राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद कवि-परिचय
प्रश्न-
तुलसीदास का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-गोस्वामी तुलसीदास हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। अत्यंत खेद का विषय है कि इनका जीवन-वृत्तांत अभी तक अंधकारमय है। इसका कारण यह है कि इन्हें अपने इष्टदेव के सम्मुख निज व्यक्तित्व का प्रतिफलन प्रिय नहीं था। इनका जन्म सन् 1532 में बाँदा जिले के राजापुर नामक गाँव में हुआ था। कुछ लोग इनका जन्म-स्थान सोरों (ज़िला एटा) को भी मानते हैं। इनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। जनश्रुति के अनुसार, इनका विवाह रत्नावली से हुआ था। इनका तारक नाम का पुत्र भी हुआ था जिसकी मृत्यु हो गई थी। तुलसी अपनी पत्नी के रूप-गुण पर अत्यधिक आसक्त थे और इसीलिए इन्हें उससे “लाज न आवति आपको दौरे आयहु साथ” मीठी भर्त्सना सुननी पड़ी थी। इसी भर्त्सना ने उनकी जीवनधारा को ही बदल दिया। इनके ज्ञान-चक्षु खुल गए। इन्होंने बाबा नरहरिदास से दीक्षा प्राप्त की। काशी में इन्होंने सोलह-सत्रह वर्ष तक वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण तथा श्रीमद्भागवत का गंभीर अध्ययन किया। इनका देहांत सन् 1623 में काशी में हुआ।
2. प्रमुख रचनाएँ-तुलसीदास की बारह रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। उनमें ‘रामचरितमानस’, ‘विनयपत्रिका’, ‘कवितावली’, ‘दोहावली’, ‘जानकी मंगल’, ‘पार्वती मंगल’ आदि उल्लेखनीय हैं।
3. काव्यगत विशेषताएँ-तुलसीदास रामभक्त कवि थे। ‘रामचरितमानस’ इनकी अमर रचना है। तुलसीदास आदर्शवादी विचारधारा के कवि थे। इन्होंने राम के सगुण रूप की भक्ति की है। इन्होंने राम के चरित्र के विराट स्वरूप का वर्णन किया है। तुलसीदास ने श्रीराम के जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने ‘रामचरितमानस’ में सर्वत्र आदर्श की स्थापना की है। पिता, पुत्र, भाई, पति, प्रजा, राजा, स्वामी, सेवक सभी का आदर्श रूप में चित्रण किया गया है।
तुलसीदास के साहित्य की अन्य प्रमुख विशेषता है तुलसी का समन्वयवादी दृष्टिकोण। इनकी रचनाओं में ज्ञान, भक्ति और कर्म, धर्म और संस्कृति, सगुण और मिर्गुण आदि का सुंदर समन्वय दिखाई देता है।
तुलसीदास की भक्ति दास्य भाव की भक्ति है। वे अपने आराध्य श्रीराम को श्रेष्ठ और स्वयं को तुच्छ या हीन स्वीकार करते हैं। तुलसीदास का कथन है
“राम सो बड़ो है कौन, मोसो कौन है छोटो?
राम सो खरो है कौन, मोसो कौन है खोटो?”
कविवर तुलसीदास अपने युग के महान समाज-सुधारक थे। इनके काव्य में आदि से अंत तक जनहित की भावना भरी हुई है। तुलसीदास जी के काव्य में उनके भक्त, कवि और समाज-सुधारक तीनों रूपों का अद्भुत समन्वय मिलता है।
4. भाषा-शैली-इन्होंने अपना अधिकांश काव्य अवधी भाषा में लिखा, किंतु ब्रज भाषा पर भी इन्हें पूर्ण अधिकार प्राप्त था। इनकी भाषा में संस्कृत की कोमलकांत पदावली की सुमधुर झंकार है। भाषा की दृष्टि से इनकी तुलना हिंदी के किसी अन्य कवि से नहीं हो सकती। इनकी भाषा में समन्वय का प्रयास है। वह जितनी लौकिक है, उतनी ही शास्त्रीय भी है। इन्होंने अपने काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। भावों के चित्रण के लिए इन्होंने उत्प्रेक्षा, रूपक और उपमा अलंकारों का अधिक प्रयोग किया है। इन्होंने रोला, चौपाई, हरिगीतिका, छप्पय, सोरठा आदि छंदों का सुंदर प्रयोग किया है।
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद काव्यांशों का सार
प्रश्न-
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ नामक कवितांश का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ तुलसीदास के महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकांड’ अध्याय का प्रमुख अंश है। इसका ‘रामचरितमानस’ के कथानक में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस संक्षिप्त से अंश में राम, लक्ष्मण और परशुराम तीनों के चरित्र का उद्घाटन होता है। जब राजा जनक द्वारा आयोजित सीता स्वयंवर के अवसर पर श्रीराम भगवान शंकर के धनुष को तोड़ डालते हैं, तब वहाँ उपस्थित समाज के लोगों पर विभिन्न प्रभाव पड़ता है। राजा जनक प्रसन्न होते हैं। सीता की मनोकामना एवं भक्ति पूरी होती है। साधु लोग प्रसन्न होते हैं। दुष्ट राजा लोग इससे दुःखी होते हैं। परशुराम को जब धनुष भंजन की खबर मिलती है तो वे क्रोध से पागल हो उठते हैं तथा राजा जनक की सभा में उपस्थित होकर धनुष तोड़ने वाले को समाप्त करने की धमकी देते हैं।
परशुराम की क्रोध भरी बातें सुनकर श्रीराम अत्यंत धीरज एवं सहज भाव से बोल उठे, हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा। यह सुनकर भी उनका क्रोध शांत नहीं होता। वे उसी भाव से कहते हैं, सेवक का काम तो सेवा करना है। जिसने भी यह धनुष तोड़ा है, वह मेरा सहस्रबाहु के समान शत्रु है। परशुराम का क्रोध बढ़ता ही गया और उन्होंने कहा कि धनुष तोड़ने वाला सभा से अलग हो जाए, अन्यथा वे सारे समाज को नष्ट कर देंगे। इस पर लक्ष्मण ने यह कहकर कि बचपन में ऐसे कितने धनुष तोड़े होंगे, फिर इस धनुष से आपको इतनी ममता क्यों है? परशुराम के क्रोध को और भी भड़का दिया। लक्ष्मण ने पुनः कहा कि इसमें राम का कोई दोष नहीं। वह तो उनके छूते ही टूट गया। इसलिए हे मुनिवर! आप तो व्यर्थ ही क्रोध कर रहे हैं। परशुराम क्रोधाग्नि में जल उठे और बोले कि मैं तुम्हें बालक समझकर छोड़ रहा हूँ। मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और क्षत्रिय कुल का शत्रु हूँ।
मैंने अपने भुजबल से पृथ्वी को कई बार राजा-विहीन कर दिया और पृथ्वी को देवताओं को दान में दे दिया। हे राजकुमार ! तुम मेरे फरसे को देख रहे हो। लक्ष्मण ने सहज भाव से कहा कि हे मुनिवर ! तुम मुझे बार-बार कुल्हाड़ा दिखाते हो तब फूंक मारकर पहाड़ को उड़ाना चाहते हो। मैंने तो जो कुछ कहा वह तुम्हारे वेश को देखकर कहा, किंतु अब मुझे पता चल गया है कि तुम भृगु-सुत हो और तुम्हारे जनेउ को देखकर सब कुछ जान गया हूँ। इसलिए आप जो कुछ भी कहेंगे मैं उसे सहन कर लूँगा। परशुराम ने विश्वामित्र से कहा कि इस बालक को समझा लीजिए अन्यथा यह काल कलवित हो जाएगा। किंतु लक्ष्मण ने उन्हें स्पष्ट भाषा में ललकारा तो उन्होंने अपना फरसा संभाल लिया और कहा कि अब मुझे बालक का वध करने का दोष मत देना। अंत में विश्वामित्र ने परशुराम को समझाते हुए कहा कि आप महान् हैं और बड़ों को छोटों के अपराध क्षमा कर देने में ही उनकी महानता है। किंतु वे मन-ही-मन हँसने लगे कि जिसने शिव-धनुष को गन्ने की भाँति सरलता से तोड़ दिया वे उसके प्रभाव को नहीं समझे। लक्ष्मण ने पुनः मजाक में कहा कि परशुराम जी माता-पिता के ऋण से तो मुक्त हो चुके हैं। अब गुरु के ऋण से उऋण होना चाहते हैं। यह सुनते ही परशुराम ने अपना कुल्हाड़ा संभाल लिया। सारी सभा में हाहाकार मच गया। लक्ष्मण के शब्दों ने परशुराम का क्रोध और भी बढ़ा दिया, किंतु तब श्रीराम ने जल के समान शांत करने वाले शब्द कहे।
Hindi सूरदास के पद Important Questions and Answers
विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
इस कवितांश के आधार पर लक्ष्मण के द्वारा परशुराम के प्रति किए गए व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
इस कवितांश के अध्ययन से बोध होता है कि लक्ष्मण उग्र एवं तेज स्वभाव वाले हैं। वे भरी सभा में परशुराम द्वारा दी गई चुनौती व धमकी से आहत हो उठते हैं। इसलिए परशुराम के प्रश्नों का उत्तर उसी लहजे में देते हैं। वे परशुराम की आत्मप्रशंसा पर करारा व्यंग्य कसते हैं। लक्ष्मण के इस व्यवहार से एक ओर जहाँ परशुराम का क्रोध बढ़ता है, वहीं सभा में उपस्थित लोगों के मन का भय भी कम हो जाता है, किंतु यह स्थिति जब अतिक्रमण कर जाती है तो सभा में उपस्थित लोग लक्ष्मण के व्यवहार को अनुचित कहने लगते हैं। परशुराम लक्ष्मण से आयु में बहुत बड़े थे। वे उनके पिता तुल्य थे। इसलिए उन्हें उसके प्रति नृपद्रोही जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था। लक्ष्मण अपनी वीरता के जोश में उम्र और समाज की मर्यादा का विचार भी भूल जाते हैं। लक्ष्मण का परशुराम के प्रति क्रोध उचित था, किंतु संयम त्याग देना उचित नहीं था।
प्रश्न 2.
पठित कवितांश के आधार पर परशुराम द्वारा किए गए व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
पठित कवितांश के अध्ययन से पता चलता है कि परशुराम अत्यंत उग्र स्वभाव वाले हैं। ऐसा लगता है कि क्रोध करना उनके स्वभाव का अभिन्न अंग है। बिना सोचे-समझे क्रोधित हो जाना उचित प्रतीत नहीं होता। वे पूरी बात समझे बिना ही क्रुद्ध हो उठते हैं। उनके आतंक के कारण सभा में कोई व्यक्ति सच्चाई नहीं बता सका। दूसरों को बात कहने का अवसर दिए बिना अपनी बात कहते जाना उचित नहीं है। फिर क्रोध की स्थिति में व्यक्ति उचित-अनुचित का अंतर भी नहीं कर सकता। परशुराम जी का क्रोध ऐसा ही है। यही कारण है कि लक्ष्मण उनकी इस कमजोरी को भाँप जाते हैं और अपने व्यंग्य बाणों को छोड़कर उनके क्रोध को और भी भड़का देते हैं जिससे परशुराम वे बातें भी कह जाते हैं जो उन्हें नहीं कहनी चाहिए थीं। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि परशुराम के इस व्यवहार व उनके ऐसे स्वभाव को कदापि उचित नहीं कहा जा सकता।
प्रश्न 3.
परशुराम ने लक्ष्मण को वध करने योग्य क्यों कहा था?
उत्तर-
परशुराम लक्ष्मण के विषय में कहते हैं कि यह मंद बुद्धि बालक है। यह मेरे स्वभाव के विषय में नहीं जानता कि मैं कितना क्रोधी हूँ। इसे किसी से डर या शर्म नहीं है। इसे अपने माता-पिता की चिंता का भी बोध नहीं है। क्षत्रिय राजकुमार होने के कारण भी यह स्वाभाविक रूप से परशुराम का शत्रु है तथा परशुराम क्षत्रिय द्रोही हैं। लक्ष्मण ने परशुराम का मज़ाक उड़ाया है। . इसलिए वह वध करने योग्य है।
प्रश्न 4.
‘कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा’ को नहि जान बिदित संसारा’ इस पंक्ति में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
इस पंक्ति में परशुराम के शील व स्वभाव पर व्यंग्य किया गया है। इसमें व्यंग्य है कि परशुराम अपने क्रोधी स्वभाव . के लिए सारे संसार में प्रसिद्ध हैं। लक्ष्मण ने परशुराम के क्रोधी स्वभाव को सहज एवं स्वाभाविक कहकर व्यंग्य किया है। प्रकट रूप से इस पंक्ति का अर्थ है कि परशुराम महान् क्रोधी स्वभाव वाले व्यक्ति हैं। इस बात को सारा संसार भली-भाँति जानता है।
संदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 5.
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ शीर्षक कविता के संदेश को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कवि ने इस कविता के माध्यम से संदेश दिया है कि क्रोध अच्छी भावना नहीं है। इससे सदा दूर रहना चाहिए। क्रोध मनुष्य की सोचने व भले-बुरे के अंतर को जानने की शक्ति को नष्ट कर देता है। क्रोध की स्थिति में व्यक्ति उचित अनुचित का अंतर भी नहीं कर सकता। क्रोध के वश में होकर परशुराम श्रीराम व लक्ष्मण को साधारण बालक समझकर उन्हें मारने तक की धमकी दे डालते हैं। क्रोध के कारण ही व्यक्ति सदा हँसी का पात्र बनता है। परशुराम क्रोध के कारण ही विश्वामित्र की हँसी का पात्र बनता है। परशुराम स्वयं की प्रशंसा करते हैं और दूसरों को मारने की धमकी देते हैं। यही संदेश हमें इस कवितांश से मिलता है कि हमें सदा अपने क्रोध पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए एवं सोच-समझकर ही कोई बात कहनी चाहिए।
प्रश्न 6.
परशुराम ने श्रीराम को क्या उत्तर दिया था?
उत्तर-
परशुराम ने श्रीराम से कहा था कि सेवक वह होता है जो सेवा करता है, न कि शत्रुता का भाव रखता हो। शत्रुता का भाव रखने वाले के साथ तो लड़ाई करनी चाहिए। जिसने भी शिव का धनुष तोड़ा, वह उनके लिए सहस्रबाहु के समान शत्रु है। उसे आज इस सभा से अलग हो जाना चाहिए। ऐसा न करने पर इस सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएँगे।
प्रश्न 7.
श्रीराम द्वारा परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए कौन-सा काम किया गया था?
उत्तर-
श्रीराम ने भली-भाँति समझ लिया था कि परशुराम क्रोधी होने के साथ अहंकारी भी थे। उन्हें अपनी शक्ति का अहंकार था। इसलिए क्रोधी को क्रोधी बनकर जीतना बुद्धिमत्ता नहीं है। श्रीराम ने क्रोधी परशुराम के सामने अत्यंत संयत एवं विनम्र भाषा में कहा था कि शिव-धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका दास ही होगा। यदि आप कोई आज्ञा देना चाहते हैं, तो उन्हें आदेश करें। श्रीराम ने अत्यंत सहज एवं मधुर वाणी का प्रयोग करके परशुराम का क्रोध शांत करने का प्रयास किया था।
प्रश्न 8.
इस काव्यांश के आधार पर बताइए कि आपको किसका चरित्र सबसे अच्छा लगता है और क्यों?
उत्तर-
इस काव्यांश में श्रीराम, लक्ष्मण और परशुराम के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। परशुराम को इस काव्यांश में अत्यंत क्रोधी दिखाया गया है। वे शिव-धनुष को टूटा हुआ देखकर क्रोध से पगला उठे और किसी की बात न सुनकर दूसरों को मार डालने की धमकियाँ देते हैं और आत्म-प्रशंसा करते हैं। लक्ष्मण परशुराम की धमकियों को सुनकर उन पर व्यंग्य बाण कसने लगा। लक्ष्मण ने उनकी उम्र का भी ध्यान न रखा । यहाँ तक कि लक्ष्मण ने मर्यादा का भी अतिक्रमण कर दिया। जबकि श्रीराम ने परशुराम के सामने अत्यंत मधुर भाषा में अपने-आपको उनका सेवक व दास कहा था जिसे सुनकर परशुराम का क्रोध शांत हो गया था। उन्होंने अपनी शक्ति का दिखावा न करके अपने आपको उनका दास तथा सेवक बताया। यह श्रीराम के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता है। इसीलिए हमें श्रीराम का चरित्र सर्वाधिक पसंद है।
Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
उत्तर-
परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने तर्क देते हुए कहा कि हमने बचपन में ऐसे अनेक’धनुष तोड़े हैं। इसी धनुष को तोड़ने पर आपको क्रोध क्यों आया। क्या आपकी इस धनुष के प्रति अधिक ममता थी। हमारी दृष्टि में तो सभी धनुष समान हैं फिर इस धनुष के टूटने पर आपने क्रोध क्यों व्यक्त किया। यह धनुष तो अत्यधिक पुराना था जोकि श्रीराम के छूने मात्र से ही टूट गया। फिर भला इसमें श्रीराम का क्या दोष है।
प्रश्न 2.
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि श्रीराम स्वभाव से अत्यंत शांत एवं गंभीर हैं। धनुष के टूट जाने पर श्रीराम ने परशुराम से कहा कि धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा। इतना ही नहीं, श्रीराम ने अपनी मधुर वाणी से लक्ष्मण को चुप रहने के लिए भी कहा और परशुराम जी का क्रोध भी शांत किया। दूसरी ओर, लक्ष्मण अत्यंत उग्र स्वभाव वाले हैं। उन्होंने अपने कटु वचनों द्वारा परशुराम के क्रोध को और भी भड़का दिया। उन्होंने परशुराम की धमकियों तथा डींगें हाँकने पर करारा व्यंग्य किया। लक्ष्मण ने ब्राह्मण देवता के सामने कटु वचन बोलकर अपने उग्र रूप का उदाहरण दिया था जबकि श्रीराम ने मधुर वाणी बोलकर उन्हें अपने उदार एवं शांत स्वभाव से प्रभावित किया था।
प्रश्न 3.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर-
लक्ष्मण ने मुस्कुराते हुए कहा, मुनियों में श्रेष्ठ परशुराम जी! क्या आप अपने आपको बहुत बहादुर समझते हो? आप बार-बार कुल्हाड़ा दिखाकर मुझे डरा देना चाहते हो। आप अपनी फूंक से पहाड़ को उड़ा देना चाहते हो।
परशुराम गुस्से में भरकर कहते हैं, हे मूर्ख बालक, मैं तुम्हें बच्चा समझकर छोड़ रहा हूँ अन्यथा अब तक का……।
प्रश्न 4.
परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही ॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ॥
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोक महीपक्रमारा ॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥
उत्तर-
परशुराम ने अपने विषय में कहा, “मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। स्वभाव से बहुत क्रोधी हूँ। सारा संसार जानता है कि मैं क्षत्रियों के कुल का शत्रु हूँ। अपनी भुजाओं के बल के द्वारा मैंने पृथ्वी को कई बार राजा विहीन कर दिया और उसे ब्राह्मणों को दान में दे दिया। मेरा यह फरसा बहुत भयानक है। इसने सहस्रबाहु जैसे राजाओं को भी नष्ट कर दिया। हे राजकुमार! इस फरसे को देखकर गर्भवती स्त्रियों के गर्भ भी गिर जाते हैं।”
प्रश्न 5.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?
उत्तर-
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की विशेषताएँ बताते हुए कहा है कि वीर योद्धा रणभूमि में ही वीरता दिखाता है, अपना गुणगान नहीं करता फिरता। कायर ही अपनी शक्ति की डींगें हाँकते हैं।
प्रश्न 6.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
शास्त्रों में कहा गया है कि विनम्रता सदा वीर पुरुषों को ही शोभा देती है। कमजोर और कायर व्यक्ति का विनम्र होना उसका गुण नहीं अपितु उसकी मजबूरी होती है क्योंकि वह किसी को कुछ हानि नहीं पहुँचा सकता। दूसरी ओर जब कोई शक्तिशाली व्यक्ति दीन-दुखियों की सहायता करता है अथवा दूसरों के प्रति विनम्रतापूर्वक व्यवहार करता है तो समाज में उसका सम्मान किया जाता है। शक्ति को प्राप्त करके भी जो लोग अहंकारी न बनकर विनम्र एवं धैर्यवान बने रहते हैं और दूसरों को मार्ग से विचलित नहीं होने देते, संसार में ऐसे ही लोगों का आदर किया जाता है। विनम्र व्यक्ति ही दूसरों के दुःख को अनुभव कर सकता है और उनकी सहायता के लिए आगे आता है। भगवान विष्णु को जब भृगुऋषि ने क्रोध में भरकर लात मारी थी तब उन्होंने साहस और शक्ति के बावजूद अत्यंत विनम्रता एवं उदारता का परिचय देते हुए उसे क्षमा कर दिया था। तभी से देवताओं में उनका सम्मान और भी बढ़ गया था। साहस और शक्ति के साथ-साथ विनम्रता का गुण मनुष्य को सदा सम्मान दिलाता है और उसे सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाता है।
प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बिहसि लखनु बोले मूदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी ॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू । चहत उड़ावन फूंकि पहारू ॥
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ॥
उत्तर-
(क) इस पद में कवि ने बताया है कि लक्ष्मण परशुराम के वचनों पर हँसकर व्यंग्य कर रहा है जिससे परशुराम का क्रोध बढ़ रहा है। लक्ष्मण ने परशुराम को बड़ा योद्धा कहकर और फूंक मारकर पहाड़ उड़ा देने की बात कहकर उन पर तीखा व्यंग्य किया है। कहने का तात्पर्य है कि गरज-गरजकर अपनी वीरता का वर्णन करना व्यर्थ है। इससे कोई व्यक्ति वीर नहीं बन जाता। वीरता बखान करने का नहीं, अपितु कुछ कर दिखाने का गुण है।
(ख) इस पद में लक्ष्मण ने परशुराम की वेश-भूषा पर व्यंग्य किया है। वे ब्राह्मण होते हुए भी ब्राह्मण के वेश में नहीं थे। लक्ष्मण ने इसीलिए कहा है कि हे मुनि जी यदि आप योद्धा हैं तो हम भी कोई छुईमुई नहीं कि तर्जनी देखते ही मुरझा जाएँगे। कहने का भाव है कि लक्ष्मण भी योद्धा था। वे पुनः कहते हैं कि आपके धनुष-बाण और कंधे पर कुल्हाड़ा देखकर ही आपको योद्धा समझकर मैंने अभिमान भरी बातें कह दीं। यदि मुझे पता होता कि आप मुनि-ज्ञानी हैं तो मैं ऐसा कदापि न करता।
(ग) इन पंक्तियों में विश्वामित्र ने परशुराम की अभिमानपूर्वक प्रकट की जाने वाली बातों को सुनकर उन पर व्यंग्य करते हुए ये शब्द कहे हैं कि मुनि जी को सर्वत्र हरा-ही-हरा दिखाई दे रहा है। वे सदा सामान्य क्षत्रियों से युद्ध करके विजय प्राप्त करते रहे हैं। इसलिए उन्हें लगता था कि वे श्रीराम व लक्ष्मण को भी अन्य क्षत्रियों की भाँति आसानी से हरा देंगे किंतु ये साधारण क्षत्रिय नहीं हैं। ये गन्ने की खांड के समान नहीं थे, अपितु फौलाद के बने खाँडा के समान थे। मुनि बेसमझ बनकर इनके प्रभाव को नहीं समझ रहे।
प्रश्न 8.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा-सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर-
तुलसीदास ने अपने काव्य में ठेठ अवधी भाषा का सफल प्रयोग किया है। तुलसीदास कवि व भक्त होने के साथ-साथ महान विद्वान भी थे। उन्होंने अपने काव्य में शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में कहीं शिथिलता दिखाई नहीं देती। उनकी वाक्य-रचना व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध एवं सफल है। तुलसीदास ने शब्द-चयन विषयानुकूल किया है। तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव व उर्दू-फारसी शब्दों का प्रयोग भी किया है। लोक प्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों के सार्थक प्रयोग से तुलसीदास के काव्य की भाषा सारगर्भित बन पड़ी है। तुलसीदास ने प्रसंगानुकूल भाषा का प्रयोग किया है इसलिए उनके काव्य की भाषा कहीं प्रसादगुण सम्पन्न है तो कहीं ओजस्वी बन पड़ी है। उन्होंने इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा है कि किस शब्द का कहाँ और कैसे प्रयोग किया जाए। यही कारण है कि तुलसीदास के काव्यों की भाषा अत्यंत सफल एवं सार्थक सिद्ध हुई है।
प्रश्न 9.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पद के अध्यया से पता चलता है कि लक्ष्मण के कथन में गहरा व्यंग्य छिपा हुआ है। लक्ष्मण परशुराम से कहते . हैं कि बचपन में हमने कितने ही धनुष तोड़ डाले तब तो आपको क्रोध नहीं आया। श्रीराम ने तो इस धनुष को छुआ ही था कि यह टूट गया। परशुराम की डींगों को सुनकर लक्ष्मण पुनः कहते हैं कि हे मुनि, आप अपने आपको बड़ा भारी योद्धा समझते हो और फूंक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हो। हम भी कोई कुम्हड़बतिया नहीं कि तर्जनी देखकर मुरझा जाएँगे। आपने ये धनुष-बाण व्यर्थ ही धारण किए हुए हैं क्योंकि आपका तो एक-एक शब्द करोड़ों वज्रों के समान है। लक्ष्मण जी व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि आपके रहते आपके यश का वर्णन भला कौन कर सकता है? शूरवीर तो युद्ध क्षेत्र में ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं तथा कायर अपनी शक्ति का बखान किया करते हैं। परशुराम के शील पर व्यंग्य करते हुए लक्ष्मण जी पुनः कहते हैं कि आपके शील को तो पूरा संसार जानता है। आप तो केवल अपने घर में ही शूरवीर बने फिरते हैं, आपका किसी योद्धा से पाला नहीं पड़ा।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए-
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार बार मोहि लागि बोलावा ॥
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भूगुबरकोपु कृसानु। _
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ॥
उत्तर-
(क) इस पंक्ति में ‘ब’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।।
(ख) इस पंक्ति में परशुराम के वचनों की तुलना कठोर वज्र से की गई है। अतः इसमें उपमा अलंकार है।
(ग) इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा एवं पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं।
(घ) ‘लखन उतर …… कृसानु’ में रूपक अलंकार है तथा ‘बढ़त देखि ……. रघुकुलभानु’ में उपमा अलंकार है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 11.
“सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर-
पक्ष में आचार्य शुक्ल जी का यह कथन सही है कि क्रोध केवल नकारात्मक ही नहीं, अपितु सकारात्मक भी होता है। उदाहरण के लिए हथौड़ा या बुलडोजर केवल मकान तोड़ने के ही काम नहीं आते, अपितु वे मकान के निर्माण में भी काम आते हैं। इसी प्रकार क्रोध भी बुरी आदतों को दूर करने में काम आता है। कोई बच्चा यदि चोरी करता है तो उस पर क्रोध करके उसकी बुरी आदत को छुड़वाया जा सकता है। इसी प्रकार यदि कोई बदमाश हमारे घर आकर हमारे साथ दुर्व्यवहार करे और हम चुप बैठे रहें तो उसका हौसला बढ़ता जाएगा उस बदमाश को ठीक करने के लिए क्रोध करना अति आवश्यक है। इस प्रकार क्रोध सदा नकारात्मक ही नहीं अपितु सकारात्मक भी होता है।
विपक्ष में-क्रोध करना अच्छी बात नहीं है। क्रोध से मनुष्य के मन और शरीर दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। क्रोध की स्थिति में मनुष्य बुद्धि से काम नहीं लेता। अतः क्रोध में किया गया कोई भी काम उचित नहीं हो सकता। क्रोध में कही गई बात पर भी बाद में पश्चात्ताप करना पड़ता है। अतः क्रोध से बचना चाहिए।
प्रश्न 12.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता।
उत्तर-
मेरा व्यवहार इन सबसे अलग होता क्योंकि मैं परशुराम के बड़बोले व्यवहार के विषय में उन्हें अत्यंत संयत ढंग से अवगत कराता ताकि वहाँ उपस्थित लोग मेरा विरोध न करते अपितु परशुराम के व्यवहार को ही अनुचित कहते। यदि फिर भी वह सुनने के लिए तैयार न होते तो वहाँ उपस्थित सभा के सामने तर्क के आधार पर उन्हें दोषी ठहराता।
प्रश्न 13.
अपने किसी परिचित या मित्र के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।
प्रश्न 14.
‘दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए।’ इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।
प्रश्न 15.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं अपना अनुभव लिखें।
प्रश्न 16.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर-
अवधी भाषा आज लखनऊ, इलाहाबाद, फैजाबाद, मिर्जापुर आदि क्षेत्रों के आसपास बोली जाती है।
यह भी जानें
दोहा- दोहा एक लोकप्रिय मात्रिक छंद है जिसकी पहली और तीसरी पंक्ति में 13-13 मात्राएँ होती हैं और दूसरी और चौथी पंक्ति में 11-11 मात्राएँ।
चौपाई – मात्रिक छंद चौपाई चार पंक्तियों का होता है और इसकी प्रत्येक पंक्ति में 16 मात्राएँ होती हैं। तुलसी से . पहले सूफी कवियों ने भी अवधी भाषा में दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग किया है जिसमें मलिक मुहम्मद जायसी का ‘पद्मावत’ उल्लेखनीय है।
परशुराम और सहस्रबाहु की कथा पाठ में ‘सहस्रबाहु सम सो रिपु मोरा’ का कई बार उल्लेख आया है। परशुराम और सहस्रबाहु के बैर की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। महाभारत के अनुसार यह कथा इस प्रकार है
परशुराम ऋषि जमदग्नि के पुत्र थे। एक बार राजा कार्तवीर्य सहस्रबाहु शिकार खेलते हुए जमदग्नि के आश्रम में आए। जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी जो विशेष गाय थी, कहते हैं वह सभी कामनाएं पूरी करती थी। कार्तवीर्य सहस्रबाहु ने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु गाय की माँग की। ऋषि द्वारा मना किए जाने पर सहस्रबाहु ने कामधेनु गाय का बलपूर्वक अपहरण कर लिया। इस पर क्रोधित हो परशुराम ने सहस्रबाहु का वध कर दिया। इस कार्य की ऋषि. जमदग्नि ने बहुत निंदा की और परशुराम को प्रायश्चित्त करने को कहा। उधर सहस्रबाहु के पुत्रों ने क्रोध में आकर ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया। इस पर पुनः क्रोधित होकर परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन करने की प्रतिज्ञा की।