लोकतंत्र की चुनौतियाँ

लोकतंत्र की चुनौतियाँ

अध्याय का सार

लोकतांत्रिक व्यवस्था में बनी सरकार एक मुश्किल प्रकार कीसरकार होती है। ऐसी सरकार अन्य प्रकार की सरकारों से बेहतर अवश्य होती है। परंतु इस प्रकार की अपनी ही विशेष प्रकार की चुनौतियाँ होती है

लोकतांत्रिक युग होने के बावजूद भी आज संसार में एक-चौथाई भाग में लोकतांत्रिक नहीं है। ऐसे भाग में चुनौतियाँ उस भाग से जहाँ लोकतंत्र है की चुनौतियाँ से अलग है। कुल मिलाकर लोकतंत्र के समक्ष की चुनौतयों को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।

1. जिन देशों में लोकतंत्र नहीं है, उन देशों में लोकतांत्रिक सरकरों का गठन करने हेतु बुनियादी आधार तैयार करने की चुनौतियाँ है। इन देशों में गैर-लोकतांत्रिक शासकीय व्यवस्था को मिटाना, सेना शासन का अंत करना तथा लोक संप्रभुता का निर्माण करना।
2. जहाँ लोकतंत्र विद्यमान है, उस भाग में लोकतंत्र का विस्तार करना; लोकतांत्रिक संस्थाओं को अधिक अधिकार संपन्न बनाना, स्थानीय इकाइयों को सुदृढ़ करना, महिलाओं व अल्पसंख्यक वर्गों की भागीदारी बढ़ाना।
3. लोकतंत्र को मजबूत करना; लोकतांत्रिक मूल्यों में वृद्धि लोकतांत्रिक आकांक्षाओं की पूर्ति तथा जनमानस का लोकतंत्र में विश्वास बढ़ाना; लोकतंत्र की कार्यविधि में सुधार करना।
लोकतंत्र एक कठिन प्रकार की शासन प्रणाली है। इसे शत्रुओं से बचाना तथा इसकी मान-मर्यादा को, मजबूत करना इसे बनाए रखने के लिए जरूरी साधन है। प्रत्येक प्रकार का लोकतंत्र अलग-अगल है, उसके संदर्भ भी अलग-अलग है तथा उसकी चुनौतियाँ भी अलग-अलग। अतः लोकतंत्रीय व्यवस्था में लगातार राजनीतिक सुधार किए जाने चाहिए। उनमें जो लोकतंत्र का प्रयोग करते हैं तथा उनमें जिन पर लोकतंत्र लागू होता है तथा उन सभी संस्थाओं, प्रक्रियाओं व परिस्थितियों में जिनमें लोकतंत्र का संचालन होता है।

जानने योग्य शब्द तथा तथ्य एवं उनके भाव

बुनियादी आधार : वह जिसका संबंध नींव से हो, वास्तविकता से जुड़ी ज़मीनी वास्तविकता।
कुछ महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ: स्थानीय संस्थाओं को संपन्न बनाना, महिलाओं व अल्पसंख्यकों के समूहों की पर्याप्त भागीदार, राजनीतिक जागरूकता आदि।
लोकतंत्रीय मूल्य: वह मूल्य जो लोकतंत्र की मजबूत कर सकते हैं। लोकतांत्रिक संस्थाएँ जितनी अधिक लागू दी जाएंगी उनकी मुश्किलों को उतनी अधिक सुलझाने के प्रयास किए जाएंगे।
नागरिक नियंत्रण : शासकीय संस्थाओं की कार्यवाही में नागरिकों द्वारा नियंत्रण
संविधानवाद : संविधान के उपबन्धों द्वारा किया गया शासन
लोकतांत्रिक अधिकार: लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी नागरिकों को एक समान अधिकारों की उपलब्धि
निर्वाचन: प्रतिनिधियों व शासकीय अधिकारियों का चुना जाना।
संघवाद: संघीय व उसके चारों ओर का इकाइयों की सरकारों की व्यवस्था। यह शासन का एक रूप है।

लोकतंत्र की चुनौतियाँ Important Questions and Answers

प्रश्न-1
चुनौती किसे कहते हैं?
उत्तर-
चुनौती किसी प्रमुख समस्या को कहा जाता है जिसका समाधान संभव है।

प्रश्न-2
किसी लोकतंत्र के समक्ष कितनी प्रकार की चुनौतियाँ हो सकती है?
उत्तर-
किसी लोकतंत्र के समक्ष प्रायः तीन प्रकार की चुनौतियाँ हो सकती है। यह चुनौतियाँ हैं- 1. बुनियादी चुनीती. 2. विस्तार की चुनौती, 3. नींव मजबूत करने की चुनौती।

प्रश्न-3
बुनियादी चुनौती के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
लोकतंत्र की बुनियादी चुनौती के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं:
1. जहाँ लोकतंत्र नहीं है, वहां लोकतंत्र की स्थापना करना। 2. लोकतांत्रिक हस्तारण की समस्याएँ।

प्रश्न-4
लोकतंत्र के प्रसार से संबंधित कोई दो चुनौतियाँ बताइए।
उत्तर-
1. लोकतंत्र का दायरा बढ़ाने हेतु अधिक समूहों की भागीदारी पर जोर;
2. लोकतंत्रीय व्यवस्था में नागरिकों के अधिकारों का सूचारू प्रयोजन।

प्रश्न-5
लोकतंत्र की नींव मजबूत करने के चुनौतियों में किन्हीं दो का उदाहरण दें।
उत्तर-
1. लोकतंत्र के मार्ग की बाधाओं को दूर करना, ध न-बल के जोर को करना;
2. राजनीति में अपराधीकरण का उन्मूलन।

प्रश्न-6
भारत जैसे लोकतंत्रीय राज्य के समक्ष किन्हीं पाँच चुनौतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. राजनीतिक ईकाइयों का कमजोर संचालन; 2. चुनावों में धन-बल की आवश्यक भूमिका; 3. सामाजिक वर्गों में तनाव; 4. गरीबी व निरक्षरता; 5. साम्प्रदायिकता। .

प्रश्न-7
किन्हीं दो देशों का नाम बताइए जहाँ लोकतंत्र की बहाली की जरूरत है?
उत्तर-
म्यांमार व पाकिस्तान।

प्रश्न-8
किन्हीं दो देशों के नाम बताइए जहाँ सामाजिक तनाव हिंसक रूप धारण कर चुके हैं?
उत्तर-
यूगोस्लाविया, श्रीलंका।

प्रश्न-9
उदाहरण देकर बताइए कि किस देश में सामाजिक वर्गों में सद्भावना की भावना हो?
उत्तर-
बेल्जियम।

प्रश्न-10
अमरीकी व्यवस्था की कोई एक समस्या बताइए जो अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की राह में बाधा बनती हो?
उत्तर-
अमरीकी व्यवस्था की यह मांग कि वह समस्त संसार पर अपना अधिपत्य स्थापित करना चाहती है।

प्रश्न-11
राजनीति सुधार क्यों जरूरी है?
उत्तर-
लोकतंत्र की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए राजनीतिक सुधार जरूरी होते हैं

प्रश्न-12
कौन-से कानून लोकतंत्र में सफल नहीं हो पाते?
उत्तर-
वह सभी कानून जो लोकतंत्र को कमजोर बनाते हैं, वह लोकतंत्र में सफल नहीं होते। लोकतंत्र में लोकमत अनुरूप कानून बनाएं जाने चाहिए।

प्रश्न-13
राजनीतिक सुधार किसे कहते हैं? क्या कोई एक सुनिश्चत सुधारों की सूची बनायी जा सकती है?
उत्तर-
लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतयों के विषय में सभी सुझाव या प्रस्ताव लोकतांत्रिक सुधार राजनीतिक सुधार कहे जाते हैं। राजनीतिक सुधारों को कोई एक सुनिश्चित तैयार करना संभव नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि विभिन्न देशों में विभिन्न लोगों की अपनी ही लोकतंत्र से जुड़ी समस्याएं होती है। फलस्वरूप कोई एक सुनिश्चित सूची तैयार करना कठिन है। क्या कार की गड़बड़ी जाने बिना हम कार को ठीक करने का उपाय कैसे बता सकते हैं?

प्रश्न-14
क्या कानून मात्र से लोकतंत्र में राजनीतिक सुध र लाए जा सकते हैं?
उत्तर-
अच्छे कानून लोकतंत्र के संचालन के लिए अच्छा वातावरण तैयार कर सकते हैं। परंतु मात्र कानूनों से सुधारों की संभावना करना बिल्कुल सही नहीं होगा नियम-कानूनों में बदलाव करने से लोकतंत्र में बदलाव नहीं आ जाता। क्या क्रिकेट में एल.बी.डब्ल्यु. से संबंधित नियमों में बदलाव से क्रिकेट के खेल में बदलाव नहीं आ जाएगा बदलाव तो खिलाड़ियों, प्रशिक्षिकों व प्रशासकों में भी करना होगा।

प्रश्न-15
उदाहरण देकर बताइए कि कई बार अच्छे कानून भी सही राजनीतिक सुधार नहीं ला पाते?
उत्तर-
अच्छे कानून के परिणाम भी कई बार उल्टे निकलते हैं। जैसे कई राज्यों ने दो से ज्यादा बच्चों वाले लोगों के पंचायत चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है। इसके चलते अनेक गरीब लोग और महिलाएं लोकतांत्रिक अवसर से वंचित हुई जबकि ऐसा करने के पीछे यह मंशा न थी। आमतौर पर किसी चीज की मनाही करने वाले कानून राजनीति मे ज्यादा सफल नहीं होते।
प्रश्न-राजनीतिक सुधारों व लोकतांत्रिक कामकाज के संबंधों पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
उत्तर-राजनीतिक सुधारों व लोकतांत्रिक कामकाज के बीच संबंध होता है। लोकतांत्रिक कामकाज को जितना अधिक मजबूत बनाया जाएगा राजनीति सुधार उतनी तीव्रता से अपने आप होते जाएंगे। लोकतंत्र परीक्षण का एक साधन है। लोगों की भागीदारी जितनी अधिक होगी, राजनीतिक सुधारों की सम्भावना में उतनी तीव्रता अधिक होगी।

प्रश्न-16
राजनीतिक दलों के सुधार हेतु कोई दो सुधार बताइए। . उत्तर-लोकसभा का पिछल चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदार की संपति औसतन एक करोड़ रूपए से ज्यादा की थी। यह डर व्यक्त किया जा रहा है कि अब चुनाव लड़ना सिर्फ अमीरों या उनका समर्थन रखने वालों के लिए ही संभव है। अधिकतर राजनीतिक दल बड़े व्यावसायिक घरानों के चंदों पर निर्भर है। इस संबंध में निम्नलिखित दो सुधार बताइए जा सकते हैं-

1. प्रत्येक राजनीतिक दल के वित्तीय लेखा-जोखा को सार्वजनिक कर दिया जाना चाहिए। इसका लेखा सरकारी ऑडिटरों से कराया जाना चाहिए।
2. चुनाव का खर्च सरकार को उठना चाहिए। पाटियों की चुनावी खर्च के लिए सरकार कुछ रकम दे। नागारिको को भी दलों और राजनीतिक कार्यकताओं को चंदा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ऐसे चंदों पर आयकर में छूट मिलनी चाहिए।

प्रश्न-17
बताइए कि लोकतंत्र के समक्ष कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
उत्तर-
संसार में आज भी लगभग एक-चौथाई भाग में लोकतंत्र नहीं है। इन इलाकों में लोकतंत्र के लिए बहुत ही मुश्किल चुनौतियाँ है। इन देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था की तरफ जाने और लोकतांत्रिक सरकार गठित करने के लिए जरूरी बुनियादी आधार बनाने की चुनौती है। इनमें मौजूदा गैर-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को गिराने सत्ता पर सेना के नियंत्रण को समाप्त करने और एक संप्रभु तथा कारगर शासन व्यवस्था को स्थापित करने की चुनौती है।

अधिकांश स्थापित लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के सामने अपने विस्तार की चुनौती है। इसमें लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धांतों को सभी इलाकों सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू करना शामिल है। स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार संपन्न बनाना, संघ की सभी इकाइयों के लिए संघ के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना, महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना आदि ऐसी ही चुनौतियाँ है। इसका यह भी मतलब है कि कम-से-कम ही चीजें लोकतांत्रिक नियंत्रण के बाहर रहनी चाहिए। भारत और दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्रों में एक अमरीका जैसे देशों के सामने भी यह चुनौती है।।

तीसरी चुनौती लोकतंत्र को मजबूत करने की है। हर लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने किसी-न-किसी रूप में यह चुनौती है ही। इसमें लोकतांत्रिक संस्थाओं और बरतावों को मजबूत बनाना शामिल है। यह काम इस तरह से होना चाहिए कि लोग लोकतंत्र से जुड़ी अपनी उम्मीदों को पूरा कर सकें। लेकिन अलग-अलग समाजों में आम आदमी की लोकतंत्र से अलग-अलग अपेक्षाएं होती है इसलिए यह चुनौती दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग अर्थ और अलग स्वरूप ले लेती है। संक्षेप में कहें तो इसका मतलब संस्थाओं की कार्य पद्धति को सुधारना और मजबूत करना होता है ताकि लोगों की भागीदारी और नियंत्रण में वृद्धि हो।

प्रश्न-18
लोकतंत्र में राजनीतिक सुधारों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
मात्र-कानून-संवैधानिक बदलावों को ला देने भर से लोकतंत्र को चुनौतियों को हल नहीं किया जा सकता है। ये क्रिकेट के नियमों की तरह है ए.बी. डब्ल्यू. के नियम में बदलाव से बल्लेबाजों द्वारा अपनाए जाने वाले बल्लेबाजी के नकारात्मक दांव-पेंच को कम किया जा सकता है पर यह कोई भी नहीं सोच सकता कि सिर्फ नियमों में बदलाव कर देने भर से क्रिकेट का खेल सुधर जाएगा। यह काम तो मुख्यतः खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों और क्रिकेट-प्रशासकों के करने से ही होगा। इसी प्रकार राजनीतिक सुधारों को काम भी मुख्यतः राजनीतिक कार्यकर्ता, दल, आंदोलन और राजनीतिक रूप से सचेत नागरिकों के द्वारा ही हो सकता है। राजनीति में अच्छे काम करने के लिए बढ़ावा देने वाले कानूनों के सफल होने की संभावना अधिकक होती है। सबसे बढ़िया कानून वे हैं जो लोगों को लोकतांत्रिक

सुधार करने की ताकत देते हैं। सूचना का अधिकार-कानून लोगों को जानकार बनाने और लोकतांत्रिक के रखवाले के तौर पर सक्रिय करने का अच्छा उदाहरण है। ऐसा कानून भ्रष्टचार पर अंकुश लगाता है। और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने तथा कठोर दंड आयद करने वाले मौजूदा कानूनों की मदद करता है। लोकतांत्रिय व्यवस्था में सुधार हेतु आम नागरिकों की राजनीतिक भागीदारी का स्तर बढ़ाना जरूरी होता है। राजनीतिक सुधार के किसी भी प्रस्ताव में अच्छे समाधान की चिंता होने के साथ-साथ यह सोच भी होनी चाहिए कि इन्हें कौन और लागू करेगा। यह मान लेना समझदारी नहीं कि संसद कोई ऐसा कानून बना देगी तो हर राजनीतिक दल और सांसद के हितों के खिलाफ हो। पर लोकतांत्रिक आंदोलन, नागरिक संगठन और मीडिया पर भरोसा करने वाले उपायों के सफल होने की संभवना होती है।

प्रश्न-19
आपकी दृष्टि में लोकतंत्रीय व्यवस्था में क्या मुख्य तत्व होने चाहिए?
उत्तर-
लोकतंत्रीय व्यवस्था में मुख्यतया निम्नलिखित तत्व होने चाहिए- 1. लोगों द्वारा चुने गए शासक ही सारे प्रमुख फैसले लें;
2. चुनाव में लोगों को वर्तमान शासकों को बदलने और __ अपनी पसंद जाहिर करने का पर्याप्त अवसर और विक्लप मिलना चाहिए। ये विकल्प और अवसर हर किसी को बराबरी में उपब्ध होने चाहिए।
3. विकल्प चुनने के इस तरीके से ऐसी सरकार का गठन .. होना चाहिए जो संविधान के बुनियादी नियमों और नागरिकों के __ अधिकारों को मानते हुए काम करे।
4. लोकतंत्रीय व्यवस्था में भाग लेने वाले अधिकारियों को लोभ-लालच से ऊपर उठ अच्छा शासन देना चाहिए।
5. लोकतंत्रीय व्यवस्था में कहीं भी भेदभाव की स्थिति का प्रोत्साहन नहीं किया जाना चाहिए।
6. शासकों को लोगों की शिकायतों को सुनने की आदत होनी चाहिए।

लोकतंत्र की चुनौतियाँ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
इनमें से प्रत्येक कार्टून लोकतंत्र की एक चुनौती को देखता है। बताएं कि वह चुनौती क्या है? यह भी बताएं कि इस अध्याय में चुनौतियाँ की जो तीन श्रेणियाँ बताइ गई हैं, यह उनमें से किस श्रेणी की चुनौती है।
उत्तर-
(i) मुबारक फिर चुने गए
यह कार्टून चुनावों में सशक्त लोगों के प्रस्ताव को व्यक्त करता है। अनेक देशों में लोकतंत्र को मजबूत करने की जरूरत है। यह तीसरी प्रकार की चुनौती है:
लोकतात्रिक संस्थाओं को मजबूत करना।

(ii) लोकतंत्र पर नजर
यह कार्टून इस तथ्य पर जोर देता है कि ऐसे क्षेत्रों में जहाँ लोकतंत्र है ही नहीं, वहाँ लोकतंत्र को बुनियादी रूप से शुरू करने की जरूरत है। यह पहली प्रकार की चुनौती हैः
बुनियादी लोकतंत्रिक व्यवस्थाओं को आरंभ करना, जहाँ लोकतंत्र नहीं है।

(iii) उदारवादी लैंगिक समानता
यह कार्टून इस तथ्य पर जोर देता है कि लोकतंत्र के दायरे में महिलाओं की भागीदारी को सम्मिलित करने की जरूरत है। यह दूसरी प्रकार की चुनौती है।
लोकतंत्र का प्रसार लोकतांत्रिक संस्थाओं में अनेकों समूहों व महिलाओं के योगदान पर बल देना।

(iv) चुनाव अभियान का पैसा की भूमिका
यह कार्टून स्पष्ट करता है कि लोकतंत्र में चुनावों के दौरान धन का कितना अधिक महत्त्व होता है। अमीर व सशक्त व्यक्ति चुनावों में पैसा लगाकर अपने समर्थन के लोगों को निर्णय-निर्माण की स्थिति में ले आते हैं। यह तीसरी प्रकार की चुनौती है :
लोकतंत्र में किसी वर्ग विशेष का प्रभाव नहीं होना चाहिए। इससे लोकतंत्र कमजोर पड़ता है।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र की अपनी यात्रा के सभी महत्त्वपूर्ण पड़ावों पर लौटने से हम हमारी यादें ताज़ा कर सकते हैं तथा उन पड़ावों पर लोकतंत्र के समाने वाली कौन-सी चुनौतियाँ देखते हैं?
उत्तर-
HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ 1


HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ 2
HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ 3
HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ 4

प्रश्न 3.
अब जबकि आपने इन सभी चुनौतियों को लिख डाला है तो आइए इन्हें कछ बड़ी श्रेणियों में डालें नीचे लोकतांत्रिक राजनीति में कुछ दायरों को खानों में रखा गया है। पिछले खंड में एक या एक से अधिक देशों में आपने कुछ चुनौतियाँ लक्ष्य की थी। कुछ कार्टूनों में भी आपने इन्हें देखा। आप चाहे तो नीचे दिए गए खानों के समाने मेल का ध्यान रखते हुए इन चुनौतियों को लिख सकते हैं। इनके अलावा भारत में भी इन खानों में भी दिए जाने वाले एक-एक उदाहरण दर्ज करें। अगर आपको कोई चुनौती इन खानों में फिट बैठती नहीं लगती तो आप नयी श्रेणियाँ बनाकर उनमें इन मुद्दों को रख सकते हैं।
उत्तर:
संवैधानिक बनावट
घाना : नए संविधान की आवश्यकता हैं
म्यांमार : लोकतांत्रिक की बहाली के लिए नया संविधान बनाया जाए।? सऊदी अरब : लोकतंत्र की स्थापना व समान अधिकार
भारत : संविधान का समय-समय पर मूल्यांकन।

लोकतांत्रिक अधिकार
दक्षिणी अफ्रीका : संविधान को लागू करके लोकतांत्रिक अधिकारों को प्रयोजन
चीली : कभी देशों से बाहर निकाले गए दलों की वापसी हो।
म्यांमार : सू को छोड़ा जाए।
भारत : महिलाओं के लिए केन्द्र व राज्यों में 33% आरक्षण की व्यवस्था।

संस्थाओं का काम काज
चीली : नागरिक नियंत्रण में वृद्धि
घानाः कार्यपालिका अध्यक्ष का नियमित व सामाजिक चुनाव व प्रभावकारी संस्थाओं की व्यवस्था।
भारत : राजकीय संस्थाओं में भ्रष्टाचार उन्मूलन के प्रयास किए जाएं।

चुनाव
पोलैंड : राजनीतिक दलों के दायरे में सामान्य चुनाव हो।
म्यांमार : बहुदलीय व्यवस्थाओं के दायरे में चुनाव कराए जाएं।
भारत : निपष्क्ष, नियमित, स्वतंत्र, सामायिक चुनाव।
पाकिस्तान : लोकतंत्र को बहाली के आम चुनाव हों।
इराक : बहुदलीय व्यवस्था का प्रयोजन व चुनाव

संघवाद विकेंद्रीकरण
घाना : संघीय सिद्धांतों का प्रयोजन व उनका सूचार कार्य संचालन
भारत : केन्द्र-राज्य संबंधों का सामाजिक मूल्यांकन तथा सूभावित सुझावों का कार्यरूप हो।

विविधता को समेटना
इराक, श्रीलंका, सऊदी अरब, यूगोस्लाविया, नेपाल आदि देशों में सामाजिक विविधताओं में परस्पर तालमेल हो। भारतः विभिन्न सामाजिक वर्गों के उत्थान के प्रयास किए जाएँ।

राजनीतिक संगठन
म्यांमार : में सामाजिक संगठनों को दल बनाने की अनुमति हो; नेपाल में संविधान सभा का निर्माण हो;
अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के महत्त्व का सम्मान हो।

कोई अन्य श्रेणी सामाजिक व आर्थिक विकास
भारत : सामाजिक संगठनों का भ्रष्टाचार नेताओं पर नियंत्रण हो। विभिन्न देशों में आर्थिक-सामाजिक विकास हेतु योजनाएं बनायी जाएं लोकतंत्रा की सफलता के लिए सामाजिक-आर्थिक नींव मजबूत होनी चाहिए। भारत के आधुनिकीकरण हेतु आर्थिक विकास पर जोर तथा सामाजिक तालमेल के महत्त्व पर बल दिया जाए। राष्ट्रीय एकता व अखण्डता किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था को सशक्त बनाती है। किसी देश में इनकी चुनौतियां गंभीर हो सकती है। अतः सभी देशों में सद्भावना, सहनशीलता
परस्पर संबंध आदि को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

कोई अन्य श्रेणी राष्ट्रीय एकता
भारत : एकता व अखंडता विकास की पूंजी है।

प्रश्न 4.
इन श्रेणियों का नया वर्गीकरण करें। इन बार इसके लिए हम उन मानकों को आधार बनाएंगे जिनकी चर्चा अध्याय के पहले हिस्से में हुई है। इन सभी श्रेणियों के लिए कम-से-कम एक उदाहरण भारत से भी खोजे।
उत्तर-
आधार तैयार करने की चुनौतियाँ – म्यांमार, सऊदी अरब तथा अन्य उन सभी देशों में जहाँ लोकतंत्र नहीं है, वहां लोकतंत्र की स्थापना के लिए बुनियादी वातावरण बनया जाए। पाकिस्तान में लोकतंत्र की
बहाली हो।
विस्तार की चुनौती – आयरलैण्ड, इराक, श्रीलंका, मैक्सिकों, इन जैसे अन्य देशों में लोकतंत्र के विस्तार हेतु बाधाएं दूर करायी जाएं तथा उसके विस्तार के लिए अधिकाधिक लोगों व समूहों को लोकतंत्र में सम्मिलित किया जाए।
लोकतंत्र को गहराई तक मजबूत बनाने की चुनौती –
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में लोकतंत्र के संचालन में पैसे, जोर-जबदस्ती, अपराधीकरणर आदि को रोका जाए। भारत में लोकतंत्र के संचालन के लिए संस्थात्मक बाधाएं व स्वच्छ शासन दिए जाने के प्रभाव हैं।

आइए, अब सिर्फ भारत के बारे में विचार करें। समकालीन भारत के लोकतंत्र के सामने मौजूद चुनौतियों पर गौर करें। इनमें से उन पाँच की सूची बनाइए जिन पर पहले ध्यान दिया जाना चाहिए। यह सूची प्राथमिकता को भी बताने वाली होनी चाहिए यानी आप जिस चुनौती को सबसे महत्त्वपूर्ण और भारी मानते हैं उसे सबसे ऊपर रखें। शेष को इसी फ्रम से बाद में। ऐसी चुनौती का एक उदाहरण दें और बताएं कि आपकी प्राथमिकता में उसे कोई खास जगह क्यों दी गई है।
उत्तर-
im

प्रश्न 5.
अच्छे लोकतंत्र को परिभाषित करने के लिए अपना मत दीजिए। (अपना नाम लिखें) क, ख, ग, की अच्छे लोकतंत्र की परिभाषा (अधिकतम 50 शब्दों में)
उत्तर-
लोकतंत्र शासन का वह रूप है जहाँ समस्त शासन की नींव लोगों की सहमति पर आधारित होती है, लोग सरकार बनाते हैं, लोग सरकार चलाते हैं। तथा सरकार भी लोगों के हित में काम करती है। लोकतंत्र शासन के रूप में अतिरिक्त एक स्वच्छ सामाजिक व्यवस्था है जहाँ सब वर्ग सद्भावना व सहयोग से एक-दूसरे के साथ रहते हुए सामुदायिक एकता को मजबूत बनाते हैं। विशेषाताएँ [सिर्फ बिंदुवार लिखें। जितने बिंदु आप बताना चाहें उतने बता सकते हैं। इसे कम-से-कम बिंदुओं में निपटने का प्रयास करें।]

1. समानता लोकतंत्र की एक प्रमुख विशेषता है: लोगों का एक समान समझा जाना।
2. स्वतंत्रता समानता के साथ मिल एक लोकतांत्रिक समाज बनती है। इस से अभिप्राय है : सरकार तक अपनी बात कहने की छूट।
3. कल्याणकारिता लोकतंत्र की एक अन्य विशेषता है: लोकतांत्रिक सरकार सर्वहित व सर्वकल्याण हेतु शासन करती है।
4. बन्धुत्व वह भाव है जो लोकतंत्र को सीमेंट प्रदान करता है। लोगों में एकता अखण्डता, सामंजस्य, सहनशीलता सहयोग।
5. जनसहमति, जनमत, जागृति-लोकतांत्रिक की अन्य विशेषताएं।

 

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