राष्ट्रीय पर्व – स्वतन्त्रता दिवस

राष्ट्रीय पर्व – स्वतन्त्रता दिवस

          स्वतन्त्रता मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है। अधम से अधम व्यक्ति और छोटे से छोटा बालक भी अपने ऊपर किसी का नियन्त्रण प्रसन्नता से स्वीकार नहीं करता । अंग्रेज भारत में आये और भारतीयों को परतन्त्रता के पाश में जकड़ लिया। गुलामी की जंजीरों में बँधे हुए भारतीय उसी दिन ‘से उस जाल को काटने के लिये अनवरत प्रयास करते रहे। इस पुनीत संग्राम का श्रीगणेश झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के कर-कमलों से सन १८५७ में हुआ। तब से लेकर सन् १९४७ तक अनन्त माताओं की गोद से लाल, अनन्त पत्नियों के सौभाग्य सिन्दूर और अनन्त बहनों के भाई स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर चढ़कर अमरगति को प्राप्त हुए । परिवार के परिवार इस पवित्र यज्ञ की अग्नि में भस्मसात् हो गये । क्रान्तिकारियों के घरों में दिन दहाड़े आग लगाई गई। उनके परिवार के व्यक्तियों को भूखा मारा गया, उनकी माँ, बहिनों की लज्जा लूटी गई। अंग्रेज अपनी प्रभुता की रक्षा के लिये, जो कुछ कर सकते थे, उन्होंने सब कुछ किया । पर भारतीय वीरों ने भी पैर पीछे नहीं हटाये, हँसते-हँसते फाँसी के तख्ते पर झूले, वायसराय की कौंसिल में बम फैका ।
          धीरे-धीरे अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिली, कई बार धोखे दिये, परन्तु भारतवासी अपने पूर्ण स्वतन्त्रता-प्राप्ति के निश्चित ध्येय से विचलित न हुए । सत्य और अहिंसा के शस्त्र के सामने अंग्रेजों की कठोर यातना प्रकम्पित हो उठी । ९० वर्ष की साधना फलवती हुई और अंग्रेजों ने यहाँ से जाने का निश्चय कर लिया । १५ अगस्त, १९४७ की अर्धरात्रि को शताब्दियों की खोई स्वतन्त्रता भारत को पुनः प्राप्त हो गई । सारे देश में स्वतन्त्रता की लहर दौड़ गई । भक्त जनता ने मन्दिरों में भगवान की प्रार्थना की, घर-घर में दीप जलाये गये,  विद्यालयों में मिष्ठान वितरण हुआ और रात्रि को  सहस्रों, दीपों की ज्योति जगमगा उठी ।
          प्रतिवर्ष प्रत्येक नगर में यह राष्ट्रीय पर्व बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। विद्यालय के छात्र अपने इस ऐतिहासिक उत्सव को बड़े उल्लास और उत्साह के साथ मनाते हैं। हमारे कॉलिज में भी अन्य वर्षों की भाँति इस वर्ष भी यह उत्सव दुगुने उत्साह के साथ मनाया गया। उषा की लालिमा के उदय के साथ ही विद्यार्थी अपने-अपने घरों से निकल पड़े और कॉलेज के प्रांगण में एकत्रित हुए। अध्यापकों ने अपनी-अपनी कक्षाओं की उपस्थिति ली, जिससे यह मालूम हो गया कि कौन-कौन नहीं आया है। बाद में भी विद्यार्थी धीरे-धीरे आते-जाते थे और अपनी-अपनी कक्षाओं की पंक्ति में खड़े हो जाते थे । विद्यार्थियों को ६ बजे का समय दिया गया था। अभी ६ बजने में दस मिनट शेष थे । समस्त कक्षाओं की उपस्थिति पूर्ण हो चुकी थी, जिन विद्यार्थियों को नारे लगाने के लिये एक दिन पहले चुन लिया गया था, वे गगन भेदी ध्वनि से कॉलेज में ही खड़े होकर नारे लगा रहे थे। जैसे ही ६ बजे वैसे ही प्रधानाचार्य ने प्रभात फेरी में चलने के लिए विद्यार्थियों को संकेत दिया और हम तीन-तीन की पंक्ति बनाकर सड़क पर चलने लगे। आगे वाले विद्यार्थी के हाथ में तिरंगा झण्डा था, उसके पीछे कॉलेज के विद्यार्थी तीन-तीन की पंक्तियों में चल रहे थे। नारे लगाने वाले विद्यार्थी नेता बड़े जोरों से नारे लगा रहे थे। बीच में एक मधुर मार्चिंग गीत गाया जा रहा था, जिसे सभी छात्र बड़ी प्रसन्नता से दुहराते थे। इस प्रकार हम नगर के प्रमुख चौराहों पर होते हुए ज़िलाधीश की कोठी के सामने से निकले। रास्ते में कई मन्दिर मिले, जिनमें घण्टे बज रहे थे, शंख ध्वनि हो रही थी। यह प्रार्थना इसलिए हो रही थी कि हमारी स्वतन्त्रता चिर-स्थायी रहे, इस आशय की एक सरकारी सूचना भी जनता में प्रसारित हुई थी। नगर में परिक्रमा लगाते हुए हम लोग कॉलेज पहुँचे, वहाँ नौकर झण्डियाँ लगा रहे थे। कॉलेज के मुख्य भवन पर तिरंगा झण्डा लगाया जा रहा था। झण्डा फहराने का समय ८ बजे का था, क्योंकि सभी सरकारी भवनों पर ८ बजे ध्वजारोहण का समय निश्चित किया गया था। अभी ८ बजने में आधा घण्टा था, इसलिए हमें आधे घण्टे की छुट्टी मिल गई। जिन लड़कों के घर पास में थे वे अपने-अपने घरों में जल्दी लौट आने की इच्छा से जल्दी-जल्दी जाने लगे। बाजार में स्थान-स्थान पर तोरण द्वार बने हुए थे, जिन पर स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख सेनानियों के नाम अंकित थे – किसी पर गाँधी द्वार तो किसी पर नेहरू द्वार ।
          ठीक आठ बजे प्रधानाचार्य ने ध्वजारोहण किया, हम सभी छात्रों ने झण्डे को सलामी दी । राज्य के शिक्षामन्त्री तथा शिक्षा संचालक के सन्देश पढ़कर सुनाये गये । कुछ विद्यार्थियों ने अपने मधुर कण्ठ से राष्ट्रीय कविताओं का पाठ किया और अन्त में प्रधानाचार्य का एक सारगर्भित भाषण हुआ । १० बजे से विद्यार्थियों के खेल शुरू हुए | लम्बी कूद, ऊँची कूद, १०० मीटर ८०० मीटर तक की दौड़, बाधा दौड़, गोला फेंकना, तश्तरी फेंकना, रस्से पर चढ़ना इत्यादि नाना प्रकार के खेलों में विद्यार्थी अपनी-अपनी रुचि से भाग लेने लगे । इस वर्ष एक और सुन्दर व्यवस्था कर दी गई थी कि विद्यार्थियों को तुरन्त पारितोषिक मिल रहा था। प्रथम आने वाले छात्र को एक बड़ा थाल, द्वितीय आने वाले को एक कलई का गिलास और तृतीय आने वाले को एक कटोरी मिल रही थी । थाल के प्रलोभन से मैने भी दौड़ में भाग लिया। जूनियर्स सीनियर्स के ग्रुप बने हुए थे। मुझे सीनियर्स में रखा गया क्योंकि मेरी आयु १६ साल से अधिक थी और साढ़े चार फीट से कद भी ज्यादा था । दौडा, बहुत कोशिश की परन्तु वहाँ तो घोड़े को भी मात देने वाले विद्यार्थी मौजूद थे, परिणाम यह हुआ कि प्रथम स्थान तो दूर रहा द्वितीय और तृतीय भी नहीं आया । थाल पाने की आशा मन की मन में ही रह गई ।
          इसके पश्चात् मिष्ठान वितरण हुआ । प्रत्येक विद्यार्थी को थैले में रक्खे हुए चार-चार लड्डू मिले । इस कार्य के सम्पन्न होने में लगभग एक घण्टा लग गया। कुछ छात्र लड्डू खा रहे थे और कुछ खाकर पानी पी रहे थे और कुछ ने घर जाने के लिए बस्तों में मिठाई के थैले रख लिए थे, जिन पर दूसरे विद्यार्थी घात लगाये हुए थे, चारों ओर स्वतन्त्रता दिवस की प्रसन्नता में विद्यार्थी फूले नहीं समा रहे थे। जो खेलते-खेलते थक गये थे, वे कुर्सियों पर बैठकर सुस्ता रहे थे।
          तीन बजे से जुलूस निकलने वाला था । सभी नागरिकों और कॉलेज के छात्रों को पहले जिलाधीश की कोठी पर एकत्रित होने की आज्ञा थी, वहीं से जुलूस प्रारम्भ होगा, ऐसी व्यवस्था की गई थी। प्रत्येक स्कूल को एक झाँकी तैयार करने का आदेश था। हमारे कॉलेज की एक झाँकी ठेले पर सजाई जा रही थी। पौने तीन बजे ही समस्त विद्यार्थी और अध्यापक जुलूस में भाग लेने के लिए चल दिये। यद्यपि मेरा जाने का मन नहीं था क्योंकि सुबह से अब तक मैं थक चुका था, परन्तु क्या करूं, यदि किसी और स्कूल में होता तो भाग भी जाता, परन्तु यह था गवर्नमैंट कॉलेज जहाँ कठोर अनुशासन रखा जाता है, आज्ञा-पालन प्रत्येक विद्यार्थी का परम कर्त्तव्य समझा जाता है, अतः विवश होकर जाना पड़ा ।
          जिलाधीश की कोठी पर अपार जन समूह-उमड़ रहा था। कई हाथी थे, ऊँट और बैल ठेलों पर झाँकियाँ सजाई गई थीं, एन० सी० सी० और प्रान्तीय रक्षा दल के सैनिकों की कई टुकड़ियाँ थीं, बाजे बज रहे थे। जुलूस बढ़ने लगा, नगर के लोग अपनी-अपनी दुकानों से उठकर जुलूस में शामिल होने लगे। लगभग एक मील लम्बा जुलूस था । नगर के प्रमुख भागों में कहीं-कहीं ऊपर से फूल बरसाये जाते और कहीं गुलाब जल छिड़का जाता । बाजारों की परिक्रमा लगाते हुए जुलूस का अवसान स्टेडियम ग्राउण्ड पर हुआ, जहाँ पहले से ही लोगों के बैठने तथा मंच इत्यादि का प्रबन्ध हो चुका था। जनता वहाँ बैठने लगी और सभा की कार्यवाही शुरू हुई। नगर के प्रमुख नेताओं के भाषण हुए, कवितायें पढ़ी गईं और स्वतन्त्रता के महत्त्व को समझाया गया। हमारे कॉलेज के सभी छात्र धीरे-धीरे खिसकने लगे क्योंकि रात्रि को ८ बजे कॉलेज में स्वतन्त्रता दिवस के उपलक्ष में एक एकांकी नाटक होने वाला था ।
          हम लोग घर पहुँचे, खाना खाया, फिर कॉलेज की ओर चल दिये। रंगमंच तैयार था। चारों ओर बिजली के बल्बों से हॉल जगमगा रहा था । एक ओर महिलायें कुर्सियों पर बैठी हुई थीं, दूसरी ओर निमन्त्रित अतिथि । पृथ्वी पर बिछे हुए फर्शो पर छात्रों के बैठने का प्रबन्ध था । ‘चौराहा’ नामक् एकांकी नाटक अभिनीत हुआ । दर्शक मन्त्र मुग्ध होकर देख रहे थे, बीच-बीच में किसी अभिनेता का अभिनय अधिक पसन्द आ जाने पर तालियों की भी गड़गड़ाहट होती थी । अन्त में प्रधानाचार्य ने सभी आगन्तुकों को धन्यवाद देकर कार्यक्रम समाप्त किया ।
          यह हमारा सौभाग्य है कि वर्षों की साधना के पश्चात् हमने स्वर्णिम अवसर प्राप्त किया है। हमारा कर्त्तव्य है कि हम इस राष्ट्रीय पर्व को उल्लास और उत्साह के साथ सदैव मनायें और देश की समृद्धि और देश की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिये सदैव प्रयत्नशील रहें ।
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