राष्ट्रपति डॉ. के.आर. नारायणन

राष्ट्रपति डॉ. के.आर. नारायणन

          राष्ट्रपति का पद गरिमा का पद है। इस पद को भारत के दसवें राष्ट्रपति डॉ. के. आर. नारायणन सुशोभित कर रहे हैं। दलित जाति और निर्धन परिवार से सम्बन्धित होने पर भी आप भारतीय ऊर्जस्वित मनस्विता के सजीव प्रतीक एवं परिचालक हैं। आपने 25 जुलाई 1997 को भारत के राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की। आप लम्बे समय तक कई पदों पर कार्य करते हुए उपराष्ट्रपति पद से भारत के सर्वोच्च पद पर पहुँचे हैं। महामहिम राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा का कार्यकाल समाप्त होने पर आप सर्वसम्मति से इस गरिमा के पद पर पहुँचे हैं।
          डॉ. के.आर. नारायणन का जन्म 27 अक्तूबर 1920 ई. को केरल राज्य के उजावूर नामक स्थान पर हुआ था। आपके पिता श्री रामन वैद्य थे और आसपास के क्षेत्र में सम्मानित होते हुए भी अभावग्रस्त जीवन बिता रहे थे। आपने प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव में ही कठिनाइयों के बीच ली थी। योग्य छात्र और कविता रचने के कारण आप शिक्षकों का स्नेह अवश्य ही अर्जित करते रहे थे। उस समय के प्रमुख मलयाली कवि-साहित्यकार ई. वी. कृष्णा पिल्लई भी आपसे विशेष स्नेह रखते थे | आप मैट्रिक परीक्षा में प्रथम आए और छात्रवृत्ति पाकर केरल विश्वविद्यालय त्रिवेन्द्रम से 1943 में अंग्रेजी भाषा में एम.ए. किया। इस समय तक आपने कविता के साथ-साथ गद्य साहित्य का सृजन भी आरम्भ कर दिया था।
          अब आप आजीविका की खोज में जूट गए। त्रावणकोर के दीवान ने आपको क्लर्क का पद देना चाहा; पर स्वीकार नहीं किया। आप काम की खोज में दिल्ली आ गए । यहाँ आकर आप कुछ दिन तक ‘कामर्स एण्ड इण्डस्ट्री; नामक पत्र से कार्य करते रहे। फिर भारतीय ओवरसीज विभाग में दो सौ चालीस रुपये मासिक वेतन पर काम करने लगे; किन्तु कलाकार मन यहाँ भी न लगा। तीन सप्ताह बाद इस काम को छोड़ कर सौ रुपये मासिक पर एक छोटे समाचारपत्र में नौकरी कर ली।
          इस प्रकार आपके पग कई प्रकार के त्याग बलिदान करते हुए ही इच्छित दिशा में बढ़ते रहे थे । ‘हिन्दू’ और ‘टाइम्स आफ इण्डिया’ जैसे सम्मानित पत्रों में भी आप को कार्य करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। ‘महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एक प्रभावी लेख लिखने के कारण श्री के. एम. मुंशी ने आपका अपने ‘सोशल वैलफेयर’ पत्र का एक नियमित लेखकर बना लिया। जब आप लन्दन गए तब इस पत्र के नियमित संवाददाता के साथ-साथ नियमपूर्वक लेखादि लिख कर भी छपवाते रहे। लेखन और पत्रकारिता के कारण ही ‘टाटा छात्रवृत्ति’ पाकर लंदन के स्कूल ऑफ इकानॉमिक्स में प्रवेश लेकर आप अध्ययन करने लग गए। वहाँ के प्रसिद्ध विद्वान हेरॉल्ड लॉस्की आप को अपना परम शिष्य स्वीकार करते थे। वहाँ से उपाधि प्राप्त कर 1948 में जब आप स्वदेश लौटे तो विदेश सेवाविभाग में कार्य करने लग गए। फिर आपको रंगून स्थित भारतीय दूतावास में भेज दिया ‘गया । कई प्रकार की राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय कठिनाइयों को पार कर पं. जवाहरलाल नेहरू जी के प्रयासों से आप 8 जून 1951 को बर्मी युवती के साथ विवाह सूत्र में बंध गए। आज श्रीमती उषा नारायणन एक आदर्श भारतीय महिला जैसा जीवन ही व्यतीत कर रही हैं ।
        अब आप के जीवन में स्थिरता आ गई थी। आपको राजनीति और उसके शिष्टाचार का भी भलीभाँति ज्ञान हो चुका था। भारत सरकार के संचालक आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से भी विशेष प्रभावित दीखने लगे थे। सो आपको क्रमशः अमेरिका, चीन, तुर्की, थाईलैंड आदि देशों में राजदूत जैसे महत्त्वपूर्ण मिशन पर भेजा गया। सभी जगह आपने अपनी योग्यता का विशिष्ट परिचय दिया। सन् 1976 में जब आप राजदूत बनकर चीन गए तो 1962 से टूटे रिश्तों और बन्द रास्तों को जोड़ने – खोलने जैसा महत्त्वपूर्ण कार्य करके सभी को विस्मित कर दिया। चीन से लौटने पर विदेश मंत्रालय में 1978 में सेवा निवृत्त होने तक विदेश सचिव के पद पर बड़ी योग्यता से कार्य करते रहे थे। —
          सन् 1979 में जनता दल सरकार ने आपको जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में उपकुलपति के महत्त्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया । फलतः वहाँ का भीतर ही भीतर सुलगता राजनीतिक वातावरण शान्त हो सका और वास्तविक शिक्षा के योग्य भी बन सका । तत्पश्चात् श्रीमती इन्दिरा गांधी जब पुनः सत्ता में आई तो आपको फिर अमेरिका का राजदूत बनाकर भेज दिया गया। सन् 1984 में आप कांग्रेस उम्मीदवार बन कर केरल राज्य से चुनाव जीतकर लोकसभा में आ गए। फिर योजना मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालयों में राज्यमंत्री के रूप में योग्यतापूर्वक कार्य करते रहे। सन् 1991 में आपने पुनः लोकसभा के लिए अपने पूर्ववर्ती निर्वाचन क्षेत्र से ही चुनाव जीता; पर किसी कारणवश नरसिम्हा राव मंत्रिमण्डल में आपको नहीं लिया गया ।
          29 जुलाई सन् 1992 में शासक दल की ओर से आपको उपराष्ट्रपति बनाने के लिए घोषणा की गई। संसद का विपक्ष भी हर प्रकार से योग्य एवं निर्दोष व्यक्ति को ही उपराष्ट्रपति बनाने के पक्ष में था, सो उसने भी आपके नाम का सर्वसम्मति से समर्थन किया । 21 अगस्त 1992 को आपको अशोल हॉल में उपराष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई । तब से लेकर राष्ट्रपति का सर्वोच्च पद सम्भालने तक आप उसे सुशोभित करते रहे थे ।
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