुण्डली ABCD होती है, जो एक प्रबल नाल-चुंबक के ध्रुवों के बीच क्षैतिज अक्ष पर चुंबकीय क्षेत्र में घूर्णन करती है। चित्र में घूर्णन की दिशा दक्षिणावर्ती दिखलायी गयी है। गतिशील चालक के प्रेरित धारा चालक गति की दिशा एवं चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के बीच के कोण की ज्या (sine) के समानुपाती होती है। घूर्णन के क्रम में कुण्डली जब चुम्बकीय क्षेत्र के लंबवत् रहती है, जिस कारण इसमें प्रेरित धारा शून्य होती है। किन्तु घूर्णन के क्रम में कुण्डली जब चुंबकीय क्षेत्र के समान्तर हो जाती है, तब इसकी AB भुजा की गति की दिशा चुंबकीय क्षेत्र दिशा के लंबवत् होती है, जिस कारण इसमें महत्तम धारा प्रेरित होती है। एक पूर्ण घूर्णन के क्रम में कुण्डली दो बार चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत् और दो बार समान्तर होती है, जिससे एक पूर्ण घूर्णन में AB भुजा में प्रेरित धारा दो बार शून्य होती है
और दो बार महत्तम होती है।

डायनेमो क्या है ? इसके क्रिया सिद्धांत और कार्यविधि का सचित्र वर्णन करें।

ABCD → कुंडली 

NS  → नाल  चुंबक 

R1R2 → विभक्त  बलय

B1B → कार्बन ब्रश 

इस तरह प्राप्त हुई धारा परिपथ में एक ही दिशा में प्रवाहित होती है। यही कारण है कि इस विद्युत जनित्र में दिष्ट धारा जनित्र या डायनेमो के नाम से जाना जाता है।


5. चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ क्या होती हैं ?

उत्तर ⇒ चुंबकीय क्षेत्र में वे रेखाएँ जिनके अनुदिश लौह चूर्ण स्वयं सरेखित होते हैं, चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का निरूपण करती है। चुंबकीय क्षेत्र एक ऐसी राशि है जिसमें परिमाण तथा दिशा दोनों होते हैं। किसी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा वह मानी जाती है जिसके अनुदिश दिक् सूची का उत्तर ध्रुव उस क्षेत्र के भीतर गमन करता है। चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ चुंबक के उत्तर ध्रुव से प्रकट होती हैं तथा दक्षिण ध्रुव पर विलीन हो जाती है। चुंबक के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा उसके दक्षिण ध्रुव से उत्तर ध्रुव की ओर होती है। अतः चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक बंद वक्र होती है। दो क्षेत्र रेखाएँ एक दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करती हैं। दोनों ध्रुवों पर क्षेत्र रेखाएँ काफी संघन होती हैं।


6. स्थायी चुंबक और विधुत चुंबक में अंतर बतावें ।

उत्तर ⇒ स्थायी चुंबक और विद्युत चुंबक में निम्नांकित अंतर हैं :

स्थायी चुंबक विधुत चुंबक
1. स्थायी चुंबकीय गुण प्राप्त करता | 1. जब तक धारा बहती है तभी तक यह चुंबक है
2. ध्रुव निश्चित रहता है। 2. धारा की दिशा को बदलने पर ध्रुव बदल जाता है।
3. चुंबकीय शक्ति ज्यों-का-त्यों रहता है। 3. चुंबक की शक्ति बदला जाता है जब कुण्डली में तार के फेरों की संख्या बदल जाय और धारा बदल जाय
4. विचुंबकीत आसानी से नहीं होग। 4. आसानी से विचुंबकीत हो जाता है 

7. प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा में क्या अन्तर है ?

उत्तर ⇒ प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा में अन्तर इस प्रकार है –

प्रत्यावर्ती धारा (A.C) दिष्ट धारा (D.C)
1. धारा का मान तथा दिशा समय के साथ बदल जाते हैं। 1. केवल दिष्ट धारा का परिमाण बदलता है ।
2. इसे आसानी से उत्पन्न किया जा सकता है। 2. इसे उत्पन्न करने में कठिनाई किया जा सकता है।
3. इसे सुगमतापूर्वक डी०सी० में रूपान्तरित किया जा सकता है 3. इसे ए०सी० में बदलने में काफी कठिनाई होती है
4. यह डी०सी० की अपेक्षा घातक होता है 4. यह ए०सी० की अपेक्षा कम अधिक घातक होता है
5. यह चालक के ऊपरी सतह पर प्रवाहित होता है। 5. यह चालक के भीतरी भाग से प्रवाहित होता है।

8. प्रत्यावर्ती धारा से कौन-कौन से लाभ हैं ?

उत्तर ⇒ प्रत्यावर्ती धारा से निम्नलिखित लाभ – हैं

(i) ट्रॉन्सफार्मर की सहायता से इसका विधुत वाहक बल बढ़ाया या घटाया जा सकता है । इस क्रिया में विद्युत ऊर्जा का क्षय नगण्य है। यही कारण है कि बड़े-बड़े कल कारखानों में प्रत्यावर्ती धारा का उपयोग होता है। डी० सी० धारा में ऐसी सुविधा प्राप्त नहीं है।

(ii) इसका विधुत वाहक बल बढ़ाकर दूर-दूर तक भेजा जा सकता है।

(iii) इस धारा के विद्युत वाहक बल को कम करके 6 V की बत्ती को भी
जलाया जा सकता है।

(iv) प्रत्यावर्ती धारा को चोक कुंडली द्वारा अत्यल्प ऊर्जा हानि पर नियंत्रित किया जा सकता है।

9. विधुत मोटर का नामांकित आरेख खींचिए। इसका सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए । विधुत मोटर में विभक्त वलय का क्या महत्त्व है ?

अथवा, विधुत मोटर क्या है ? इसका सिद्धान्त लिखें तथा इसकी कार्य-विधि का सचित्र वर्णन करें।

अथवा, विधुत मोटर का सिद्धान्त सहित वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ विधुत मोटर एक ऐसी घूर्णन शक्ति है जिसमें विद्युत ऊर्जा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण होता है।

सिदान्त – जब किसी कुण्डली को चुंबकीय क्षेत्र में रखकर उसमें धारा प्रवाहित की जाती है तो कुण्डली पर एक बल युग्म कार्य करने लगता है, जो कुण्डली को उसी अक्ष पर घुमाने का प्रयास करता है। यदि कुण्डली अपनी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतन्त्र हो तो वह घूमने लगती है।

विधुत मोटर में भर विद्युतरोधी तार की एक आयताकार कुण्डली ABCD होती है। यह कुण्डली किसी चुंबकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच इस प्रकार रखी होती है कि इसकी भुजाएँ AB तथा CD चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् रहे । कुण्डली के दो सिरे विभक्त वलय के दो अर्द्धभागों P तथा Q से संयोजित होते हैं।

संरचना – विधुत मोटर में भर विद्युतरोधी तार की एक आयताकार कुण्डली ABCD होती है। यह कुण्डली किसी चुंबकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच इस प्रकार रखी होती है कि इसकी भुजाएँ AB तथा CD चुंब कीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् रहे । कुण्डली के दो सिरे विभक्त वलय के दो अर्द्धभागों P तथा Q से संयोजित होते हैं। इन अर्द्धभागों की भीतरी सतह विद्युतरोधी होती है तथा धुरी से जुड़ी होती है। “R तथा Q के बाहरी चालक सिरे क्रमशः दो स्थिर चालक ब्रुशों X और Y से स्पर्श करते हैं।

कार्य-प्रणाली – बैटरी से चलकर ब्रुश X से होते हुए Z से विधुत धारा कुण्डली ABCD में प्रवेश करती है तथा चालक ब्रुश Y से होते हुए बैटरी के दसरे टर्मिनल पर वापस भी आ जाती है। कुण्डली में विधुत धारा इसकी भुजा AB में A से B की ओर तथा भजा CA में C से D की ओर प्रवाहित होती है। अत: AB तथा CD में विधुत धारा की दिशाएँ परस्पर विपरीत होती है। चुंबकीय क्षेत्र में रखे विधुत धारावाही चालक पर आरोपित बल की दिशा ज्ञात करने के लिए फ्लेमिंग का वामहस्त नियम अनुप्रयुक्त करने पर पाते हैं कि भुजा AB पर आरोपित बल इसे अधोमुखी धकेलता है, जबकि भुजा CD पर आरोपित तल इसे उपरिमुखी धकेलता है। इस प्रकार किसी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतंत्र कुण्डली तथा धरी वामावर्त घूर्णन करते हैं। आधे घूर्णन में Q का सम्पर्क ब्रुश X से होता है तथा P का सम्पर्क ब्रुश Y से होता है । अतः, कुण्डली में विधुत धारा उत्क्रमित होकर पथ DCBA के अनुदिश प्रवाहित होती है। विधुत मोटर में विभक्त वलय दिक् परिवर्तक का कार्य करता है, अर्थात परिपथ में विधुत धारा के प्रवाह को उत्क्रमित करता है।


10. चालक, अचालक, अर्द्धचालक एवं अति चालक से आप क्या समझते हैं ? सोदाहरण व्याख्या करें।

उत्तर ⇒ चालक – ऐसा पदार्थ जिससे होकर विधुत आवेश एक जगह से दूसरी जगह आसानी से चले जाते हैं, चालक कहलाता है। दूसरे शब्दों में जिन पदार्थों की विशिष्ट चालकता काफी अधिक होती है, चालक कहलाता है। चालक पदार्थों में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या काफी अधिक होती है। जैसे-सोना, चाँदी, ताँबा, लोहा, ऐल्युमिनियम, नमकीन घोल इत्यादि।
अचालक-ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विधुत आवेश प्रवाहित नहीं हो सकते हैं, अचालक कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसा पदार्थ जिनकी विशिष्ट चालकता बहुत ही कम होती है, अचालक कहलाता है। अचालक पदार्थ में मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं। जैसे-सल्फर, काँच, रबड़, प्लास्टिक, सूखी लकड़ी आदि।

अर्धचालक – ऐसे पदार्थ जिनकी विशिष्ट चालकता अचालक तथा चालक पदार्थों की विशिष्ट चालकता के बीच होती है, इन पदार्थों में मुक्त इलेक्टॉनों की संख्या अल्प होती है अर्द्धचालक कहते हैं। उदाहरणः जर्मेनियम एवं सिलिकान। अर्द्धचालक का उपयोग ट्रांजिस्टर, ‘डायोड तथा कम्प्यूटर के लिए स्मरण युक्तियों के निर्माण में किया जाता है।

अतिचालक – ऐसे पदार्थ जिनमें अतिनिम्न ताप पर (निरपेक्ष शून्य के निकट) पर बिना किसी प्रतिरोध के विधुत का गमन होता है अति चालक कहलाते हैं तथा यह घटना अतिचालकता कहलाती है। जैसे-शीशा, जिंक, ऐल्युमिनियम, पारा आदि।


11. निम्नलिखित की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम लिखिए –

(i) किसी विधुत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चंबकीय क्षेत्र,
(ii) किसी चुंबकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लंबवत स्थित, विधुत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल, तथा
(iii) किसी चुंबकीय क्षेत्र में किसी कंडली के घूर्णन करने पर उस कंडली में उत्पन्न प्रेरित विधुत धारा ।

उत्तर ⇒ (i) दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम –

(i) दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम - यदि आप अपने दाहिने हाथ में विधुतधारा वाही चालक को इस प्रकार पकड़े हुए हैं कि चुंबकीय आप का अंगूठा विधुत धारा की दिशा की क्षेत्र - ओर संकेत करता है तो आप की अंगुलियाँ चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र विद्युत धारा रेखाओं की दिशा में लिपटी होंगी। इसे चित्र दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम कहते हैं ।यदि आप अपने दाहिने हाथ में विधुतधारा
वाही चालक को इस प्रकार पकड़े हुए हैं
कि चुंबकीय आप का अंगूठा विधुत धारा
की दिशा की क्षेत्र – ओर संकेत करता है
तो आप की अंगुलियाँ चालक के चारों ओर
चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र विद्युत धारा रेखाओं की
दिशा में लिपटी होंगी। इसे चित्र दक्षिण हस्त
अंगुष्ठ नियम दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम कहते हैं ।

चित्र – दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम

(ii) फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम –

अपने वामहस्त के अंगूठे, तर्जनी के मध्यमा
चुंबकीय क्षेत्र अंगुली को इस प्रकार फैलाएँ
कि वे परस्पर समकोण बनाएँ। तर्जनी चुंबकीय
क्षेत्र को निर्दिष्ट करेगी। मध्य अंगुली धारा के प्रवाह
की दिशा को बताएगी और अंगूठा चालक की दिशा
को प्रवाहित करेगा।

 

चित्र –फलेमिंग का वाम हस्त नियम

(iii) फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम – अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा अंगुली तथा अंगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनोंएक-दूसरे के परस्पर लंबवत हों। यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा की ओर संकेत करती है तथा अंगुठा चालक की गति को दिशा की ओर संकेत करता है तो मध्यम चालक में प्रेरित विद्यत धारा की दिशा दर्शाती है।

चित्र-फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम

चित्र – फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम


12. विधुत जनित्र क्या है ? नामांकित आरेख खींचकर किसी विधुत जनित्र का मूल सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। इसमें बुशों का क्या कार्य है ?

अथवा, स्वच्छ चित्र की सहायता से विधुत जनित्र का सिद्धान्त एवं क्रिया प्रणाली की व्याख्या कीजिए।

अथवा, विधुत जेनरेटर से आप क्या समझते हैं ? यह किस सिद्धांत पर कार्य करता है ? इसकी बनावट एवं क्रिया विधि का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ प्रत्यावर्ती धारा प्राप्त करने के विधुत उपकरण को विधुत जनित्र कहते है।

सिद्धांत – जनित्र इस सिद्धांत पर आधारित है कि किसी चालक में प्रेरित धारा तब उत्पन्न होती है जब इससे संबंधित चुंबकीय रेखाओं में परिवर्तन होता है । उत्पन्न विधुत धारा की दिशा फ्लेमिंग के दायें हाथ के नियम के अनुसार होती है ।

फ्लेमिंग का दायें हाथ का नियम – अपने दायें हाथ के अंगूठे, तर्जनी और मध्यमा अंगुली को इस प्रकार फैलाएँ कि प्रत्येक एक-दूसरे के साथ समकोण बनाए तो तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की ओर संकेत करती है, अंगूठा चालक की गति की दिशा को प्रदर्शित करता है और मध्यमा अंगुली कुंडली में उत्पन्न विधुत धारा की दिशा को देखती है।

फ्लेमिंग का दायें हाथ का नियम - अपने दायें हाथ के अंगूठे, तर्जनी और मध्यमा अंगुली को इस प्रकार फैलाएँ कि प्रत्येक एक-दूसरे के साथ समकोण बनाए तो तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की ओर संकेत करती है, अंगूठा चालक की गति की दिशा को प्रदर्शित करता है और मध्यमा अंगुली कुंडली में उत्पन्न विधुत धारा की दिशा को देखती है।

किसी साधारण प्रत्यावर्ती जनित्र में निम्नलिखित प्रमुख भाग होते हैं –

1. आर्मेचर – इसमें मृद लोहे की क्रोड पर तांबे की तार की अवरोधी बड़ी संख्या में कुंडली ABCD होती है। इसे आर्मेचर कहते हैं। इसे एक धुरी पर लगाया जाता है जो गिरते पानी, हवा या भाप की सहायता से घूम सकती है।

2. क्षेत्र चुंबकव – कुंडली को शक्तिशाली चुंबकों के बीच स्थापित किया जाता है। छोटे जनित्रों में स्थायी चुंबक लगाए जाते हैं। पर बड़े जनित्रों में विधुत चुंबकों का प्रयोग किया जाता है । ये चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करते हैं।

3. स्लिप रिंगज – धातु के दो खोखले रिंग R, और R, को कुंडली की धुरी पर लगाया जाता है। कुंडली के AB और CD को इनसे जोड़ दिया जाता है। आर्मेचर के घूमने के साथ R, और R, भी साथ-साथ घूमते हैं।

4. दो कार्बनिक ब्रशों B, और B, से विद्युत धारा को लोड तक ले जाया जाता है। चित्र में इसे गैल्वनोमीटर से जोड़ा गया है जो विधुत धारा को मापता है।

कार्य विधि – जब कुंडली को चुंबक के ध्रुवों N और S के बीच घड़ी की सूई को विपरीत दिशा घुमाया जाता है तब AB नीचे और CD ऊपर की दिशा में जाता है। उत्तरी ध्रुव के निकट AB चुंबकीय रेखाओं को काटती है और CD ऊपर दक्षिणी ध्रव के निकट रेखाओं को काटती है। इससे AB और DC में प्रेरित धारा उत्पन्न होती है। फ्लेमिंग के दायें हाथ के नियमानुसार विद्युत धारा B से A और D से C की ओर बहती है। प्रभावी विद्युत धारा DCBA की दिशा में चलता है। आधे चक्कर के बाद कुंडली के AB और DC अपनी स्थिति को बदल लेते हैं । AB दायीं तरफ और DC बायीं तरफ हो जाएगा इससे AB ऊपर तथा DC नीचे की ओर हो जाएंगे। इस परिवर्तन के कारण कुंडली में धारा की दिशा आधे घुमाव के बाद उलट जाएगी। दो सिरों की धन और ऋण ध्रुवण भी परिवर्तित हो जाएगी। हमारे देश में 50Hz प्रत्यावर्तन धारा का प्रयोग किया जाता है। इसलिए कुंडली को एक सैकेंड में 50 बार घुमाया जाता है। एक चक्कर में धारा अपनी दिशा को 2 बार बदलती है।

इस व्यवस्था में एक ब्रश उस भजा के साथ संपर्क में रहता है जो चुबकाय क्षेत्र में ऊपर की ओर गति करती है। इसका ब्रश सदा नीचे की ओर गति करन वाली भुजा के संपर्क में रहता है।

इस व्यवस्था में एक ब्रश उस भजा के साथ संपर्क में रहता है जो चुबकाय क्षेत्र में ऊपर की ओर गति करती है। इसका ब्रश सदा नीचे की ओर गति करन वाली भुजा के संपर्क में रहता है।

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