मूल्य वृद्धि की समस्या – महँगाई

मूल्य वृद्धि की समस्या – महँगाई

          वस्तुओं की कीमतों में निरन्तर वृद्धि से एक ऐसी चिन्ताजनक स्थिति उत्पन्न हो गयी है, जिसका विकल्प निकट भविष्य में दिखाई नहीं दे रहा है । स्वतन्त्रता से पूर्व हमारे देश में मूल्य वृद्धि की इतनी भयावह स्थिति नहीं थी, जितनी आज हो गयी है। उस समय जो वस्तुओं की कीमतें थीं। वे सर्वसाधारण के लिए कोई दुःख का कारण नहीं था। सभी सहजता के साथ जीवन को आनन्दपूर्वक बिता रहे थे । यद्यपि उस समय भी वस्तुओं की मूल्य वृद्धि हो रही थी। उससे जीवन-रथ को आगे बढ़ाने में कोई बाधा नहीं दिखाई देती थी । इसके विपरीत आज का जीवन-पथ तो वस्तुओं की कीमतों में लगातार वृद्धि होने से काँटों के समान चुभने वाला हो गया है ।
          अब प्रश्न है कि आज वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने का कारण क्या है ? वस्तुओं की कीमतें इतनी तीव्र गति से क्यों बढ़ रही हैं ? अगर इन्हें रोकने के लिए प्रयास किया गया है, तो फिर ये कीमतें क्यों न रुक पा रही हैं ? दिन दूनी रात चौगुनी गति से इस मूल्य वृद्धि के बढ़ने के आधार और कारण क्या है ?
          भारतवर्ष में वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमतों के विषय में यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि आजादी के बाद हमारे देश में कीमतों की बेशुमार वृद्धि हुई है। बार-बार सत्ता परिवर्तन और दलों की विभिन्न सिद्धान्तवादी विचारधाराओं से अर्थव्यवस्था को कोई निश्चित दिशा नहीं मिली है। बार-बार सत्ता परिवर्तन के कारण अर्थव्यवस्था पर बहुत असर पड़ा है। जो भी दल सत्ता में आया, उसने अपनी-अपनी आर्थिक नीति की लागू किया। यों तो सभी सरकार ने मुद्रास्फीति पर काबू पाने का बराबर प्रयास किया । फिर भी अपेक्षित सफलता किसी भी सरकार को नहीं मिली ।
          प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि होने के कारण थोक कीमतों में 18.4 प्रतिशत कमी हुई। लेकिन इस योजना के अन्त में कीमतों का बढ़ना पुनः जारी हो गया। दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान कीमतों का बढ़ना रुका नहीं और इनकी वृद्धि 30 प्रतिशत हो गई। तीसरी पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत खाद्यान्न की अत्यधिक वृद्धि के कारण कीमतों की वृद्धि दर लगभग स्थिर थी । लेकिन सन् 1962 में चीनी आक्रमण और सन् 1965 में पाकिस्तानी आक्रमण के फलस्वरूप युद्ध-खर्च के साथ-साथ अन्य राज्यों में सूखा और बाढ़ की भयंकर स्थिति से खाद्यान्न में भारी कमी के कारण मूल्य दर बढ़ना शुरू हो गयी। इसी प्रकार से सन् 1971 में पाकिस्तानी आक्रमण के साथ लगभग एक करोड़ शरणार्थियों के पूर्वी पाकिस्तान से आने के कारण सरकार को खर्च पूरा करने के लिए अतिरिक्त कर भी लगाने पड़े थे । इससे वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि दर करनी पड़ी। इस प्रकार समय-समय पर मूल्य स्थिरता के बाद मूल्य वृद्धि इस देश की नियति बन गई है।
          वस्तुओं की कीमतों में लगातार वृद्धि होने के कारण अनेक हैं। जनसंख्या का तीव्र गति से बढ़ने के कारण पूर्ति माँग के अनुसार नहीं बढ़ना, मुद्रापूर्ति का लगभग एक प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ते जाना और वस्तु का उत्पादन इस गति से न होने के साथ-साथ रोजगारों में वृद्धि, घाटे की वित्त व्यवस्था, शहरीकरण की प्रवृत्ति काले धन का दुष्प्रभाव तथा उत्पादन में धीमी वृद्धि आदि के कारण कीमतों में वृद्धि हुई। यही नहीं देश में भ्रष्ट व्यवसायी और दोषपूर्ण वितरण व्यवस्था ने कीमतों में निरन्तर वृद्धि की है ।
          कीमतों में निरन्तर वृद्धि के मुख्य कारणों में सर्वप्रथम एक यह भी कारण है कि विज्ञान की विभिन्न प्रकार की उपलब्धियों से आज मानव मन डोल गया है। वह विज्ञान के इस अनीखे चमत्कार में आ गया है। इनके प्रति लालायित होकर आज मनुष्य में अपनी इच्छाओं को बेहिसाब बढ़ाना शुरू कर दिया है । फलतः वस्तु की माँग और पूर्ति उत्पादन से कहीं अधिक होने लगी है। इसलिए माँग की और खपत की तुलना में वस्तु उत्पादन की कमी देखते हुए वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि करने के सिवाय और कोई चारा नहीं रह जाता है। इस तरह महँगाई का दौर हमेशा होता ही रहता है ।
          वस्तुओं की कीमतों के बढ़ने से जीवन का अव्यवस्थित हो जाना स्वाभाविक है। आगे की कोई आर्थिक नीति तय करने में भारी अड़चन होती है। कीमतों की वृद्धि दर और कितनी और कब घट-बढ़ सकती है, इसकी जानकारी प्राप्त करना एक कठिन बात है । महँगाई बढ़ने से चारों ओर से जन-जीवन के अस्त-व्यस्त हो जाता है। इससे परस्पर विश्वास और निर्भरता की भावना समाप्त होकर कटुता का विष बीज बो देती है। अतएव वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमतों को स्थिर करने के लिए कोई कारगर कदम उठाना चाहिए। इससे जीवन और समुन्नत और सम्पन्न हो सके ।
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