राज्य में बकरी के कृत्रिम गर्भाधान से सुधरेगी नस्ल, एक साल में 12 किलो हो जाएगा वजन

झारखंड में भी अब बकरी का कृत्रिम गर्भाधान (एआइ) किया जा रहा है. किसानों के साथ मिलकर इसका प्रयोग किया जा रहा है. इससे कुछ बकरियों के बच्चों ने भी जन्म लिया है, जिनका पालन पोषण किया जा रहा है. सिमडेगा जिले के बानो में यह प्रयोग सफल रहा है. अब किसानों के बीच ले जाकर इसका प्रचार-प्रसार किया जा रहा है. यह काम जिला प्रशासन सिमडेगा, बीएयू, प्रदान और आइसीआइसीआइ फाउंडेशन के सहयोग से हो रहा है.

प्रयोग के लिए बानो केवीके में मिला स्थान

सिमडेगा जिला प्रशासन ने प्रयोग के लिए बीएयू को बानो स्थित केवीके में एक स्थान उपलब्ध कराया है. वहां किसानों के बीच इसका प्रयोग किया गया है. अब बानो और ठेठइटांगर प्रखंड में किसानों के लिए ब्लैक बंगाल नस्ल के बकरे लाये गये हैं. इनमें से कुछ बकरे ग्रामीणों के बीच प्राकृतिक प्रजनन के लिए बांटे जायेंगे.

एक साल में 12 किलो से ऊपर का हो जायेगा वजन

इन प्रखंडों में पहली बार बीते साल अक्तूबर माह में बकरी का एआइ कराया गया था. इसका बच्चा आना शुरू हो गया है. अभी किसानों के बीच एक दर्जन के करीब बच्चे कृत्रिम गर्भाधान से पैदा हो गये हैं. जन्म के समय बच्चे का वजन दो किलो के आसपास होता है, जबकि देसी ब्रिड का बच्चा आधा किलो के आसपास होता था. एक साल में देसी ब्रिड वाला खस्सी पांच से छह किलो का हो पाता है. एआइ से तैयार बच्चा एक साल में 12 से 13 किलो का हो जाता है.

दुवासु मथुरा से लाया गया है सिमेनबकरियों के एआइ के लिए सिमेन पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विद्यालय और गो अनुसंधान संस्थान (दुवासु), मथुरा से लाया गया है. इसी का उपयोग किया जा रहा है. बानो और ठेठइटांगर में प्रदान संस्था की ओर से तकनीकी सलाह देनेवाले अभिषेक रंजन का कहना है कि पूरे देश में केवल राजस्थान और पंजाब में बकरी में एआइ हो रहा है. अभी राज्य सरकार ने भी इसे अपनी स्कीम में शामिल नहीं किया है. स्थानीय स्तर पर कुछ लोगों को सिमडेगा में प्रशिक्षित कर यह काम कराया जा रहा है. इससे एक बकरी दो या उससे अधिक बच्चा दे रही है.

बानो प्रखंड के पाड़ो गांव के अनिमा आइंद का कहना है कि पहले से जो बकरी पाल रहे थे, उसकी गुणवत्ता कम होती जा रही थी. अब नये सिरे से ब्लैक बंगाल नस्ल के बकरे से बकरियों का गर्भाधान कराया जायेगा. इससे नये बच्चे की ब्रिड में सुधार होगा. इससे हम लोग अच्छी कीमत पर बकरी बेच पायेंगे. इससे हम लोगों की बकरियों की नस्ल में सुधार भी होगा.

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