यूरोप में राष्ट्रवाद

यूरोप में राष्ट्रवाद

History [ इतिहास ] लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. 1848 की फ्रांसीसी क्रांति के क्या कारण थे ?

उत्तर ⇒ 1848 ई० की फ्रांसीसी क्रांति के प्रमुख कारण थे –
(i) मध्यम वर्ग का शासन पर प्रभाव ।
(ii) राजनीतिक दलों में संगठन का अभाव ।
(iii) समाजवाद का प्रसार ।
(iv) लुई फिलिप की नीति की असफलता ।

इस क्रांति का सबसे प्रमुख कारण लुई फिलिप की नीति और जनता में उसके प्रति असंतोष था । वह जनता की तत्कालीन समस्याओं को सुलझाने में असमर्थ रहा जिसके कारण क्रांति का सूत्रपात हुआ ।


प्रश्न 2. इटली, जर्मनी के एकीकरण में आस्ट्रिया की भूमिका क्या थी ?

उत्तर ⇒ इटली, जर्मनी का एकीकरण आस्ट्रिया की शर्त पर हुआ क्योंकि इटली एवं जर्मनी के प्रांतों पर आस्ट्रिया का आधिपत्य तथा हस्तक्षेप था, आस्ट्रिया को इटली और जर्मनी से बाहर करके ही दोनों का एकीकरण संभव था। दोनों राष्ट्रों ने आस्ट्रिया को बाहर निकालने के लिए विदेशी सहायता ली।


प्रश्न 3. मेजिनी कौन था ?

उत्तर ⇒ युवा इंटली संगठन का संस्थापक मेजिनी इटली में राष्ट्रवादियों के गुप्त दल ‘कार्बीनरी’ का सदस्य था। वह सेनापति होने के साथ-साथ, गणतांत्रिक विचारों का समर्थक तथा साहित्यकार भी था। 1830 ई० में नागरिक आन्दोलनों द्वारा उसने उत्तरी और मध्य इटली में एकीकृत गणराज्य स्थापित करने का प्रयास किया किन्तु असफल रहने पर उसे इटली से पलायन करना पड़ा। 1845 ई. में मेटरनिक की पराजय के बाद मेजिनी पुनः इटली आकर इटली के एकीकरण का प्रयास किया। किन्तु इस बार भी वह असफल रहा और उसे पलायन करना पड़ा। मेजिनी इटली के राष्ट्रीय आन्दोलन का मसीहा कहा जाता है।


प्रश्न 4. गैरीबाल्डी के कार्यों की चर्चा करें।

उत्तर ⇒ गैरीबाल्डी — ज्यूसप गैरीबाल्डी का जन्म 1807 में नीस नामक नगर में हुआ था। वह पेशे से एक नाविक था और मेजिनी के विचारों का समर्थक था परन्तु बाद में काबूर के प्रभाव में आकर संवैधानिक राजतंत्र का समर्थक बन गया। गैरीबाल्डी ने सशस्त्र क्रांति के द्वारा दक्षिणी इटली के प्रांतों का एकीकरण कर वहाँ गणतंत्र की स्थापना करने का प्रयास किया। गैरीबाल्डी ने सिसली और नेपल्स पर आक्रमण किया। इन प्रांतों की अधिकांश जनता बूढे राजवंश के निरंकुश शासन से तंग होकर गैरीबाल्डी का समर्थक बन गई थी। गैरीबाल्डी ने यहाँ विक्टर इमैनुएल के प्रतिनिधि के रूप में सत्ता सँभाली । गैरीबाल्डी के दक्षिण अभियान का काबूर ने भी समर्थन किया। 1862 ई० में गैरीबाल्डी ने रोम पर आक्रमण की योजना बनाई । काबूर ने गैरीबाल्डी के इस अभियान का विरोध करते हुए रोम की रक्षा के लिए पिडमाउंट की सेना भेज दी। अभियान के बीच में ही गैरीबाल्डी की काबूर से भेंट हो गई तथा रोम अभियान वहीं खत्म हो गया। दक्षिणी इटली के जीते गए क्षेत्रों को गैरीबाल्डी ने विक्टर इमैनुएल को सौंप दिया । गैरीबाल्डी अपनी सारी सम्पत्ति राष्ट्र को समर्पित कर साधारण किसान का जीवन जीने लगा। जिस त्याग, देशभक्ति और वीरता का परिचय उसने दिया, उसके उदाहरण संसार के इतिहास में बहुत कम मिलते हैं। गैरीबाल्डी के इस चरित्र का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर बहुत प्रभाव पड़ा। स्वयं लाला लाजपत राय ने गैरीबाल्डी की जीवनी लिखी है।


प्रश्न 5. इटली के एकीकरण में मेजिनी का क्या योगदान था ?

उत्तर ⇒ मेजिनी दार्शनिक, साहित्यकार, राजनेता के साथ-साथ लोकतांत्रिक विचारों का समर्थक और कुशल सेनापति था। राष्ट्रवादी भावना से प्रेरित होकर ही उसने गुप्त क्रांतिकारी संगठन का कार्बोनारी की सदस्यता ग्रहण की थी। मेटरनिक युग के पतन के बाद इटली में मेजिनी का प्रादुर्भाव हुआ। अपने गणतंत्रवादी उद्देश्यों के प्रचार के लिए मेजिनी ने 1831 ई. में मार्सेई में ‘यंग इटली’ की स्थापना की। इसका सदस्य उसने युवाओं को बनाया। ‘यंग इटली’ का एकमात्र उद्देश्य इटली को आस्ट्रिया के प्रभाव से मुक्त कर उसका एकीकरण करना था । उसने जनता-जनार्दन तथा इटली का नारा बुलंद किया। उग्र राष्ट्रवादी विचारों के कारण मेजिनी को निर्वासित होकर इंगलैंड जाना पड़ा । वहाँ से भी उसने अपनी रचनाओं द्वारा इटली के स्वाधीनता संग्राम को प्रेरित करना चाहा । मेजिनी को इटली के एकीकरण का पैगंबर कहा जाता है।


प्रश्न 6. यूरोपीय इतिहास में ‘घेटो’ का क्या अर्थ है ?

उत्तर ⇒ ‘घेटो’ शब्द का व्यवहार मूलतः मध्यकालीन यूरोपीय शहरों में यहूदियों की बस्ती के लिए किया गया। परंतु वर्तमान संदर्भ में यह विशेष धर्म, प्रजाति, जाति या सामान्य पहचान वाले लोगों के एकसाथ रहनेवाले स्थान को इंगित करता है।


प्रश्न 7. मेटरनिक युग क्या है ?

उत्तर ⇒ आस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिक के 1815 से 1848 ई. तक के काल को मेटरनिक युग कहते हैं। मेटरनिक निरंकुश राजतंत्र में विश्वास रखता था और क्रांति का घोर विरोधी था । वह क्रांति का कट्टर शत्रु तथा क्रांति-विरोधी भावनाओं का समर्थक था। वह राजा के दैवी अधिकार में विश्वास रखता था ।


प्रश्न 8. राष्ट्रवाद क्या है ?

उत्तर ⇒ राष्ट्रवाद किसी विशेष भौगोलिक, सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहनेवाले लोगों के बीच व्याप्त एक भावना है
जो उनमें परस्पर प्रेम और एकता को स्थापित करती है। यह भावना आधुनिक विश्व में राजनीतिक पुनर्जागरण का परिणाम है।


प्रश्न 9. जर्मनी के एकीकरण की बाधाएँ क्या थीं ?

उत्तर ⇒ जर्मनी के एकीकरण में निम्नलिखित प्रमुख बाधाएँ थीं –
(i) लगभग 300 छोटे-छोटे राज्य,
(ii) इन राज्यों में व्याप्त राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक विषमताएँ,
(iii) राष्ट्रवाद की भावना का अभाव
(iv) आस्ट्रिया का हस्तक्षेप तथा
(v) मेटरनिक की प्रतिक्रियावादी नीति।


प्रश्न 10. यूरोप में राष्ट्रवाद को फैलाने में नेपोलियन बोनापार्ट किस तरह सहायक हुआ ?

उत्तर ⇒ नेपोलियन के समय इटली और जर्मनी मात्र एक ‘भौगोलिक अभिव्यक्ति’ थे । नेपोलियन ने अनजाने में (अप्रत्यक्ष रूप से) इटली एवं जर्मनी के छोटे-छोटे विभाजित प्रांतों का एकीकरण कर दिया था। दोनों राज्यों को एक संगठित राजनीतिक रूप देने का प्रयास किया। दोनों देशों में राष्ट्रीयता की भावनाओं को जागृत किया । नेपोलियन ने समानता एवं भ्रातृत्व पर आधारित नवीन समाज का निर्माण इन देशों में कर दिया। इस दृष्टिकोण से हम नेपोलियन को क्रांति का वास्तविक अग्रदूत कह सकते हैं जिसने यूरोप के दो राष्ट्रों को संगठित होने के लिए प्रेरणा दी।


प्रश्न 11. शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर ⇒ द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् पूँजीवादी राष्ट्र अमेरिका एवं साम्यवादी राष्ट्र रूस के बीच प्रत्यक्ष रूप से युद्ध न होकर वाक्वन्द्व के द्वारा एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते थे। प्रत्यक्ष युद्ध कभी भी हो सकता था।


प्रश्न 12. फ्रांस की जुलाई 1830 की क्रान्ति का फ्रांस की शासन व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर ⇒ चार्ल्स-X के प्रतिक्रियावादी शासन का अंत हो गया। बूबों वंश के स्थान पर आर्लेयंस वंश को सत्ता सौंपी गयी। इस वंश के शासक ने उदारवादियों तथा पत्रकारों के समर्थन से सत्ता हासिल की। अतः, उसने इन्हें तरजीह दिया ।


प्रश्न 13. 1830 ई० की क्रांति के प्रभाव का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ 1830 की क्रांति का प्रभाव – 
(i) 1830 ई. की क्रांति का प्रभाव यह रहा कि इसने देश में कट्टर राजसत्तावादियों के प्रभाव को कम कर दिया ।
(ii) इस क्रांति ने फ्रांसीसी क्रांति के सिद्धांतों को पुनर्जीवित किया तथा वियना काँग्रेस के उद्देश्यों को निरर्थक सिद्ध किया।
(iii) इसका प्रभाव संपूर्ण यूरोप पर पड़ा । सभी यूरोपीय राष्ट्रों में राजनीतिक एकीकरण, संवैधानिक सुधारों तथा राष्ट्रवाद के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।
(iv) इटली तथा जर्मनी का एकीकरण तथा यूनान, पोलैण्ड एवं हंगरी में तत्कालीन व्यवस्था के प्रति राष्ट्रीयता के प्रभाव के कारण आंदोलन शुरू हुआ।


प्रश्न 14. विलियम  के बगैर जर्मनी का एकीकरण बिस्मार्क के लिए असंभव था, कैसे ?

उत्तर ⇒  विलियम-I जानता था कि जर्मनी के एकीकरण के मार्ग में आस्ट्रिया बाधक है तथा इसे हटाये बिना जर्मनी का एकीकरण संभव नहीं है । अतः आस्ट्रिया से मुक्ति पाने के लिए उसे युद्ध में हराना जरूरी था। इसके लिए आवश्यक था कि जर्मनी सैनिक दृष्टि से मजबूत बने । विलियम ने प्रशा की सैनिक शक्ति बढ़ाने के लिए एक ठोस योजना बनायी। उदारवादियों के विरोध के बाद भी विलियम सैन्य बजट पर अधिक खर्च किया। विलियम की इस नीति के कारण बिस्मार्क ने ‘रक्त एवं लौह’ की नीति का अवलम्बन किया तथा जर्मनी का एकीकरण संभव हुआ ।


प्रश्न 15. लौह एवं रक्त की नीति क्या है ?

उत्तर ⇒ लौह एवं रक्त की नीति का प्रतिपादन बिस्मार्क ने किया था ।
इस नीति के अनुसार सैन्य शक्ति की सहायता से जर्मनी का एकीकरण करना था ।


प्रश्न 16. इटली के एकीकरण के बाधक तत्त्वों को वर्णन करें।

उत्तर ⇒ भौगोलिक समस्याएँ सबसे बड़ी बाधक थीं इसके अलावा कई अन्य समस्याएँ भी थीं जैसे—इटली में आस्ट्रिया और फ्रांस का विदेशी प्रभुत्व एवं हस्तक्षेप था । आस्ट्रिया इटली की स्वतंत्रता का प्रमुख शत्रु था । रोम का राज्य इटली के मध्य में स्थित था जहाँ पोप का प्रभाव था। पोप चाहता था कि इटली का एकीकरण पोप के नेतृत्व में, धार्मिक दृष्टिकोण के आधार पर हो न कि शासकों के नेतृत्व में, राजनीतिक विषमताएँ आर्थिक कारणों से और भी उग्र हो गईं क्योंकि दक्षिणी इटली अविकसित और ग्रामीण था तथा उत्तरी इटली अर्द्ध-औद्योगिक ।


प्रश्न 17. जुलाई, 1830 ई. की क्रांति के कारणों का वर्णन करें।

उत्तर⇒ चार्ल्स-X एक निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी शासक था । उसने फ्रांसीसी राष्ट्रीयता तथा जनतंत्रवादी भावनाओं को दबा दिया उसने संवैधानिक लोकतंत्र की राह में कई गतिरोध उत्पन्न किए। उसने प्रतिक्रियावादी पोलिग्नेक को प्रधानमंत्री बनाया । पोलिग्नेक ने लुई 18वें के समान नागरिक संहिता के स्थान पर शक्तिशाली अभिजात्य वर्ग की स्थापना की तथा इन्हें विशेषाधिकार प्रदान किया । पोलिग्नेक के इस कार्य से प्रतिनिधि सदन एवं उदारवादियों ने इसका विरोध किया। चार्ल्स-X ने इस विरोध की प्रतिक्रिया में 25 जुलाई, 1830 को चार अध्यादेशों द्वारा उदारवादियों को दबाने का प्रयास किया, फलतः अध्यादेश के विरोध में पेरिस में क्रांति की लहर दौड़ गई । फ्रांस में 28 जुलाई, 1830 ई० में गृहयुद्ध आरम्भ हो गया । इसे ही जुलाई 1830 की क्रांति कहते हैं।


प्रश्न 18.हंगरी के राष्ट्रीय आंदोलन में कोसूथ के योगदान का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ राष्ट्रवादी भावना का प्रभाव हंगरी पर भी पड़ा ।’ यह आस्ट्रिया के अधीन था। हंगरी में राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व कोसूथ तथा फ्रांसिस डिक ने किया । कोसूथ लोकतांत्रिक विचारों का समर्थक था, उसने वर्गहीन समाज (Class less Society) के विचारों से जनता को परिचित कराया जिसपर प्रतिबंध लगा दिया गया । कोसूथ आस्ट्रियाई अधीनता का विरोध कर यहाँ की व्यवस्था में बदलाव की माँग करने लगा। इसका प्रभाव हंगरी और आस्ट्रिया की जनता पर पड़ा । 31 मार्च, 1848 ई. को आस्ट्रिया की सरकार ने हंगरी की बातें मान लीं। हंगरी के स्वतंत्र मंत्रिपरिषद् की माँग स्वीकार की गई। इसमें केवल हंगरी के सदस्य ही सम्मिलित किये गये । हंगरी में प्रेस को स्वतंत्रता दी गई, राष्ट्रीय सुरक्षा सेना की स्थापना की गई, सामंती प्रथा समाप्त कर दी गई तथा प्रतिनिधि सभा (डायट) की बैठक प्रतिवर्ष हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में बुलाने की बात स्वीकार की गई।

 

History ( इतिहास ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. इटली के एकीकरण में मेजिनी के योगदान को बतायें।

उत्तर ⇒ इटली के एकीकरण में मेजिनी- मेजिनी को इटली के एकीकरण को पैगम्बर कहा जाता है। वह दार्शनिक, लेखक, राजनेता, गणतंत्र का समर्थक एवं एक कर्मठ कार्यकर्ता था। उसका जन्म 1805 में सार्डिनिया के जिनोआ नगर में हुआ था। 1815 में जब जिनोआ को पिडमौंट के अधीन कर दिया गया, तब इसका विरोध करने वालों में मेजिनी भी था। राष्ट्रवादी भावना से प्रेरित होकर उसने गुप्त क्रांतिकारी संगठन कार्बोनारी की सदस्यता ग्रहण की। अपने गणतंत्रवादी उद्देश्यों के प्रचार के लिए मेजिनी ने 1831 में मार्सेई में ‘यंग इटली’ तथा 1834 में बर्न में ‘यंग युरोप की स्थापना की। इसका सदस्य युवाओं को बनाया गया। मेजिनी जन संप्रभुता के सिद्धांत में विश्वास रखता था। उसने ‘जनार्दन जनता तथा इटली’ का नारा दिया। उसका उद्देश्य आस्ट्रिया के प्रभाव से इटली को मुक्त करवाना तथा संपूर्ण इटली का एकीकरण करना था।


2. इटली के एकीकरण में काबूर और गैरीबाल्डी के योगदानों का उल्लेख करें।

उत्तर ⇒ इटली का एकीकरण मेजिनी, काबूर और गैरीबाल्डी के सतत प्रयासों से हुआ था।

इटली के एकीकरण में काबूर का योगदान– काबूर का मानना था कि सार्डिनिया के नेतृत्व में ही इटली का एकीकरण संभव थाउसने प्रयास आरंभ कर दिए। विक्टर एमैनुएल के प्रधानमंत्री के रूप में उसने इटली की आर्थिक और सैनिक शक्ति सुदृढ़ की। पेरिस शांति-सम्मेलन में उसने इटली । की समस्या को यूरोप का प्रश्न बना दिया। 1859 में फ्रांस की सहायता से ऑस्ट्रिया को पराजित कर उसने लोम्बार्डी पर अधिकार कर लिया। मध्य इटली स्थित अनेक राज्यों को भी सार्डिनिया में मिला लिया गया।

इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी का योगदान- उसका मानना था कि युद्ध के बिना इटली का एकीकरण नहीं होगा। इसलिए, उसने आक्रामक नीति अपनाई। ‘लालकुर्ती’ और स्थानीय किसानों की सहायता से उसने सिसली और नेपल्स पर अधिकार कर लिया। इन्हें सार्डिनिया में मिला लिया गया। वह पोप के राज्य पर भी आक्रमण करना चाहता था, परंतु काबूर ने इसकी अनुमति नहीं दी।


3. जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें।

उत्तर ⇒ शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने जर्मनी के एकीकरण के उद्देश्य से ‘ब्रूशेन शैफ्ट’ नामक सभा स्थापित की। वाइमर राज्य का येना विश्वविद्यालय राष्ट्रीय आंदोलन का केंद्र था। 1834 में जर्मन व्यापारियों ने आर्थिक व्यापारिक समानता के लिए प्रशा के नेतृत्व में जालवेरिन नामक आर्थिक संघ बनाया जिसने राष्ट्रवादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दिया। 1848 ई० में जर्मन राष्ट्रवादियों ने फ्रैंकफर्ट संसद का आयोजन कर प्रशा के राजा फ्रेडरिक विलियम को जर्मनी के एकीकरण के लिए अधिकृत किया लेकिन फ्रेडरिक द्वारा अस्वीकार कर देने से एकीकरण का कार्य रुक गया। फ्रेडरिक की मृत्यु के बाद विलियम प्रथम प्रशा का राजा बना। विलियम राष्ट्रवादी विचारों का पोषक था। विलियम ने जर्मनी के एकीकरण के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर महान कूटनीतिज्ञ बिस्मार्क को अपना चांसलर नियुक्त किया। बिस्मार्क ने जर्मनी के एकीकरण के लिए “रक्त और लौह की नीति” का अवलंबन किया। इसके लिए उसने डेनमार्क, ऑस्ट्रिया तथा फ्रांस के साथ युद्ध किया। अंततोगत्वा जर्मनी 1871 में एकीकृत राष्ट्र के रूप में यूरोप के मानचित्र में स्थान पाया।


4. जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ की मृत्यु के बाद प्रशा का राजा विलियम प्रथम बना। वह राष्टवादी था तथा प्रशा के नेतत्व में जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था। विलियम जानता था कि आस्टिया और फ्रांस को पराजित किए बिना जर्मनी का एकीकरण संभव नहीं है। अतः उसने 1862 ई० में ऑटोबॉन बिस्मार्क को अपना चांसलर (प्रधानमंत्री) नियुक्त किया। बिस्मार्क प्रख्यात राष्ट्रवादी और कूटनीतिज्ञ था। जर्मनी के एकीकरण के लिए वह किसी भी कदम को अनुचित नहीं मानता था। उसने जर्मन राष्ट्रवादियों के सभी समूहों से संपर्क स्थापित कर उन्हें अपना प्रभाव में लाने का प्रयास किया। बिस्मार्क का मानना था कि जर्मनी की समस्या का समाधान बौद्धिक भाषणों से नहीं, आदर्शवाद से नहीं वरन् प्रशा के नेतृत्व में रक्त और लाह को नीति से होगा। 1871 ई० में फ्रैंकफर्ट की संधि द्वारा दक्षिणी रान्य उत्तरी जर्मन महासंघ में मिल गए। अंततोगत्वा जर्मनी 1871 ई० में एक एकीकृत राष्ट्र के रूप में यूरोप के मानचित्र पर उभरकर सामने आया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण थी।


5. वियना कांग्रेस (सम्मेलन का आयोजन क्यों किया गया ? इसकी क्या उपलब्धियाँ थी?

उत्तर ⇒ वियना कांग्रेस का उद्देश्य नेपोलियन द्वारा यरोप की राजनीति में लाए गए परिवर्तनों को समाप्त करना, गणतंत्र एवं प्रजातंत्र की भावना का विरोध करना एवं पुरातन व्यवस्था की पुनर्स्थापना करना था। इसके द्वारा निम्नलिखित परिवतन किए गए

(i) फ्रांस को नेपोलियन द्वारा विजित क्षेत्रों को वापस लौटाने को कहा गया।
(ii) प्रशा को उसकी पश्चिमी सीमा पर नए महत्त्वपूर्ण क्षेत्र दिए गए। इटलो को अनेको छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त कर दिया गया।
(iv) रूस को पोलैंड का एक भाग दिया गया।
(V) ब्रिटेन को अनेक क्षेत्र दिए गए।
(vi) जर्मन महासंघ पर आस्ट्रिया का प्रभाव स्थापित किया गया।
(vii) नेपोलियन द्वारा पराजित राजवंशों की पुनर्स्थापना की गई। इस प्रकार वियना कांग्रेस में प्रतिक्रियावादी शक्तियों की विजय हुई, फ्रांसीसी क्रांति की उपलब्धियों को तिलांजलि दे दी गई।


6. राष्ट्रवाद के उदय के कारणों एवं प्रभाव की चर्चा करें।

उत्तर ⇒ कारण यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना को 1789 की फ्रांसीसी क्रांति तथा नेपोलियन की विजयों ने बढ़ावा दिया। फ्रांसीसी क्रांति ने कुलीन वर्ग के हाथों से राजनीति को सर्वसाधारण एवं मध्यमवर्ग तक पहुँचा दिया। नेपोलियन ने विजित राज्यों में राष्ट्रवादी भावना जागृत कर दी। साथ ही नेपोलियन के युद्धों और विजयों से अनेक राष्ट्रों में फ्रांसीसी आधिपत्य के विरुद्ध आक्रोश पनपा, जिससे राष्ट्रवाद का विकास हुआ। प्रभाव-18वीं एवं 19वीं शताब्दियों में यूरोप में जिस राष्ट्रवाद की लहर चली, उसके व्यापक और दूरगामी प्रभाव यूरोप और विश्व पर पड़े जो निम्नलिखित थे

(i) राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर अनेक राष्ट्रों में क्रांतियाँ और आंदोलन हुए। इनके फलस्वरूप अनेक नए राष्ट्रों का उदय हआ. जैसे इटली और जर्मनी के एकीकृत राष्ट्र।

(ii) यूरोपीय राष्ट्रवाद के विकास का प्रभाव एशिया और अफ्रीका में भी पड़ा। यूरोपीय उपनिवेशों के आधिपत्य के विरुद्ध वहाँ भी औपनिवेशिक शासन से मुक्ति के लिए राष्ट्रीय आंदोलन आरंभ हो गए।

(iii) राष्ट्रवाद के विकास ने प्रतिक्रियावादी शक्तियों और निरंकुश शासकों का
प्रभाव कमजोर कर दिया।


7. राष्ट्रवाद के उदय का यूरोप और विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर ⇒ 18वीं-19वीं शताब्दी में यूरोप में जिस राष्ट्रवाद की लहर चली गई व्यापक और दूरगामी प्रभाव न केवल यूरोप पर वरन् पूरे विश्व पर पड़ा जो निम्नलिखित

(i) राष्ट्रीयता की भावना से ही प्रेरित होकर अनेक राष्ट्रों में क्रांतियाँ और आंदोलन हए जिसके परिणामस्वरूप अनेक नये राष्ट्रों का उदय हुआ। इटली और जर्मनी का एकीकरण भी राष्ट्रवाद के उदय का ही परिणाम था।

(ii) राष्ट्रवाद के विकास का प्रभाव एशिया और अफ्रीका में भी देखने को मिला। यूरोपीय उपनिवेशों के आधिपत्य के विरुद्ध वहाँ भी औपनिवेशिक शासन से मुक्ति के लिए राष्ट्रीय आंदोलन आरंभ हो गए।

(iii) भारतीय राष्ट्रवादी भी यूरोपीय राष्ट्रवाद से प्रभावित हए। पैसूर के टीपू सलतान ने फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर जैकोबिन क्लब की स्थापना की एवं स्वयं इसका सदस्य भी बना।

(iv) धर्मसुधार आंदोलन के भारतीय नेताओं ने भी राष्ट्रवादी भावनाओं से प्रभावित होकर राष्ट्रीय आंदोलनों को अपना समर्थन दिया।

(v) राष्ट्रवाद के विकास ने यूरोप में प्रतिक्रियावादी शक्तियों और निरंकुश शासकों के प्रभाव को कमजोर कर दिया।

(vi) राष्ट्रवाद के विकास का कुछ नकारात्मक प्रभाव भी पड़ा। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से राष्ट्रवाद ‘संकीर्ण राष्ट्रवाद’ में बदल गया। प्रत्येक राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हित की दुहाई देकर उचित-अनुचित सब कार्य करने लगे।

(vii) राष्ट्रवाद के उदय ने साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया। इस साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के कारण ही ऑटोमन साम्राज्य ध्वस्त हुआ और पूरा बाल्कन क्षेत्र युद्ध का अखाड़ा बन गया।


8. जुलाई, 1830 की क्रांति का विवरण दें।

उत्तर ⇒ जुलाई, 1830 में चार्ल्स- X (दशम) के स्वेच्छाचारी शासन के विरुद्ध फ्रांस में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी। फ्रांस में वियना व्यवस्था के तहत क्रांति के पूर्व की व्यवस्था को स्थापित करने के लिए बूर्वो राजवंश को पुनर्स्थापित किया गया तथा लुई 18वाँ फ्रांस का राजा बना। उसने फ्रांस की बदली हुई परिस्थितियों को समझा और फ्रांसीसी जनता पर पुरातनपंथी व्यवस्था को थोपने का प्रयास नहीं किया। उसने प्रतिक्रियावादी तथा सधारवादी शक्तियों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने का. प्रयास किया। उसने संवैधानिक सुधारों की घोषणा भी की। 1824 में उसकी मृत्यु के पश्चात् फ्रांस का राजसिंहासन चार्ल्स दशम को मिला। वह एक स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश शासक था जिसने फ्रांस में उभर रही राष्ट्रीयता तथा जनतंत्रवादी भावनाओं को दबाने का कार्य किया। उसके द्वारा प्रतिक्रियावादी पोलिग्नेक को प्रधानमंत्री बनाया गया। पोलिग्नेक ने पूर्व में लुई 18वें द्वारा स्थापित समान नागरिक संहिता के स्थान पर शक्तिशाली अभिजात्य वर्ग की स्थापना तथा उसे विशेषाधिकारों से विभूषित करने का प्रयास किया। उसके इस कदम को उदारवादियों ने चुनौती तथा क्रांति के विरुद्ध षड्यंत्र समझा। प्रतिनिधि सदन एवं दूसरे उदारवादियों ने पोलिग्नेक के विरुद्ध गहरा असंतोष प्रकट किया। चार्ल्स-X ने इस विरोध को प्रतिक्रियास्वरूप 25 जुलाई, 1830 ई० को चार अध्यादेशों द्वारा उदार तत्त्वों का गला घोंटने का प्रयास किया। इन अध्यादेशों के विरुद्ध पेरिस में क्रांति की लहर दौड़ गई। 27-29 जुलाई तक जनता और राजशाही में संघर्ष होता रहा। इसे ही जुलाई क्रांति कहते हैं।


9. 1848 की क्रांति के प्रभावों की समीक्षा कीजिए।

उत्तर ⇒ 1848 की क्रांति के समय फ्रांस का राजा लुई फिलिप था। उसका प्रधानमंत्री गिजो प्रतिक्रियावादी था। वह किसी भी प्रकार के सुधार का विरोधी था। जनता में व्याप्त घोर असंतोष को जब उसने दबाने का प्रयास किया तब क्रोधित जनता ने राजमहल को घेर लिया। फिलिप को किसी से भी सहायता नहीं मिली जिससे विवश होकर वह राजगद्दी छोड़कर इंगलैंड भाग गया। राजा के भागने के बाद क्रांतिकारियों ने फ्रांस में द्वितीय गणराज्य की स्थापना की। नई व्यवस्था के अनुरूप 21 वर्ष से अधिक आयु के सभी वयस्क पुरुषों को मताधिकार मिला। मजदूरों को काम दिलाने के लिए राष्ट्रीय कारखाने खोले गए, उन्हें बेकारी भत्ता भी दिया गया। इन कार्यों से श्रमिकों की स्थिति में विशेष सुधार नहीं आया, उनका असंतोष बना रहा। गणतंत्रवादियों का नेता लामार्टिन एवं सुधारवादियों का नेता लुई ब्लॉ था। शीघ्र ही दोनों में मतभेद आरंभ हो गया। नवंबर में द्वितीय गणराज्य का नया संविधान बना। लुई नेपोलियन गणतंत्र का राष्ट्रपति बना। 1848 ई० की क्रांति के परिणामस्वरूप फ्रांस में एक नए प्रकार के राष्ट्रवाद का उत्थान हुआ जिसका आधार सनिक शक्ति था। 1852 में नेपोलियन ने गणतंत्र को समाप्त कर दिया और स्वयं फ्रांस का सम्राट बन गया।
1848 की क्रांति ने न सिर्फ फ्रांस की पुरातन व्यवस्था का अंत किया बल्कि इटली, जर्मनी, आस्ट्रिया, हॉलैंड, स्वीट्जरलैंड, डेनमार्क, स्पेन, पोलैण्ड, आयरलैंड तथा इगलड भी इस क्रांति से प्रभावित हए। इटली तथा जर्मनी के उदारवाला 7 बढ़ते हुए जन असंतोष का फायदा उठाया और राष्ट्रीय एकीकरण क कीकरण के द्वारा राष्ट्र राज्य की स्थापना की माँगों को आगे बढ़ाया, जो संवैधानिक लोकतत्र लोकतंत्र के सिद्धांत पर आधारित था।


10. यूनानी स्वतंत्रता आंदोलन का संक्षिप्त विवरण दें।

उत्तर ⇒ यूनान का अपना गौरवमय अतीत रहा है। यनानी सभ्यता का साहित्यिक प्रगति, विचार. दर्शन. कला. चिकित्सा. विज्ञान आदि क्षेत्र की उपलब्धिया यूनानया के लिए प्रेरणास्त्रोत थे। परंत इसके बावजद भी यनान तर्की साम्राज्य क अधान था। फ्रांसीसी क्रांति से यनानियों में भी राष्टीयता की भावना की लहर जागा। फलतः तुका शासन से स्वयं को अलग करने के लिए आंदोलन चलाये जाने लगे। इसक लिए इन्होंने हितेरिया फिलाडक नामक संस्था की स्थापना ओडेसा नामक स्थान पर काा इसका उद्देश्य ती शासन को यनान से निष्काषित कर उसे स्वतंत्र बनाना था। क्राति के नेतृत्व के लिए यूनान में शक्तिशाली मध्यम वर्ग का भी उदय हो चुका था। यूनान में विस्फोटक स्थिति तब और बन गई जब तुर्की शासका द्वारा यूनाना स्वतंत्रता संग्राम में संलग्न लोगों को बरी तरह कचलना शरू किया। 1821 ई० में एलेक्जेंडर चिपसिलांटी के नेतत्व में यनान में विद्रोह शरू हो गया। अंतत: 1829 ई० में एड्रियानोपल की संधि द्वारा तुर्की की नाममात्र की अधीनता में यूनान को स्वायत्तता देने की बात तय हुई। फलतः 1832 में यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया। बवेरिया के शासक ‘ओटो’ को स्वतंत्र यूनान का राजा घोषित किया गया।

परिणाम-  यूनानियों ने लंबे और कठिन संघर्ष के बाद ऑटोमन साम्राज्य के अत्याचारी शासन से मुक्ति पाई। यूनान के स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र का उदय हुआ। यद्यपि गणतंत्र की स्थापना नहीं हो सकी परंतु एक स्वतंत्र राष्ट्र के उदय ने मेटरनिख की प्रतिक्रियावादी नीति को गहरी ठेस लगाई।


11. राष्ट्रपति निक्सन के हिन्द-चीन में शांति के संबंध में पाँच सूत्रीयोजना क्या थी ? इसका क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर ⇒ अमेरिकी-वियतनाम युद्ध में अमेरिकी अत्याचार की आलोचना पूरे विश्व में होने लगी। अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने हिन्द-चीन में शांति के लिए पाँच पोजना की घोषणा की जो निम्नलिखित थी

(i) हिन्द-चीन की सभी सेनाएँ युद्ध बंद कर यथास्थान पर रहे।

(ii) युद्ध विराम की देखरेख अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक करेंगे।

(iii) इस दौरान कोई देश अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयत्न नहीं करेगा।

(iv) युद्ध विराम के दौरान सभी तरह की लड़ाइयाँ बंद रहेगी तथा

(v) यद्धं का अंतिम लक्ष्य समूचे हिन्द-चीन में संघर्ष का अंत होगा।

प्रभाव- राष्ट्रपति निक्सन के इस शांति प्रस्ताव को स्वीकार कर दिया गया। निक्सन ने पुनः आठ सूत्री योजना रखी जिसे भी सोवियत संघ ने भी अपना प्रभाव बढाना आरंभ कर दिया। 27 फरवरी हस्ताक्षर हो गया। इस तरह से अमेरिका के साथ चला आ रहा युद्ध समाप्त हो गया एवं अप्रैल 1975 में उत्तरी एवं दक्षिणी वियतनाम का एकीकरण हो गया।

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